Hindi

हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 5 फरवरी 2021 ठीक है, आप कितने हो? 813 आज का स्कोर कह सकते हो। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। तो आप सब कैसे हो? शुभ प्रभात। प्रातः काल अच्छी है तपोदिव्यनाम (ज़ूम पर एक भक्त को संबोधित करते हुए गुरु महाराज कह रहे हैं) आप को जप चर्चा को सुनना चाहिए । यहां कोई गौर निताई का अभिषेक भी कर रहे हैं यह बात अच्छी है। अहमदाबाद में गौर निताई का अभिषेक हो रहा है, इसलिए मुझे स्मरण भी हुआ वैसे भी भूला तो मैं नहीं था। कल ही हम लोचन दास ठाकुर तिथि महोत्सव की जय। कल हमने यह महोत्सव मनाया। हरि हरि। चैतन्य महाप्रभु के साथ ही वे अवतार लिए थे, भक्त भी अवतार लेते हैं अपने भक्तों को साथ में लेकर आते हैं भगवान। जब भगवान अवतरित होते हैं अपने धाम से और यह धाम भी गौरांग महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु की बात हम लोग करते हैं तो वे स्वर्ग से आते हैं यहां पर? स्वर्ग से यहां उतरते हैं नीचे? नहीं स्वर्ग में नहीं रहते हैं भगवान, तो क्या फिर गौर निताई वैकुंठ में रहते हैं? वे वैकुंठ में भी नहीं रहते या जो सर्वोपरि वैकुंठ है और उसके ऊपर और कुछ नहीं है ऐसा वैकुंठ जिसे गोलोक कहते हैं। जहां के निवासी हैं गौरांग और नित्यानंद प्रभु की जय। गोलोक के भी दो विभाग हैं एक है वृंदावन और दूसरा है जिसे श्वेतदीप कहते हैं, वृंदावन में तो एक राधा और एक कृष्ण और कृष्ण और राधा। लेकिन नवद्वीप में श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नही अन्य वहां पर भी यह गोलोक की बात चल रही है। गोलोक में नवद्वीप है (श्वेतद्वीप है) वहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहते हैं। केवल रहते ही नहीं उनका सारा जीवन और शिक्षाएं, वहां पर सब सदा के लिए चलता रहता है और फिर वहां से श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ब्रह्मा के एक दिन में एक बार अवतरित होते हैं और अवतार तो बारंबार संभवामि युगे युगे हर युग में भगवान अवतार लेते हैं। किंतु अवतारी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो ब्रह्मा के एक दिन में एक ही बार प्रकट होते हैं। वैसे पहले श्रीकृष्ण प्रकट होते हैं ब्रह्मा के एक दिन में एक बार। जैसे 5000 वर्ष पूर्व श्री कृष्ण प्रकट हुए द्वापर युग के अंत में और कुछ 450 वर्ष बीत गए फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं प्रकट हुए। श्रीकृष्ण अवतारी हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी अवतारी हैं अवतार नहीं हैं। यह ज्ञान की बातें तो शाश्वत हैं, किंतु गौड़िय वैष्णव, गौडिय शास्त्र, गौड़िय वाङ्गमय इसको स्पष्ट करता है। यह दुनिया तो अवतारी को अवतार कहती है विष्णु भी अवतार, कृष्ण भी अवतार और फिर चैतन्य महाप्रभु तो पता ही नहीं है। वह हैं कि नहीं या हैं तो वे कैसे हैं? क्या है? क्या कभी वह प्रकट भी होते हैं? शुन्य ज्ञान और जानकारी (इनफाॅरमेशन), ट्रान्सफाॅरमेशन तो भूल ही जाओ इनफॉरमेशन ही नहीं तो ट्रांसफॉरमेशन कैसे होगा? श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु 500 वर्ष पूर्व प्रकट हुए। मुझे यह कहना था वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु अवतार लेते हैं और वह अकेले नहीं आते कभी। भगवान अकेले नहीं