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*जप चर्चा* *दिनांक 30 -03 -2022* (गुरुमहाराज द्वारा ) हरे कृष्ण ! *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन त स्मै श्रीगुरुवे नम : ।।* *श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले । स्वयं रूप: कदा मह्यंददाति स्वपदान्न्तिकम् ।।* *वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।* *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामेव एव केवलं।कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिर अन्यथा।।* *नमोः महावदन्याय कृष्ण प्रेम प्रदायते ।कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नामिने गौर-त्विषे नमः ।।* *श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु नित्यानन्द।श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द।।* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* *निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !* धन्यवाद ! आपकी उपस्थिति के लिए वैसे, आप सभी के लिए जो ज़ूम कॉन्फ्रेंस में हमारे साथ जप कर रहे थे, लेकिन वैसे मैं सोच रहा था जो हमारे समक्ष बैठे हैं इस्कॉन सोलापुर भक्त वृंद की जय ! उनका भी मैं स्वागत आभार, उनका भी अभिनंदन ! आप सभी का अभिनंदन, ज़ूम मंदिर में , व्रजधाम इस्कॉन सोलापुर राधा दामोदर मंदिर में जो आज जप कर रहे हैं उन सभी का अभिनंदन, अभिनंदन समझते हो कांग्रेचुलेशन, कुछ लोग अंग्रेजी समझते हैं शायद अंग्रेजी वर्जन वाले समझेंगे अभिनंदन, हम मंगला आरती में पहुंच गए और मैं जानता हूं आप, किसी का घर एक या दो या तीन या चार या पांच या 10 किलोमीटर दूर होते हुए भी आप घर से ही पागल की तरह दौड़ आए, वैसे गोपियां भी दौड़ कर आती थी वैसा ही कुछ भाव, उतना तो नहीं कुछ मेल खाता है, किन्तु यह भगवान देखते हैं हमारे प्रयासों को भगवान देखते हैं। *सततं कीर्तयन्तो मां यतन्तश्र्च दृढव्रताः |नमस्यन्तश्र्च मां भक्तया नित्ययुक्ता उपासते ||* (श्रीमद भगवद्गीता ९.१४ ) अनुवाद-ये महात्मा मेरी महिमा का नित्य कीर्तन करते हुए दृढसंकल्प के साथ प्रयास करते हुए, मुझे नमस्कार करते हुए, भक्तिभाव से निरन्तर मेरी पूजा करते हैं। कृष्ण ने कहा भी है आप कीर्तन करें या जप करें,कब तक ? आप करें सततम् , भगवद्गीता उसमें भी कहा है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने भी कहा ही है "कीर्तनीय सदा हरि" , *तृणादपि सु-नीचेन तरोरिव सहिष्णुना। अमानिना मान-देन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥* 31॥ अनुवाद- “जो अपने आपको घास से भी अधिक तुच्छ मानता है, जो वृक्ष से भी अधिक सहिष्णु है और जो किसी से निजी सम्मान की अपेक्षा नहीं रखता, फिर भी दूसरों को सम्मान देने के लिए सदा तत्पर रहता है, वह सरलता से सदा भगवान् के पवित्र नाम का कीर्तन कर सकता है।" लेकिन श्रीकृष्ण भी कह कर गए कुरुक्षेत्र में, आज हमारी और आल इंडिया पदयात्रा कुरुक्षेत्र में पहुंची है। कुरुक्षेत्र धाम की जय ! अभी हम वहां का दृश्य देख रहे थे। बीच में निताई गौर सुंदर और उनके परिकर ऑल इंडिया पदयात्रा के भक्त वृंद कुरुक्षेत्र पहुंचे, वहां पर कृष्ण ने कहा, “सततं कीर्तयन्तो मां" सदैव मेरा कीर्तन हो, कीर्ति का गान मतलब कीर्तन, कीर्ति का गान कीर्ति का उच्चारण, या गांन ही कीर्तन है। तो सततम् कीर्तन