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अभ्यासेन तु कौन्तेय आज हमारे साथ अतिथी वक्ता हैं : परम पुज्य भक्तिमार्ग स्वामी महाराज परम पुज्य भक्तिमार्ग स्वामी महाराज : हरे कृष्ण ! क्या आप मुझे सुन पा रहे हैं ? दिन का यह सबसे महत्वपूर्ण समय हैं जब हम सभी एक साथ बैठकर भगवान कृष्ण का संग लाभ लेते हैं। इस समय हम भगवान के साथ संपर्क करते हैं, इसीलिए यह समय पुरे दिन का सबसे महत्वपूर्ण समय हैं। इस समय हमें अत्यंत सावधान रहना चाहिए। सावधान रहना अत्यन्त कठिन कार्य हैं परन्तु हमें इसके लिए प्रयास अवश्य करना चाहिए। प्रभुपाद बताते हैं कि वैष्णव कौन हैं ? जो प्रयास करते हैं , वह वैष्णव हैं। यदि हम प्रयास करना ही बन्द कर देंगे तो हम बहुत बड़ी मुसीबत में हो सकते हैं। हम अनेक जन्मों तक इन मुसीबतों में रह सकते हैं। इसलिए हमें अभी इसी समय जप करना चाहिए। यह जप का समय अत्यन्त पवित्र तथा कृपा प्राप्त करने का समय हैं। कृपया इस समय का आनन्द लीजिए। मैं भी इसके लिए प्रयास करूँगा। मैं आप सभी का संग प्राप्त करके अत्यन्त प्रसन्न हूँ। मैं आप सभी को इस कांफ्रेंस के माध्यम से देख सकता हूँ तथा इस कांफ्रेंस के माध्यम से हम हमारे आध्यात्मिक जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पहलु - श्रवणं तथा कीर्तनं का अभ्यास करते हैं। मैं आप सभी का संग प्राप्त करके अत्यंत प्रसन्न हूँ। आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद। फ्रेंच और कनाडा में इसे : मर्सी बेओकूप , अर्थात आप सभी का बहुत बहुत ध्यानवाद कहते हैं। हमें हमारे होंठों के ऊपरी तथा निचले भाग से तथा जिव्हा के माध्यम से , पुरे हृदय के साथ जप करना चाहिए। एक बार पुनः आपके संग के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद। हरिबोल ! जय ! आप सदैव चमकते रहें ! हरे कृष्ण ! गुरु महाराज आज हमारे साथ ३६५ प्रतियोगी जप कर रहे हैं। परम पूज्य भक्तिमार्ग स्वामी महाराज आज के इस सत्र के लिए विशेष प्रतियोगी हैं। महाराज को हमारे साथ जप करते हुए देखकर हमें अत्यंत प्रसन्नता तथा हर्ष हो रहा हैं। उन्होंने कुछ समय पहले आप सभी को संबोधित किया , आप में से कुछ भक्त उस समय तक इस कांफ्रेंस में नहीं जुड़े थे , उन्होंने लगभग ४० मिनट पहले हमें सम्बोधित किया। उनका सम्बोधन आधारभूत तथा मुलभूत था , वे आप सभी को ध्यानपूर्वक जप करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। ध्यानपूर्वक जप कीजिए। वे बता रहे थे कि ध्यानपूर्वक जप करना इतना आसान नहीं हैं तथा यह एक सच्चाई भी हैं। उन्होंने कहा कि हमें इसके लिए हमें प्रयास करना चाहिए। यदि आप प्रयास नहीं करेंगे तो अब मुसीबत में होंगे। अतः महाराज ने अपने सम्बोधन में जो कुछ भी कहा वह सत्य हैं। जब अर्जुन ने पूछा कि मन को शांत करना अत्यंत कठिन हैं अतः भगवान कृष्ण ने भी इसके उत्तर में उनसे यही कहा। चञ्चलम ही मनः कृष्ण, प्रमाथि बलवदृढ़म। तस्याहं निग्रहं मन्ये , वायोरिव सुदुष्करम।। (भगवद गीता ६.