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*जप चर्चा* *दिनांक -23 -03 -2022* हरे कृष्ण ! सबसे पहले मेरा दंडवत प्रणाम महाराज जी के श्री चरण कमलों में और सभी वैष्णव वृन्दों को मेरा प्रणाम ! *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम : ।।* *श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले । स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।* *नम ॐ विष्णु-पादाय कृष्ण-प्रेष्ठाय भूतले श्रीमते भक्तिवेदांत-स्वामिन् इति नामिने ।* *नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥* *श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* हरे कृष्ण ! तो मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे ज़ूम टेंपल में सुंदर कार्यक्रम में भाग लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जबसे कोरोना हुआ है तबसे महाराज की कृपा से हम सभी इकट्ठे जप कर रहे हैं। आज सुबह मुझे ऐसा अवसर प्राप्त हुआ उसके लिए मैं महाराज जी को धन्यवाद दूंगा। हम सभी जानते हैं कि हरि नाम का हमारे आध्यात्मिक जीवन में कितना महत्व है कितना महत्वपूर्ण रोल है। भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज कहा करते थे हरि नाम इज़ आवर लाइफ ! हरि नाम हमारा जीवन है ! एक प्रकार से हमारा पूरा जीवन क्वालिटी ऑफ आवर लाइफ है और वह बिल्कुल निर्भर करती है हमारी क्वालिटी ऑफ जपा के ऊपर, जिस मन से हम जप करेंगे उसी प्रकार से हमारा पूरा दिन रहता है। अच्छे रूप से हम भक्तों के साथ व्यवहार भी करते हैं और पूरा दिन उत्साह भी बना रहता है इसीलिए बहुत आवश्यक है कि हम भक्तों के संग प्रतिदिन कुछ हरि नाम की महिमा का श्रवण करें। कैसे हम अपने जप को और अधिक अच्छा बढ़ा सकते हैं कि हम हरि नाम के प्रति अपना आकर्षण उत्पन्न कर सकते हैं, तो इसीलिए आप लोग प्रतिदिन प्रयास करते हैं महाराज के निर्देशन में, यह आप सभी का बहुत बड़ा सौभाग्य है। मैं आपसे कुछ बातें शेयर करूंगा जो मैंने पढी सुनी है और आप सब से आशीर्वाद की याचना करते हुए कि अपने इस प्रयास से मैं अपने आपको शुद्ध कर सकूं और आप सबके दिव्यानंद के लिए और हरि नाम की प्रसन्नता के लिए कुछ कह सकूं। श्रीमद भगवतम के 11वे स्कंध 8 वे अध्याय में पिंगला वेश्या का एक वर्णन आता है पिंगला की एक बहुत सुंदर प्रार्थना है। यह 11वे स्कंध का 8 अध्याय का 31 वां श्लोक है *सन्तं समीपे रमणं रतिप्रदं वित्तप्रदं नित्यमिमं विहाय अकामदं दुःखभयाधिशोक मोहप्रदं तुच्छमहं भजेऽज्ञा ||* (श्रीमद भागवतम 11.8.31) अनुवाद -मैं ऐसी मूर्ख निकली कि मेरे हृदय में जो शाश्वत स्थित है और मुझे अत्यन्त प्रिय है उस पुरुष की मैंने सेवा छोड़ दी। वह अत्यन्त प्रिय ब्रह्माण्ड का स्वामी है, जो कि असली प्रेम तथा सुख का दाता है और समस्त समृद्धि का स्रोत है। यद्यपि वह मेरे ही हृदय में है, किन्तु मैंने उसकी पूर्णरूपेण अनदेखी की है। बजाय इसके मैंने अनजाने ही तुच्छ आदमियों की सेवा की है, जो मेरी असली इच्छाओं को कभी भी पूरा नहीं कर सकते और जिन्होंने मुझे दुख, भय, चिन्ता, शोक तथा मोह ही दिया है। आप में से बहुत से