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जप चर्चा, 25 जून 2021, पंढरपुर धाम. हरे कृष्ण, हरि हरि बोल, 845 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। जय जय श्रीचैतन्य जय नित्यानंद, जय अद्वैतचंद्र जय गौरभक्त वृंद। गौर कथा नहीं किंतु गौर भक्तों की कथा तो करेंगे ही आज। मुकुंद दत्त का तिरोभाव महोत्सव कल था। कल तो हम व्यस्त रहें थे, जगन्नाथ स्नान यात्रा कथा लीला में। उनका संस्मरण हो नहीं पाया याद करेंगे हम उनको भी मुकुंद दत्त। आज है और एक तिरोभाव श्यामानंद पंडित। हमको तो याद करना ही होगा। आज इस प्रकार यह दो गौरभक्त, गौर परीकर। वैसे मुकुंद दत्त तो परीकर थे ही किंतु, श्यामानंद दूसरी पीढ़ी के भक्त थे वह चैतन्य महाप्रभु के समकालिन नहीं थे। कुछ समय उपरांत उनका प्राकट्य हुआ। और उन्होंने अपना प्रचार कार्य किया जीव गोस्वामी के साथ नरोत्तम दास ठाकुर के साथ। हरि हरि, पहले याद करेंगे मुकुंद दत्त, मुकुंद दत्त की जय! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कहो या निमाई के कहो तब वह निमाई ही थे। निमाई तो वह बने रहे सब समय सची माता के लिए, किंतु नीम के पेड़ के नीचे प्रकट हुए निमाई। इसी समय मुकुंद दत्त भी थे मायापुर में। बालमित्र थे निमाई के मुकुंद दत्त। दोनों साथ में ही पाठशाला जाया करते थे। वैसे गदाधर पंडित भी चैतन्य महाप्रभु के बचपन के मित्र थे। वैसे ही मुकुंदा दत्त और एक मित्र थे। मुकुंदा दत्त अपने गायन के लिए प्रसिद्ध थे। मुकुंद दत्त जैसा शायद ही कोई और एक गायक होगा। मुकुंद दत्त कौन थे, कृष्ण लीला में, ब्रज में दो प्रसिद्ध गायक थे। व्रजे स्थितो गायको यो, मधुकंठो ,मधुव्रतो, मुकुंद वासुदेवो तौ। दतो गौरांग गायको गौरोगणोदेशादिपिका। किबा मंत्रा दिला गोसाईं, किबा तार बल। जपिते जपिते मंत्र करिला पागल। कृष्ण लीला में मधुकंठ और मधुव्रत नाम के दो प्रसिद्ध गायक थे। कृष्ण लीला के समय के गायक अब गौरांग महाप्रभु के प्रकट हुए। एक रहे मुकुंद और दूसरे रहे वासुदेव। तो आज हम मुकुंद दत्त की बात कर रहे हैं। वैसे युही समझ में आता है कि गौरांग महाप्रभु ही है कृष्ण। वृंदावन और मायापुर अभिन्न है। कृष्ण के परीकर गौरांग महाप्रभु के समय प्रकट होते हैं। जैसे मुकुंद दत्त प्रकट हुए। गौरांग, निमाई पंडित उनके विद्या विलास का वर्णन चैतन्य भागवत में हुआ है। निमाई पंडित अपने शास्त्रार्थ से पांडित्य से मुकुंदा दत्त को परास्त करते थे। चिढ़ाते थे, दोबारा मिलेंगे, तैयारी करके आओ, यही चर्चा करेंगे, निमाई बताते थे मुकुंद दत्त को। मुकुंद वैसे टाल देते थें मिलना निमाई से। क्योंकि जब भी मिलते थे निमाई, ऐसे ही कुछ पांडित्य का दर्शन कर ही देते निमाई। हरि हरि, उन दिनों में मुकुंद दत्त प्रार्थना करते थे कि, निमाई कृष्ण भक्त कब होगा? पंडित तो है कृष्ण भक्त नहीं है। कृष्ण की भक्ति नहीं करता। कृष्ण के नामों का गान नहीं करता। ऐसे मुकुंद दत्त प्रार्थना किया