आते। जैसे कोई राजा होता है तो राजा अकेला नहीं जाता। राजा के साथ फिर कुछ प्रजा भी जा सकती है। मंत्री जाते हैं, सचिव जाते हैं, अंगरक्षक जाते हैं, रानी भी जा सकती है वैसे और ऐसे श्रील प्रभुपाद समझाते हैं जैसे राजा के साथ फिर राजा का सब पॅराफरनेलिया और उनके सारे परिकर साथ में जाते हैं। वैसे भगवान भी जब प्रकट होते हैं तब वह भी अपने पूरे धाम को भी लेकर आते हैं और वहां के सारे धाम वासियों को भी साथ लेकर आते हैं या फिर यह भी समझ है या सत्य है ही कि वृंदावन नवद्वीप भी शाश्वत है ऊपर भी है दिव्यलोक में। यहां लौकिक जगत में भी उस वृंदावन का, उस नवद्वीप मायापुर का विस्तार है और फिर वह एक दूसरे से अलग नहीं है एक ही है। गोलोकेर वैभव लीला करीला प्रकाश तो गोलोक की वैभव लीलाएं श्रीकृष्ण ने गोकुल में प्रकाशित की । गोलोक और गोकुल दोनों जगह एक ही साथ उनका अस्तित्व है। वैसे ही नवद्वीप या श्वेतद्वीप जो गोलोक में है और इस ब्रह्मांड में है, वैसे इस पृथ्वी पर है ऐसा हम लोग कहते हैं। लेकिन इस पृथ्वी पर नहीं है वह अलग ही स्थिति या उसका स्थान है वृंदावन का कहो या मायापुर का कहो। कहेंगे मायापुर नवद्वीप बंगाल में है तो अपराध हुआ। क्योंकि एक समय जब प्रलय होगा तो बंगाल नहीं रहेगा, यूपी नहीं रहेगी लेकिन वृंदावन रहेगा, मायापुर रहेगा या अयोध्या रहेगी। यह धाम शाश्वत है भगवान अपने स्वधाम गोलोक नाम्नि निज धाम्नि तलैव तस्य गोलोक नामक गोलोक नाम्नि मतलब गोलोक नामक अपने धाम से फिर गोकुलधाम में श्री कृष्ण रूप में प्रकट होते हैं और उसी गोलोक नाम्नि उसी गोलोक के नवद्वीप से फिर यहा वाला इस ब्रह्मांड में जो नवद्वीप है वहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट होते हैं। फिर अपने परिकरों के साथ से वहां पर प्रकट हो जाते हैं। असंख्य परिवार हैं और उसमें लोचन दास ठाकुर एक हुए जिनका तिरोभाव तिथि हम कल मना रहे थे। कल हमने सुना उन्होंने चैतन्य मंगल नामक ग्रंथ की रचना की, चैतन्य मंगल की जय। हरि हरि। हमारा जीवन मंगलमय होगा। जब आप ट्रेन से जाते हो तो उसमें लिखा हुआ होता है कि आपकी यात्रा मंगलमय हो। रेल से कभी सफर किया है? या शायद रेल में सफरिंग होता है इसलिए सफर नहीं किया होगा। सफर, सफर समझते हो? सफर मतलब यात्रा ट्रिप। लेकिन फिर सफर (suffer) भी है अंग्रेजी शब्द है हिंदी शब्द है सफर तो कभी-कभी सफर में वी सफर (we suffer) तो फिर हम पुनः सफर नहीं करना चाहते हैं। वहां पर बहुत सफरिंग(suffering) है। वैसे भी.... तो रेलवे में हम यह सुनते रहते हैं आपकी यात्रा मंगलमय हो आप सुने हो सुनो और फिर हमारा जीवन भी एक यात्रा है from womb to tomb अंग्रेजी में कहते हैं। मां के गर्भ से लेकर कहां तक tomb शमशान भूमी तक कहो या समाधि में कहो अगर हमको समाधि में समाधिस्त किया जाएगा। तो womb to tomb . हमारी यात्रा होती है। यात्रा को मंगलमय बनाईए, क्या करना होगा? फिर चैतन्य मंगल का श्रवण गान करना होगा। उसके साथ और भी ग्रंथ है चैतन्य चरित्रामृत से भी आपकी यात्रा मंगलमय होगी। चैतन्य भागवत है और कौन सा याद है आपको आपने लिख कर रखा या याद रखा और कौन-कौन से ग्रंथ मुरारी गुप्त भी एक ग्रंथ लिखे उसका नाम क्या है? पद्मावती आपको याद है (जूम पर भक्त से गुरु महाराज पूछ रहे हैं) श्री चैतन्य चरित और भक्ति रत्नाकर भी है। तो यह सारे