भक्त अवगत होंगे पिंगला के एपिसोड से, भगवान उद्धव से यह बता रहे हैं कि पिंगला ने कितनी सुंदर शिक्षाएं दी। पिंगला एक वैश्या थी और एक रात को अपने आप को बहुत सजा कर सवांर कर वह अपने कक्ष के द्वार पर आ जाती है और प्रतीक्षा करती है कि कौन उसका कस्टमर होगा, ग्राहक होगा और उसके साथ संग करेगा, सामने से एक व्यक्ति आ रहा है शायद उसका कस्टमर होगा, लेकिन वह भी निकल जाता है ऐसे प्रतीक्षा करते करते बहुत समय निकल जाता है लेकिन कोई भी कस्टमर जब उसके पास नहीं आता तो वह एकदम निराश होकर उसके हृदय में वैराग्य उत्पन्न होता है और उससे बहुत सुंदर एक गीत निकलता है। यह बहुत सुंदर उसकी एक व्यथा है। *कृष्ण-बहिर्मुख-दोषे माया हैते भय ।कृष्णोन्मुख भक्ति हैते माया-मुक्त हय ॥* (चै.च. मध्य लीला 24.136 ) अनुवाद- “कृष्णभावनामृत का विरोध करके मनुष्य पुनः माया के प्रभाव द्वारा बद्ध तथा भयभीत हो जाता है। श्रद्धापूर्वक भक्तिमयी सेवा सम्पन्न करने से मनुष्य माया से मुक्त हो जाता है।" सततम् भगवान मेरे इतने निकट हैं और वह भगवान जो असली भोक्ता है जो पूरे ब्रह्मांड के स्वामी हैं जो वास्तव में मुझे प्रेम करते हैं लेकिन मैं उनको प्रेम ना करके इस संसार के व्यक्तियों से प्रेम करने का प्रयास कर रही हूं और उन संसार के व्यक्तियों से प्रेम करके मुझे मिला भी क्या है ? मोह, क्षोभ, शोक, दुख, इत्यादि तो अब वह निर्णय लेती है कि मुझे अब भगवान से प्रेम करने का प्रयास करना है। इन सांसारिक व्यक्तियों से प्रेम करके मुझे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ बल्कि शोक मोह भय इत्यादि प्राप्त हुआ। यदि वास्तव में देखा जाए तो ऐसी स्थिति प्रत्येक जीव की है कि भगवान जो हम सबके इतने निकट हैं जो हम से बहुत प्रेम करते हैं जो हमारे सुहृदयम सर्वभूतानां है उनसे विमुख होकर उनसे बहिर्मुखी होकर हम संसार के व्यक्तियों से प्रेम करने का प्रयास कर रहे हैं और इससे हम विषम दुख और मोह को प्राप्त कर रहे हैं। चैतन्य चरितामृत में भी जब वह महाप्रभु सनातन गोस्वामी को कुछ शिक्षाएं दे रहे हैं तब महाप्रभु उसमें बताते हैं कि हर एक बद्ध जीव का क्या मुख्य दोष है ? महाप्रभु बताते हैं सांसारिक वस्तुओं के प्रति आकर्षण नहीं है हमारे जीवन की समस्या का मुख्य दोष मुख्य कारण है कृष्ण के प्रति आकर्षण ना होना। एक प्रकार से हमने कृष्ण को त्यागा हुआ है कृष्ण से वैराग्य लिया हुआ है तो मनुष्य जीवन का लक्ष्य है कृष्ण के प्रति आकर्षण बढ़ाना जितनी मात्रा में हम कृष्ण के प्रति आकर्षण बढ़ाते रहेंगे उतनी ही मात्रा में हमारे ऊपर माया का प्रभाव कम होता रहेगा यही मनुष्य जीवन है यही हमारी साधना है और हम जानते हैं कि भगवान और हम जानते हैं कि भगवान की असीम शक्तियां हैं और सभी शक्तियों में जो भगवान की प्रमुख शक्ति है वह उनकी कृपा शक्ति है और भगवान अपनी कृपा शक्ति से अपने नाम के रूप में प्रकट होते हैं। भगवान और भगवान के नाम में कोई अंतर नहीं है *नाम चिन्तामणिः कृष्णश्चैतन्य-रस-विग्रहः । पूर्णः शुद्धो नित्य-मुक्तोऽभिन्नत्वान्नाम-नामिनोः ॥