३४) हे कृष्ण ! चूँकि मन चंचल , उच्छृंखल , हठीला तथा अत्यंत बलवान हैं , अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता हैं। मन को वश में करना अत्यंत कठिन हैं। यह अत्यंत हठीला हैं। कई बार हम देखते हैं कि बच्चे बहुत हठीले होते हैं उसी प्रकार मन भी बहुत हठीला हैं। " वायोरिव सुदुष्करम " - मन को वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन हैं। कृष्ण केवल अर्जुन से ही सहानुभूति नहीं रखते हैं अपितु वे हम सभी से भी सहानुभूति रखते हैं। यह केवल अर्जुन का मन नहीं था, जो वश में नहीं हैं , क्या यह हम सभी के मन की हालत नहीं हैं ? क्योंकि यह मन हैं ! यह मन ही हैं जो वश में नहीं होता हैं। यह सभी के लिए समान स्थिति में ही हैं। यह इस जगत का एक अंग हैं अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि यह हमारे शरीर का एक अंग हैं। यह अत्यन्त शुक्ष्म हैं। यह एक धातु हैं। भुमिरापो अनलो वायुः , खं मनो बुद्धिरेव च। अहंकार इतीयं मे, भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।। (भगवद गीता ७.४) पृथ्वी , जल , अग्नि , वायु, आकाश , मन , बुद्धि तथा अहंकार - ये आठ प्रकार से विभक्त मेरी भिन्ना (अपरा) प्रकृतियाँ हैं। इस प्रकार यह एक प्रकार की प्रकृति हैं। भिन्न का अर्थ हैं - भगवान से पृथक। सभी के मन उन्ही सर्जक द्वारा बनाये गए हैं। यहाँ अमेरिकी मन , भारतीय मन तथा नॉएडा मन जैसे अलग अलग बात नहीं हैं। मन , मन ही होता हैं। देश तथा परिस्थिति के अनुसार इसके अनुभव तथा संस्कृति में भेद हो सकता हैं परन्तु वास्तव में तो यह मन ही हैं , जो स्वभाव से ही चंचल हैं। अतः कृष्ण भी इसके लिए दृढ संस्तुति करते हैं। असंशयं महाबाहो , मनो दुर्निग्रहं चलम। अभ्यासेन तु कौन्तेय , वैराग्येण च गुह्यते।। (भगवद गीता ६.३५) भगवान कृष्ण ने कहा : हे महाबाहु कुन्तीपुत्र ! निस्संदेह चंचल मन को वश में करना अत्यंत कठिन हैं , किन्तु उपयुक्त अभ्यास द्वारा तथा विरक्ति द्वारा ऐसा सम्भव हैं। भक्तिमार्ग महाराज ने भी ऐसा ही कहा हैं। कृष्ण ने भी कहा हैं तथा महाराज ने भी उसे ही दोहराया हैं - निरंतर प्रयास करते रहिए। किसी ने प्रभुपाद से पुछा कि मन को किस प्रकार नियंत्रण में कर सकते हैं ? इसके उत्तर में उन्होंने कहा , " केवल मन की बात मत सुनिए , हरिनाम का श्रवण कीजिए। मन की बात मत सुनिए। " यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलम अस्थिरम। ततस्ततो नियम्येतत आत्मन्येव वशं नयेत।। (भगवद गीता ६.२६) मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो , मनुष्य को चाहिए कि उसे वहां से खींचे और अपने वश में लाए। यह परामर्श कृष्ण ने भगवद गीता में दिया हैं। यदि आप जप योगी अथवा भक्ति योगी बनना चाहते हैं तो आपको भगवद गीता का छठां अध्याय अवश्य पढ़ना चाहिए। कृष्ण ने यह ज्ञान हम सभी के साथ साझा किया हैं। मन को भगवान पर लगाने तथा वश में करने के लिए कुछ कृष्ण ने कुछ युक्तियाँ बताई हैं। उन्होंने इस अध्याय में मन की प्रकृति के विषय में भी बताया हैं। उद्धरेतात्मना आत्मानम नात्मानमवसादयेत। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।। (भगवद गीता ६.५) मनुष्य को चाहिए कि अपने मन की सहायता से अपना उद्धार करे और अपने को नीचे न गिरने दे। यह मन बद्धजीव का मित्र भी हैं तथा शत्रु भी मन आपका मित्र तथा शत्रु हैं। इस श्लोक में कृष्ण ने सबसे पहले उद्धरेतात्मना आत्मानम कहा जिसका अर्थ हैं हमें स्वयं को ऊपर उठाना हैं। उद्दरेद का अर्थ हैं - मुक्ति। आत्मनामननं - यहाँ दो आत्माओं का वर्णन हुआ हैं। एक आत्मा हैं मन तथा दूसरी आत्मा हैं - बुद्धि। बुद्धि , जो कि हमारा ही अंश हैं , के माध्यम से हम इसे ऊपर उठा सकते हैं। बुद्धि की सहायता से हम मन को ऊपर उठा सकते हैं। इन्द्रियाणि पराण्याहु इन्द्रियेभ्य: परं मनः। मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धे: परतस्तु सः।। (भगवद गीता ३.४२) कर्मेन्द्रियाँ जड़ पदार्थों की अपेक्षा श्रेष्ठ हैं , मन इन्द्रियों से बढ़कर हैं , बुद्धि मन से भी उच्च हैं और वह (आत्मा) बुद्धि से भी बढ़कर हैं। बुद्धि मन से भी श्रेष्ठ हैं। अतः बुद्धि की सहायता से हमें मन को ऊपर उठाना हैं तथा इसे मुक्त करना हैं। मन विचार करता हैं , अनुभव करता हैं , तथा उद्यत रहता हैं। अतः बुद्धि की सहायता से हमें व्यर्थ के विचारों से मुक्त होना होगा। कई विचार व्यर्थ के होते हैं। बुद्धि के सहयोग से हमें इन मायावी, भ्रामक , तथा अस्थायी विचारों को बाहर फेंकना होगा जिससे हमारे इन्द्रियों की शुद्धि हो सके। जब मन इन्द्रिय विषयों की ओर जाता हैं तो कृष्ण उसे उद्धरेतात्मना आत्मानम कहते हैं। आपको अपने मन को ऊपर उठाना हैं। आत्मैव हय आत्मनो बन्धुर अतः मन , आत्मैव - आत्मा इव , आत्मनो बन्धुर ' का अर्थ हैं कि मन आत्मा का मित्र हैं। मन , आत्मा का मित्र हो सकता हैं तथा मन हमारा रिपु अथवा शत्रु भी हो सकता हैं। हमें हमारे मन को परिवर्तित करना होगा। हमें हमारे इस शत्रु मन को अपना मित्र बनाना होगा। जो आवश्यकता में काम आए वही हमारा वास्तविक मित्र हैं। हमें कृष्ण की आवश्यकता हैं। यदि हम कृष्ण के विषय में चिंतन करें तो वही मन हमारा वास्तविक मित्र हैं। अतः जहाँ भी मन जाता हैं : यतो यतो निश्चलति मनश्चचञ्चलम अस्थिरम। ततस्ततो नियम्येतत आत्मन्येव वशं नयेत।। (भगवद गीता ६.२६) .... वहां से हमें हमारे मन को पुनः लाना चाहिए। आत्मनी एव वशम नयेत , आत्मनि का अर्थ हैं स्वयं, जिसे हमें परम भगवान पर टिकाना चाहिए। यह एक अभ्यास हैं : अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते। अतः हमें वैराग्य, उदासीन, अनासक्ति तथा उदास होना होगा। हमें उस अनासक्ति को उत्पन्न करना होगा। इधर उधर का कुछ समझना हमारे लिए उपयोगी नहीं हैं। न च श्रेयो अनुपश्यामि हत्वा स्वजनमाहवे। न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।। (भगवद गीता १.