ग्रंथ के अध्ययन सेे, श्रवण से हमारा सारा जीवन और जीवन की यात्रा मंगलमय होगी। आचार्यों ने जो चैतन्य महाप्रभु के साथ प्रकट हुए थे, उन्होंने ऐसे ग्रंथों की रचना की उस रचना करने वालों में से एक व्यास देव भी रहे। चैतन्य भागवतेर व्यास वृंदावन दास चैतन्य भागवत ग्रंथ के रचयिता साक्षात श्री व्यास देव वृंदावन दास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए। लेकिन थे वे व्यास देव, कृष्ण प्रकट हुए फिर व्यास देव भी प्रकट हुए। श्रीकृष्ण प्रकट हुए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के नाम से और श्रील व्यास देव प्रकट हुए वृंदावन दास ठाकुर केेे नाम से। व्यास देव जब वो थे श्री कृष्ण लीला के व्यास। वैदिक वाङ्गमय की या श्रीमद् भागवत के रचयिता। किंतु वही व्यास जब वृंदावन दास बने 500 वर्ष पूर्व तो उन्होंने चैतन्य भागवत की रचना की श्रीमद् भागवत, चैतन्य भागवत दोनों के रचयिता एक ही हैं, श्रील व्यास देव। यह सब ग्रंथ इसीलिए लिखे हैं ताकि हम एक दिन पढ़ेंगे यह कृपा उन संतों की, उन भक्तोंं की महाप्रभुु के परीकरों कि है और यह कृपा वैसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की है, तो यह कृृृपा प्रसाद यह सारे ग्रंथ। आपको भूख लगी है? आप का मतलब आपकी आत्मा को भूख लगी है कि नहीं? हां हां आनंदप्रदा माता जी की आत्मा को तो भूख लगी है दर्शन दो घनश्याम मेरी अखियां प्यासी रे आप कैसे हैं आत्मा को जब लगती है भूख और प्यास तब हम को खिलाना चाहिए आत्मा को खिलाना चाहिए आत्मा को पिलाना चाहिए। यह चैतन्य लीला को पिलाइए, चैतन्य चरितामृत का पान कीजिए, चैतन्य भागवत का पान कीजिए, चैतन्य मंगल का पान कीजिए। हरि हरि। जहर को नहीं पीना हरि हरि। कृष्ण चैतन्य। मनुष्य जनम पाइया, राधाकृष्ण ना भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु मनुष्य जन्म तो मिला लेकिन राधा कृष्ण का भजन नहीं किया, श्रीमद् भागवत, चैतन्य भागवत का पान नहीं किया तो क्या किया? जानिया शुनिया.. हां सुनो ( ज़ूम पर सोते हुए भक्तों को जगाते हुए महाराज कह रहे हैं) जीव जागो जीव जागो गौराचांद बोले आपका मन शट ऑफ स्विच शॉर्ट सर्किट हो गया। कुछ सो रहे हैं तो कैसे पान होगा? हम तो कह रहे हैं पान करो, पान करो, खान-पान और आप हो कि अपने मुख बंद कर रहे हो, अपने कान बंद कर रहे हो। वैसे कई बार हम पदयात्रा में जाते हैं या नगर कीर्तन में जाते हैं तो कहते हैं बोलिए हरे कृष्ण। पता है लोग क्या करते हैं उसमें से कुछ लोग क्या करते हैं जब हम कहते हैं कि हरे कृष्ण बोलो तो उनका मुख अगर खुला भी था हरे कृष्ण बोलो बोलते ही बंद हो जाता है, कि गलती से हमसे हमारे मुख से यह हरे कृष्ण ना निकले सावधान। तो हमें अपना मुख, अपना कान और सारी इंद्रियां वैसे खोल के रख सकते हैं। ताकि क्या हो जाए ऋषिकेन ऋषिकेश सेवनम भक्तिर उच्चते हम भक्ति करेंगे सारे इंद्रियों के साथ हम भक्ति करेंगे। हम सारे इंद्रियों का उपयोग करेंगे भगवान के इंद्रियों की सेवा में, भगवान के विग्रहो की सेवा में हम अपने इंद्रियों का उपयोग करेंगे। श्रवण से शुरू करेंगे कान से या सेवोन्मुखे ही जिव्हादो ऐसे भी कहा है भक्ति कहां से प्रारंभ होती है सेवोन्मुखे ही जिव्हादो जिव्ह-आदो शुरुआत कहां से करो जिव्हा से शुरुआत करो। श्रीकृष्ण नामादि न भवेद् ग्राह्यंमिन्द्रियैः