* (चै. च. मध्य लीला 17.133) अनुवाद- “कृष्ण का पवित्र नाम दिव्य रूप से आनन्दमय है। यह सभी प्रकार के आध्यात्मिक वर देने वाला है, क्योंकि यह समस्त आनन्द के आगार, स्वयं कृष्ण है। कृष्ण का नाम पूर्ण है और यह सभी दिव्य रसों का स्वरूप है। यह किसी भी स्थिति में भौतिक नाम नहीं है और यह स्वयं कृष्ण से किसी तरह कम शक्तिशाली नहीं है। चूँकि कृष्ण का नाम भौतिक गुणों से कलुषित नहीं होता, अतएव इसका माया में लिप्त होने का प्रश्न ही नहीं उठता। कृष्ण का नाम सदैव मुक्त तथा आध्यात्मिक है, यह कभी भी भौतिक प्रकृति के नियमों द्वारा बद्ध नहीं होता। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि कृष्ण-नाम तथा स्वयं कृष्ण अभिन्न है। यदि हमारे जीवन का लक्ष्य कृष्ण से आकर्षण उत्पन्न करना है तब यही हमारे जीवन की सबसे बड़ी हर समस्या का समाधान है। हरि नाम के प्रति हम जितना अधिक आकर्षण उत्पन्न करेंगे उतनी ही मात्रा में हम माया के प्रभाव से बचे रहेंगे। वरिष्ठ भक्त बताते हैं हमारे नाम के जपने में पांच प्रकार के " ए "आते हैं यह पांच 5 " ए " क्या है ? पहला ए है "अट्रैक्शन" हमारा हरिनाम के प्रति आकर्षण होना चाहिए। आकर्षण कैसे होता है ? जितना हम अधिक हरि नाम के विषय में सुनेगे या पढेंगे उतना आकर्षण बढ़ेगा। चैतन्य महाप्रभु ने जब ईश्वरपुरी से दीक्षा ली गया में. श्रील प्रभुपाद एक तात्पर्य में लिख रहे हैं ईश्वरपुरी पाद जी ने उनको आदेश दिया कि आप प्रतिदिन श्रीमद भगवतम को बहुत गहराई से पढ़िए, बहुत बहुत ध्यानपूर्वक पढ़िए जितना हम ध्यान पूर्वक इसको पड़ेंगे उतना हमारा हरि नाम के प्रति आकर्षण बढ़ेगा। भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज कहा करते हैं की हरी नाम की जो स्वरूप शक्ति है वह हरि कथा है। जितना हरि कथा का श्रवण करेंगे श्रीमद भगवतम का अध्ययन करेंगे उतना हरि नाम में हमारी श्रद्धा हमारा आकर्षण बढ़ेगा तो सबसे पहले क्योंकि हरि नाम हमारा जीवन है , इसके प्रति हमें आकर्षण उत्पन्न करना है। हरि नाम, होली नेम के प्रति यह पहला , दूसरा जहां आकर्षण हुआ "अट्रैक्शन" होगा। वहां अटेंशन जाएगा। हम देखते हैं संसार में बिलबोर्ड हैं एडवरटाइजिंग है वह हमें अट्रैक्ट करती हैं , हमारा ध्यान उस तरफ जाता है तो जहां अट्रैक्शन है वहां "अटेन्शन" है लेकिन केवल अटेंशन लेना ही पर्याप्त नहीं है अटेंशन के बाद आता है "अब्जॉर्प्शन" , पूरा मनोयोग के साथ पूरा ह्रदय निवेशित करके यही साधना भक्ति का सार है। *येन केन प्रकारेण मन: कृष्णे निवेशयेत । सर्वे विधि निषेधास्युरेत्योरेव किंकरः।।* इस ढंग से जप करें तो पूरा मन उसमें लग जाए , बताया जाता है कि जप का वास्तविक अर्थ यह है माइंड इन द मंत्र, मंत्रा इन द माइंड, इसे पूर्ण मनोयोग के साथ करना यह अब्जॉर्प्शन" है। तो पहला है अट्रैक्शन, अटेंशन और फिर तीसरा है अब्जॉर्प्शन चौथा आता है "अटैचमेंट" , जब हम पूरा अब्जॉर्ब हो जाते हैं फिर हमारा अटैचमेंट होता है। फिर हम16 माला पर ही नहीं रुकना चाहेंगे, क्यों केवल 16 माला ही 60,000 क्यों नहीं और माला करने की इच्छा होगी जहां मौका मिलेगा वही माला लेकर शुरू हो जाएंगे अटैचमेंट और फिर पांचवा है "अफेक्शन" प्रेम हरि