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जप चर्चा वृंदावन धाम से 21 अक्टूबर 2021 890 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि !! महारास में आप सब रास नृत्य को ज्वाइन किए हो आज । रास नृत्य का प्रदर्शन है या रास क्रीडा की रात्रि है । यह बहुत बड़ी पार्टी है । सारे सितारे चंद्रमा भी चंद्रमा और चांदनी पर कृष्ण सितारे हैं । सितारे शुरू करते हैं रात । केवल सितारे ही एकत्रित हुए हैं । एक एक गोपी सितारे हैं । वे नेत्री है । नेता और नेत्री । नट कृष्ण है । नट राधा और गोपियां है नटी या नट नटी । बर्हापीडं नटवरवपुः कर्णयोः कर्णिकार बिभ्रद्वासः कनककपिशं वैजयन्तीं च मालाम् । रन्ध्रान्वेणोरधरसुधयापूरयन्गोपवृन्दैर् वृन्दारण्यं स्वपदरमणं प्राविशद्गीतकीर्तिः ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.21.5 ) अनुवाद:- अपने सिर पर मोरपंख का आभूषण , अपने कानों में नीले कर्णिकार फूल , स्वर्ण जैसा चमचमाता पीला वस्त्र तथा वैजयन्ती माला धारण किये भगवान् कृष्ण ने सर्वश्रेष्ठ नर्तक का दिव्य रूप प्रदर्शित करते हुए वृन्दावन के वन में प्रवेश करके अपने पदचिन्हों से इसे रमणीक बना दिया । उन्होंने अपने होंठों के अमृत से अपनी वंशी के छेदों को भर दिया और ग्वालबालों ने उनके यश का गान किया । यह उसी समय का वर्णन है रास क्रीडा के समय कृष्ण कैसे नट सज धज के राधा रानी के साथ । राधा रानी और गोपियां भी या पूरे मेकअप के साथ पधारे हुए हैं । हरि हरि !! तो नृत्य है अपने आल्हाद का प्रदर्शन नृत्य के साथ होता है । कोई नृत्य कर रहा है या कोई लेटा हुआ है बैठा हुआ है कोई चल रहा है किंतु जब कोई नृत्य कर रहा है तो फिर उसके तो फिर उसके खुशियों का कोई ठिकाना नहीं । वह आनंद लेता है । अपने आनंद का हर्ष का पूरा प्रदर्शन होता है जब व्यक्ति नृत्य करता है तो यह नृत्य की रात्रि रही और चलती रहेगी । ब्रह्मा की पूरी रात भर यह रासक्रीडा चलती रहेगी ऐसा भागवद् कहता है शुकदेव गोस्वामी कहते हैं । नृत्य होता है तो संगीत भी होता है । वाद्य भी बजते हैं । जैसे ताल और सुर हो तो फिर नृत्य भी हो सकता है या नृत्य में सहायता करता है यह ताल । मृदंग का ताल है तो सूर है कुछ गायन है तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह भी एक गायन हो सकता है । रासक्रीडा के समय जिस का गान संभव है या गाने योग्य है वैसा ही यह महामंत्र भी है और भी सारे गीत वे गाते ही रहते हैं । हरि हरि !! रिफ्लेक्शन कहो या छाया कहो या प्रतिबिंब कहो यह सिनेमा में मूवी में जो एक्ट्रेस और एक्ट्रेसेस गाते हैं बारी बारी से गाते हैं और साथ में नाचते भी हंन । सारा तमाशा दिखाते हैं यह है अपने काम का प्रदर्शन । अपने काम वासना का प्रदर्शन करते हैं या मूवी में नाचते हैं नाच के दिखाते हैं नंगा नाच या पुरा नंगा नाच भी होता है । वोटमलेस या टॉपलेस और उनके नृत्य भी रात्रि के समय होते हैं । केवल कृष्ण की नकल है । कृष्ण की रास नृत्य की नकल होती है । कृष्ण का रास नृत्य रात्रि के समय होता है तो दुनिया भर के जो पार्टी सोती हैं जो नृत्य होते हैं वे रात्रि के समय ही होते हैं । एक कृष्ण एक गोपी ऐसा भी नृत्य करके दिखाते हैं लोग । एक स्त्री एक पुरुष और वे कामी पुरुष या स्त्रियां भी अपने पुरुष के साथ नृत्य नहीं करती है । किसी को भी पकड़ लेती हैं या कोई अपने मर्जी से और जो भी स्त्रीयां एकत्रित हुई है उन्हीं के साथ वह नाचने लगते , सब अवैध है । सबसे निकृष्ट बात है या नंगा नाच है नृत्य है पार्टी है जो संसार भर में होती रहती है । लेकिन उत्कृष्ट है कृष्ण का नृत्य गोपियों के साथ और वह वास्तविक है । असतो मा सद्गमय । तमसो मा ज्तोतिर्गमय ॥ मृत्योर् मा अमृतं गमय । ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ तो करना तो यह है "तमसो मा" वो तमोगुणी कामि कामुख यह संसार के जो जन है जो लोग हैं । फिर बॉलीवुड हॉलीवुड और बाकी सब तो वो जो भी खेल खेलते हैं उनकी पार्टी और उनके नृत्य तो वह तामसी, तमोगुण में वो सब होता है । लेकिन वेद वाणी के "तमसो मा" ऐसे अंधेरे में मत रहो । ऐसे तमोगुण बनके अपने काम का प्रदर्शन मत करो "तमसो मा ज्योतिर्गमय" प्रकाश की ओर जाओ अंधेरे में मत रहो, तो सचमुच यह प्रकाश है । जपा सेशन से पहले मैं बरांडे में जाकर जो दृश्य देखा वृंदावन में वह सचमुच ज्योतिर्गमय था या ज्योति थी जो मैंने देखा कोई भी दे सकता था और कईयों ने देखा होगा आज जो वृंदावन में पहुंचे हैं या आकाश में चंद्रमा पूर्णिमा का चंद्रमा का प्रकाश यह प्रकाश तेज और वृंदावन का ज्योतिर्गमय । आकाश में चंद्रमा और फिर व्रजमंडल में कृष्ण चंद्र और आकाश में चंद्र और चांदनी तो व्रजमंडल में भी कृष्ण चंद्र और यह सारी गोपियां एक एक चांदनी की तरह तो वो दृश्य कुछ विशेष रहा । हम कुछ देख रहे थे कुछ सोच रहे थे कुछ कल्पना कर रहे थे उस दृश्य का । हरि हरि !! इतने में फिर घोषणा भी होती है कृष्ण बलराम मंदिर में हमारे दीनबंधु प्रभु; मंगलआरती के उपरांत आप उस खीर को प्राप्त कर सकते हो और खीर का वितरण होता है । कौन सी खीर ? वैसे वृंदावन में यह प्रथा या यह बात प्रचलित है । रात्रि के समय वहां का बड़ा पात्र भरके खीर छत पर रखते हैं और क्योंकि रासक्रीडा होती तो उसमें काफी परिश्रम भी है तो राधा कृष्ण, गोपी कृष्ण वह थोड़ा रुक जाते हैं । बीच में थोड़ा विश्राम लेते हैं और उसके बाद थोड़ा नाश्ता कहो या खीर ग्रहण करते हैं तो उसी का जो बचा हुआ अबशेष, राधा कृष्ण का उचिष्ट जूठन फिर उसका वितरण होता है और यह समझ है कि वह चंद्र की जो किरणें हैं वह भी प्रवेश करते हैं इस खीर में और कृष्ण उसको ग्रहण करते ही हैं, तो उसका वितरण होता है कृष्ण बलराम मंदिर के कोर्टयार्ड में । हो भी गया, बहुत देर हो चुकी है अभी नहीं जाना आप वहां । यह शरद पूर्णिमा महोत्सव संपन्न हो गया, संपन्न हो रहा है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह श्री कृष्ण की माधुर्यलीला है या श्री कृष्ण के "परकीय भावे जाहा, व्रजेते प्रचार" परकीय भाव का प्रचार यहां करते हैं वृंदावन में और उसका संयोजन इस रासक्रीडा में होता है । रासक्रीडा जैसी और कोई उसके समकक्ष और कोई लीला नहीं है । यह सबसे उत्तम है । सब लीलाओं में से यह रासलीला । सिर्फ रस ही रस । रस सागर में गोते लगाते हैं राधा कृष्ण गोपी कृष्ण । "माधुर्य-लीला-गुण-रूप-नाम्नां" "प्रतिक्षणास्वादन-लोलुपस्य" "वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं" । और