३१) यहाँ अर्जुन कहते हैं कि मुझे अपने ही स्वजनों का वध करने में कोई सुख नहीं दिखता हैं। यहाँ श्रेयस तथा प्रेयस दोनों का वर्णन हैं। हमें श्रेयस अर्थात लम्बे समय तक टिकना हैं। लम्बे समय तक रहने में मेरा क्या लाभ हैं हमें इसके विषय में सोचना चाहिए। अल्पकालीन अथवा अस्थायी क्या हैं ? बुद्धि की सहायता से हमें श्रेयस तथा प्रेयस को समझना चाहिए। इस प्रकार हमें इसे सुलझाना चाहिए। मैं कुछ समय पहले बता रहा था कि माया की बात मत सुनिए, मन की बात भी मत सुनिए , केवल कृष्ण की बात सुनिए , केवल कृष्ण के विषय में सुनिए तथा सोचिए। अतः हमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। का जप करते समय हमें कृष्ण के विषय में श्रवण तथा चिंतन करना चाहिए। हमें केवल एक ही विषय पर चिन्तन करना चाहिए , और वह हैं कृष्ण। मिश्रण मत कीजिए। ध्यानपूर्वक जप कीजिए तथा उसका ध्यानपूर्वक श्रवण भी कीजिए। ध्यानपूर्वक जप करना कठिन कार्य हैं परन्तु हमें इसका अभ्यास करना चाहिए अतः निरन्तर प्रयास करते रहिए। इसीलिए हमें जप करने का यह सौभाग्य प्राप्त हुआ हैं। प्रतिदिन सुबह हमारी यह मीटिंग होती हैं जिसमें हम जप करते हैं। आज इसमें कुछ त्रुटियां हो सकती हैं परन्तु इसे छोड़िये मत। असफलता , सफलता की सीढ़ी हैं। हम क्यों तथा किस प्रकार आज असफल हुए इससे हम एक सबक सीखते हैं। जिस पर हमें चिंतन करके उससे उबरना होता हैं। हमें असफ़लताओं से पाठ पढ़कर उस पर उचित प्रकार से कार्यान्वन करते हुए ऊपर उठना चाहिए। हमें ध्यानपूर्वक जप के लिए प्रयास करना चाहिए। कृष्ण हमें सफल बनाना चाहते हैं। कृष्ण कृपा श्रीमुर्ति भी हमें सफल बनाना चाहते हैं। हमारे आचार्य भी चाहते हैं कि हम सफल बने। वे हमारे सदैव हमारे साथ हैं। वे सभी हमारे शुभ-चिंतक , मित्र तथा दार्शनिक हैं। वे हमारे पथ प्रदर्शक हैं। भगवान के प्रतिनिधि इसी प्रकार की इच्छा करते हैं। हमें आप सभी से बहुत अधिक उम्मीद हैं, अतः कभी भी छोड़िये मत। " जब तक हम हमारे लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेते तब तक हमें रुकना नहीं चाहिए। " हमारा लक्ष्य गोलोक हैं। हमें पुनः अपने घर भगवद्धाम जाना हैं जहाँ हम नित्य भगवान कृष्ण के साथ रह सकें। जब हम कृष्ण की ओर १ कदम चलते हैं तो कृष्ण हमारी ओर १०० कदम , १००० कदम चलते हैं। प्रतिदिन हम भगवान के और अधिक समीप जाते हैं परन्तु उसके लिए प्रयास होना चाहिए , अभ्यास होना अत्यंत आवश्यक हैं। इस सन्देश के साथ मैं अपनी वाणी को यहीं विराम देता हूँ। आज इस्कॉन नॉएडा में अत्यंत बड़ा दिन हैं। आज मुझे भागवतम पर कक्षा देनी हैं। तत्पश्चात भक्तिमार्ग महाराज द्वारा नाट्य - प्रस्तुति होगी जिसका शीर्षक हैं " रानी का रहस्य " . शाम को हम ग्रेटर नॉएडा में बेस को स्थानांतरित करेंगे। अतः यह इसे यहीं विराम देते हैं। हरे कृष्ण !