करते थे। मेरा मित्र निमाई कृष्ण भक्त हो। निमाई भक्त बन गए। गया गए और दीक्षित होकर लौटे। जब वह लौटे निमाई कृष्ण भक्त बने थे। अब वह पांडित्य का प्रदर्शन नहीं कर रहे थे। सदैव वह नाम गांन ही कर रहे थे। किबा मंत्र दिला गोसाईं, किबा तार बल, जपिते जपिते मंत्र करिला पागल। ऐसा अब वह पूछ रहे थे क्या हुआ, किस मंत्र से मैं पागल हूंआ। सभी मुझे पगला बाबा कह रहे हैं। एक समय के निमाई पंडित बन गए हरिनाम के भक्त। हरिनाम का ही जप किया करते थे। इस बात से मुकुंद दत्त बड़े प्रसन्न हुए। नीमाई के विश्वंभर के भावों की पुष्टि करते, भाव का वर्धन भाव विकसित होते मुकुंद दत्त के गायन श्रवण से। हरिहरि, जिस दिन से चैतन्य महाप्रभु अपने सप्त प्रहरिया लीला का प्रदर्शन करने वाले थे। कई प्रकार के रंग का दर्शन अपने भक्तों के लिए परीकरो के लिए भगवान के रूप में। गौर भगवान के रूप में वह लीला एक अति महत्वपूर्ण लीला है। मायापुर में श्रीवास ठाकुर के भवन में या प्रांगण में संपन्न होने जा रही थी तो उस का शुभारंभ मुकुंद दत्त के गायन से। मुकुंद दत्त जैसे अपना गायन प्रारंभ किया चैतन्य महाप्रभु अपने मूड में आए। भगवता का प्रदर्शन वहा हुआ है। पहली बार औपचारिक रूप से चैतन्य महाप्रभु सबको दर्शन देंगे, भगवान के रूप में या गौर भगवान के रूप में। इसके पहले अगर कोई उनको पूछते थे आप भगवान हो क्या? आप गौर भगवान हो, कृष्ण भगवान हो? तो महाप्रभु मना करते उनको चुप कराते। किंतु आज वहां खुल्लम खुल्ला दर्शन देंगे अपने रूप का। उस लीला का प्रारंभ हुआ मुकुंद गायन से। मुकुंद दत्त के मधुर गान से। और फिर कईयों को दर्शन दीया महाप्रभु ने। इक्कीस घंटो तक दर्शन दिए, दर्शन दिए, दर्शन दिए। मुकुंद दत्त तो बाहर ही थे प्रवेश द्वार पर। क्योंकि चैतन्य महाप्रभु एक के बाद एक ऐसे असंख्य को दर्शन दिए, अंदर बुला कर लेकिन, मुकुंद नहीं बुला रहे थे। कुछ भक्तों ने महाप्रभु से कहा, "प्रभु प्रभु आपने मुकुंद दत्त को दर्शन नहीं दिया, वह बाहर है, वह भी तो इंतजार कर रहे हैं आप उनको क्यों नहीं बुला रहे हो" तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा, मैं नहीं बुलाउंगा उसका चेहरा भी मैं नहीं देखना चाहता हूं। भक्त पूछने लगे क्या हुआ? चैतन्य महाप्रभु कुछ कारण बताने लगे और था भी कारण, वह मुकुंद मायावादी है मायावादी का वह कभी-कभी गुण गाता है। चैतन्य महाप्रभु एक शास्त्र का नाम लेकर बताने लगे, उस शास्त्र का प्रचार करता है। वह मायावादी हैं। फिर कब दर्शन देंगे उसको भक्त पूछने लगे। तब महाप्रभु ने कहा शायद 10000 वर्षों के उपरांत मैं उसको दर्शन दूंगा। और यह बात जब मुकुंद दत्त ने सुनी वह बाहर थे प्रवेश द्वार पर। तो इतने हर्षित हुए नाचने लगे कूदने लगे, प्रभु मुझे मिलेंगे मिलेंगे 10000 वर्षों के उपरांत मुझे दर्शन मिलेंगे लेकिन, मिलेंगे तो सही। तो इस प्रकार के हर्ष उल्लास के बात चैतन्य महाप्रभु ने सुनी। तो महाप्रभु ने कहा मुकुंद