आप जब पढ़ोगे तो क्या समझ में आएगा, क्या कहा है। श्रीकृष्ण नाम आदि कहने वाले लिखने वालों को और कुछ कहना होता है। लिखना होता है। लेकिन इतना ही लिखेंगे बस श्रीकृष्ण नामादि, आदि मतलब इत्यादि। श्रीकृष्ण नामादि न भवेद् ग्राह्यंमिन्द्रियैः हमारे जो इंद्रियों कलुषित दूषित इंद्रिय या अपूर्ण इंद्रिय नभवेत ग्राह्यं इंद्रियात भगवान को हम नहीं जान सकते। श्रीकृष्ण नाम आदि मतलब श्रीकृष्ण के नाम के साथ नाम, रूप, लीला, गुण, धाम यह सब कहने के बजाए फिर श्रीकृष्ण नाम आदि कह दिया। यह समझने की कोशिश करो। हरिबोल ऐसा भी कुछ सीखो। आप जब पढ़ोगे तो यह कुछ नुस्खे हैं हम दे रहे हैं। श्रीकृष्ण नामादि नभवेत ग्राह्यं इंद्रिय श्रीकृष्ण नामादि यहां श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद मतलब श्रीवास और यह भक्त वह भक्त श्रीवास आदि। वैसे नाम आदि मतलब जो समूह है, नाम, रूप, गुण, लीला, धाम यह सब समझ में नहीं आएगा आपको मगर आप शुरुआत कर सकते हो। कहां से शुरुआत करोगे? सेवोन्मुखे हि जिव्हादौ जिव्हासे शुरुआत करो, कहां है। स्वयंमेेेव स्फुरत्यदः फिर स्वयं भगवान प्रकट होंगे। जिव्हासे शुरू करो। जिव्हा से क्या करो? जिव्हा के दो काम है एक खाने का और दूसरा बोलने का। प्रभुुपाद कहा करते थे नाचो गाओ खाओ। कृष्णभावना इतनी सरल है करो नाचो गाओ खाओ। मनुुप्रिया पुलकित हो गई, वह तो होगा ही। अब क्या करो नाचो गाओ खाओ। जिव्हा सेे शुरुआत करो, भक्ति की। और फिर ऐसा प्रचार भी हो सकता है कैसेेे प्रचार करना, कैसे औरों को समझाना। जिव्हासे क्या क्या करोगे पहले, आधी पोटोबा नंतर विठोबा ऐसे मराठी लोग कहते हैं। आधी पोटोबा यह पेट जो है वह भी एक बा है। आधी पोटोबा नंतर विठोबा। खाली पेट क्या नहींं होता, भगवान का भजन खाली पेट नहीं होता, ऐसा कुछ लोग कहते हैं लेकिन पेट इतना भर देते हैं की फिर नींद ही आती है। भजन भोजन के बिना नहीं होता है कहते कहते भोजन पा लेते हैं। सेई अन्नामृत धन पाओ फिर... हरि हरि अच्छा पहले हम कीर्तन करें भजन करें या फिर प्रभुपाद कहते हैं नाचो गाओ और फिर खाओ, ऐसा कुछ करते रहो आप गाते रहो। नाचते रहो। फिर कथा सुनो सुनाओ बैठो और फिर चैतन्य मंगल चैतन्य भागवत और फिर हो जाए महाप्रसादे गोविंदे। वैसे कोई भी आध्यात्मिक कार्यक्रम तब तक पूरा नहींं होता जब तक प्रसाद वितरण ना हो। फिर यहां आपका हक है। हक सेे मांगो प्रसाद कहां है। फिर यहां आपका हक है, कुछ मेहनत करो भगवान के लिए, कथा करो कीर्तन करो फिर भूख भी लगेगी फिर खाओ और फिर यहां हजम भी होगा। बैठेेेे रहोगे, खाते रहोगे तो हजम नहीं होगा, इसका पचन नहीं होगा। नाचो दौड़ो। हरि हरि, श्री श्री गौर निताई की जय! वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानन्दौ सहदितौ। गौडोदये पुष्पवन्तौ चित्रो शन्दो तमो नुदो।। अनुवाद: मैं सूर्य तथा चंद्रमा के समान श्रीकृष्ण चैतन्य तथा भगवान नित्यानंद दोनों को सादर नमस्कार करता हूं। वह गौड़ के क्षितिज पर अज्ञान के अंधकार को दूर करने तथा आश्चर्यजनक रूप से सब को आशीर्वाद प्रदान करने के लिए एक साथ उदय हुए हैं। यह प्रार्थना आप याद रखो याद करो। चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु के चरणारविंद चरण कमलों में उनके चरण आपके मेरे जैसे नहीं है। कमल है, कमल सदृश्य हैं, शाश्वत हैं। हरि हरि, इस प्रार्थना को भी सीखो कंठस्थ करो। चैतन्य चरित्रामृत में आपको मिलेगा। वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानन्दौ सहदितौ। गौडोदये पुष्पवन्तौ चित्रो शन्दो तमो नुदो।। हम इतना भी धीरे-धीरे नहीं बोलेंगे आप लिख रहे हो। इस प्रणाम मंत्र को सची माताजी लिख लेना चाह रही है। ढूंढो या लिख लो आप के हिसाब से करो। कुछ प्रश्न या विचार हो तो आप कह सकते हो। नहीं है तो, हरे कृष्ण महामंत्र का जप करो और सुखी हो जाओ। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे।। पद्मामाली प्रभु: किसी को कोई प्रश्न या विचार है तो वह कह सकते हैं इस प्रवचन से संबंधित। वैसे कोई प्रश्न तो नहीं होता है गुरु महाराज ने आज जप चर्चा में आदेश उपदेश बताएं हैं, फिर भी किसी का कोई प्रश्न है तो आप पूछ सकते हैं। गुरु महाराज: श्रवणादि शुद्ध चित्त करय उदय श्रवण आदि कह दिया श्रवणादि शुद्ध चित्त करय उदय हमारा चित्त शुद्ध होता है, क्या-क्या करने से? श्रवण आदि। श्रवण आदि मतलब क्या, श्रवण करना, कीर्तन करना। अभी पढ़ोगे कहने वाले क्या क्या कहते हैं। उनके मन में क्या-क्या होता है। श्रवण, कीर्तनम, विष्णु स्मरणम, पादसेवनम, अर्चनम, दास्यम, साख्यम यह जो नवविधा भक्ति है इसका उल्लेख करना होता है। लेकिन क्या होता है, श्रवणादि शुद्ध चित्ते करय उदय ऐसे आदि का उपयोग होता है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे।। वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानन्दौ सहदितौ गौडोदये पुष्पवन्तौ चित्रो शन्दो तमो नुदो वन्दे मतलब प्रणाम होता है। लेकिन इस श्लोक में जो वंदे कहा है वह यह है अहम वंदे। मैं वंदना करता हूं। यह भी समझ में आना चाहिए वंदे लिखा है, लेकिन उसमें अहम छिपा हुआ है। अहम मतलब क्या मैं वंदना करता हूं। अहम वन्दे में वंदना करता हूं। इसमें लिखा है, किसने किसकी वंदना करनी है। वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य... आप कईयों के घर में भगवान आकर विराजमान हैं गौर निताई के रूप में। उनको प्रार्थना कर सकते हो। प्रणाम कर सकते हैं इस मंत्र के उच्चारण के साथ। श्रीश्री गौर निताई की जय! इतना तो कह दिया इतना तो आता है। यह एक प्रणाम मंत्र ही है, वंदना है। और उसको तो समझ भी सकते हैं। क्या क्या कहा जा रहा है। वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानन्दौ सहदितौ मैं प्रणाम करता हूं। वंदना करता हूं, श्रीकृष्ण चैतन्य वंदे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की वंदना करता हूं और नित्यानन्दौ सहदितौ जो नित्यानंद के साथ उदित हुए और प्रकट हुए। अतः मैं दोनों की वंदना करता हूं। गौरांग महाप्रभु की और नित्यानंद प्रभु की. वन्दे श्रीकृष्ण चैतन्य नित्यानन्दौ सहदितौ गौडोदये कहां प्रकट हुए, गौडोदये गौड़ देश में बंगाल को गौड़ देश कहां है। पंचगौड़ हैैैै और पंच द्रविड़ भी है। दक्षिण भारत को पंचद्रविड़ कहते हैं। वहां पांच द्रविड़ है। उत्तर भारत मैंं पंचगौड़ है। उसमें से एक गौड़ है, गौड बंगाल। गौडोदये मतलब उस गौड़ देश में बंगाल में। चित्रो शन्दो तमो नुदो चित्रो मतलब यह बड़े अद्भुत हैं। अद्भुत है यह चित्र विचित्र है। शन्दो शम मतलब शांति। शम मतलब एक धातु है संस्कृत में, इसका अर्थ है शांति। शांति से उसका संबंध है। शमः दमः तपः शौचं भगवतगीता में श्रीकृष्ण ने कहा