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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 10 दिसंबर 2020

जय श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुनित्यानन्द श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि – गौरभक्तवृन्द पंचतत्व कि जय...! गौर भक्त वृन्द कि भी जय...!

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

हरे कृष्ण महामंत्र कि जय...!

हरिनाम प्रभु कि जय...! कैसे प्रभु कि जय? हरिनाम प्रभु कि जय..!, चेतो-दर्पण-मार्जनं भव-महा-दाबाम्नि-निर्वापणं श्रेयः-कैरव-चन्द्रिका-वितरणं विद्या-वधू-जीवनम् । आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रति-पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म-स्नपन परं विजयते श्री-कृष्ण-सङ्कीर्तनम् ।।

(चैतन्य चरितामृत अंत लिला अध्याय 20,श्लोक12 , शिक्षाष्टकम् 1)

अनुवाद : "भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो, जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है। यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है, जो समस्त जीवों के लिए सौभाम्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है। यह समस्त विद्या का जीवन है। कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर बिस्तार करता है। यह सबों को शीतलता प्रदान करता है और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बनाता है। परं विजयते श्री-कृष्ण-सङ्कीर्तनम् ।।

यह भी याद रखिएगा। संकीर्तन आंदोलन कि जय हो...! कैसी जय? परम विजयते! श्री कृष्ण संकीर्तन साधारण जय या जीत नहीं।

परं विजयते श्री-कृष्ण-सङ्कीर्तनम् ।। साधारण जय नहीं परम विजय संकीर्तन संकीर्तन कि जय! संकीर्तन आंदोलन कि जय! उसी में आप सब की जय! संकीर्तन आंदोलन के भक्तों के बिना कैसा करेंगे आंदोलन? कौन सा आंदोलन है ? संकीर्तन आंदोलन जीस कि जय हो। आप कह रहे हो। उसमें आंदोलन के सदस्य नहीं हैं। श्रील प्रभुपाद सेनापति भक्त और हम सैनिक हैं। हम सब की जय! और ऐसे जय-विजय की घोषणा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कि हैं। हरि हरि!

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

इस महामंत्र का जो जप करेंगे यह जपा कॉन्फ्रेंस है, जप करते हैं फिर जापा टौक फिर हरिनाम कि कथा या लीलाओं कि भी कथा होती हैं। यह जप हम करते हैं। हरि हरि! एक तो मैं तो सोचते ही रहता हूंँ। हरि हरि! हम जब भगवान को पुकारते है, हम वही करते है, जब जप करते हैं। जब कीर्तन करते है, यह ध्यान पूर्वक जप करते हैं या प्रेम पूर्वक जप करते हैं।यह भक्ति हुयी।

श्रीप्रह्लाद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥२३ ॥ इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥२४ ॥

(श्रीमद्भागवतम् स्कंध 7,अध्याय5,श्लोक23-२4)

अनुवाद: -प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज - सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना , उनका स्मरण करना , भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना , षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना , भगवान् से प्रार्थना करना , उनका दास बनना , भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना ( अर्थात् मनसा , वाचा , कर्मणा उनकी सेवा करना ) -शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं । जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए , क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है ।

यह नवविधा भक्ती हो गई ऐसे कहा गया है भक्तिरसामृतसिंधु में रूप गोस्वामी कहते हैं भक्ति का एक लक्षण है कृष्णाकर्षणी क्या समझे, क्या सुना या क्या लिख रहे हो। माधवी कुमारी लिख रही है या नहीं लिख रही शायद भूल गए अपना नोटबुक। भक्ति है कृष्णाकर्षणी। भक्ति कृष्ण को आकर्षित करती है भक्त कि ओर भक्त करता है भक्ति और भक्ति करती है कृष्ण को आकृष्ट भक्तों की ओर,और जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हैं। हम कृष्ण को आकृष्ट करते है,या कृष्ण सोचते हैं मुझे कोई बुला रहा है कोई मुझे बुला रहा है पुकार रहा हूँ और फिर भगवान आते हैं या हम भी जाते हैं उनकी और और वह भी हमारे और आते हैं और फिर बीच में कहीं मिलन हो जाता हैं। हरि हरि!

