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*जप चर्चा* *19 नवंबर 2021* *पंढरपुर धाम से* जय राधे, जय यशोदे ,जय मधुमंगल। 740 स्थानो से भक्त जप कर रहे है। आराध्यो भगवान ब्रजेश तनयस तद्धाम वृंदावनं आप जानते हो ना यह? यह उत्तम श्लोक हम कहीं बार कहते रहते हैं अब भी कह रहा हूं। यह बहुत महत्वपूर्ण श्लोक है। महत्वपूर्ण मतलब आप नोट कर रहे हो कि नहीं? नोट भी करो, कंठस्थ भी करो, ह्रदयंगम भी करो। इस मंत्र में चैतन्य महाप्रभु का मत दिया हुआ है। तो क्या कहा है इस मंत्र में? आप याद कर सकते हैं ना? दिमाग है है कि नहीं? आपको बुद्धि हैं उपयोग करो और क्या-क्या दुनिया भर की बातें तो आप याद करते रहते हैं। दुनिया के लोग फिल्मी गाने सैकड़ों गाने गाने वाले लोग भी हम जानते हैं। तो क्यों नहीं हम कुछ याद रखें। आराध्यो भगवान ब्रजेश तनयस तद्धाम वृंदावनं रम्या काचिद उपासना व्रज वधू वर्गेन वा कल्पित। श्रीमद भागवतम् प्रमाणं अमलं प्रेम पुमार्थो महान श्री चैतन्य महाप्रभोर मतं इदं तत्रादरः नः परः।। तो आज है दामोदर मास का अंतिम दिन। आज कार्तिक पूर्णिमा है, इसी के साथ इस कार्तिक व्रत का समापन होने जा रहा है। अच्छा समाचार तो नहीं है समापन होना। हम कुछ तो सोच रहे हैं पता नहीं आप सोच रहे हैं कि नहीं। अच्छा होता कि यह महीना कुछ और आगे बढ़ता और कुछ दिन या सप्ताह होते। हमारे ब्रज मंडल परिक्रमा के भक्त परिक्रमा के अंत में ऐसा ही सोचते रहते हैं। उनका विचार होने लगता है क्या हम लोग और एक राउंड मार सकते हैं और एक परिक्रमा कर सकते हैं यह समाप्त हो रहा है, यह अच्छी बात नहीं है। अभी अभी हम मूड में आ रहे थे और अब समापन भी होने जा रहा है। ऐसे भाव अगर है तो.. ऐसे भाव है किसी के ऐसा विचार हो रहा है? या फिर अच्छा हुआ फाइनली समाप्त हो गया, धन्यवाद बाय बाय चातुर्मास या दामोदर मास। तो हम सब ने बहुत अच्छा समय बिताया। अच्छे दिन आए थे, अच्च्छे दिन आएंगे तो अच्छे दिन आए थे कार्तिक मास में। तो हम क्या कर रहे थे यह बात इस श्लोक में कहां है। जो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मत है, सिद्धांत है। श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नाही अन्य या स्वयं भगवान गौरांग का यह मत है। आराध्य भगवान 75 मास में हम क्या क्या कर रहे थे आराध्यो भगवान ब्रजेश तनयस ब्रजेंद्र नंदन की आराधना कर रहे थे। ब्रजेंद्र नंदन सर्वोपरि है। अद्वैतम अच्युतम अनादि अनंत रूपम भगवान के अनंत रूप है। उन सभी रूपों में ब्रजेंद्र नंदन श्री कृष्ण या वृंदावन के कृष्ण सर्वोपरि है। तो आराध्यो उनकी आराधना करो चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं। और हम गौड़ीय वैष्णव ब्रजेंद्र नंदन की आराधना करते हैं। और हम ब्रज भक्ति का अर्जन करते हैं या ब्रज के भक्तों