Hindi

आज हमारे साथ इस कांफ्रेंस में ३१६ प्रतियोगी सम्मिलित हैं। हमारे दो भूवैकुण्ठ बेस हैं एक पुणे में तथा दूसरा पंढरपूर में , तथा आज दोनों बेस से भक्त इस कांफ्रेंस में उपस्थित हैं। भारतीय पदयात्रा के भक्त भी मध्य भारत से हमारे साथ सम्मिलित हैं। वे सदैव मुझसे शिकायत करते रहते थे कि उन्हें मेरा संग नहीं मिलता हैं परन्तु अब इस कांफ्रेंस के माध्यम से लगभग प्रत्येक सुबह वे हमारे साथ जप करते हैं। मुझे ऐसा आभास होता हैं कि वे मेरे साथ हैं तथा मैं उनके साथ हूँ। मैं लगभग २ - ३ वर्षों में केवल १ बार रूस जाता हूँ परन्तु अब उन्हें प्रत्येक दिन मेरा संग प्राप्त हो रहा हैं। रूस तथा यूक्रैन से लगभग ४० भक्त आज हमारे साथ जप कर रहे हैं , अतः निरन्तर जप करते रहिए। " आइए सभी एक साथ जप करें " , यही इस कांफ्रेंस का विषय (थीम )हैं। इसलिए जप करते रहिए
आप में से कई भक्त मुझे लिखते हैं , " महाराज हमें आशीर्वाद दीजिए।" अतः मैं सोच रहा था कि आपको मेरा तथा इतने सारे भक्तों का संग मिल रहा हैं , क्या यह आशीर्वाद नहीं हैं ?हमारे पास सबसे श्रेष्ठ मन्त्र , महा मन्त्र - हरे कृष्ण मन्त्र हैं। क्या यह आशीर्वाद नहीं हैं ?आप और क्या आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं ? ' कृपया हमें आशीर्वाद दीजिए , कृपया हमें आशीर्वाद दीजिए ', आप को पहले से ही इन सभी से आशीर्वाद प्राप्त हो रखा हैं , अतः निरन्तर जप करते रहिए। जब मैं इस कांफ्रेंस में भाग लेता हूँ तो मेरा स्वयं का जप धीरे हो जाता हैं, क्योंकि मुझे आप सभी के दर्शन होते हैं तथा मैं आप पर नज़र रखता हूँ। मैं देखता हूँ कि आप में से कुछ भक्त बहुत अधिक थके हुए हैं अथवा जँभाई ले रहे हैं तब मुझे पूछना पड़ता हैं , " क्या आप थके हुए हैं ? "इस प्रकार जब मैं यह ध्यान देता हूँ कि कौन जप कर रहा हैं और किस प्रकार जप कर रहा हैं तब मेरा स्वयं का जप धीमा होता हैं। इस प्रकार यह मेरी ओर से कुछ त्याग होता हैं परन्तु मैं इसका विचार नहीं करता हूँ। मैं यह सब आपके लाभ के लिए कर रहा हूँ। आपको संग प्रदान करने के लिए तथा आपको जप में प्रोत्साहित करने के लिए मैं ये सब करता हूँ। जैसा कि मैंने आप सभी को बताया जब मैं आप सैकड़ों भक्तों को जप करते हुए देखता हूँ तो मुझे ऐसा आभास होता हैं मानो मैं " विराट - रूप " का दर्शन कर रहा हूँ। जब मैं आप सभी भक्तों के दर्शन कर रहा था तो मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था , " कृष्ण कहाँ हैं ? कृष्ण कहाँ हैं ?" और तभी स्क्रीन पर कृष्ण की तस्वीर प्रकट हो गई।
गुरु महाराज ने आगे कहा , " नहीं यह नहीं , वैकुण्ठ नायक कृष्ण नहीं , ये भी नहीं। जिस प्रकार परीक्षित महाराज अपने आस पास अन्य व्यक्तित्वों को देख रहे थे परन्तु उन्हें वह नहीं मिल रहा था जिसे उन्होंने अपने माता के गर्भ में देखा था, मैं पुनः उनका दर्शन करना चाहता हूँ। वे परीक्षा करके उन्हें हटा रहे थे। नहीं , ये भी नहीं , ये भी नहीं , ये वो नहीं हैं जिनका दर्शन मैंने माता के गर्भ में किया था , उसीप्रकार मैं भी आज सोच रहा था , " कृष्ण कहाँ हैं ?" ये सभी भक्त हैं , यह बहुत अच्छी बात हैं और मैं इससे प्रसन्न हूँ , परन्तु कृष्ण कहाँ हैं ?' उसी क्षण किसी ने अपने पूजा घर तथा विग्रहों के दर्शन करवाना प्रारम्भ किया , ऐसा कदाचित ही होता हैं और वह आज हुआ। तुरन्त ही मैं उनके पूजा घर में था और वहां लड्डू -गोपाल तथा अन्य विग्रहों के दर्शन कर रहा था। मुझे मेरे कृष्ण मिल गए थे जिनको मैं खोज रहा था। तब मुझे यह विचार आया की जिस कृष्ण को मैं तथा आप सभी ढूँढ रहे हैं वह तो जब हम जप करते हैं तब हम सभी के साथ ही हैं।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