है। शमः दमः तपः शौचं शम से होती है शांति। तो शम जो कहा है दो शम शांति दो देना। और दौ कहा क्यों कहा, शांति देने वाले दो हैं, इसलिए शब्द दौ कहा है। चित्रों भी है और जो हे रामः रामौ द्विवचन में औ जाता है। चित्रो शन्दो तमो नुदो मतलब अंधकार। यह दोनों अंधकार से मुक्त करते हैं सारे जगत को। सारे जगत को शांति देने वाले शन्दो और यह संसार का अंधकार नष्ट करने वाले यह तमो नुदो। ऐसे है चित्र विचित्र अद्भुत गौर निताई की जय! अच्छा है, अगर हम यह प्रार्थना गाते हैं, करते हैं। या पढ़ कर समझ सकते हैं और फिर भाव के साथ प्रार्थना भावपूर्ण होगी। अर्थ समझकर अर्थपूर्ण भावार्थ समझो. हरि हरि, कोई प्रश्न तो नहीं है। हरे कृष्ण।

English

5 February 2021 Make your life journey pleasant by studying scriptures Hare Krishna! We have devotees chanting from 814 locations. How are you all? Such a beautiful morning, now we will listen to the talk. I can see in Ahmedabad that Gaura Nitai Abhishek is taking place in a devotee’s home. Yesterday we celebrated the disappearance day of Lochana Dasa Thakur, He was a close associate of Lord Caitanya. The associates of the Lord descend with the Lord to this earth, does the Lord descended from heaven? No, then did they descended from Vaikuntha? No, they descend from Goloka Vrindavan, the highest planet of the universes. There are two divisions of Goloka, one is Vrindavan and the other one is Svetadvipa, Navadvipa. In Goloka Vrindavan Lord Kṛṣṇa and Srimati Radharani perform Their pastimes and in Goloka Navadvipa, Sri Krsna Caitanya (sri krsna caitanya radha krsna nahi anya) resides with His associates and carries out His pastimes. From that Goloka Navadvipa, the avatari Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu appears once in a day of Brahma on this planet, just like Lord Kṛṣṇa appeared once in a day of Brahma 5000 years ago at the end of Dvapara yuga. 4500 years later Lord Caitanya Mahaprabhu appeared. These two personalities are the Lord. They are not expansions of the Lord. This knowledge is not given by Gaudiya literature, it is eternal. The world says Kṛṣṇa is an incarnation of Lord Viṣṇu which is the wrong information. How can there be a question of transformation? There is zero knowledge about the Supreme Lord. Sri Krsna Caitanya Mahaprabhu appears, but He never comes alone. Just like a king is never alone, He is always accompanied by queens, ministers, soldiers, bodyguards. This is what Srila Prabhupada makes us understand, when the Lord appears, He brings His entire paraphernalia, dhama along with Him. Vrindavan and Navadvipa are non different eternally in Goloka and we see their extension here on this planet, golokera vaibhava lila karila prakash. The pastimes of Goloka Vrindavan were manifested in Gokula by Lord Kṛṣṇa. Goloka and Gokula exist eternally. Similarly Navadvipa exists in Goloka and its extension is