Hindi

जप चर्चा, इस्कॉन कलकत्ता धाम से, 18 अक्टूबर 2021 गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल...! क्या आप तैयार हो? सखीवृंद तुम तैयार हो? आज जप चर्चा में 865 भक्त उपस्थित हैं। आप सभी का आज स्वागत हैं, हर दिन ही आपका जप करने के लिए और जपा टौक सुनने के लिए स्वागत हैं।आप थके तो नहीं हो? नैमिषारण्य के शौनकादि ऋषि मुनि भी थकते नहीं थे वे भी सूत गोस्वामी से निवेदन कर रहे थें। "वयं तु न वितृप्याम उत्तमश्लोकविक्रमे । यच्छृण्वतां रसज्ञानां स्वादु स्वादु पदे पदे ॥" ( श्रीमद्भागवतम् 1.1.19) अनुवाद: -हम उन भगवान् कि दिव्य लीलाओं को सुनते थकते नहीं , जिनका यशोगान स्तोत्रों तथा स्तुतियों से किया जाता है । उनके साथ दिव्य सम्बन्ध के लिए जिन्होंने अभिरुचि विकसित कर ली है , वे प्रतिक्षण उनकी लीलाओं के श्रवण का आस्वादन करते हैं । "साधु साधु पदे पदे" सुनाते जाइए और सुनाइए। हम को भी ऐसे ही उत्साही होना चाहिए। हरि हरि! श्रवण के लिए उत्साही होना चाहिए,फिर वह श्रवण महामंत्र का श्रवण हो या फिर हरि कथा का श्रवण हो। नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय॥ (श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.107) अनुवाद:-"कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी बस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।" "श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।" हमारे चित्त का शुद्धिकरण श्रवण से होता हैं। हम लोग उठते ही श्रवण प्रारंभ करते हैं। हमारे जीवन का यह मुख्य व्यवसाय हैं। श्रवण! प्रतिदिन हम श्रवणउत्सव ही संपन्न कर रहे हैं। जप और जप चर्चा के साथ,यह श्रवण उत्सव हैं। कैसा उत्सव? श्रवणोत्सव या कर्णोत्सव।हम कर्णो के लिए अमृत पिलाते हैं, उसी के साथ हमारे आत्मा के स्वास्थ्य में सुधार होता हैं या आत्मा कि पुष्टि होती है, पोषण होता हैं, नहीं तो यह सारा संसार शोषण करने के लिए तैयार बैठा हैं। संसार शोषण करता हैं और यह हरे कृष्ण आंदोलन और हरे कृष्ण महामंत्र और यह हरि कथा हमारा पोषण करती हैं। वैसे "महाप्रसादे गोविंदे",हम प्रसाद ग्रहण करते हैं तो उससे भी हमारी आत्मा का पोषण होता हैं। प्रसाद को क्या कहते हैं?प्रसाद आत्मा का भोजन हैं।केवल शरीर के लिए ही नहीं प्रसाद आत्मा के लिए भी हैं। जैसा अन्न वैसा क्या? वैसा मन! यह याद रखो! छोटा सा मंत्र हैं। आप बताते जाओ! जैसा अन्न वैसा मन! अन्न परब्रह्म होता हैं।भगवान अन्न बन जाते हैं।हम प्रसाद ग्रहण करते हैं तो शरीर का भी पोषण होता है। “अन्नाद्भवति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः | यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 3.14) अनुवाद:-सारे प्राणी अन्न पर आश्रित हैं, जो वर्षा से उत्पन्न होता है | वर्षा यज्ञ सम्पन्न करने से होती है और यज्ञ नियत कर्मों से उत्पन्न होता है | कृष्ण ने कहा है “अन्नाद्भवति भूतानि" हम बनते हैं,हमारा शरीर बनता हैं।किस से?अन्न खाने से, अन्न ग्रहण करने से, लेकिन वह अन्न जब भगवान को खिलाते हैं और हम ग्रहण करते हैं तो फिर वह अन्न हमारे आत्मा का भी पोषण करता हैं। हमारे आध्यात्मिक स्वास्थ्य मे सुधार होता हैं। स्वस्थ हो तो स्व मे स्थित हो या आत्मा मे स्थित हो या आत्मसाक्षात्कार हो रहा हैं और क्या?