अतः मेरा प्रश्न ही आप सभी का भी प्रश्न होना चाहिए , " मैं भक्तों के तो दर्शन कर रहा हूँ , परन्तु कृष्ण कहाँ हैं ? " यह " हरे कृष्ण महामन्त्र " जिसका आप, मैं तथा अन्य सभी भक्त जप कर रहे हैं , वही वास्तव में " कृष्ण" हैं। इस प्रकार कृष्ण हमारे साथ हैं , कृष्ण यही उपस्थित हैं। जैसा कि भगवान ने स्वयं इसकी घोषणा की हैं , " न अहम् वसामी वैकुण्ठे , न च योगिनाम हृदयेषु व , यत्र गायन्ति मदभक्त , तत्र तिष्ठामी नारदः "(नारद मुनि तथा विष्णु भगवान के मध्य संवाद) अर्थात कभी मैं वैकुण्ठ में नहीं रहूँ अथवा योगियों के ह्रदय में भी नहीं रहूँ परन्तु मैं वहां सदैव रहता हूँ जहाँ मेरे भक्त मेरे नामों तथा गुणों का गान करते हैं , अथवा " हरे कृष्ण " का जप करते हैं। अतः हमें यह अनुभव करना चाहिए कि कृष्ण कहाँ हैं ? - हरे कृष्ण हरे कृष्ण ही कृष्ण हैं। आपको कृष्ण की खोज में बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा। ' हरे कृष्ण ' का जप कीजिए तथा उसका श्रवण कीजिए , तत्पश्चात यह अनुभव करने का प्रयास कीजिए कि यह ' हरे कृष्ण ' ही राधा - कृष्ण हैं। अभिनत्वा नाम नामिनो (चैतन्य चरितामृत मध्य लीला - १७.१३३) कि भगवान का नाम तथा स्वयं भगवान अभिन्न हैं , यह जानना ही जप करने का सर्वोच्च फल हैं। हमें यह अवश्य समझना चाहिए कि भगवान के नाम तथा भगवान स्वयं एक ही हैं, यह अचिन्त्य हैं, परन्तु हम यह केवल चिंतन , मनन तथा स्मरण के माध्यम से ही समझ सकते हैं। अतः इस स्मरण , चिंतन तथा मनन और हरे कृष्ण महामन्त्र के जप के द्वारा इस हरिनाम को अपने मन में लाइए। जप का अर्थ हैं मनन करना। पूर्णरूपेण आध्यात्मिक तथा कृष्णमयी चेतना के साथ हमें हमारे मन को आत्मा के साथ संलग्न करना चाहिए, जिससे ' चेतो दर्पण मार्जनम ' (शिक्षाष्टकम श्लोक १ ) होता हैं। मन चेतना का एक हिस्सा हैं। इसके माध्यम से मन , बुद्धि तथा गलत अहंकार का कोई अस्तित्व ही नहीं रहता हैं केवल सनातन वास्तविक अहंकार - "दासो अस्मि " अर्थात मैं एक आध्यात्मिक जीव हूँ , शेष रह जाता हैं। यही वास्तविक चेतना हैं, जो भौतिक बुद्धि तथा मन से परे हैं। ददामि बद्धियोगं तम येन माम उपयान्तिते (भगवद गीता १०.१०) भगवान इस प्रकार हस्तक्षेप करके हमें दिव्य बुद्धि प्रदान करते हैं। सही तरीके से परखने , भेदभाव करने तथा छाँटने के लिए दिव्य मार्ग प्रदान करते हैं। यही मन , बुद्धि तथा अहंकार कृष्ण हैं। तत्पश्चात - मदचित्तः मदगत प्राणः बोधयन्तः परस्परम (भगवद गीता १०.९) होता हैं जिससे हमारा चित्त , चेतना , बुद्धि तथा हम स्वयं भगवान के चरण कमलों में तथा उनके रूप से आकर्षित होते हैं। भगवान के नाम , रूप , गुण तथा लीलाएँ अभिन्न हैं , रूप, गुणों से अभिन्न हैं उसी प्रकार गुण , लीलाओं से अभिन्न हैं आदि आदि। जब चेतो दर्पण मार्जनम होता हैं तब शुद्ध चेतना के द्वारा हम भगवान की साजो सज्जा तथा पार्षदों को एक ही रूप में देख सकते हैं।
हम उस आध्यात्मिक संसार का एक हिस्सा हैं। हम और अधिक नॉएडा या न्यूयॉर्क के नहीं हैं। जैसा कि श्रील प्रभुपाद कहते थे मैं यूरोप में नहीं हूँ , वे सदैव वृन्दावन के 'राधा - दामोदर' के विषय में ही चिंतन करते थे। अतः कृष्ण कहाँ हैं ? इस प्रश्न का सही उत्तर हैं " हरे कृष्ण " महामन्त्र ही कृष्ण हैं। यह पवित्र नाम , हरिनाम ही हरिनाम प्रभु हैं , जो एक व्यक्तित्व हैं।