हमारी पुकार अगर श्रील प्रभुपाद के शब्दों में छोटा बालक के रोने जैसा होता हैं। छोटा बालक जब रोता है अधिकतर क्यों रोता है उसको माँ चाहिए होती है,उसको माँ चाहिए होती हैं।छोटा बालक अपनी मां से दूर नहीं रह सकता। माँ नहीं दिखती कहीं अगल-बगल या कुछ चाहिए भी होता है मुझे यह चाहिए खिलौना चाहिए वह चाहिए वह चाहिए वह जानता है कि मुझे माँ ही दे सकती हैं।छोटे बालक के लिए मानो उसकी माँ ही भगवान है या माँ है वाछां – कल्पतरुभ्यश्च इच्छा पूर्ण करने वाली मां ही होती है पिता भी हो सकते हैं लेकिन अधिकतर माँ ही होती हैं। यह बालक फिर माँ दिखती नहीं है तो कुछ चाहिए भी होता है और माँ भी नहीं दिख रही है तो फिर रोने लगता है फिर रोता है तो जरूर माँ आती है उठाती है गोद में लेटाती है, दूध पिलाती है और जो भी उसकी मांग है उसकी पूर्ति करती हैं। हरि हरि! जीवात्मा की माता तो भगवान हैं। जीव की माता ही नहीं उसके पिता भी है भगवान्।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव। त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव। त्वमेव सर्वं मम देव देव:।।

भगवान धन हैं। भगवान विद्या हैं। भगवान माता हैं। भगवान पिता हैं। भगवान क्या नहीं हैं जीव के लिए सर्व देव देव: सर्वेसर्वा है भगवान्। भगवान मिलेंगे तो सब कुछ मिलेगा। हरि बोल...! ऐसी पुकार जब भक्त पुकारता है वह छोटे बच्चे की तरह होनी चाहिए। जब उसे माँ चाहिए होती है तो रोता है वैसे ही कहा है मुझे और कुछ नहीं मुझे माँ चाहिए मुझे भगवान चाहिए।

न धनं न जनं न सुन्दरीं कवितां वा जगदीश कामये। मम जन्मनि जन्मनीश्वरे भवताद् भक्तिरहैतुकी त्वयि॥

(श्री चैतन्य चरितामृत अंत्यलीला अध्याय 20 श्लोक 29,शिक्षाष्टकम् 4)

अनुवाद: हे सर्व समर्थ जगदीश ! मुझे धन एकत्र करने की कोई कामना नहीं है, न मैं अनुयायियों, सुन्दर स्त्री अथवा प्रशंनीय काव्यों का इक्छुक नहीं हूँ । मेरी तो एकमात्र यही कामना है कि जन्म-जन्मान्तर मैं आपकी अहैतुकी भक्ति कर सकूँ।

मुझे और कुछ नहीं चाहिए न धनं न जनं मुझे तो भगवान चाहिए। भगवान कि भक्ति चाहिए। बालक कभी रोया भी तो, माता तो व्यस्त रहती है,कहीं कार्यों में बालक ने फिर रोना बंद भी किया तो भी माता घरेलू कार्य में व्यस्त रहेगी फिर पुनः बालक ने रोना प्रारंभ किया तो पुनः बालक की ओर जाने का सोचेगी तो सही पुनः बालक में रोना बंद किया। पुनः माँ व्यस्त रहेगी अपने कार्य में,पुनः बालक रो रहा हैं। पुनः बालक की तरफ जाने की सोचेगी,लेकिन बालक रो ही रहा है, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है, तो फिर माँ के पास और कोई पर्याय नहीं होगा। माँ को तो आना ही होगा,जो भी कर रही हैं। अपनी व्यस्तता को रोक के सब कार्य को बंद करके माँ जरूर आएगी, आती हैं। बालक कि तरहा हमारी भी मांग, हमें कृष्ण चाहिए! हमें कृष्ण चाहिए!

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।

हम क्या कह रहे हैं?ओह कृष्ण या फिर ओह राधे भी दोनों मिलकर भगवान हैं।

अयि नन्दतनुज किंकरं पतितं मां विषमे भवाम्बुधौ। कृपया तव पादपंकज-स्थितधूलिसदृशं विचिन्तय॥ (शिक्षाष्टक 5)

अनुवाद: हे नन्दतनुज ! मैं आपका नित्य दास हूँ किन्तु किसी कारणवश मैं जन्म-मृत्यु रूपी इस सागर में गिर पड़ा हूँ । कृपया मुझे अपने चरणकमलों की धूलि बनाकर मुझे इस विषम मृत्युसागर से मुक्त करिये।