आपकी आत्मा भगवान के चरण कमलों में स्थित हैं। “अर्जुन उवाच | नष्टो मोहः स्मृतिर्लब्धा त्वत्प्रसादान्मयाच्युत | स्थितोऽस्मि गतसन्देहः करिष्ये वचनं तव ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 18.73) अनुवाद: -अर्जुन ने कहा – हे कृष्ण, हे अच्युत! अब मेरा मोह दूर हो गया | आपके अनुग्रह से मुझे मेरी स्मरण शक्ति वापस मिल गई | अब मैं संशयरहित तथा दृढ़ हूँ और आपके आदेशानुसार कर्म करने के लिए उद्यत हूँ | "स्थितोऽस्मि" जैसे अर्जुन ने कहा,जब गीता का पान किया। अर्जुन ने गीता का श्रवण किया तो कहा"स्थितोऽस्मि" फिर अर्जुन स्वस्थ हो गए। हरि हरि! वैसे दुनिया वालों के लिए कई विषय होते हैं।अगर उनके कई विषय होते हैं तो क्या हरे कृष्ण वालों के लिए विषय कम हैं? हमारे पास भी कई सारे विषय हैं। "श्रोतव्यादीनि राजेन्द्र नृणां सन्ति सहस्त्रशः । अपश्यतामात्म - तत्त्वं गृहेषु गृह - मेधिनाम् ॥ " (श्रीमद्भागवतम् 2.1.2) अनुवाद:-हे सम्राट , भौतिकता में उलझे उन व्यक्तियों के पास जो परम सत्य विषयक ज्ञान के प्रति अंधे हैं , मानव समाज में सुनने के लिए अनेक विषय होते हैं । शुकदेव गोस्वामी ने कहा लोगों के लिए श्रवण के लिए या फिर बक बक बक बक बोलने के लिए कई सारे विषय हैं। रात और दिन ब्रेकिंग न्यूज़ चल रही हैं। हमारे पास भी कुछ कम विषय नहीं है। हमारे पास अधिक विषय हैं। वैसे मैं आज इस्कॉन कोलकाता में पहुंचा हूं और इस्कॉन कोलकाता से आपके साथ यह वार्तालाप हो रहा हैं। हरि हरि! हमारे कितने सारे विषय हैं, तो यह जो मैंने कहा तो फिर मुझे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का भी स्मरण हुआ। श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर कोलकाता में या मायापुर कुछ चाहते थे। क्या चाहते थे? उनका विचार था कि गौडीय मठ या गौडीय संप्रदाय का एक डेली न्यूज़ पेपर (दैनिक समाचार पत्र) छपना चाहिए। यह बात जब श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी के अनुयायियों ने सुनी तो उन्होने सोचा कि क्या डेली न्यूज़ पेपर,मंथली(प्रतिमाह) ठीक हैं या विकली ( साप्ताहिक) भी हो सकता हैं? लेकिन दैनिक इतना सारा न्यूज़ कहां से निकालेंगे? डेली न्यूज़ पेपर छपने के लिए और उसका वितरण करने के लिए समाचार कहा से लाएगे?तो फिर भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर बता रहे थे कि हमारे पास कितनी न्यूज़ हैं या फिर हम लोग आध्यात्मिक जगत के हैं,वहां कितने सारी खबरें हैं। श्रीराधिका-माधवयोर्अपार- माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नाम्। प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥ (मंगल आरती) अनुवाद:- श्रीगुरुदेव श्रीराधा-माधव के अनन्त गुण, रूप तथा मधुर लीलाओं के विषय में श्रवण व कीर्तन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसास्वादन करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं। वे प्रतिक्षण इनका रसावस्वादन करने की आकांक्षा करते हैं। ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। हमारे आचार्यवृंद हर क्षण, प्रतिक्षण आस्वादन करते हैं। राधा माधव या राधा गोविंद देव कि जय।यहां राधा गोविंद के विग्रह की स्थापना श्रील प्रभुपाद ने की हैं। यह आपके लिए और हमारे लिए समाचार हैं। आज हम सुन रहे थे यहां के व्यवस्थापक बता रहे थें कि श्रील प्रभुपाद ने राधागोविंद देव कि स्थापना कि थी। राधागोविंद या राधामाधव, राधागोपीनाथ इनके नाम,गुण,रूप, लीला इतनी सारी कथाएं हैं। हरि हरि!