हमने आप सभी के लिए यह मंच प्रदान किया हैं , जहाँ हम आप सभी को अपनी टिप्पणियाँ , प्रश्न तथा अनुभव लिखने के लिए आमन्त्रित करते हैं जिस पर हम बाद में चर्चा कर सकें। आप में से कई भक्तों को मन्दिर के कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए यह कांफ्रेंस छोड़ कर जाना पड़ता हैं, जैसा कि मैं देख रहा हूँ नागपुर के भक्त खड़े हो रहे हैं। परन्तु चुँकि इस चर्चा का बाद में अनुवाद भी होगा अतः आप इसे बाद में पद सकते हैं तथा इस पर चिंतन कर सकते हैं। अतः निरन्तर जप करते रहिए तथा यह सुनिश्चित कीजिए कि आप प्रत्येक दिन अपनी १६ माला कर रहे हैं। आप कभी भी अधिक मात्रा में जप कर सकते हैं। हम कहते हैं " कीर्तनीय सदा हरी " जिसका अर्थ हैं आप और अधिक मात्रा में जप कीजिए।
हरे कृष्ण …..

English

We had 316 participants today. We have two Bhuvaikuntha BACE's , one in Pune and other in Pandharpur. Devotees from both these places are chanting with us. Padayatra India have joined from somewhere in Central India. They always complain about not getting my association. But now most of the mornings they are chanting with us. I think I am with them and they are with me. I visit Russia once in 2 - 3 years. But now daily they are getting my association. There are around 40 devotees from Russia and Ukraine chanting with us. So continue chanting with us. “ Let's chant together” is the theme of this conference. Keep chanting.
Several of you are writing , “ Maharaj please bless me.” I was thinking, you are getting my association, as well as of so many devotees. Isn't that a blessing? We have the mahamantra, the best mantra, Hare Krishna mahamantra. Isn't that a blessing? What more blessings do you wish to get. ‘Please bless me , please bless me.’ You are already blessed due to all these. So keep chanting. As I participate in this conference, my own chanting slows down. I am taking your darsana, trying to keep an eye on you. I see some of you yawning and very tired. So I have to inquire, ‘ Are you tired?’ As I pay attention to who is chanting and how they are chanting. In this process my chanting kind of slows down. There are some sacrifices for me, but I don't mind. I am doing this for your benefit. To give you association or to give you a boost in your chanting. Also as I said, when I see hundreds of you chanting, this is like a 'Virat-rupa’ - Universal form. So I see you all devotees, but I was wondering ‘Where is Krsna? Where is Krsna?’ and then suddenly Krsna appeared on the screen.
Guru Maharaja responded, ‘ Not this! Vaikuntha-Nayaka is not Krsna. Not this, As King Pariksit was looking at different personalities around him, thinking - Where is that Supreme personality of Godhead whom he saw in the womb of his mother. I want to see him again. He was examining and eliminating Not this! Not this personality whom I had seen. So I was wondering this morning , ‘ Where is Krsna?’ These are devotees, fine, I am happy, but 'Where is Krsna?’ Then suddenly somebody started showing their altar and Deities. This happens rarely and it happened today. Immediately I was at their altar, taking darsana of Laddu Gopal and other Deities. I found my Krsna whom I was looking for. Then I also had thoughts. The Krsna I am looking for and you are also supposed to be looking for is with us, as we as we chant
Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare, Hare Rama Hare Rama Ram Ram Hare Hare.