जैसी भक्ति। एक तो आराध्यो भगवान ब्रजेश तनय है और तद्धाम वृंदावनं और आराधना धाम की भी आराधना करनी है, वृंदावन धाम की जय। तो इस मास में हम धाम की भी आराधना कर रहे थे। रम्या काचिद उपासना व्रज वधू वर्गेन वा कल्पित आराधना करनी है तो कैसी आराधना करो? जैसी आराधना ब्रज की गोपिया करती है। और ब्रज की गोपियों में भी जो श्रेष्ठ गोपी है प्रधान गोपी है। विष्णोर अत्यंत - वल्लभा जो विष्णु को मतलब कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय है। सैवइका स- एव - एका सर्व - गोपीशु सैवइका विष्णोर अत्यंत - वल्लभा। तो सभी गोपियों में वही एक है मतलब वह राधा है, जो कृष्ण को सबसे अधिक प्रिय है। तो उनका भाव या उनके जैसी भक्ति करो। ऐसा चैतन्य महाप्रभु का मत है श्री चैतन्य महाप्रभोर मतं इदं। तो वह भाव माधुर्य भाव या माधुर्य रस हुआ। तो उसकी आराधना करने के लिए चैतन्य महाप्रभु कह रहे है। उसी के अंतर्गत कहो और भी रस है ब्रज के रस, ब्रज की भक्ति, एक राधा की भक्ति। फिर यशोदा की भक्ति यह वात्सल्य रस हुआ। और फिर मधुमगल, सुदामा श्रीदामा सखा जो भक्ति करते हैं वह सख्य रस वाली भक्ति है। तो वृंदावन में तीन प्रकार की भक्तियों का प्राधान्य है। चौथा प्रकार भी है वह दास्य रस वाला है। लेकिन वृंदावन में हम कह रहे हैं, आपको पता चलना चाहिए। वृंदावन में मतलब द्वारका में नहीं, वृंदावन में मतलब वैकुंठ में नहीं, वृंदावन मे मतलब स्वर्ग तो है ही नहीं स्वर्ग तो भूल ही जाओ। हम वृंदावन में कह रहे हैं। तो गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतो गोलोक के निवासी श्री कृष्ण गोलोक के वृंदावन के निवासी। गोलोक में वैसे मथुरा भी हैं, गोलोक में द्वारिका का भी समावेश है सही। किंतु हम गौडीय वैष्णव विशेष रुप से वृंदावन के भक्ति का अवलंबन करते हैं। तो गोलोक में वृंदावन में जो जनता है, उनका विभाजन तीन वभागों में हो सकता है। वहां के जो बुजुर्ग लोग हे स्त्री और पुरुष वृंदावन के उनका कृष्ण के प्रति जो भाव है, रस है संबंध है वह वात्सल्य रस है। गोपी और नंद महाराज... और उन्हीं से सीमित नहीं है। आप जानते हो ब्रह्म विमोहन लीला जब हुई तब कृष्ण ही बन गए सारे ग्वाल बाल। पूरे एक साल के लिए यह वात्सल्य रस उमड़ आया ब्रज में। ब्रज के सभी बुजुर्ग स्त्री पुरुष वह जो भक्ति कर रहे थे वह वात्सल्य रस है। वैसे भी सब समय यह तो एक विशेष लीला, प्रकट लीला में भगवान उसका प्रदर्शन किए हैं। लेकिन वात्सल्य रस सब समय नित्य विद्यमान रहता ही है। तो मैं कह रहा था.. इसको थोड़ा संक्षिप्त में कहता हूं। तीन प्रकार के जन या लोग वृंदावन में, गोलोक वृंदावन कुछ गोकुल वृंदावन भी। वही बात है लेकिन हम गोकुल वृंदावन की बात करते तो फिर भौम वृंदावन कहना पड़ता है। उसमें तो हमें ज्यादा अधिक कुछ दिखता नहीं है। लेकिन जो गोलोकेर वैभव लीला प्रकाश कोरिला गोलोक की लीला वैसे वृंदावन में भी प्रकाशित है। वृंदावन के सभी बुजुर्ग जो है उनका जो संबंध है वह वात्सल्य रस का संबंध है। और दूसरा है.. ठीक है, यह बूढ़े हो गए वृद्ध माताए पुरुष हो गए वात्सल्य रस ऐसा संबंध है उनका भगवान के साथ वात्सल्य रस का। और फिर सभी जो जवान है उसके दो विभाजन होंगे कुछ युवक है कुछ युवतीया है। तो युवती के साथ गोपियां आ गई फिर उसमें राधा आ गई मंजिरीया आ गई। उनके साथ भगवान का जो संबंध है वह है श्रृंगार रस या माधुर्य रस। जो सभी रसों में श्रेष्ठ माना जाता है। और फिर जवानों में जो युवक है ग्वाल बाल कहीए। उनके साथ कृष्ण का जो संबंध है वह है साख्य रस। तो हो गए इस तरह तीन प्रकार के संबंध या भक्ति कहो ब्रज में संपन्न होती है सदैव। और कुछ ही होते हैं सेवक। वृंदावन में दास्य रस का प्राधान्य नहीं है। वैकुंठ में दास्य रस का प्राधान्य है, वृंदावन में नहीं। तो कुछ थोड़े सेवक है दास्य भाव में कृष्ण की सेवा करते हैं। किंतु अधिकतर गोलोक की आबादी की बात कर रहे हैं, वृंदावन की आबादी। गोलोक का कहने से वह वह पूरा सही नहीं है। फिर गोलोक में मथुरा भी है, द्वारका भी है। वहा की बात हम नहीं कर रहे हैं, हम वृंदावन की बात कर रहे हैं। तो वृंदावन की जो जनता है, जो जन है ब्रजवासी, जिनको हम ब्रजवासी कहते हैं। ब्रजवासी मथुरा वासियों से भिन्न है। ब्रजवासी द्वारका वासियों से भिन्न है। ब्रजवास हम कहते हैं। तो पूरे दामोदर मास में हम ब्रजवास भी कर रहे थे और ब्रज वासियों की जो भक्ति है उसका हम अनुसरण करने का प्रयास कर रहे थे। और यह भक्ति अर्जन करने का हमारा प्रयास चल रहा था। भक्ति का अर्जुन। भक्ति को प्राप्त करना है। भक्ति को कमाना है। तो यह तीनों प्रकार की भक्ति दामोदर मास में हम कर रहे थे। दामोदर है तो यह वात्सल्य रस का नाम तो है इसका या उसका प्राधान्य है ऐसा हम सोचते हैं भी। लेकिन यह नहीं भूलना है यही दामोदर मास प्रारंभ हुआ शरद पूर्णिमा के साथ। आज तो कार्तिक पूर्णिमा है। तो रास क्रीडा के साथ यह दामोदर मास प्रारंभ हुआ। और दामोदर मास में ही राधा कुंड का प्राकट्य हुआ फिर से यह माधुर्य लीला का प्राधान्य। हम अनुभव कर रहे थे, सुन रहे थे। राधा कुंड में जाकर हम में से कईयों ने स्नान भी किया और ब्रज मंडल परिक्रमा कर रहे थे। तो वैसे तीन रसों की लीलाएं हम सुन रहे थे या तीन रसों से भरे स्थान या स्थली को हम भेट दे रहे थे और वहां की लीलाओं का श्रवण कर रहे थे। आप समझ रहे हो ना? मैं थोड़ा इसे जल्दी समाप्त करना चाहता हूं, ताकि आप भी बोल सकते हो। और हम हमारे इस्कॉन मंदिर के अधिकारी या भक्त उनसे भी सुनना चाहते हैं। कैसे उन्होंने यह दामोदर मास संपन्न किया? और क्या-क्या उन्होंने किया? कैसे