अनंतशेष इस का बखान या व्याख्यान कब से कर रहे हैं, दिन और रात,अहर्निश लेकिन यह नाम रूप गुण लीला कि कथा, बातें, समाचार पूरा नहीं कर पा रहे हैं। बहुत सारी खबरें हैं। "प्रतिक्षणाऽऽस्वादन-लोलुपस्य" हमारे आचार्यगण प्रतिक्षण सुनते थे ,सुनाया करते थे, सुनते थे, सुनाया करते थें।हरि हरि! और फिर श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर इसी कोलकाता नगर में कहां था,उनका मंदिर वगैरह प्रिंटिंग प्रेस वगैरह? बागबाजार नाम का एक स्थल हैं, वहा गौड़ीय मठ की स्थापना हुई थी।तो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर भगवान के संबंध के बारे मे बातें,खबरें, न्यूज़,कथा छपने के लिए मंदिर के सामने प्रिंटिंग प्रेस, प्रिंटिंग मशीन वगैरह वहां पर ही रखते थे या फिर विग्रह प्रिंटिंग प्रेस को देख सकते थे,ऐसे स्थान पर वह प्रिंटिंग प्रेस रखी गई। उस प्रिंटिंग प्रेस को श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने कहा यह हैं ब्रृहदमृदंग। कौन सा हैं, ब्रृहदमृदंग? यह प्रिंटिंग प्रेस हैं, ब्रृहदमृदंग। मृदंग तो समझते हो और फिर ब्रृहदमृदंग बड़ा मृदंग। हम लोग जो मृदंग बजाते हैं महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥2॥ (मंगल आरती) अनुवाद:-श्रीभगवान् के दिवय नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। वाद्य बजाते हैं। कीर्तन में जो वाद्य बजते हैं, मृदंग करतार तो कुछ ज्यादा से ज्यादा 100 मीटर, 200 मीटर सुनाई देता हैं ,फिर आगे वह ध्वनि नहीं पहुंचती हैं। लेकिन जो प्रिंटिंग प्रेस में ग्रंथ छापे जाते हैं उसमें जो हरि कथा, हरि कीर्तन भरा हुआ हैं। "हरि सर्वत्र गिय्यते" शास्त्रों में "आधो मध्ये अंते हरि सर्वत्र गिय्यते"। हरि का नाम, रुप ,गुण, लीला, कथा सर्वत्र चर्चा, वर्णन होता हैं। अगर एक बार उसको ग्रंथ में छाप दिया,उसकी रचना हुई तो ग्रंथ जहां-जहां पहुंचेगा वहा-वहा तक वह हरि ध्वनि, हरि कथा, हरि नाम भी पहुंच जाएगा। इस तरह श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने इसका नामकरण किया कि यह प्रिंटिंग प्रेस ब्रृहदमृदंग हैं और फिर इस प्रिंटिंग प्रेस में छपे हुए ग्रंथ उनको दूर तक पहुंचाना हैं और फिर लोग उसको पढेंगे तो मृदंग कि दूर तक जाएगी।मृदंग हैं ,करताल हैं,तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण हैं या हरि कथा हैं, तो "ओम नमो भगवते वासुदेवाय" सब सुनाई देता हैं। जब हम ग्रंथ को पढ़ते हैं तो सब कुछ सुनाई देता हैं। इस प्रकार यह हरि ध्वनि ,हरि कथा सर्वत्र फैलती हैं। फिर श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने इसी कोलकाता में ऐसा कहा कि ग्रंथों को छापना और उनका वितरण करना यही हमारा मुख्य कार्य हैं। इसको फिर हम अपना पारिवारिक व्यवसाय भी कहते हैं। वैसे हम व्यापारी तो नहीं हैं, हम तो साधू हैं, भक्त हैं लेकिन भगवान के लिए हम व्यवसाय करते हैं kṛṣṇaera saḿsāra koro chāḍi’ anācār jīve doyā, kṛṣṇa-nām—sarva-dharma-sār (नदिया गोर्दुमे गीत) हम कृष्ण के लिए कुछ भी व्यवसाय कर सकते हैं, अपने लिए नहीं। अपने लिए तो बहुत कर लिया कर। कर के हम थक गए। पेट भरा नहीं, पेट भरता ही नहीं हैं। तो ग्रंथों की छपाई और ग्रंथों का वितरण और फिर यही आज्ञा भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने श्रील प्रभुपाद को राधा कुंड के तट पर दी। प्रभुपाद जब श्रील भक्ति सिद्धांत को मिलने के लिए गए तो उस समय वह ब्रज मंडल में राधा कुंड के तट पर थे और प्रभुपाद को आदेश दिया कि अगर कभी भी तुम्हें धनराशि प्राप्त हो तो क्या करो? उस धनराशि का उपयोग ग्रंथों के छपाई में करो और फिर गुरु-मुख-पद्म-वाक्य, चित्तेतॆ कॊरिया ऐक्य आर् ना कोरिहो मने आशा श्रील प्रभुपाद ने फिर वैसा ही किया। श्रील प्रभुपाद ने इस्कान की स्थापना की।