करें और यतन्तश्र्च दृढव्रताः प्रयत्न पूर्वक दृढ़ता के साथ, दृढ़ श्रद्धा के साथ, निश्चय के साथ, आप सतत कीर्तन करो या आपने प्रयास किया जहां पहुंचने के लिए, यही है। यतन्तश्र्च दृढव्रताः देखा जाता है तब फिर देखने वाले एक तो कृष्ण, पहले देखते हैं फिर हमने भी देखा, हमने फिर आपके लिए अभिनंदन की बात की , हम प्रसन्न हैं आपके इस प्रयत्न से हरि हरि ! पहले भगवान देखते हैं बाद में हम देख सकते हैं। भगवान कैसे देखते हैं? चंद्रमा उनकी एक आंख है सूर्य दूसरी, आंखें शशि चंद्रमा, *रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसुर्ययो:। प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु ।।* (श्रीमद भगवद्गीता ७.८) अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! मैं जल का स्वाद हूँ, सूर्य तथा चन्द्रमा का प्रकाश हूँ, वैदिक मन्त्रों में ओंकार हूँ, आकाश में ध्वनि हूँ तथा मनुष्य में सामर्थ्य हूँ | किसने कहा? कृष्ण कहते रहते हैं, लेकिन सुनता कौन है और यदि सुनते हैं तो फिर समझता कौन है कि भगवान क्या कह रहे हैं। प्रभास्मि , "भा" मतलब "प्रकाश: और इसीलिए सूर्य को भास्कर कहते हैं। भा के आगे विसर्ग होता है। विसर्ग समझते हो ? भा और आगे का है। तो वह भास्कर हुआ , प्रकाश करने वाला, प्रकाश देने वाला, सूर्य प्रकाश देता है इसीलिए भास्कर कहते हैं। तो सूर्य पहले देखते हैं भगवान देखते हैं या रात्रि के समय चंद्रमा देखते हैं। चंद्रमा का प्रकाश यदि नहीं है तो हम नहीं देख पाएंगे, सूर्य का प्रकाश नहीं है तो हम नहीं देख पाएंगे। पहले भगवान ही देखते हैं हर चीज को। हर चीज को प्रथम देखने वाले कौन हैं, भगवान हैं। भगवान नहीं देखेंगे तो हम नहीं देख पाएंगे। आपकी आंखें बेकार हैं आंख होते हुए भी, इन आंखों में तो भगवान नहीं दिखाएंगे आपको, आंख होती है प्रकाश डालते हैं, लाइट ऑन दिस एंड देट देख सकते हैं फिर हम देख सकते हैं, नहीं तो अंधेरा है, आंखें तो होती हैं लेकिन क्या देख सकते हो ? इस प्रकार आप लोग निर्भर हो भगवान पर है कि नहीं? यू मस्ट, भगवान पर निर्भर होना ही पड़ता है। जो जानकार है या जो ईमानदार है वही जानता है हरि हरि !मैं सोच तो और भी कुछ रहा था पहली बार ही नहीं बहुत बार सोचा कि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का प्रचार होना चाहिए। अधिक अधिक होना चाहिए वैसे भी लोग राम को जानते हैं कृष्ण को जानते हैं लेकिन चैतन्य महाप्रभु को नहीं जानते और कलयुग में श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को जानना अनिवार्य है। वह कलयुग के कृष्ण हैं। *नमो महा-वदान्याय कृष्ण-प्रेम-प्रदाय ते। कृष्णाय कृष्ण-चैतन्य-नाम्ने गौर-त्विषे नमः ॥* ( चैतन्य चरितामृत मध्य 19. 53) अनुवाद- “हे परम दयालु अवतार! आप स्वयं कृष्ण हैं, जो श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट हुए हैं। आपने श्रीमती राधारानी का गौरवर्ण धारण किया है और आप कृष्ण के शुद्ध प्रेम का उदारता से वितरण कर रहे हैं। हम आपको सादर नमस्कार करते हैं।नमस्कार की बात करते हैं। रूप गोस्वामी प्रभुपाद कि प्रार्थना में भी वे नमस्कार की बात करते हैं। मेरा नमस्कार किसको? कृष्णाय नमः, लेकिन कैसे कृष्ण को ? कृष्णाय कृष्ण चैतन्य नामिने, मैं श्रीकृष्ण चैतन्य नाम के कृष्ण को मेरा नमस्कार, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! यह जमाना यह युग चैतन्य महाप्रभु का युग है और इस युग का धर्म जो है। *कलि-कालेर धर्म-कृष्ण-नाम-सङ्कीर्तन । कृष्ण-शक्ति विना नहे तार प्रवर्तन ॥