manifested here on this earth planet, but it is an offence to say that Navadvipa is in Bengal or Vrindavan is in Uttar Pradesh, because the holy places are transcendental and will remain even after the annihilation of the world as they are eternal. Goloka-nāmni nija-dhāmni tale ca tasya devi-mahesha-hari-dhamasu teshu teshu te te prabhava-nichaya vihitash cha yena govindam adi-purusham tam aham bhajami Translation : Lowest of all is located Devi-dhama [mundane world], next above it is Mahesa-dhama [abode of Mahesa]; above Mahesa-dhama is placed Hari-dhama [abode of Hari] and above them all is located Krishna's own realm named Goloka. I adore the primeval Lord Govinda, who has allotted their respective authorities to the rulers of those graded realms. (Brahma Samhita text 16) Lord Kṛṣṇa appears from Goloka Vrindavan to Gokul dhama and Lord Caitanya along with His associates appear from Goloka Navadvipa to Svetadvipa, the earthly planet. Lord Kṛṣṇa's associates are numerous and one of the members is Lochana Dasa Thakur whose disappearance day was celebrated yesterday. He compiled the Vedic literature known as Caitanya Mangal. May your journey be pleasant! We wish people travelling by train well. We wish them well because we don't want them to suffer during the journey. Similarly life is also a journey from 'womb to tomb'. From the mother's womb to wherever we will be cremated after leaving the body. To make our life journey pleasant we must read and listen Caitanya Mangal, Caitanya-caritamrita and Caitanya Bhagavata. Murari Gupta also wrote a book, Caitanya Carita and Bhakti Ratnakar. By reading these Vedic literatures our life journey will be pleasant. One of the authors was Srila Vyasa deva who incarnated as Vrindavan Dasa Thakur and wrote the literature known as Caitanya Bhagavata. When Sri Kṛṣṇa appeared as Lord Caitanya Mahaprabhu, Vyasa deva also appeared as Vrindavan Dasa Thakur 500 years ago. The compiler of Srimad Bhagavatam and Caitanya Bhagavata is one. These scriptures are the mercy on us and we should aspire so that we may read them someday. Are you hungry? 'You' means your soul. There is a song. "Please show me a glimpse of Your beautiful form Oh Ghanshyama! My eyes are longing to see You O Lord!" Drink the nectar of Caitanya Bhagavata, Caitanya Mangal! Don't drink poison. hari hari! bifale janama gonainu manushya-janama paiya, radha-krishna na bhajiya, janiya suniya visha khainu Translation : 0 Lord Hari, I have spent my life uselessly. Having obtained a human birth and having not worshiped Radha and Krishna, I have knowingly drunk poison. (Prayer to One’s Beloved Lord (from Prarthana) Text 1) jiv jago, jiv jago, gauracanda bole kota nidra jao maya-pisacira kole Translation : Lord Gauranga is calling, "Wake up, sleeping souls! Wake