मैं आपका हूंँ। मैं आपका हूंँ। हम जप भी कर रहे हैं और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के विचार हैं।उन्होंने हमको ऐसे विचार दिए हैं। यह संसार कैसा है दुख:लय अशाश्वातम् हैं।कृष्ण ने कहा है गीता में

मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्। नाप्रुवन्ति महात्मान: संसिध्दिं परमां गता:।।

( श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8 श्लोक 15)

अनुवाद: -मुझे प्राप्त करके महापुरुष, जो भक्तियोगी हैं, कभी भी दु:खों से पूर्व इस अनित्य जगत में नहीं लौटते, क्योंकि उन्हें परम सिद्धि प्राप्त होती हैं।

वी वांट कृष्णा वी वांट कृष्णा और कोई कुछ नहीं चाहिए चैतन्य महाप्रभु आगे कहते हैं।

नयनें गलदश्रु-धारया वदने गद्गद-रुद्धया गिरा। पुलकैर्निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति।।

(श्री चैतन्य चरितामृत अंत्यलीला अध्याय 20 श्लोक 36,शिक्षाष्टकम् 6)

अनुवाद:-हे प्रभु, कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए मेरे नेत्र प्रवहमान अश्रुओं से पूरित होकर सुशोभित होंगे? कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए दिव्य आनन्द में मेरी वाणी अवरूद्ध होगी और मेरे शरीर में रोमांच उत्पन्न होगा?'

अनुवाद:-हे प्रभु, कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए मेरे नेत्र प्रवहमान अश्रुओं से पूरित होकर सुशोभित होंगे? कब आपके पवित्र नाम का कीर्तन करते हुए दिव्य आनन्द में मेरी वाणी अवरूद्ध होगी और मेरे शरीर में रोमांच उत्पन्न होगा?'

ये हरे कृष्ण हरे कृष्ण पुकारते हुए। कबे ह'बे बोलो से दिन आमार वह दिन हमारे जीवन में,मेरे जीवन में कब आएगा। नयनें गलदश्रु-धारया मैं रोने लगूंगा, मेरे आंखों से आंसू बहने लगेंगे वदने गद्गद-रुद्धया गिरा। गला गद-गद हो उठेगा, शरिर में रोमांच होगा मतलब मिलन होगा। हम पुकारे हरे कृष्ण हरे कृष्ण। हमारी पुकार भगवान जहा भी है या सर्वत्र हैं हमारे हृदय प्रांगण में है गोलोक में है वह सुनेंगे और वह भी हमारी ओर दौड़ते हुए आएंगे हम ढूंढ रहे हैं हम दौड़ रहें है कृष्ण की ओर और कृष्ण दौड़ रहें है हमारी ओर। जब मिलन होगा इसका इसके लक्षण क्या हैं? नयनें गलदश्रु-धारया जब हो रहा हैं।ये अलग-अलग विकार जो प्रकट हो रहें हैं। अष्टविकार, स्तंभित होना, अश्रु धारायें बहनां, लोटना और भगवान को याद करना। गोविन्द-विरहेण मे विरह कि व्यथा को महसूस करना।हरि हरि!

मिलन है तो फिर हाथ मिलाना हो रहा हैं। मिलन हो रहा है फिर अंग-संग हो रहा हैं। जब भगवान आलिंगन मिलन के ही अलग-अलग स्तर कहो। हरि हरि!

कृष्ण प्राप्ति का उपाय यही हैं स्वयं भगवान आकर कह कर गए हैं। कृष्ण भी आये थे फिर 500 वर्ष पूर्व श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में कलयुग में आ गए कृष्ण। कलयुग में कृष्ण आते हैं उनका नाम श्री कृष्ण चैतन्य बनता है और फिर कलयुग के धर्म का प्रचार करते हैं। कलयुग के धर्म की स्थापना करते हैं। वह है नाम संकीर्तन और कलयुग के धर्म की स्थापना के बाद भाषण देकर कुछ उपदेश देकर ही नहीं करते। भगवान स्वयं भक्त बनते हैं। भक्ति करके दिखाते है

अष्टादश-वर्ष केवल नीलाचले स्थिति । आपनि आचरि' जीवे शिखाइला भक्ति ॥ ((श्री चैतन्य चरितामृत मध्यलीला अध्याय1, श्लोक 22)