* (चैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 7.11) अनुवाद-कलियुग में मूलभूत धार्मिक प्रणाली कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन करने की है। कृष्ण द्वारा शक्ति प्राप्त किये बिना संकीर्तन आन्दोलन का प्रसार कोई नहीं कर सकता। इसकी स्थापना करने वाले भी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ही हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को जानना, फिर उनके नाम को जानना है, उनके रूप को जानना है, उनकी लीलाओं को जानना है, उनके परिकरों को जानना है, उनके धाम को जानना है। *श्री गौर मंडला भूमि जेबा जाने चिंतामणि , तार भय ब्रजभूमि बास* (नरोत्तम दास ठाकुर ) जैसा आप देख रहे हो कि पता है कहां का दृश्य है वृंदावन का तो है। वृंदावन में कहां? कुसुम सरोवर की जय ! वृंदावन में प्रवेश करने का प्रवेश द्वार है मायापुर नवदीप , नवदीप के द्वार से वृंदावन पहुंचना होता है, यह विधि है। इसीलिए हम भक्तों को प्रभुपाद ने जो उत्सव दिए या उत्सव प्रिय मानव फिर मनुष्य को उत्सव प्रिय होते हैं। श्रील प्रभुपाद, मायापुर वृंदावन उत्सव की जय ! उसी क्रम से पहले मायापुर में प्रवेश और फिर वृंदावन पहुंच जाओ। गौर मंडल भूमि, जैसे ब्रजमंडल है वैसे, "गौर मंडल भूमि जेवा जाने चिंतामणि" यह गौर मंडल भूमि भी चिंतामणि है जैसे वृंदावन चिंतामणि है। जैसा कि ब्रह्मा जी ने कहा है *चिन्तामणिप्रकरसद्मसु कल्पवृक्ष लक्षावृतेषु सुरभीरभिपालयन्तम्।लक्ष्मीसहस्रशतसम्भ्र सेव्यमानं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।* (ब्रम्ह सहिता 5.29) अनुवाद- मैं आदि पुरुष उन श्रीगोविन्द भगवान् का भजन करता हूँ जो ऐसे गोलोक में कामधेनु गायों का पालन करते हैं जो चिन्तामणि से निर्मित हैं और लाखों कल्पवृक्षों से घिरा है। वहाँ श्रीगोविन्द लक्ष्मीस्वरूपा हजारों गोपांगनाओं द्वारा सेवित होते रहते हैं। वृंदावन चिंतामणि धाम है, मायापुर कुछ कम नहीं है। मायापुर भी चिंतामणि धाम है। ब्रजमंडल भूमि जेबा जाने, जो जानेंगे क्या कैसा है यह मायापुर चिंतामणि धाम, नवदीप मंडल यह मायापुर धाम यह चिंतामणि धाम है, तार भय ब्रजभूमि वास, उसका होगा ब्रजभूमि में प्रवेश और वास, बृजवासी बनेगा, वृंदावन वासी बनेगा, कैसे जानेंगे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को? जैसे मैं जब मायापुर गया था तो मुझे एक ग्रंथ प्राप्त हुआ उसका नाम है ? "मुरारी गुप्तेर कडीचाले" आप पढ़ सकते हो पढ़िए , बंगाली है, आप सीख सकते हो। जैसे श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज ऐसी अपेक्षा रखते थे गौड़ीय वैष्णव अधिकाधिक नॉन बंगाली जो बंगाली नहीं है जो बंगाल में नहीं जन्मे , वे भी पड़ेंगे , पढ़ने से पहले उसको सीखेंगे,भाषा को पढ़ना सीखेगे,ऐसा चाहते थे, किंतु चैतन्य चरितामृत बांग्ला भाषा में है फिर श्रील प्रभुपाद ने कृपा की या उनके गुरु महाराज ने आदेश किया, उसका पालन किया कि तुम पाश्चात्य देशों में जाकर, क्या करो? प्रचार करो। यहां पर भी यह आदेश हो रहा है श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर का आदेश हो रहा है। एक उल्टाडांगा जंक्शन रोड स्थान है जहां पर