दत्त को बुलाओ। चैतन्य महाप्रभु प्रसन्न थे। मुझे चाहता ही है इतनी हजारों जन्मों तक रुकने के लिए राह देखने के लिए तैयार हैं। सहनशीलता को देखो इसकी। चैतन्य महाप्रभु ने उनको बुला लिया गले लगा लिया मुकुंद दत्त को। ऐसे कुछ विनोद जैसी बात भी कहो, चैतन्य महाप्रभु किया करते थे मुकुंद दत्त के साथ। और एक समय मुकुंद दत्त का प्रसिद्ध गायन रहा। यह गायन चंद्रशेखर आचार्य के भवन में हुआ। चंद्रशेखर आचार्य महाप्रभु के मौसा लगते थे। चैतन्य महाप्रभु के मौसी के यह पति थे। और इनका भवन वहीं हुआ करता था जहां श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर में गौड़िया मठ की स्थापना की। चैतन्य गौड़ीय मठ प्रसिद्ध है। वहां पर मुख्य नाटिका संपन्न होने जा रही थी। उस नाटिका में चैतन्य महाप्रभु लक्ष्मी का किरदार निभाने जा रहे थे। वह तो है ही स्वयं लक्ष्मी राधारानी। श्रीकृष्ण चैतन्य राधाकृष्ण नहीं अन्य। उनकी भूमिका लक्ष्मी की भूमिका थी। सब तैयारी हुई। मेकअप वगैरह हुआ। प्रारंभ में मंगल गान या गायन हुआ मुकुंद दत्त का। उसी के साथ मंच बन गया। वैसे मंच बन ही गया था लेकिन मन का जो मंच है, हमारे मन की तैयारी कहो। मुकुंदा दत्त ने कई सारे गीत गाए, गायन किया। मुकुंद दत्त के गायनने वहां का वातावरण या सब का मूड परिवर्तन हुआ। या अनुकूल बना दिया सबका मन। उसी से मंच बना ताकि उस नाटक की जो घटना लीला थी उसने उनका मन प्रवेश करें यह हुआ मुकुंद दत्त के गान से। हरि हरि, अब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु संन्यास लेने वाले थे। समय बीत रहा था। महाप्रभु ने नित्यानंद प्रभु को कहा आपने संन्यास लेने की योजना। और फिर नित्यानंद प्रभु ने केवल 3 व्यक्तियों से इस रहस्य का उद्घाटन किया। तीन व्यक्तियों को केवल बताया। और पुनः वह थे चंद्रशेखर आचार्य, गदाधर पंडित और मुकुंद दत्त। जब निमाई गए मायापुर से कटवा, तब केवल यह चार लोग ही थे मायापुर के। मायापुर के और किसी व्यक्ति को सची माता को वैसे संकेत हुआ था और कोई नहीं जानता था, जो गिने-चुने कुछ ही व्यक्ति थे। जैसे हमने कहा जिनको निमाई सन्यास के बात का पता भी चला, जो कटवा भी चले गए और वे थे मुकुंद दत्त। हम समझ सकते हैं मुकुंद दत्त कितने अंतरंग परिकर या भक्त थे चैतन्य महाप्रभु के। सन्यास के उपरांत चैतन्य महाप्रभु जब शांतिपुर आए और शांतिपुर में सची माता से और औरो से। यहां पर भी मायापुर के सभी जन शांतिपुर मे चैतन्य महाप्रभु से मिले। सची माता ने आदेश दिया निमाई को जगन्नाथपुरी में रहो बेटा। फिर जगन्नाथपुरी के लिए प्रस्थान किए। जाना तो सभी चाहते थे महाप्रभु के साथ किंतु यह संभव नहीं था। संन्यास ले रहे चैतन्य महाप्रभु लिया हुआ है। तो अब सभी को त्यागेंगे चैतन्य महाप्रभु अपने सगे संबंधियों को पीछे छोड़ कर आगे बढ़ेंगे। पुनः कुछ ही भक्त उनके साथ में थे और उसमें भी पुनः चयन हुआ मुकुंद दत्त का। मुकुंद दत्त थे, नित्यानंद प्रभु