फिर केवल आस्वादन ही कर सकते हैं । यह भी कुछ कम नहीं है यह आस्वादन कर के हम उसमें सम्मिलित होते हैं । हमारा भूमिका क्या है ? बस राधा कृष्ण रासनृत्य खेल रहे हैं गोपी कृष्ण । हम केवल उसका वर्णन सुन सकते हैं, उसी का आस्वादन कर सकते हैं और फिर श्रील प्रभुपाद के शब्दों में ; हम तैयार होते हैं राधा कृष्ण नृत्य में सम्मिलित होने के लिए, ऐसे प्रभुपाद कहा करते थे । हमें तैयार होना है, को भी क्या करना है ? सम्मिलित होना है नृत्य में । राधा कृष्ण की जो नृत्य समूह है उसमे हमें भी सम्मिलित होना है । उससे पहले हमको उसके योग्य उम्मीदवार बनना है । हरि हरि !! कामी व्यक्ति, हरि हरि !! ना तो इस लीला को समझ सकता है ना तो इस लीला में प्रवेश कर सकता है । हरि हरि !! इस लीला में काम का गंध भी नहीं है । राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदिलीला 1.5 ) अनुवाद:- श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं, किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । यह राधा कृष्ण का प्रणय का प्रदर्शन जो प्रेम से भी ऊपर । प्रेम से भी ऊपर है स्नेह, स्नेहा के ऊपर है मान, मान से ऊपर है यह प्रणय । यह सब अति शुद्ध व्यवहार है कृष्ण का । वैसे यह लीला माधुर्य लीला कहो या रासलीला कहो हम दुनिया वालों को, हमको यह लीला समझने में सबसे अधिक कठिनाई इस लीला को समझने में ही होती है । क्योंकि इस लीला में सारे प्रेम के व्यापार है । प्रेम का खेल है और हम हैं कामी और पापीयों में नामी, तो पापी, कामी, क्रोधी, लोभी मद मास्चर्य से जो पूर्ण है विशेष रुप से जो कामी जो है काम से ही सब उत्पन्न होता है । काम से ही क्रोध और क्रोध से फिर आगे लोभ इत्यादि इत्यादि । यह जो अवगुण है दुर्गुण है यह शत्रु है हमको पछाड़ लेते हैं । जब तक हम कामी हैं तब तक यह लीला हमारे पल्ले नहीं पड़ने वाली है । हम नहीं समझेंगे क्योंकि "आत्मवत मन्यते जगत" यह भी समस्या है । "आत्मवत मन्यते जगत" मैं जैसा हूं और भी लोग वैसे ही है । यहां तक कि कृष्ण राधा गोपियां भी वैसे ही है, तो हम जैसे राधा कृष्ण नहीं है । हम हैं कामी और राधा और कृष्ण है प्रेमी । कामि लोगे कृष्ण को दोष देते रहते हैं । उनमें गलतियां ढूंढते हैं । वे निंदा करते हैं पूर्ण पुरुषोत्तम श्री भगवान को । अरे भाई यह रासक्रीडा या माधुर्यलीला अगर काम का खेल, कामवासना का व्यापार होते तो श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु इतने कठोर सन्यासी थे वह बहुत कठोर थे वह कभी भी इस माधुर्यलीला का आस्वादन नहीं करते । गोविंद लीलामृत कृष्ण करुणामृत यह विषय सुना करते थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु । हे कठोर सन्यासी और राधा कृष्ण का लीला का श्रवण करते हैं । क्योंकि राधा कृष्ण की लीला शुद्ध है पवित्र है । इसका आस्वादन नहीं करते नहीं करते वे कठोर सन्यासी थे और शुकदेव गोस्वामी स्वयं, गोस्वामी, परमहंस परिव्राजक आचार्य शुकदेव गोस्वामी और श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु .. नानाशास्त्र - विचारणैक - निपुणौ सद्धर्म - संस्थापकौ लोकानां हितकारिणौ त्रिभुवने मान्यौ - शरण्याकरौ । राधाकृष्ण पदारविन्द भजनानन्देन मत्तालिकौ वन्दे - रूप सनातनौ रघुयुगौ श्रीजीव - गोपालकौ ॥ 