up, sleeping souls! How long will you sleep in the lap of the witch called Maya? (Jiva Jago Jiva Jago Text 1) How will you drink the nectar if your mouth and ears are closed. On Padayatra when people are asked to chant the holy name, they immediately close their mouths tightly so that by mistake also their mouth will not utter the Lord's name. So unfortunate! sarvopādhi-vinirmuktaṁ tat-paratvena nirmalam hṛṣīkeṇa hṛṣīkeśa- sevanaṁ bhaktir ucyate Translation : ‘Bhakti, or devotional service, means engaging all our senses in the service of the Lord, the Supreme Personality of Godhead, the master of all the senses. When the spirit soul renders service unto the Supreme, there are two side effects. One is freed from all material designations, and one’s senses are purified simply by being employed in the service of the Lord.’ (CC Madhya 19.170) We will engage all our senses in the service of the Supreme Lord Kṛṣṇa starting from ears. ataḥ śrī-kṛṣṇa-nāmādi na bhaved grāhyam indriyaiḥ sevonmukhe hi jihvādau svayam eva sphuraty adaḥ Translation :  ‘Therefore material senses cannot appreciate Kṛṣṇa’s holy name, form, qualities and pastimes. When a conditioned soul is awakened to Kṛṣṇa consciousness and renders service by using his tongue to chant the Lord’s holy name and taste the remnants of the Lord’s food, the tongue is purified, and one gradually comes to understand who Kṛṣṇa really is.’ (CC Madhya 17.136) Devotional Service begins with the tongue. śrī-kṛṣṇa-nāmādi means Krsna's names, form etc, adi means etcetera like we say in 'srivasa adi'- addressing other devotees. Srila Prabhupada says, sing, dance and eat. The tongue does two jobs. one is eating and the other is speaking. Start your devotion by using the tongue. This way you can start preaching. In Maharashtra there is a proverb 'adhi potoba nantar vithoba', [the belly needs to be fed first in order to perform devotional service.] If you overeat then you might go to sleep, so it's better to do kirtan first, dance and then eat. Read and hear the glories of the Lord Caitanya Mahaprabhu, dance, run and you can have prasada in the end. Work hard for the Lord then you feel hungry and by eating you can digest. Only sitting and eating will not digest the food, get up and run. vande śrī-kṛṣṇa-caitanya- nityāndandau sahoditau gauḍodaye puṣpavantau citrau śandau tamo-nudau Translation : "I offer my respectful obeisances unto Śrī Kṛṣṇa Caitanya and Lord Nityānanda, who are like the sun and moon. They have arisen simultaneously on the horizon of Gauḍa to dissipate the darkness of ignorance and thus wonderfully bestow benediction upon all." (CC Ādi 1.2) Please memorise this prayer to dedicate at the lotus feet of Caitanya Mahaprabhu and Nityanand Prabhu. It's found in Caitanya-caritamrta.

Russian