अनुवाद: -श्री चैतन्य महाप्रभु अठारह वर्षों तक लगातार जगन्नाथ पुरी में रहे और उन्होंने अपने खुद के आचरण से सारे जीवों को भक्तियोग का उपदेश दिया।

यह जो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आदर्श है, शिक्षाए है और उनका दिया हुआ ये नाम संकीर्तन हैं कृष्ण प्राप्ति का यही साधन हैं। वही हम करते हैं। इस जपा सेशन में, जप भी करते हैं और फिर जप के संबंध में कुछ टौक भी होता है और यह चल रहा है पिछले दो-एक सालों से वह हमने शुरुआत की थी 10 दिसंबर 2018 मैं यह जपा सेशन प्रारंभ हुआ था।उस दिन तो यह डरबन साउथ अफ्रीका में प्रारंभ हुआ हमारे पहले सेशन में चार ही लोग थे चार ही भक्त थे और धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती हुई आज कम से कम आज तो 999 पहुंचा भी होगा देख रहा था। मैं अभी तो 93,94 उपर नीचे हो रहा हैं। हरी हरी!

आज इस प्रकल्प की इस प्रोजेक्ट की कहो परिकल्पना उपक्रम व्दितीय वर्ष गांठ हम लोग मना रहे हैं। हम भक्त हम लोग नहीं हैं हम लोग थे लोग नहीं रहे हम भक्त हैं हम द्वितीय वर्षगांठ मना रहे हैं। यह द्वितीय वर्षगांठ कि जय...! दो साल के पहले भी मैं शुरुआत की साउथ अफ्रीका डरबन में के बाद कुछ दिन हम थे 4 सेशन और फिर हम मॉरीशस आ गए और मारीशस में और संख्या बढ़ गई। मुझे याद हैं सखीवृंदा माता जी के घर में हमारे सेशन हो रहे थे। शुरुआत तो चार से हुई थी मारीशस पोहचते पोहचते चार के आठ हो गए। मेरे खयाल से मॉरीशस में थे तो हम लोग 10-20 तक हम पहुंच गए थे। नंबर बढ़ते जा रहे थे।

हर रोज एक या दो बढ़ जाती थी और फिर डरबन साउथ अफ्रीका से फिर मांँरीशस से फिर भारत आए पहले तो हमारे इस सेशन में मैगझीमम कैपेसिटी 100 लोगों की थी तो फिर हाउसफुल हुआ तो शायद हमने100 का 200 किया था नंबर दिनाअनुकंपा को पता है फिर 200 हाउसफुल हो गया तो फिर हमने 500 बना दिया था कैपेसिटी होती है इसकी कितने अभिभावक भाग लेंगे फिर कुछ ही महीनों में हम लोगों को 500 भी कम पड़ रहा था तो फिर हमने बढ़ा दिया डबल कर दिया तो अभी की कैपेसिटी 1000 की है अभी हाउसफुल हो गया क्लोज हो गया 1 वैकेंसी आया राम गया राम भी चलता रहता है जो नए आज ज्वाइन किए हैं उनका भी स्वागत हैं। आपके ट्रायल के सब कुछ हो रहा हैं। आपको यह जपा टौक अच्छा लगता है तो यह इसमें सहभाग ले सकते हो। हर रोज सहभागी होना चाहिए।कल पद्द्ममाली ने कहा था। कल निवेदन किया था कि चलो आज के दिन तो आपने कर ही दिया धन्यवाद।

वैसे हम लोग 700-800 तो कभी 900 तक तो पहँच ही जाते हैं। कुछ दिन तो 1000 तक पहुँच गये थे।हरि हरि! कैसा लग रहा है आपको हमारे यह 2 साल पूरे हो रहे हैं। आप थके हो या परेशान हो गए हो तो हम इसको रोक सकते है, और आपकी मांग है, आप कुछ लाभान्वित हो रहे हो तो तो फिर से शुरू रखते हैं मुझेतो जारी रखना होगा। मैं कीर्तन मिनिस्टर भी हूं तो मैं पूरे हरे कृष्ण मुव्हमेंट (आंदोलन) के लिए और सभी लीडर्स के लिए जीबीसी लीडर्स भी है या टेंपल प्रेसिडेंट भी है या भक्ति वृक्ष के भी लीडर है या कोई कॉन्फ्रेंस हैं।केई सारे टीमें होती हैं। इस्कान के अंतर्गत हर टीम के फिर लीडर होते ही हैं वह जोरदार सिफारिश करते है झुम कॉन्फ्रेंस में जप भी करते हैं या जपा टौक भी होता हैं। ऐसा सर्वत्र हो! इसका प्रचार हो! और आप स्वयं भी जैसा उदयपुर के भक्त भी भक्त मंडली एकत्रित होकर जप करते हैं।

वैसा आप भी कर सकते हो।जब मेरा यह सेशन पूरा हुआ तो आप दूसरा सेशन शुरू करो। रामलीला माताजी जैसे आप सभी कर ही रहे हैं वैसे। आप लीडर हो आप हो काँन्सीलर हो, या मंदिर अध्यक्ष हो युथ प्रीचर हो तो युवकों के साथ आप ऐसी कॉन्फ्रेंस का उपयोग तो आप कॉन्फ्रेंस के लिए, मीटिंग के लिए या डिस्कशन के लिए प्रश्न उत्तर के लिए उपयोग होता ही है तो जप के लिए क्यों नहीं? इतना सोशल मीडिया और यह काँन्फरन्स चलती रहती है तो हर चीज के लिए घर से अपना बिजनेस चलाओ जैसे ऑनलाइन तो फिर जप भी हो सकता है ऐसे कांफ्रेंस के माध्यम से यही हमारा संदेश हैं।इस का प्रचार किजीए।ठीक हैं। चर्चा कुछ बहुत लंबी हुई, होते ही रहती हैं। ऐसा विचार था शायद कि आप में से कुछ भक्त भी वर्षगांठ के दिन अपने विचार या आप लाभान्वित हो रहे हो ऐसा जारी रखिए। हमें जपा टौक चाहिए।ऐसा कुछ विचार था।

पद्ममाली साउथ अफ्रीका के भक्तों से भी सुनना चाहते थे उन्होंने भी देखा हैं वहा से शुरुआत हुई थी। या मॉरीशस के भक्तों से भी उन्होंने भी देखा हैं वहा से शुरुआत हुई थी प्रारंभिक दिनों में। ठीक है! हरे कृष्ण!

English

10 December 2020

Second anniversary Zoom Chant japa with Lokanath Swami

2nd Anniversary of Zoom chanting! Hare Krishna! Harinam Prabhu ki Jai!

śrī-kṛṣṇa-saṅkīrtanam

Sankirtan movement ki Jai! Supreme victory to this Harinama movement! All glories to the devotees of Sankirtana! All glories to you!

Srila Prabhupada is the commander in chief of the Sankirtana movement. All glories to all of us. Lord Caitanya has also announced the glories of Harinama. Here in Japa Talk we chant together and discuss the name, form, qualities and pastimes of the Lord. While chanting and doing kirtana we call out for the Lord, that is called Prema Bhakti. As stated in Srimad Bhagavatam:

śravaṇaṁ kīrtanaṁ viṣṇoḥ smaraṇaṁ pāda-sevanam arcanaṁ vandanaṁ dāsyaṁ sakhyam ātma-nivedanam

Translation: Prahlāda Mahārāja said: Hearing and chanting about the transcendental holy name, form, qualities, paraphernalia and pastimes of Lord Viṣṇu, remembering them, serving the lotus feet of the Lord, offering the Lord respectful worship with sixteen types of paraphernalia, offering prayers to the Lord, becoming His servant, considering the Lord one's best friend, and surrendering everything unto Him (in other words, serving Him with the body, mind and words)—these nine processes are accepted as pure devotional service. (SB 7.23)

As it's stated in Bhakti Rasamirita Sindhu by Srila Rupa Goswami where Bhakti is described as Krsna-akarshini, which means, the devotion of the devotee attracts the Lord. This is the supremacy of the devotion (Bhakti) the Lord feels that someone is calling Him and then He comes towards us and we too move towards Him and in between there is milan(meeting). Srila Prabhupada said that chanting is to be done like that of a cry of a baby. A baby cries because it needs the attention of the mother or something from the mother. For the baby, the mother is like God or vanca kalpa taru, whatever the desire is, it gets fulfilled through the mother solely. And the baby cries when the mother is not visible wishing for the love and care of the mother which satisfies the child.

Similarly, the mother of the living entity is Lord Krsna, not just mother, but also father and everything else.