प्रभुपाद जब अमेरिका जा रहे थे तो अपने साथ में भागवतम् ले गए। सभी आदेशों की शुरुआत तो कोलकाता में ही हुई ।कोलकाता हमारे लिए एक विशेष नगर हैं। यह हमारे लिए धाम ही हैं,क्योंकि श्रील प्रभुपाद का यह जन्म स्थान हैं। आज हम वह जन्मस्थली देखने जा रहे हैं।पोली गंज या कटहलतला यहां प्रभुपाद जन्मे थे।आज मैं सबके साथ वह जन्म स्थान देखने जा रहा हूं। इस्कॉन कोलकाता के अथक प्रयासों का फल यह रहा हैं कि यह जन्मभूमि हमें प्राप्त हुई हैं और वहां श्रील प्रभुपाद का मेमोरियल स्मारक भी बन रहा हैं वहां एक कटहल का पेड़ हैं कटहल समझते हो? अंग्रेजी में इसे जैकफ्रूट कहते हैं और वह स्थान भी हैं जहां पर दो प्रभुपाद मिले। पहले तो एक ही प्रभुपाद थे श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद। लेकिन फिर ए.सी भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद भी हुए। यह दोनों प्रभुपाद एक ही स्थान पर मिले। कब मिले?1922 में।आप सब इस तारीख इस साल से परिचित हो। 1922 सुनते ही इस्कॉन के भक्तों को क्या स्मरण आता हैं? वह सीधा कोलकाता पहुंच जाते हैं और कोलकाता में उल्टाडांगा पहुंच जाते हैं। यह सीधा डांगा नहीं हैं। उल्टाडांगा हैं उल्टा सुल्टा हैं। उल्टाडांगा नाम का स्थान हैं। उस समय श्रील प्रभुपाद अभय बाबू थे और अभी अभी गृहस्थ बने थे और उनकी उम्र 26 साल की होगी जब वह कटहलतला पोलीगंज मे भक्ति सिद्धांत से मिले।1896 मे प्रभुपाद यही जन्मे थे।जन्म के 26 वर्षों के उपरांत अभय बाबू अपने मित्र नरेंद्र मलिक के साथ गए और श्रील भक्ति सिद्धांत के साथ यह पहली भेट थी। दो महान आचार्यों की सबसे पहली मुलाकात और सबसे पहली मुलाकात में कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान लगते हो,तुम पाश्चात्य देशों में अंग्रेजी भाषा में भागवत धर्म का या चैतन्य महाप्रभु के मिशन का प्रचार करो। यह आदेश जो श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद ने उस समय के अभय बाबू को दिया,वह भी यही पर दिया। वह जो स्थान हैं वह भी यहीं पर हैं। मैं आज उस स्थान पर जाना चाहूंगा परंतु पता नहीं जा पाऊंगा या नहीं। समय कम रहेगा तो नहीं जा पाऊंगा, लेकिन वह स्थान भी इस्कॉन कोलकाता को प्राप्त हो गया हैं। हरि हरि बोल।यह खबर हैं कि नहीं। आपको बता रहे थे कि भक्तों के पास भी बहुत सारी खबरें हैं। अगले साल 21 फरवरी को,नोट करो। अगले साल 21 फरवरी को क्या होगा? श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर की व्यास पूजा होगी।उसी स्थान पर। कौन सा स्थान? उल्टाडांगा।जहां दो महान आत्माओं का मिलन हुआ। पुन्ह: मिलन हुआ। उस स्थान का उद्घाटन होगा। हरि बोल। और अगले साल अर्थात 2022 और यह दोनों कब मिले थे 1922 में और उद्घाटन है 2022 में मतलब कितने सालों के उपरांत? जल्दी बोलो।