English

HH. Bhaktimarga Swami Maharaja Hare Krishna! Can you hear me? This is a very special time of the day when we associate with Krsna. It’s communication time with him. That being said, it’s a very important time of the day. We should try to be attentive. It's very difficult to be attentive, but we try to be attentive. Prabhupada explained what a Vaisnava is. It is somebody who tries. If we give up trying, then we are in big trouble. We will be in trouble for so many lifetimes. Now we have to chant right here. This chanting is a very sacred, very blessed time. Please enjoy these moments. I will try to. I am so happy to have your association. Seeing your faces and trying to make good of this most sacred aspect of our devotional life - namely sravanam kirtanam. I am happy to be in your association. Thank you very much. That's how we say in French in Canada - Merci beaucoup. Chant with the upper and lower lips and your tongue, throw your heart out there. Thank you for your company. Haribol! Jay! May you shine. Hare Krishna! Guru Maharaja Today we had 365 participants. HH Bhaktimarga Swami Maharaja was also a special participant today. We seem to be excited and enlivened to see Maharaja chanting with us. He kindly addressed you all, but he did this earlier. Some of you were not there as he spoke 40 minutes ago. But his message was basic and foundational. He was encouraging all of you to chant with attention. CHANT WITH ATTENTION. He said it's not easy to chant attentively and it's a fact. Then he said to keep trying. If you don't try you will be in trouble. So all that Maharaja briefly spoke was nothing but the truth. Keep trying. Lord Krsna also said that when Arjun said it’s very difficult to control the mind. cancalam hi manah krsna pramathi balavad drdham tasyaham nigraham manye vayor iva su-duskaram ( BG. 6.34) For the mind is restless, turbulent, obstinate and very strong, O Krsna, and to subdue it is, it seems to me, more difficult than controlling the wind. The mind is very difficult to control. It's very obstinate. Children sometimes are very obstinate, so the mind is like that. vayor iva su-duskaram - It's more difficult to control the mind than controlling the wind. Krsna was sympathetic not only to Arjuna, but he is sympathetic to all of us. It was not just Arjun's mind which was difficult to control. Isn't that everyones mind? Because it is the mind! The mind is the mind. It is common in all of us. It is one of the elements of this world or what this body is made up of. It's a subtle element. This is a dhatu. bhūmir āpo ’nalo vāyuḥ khaṁ mano buddhir eva ca ahaṅkāra itīyaṁ me bhinnā prakṛtir aṣṭadhā (BG 7.4) Earth, water, fire, air, ether, mind, intelligence and false ego – all together these eight constitute My separated material energies. So it's one of the prakritis. bhinna is separated from the Lord. All minds are created by the same creator. There is no such thing as an American mind, Indian mind or Noida mind. The mind is the mind. There may be some difference of flavours, culture according to different countries, but basically it's a mind, which is cancala in nature. So Krsna's stronger recommendation was: asamsayam maha-baho mano durnigraham calam abhyasena tu kaunteya vairagyena ca grhyate ( BG. 6.35) Lord Sri Krsna said: O mighty-armed son of Kunti, it is undoubtedly very difficult to curb the restless mind, but it is possible by suitable practice and by detachment. That's what Bhaktimarga Maharaja also said. Krsna said and Maharaja repeated it - keep trying and practicing. Someone asked Prabhupada how to control the mind? He said. ‘Just don't listen to the mind.’ So don't listen to the mind , listen to the holy name, hear the holy name. Don't hear the mind. yato yato niscalati manas cancalam asthiram tatas tato niyamyaitad atmany eva vasam nayet ( BG. 6.26) From wherever the mind wanders due to its flickering and unsteady nature, one must certainly withdraw it and bring it back under the control of the Self. This advice Krsna gave in Bhagavat-Gita. The sixth chapter of Bhagavad-Gita is useful if you wish to be japa yogis or bhakti-yogis. Krsna has shared the knowledge with all of us. In order to control the mind or concentrate the mind on Krsna, the Lord has given the tips. He has also has described the nature of the mind. uddhared atmanatmanam natmanam avasadayet atmaiva hy atmano bandhur atmaiva ripur atmanaḥ (BG. 6.5) One must deliver