Tvam-Eva Mata Ca Pita Tvam-Eva | Tvam-Eva Bandhush-Ca Sakha Tvam-Eva | Tvam-Eva Viidya Dravinnam Tvam-Eva | Tvam-Eva Sarvam Mama Deva Deva ||

Translation - 1: You are my Mother and You are my Father . 2: You are my Relative and You are my Friend. 3: You are my Knowledge and You are my Wealth. 4: You are my All, my God of Gods.

If we get the Lord then we get everything. Therefore one should cry for the Lord or for the Lord's devotion. As stated in the Siksastakam, Verse 4:

na dhanam na janam na sundarim kavitam va jagad-isa kamaye mama janmani janmanisvare bhavatad bhaktir ahaituki tvayi

Translation: O almighty Lord, I have no desire to accumulate wealth, nor do I desire beautiful women, nor do I want any number of followers. I only want Your causeless devotional service, birth after birth.

I do not need anything, only Bhakti of the Lord. The time when the baby cries the mother attends to it satisfying the baby then resumes her work and this goes on several times. However, when the baby cries loudly or desperately then at that time the mother leaves all the work and attends to the baby completely. Similarly we should cry for the Lord, Krsna! Krsna! Krsna! And hopefully He will come.

ayi nanda-tanuja kinkaram patitam mam vishame bhavambudhau kripaya tava pada-pankaja- sthita-dhuli-sadrisham vichintaya

Translation: O son of Maharaja Nanda [Krsna], I am Your eternal servitor, yet somehow or other I have fallen into the ocean of birth and death. Please pick me up from this ocean of death and place me as one of the atoms at Your lotus feet. (Siksastakam Verse 5)

We are remembering the Lord, grateful to Lord Chaitanya Mahaprabhu for giving us the prayers. As this world is dukhalayam ashavattam, full of miseries. Lord Caitanya further says

nayanam galad-ashru-dharaya vadanam gadgada-ruddhaya gira pulakair nichitam vapuh kada tava nama-grahane bhavishyati

Translation: O my Lord, when will my eyes be decorated with tears of love flowing constantly when I chant Your holy name? When will my voice choke up, and when will the hairs of my body stand on end at the recitation of Your name? (Siksastakam Verse 6)

When will that day come for me to cry for the Lord? ke din amaye. The symptom of meeting the Lord, vadanam gadgada-ruddhaya gira There are eight different symptoms of devotional ecstasy - crying, trembling, rolling on the ground, Govinda virah labels the feeling of separation from the Lord or hugging the Lord warmly and tightly. All these are evidences of Krsna Bhakti. Krsna appeared in the form of Caitanya Mahaprabhu and propagated the dharma of Kaliyuga apan achari jagat sikhaye and teaches the world. We have the teachings and standards set by Lord Caitanya, the Harinama Sankirtana of Lord Caitanya.

This is the motto of our Japa Talk - to chant and glorify the Lord which was started 2 years back on 10 December 2018. At the inauguration of the Japa Talk we had only 4 members, but today we have 900+ devotees. This project was conceived in Durban, South Africa, and later in Mauritius in Sakhi Vrinda Mataji's house. Gradually the numbers increased day by day from 2 to 3 devotees, every day it went on increasing. In India when I arrived, the maximum participants capacity was 100. As the devotees increased, it was upgraded to 200 , and later to 500. We increased the maximum capacity for the Japa and now we are 1000 in total, full house. We welcome the devotees who have joined newly and request them to continue. How did you find this Japa conference, are you benefitting from it?

I will be continuing it. Being a Kirtana Minister I wish to spread the glories of the Harinama Movement. I strongly recommend to the leaders of Bhakti-Vriksha, GBC, counselees and various others to join or preach about it. You can also take up this project in your community where all devotees can chant together. Anyway the Zoom application is useful for meetings, conference, study, then why not for Japa? Everything has gone on online mode currently, then we can also do Japa online. This is our intention for this year's anniversary. Take this opportunity and use it.

Russian

Наставления после совместной джапа-сессии 10.12.2020г.

(1000 мест воспевания)

Харе Кришна! Вся Слава Шриле Прабхупаде

Вся Слава Шри Панча Татве

Вся Слава Харинама Санкиртане

Пусть движение санкиртаны всегда будет славным ...

Вы все являетесь участниками этого движения Харинама Санкиртаны, так что слава вам всем тоже. Шрила Прабхупада - главнокомандующий, а все мы солдаты.