ठीक 100 सालों के उपरांत। दोनों के प्रथम मिलन की सो वी सालगिरह हैं। जैसे हम लोग प्रभुपाद की 125 वीं सालगिरह मना रहे हैं। समझ रहे हो?1896 में प्रभुपाद जन्मे थे, तो इस वर्ष 125 साल हुए। हम वह भी सालगिरह मना रहे हैं।उसी के अंतर्गत एक और सालगिरह हैं श्रील भक्ति सिद्धांत और श्रील भक्ति वेदांत स्वामी प्रभुपाद पहली बार मिले।यह उत्सव 21 फरवरी को हैं। आप को आमंत्रित किया जाएगा।ऑनलाइन या ऑफलाइन।आप उसको जॉइन कर सकते हो। यह कोलकाता नगर हम गोडिय वैष्णव के लिए, इस्कॉन वैष्णवो के लिए बड़ा ही महत्वपूर्ण हैं। यह हमारे लिए धाम हैं। यह श्रील प्रभुपाद का जन्म स्थान हैं। श्रील प्रभुपाद की कर्मभूमि तो सर्वत्र रही हैं या मायापुर में बता रहे थे कि चैतन्य महाप्रभु का जन्म स्थान योग पीठ हैं और कर्म स्थान या कर्मभूमि इस्कॉन या मायापुर चंद्रोदय मंदिर और फिर सारा विश्व ही कर्म भूमि हैं। वैसे ही यह कोलकाता श्रील प्रभुपाद का जन्म स्थान हैं और यह कर्म स्थान भी हैं। वैसे तो पूरा संसार ही उनका कर्म स्थान हैं। यहां पर श्रील प्रभुपाद की कई सारी गतिविधियां हुई। बड़े होकर भविष्य में जो जो श्रील प्रभुपाद करने वाले थे उसमें से बहुत कुछ उन्होंने जब वह बालक थे या युवा थे तभी करना प्रारंभ कर दिया था।इसमें रथयात्रा भी सम्मिलित हैं। सारे संसार को ही भविष्य में प्रभुपाद ने रथयात्रा प्रदान की, जगन्नाथ जी प्रदान किए। सबसे पहले रथयात्रा सैन फ्रांसिस्को में प्रारंभ हुई, साल था 1967।लेकिन जब प्रभुपाद बालक थे तो उनके पिताजी या बड़े लोग जब रथ यात्रा करते थे तो प्रभुपाद हठ करके बैठ जाते थे कि हम अपनी अलग से रथयात्रा करेंगे तो इस कारण इसी नगर में गौर मोहन डे रथ खोज रहे थे, सोच रहे थे कि रथ कहां मिलेगा। किसी के पास अगर कोई छोटा पुराना रथ हो तो और रथ भी उन्होंने भी यही प्राप्त किया।अगर रथयात्रा हैं तो प्रसाद वितरण भी होना चाहिए तो उनकी बहन पिशीमां प्रसाद बनाती थी।भवतारिणी प्रसाद बनाती थी।अभय की रथ यात्रा उत्सव में वह कुकिंग की इंचार्ज थी। दोनों भाई बहन विग्रह आराधना करते थे। श्रीविग्रहाराधन-नित्य-नाना। श्रृंगार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ। युक्तस्य भक्तांश्च नियुञ्जतोऽपि वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥3॥ प्रभुपाद में इस्कॉन की स्थापना के बाद सब शिष्यों को विग्रह आराधना सिखाया, लेकिन वह बचपन में स्वयं कोलकाता में विग्रह आराधना करते थे। प्रभुपाद ने सारे संसार को मृदंग बजाना सिखाया लेकिन बचपन में वह मृदंग बजाना सीखते थे, मृदंग कक्षाएं लेते थे और जहां प्रभुपाद रहते थे वहां राधा गोविंद का दर्शन करने जाते थे। हमारे पास इतना सारा समाचार हैं कि हमारे पास इतना समय नहीं हैं कि हम पूरा बता पाए। प्रभुपाद मॉर्निंग वॉक पर सबको बताया करते थे कि प्रभुपाद के पिता श्री गौर मोहन डे मंगल आरती करते थे तो शंख ध्वनि होती और घंटी बजाते थे घंटी सुनके अभय बाबू जग जाते थे जगते ही वहीं पास में राधा गोविंद का मंदिर था वहां जाकर यह बालक दर्शन करते ही रहते,करते ही रहते।अभय के इस प्रकार के संस्कार रहे। उनके पिता जी साधु-संतों को अपने घर पर प्रसाद के लिए बुलाया करते थे। प्रसाद खिलाते थे और सभी संतो से निवेदन करते थे कि मेरे पुत्र को आशीर्वाद दो ताकि यह राधा रानी का अच्छा भक्त बन सके। कोलकाता में यह सब हुआ। ऐसे इस्कॉन कोलकता धाम की जय। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

English

Russian