अनुभव रहे उनके? तो फिर तैयार रहें। तो फिर सख्य रस के भी इसी मास में वासुदेवो अभुद गोपः पुर्वम तु वत्सपः गोपाष्टमी आई इसी मास में हमने गोपाष्टमी का उत्सव मनाया। एक था बहुलाष्टमी राधा कुंड का प्राकट्य, तो दूसरी अष्टमी शुक्ल पक्ष में गोपाष्टमी। तो गोपाष्टमी मतलब कौन सा रस? गोपाष्टमी का रस कौन सा है हां क्या कहोगे? साख्य रस.. हां सही है सखाओ के साथ। पहले तो वासुदेवो अभुद वासुदेव बन गए गोप या गोपाल। पुर्वम तु वत्सपः उसके पहले वत्सप बछड़े चराते थे या वत्सपाल थे, वत्सपाल के बन गए गोपाल। तो हमने जितने उत्सव मनाए दामोदर मास में, कुछ उत्सव माधुर्य रस से संबंधित है। कुछ उत्सव वात्सल्य रस से भरपूर है और कुछ उत्सव साख्य रस से पूर्ण है। और फिर गोवर्धन को भी धारण किए इसी मास में भगवान। तो फिर कौन सा रस वहा चल रहा था? क्या वैशिष्ट्य है? यह गोवर्धन धारण किए जब भगवान कौन-कन सा रस अनुभव कर रहे थे। सभी रस? कुछ कहो, कुछ सोचो। कुछ पल्ले पड़ रहा है कि ऐसे ही सर के ऊपर से जा रहा है। ऐसी दूसरी कोई लीला तो हुई नहीं जैसी गोवर्धन लीला या गोवर्धन धारण लीला। क्योंकि सभी रस सख्य रस, वात्सल्य रस, माधुर्य रस, सभी का महारस। एक ही साथ 24x7 भी हम कह रहे थे। 24 घंटे 7 दिन। गोपिया भी वहां थी, राधा भी वहां थी, नंदा बाबा, यशोदा और सभी बुजुर्ग भी वहां थे और सभी ग्वाल बाल वहां थे। और यह लीला भी इसी मास में संपन्न हुई। तो हमारा प्रयास रहा हमने जो भी साधना की, दीपदान किया और श्रवण, कीर्तन किया या ब्रजमंडल गए या अपने परिक्रमा की या परिक्रमा को देखा सुना। उसके पीछे का उद्देश्य यही था कि हम चलो हम भी भक्त बनते हैं कृष्ण के। और रागानुगा भक्ति भी है। हमने एक नया शब्द कह दिया, नया तो नहीं है। इसके साथ फिर व्याख्या भी हो जाती है। हम लोग रागानुगा भक्ति राग - अनुग या रागात्मिका भक्ति की साधना करते हैं। मतलब ब्रज के किसी भक्तों को जो आदर्श है उनका। उनके उदाहरण को ध्यान में रखते हुए हम भी उनके जैसे भक्ति करने का अभ्यास करते हैं। साख्य रस है तो भगवान के सखा उनको हम आदर्श मानते हैं। और वात्सल्य रस के लिए नंद बाबा यशोदा, विशेष रुप से यशोदा मैया की जय। उनका हम स्मरण करते हैं, करते रहे। और माधुर्य रस के लिए रम्या काचिद उपासना वर्गे न या कल्पित फिर राधा और गोपियां वह हमारे आदर्श उदाहरण समक्ष होते हैं। इस प्रकार इस महीने में सभी प्रकार की भक्ति के सभी प्रकार या रस या संबंध कहो उसे प्राप्त करने का, अर्जन करने का हमारा प्रयास रहा। ऐसा ही प्रयास आपने भी किया तो अभिनंदन। और फिर आप अपना आनंद व्यक्त कर सकते हो। आपका स्वागत है बोलने के लिए। विशेष रुप से हम मंदिरों के भक्तों से अधिकारियों से सुनना चाहेंगे। हरे कृष्ण।

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