नाम के प्रति, प्रेम उत्पन्न होना तो यह हमारे जीवन का लक्ष्य है। फिर कैसे हम हरि नाम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करें ? खूब हरी नाम की महिमा को सुनें, श्रीमद भागवतम को अच्छे ढंग से पढ़ें, समझें, श्रवण करें और फिर हम हरि नाम को सुनने का प्रयास करें *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* और अब्जॉर्प्शन का अर्थ है पूरे हृदय में निवेशित, दोष क्या बता रहे हैं चैतन्य महाप्रभु, जब हम कृष्ण से विमुख होते हैं तो हमें माया का भय होता है हम इस संसार में आ जाते हैं और यह संसार इतना भयावह हैं और इसका समाधान क्या है ? कृष्ण उन्मुख होना जैसे हम कृष्ण के उन्मुख हो जाते हैं। हम माया से भी मुक्त हो जाते हैं यानी कि हमारे जीवन की समस्या माया के प्रति आकर्षण नहीं है। माला में अगर हम हृदय नहीं डालेंगे अपना तब यह एक प्रकार की मैकेनिक जस्ट काइंड ऑफ फॉर्मेलिटी जैसे जब हार्ट फीलिंग के साथ में भगवान को पुकारता है, उससे चीजें अटैचमेंट हो जाती है और फिर "अफेक्शन" अब श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर जी हरि नाम चिंतामणि में बताते हैं। ह्रदय को भगवान में लगाने के लिए आवश्यक है हम जप करें तब हमें संबंध ज्ञान में स्थित होकर ही जप करना चाहिए। मैं कौन हूं ? भगवान कौन हैं ? मैं क्या कर रहा हूं ? अब्सेंट माइंडेड जपा क्या होता है। बस उठाया माला हरे कृष्ण हरे कृष्ण करना शुरू कर दिया। माला शुरू करने से पहले अधिकांश बुरा मत मानिएगा कोटा फुल करना होता है मुझे 16 माला करनी है गुरु जी का आदेश है कि 16 माला निपट जाए, मेरा आज का हो जाएगा मैं रिलैक्स हो जाऊंगा, येन केन प्रकारेण 16 माला निपटाना है। परम पूजनीय भक्ति चारु स्वामी महाराज अपनी एक पुस्तक में लिखते हैं नॉर्मली मोस्ट ऑफ द चैंटर्स, चैंट द राउंडस, वी डोंट चैंट द होली नेम, 16 राउंड्स निपटा देते हैं हरि नाम का जप नहीं करते। हरि नाम के प्रति प्रेम उत्पन्न करने का भाव नहीं है। येन केन प्रकारेण 16 माला का जप निपटाने का उद्देश्य है। उसमें हृदय को नहीं डाला अपनी फीलिंग को नहीं डाला, यह बहुत आवश्यक है। संबंध ज्ञान में स्थित होना कि मैं जप क्यों कर रहा हूं ? ठीक है गुरु की प्रसन्नता के लिए क्यों गुरु ने आदेश दिया है। मेरा कृष्ण के साथ एक शाश्वत संबंध है। हरि नाम चिंतामणि में भक्ति विनोद ठाकुर जी बताते हैं कि पूरे मृत्यु लोक में यहां कदम कदम पर, क्षण क्षण पर मृत्यु हो रही है। केवल इस मृत्युलोक में दो ही चीज जीवित हैं एक है हरी नाम और दूसरा है जीवात्मा, जीव, हरि नाम तो हमेशा ही आध्यात्मिक रहता है लेकिन जो जीव है जब वह कृष्ण से विमुख हो जाता है तो उसकी लगभग मृत अवस्था ही है। हालाकि आत्मा कभी मरती नहीं है , गहरी सुसुप्त अवस्था में है हर जीव आत्मा जो कृष्ण से विमुख है। जैसे एक अग्नि से एक स्फुलिंग निकलती है और खत्म हो जाती है तो उसको कैसे पुनर्जीवित किया जाता है जप के माध्यम से, एक चिन्मय जीवात्मा है जो कृष्ण से विमुख होकर लगभग इस मृत्यु लोक का हो गया है। जब हम उसको हरि नाम से जोड़ते हैं तब यह जप कहलाता है और फिर आत्मा को