2 ॥ अनुवाद:- मैं श्रील रूप- सनातनादि उन छः गोस्वामियों की वंदना करता हूँ जो अनेक शास्त्रों के गूढ़ अर्थों पर विचार करने में परमनिपुण थे , भक्तिरूप परमधर्म के संस्थापक थे , जनमात्र के परमहितैषी थे , तीनों लोगों में माननीय थे , शरणागतवत्सल थे एवं श्रीराधाकृष्ण के पदारविन्द के भजनरूप आनन्द से मत्त मधुप के समान थे । षड्गोस्वामी वृंद राधा कृष्ण के भजन या राधा कृष्ण के लीला का स्मरण में मस्त हुआ करते थे । सबसे उनत्तम गोस्वामीयां, इंद्रीयों को बस करने वाले, मन को बस करने वाले यह षड्गोस्वामी वृंद उनके ध्यान का स्मरण का विषय राधा कृष्ण । राधा कृष्ण की संबंध की हर बात यह लीला शुद्ध है, पूर्ण है, नित्य है, तो जो स्वयं भी शुद्ध है वे हो पवित्र बन रहे हैं वे ही समझ सकते हैं इस लीला को । हरि हरि !! मुझे लगता है कि या इसीलिए कहा है कि हम में जो कामरोग, हम रोगी है, कौन सा रोग ? कामरोग हुआ है हमें । संसार का हर मनुष्य कामरोग से ग्रस्त है या इसको शुकदेव गोस्वामी हृद रोग भी कहे । 5 रास अध्याय के उस अध्याय के अंत में शुकदेव गोस्वामी ने कहा अध्याय 33, 10 वा स्कन्ध के विक्रीडितं व्रजवधूभिरिदं च विष्णोः श्रद्धान्वितोऽनुशृणुयादथ वर्णयेद्यः । भक्तिं परां भगवति प्रतिलभ्य कामं हृद्रोगमाश्वपहिनोत्यचिरेण धीरः ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.33.39 ) अनुवाद:- जो कोई वृन्दावन की युवा - गोपिकाओं के साथ श्रीभगवान् की क्रीड़ाओं को श्रद्धापूर्वक सुनता है या उनका वर्णन करता है , वह श्रीभगवान् की शुद्ध भक्ति प्राप्त करेगा । इस तरह वह शीघ्र ही धीर बन जाएगा और हृदयरोग रूपी कामवासना को जीत लेगा । तो इसमें शुकदेव गोस्वामी यह रासक्रीडा के कथा के वक्ता और महा भागवत द्वादश भागवतो में से । यह एक प्रमाण है साधु शास्त्र आचार्य । यह स्वयं साधु है आचार्य है तो उनके पक्की सिफारिश है कि, हम में जो कामवासना है हम कामी है उस से मुक्त कैसे हो सकते हैं ? सुनो इस लीला को सुनो । "अनुशृणुयाद" मतलब प्रामाणिक आचार्यों से गुरुजनों से शाहजीआ या पाखंडी उनसे नहीं सुनना । "अनुशृणुयाद" या एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः । स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥ ( भगवद् गीता 4.2 ) अनुवाद:- इस प्रकार यह परम विज्ञान गुरु परम्परा द्वारा प्राप्त किया गया और राजर्षियों ने इसी विधि से इसे समझा | किन्तु कालक्रम में यह परम्परा छिन्न हो गई , अतः यह विज्ञान यथारूप में लुप्त हो गया लगता है । उसको सुनो "श्रद्धान्वितो" श्रद्धा के साथ सुनो । किसको सुनना है ? "विक्रीडितं" जो क्रीडा, कौन खेले हैं क्रीडा ? "व्रजवधूभिरिदं च विष्णोः" या विष्णु मतलब कृष्ण । कृष्ण और व्रजवधु । व्रज की वधु मतलब गोपियां । राधा कृष्ण या गोपी कृष्ण "विक्रीडितं" उन्होंने जो लीला खेली है रासक्रीडा उसको श्रद्धा के साथ आचार्यों से प्रामाणिक, व्यक्तियों से सुनो और साथ ही साथ उसको "वर्णयेद्यः" और वो सुनाते भी हैं, इसका वर्णन औरों को सुनाते हैं, स्वयं सुनते हैं और फिर सुनाते हैं । ऐसा करने से तो इसका मात्रा यह जो