himself with the help of his mind, and not degrade himself. The mind is the friend of the conditioned soul, and his enemy as well. Mind could be your friend or could be your enemy. The first thing that Krsna said in this statement is uddhared atmanatmanam You have to lift yourself. Uddhared - liberation. atmanatmanam - here two atmas are mentioned. One atma is mind and another atma is intelligence. With the help of the intelligence which is part of the our selves we lift the mind. Intelligence lifts the mind. indriyani parany ahur indriyebhyah param manah manasas tu para buddhir yo buddheh paratas tu sah (BG. 3.42) The working senses are superior to dull matter; mind is higher than the senses; intelligence is still higher than the mind; and he [the soul] is even higher than the intelligence. Intelligence is superior to the mind. So with the help of intelligence we have to lift the mind, liberate our minds. The mind is thinking, feeling and willing. So with intelligence we have to get rid of nonsense thoughts. Some thoughts are nonsensical. With the help of intelligence we have to throw out those mayavi, illusory, temporary thoughts and plans for purification of the senses. When the mind goes to the objects of the senses, Krsna says uddhared atmanatmanam. You have to lift your mind. atmaiva hy atmano bandhur so the mind, atmaiva - atma eva, atmano bandhur’ means the mind is certainly a friend of the soul. The mind could be friend of the soul or the mind could be also ripu - enemy. We have to change, transform the mind. We have to make an enemical mind friendly. Friend in need is friend indeed. We need Krsna. The mind could help us to think of Krsna then that mind is a friend. So wherever mind goes … yato yato niscalati manas cancalam asthiram tatas tato niyamyaitad atmany eva vasam nayet ( BG. 6.26) … from there you drag the mind back. atmani eva vasham nayet. Atmani means the self. Fix it on the supreme self. This is a practice. abhyasena tu kaunteya vairagyena ca grhyate ( BG. 6.35) Developing vairagya,disinterest, detachment or becoming udas Not interested. Arouse that disinterest. Understand this or that is not useful to me. na ca sreyo 'nupasyami hatva sva-janam ahave na kankṣe vijayam krsna na ca rajyam sukhani ca (BG. 1.31) Arjuna said that killing his own people will not give him happiness. There is sreyas and preyas. We have to be fixed on sreyas or long term. What is good for me in the long term. What is just a short term or temporary. With the help of intelligence we have to understand what is sreyas and preyas. Accordingly sort this out. I was saying earlier, don't listen to Maya , don't listen to the mind, listen to Krsna. Hear and think of Krsna. So while chanting HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAM HARE RAM RAM RAM HARE HARE Hear and think of Krsna . Just think of one thing that is KRSNA. Don't mix. Hear attentively. Chant attentively. Attentive chanting is difficult, but we have to practice, so keep trying. That's why we have the opportunity of chanting. We have a morning meeting. Chant . Some failure today, but don't give up. Failure is the stepping stone of success. We learn lessons from how and why we failed today. Rectify. Improve in a proactive manner and learn lessons from failures. Try for attentive successful chanting. Krsna wants us to be successful. His Divine Grace wants us to be successful. Our acaryas want us to be successful. Our spiritual master wants us to be successful. They are behind us, with us.They are our well wishers, friends and philosophers. They are our guides. The Lord’s representatives are like that. We have every hope. So don't give it up. “Stop not till the goal is reached”. Goloka is our goal. Going back home, residing with Krsna in our home. We take one step and Krsna takes 100 steps, 1000 steps towards us. Everyday we are getting closer, but endeavour has to be there, abhyas has to be there. With that message I will stop here. We have big day in ISKCON Noida today. I have to give Bhagavatam class. Then Bhaktimarga Maharaja's drama is there entitled “ Queen's Secret”. In the evening we have Greater Noida relocation. So we stop now. Hare Krishna!.

Russian