थे, जगदानंद पंडित, दामोदर पंडित और स्वयं गौरांग महाप्रभु थे। पांच व्यक्तियों ने प्रस्थान किया जगन्नाथपुरी के लिए। तो रास्ते में मुकुंद अपना गान सुनाया ही करते थे चैतन्य महाप्रभु को। हरि हरि। तो अब चैतन्य महाप्रभु रहने लगे हैं जगन्नाथपुरी में। मुकुंद दत्त जरूर लौटे हैं मायापुर किंतु बारंबार जगन्नाथपुरी जाते थे और भक्तों के साथ। जैसे शिवानंद सेन यात्रा ले जाते मायापुर से। तो मुकुंद दत्त जरूर जाते थे चैतन्य महाप्रभु को मिलने और अपना गायन सुनाने के लिए। ऐसे मुकुंद दत्त जो कृष्ण लीला के गायक गौर लीला में प्रकट होकर गौरांग महाप्रभु को रिझाते रहते प्रसन्न करते रहते और भक्तों को भी अपने गायन के साथ। वैसे और भी कई सारी लीलाए हैं या घटनाए हैं इसमें से एक मैं कहना चाहूंगा गदाधर जो गदाधर पंडित, श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्वेता गदाधर जो गदाधर पंडित पंच तत्व के एक सदस्य गदाधर पंडित, जो राधा के अवतार है। तो मुकुंद दत्त मिलन कराएं गदाधर पंडित का पुंडरीक विद्यानिधि के साथ। जो राजा वृषभानु ही प्रकट हुए थे और गदाधर पंडित उनसे दीक्षित भी हुए। पुंडरीक विद्यानिधि के पास गदाधर पंडित को ले गए और पुंडरीक विद्यानिधि यह स्वयं राधा रानी के पिता श्री राजा वृषभानु ही थे। तो गदाधर पंडित पुंडरीक विद्यानिधि के शिष्य बने यह व्यवस्था भी मुकुंद दत्त कि ही थी। मुकुंद दत्त की जय। अब समय थोड़ा ही बचा है। श्यामानंद पंडित तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। तो यह श्री कृष्ण मंडल नाम के उड़ीसा के सज्जन के पुत्र रहे। उनका नाम उन्होंने दुखिया रखा था। इस मंडल महाशय के कई पुत्र और कई पुत्रीया हो चुके थे। लेकिन वह सब मर गए एक एक करके या जन्म लेते ही मर रहे थे। तो जब अब श्यामानंद बाद में नाम होगा श्यामानंद उनका नाम वे दुखिया रखे। तो यह बच गया जीता रहा। यह बालक और बड़ा प्रकांड विद्वान बचपन से ही था और गौर नित्यानंद का भक्त था। गौर नित्यानंद की कथाएं सुनता था और सुनी हुई कथाओं को औरों को हुबहू सुनाता था। संस्कृत व्याकरण न्याय इत्यादि का अध्ययन बचपन में ही इसने पूरा किया। और इनके बारे में कहां जा रहा यह बहुत एक विशेष व्यक्ति तो बनेगा ही। यह श्यामानंद पंडित एक विख्यात होगा श्यामानंद पंडित। अपने पिताजी के प्रेरणा से ही उन्होंने शिष्यत्व अपनाया फिर वे गए अंबिका कलना। और अंबिका कलना में गौरी दास पंडित के शिष्य ह्रदय चैतन्य, उनके शिष्य बने यह दुखिया कृष्ण। बने शिष्य बने जब, तो उनका नाम कृष्णदास रखें। फिर दुखिया कृष्ण भी कहते हैं पहले का नाम दुखिया और अब कृष्ण तो दुखिया कृष्ण। ह्रदय चैतन्य गुरु महाराज ने उनको वृंदावन जाने के लिए कहा और वृंदावन जाकर जीव गोस्वामी से शिक्षा ग्रहण करो ऐसा आदेश दिया। तो बड़े प्रसन्न हुए यह दुखिया कृष्ण और वृंदावन जाकर वे अध्ययन करने लगे शास्त्रों का अध्ययन। जीव गोस्वामी उनके बन गए शिक्षा गुरु जो सेवा कुंज मे