ही आदेश हुआ, कितने साल पहले 100 साल पहले, इस वर्ष हम लोग सौवी वर्षगांठ, शताब्दी महोत्सव बना रहे हैं। आदेश जो श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को दिया, इस आदेश देने के पीछे भी चैतन्य महाप्रभु ही हैं, नहीं तो मेरा मूल विचार था कि चैतन्य महाप्रभु का प्रचार होना चाहिए। श्रील प्रभुपाद भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर महाराज जी भी वह चाहते थे चैतन्य महाप्रभु का प्रचार होना चाहिए कहां कहां होना चाहिए ,पाश्चात्य देशों में होना चाहिए और सर्वत्र होना चाहिए। *नमस्ते सारस्वते देवे गौर-वाणी-प्रचारिणे निर्विशेष-शून्यवादि-पाश्चात्य-देश-तारिणे ॥* फिर गौर वाणी का प्रचार किया और अंग्रेजी भाषा में प्रचार किया, पहले तो चैतन्य महाप्रभु को जानने वाले अधिकाधिक बंगाली हैं और कुछ गौड़िये ही जानते थे क्योंकि उनकी भाषा में कुछ गौड़ीय वाङ्गमय चैतन्य चरितामृत, चैतन्य भागवत इत्यादि ग्रंथ हैं। प्रभुपाद ने उसको माना और कहा अपने शिष्यों को अब आप क्या करो ? इसका अधिक से अधिक भाषाओं में अनुवाद करो, प्रिंट माय बुक्स एज मेनी एज लैंग्वेज, अंग्रेजी में करो। लॉस एंजेलिस में प्रभुपाद ने कहा, ऐसे नहीं क्या करो ? मेरे ग्रंथों का अनुवाद करो, कौन सी भाषा में जितना अधिक से अधिक संभव है। इसके पीछे भी वही चैतन्य महाप्रभु, ताकि चैतन्य महाप्रभु का प्रचार हो। चैतन्य महाप्रभु का अधिक से अधिक देशों में, खंडों में, देशों में और अलग-अलग भिन्न भिन्न भाषा जानने वाले, भिन्न-भिन्न भाषा जानने वाले लोग भी चैतन्य महाप्रभु को जाने समझे इस उद्देश्य के सारे आदेश भी दिए जा रहे हैं और व्यवस्था या कार्यकलाप भी संपन्न हो रहे हैं। इस्कॉन में होते रहे हैं। श्रील प्रभुपाद और फिर उनके शिष्य भी आगे और उनके भी शिष्य आगे उस कार्य को आगे बढ़ा रहे हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अधिक से अधिक प्रचार होना चाहिए। उनके विषय में चैतन्य चरितामृत कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने लिखा है और वृंदावन दास ठाकुर ने भी लिखा है। क्या लिखा है चैतन्य भागवत में जैसे श्रीमद्भागवत *श्रीकृष्ण और अवतारों की लीला कथा है* भागवत में वैसे भागवत के10 टॉपिक हैं। ईशानू कथा यह टॉपिक है, ईशानू कथा ईश मतलब परमेश्वर परमेश तो जैसे भागवत हैं श्रीकृष्ण, वैसे चैतन्य भागवत भी है। यह दोनों अलग-अलग भागवत हैं एक श्रीमद् भागवत और दूसरा चैतन्य भागवत और फिर आपकी जानकारी के लिए अगर आपको पता नहीं है तो इन दोनों भागवत के रचयिता श्रील व्यास देव ही हैं। व्यास देव् ने श्रीमद भगवतम की रचना की और चैतन्य भागवत के रचयिता भी व्यास देव ही हैं। व्यास देव प्रकट हुए वृंदावन दास ठाकुर के रूप में तो चैतन्य भागवतेर व्यास वृन्दावन दास ऐसे कहा है चैतन्य भागवत के व्यास कौन हैं ? वृंदावन दास ठाकुर, यह जो चैतन्य भागवत चैतन्य चरितामृत चैतन्य मंगल और एक ग्रंथ, इसमें चैतन्य महाप्रभु की जो बाल लीला या किशोर लीला, नवदीप में लीलाएं संपन्न हुई, 24 वर्ष चैतन्य महाप्रभु वहां रहे, नवदीप मायापुर धाम की जय ! जहां आप लोग रहते हो। सोलापुर में अच्छा नहीं लगता ?