दोबारा से जीवन मिलता है और वह अपनी वास्तविक स्थिति में आता है। जप का अर्थ है हरी नाम को जीवात्मा से जोड़ना जैसे ही हरि नाम अर्थात कृष्ण से जोड़ना उसकी वास्तविक स्थिति है तब दुबारा से उसमें उत्साह और जीवन वापस आता है। यही संबंध ज्ञान है और इसमें स्थित होकर कि मैं कौन हूं तीन चीजें बताते हैं। श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर पहले अपने बारे में जाने कि मैं कौन हूं? मैं भगवान का दास हूं। इसीलिए श्रीमद्भागवत को आप जितना पढेंगे श्री प्रभुपाद के तात्पर्य को जानने का प्रयास करेंगे, आप का संबंध ज्ञान स्पष्ट होगा। संबंध ज्ञान के बारे में जानना, कृष्ण के विमुख जीवात्मा इस संसार में, इस संसार में मेरा दोष क्या है? कि मैं कृष्ण से विमुख हो गया, मुझे करना क्या है ? कृष्ण से आकर्षण पाने के लिए मुझे अपना संबंध स्थापित करना है। माध्यम क्या है ? यह हरि नाम है जो कि गुरु परंपरा द्वारा दिया हुआ है। इसीलिए मुझे बहुत गंभीरता से भगवान को पुकारना है तो कैसे पुकारे *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* श्रील प्रभुपाद कहते हैं कि जप बहुत आसान है जप का अर्थ है होठों से बोलना, कानों से सुनना, ह्रदय से रोना, यही है जप, कैसे रोना है? जैसे छोटा बच्चा रो-रो कर मां को पुकारता है असहाय अवस्था में क्योंकि उस बच्चे के पास कोई ऑप्शन नहीं है बच्चा चल नहीं सकता, बोल नहीं सकता, हिल डुल नहीं सकता उसके पास कम्युनिकेशन का एक ही तरीका है कि वह रोके मां को पुकारता है *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।* वह वह जेन्युइन क्राइंग कैसे आएगी ? जैसे छोटा बच्चा रोता है। जेन्युइन क्राइंग, असहाय अवस्था में क्राइंग कैसे आएगी ? क्योंकि हम यहां कंफर्टेबल मानते हैं इस मेटेरियल जगत में हम अपने आप को बहुत कंफर्टेबल मानते हैं हमारे जीवन का लक्ष्य ही स्पष्ट नहीं है। हमारे जीवन का लक्ष्य है इस संसार में हम सुखी रहे, जब हम अच्छे ढंग से संबंध को जानेंगे अपने हृदय को खोजेंगे, हम आप सबको बोलेंगे कि आपको क्या चाहिए ? प्रभु आप की आवश्यकताएं क्या है ? हमें ऊपर लगेगा कि हमारी आवश्यकता है मुझे धन चाहिए , मुझे पोस्ट चाहिए ,मुझे पावर चाहिए , यह चाहिए वह चाहिए, संसार में , यह मेरी आवश्यकता है यह पूरी होगी तो मैं खुश हो जाऊंगा। फिर और थोड़ा गहराई में जाएंगे तो मेरी क्या आवश्यकता है? वास्तव में मुझे क्या चाहिए? मुझे सिक्योरिटी चाहिए,, मुझे प्रेम चाहिए और गहराई में जाएंगे तो मुझे क्या चाहिए वास्तव में हमको कृष्ण चाहिए। जब हम जप करने बैठे तब इस ढंग से हमें इस पूरी मानसिकता के साथ लाना चाहिए कि मुझे कृष्ण की आवश्यकता है। यहां से जैसे भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर बहुत अच्छे ढंग से बताते हैं बहुत सुंदर उदाहरण देते थे जब हम माला कर रहे हैं जब हमने मनके को पकड़ा, मनके को जो यह पकड़ रहे हैं तो यह मनका नहीं है यह चैतन्य महाप्रभु के चरण कमल हैं। कल्पना कीजिए कि आप ने चैतन्य महाप्रभु को चरण कमलों को पकड़ लिया जब आपने महाप्रभु के चरण कमलों को पकड़ लिया तो आप प्रभु से क्या मांगेंगे । महाप्रभु के चरण कमलों को पकड़कर उनका प्रेम मांगेंगे, चाहे हम जो भी प्रार्थना कर सकते हैं। मुझे मालूम है कि मुझे आपकी सेवा मांगनी चाहिए, मुझे आपकी सेवा करनी चाहिए लेकिन मैं माया की सेवा करता हूं। मेरी रक्षा कीजिए मुझे बचाइए मुझे अपनी सेवा में लगाइए या कोई एक अनर्थ मुझे बहुत सता रहा है , हम महाप्रभु के चरणों को पकड़कर प्रार्थना कर सकते हैं मुझे शक्ति दे कि मैं इन अनर्थ से ऊपर उठ सकूं। *तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना । अमानिन मानदेन कीर्तनीय: सदा हरिः ।।* (शिक्षाष्टकं 3) स्वयं को मार्ग में पड़े हुए तृण से भी अधिक नीच मानकर, वृक्ष से भी अधिक सहनशील होकर, मिथ्या मान की भावना से सर्वथा शून्य रहकर दूसरों को सदा मान देने वाला होना चाहिए। ऐसी मनःस्थिति में ही व्यक्ति हरिनाम का सतत कीर्तन कर सकता है। मैं उसको सुनता हूं बोलता हूं लेकिन मैं उसको अपने जीवन में अप्लाई नहीं कर पाता, बिना आपकी कृपा के मैं उसको अपने जीवन में कैसे उतार पाऊंगा। जो आध्यात्मिक जीवन में बढ़ने के लिए वास्तविक इच्छा का अनुभव कर रहा हूं। उसको मैं रो कर पुकार सकता हूं यह कोई आर्टिफिशियल नहीं है कि मुझे प्रेम ही मांगना है। प्रेम ही मांगना चाहिए जो मैं आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने के लिए अपनी चुनौतियों का सामना कर सकूं , उसके लिए मैं भगवान से प्रार्थना करूं वह प्रार्थना हृदय से निकले मैं मुख से बोल रहा हूं, कानों से सुन रहा हूं और हृदय से प्रार्थना कर रहा हूं यह संबंध ज्ञान निश्चित होकर जप है अगर हम संबंध ज्ञान में स्थित होकर जप नहीं करते, भक्ति विनोद ठाकुर जी बताते है हरि नाम चिंतामणि में *यावत संबंध-ज्ञान स्थिर नाहि हय।तावत अनर्थे नामाभासेर आश्रय।।* मैं इस संबंध ज्ञान में स्थित होकर जप नहीं कर रहा हूं ? मैं क्या कर रहा हूं ? नाम नहीं ले रहा , नाम का आभास कर रहा हूं। शैडो चैट , छाया हरि नाम , नहीं ले रहा जो यह हरि नाम की छाया है वह कभी भी आत्मा को संतुष्ट नहीं कर सकती। आज जो टेंपल में हम हैं हम किसी तरह से जूम टेंपल में मिल गए ,यह तो बहुत अच्छी बात है पर यहां जूम प्रसाद नहीं हो सकता, प्रसाद की छाया दिखा दी जाए एक फोटो दिखा दिया जाए कि बाल भोग का समय हो गया है। देखिए यह देखिए बाल भोग पा लीजीए तो उससे हमारी संतुष्टि नहीं होगी। जब संतुष्टि नहीं होगी आत्मा की तो आत्मा को आनंद की अभिलाषा, आत्मा को आनंद चाहिए। यह संतुष्टि हम कहां ढूंढते हैं भौतिक जगत में और हमें मालूम ही नहीं चलता अनकॉन्शियसली बिना हमारे जाने कि हम अपने आध्यात्मिक स्तर में कंप्रोमाइज करना शुरू कर देते हैं। चलता है कोई बात नहीं सभी कर रहे हैं थोड़ा बहुत तो चलता है या जप मैं सो भी गए तो क्या फर्क पड़ता है थोड़ी-थोड़ी बातें सब चलता है। कोई बात नहीं कोई पश्चाताप नहीं होता कि अगर ध्यान पूर्वक जप नहीं हुआ, वर्षों से अपने आप को संतुष्ट करने के की कोशिश करते हैं। संतुष्ट करने का प्रयास कर लेते हैं जो असली आनंद का स्रोत है वह हरि नाम उसकी हमें केवल छाया मिल रही है, छाया से कभी भी संतुष्टि नहीं होती। हमें अपने आप से पूछना