ही रहते थे। उसी समय जीव गोस्वामी से शिक्षा ग्रहण करने वाले कई सारे गौडीय वैष्णव थे। जीव गोस्वामी ही गौडीय वैष्णव के रक्षक और प्रशिक्षक थे। प्रशिक्षण देने वाले शिक्षा गुरु आचार्य। हरि हरि। एक विशेष सेवा भी दी जीव गोस्वामी ने, मुझे कुछ सेवा दीजिए, मुझे कुछ सेवा दीजिए। तो जीव गोस्वामी कहे तुम यहां जो वन है उसमें एक कनक कुंज है वहां तुम झाड़ू लगाया करो उसे साफ सुथरा रखा करो। वह स्थान राधा कृष्ण के रास क्रीडा का स्थल है। रात्रि में भगवान की रास क्रीडा वहा संपन्न होती और प्रात काल में यह दुखिया कृष्ण वहां पहुंचकर उस को साफ सुथरा करते। एक प्रात काल की बात है या उस प्रातकल के पहले वहां पर एक विशेष रास क्रीडा संपन्न हुई थी। कुछ प्रतियोगिता संपन्न हुई नृत्य प्रतियोगिता। जब कृष्ण नृत्य करते हैं तो असंख्य गोपियां वहां खड़ी होकर कृष्ण का, नटवर का नृत्य देखती। फिर कृष्ण दर्शक बनते और गोपियां नृत्य करती, राधिका नृत्य करती। ऐसा रास नृत्य जमा था उस रात्रि के समय। तो उस रात्रि को नृत्य करते समय राधा रानी के पायल का एक नूपुर वहा गिर गया या ऐसे भी सुनने में आता है कि राधा रानी ने हीं उसे गिरा दिया। राधारानी कुछ विशेष भक्तों के ऊपर कृपा करना चाह रही थी तो गिर गया कहां नूपुर। रास क्रीडा समाप्त हुई फिर राधा कृष्ण उनका शयन भी हुआ। सेवा कुंज में आज भी ऐसे करते हैं, वहां सेवा कुंज में शय्या तैयार करके रखते हैं। ऐसी मान्यता है कि आज भी सेवा कुंज में हर रात्रि को रास क्रीडा संपन्न होती है। वहां किशोर किशोरी के लिए शय्या तैयार करते हैं। तो उस रात्रि को भी शैय्या तैयार की शयन हुआ। रास क्रीडा के उपरांत कई सारी गोपियां छुप छुप कर राधाकृष्ण को निहार रही थी या दर्शन कर रही थी। फिर अंततोगत्वा सभी प्रस्थान कर गए, कृष्ण लौटते हैं नंदग्राम, राधा रानी लौटती है बरसाने। तो वहां लौटने पर राधा रानी देखती है एक नूपर गिर गया। फिर उसने बुलाया ललिता को बुलाया जाओ जाओ जाओ और क्या वहीं पर तो भी सेवा कुंज में जहां हम रात्रि को नृत्य कर रहे थे रास क्रीडा में वहीं पर तो गिरा होगा नूपुर। तो जाओ ढूंढ कर ले आओ। ललिता जाती है, अब तो पूरा सूर्योदय हो चुका था। तो ललिता एक बुढ़िया बनती है बूढ़ी औरत का वेश धारण करके पहुंच जाती है। वहां खोजने लगती है, खोजती है, देखती है उसको नहीं मिलता है वह नूपुर। फिर उसने देखा वहां एक व्यक्ति झाड़ू लगा रहे हैं, तो ललिता ने सोचा अभी वह बुढ़िया बन कर ललिता वहां है और सोच भी रही है। शायद इस व्यक्ति को मिला होगा सफाई करते वक्त इस व्यक्ति को मिला होगा वह नूपुर। उसने पूछा या उसने कहा कि मेरे बहू का इस बुढिया ने कहा मेरे बहू का नूपुर यहां गिरा हुआ है मैंने सर्वत्र खोजा पर मिला नहीं। आप को मिला क्या? तो वह कहे दुखिया कृष्ण हां हां मिला तो सही लेकिन वहां कोई साधारण स्त्री का नूपुर नहीं है। तुम तो कह रही हो तुम्हारे बहू का नूपुर गिरा है नहीं नहीं यह कोई साधारण