So my question should also be your question, ‘ I am seeing devotees, that's fine, but where is Krsna? This ‘Hare Krishna Hare Krishna’ , which you are chanting and I am chanting, and everyone of us is chanting is - ‘Krsna’. Krsna is with us. Krsna is here. As he has also promised or declared ,- na aham vasami vaikunthe na ca yoginam hrudayeshu va , yatra gayanti madbhaktaha tatra tisthami naradaha. ( Conversation between Narada and Visnu) Sometimes you may not find me in Vaikuntha or in the hearts of Yogis, but I am certainly there where devotees are chanting my glories or 'Hare Krishna’. So we had to realize, where is Krsna? - Hare Krishna Hare Krishna is Krishna. You don't have to go very far to look for Krsna. Chant 'Hare Krishna’ and hear that. Then try to realize that, this 'Hare Krishna’ is Radha and Krsna. That is the whole exercise of chanting, to realize this abhinnatva -abhinnatvat nam namino. ( CC Madhya 17.133) The name of the Lord and Lord are non different. We have to understand the statement that the Lord and his names are non different. It is acintya(inconceivable) . But through cintan which is also mananam which is also hearing and smaranam (remembrance). So through this
smaranam, cintanam, mananam and chanting of the Hare Krishna mahamantra bring the name to your mind. Japa means mananam. Reach out to the soul in fully spiritualized or Krsnaised state of mind Ceto darpan marjanam ( Siksastakam verse 1) takes place. Mind is part of cetana. Mind, intelligence and false ego remain no more. Only real eternal ego remains, aham dasosmi - I am spirit soul. So this is the cetana. No more mundane mind and no more mundane intelligence. Dadami buddhiyogam tam yen mamupayanti te.( BG. 10.10) Lord gives divine intelligence by intervention. Divine way of discriminating and sorting out. This is Krsna. All this mind, intelligence and ego which we call subtle body. Then - machhitaha madgat pranaha bodhayantaha parasparam ( BG. 10.9) Then that citta or consciousness and intelligence, your self gets glued to the lotus Feet of Lord, the whole form of the Lord. The name, form, pastimes and qualities are non-different. Form is non-different from qualities which are non-different from, pastmes and like that. Paraphernalia and associates all become one entity through purified consciousness as ceto darpana marjanam takes place.
We are part of that spiritual world. We are no more in Noida or New York. As Prabhupada would say I am not in Europe. He was thinking of Radha Damodar in Vrindavan. So ‘Where is Krsna? The answer is ‘Hare Krishna’ is Krsna. The holy name , Harinama is Harinama Prabhu. He is a person.
This is a forum we have provided. We asked you to write your comments, questions, and realizations. and we try to address and have a dialogue. Some of you have to leave early, as temple programs start as I can see Nagpur devotees getting up. But these talks are getting transcribed, so you can always revisit, read and contemplate further. So keep chanting and omplete your 16 rounds every day. You can always chant More. We say kirtaniya sada hari which includes chanting more.
HARE KRISHNA!

Russian

Джапа сессия 20.02.2019 У нас было 316 участников сегодня. У нас есть два Бхувайкунтхи ВАСЕ, один в Пуне и другой в Пандхарпуре. Преданные из обоих мест воспевают вместе с нами. Падаятры Индии присоединились откуда-то из центральной Индии. Они всегда жалуются, что не получают мое общение. Но сейчас большую часть утра они воспевают вместе с нами. Я думаю, что я с ними, и они со мной. Я бываю в России раз в 2 - 3 года. Но теперь они ежедневно получают мое общение. С нами воспевают около 40 преданных из России и Украины. Так что продолжайте воспевать вместе с нами. «Давайте воспевать вместе» - тема этой конференции. Продолжайте воспевать. Некоторые из вас пишут: «Махарадж, пожалуйста, благословите меня». Я думал, что вы получаете мое общение, а также многих преданных. Разве это не благословение? У нас есть махамантра, лучшая мантра, Харе Кришна махамантра. Разве это не благословение? Какие еще благословения вы хотите получить? «Пожалуйста, благословите меня, пожалуйста, благословите меня». Вы уже благословлены всем этим. Так что продолжайте воспевать. Поскольку я участвую в этой конференции, мое собственное воспевание замедляется. Я принимаю вашу даршану, стараюсь следить за вами. Я вижу, некоторые из вас зевают и очень