चाहिए क्या मैं जब भक्ति में आया और महत्वकांक्षा की भक्ति में मुझे प्रेम चाहिए, भक्ति में प्रगति कर सकूं, क्या मेरी वह इच्छाएं पूरी हो रही हैं ? नहीं हो रही तो क्यों नहीं हो रही ? क्योंकि नाम की छाया मात्र मुझे मिल रही है। सही ढंग से मेरा कृष्ण के साथ संबंध स्थापित नहीं हो पा रहा। इस छाया से मुझे कैसे संतुष्टि प्राप्त होगी। मुझे वास्तविक नाम का जप करना है हालांकि मेरी स्थिति बहुत खराब है मुझे हृदय से नाम करना चाहिए , मेरे हृदय में बहुत अनर्थ हैं। प्रभुपाद कहते हैं केवल सिंसेरिटी चाहिए बस , यही इस संकीर्तन आंदोलन की खूबी है। चाहे कोई कितना भी बड़ा पापी क्यों ना हो कितना ही बड़ा अपराधी क्यों ना हो प्रमाणिक गुरु के संपर्क में आने के बाद वह भगवान को रो-रो कर पुकार सकता है तो जो मेरी यह वास्तविक स्थिति होनी चाहिए और मैं इस स्थिति में हूं और मैं उस वास्तविक स्थिति को पाना चाहता हूं। अकेले में बहुत असहाय हूं जब तक आपकी और गुरु की कृपा प्राप्त नहीं होगी मैं आगे नहीं बढ़ सकता। यह पुकारेंगे इस संबंध ज्ञान में स्थित होकर अपने आप को असहाय अवस्था में पाएंगे तब हम को महाप्रभु आकर्षित करेंगे। हमारा हरि नाम के प्रति आकर्षण बढ़ता रहेगा और भक्ति विनोद ठाकुर जी बताते हैं कैसे हम भक्ति में प्रगति कर रहे हैं ? यह कैसे होगा जितना हमारा हरि नाम के प्रति आकर्षण बढ़ता जाएगा। वरना हम ऐसे नहीं करते केवल मैकेनिकल चेटिंग करते हैं। इसी तरह से कोटा कॉन्शियस रहते हैं कृष्णा कॉन्शियस के बजाय, किसी तरह से मेरा कोटा पूरा हो जाए। *बह जन्म करे यदि श्रवण, कीर्तन ।तबु त' ना पाय कृष्ण-पदे प्रेम-धन ॥* (चै. च. आदि लीला 8.16) अनुवाद-यदि कोई हरे कृष्ण महामन्त्र के जप में दस अपराध करता रहता है, तो वह चाहे अनेक जन्मों तक पवित्र नाम का जप करने का प्रयास क्यों न करे, उसे भगवत्प्रेम प्राप्त नहीं हो सकेगा, जो इस जप का चरम लक्ष्य है। भक्ति रस अमृत सिंधु के एक अध्याय में प्रभुपाद जी बहुत सुंदर बात लिख रहे हैं पेज नंबर 107 में प्रभुपाद जी कहते हैं हालांकि हरि नाम में इतनी शक्ति है इसकी पहली किस्त क्या है *चेतोदर्पण-मार्जनं भव-महादावाग्नि निर्वापणं श्रेय:कैरव-चंद्रिका-वितरणं विद्यावधूजीवनम् । आनन्दाम्बुधि-वर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्णसंकीर्तनम्।।* 1. श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो हमारे चित्त में वर्षों से संचित मल को साफ करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूपी महाग्नि को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तनयज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन (पति) है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमें नित्य वांछित पूर्णामृत का आस्वादन कराता है। यह हमारे हृदय में गंदगी को साफ कर देती हैं प्रभुपाद लिख रहे हैं मैं भक्ति रस अमृत सिंधु में हिंदी में पढ़ रहा हूं जो व्यक्ति इस धूल को अपने हृदय से हटाना नहीं चाहता अपितु उसको उसी तरह रहने देना चाहता है वह हरे कृष्ण महामंत्र का दिव्य फल प्राप्त नहीं कर सकते, हालांकि हरि नाम हमारे