नहीं है। पर उन्होंने स्वीकार तो किया मिला वह नूपुर। जब वह देखे थे तब इतना उज्जवल नीलमणि की तरह सुवर्ण तेज की तरह उससे प्रभा निकल रही थी। और वह दिव्य था, अलौकिक था वह नूपुर। इसको जब दुखिया कृष्ण ने उठाया था, स्पर्श किया था तब वह रोमांचित हुए थे। उसको उन्होंने अपने सिर पर धारण किया, उसको चूम रहे थे, गले लगा रहे थे उस नूपुर को। और फिर उनको सफाई का कार्य करना था, तो एक गड्ढा बनाएं और उसको एक वस्त्र में लपेट कर उस गड्ढे में रख दिए, फिर अपनी सेवा कर रहे थे सफाई की। तो दुखिया कृष्ण ने कहा हां हां मिला तो सही लेकिन वह साधारण स्त्री का नहीं हो सकता नूपुर। तो फिर उस बुढ़िया ने कहा हां नहीं नहीं नहीं वैसे यह नूपुर तो श्रीमती राधा रानी का है। तुम कह रही हो कि यह नूपुर श्रीमती राधा रानी का है तो तुम कौन हो? बुढ़िया ने कहा आंखें बंद करो। फिर दुखिया कृष्ण ने अपनी आंखें बंद की और बुढ़िया ने अपना वेश बदला। अपना ललिता सुंदरी का मूल रूप धारण किया। अब अपनी आंखें खोल दो और जैसे ही दुखिया कृष्ण ने आंखें खोली तो वह दर्शन ललिता सुंदरी का ललिता का दर्शन...। इसके बारे में हम क्या कह सकते हैं? प्रसन्न हो गए दुखिया कृष्ण और वे मान गए हां हां तुम जो कह रही हो यह राधा रानी का नूपुर है तुम ललिता हो ही। फिर उस नूपुर को लाए दुखिया कृष्ण और ललिता को दे दिए। फिर ललिता ने ही उस नूपुर को दुखिया कृष्ण के सिर पर और उन के भाल पर धारण किया। उसी के साथ उस नूपुर का चिन्ह बन गया मानो राधा रानी के चरणों का ही चिन्हा वहा बन गया। और ललिता ने एक मंत्र भी जो मंत्र में गाती हो और इस मंत्र के गान से राधा रानी मुझसे प्रसन्न होती है वह मंत्र में तुमको देती हूं, वह मंत्र भी मैं तुमको देती हूं। वह मंत्र भी दिया और उसी के साथ यह भी कहा कि तुम्हारा नाम होगा श्यामानंद श्यामा राधा रानी का नाम है श्यामानंद। तो एक प्रकार से ललिता ने वहां दुखिया कृष्ण को दिक्षा ही दी। मंत्र भी दिया, नाम भी दिया और तिलक धारण करवाया और वह नूपुर लेकर वह प्रस्थान की ललिता, अदृश्य हो गई। और फिर यह भी हुआ कि जब नूपुर का स्पर्श कराई ललिता श्यामानंद को अब श्यामानंद नाम हो चुका उसी के साथ दुखिया कृष्ण के रूप में कुछ परिवर्तन हुआ। और सौंदर्य बढा अधिक सुंदर दिखने लगे और तेजस्वी ओजस्वी उनका व्यक्तित्व हुआ। ऐसे श्यामानंद अब जीव गोस्वामी के पास पहुंच गए। अब उनको पहचानना भी थोड़ा कठिन था, ए कौन हो तुम? वही दुखिया कृष्ण था मैं अब श्यामानंद हूं श्यामानंद। उन्होंने सब अपना अनुभव कह के सुनाया। तब से दुखिया कृष्ण हो गए श्यामानंद और जीव गोस्वामी ने उनको श्यामानंद पंडित की उपाधि दी। तो उनका जीवन चरित्र वैसे विस्तृत है। इतना ही याद रखिए। आप पढ़ सकते हो सुन सकते हो दिन में और। श्यामानंद पंडित तिरोभाव तिथि महोत्सव की जय। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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