Джапа сессия 16.03.2019 'ABHYASEN TU KAUNTEYA' Сегодня у нас есть приглашенный спикер, Его Святейшество Бхактимарга Свами Махарадж. Е.С. Бхактимарга Свами Махарадж Харе Кришна! Вы меня слышите? Это очень особенное время дня, когда мы общаемся с Кришной. Время общения с ним. Как говорится, это очень важное время дня. Мы должны стараться быть внимательными. Быть внимательным очень сложно, но мы стараемся быть внимательными. Прабхупада объяснил, что такое вайшнав. Это тот, кто пытается. Если мы оставим попытки, у нас будут большие трудности. Мы проведем в беспокойстве много жизней. Мы должны воспевать прямо здесь и сейчас. Это воспевание очень священное, очень благословенное время. Пожалуйста, наслаждайтесь этими моментами. Я тоже попробую. Я так счастлив находиться в вашем обществе. Видеть ваши лица и пытаться улучшить этот самый священный аспект нашей духовной практики, а именно шраванам киртанам. Я счастлив быть в вашем обществе. Большое спасибо. Вот как мы говорим по-французски в Канаде - Merci Beaucoup. Воспевайте губами и языком, оставьте там свое сердце. Спасибо за вашу компанию. Харибол! Джай! Сияйте. Харе Кришна! Гуру Махарадж Сегодня у нас было 365 участников. Его Святейшество Бхактимарга Свами Махарадж был сегодня особенным участником. Мы, похоже, взволнованы и воодушевлены, когда Махараджа воспевает вместе с нами. Он любезно обратился ко всем вам, но сделал это раньше. Некоторых из вас небыло здесь, когда он говорил 40 минут назад. Но его проповедь была базовой и основополагающей. Он поощрял всех вас воспевать внимательно. ВОСПЕВАТЬ ВНИМАТЕЛЬНО!. Он сказал, что нелегко воспевать внимательно, и это факт. Затем он сказал, чтобы мы продолжили попытки. Если вы оставите попытки, у вас будут проблемы. Итак,во всем, что кратко сказал Махарадж, не было ничего кроме правды. Продолжай пытаться. Когда Арджуна сказал, что очень трудно контролировать ум, Господь Кришна ответил чанчалам хи манах кршна праматхи балавад дрдхам тасйахам ниграхам манйе вайор ива су-душкарам (BG. 6.34) Ум так силен и упрям, что порой берет верх над разумом, хотя по идее должен подчиняться ему. В повседневной жизни человеку приходится преодолевать множество препятствий, и ему, безусловно, очень трудно держать ум в повиновении. Обыкновенный человек может пытаться одинаково относиться к друзьям и врагам, но в конечном счете у него ничего не получится, поскольку обуздать ум труднее, чем сдержать ураганный ветер. Ум очень трудно контролировать. Он очень упрям. Дети иногда очень упрямы, и ум таков. вайор ива су-душкарам - Управлять умом сложнее, чем контролировать ветер. Кришна сочувствовал не только Арджуне, но он сочувствует всем нам. Не только Арджуне трудно было контролировать свой ум. Разве нам легче контролировать свой ум? Потому что это ум! ум есть ум. Это характерно для всех нас. Это один из элементов этого мира или то, из чего состоит это тело. Это тонкий элемент. Это дхату. бхумир апо ’нало вайух̣ кхам мано буддхир эва ча аханкара итийам ме бхинна пракртир аштадха (БГ 7.4) Земля, вода, огонь, воздух, эфир, ум, разум и ложное эго — эти восемь элементов составляют Мою отделенную материальную энергию. Так что это одина из пракртих — энергия. бхинна — отделенная от Господа. Все умы созданы одним и тем же создателем. Нет такой вещи, как американский ум, индийский ум или ум из Нойды. Ум есть ум. Может быть некоторая разница вкусов, культуры в разных странах, но в основном это ум, который по своей природе чан̃чалам — неустойчивый. Итак, более важная рекомендация Кришны: шри-бхагаван увача асамшайам маха-бахо мано дурниграхам чалам абхйасена ту каунтейа ваирагйен̣а ча грхйате (BG. 6.35) Господь Шри Кришна сказал: О могучерукий сын Кунти, обуздать беспокойный ум, конечно же, чрезвычайно трудно. Однако это можно сделать с помощью определенной практики и отказа от мирских удовольствий. Это то, что сказал Бхактимарга Махарадж. Кришна сказал, и Махарадж повторил это - продолжайте пытаться практиковать. Кто-то спросил Прабхупаду, как контролировать ум? Он сказал. «Просто не слушай ум». Поэтому не слушайте ум, слушайте Святое Имя, услышьте Святое Имя. Не слушайте ум. йато йато нишчалати манаш чанчалам астхирам татас тато нийамйаитад атманй эва вашам найет (BG. 6.26) Куда бы ни устремлялся ум, изменчивый и беспокойный по природе, йог всегда должен возвращать его под власть своего истинного «я». Этот совет Кришна дал в Бхагават-Гите. Шестая глава Бхагават-Гиты полезна, если вы хотите быть джапа-йогом или бхакти-йогом. Кришна поделился знаниями со всеми нами. Чтобы контролировать ум или сосредоточить ум на Кришне, Господь дал советы. Он также описал природу ума. уддхаред атманатманам натманам авасадайет атмаива хй атмано бандхур атмаива рипур атманах (BG. 6.5) С помощью ума человек должен освободиться из материального плена, а не деградировать, опускаясь в низшие формы жизни. Ум может быть и другом обусловленной души, и ее врагом. Ум может быть твоим другом или твоим врагом. Первое, что сказал Кришна в этом утверждении, это уддхаред атманатманам. Вы должны подняться. Уддхаред - освобождение. атманатманам - здесь упоминаются две атмы. Одна атма - это ум, а другая - разум. С помощью разума, который является частью нас самих, мы поднимаем ум. Разум поднимает ум. индрийани паранй ахур индрийебхйах парам манах манасас ту пара буддхир йо буддхех паратас ту сах (БГ 3.42) Органы чувств выше неодушевленной материи, ум выше чувств, разум выше ума, а над разумом стоит она [душа]. Разум выше ума. Поэтому с помощью разума мы должны поднять ум, освободить наш ум. Ум думает, чувствует и желает. Поэтому с помощью разума мы должны избавиться от бессмысленных мыслей. Некоторые мысли бессмысленны. С помощью разума мы должны отбросить эти mayavi, иллюзорные, временные мысли и планы по очищению чувств. Когда ум обращается к объектам чувств, Кришна говорит уддхаред атманатманам. Вы должны поднять свой разум. атмаива хй атмано бандхур, поэтому ум, атмаива - атма эва, атмано бандхур 'означает, что ум, несомненно, является другом души. Ум может быть другом души, или ум может быть также рипур- врагом. Мы должны измениться, преобразовать ум. Мы должны сделать враждебный ум дружелюбным. Друг в беде действительно друг. Нам нужен Кришна. Ум может помочь нам думать о Кришне, тогда этот ум - друг. Так что куда бы ни отправился ум ... йато йато нишчалати манаш чанчалам астхирам татас тато нийамйаитад атманй эва вашам найет (BG. 6.26) Куда бы ни устремлялся ум, изменчивый и беспокойный по природе, йог всегда должен возвращать его под власть своего истинного «я». ... оттуда ты возвращаешь ум обратно. атманй эва вашам найет. Атмани означает в свое «я». Закрепитесь на истинном «Я». Это практика. абхйасена ту каунтейа ваирагйен̣а ча грхйате (BG. 6.35) Развивать вайрагью, незаинтересованность, отрешенность или становиться удас - не интересующийся. Пробудите эту незаинтересованность. Понять то или иное безуспешно, плохо для меня. на ча шрейо ’нупашйами хатва сва-джанам ахаве на канкше виджайам кр̣шн̣а на ча раджйам сукхани ча (БГ 1.31) Я не понимаю, какое благо я получу, убив в этом сражении своих сородичей. Ни победа, ни царство, ни счастье, доставшиеся такой ценой, не нужны мне, о Кришна. Арджуна сказал, что убийство его собственного народа не принесет ему счастья. Есть шрейас и прейас. Мы должны быть зафиксированы на шреяс или на длительный срок. Что хорошо для меня в долгосрочной перспективе. Что является просто краткосрочным или временным. С помощью разума мы должны понять, что такое шрейас и прейас. Соответственно разобраться в этом. Я говорил ранее, не слушайте Майю, не слушайте ум, слушайте Кришну. Слушайте и думайте о Кришне. Так что во время воспевания HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAM HARE RAM RAM RAM HARE HARE ..слушайте и думайте о Кришне. Просто думайте о Кришне. Не смешивайте. Слушайте внимательно. Воспевайте внимательно. Воспевать внимательно - сложно, но мы должны практиковать, поэтому продолжайте пытаться. Для этого у нас есть возможность воспевать каждое утро, каждый день. Воспевайте. Даже если что-то не получилось сегодня не сдавайтесь. Неудача - это ступенька к успеху. Мы извлекаем уроки из того, как и почему мы потерпели неудачу сегодня. Устраните. Улучшайте пробуйте снова, и извлекайте уроки из неудач. Попробуйте быть внимательным для успешного воспевания. Кришна хочет, чтобы мы были успешными. Его Божественная Милость хочет, чтобы мы были успешными. Наши Ачарьи хотят, чтобы мы были успешными. Наш Духовный Учитель хочет, чтобы мы были успешными. Они позади нас, с нами. Это наши доброжелатели, друзья и философы. Они наши гиды. Представители Господа. У нас у всех есть надежда. Так что не сдавайтсь. «Не останавливайся, пока цель не будет достигнута». Голока - наша цель. Вернуться домой, жить с Кришной в нашем доме. Мы делаем один шаг, а Кришна делает 100 шагов, 1000 шагов к нам. Каждый день мы приближаемся, но у нас должно быть стремление, абхьяс должен быть. Я остановлюсь здесь. У нас сегодня большой день в ИСККОН Нойде. Я должен дать класс Бхагаватам. Затем будет показана драма Бхактимарги Махараджа называется «Секрет королевы». Вечером у нас переезд Большую Нойду. Итак, мы остановимся сейчас. Харе Кришна!