На этой джапа-сессии мы воспеваем и слушиаем о славе святого имени и игр Господа, это преданное служение.

Это Шраванам Киртанам и Вишну Смаранам. Это бхакти. В Нектаре наставлений упоминается, что одно из качеств Бхакти - это то, что она привлекает Кришну.

Итак, когда мы занимаемся преданным служением и деятельностью, тогда мы привлекаем Кришну. Он начинает искать нас, когда мы занимаемся такой духовной деятельностью.

Мы идем к нему, и он начинает идти нам навстречу. Потом в какой-то момент будет встреча.

Шрила Прабхупада сказал, что всякий раз, когда ребенок чего-то хочет, он всегда будет искать только свою мать. Он знает, что только его мать может удовлетворить его желания. Отец тоже вторичен. Мать как Бог для него. Мать - это дерево желаний.

Когда он чего-то хочет, а матери нет рядом, он начинает плакать. Услышав это, мама подходит и берет ребенка к себе на колени, кормит его.

Итак, Кришна - наша мать. Он наш отец, проводник, друг, все знания, деньги.

Итак, как ребенок плачет по матери, человек должен плакать по Кришне.

Ребенок отвергает все, что ему дают вместо матери. В перерывах он может перестать плакать когда отвлекся. Итак, мать знает, когда ребенок действительно ее хочет. Когда постоянно плачет и ни в чем не идет на компромисс, мама должна прийти. она оставляет свою работу и приходит к ребенку

Так должно выполняться наше бхакти. Мы должны отказываться от всего, что нам дают: денег, друзей, красивых женщин и т. д.

Мы должны постоянно плакать, прося Кришну прийти без каких-либо компромиссов.

Шри Кришна Чайтанья Махапрабху говорит, когда наступит тот день, когда я заплачу, и мои глаза будут полны слез, когда я не смогу дышать, когда я испытаю этот экстаз?

Это симптомы встречи с Кришной.

Плач, дрожь, удушье, экстаз и т. д.

Когда мы встретимся, мы обменяемся мнениями, Кришна обнимет вас. 500 лет назад Кришна явился как Шри Кришна Чайтанья Махапрабху, чтобы установить Юга Дхарму.

Он не просто произносит речи и дает наставления, он сам показывает это своим образом жизни.

Это то, за чем мы следим и обсуждаем на наших сессиях ежедневно.

Сегодня, 2 года назад, мы начали это .

На нашей первой сессии было четыре преданных, а за два года их число достигло 1000 .

По крайней мере, сегодня количество достигло этой цифры. Сегодня мы отмечаем вторую годовщину.

Итак, мы начали в Дурбане, Южная Африка. Затем я переехал на Маврикий и там, в доме Сакхи Вринда Матаджи, и их число постепенно увеличивалось.

От 4 до 8 до 10-20

Сначала предел был 100, и как только мы достигли предела, мы повысили его до 200, затем до 500, а затем до 1000.

Сейчас мы делаем это с такой силой. Необходимо поддерживать постоянство.

Сила очень колеблется. Нерегулярные преданные должны принимать это искренне и регулярно.

Мы приветствуем новых преданных, которые присоединились к нам впервые. Надеюсь, вам понравился опыт, и вы захотите присоединиться к нам каждый день.

Как киртан-министр ИСККОН, я настоятельно рекомендую всем преданным присоединиться и регулярно делать это. Также проповедуйте об этом другим.

Вы можете выполнять сессии воспевания локально. Вы можете быть лидером, лидером Бхакти Врикши, наставником или любым другим лидером. Вы можете использовать это, чтобы расширить проповедь. Эта онлайн-платформа для встреч используется для многих целей, тогда почему бы не для совместного воспевания. Так что вы можете использовать ее для воспевания и обсуждения.

Так что я остановлюсь здесь. Харе Кришна.

Падмамали прабхуджи должен сделать объявление и пригласить озвучить реализации.

Конечно, есть некоторые новые люди, которые присоединились к нам сегодня, как показывает наше число подключений. Некоторые из них присоединились впервые, а некоторые вернулись после перерыва. Итак, как говорит Шрила Прабхупада, для нас очень важно получать пользу от общения со старшими преданными.

Поэтому я прошу всех вас регулярно присоединяться к нам.

Мы услышим некоторых преданных, которые присоединяются к нам с самого начала, о своем опыте и реализации.

(Перевод Кришна Намадхан дас)