हृदय की धूल को भगा देता है साफ कर देता है लेकिन साधक स्वयं यह नहीं चाहता । यह धूल साफ मत करना इसको यहीं रहने दो हमारे घर कोई अचानक से मेहमान आने वाला हो तो हम कभी क्या करते हैं कि धूल को कारपेट के नीचे छुपा देते हैं या अलमारी में गंदे कपड़े डाल देते हैं बंद कर देते हैं यह गंदगी ऐसी ही बनी रहे इसको डिस्टर्ब मत करो इसी ढंग से हमारे हृदय में ऐसी भौतिक इच्छाएं जिनको हम समझते हैं कि वह हमारे आनंद के स्रोत हैं इनको तो हम नहीं हटाएंगे थोड़ा बहुत हमें आनंद लेते रहना चाहिए हरि नाम में। अगर हम अपने मन की इच्छाएं नहीं रखेंगे इनको हम नहीं हटाएंगे थोड़ा बहुत जिनको हम समझते हैं हमारे आनंद के स्रोत हैं इनको हम नहीं हटाएंगे थोड़ा बहुत हमें आनंद लेते रहना चाहिए तो हरी नाम में हमेशा ही यही रखेंगे, नहीं मुझको यह साफ करना है तो हरि नाम हालांकि सर्व शक्तिशाली है , सर्व शक्तिशाली होते हुए भी कार्य नहीं करेगा क्योंकि हरि नाम जीवित है यह कोई मैकेनिकल चीज नहीं है. शक्ति है तो साफ करेगा ही करेगा। *ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ||* (श्रीमद भगवद्गीता 4.11) अनुवाद- जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता है | जितनी मात्रा में हम हरि नाम को हृदय से पुकारेंगे उतनी मात्रा में हमारा हरि नाम हम पर प्रभावशाली होगा इसीलिए आप फीलिंग के साथ, हमारे आचार्य बताते हैं अगर हार्टबीट नहीं है और हमारी फीलिंग नहीं है जप मैं तो कहते हैं कि ब्लैक बुलेट को फायर करते हैं , पिस्तौल चला रहे हैं , पर उसमें कारतूस नहीं है बस टॉय टॉय आवाज आ रही हैं, उसमें कारतूस नहीं है तो वह प्रभावशाली नहीं होगा। जब तक उसमें गोली नहीं डालेंगे तो राइफल ब्लैक ही रहेगा। कुल मिलाकर हां आज हमने चर्चा की कैसे पिंगला जो वैश्या थी ने कैसे बहुत सुंदर प्रार्थनाएं की, इस संसार में जो सबसे ज्यादा मेरे हृदय से प्रेम करता है सबसे निकट उसे छोड़कर संसार के व्यक्तियों से प्रेम करने का प्रयास किया जिससे मुझे भय शोक आदि प्राप्त हुआ। हमें केवल कृष्ण से प्रेम करना है कृष्ण के प्रति आकर्षण बनाना है। मुख्य जीवन का दोष क्या है कि हम कृष्ण से विमुख हुए हैं कृष्ण के प्रति आकर्षण, मतलब हरि नाम के प्रति आकर्षण, हमने पांच ए पर चर्चा की "अट्रेक्शन अटेंशन अब्जोर्पशन अटैचमेंट अफेक्शन "और कैसे हो हरि नाम से संबंध ज्ञान, संबंध ज्ञान क्या है ? मैं जीवात्मा हूं, मैं भगवान का अंश हूँ, मैं भगवान से विमुख हूं और हरी नाम चिन्मय है और मैं भी चिन्मय हूं लेकिन मैं अभी सुप्त अवस्था में हूं । जैसे ही मैं जप करके अपने आप को (जीवात्मा को) हरिनाम के संपर्क में लाता हूं मैं पुनः से जीवित हो जाता हूं और इस प्रकार से संबंध ज्ञान में स्थित होकर जप करेंगे और हम भगवान को पुकारएंगे, नहीं करेंगे तो मैकेनिकल चैंटिंग है। उसमें केवल हरि नाम का रिफ्लेक्शन रहता है छाया रहती है जो हमें कभी भी संतुष्टि नहीं दे सकती और इस प्रकार से हम भगवान के प्रति अपना आकर्षण बढ़ा सकते हैं। समय हो गया है अपना यहीं पर विराम दूंगा। हरे कृष्ण

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