устали. Поэтому я должен спросить: «Вы устали?» Я обращаю внимание на то, кто воспевает и как воспевает. В этом процессе мое воспевание замедляется. Для меня это определенная жертва, но я не против. Я делаю это для вашей пользы. Чтобы дать вам общение или дать вам импульс в воспевании. Также, как я сказал, когда я вижу, как сотни вас воспевают, это похоже на Вират-рупу - Вселенскую форму. Итак, я вижу вас всех преданных, но мне было интересно: «Где Кришна? Где Кришна? », и вдруг на экране появился Кришна. Гуру Махарадж ответил: «Не это! Вайкунтха-наяка это не Кришна. Не так, как царь Парикшит смотрел на других личностей вокруг себя, размышляя: где находится та Верховная Личность Бога, которую он увидел во чреве своей матери? Я хочу увидеть его снова. Он вглядывался и исключал Не это! Не та личность, которую я видел. Поэтому мне было интересно сегодня утром: «Где Кришна?». Это преданные, хорошо, я счастлив, но «Где Кришна?» И вдруг кто-то начал показывать свой алтарь и Божеств. Это случается редко, и это случилось сегодня. Я сразу же был у их алтаря, принимая даршан Ладду Гопала и других Божеств. Я нашел своего Кришну, которого я искал. Тогда у меня тоже были мысли. Кришна, которого я ищу, и которого вы также должны искать, с нами, когда мы повторяем Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе, Харе Рама Харе Рама Рам Рам Харе Харе. Поэтому мой вопрос также должен быть вашим вопросом: «Я встречаюсь с преданными, это нормально, но где Кришна? это «Харе Кришна Харе Кришна», которую вы повторяете, и я повторяю, и каждый из нас повторяет - «Кришна». Кришна с нами. Кришна здесь. Как он и обещал или заявил- na aham vasami vaikunthe na ca yoginam hrudayeshu va , yatra gayanti madbhaktaha tatra tisthami naradaha. (Разговор между Нарадой и Вишну) Иногда вы можете не найти меня на Вайкунтхе или в сердцах йогов, но я определенно там, где преданные воспевают мою славу или «Харе Кришна». Итак, мы должны были понять, где Кришна? Харе Кришна Харе Кришна - это Кришна. Вам не нужно далеко ходить, чтобы искать Кришну. Повторяйте «Харе Кришна» и слушайте это. Затем попытайтесь осознать, что этот «Харе Кришна» - это Радха и Кришна. Это все тренировка воспевания, чтобы осознать эту абхиннатву - ’бхиннатван нама-намино (ЧЧ Мадхья 17.133) Имя Господа и Господь не отличны. Мы должны понимать утверждение, что Господь и его имена не отличаются. Это ачинтья (немыслимо). Но посредством чинтанам, который также является мананам, который также является слушанием и смаранам (помятованием). Так Смаранам, чинтанам, мананам и повторение Харе Кришна Махамантры приносят имя в ваш разум. Джапа означает мананам. Достигнуть души в полностью одухотворенном или Кришнаизированном состоянии ума имеет место Ceto darpan marjanam (стих 1 Шикшастакам). Ум является частью четаны. Не будет больше ума разума и ложного эго. Останется только истинное вечное эго, ахам дашошми - я духовная душа. Итак, это четана. Нет больше мирского ума и мирского разума. дадами буддхи-йогам там йена мам упайанти те (БГ 10.10) Господь вмешивается и дает божественный разум. Божественный способ различать и отбирать. Это Кришна. Все это ум, разум и эго, которые мы называем тонким телом. Затем -мач-читта мад-гата-прана бодхайантах параспарам (БГ10.9) Затем эта читта или сознание и разум - ваше я, приклеиваются к лотосным стопам Господа, ко всей форме Господа. Имя, форма, игры и качества - неотличны. Форма не отличается от качеств, которые не отличаются от игр и так далее. Все атрибуты и спутники становятся единым целым благодаря очищенному сознанию, так как происходит чето дарпана марджанам. Мы являемся частью этого духовного мира. Мы больше не в Нойде или Нью-Йорке. Как сказал бы Прабхупада, я не в Европе. Он думал о Радха Дамодаре во Вриндаване. Итак, где Кришна? Ответ: «Харе Кришна» - это Кришна. Святое имя Харинама - это Харинама Прабху. Это человек. Это форум, который мы предоставили. Мы попросили вас написать ваши комментарии, вопросы и реализации. И мы пытаемся обратиться и вести диалог. Некоторые из вас должны уйти пораньше, так как начинаются храмовые программы, так как я вижу, как встают преданные из Нагпура. Но эти беседы записываются, так что вы всегда можете вернуться, прочитать и обдумать дальше. Так что продолжайте повторять свои 16 кругов каждый день. Вы всегда можете повторять больше. Мы говорим киртания сада хари, что включает повторение большего. ХАРЕ КРИШНА!