रासक्रीडा का लीला का जो वर्णन है इसी का मात्रा, यही औषधि है, यही दवा है । रोग है काम रोग यहां कहा है । "कामं हृद्रोगम" काम को हृदरोग या यह हुआ वह हुआ कार्डियका रेस्ट इत्यादि को दुनिया समझती है । हृदय का रोग हृदरोग लेकिन शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं हमारे जो कामवासना है हम लोग कामी ही हैं कामी । आई लव यू ! यह वह जो संसार भर में जो चलता है इसको "कामं हृद्रोगम" कह रहे हैं । यही है रोग और यह महारोग है, महामारी यही है । यह कोरोनावायरस वगैरह यह तो बड़ी क्षुलक, क्षुद्र रोग है । सबसे महा रोगा तो यह कामरोग ही है, तो रोग है तो रोक का फिर निराकरण हुआ । शुकदेव गोस्वामी निराकरण कर रहे हैं और उन्हीं का निर्धारण है । उन्होंने अभी-अभी जो सुनाई है कथा 5 अध्याय में इसको जो सुनते हैं और सुनाते हैं और वो हर एक के लिए मात्रा अलग-अलग होगा । हम कितने बीमार हैं कितना रोग है यह काम की मात्रा कम है या अधिक है इसके अनुसार ही मात्राएं होती है ना या तो फिर इसको साधारण वर्ड में दाखिल करते हैं नहीं तो सीधे अति दक्षता आईसीयू में पहुंचाते हैं या फिर कुछ केसेस के लिए, आप ले जाओ हमारे बस का रोग नहीं है । आप इनको घर को ले जा सकते हैं आपका यह मरीज । यह बड़ा सावधान पूर्वक उसका मात्रा लेना होगा और ऐसा करेंगे तो तो फिर "भक्तिं परां भगवति" ऐसा व्यक्ति भक्ति को प्राप्त करेगा । "परां भक्ति" और "अपहिनोत्यचिरेण धीरः" वो धीर बनेगा, स्थित होगा और उसका काम रोग से वो मुक्त होगा । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ यह भी औषधि है और रासक्रीडा के जो वर्णन है 5 अध्याय में वैसे 10 में स्कंध में कई स्थानों पर यह माधुर्यलीला का वर्णन है और लीलाओं का भी । गोचरण लीलाएं या सक्षरस से पूर्ण लीला या वात्सल्य रस भरी लीलाएं जैसी है दसवें स्कंध में, तो माधुर्यलीला का वर्णन भी कई अलग-अलग अध्याय में है लेकिन फिर भी 5 अध्याय विशेष माने जाते हैं तो यह सब औषधि है और इसी के समकक्ष है यह महामंत्र । हम भागवत का अध्ययन करते हैं भागवत को सुनते हैं "अणुशुणुयाद" या हम ... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥ एक ही दवा है जिसको शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं यह आप सुनो "अनुशृणुयाद", "विक्रीडितं" जो क्रीडा "व्रजवधु" उनकी क्रीडा या गोपगनांए गोपियों की क्रीडा कृष्ण के साथ या उसको सुनो या हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र को सुनो एक ही दवा है । यह भी हरे कृष्ण हरे कृष्ण का ही तो व्याख्या है यह 5 अध्याय कहो । यह अनपैक्ड है । हरे कृष्ण हरे कृष्ण इसमें भरा हुआ है सारा यह माधुर्य लीला । उसमें भरी हुई है तो जब हम हरे कृष्ण महामंत्र का ध्यानपूर्वक सुनते हैं श्रद्धा पूर्वक सुनते हैं तो उसका परिणाम भी उसका फल उसका श्रुति फल भी वही है जो शुकदेव गोस्वामी यहां रासपंच अध्याय में कहे हैं । "भक्तिं परां भगवति" वह भक्तिमान होगा, प्रेम को प्राप्त करेगा या हरे कृष्ण महामंत्र वैसे प्रेम हे ही । "गोलकेर प्रेमधन हरिनाम संकीर्तन" । हरि हरि !! ठीक है तो हम यही रुकते हैं । ॥ हरे कृष्ण ॥

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