उधर रहे , क्या चैतन्य महाप्रभु वहां नहीं रहे, चैतन्य महाप्रभु रहते नहीं थे, चलते थे। चलायमान चैतन्य से भरपूर थे। वे अपने संचार भाव का ऐसा आंदोलन, कहीं टिकते तो नहीं थे एक स्थान पर रहते नहीं थे चलाए मान चैतन्य महाप्रभु की जय ! जो 24 वर्षों की लीला है जो नवदीप में संपन्न हुई उसका वर्णन लिखते हैं चैतन्य चरितामृत, चैतन्य मंगल और अन्य ग्रंथों में उसका आधार है। यह मुरारी गुप्त का कड़चा, क्या मतलब डायरी या दयनंदिनी मराठी में कहते हैं। नवद्वीप में ही मायापुर में मुरारी गुप्त हुए चैतन्य महाप्रभु से वह 5 वर्ष अधिक उम्र वाले थे। चैतन्य महाप्रभु से 5 वर्ष पहले पूर्व में प्रकट हुए यह मुरारी गुप्त, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहो या जगन्नाथ मिश्र शचि माता इस परिवार के साथ इनका बड़ा घनिष्ठ संबंध था और खूब आना जाना होता था। मुरारी गुप्त अपने घर से योगपीठ आते थे उन दिनों में श्रीकृष्ण का दर्शन करके आते हैं, किसी मंदिर में जाने की आवश्यकता नहीं थी। उन दिनों में श्रीकृष्ण कहां रहते थे, योग पीठ में रहते थे केवल रहते ही नहीं थे, खेलते थे नाचते थे बहुत नटखट भी थे, बहुत कुछ चलती रही उनकी लीला, मुरारी गुप्त भी कहे चलो दर्शन करके आते हैं। कहां जाएंगे ?वह नीम के पेड़ के नीचे जो कुटिया है जगन्नाथ मिश्र भवन है। *ब्रजेन्द्रनन्दन जेड; शचीसुत हैल सेइ,बलराम हइल निताइ। दीन हीन यतछिल, हरिनामे उद्धारिल,तार साक्षी जगाइ माधाइ।।* नरोत्तम दास ठाकुर इस कलियुग में व्रजेन्द्रनन्दन कृष्ण शचीमाता के पुत्र के रूप में अवतरित हुए हैं और बलरामजी श्रीनित्यानन्द प्रभु के रूप में। हरिनाम ने सभी पतित जीवों का उद्धार कर दिया है और जगाइ-मधाइ नामक दो पापी इसके प्रमाण हैं। नंदनंदन आजकल कौन बने हैं शचीनंदन, जय शचीनंदन गौर हरि, शचि माता प्राणधन गौर हरी, नदिया बिहारी गौर हरी, युग अवतारी गौर हरी, गौर हरी गौर हरी। मुरारी गुप्त वहां जाकर चैतन्य महाप्रभु को देखते थे चैतन्य महाप्रभु के सारे कार्यकलापों को देखते थे। भगवान का प्रत्यक्ष दर्शन कर रहे हैं हमको तो जरा परोक्ष में दर्शन करना पड़ता है। परोक्ष और कई हैं भगवान उनका हम स्मरण करते हैं। *नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम ‘साध्य’ कभु नय। श्रवणादि-शुद्ध-चित्ते करये उदय ।।* (चैतन्य चरितामृत मध्य 22.107) अनुवाद- “कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।" श्रवण आदि करते हैं, श्रवण कीर्तन आदि तो भगवान का दर्शन होता है। भगवान उदित होते हैं प्रेम जागृत होता है परोक्ष में, हमको तो परोक्ष में लेकिन मुरारी गुप्त के लिए भगवान अपनी प्रकट लीला खेल रहे थे। अपनी प्रकट लीला भगवान की आप्रकट लीला और प्रकट लीला, यह मुरारी गुप्त देखा करते थे सुना करते थे चैतन्य महाप्रभु को और उनको हो रहा था साक्षात्कार, उसका नाम क्या है ? भगवत साक्षात्कार कृष्ण रिलाइजेशन गॉड रिलाइजेशन कहो कृष्ण रिलाइजेशन , कृष्ण तो वही हैं उनको देखो उनको समझो साक्षात्कार। यह मुरारी गुप्त साक्षात्कार पुरुष थे और भी बहुत सारे चैतन्य महाप्रभु के परिकर, सारे भगवत साक्षात्कारी ही थे। नित्य परिकर लेकिन यह मुरारी गुप्त वैसे थे हनुमान प्रकट हो गए, चैतन्य महाप्रभु की लीला में कौन बने मुरारी गुप्त, हनुमान। मुरारी गुप्त के साथ इनकी लीला चलती रहती थी, लीला खेलना है तो भक्त हैं और परिकर हैं, अकेले लीला संभव है क्या ?आपकी भी जब कोई लीला होती है और कोई है तभी तो लीला करेंगे, मुरारी गुप्त के साथ इनका आदान-प्रदान लेन देन कई प्रकार का है। यह सारे जो आंखों देखे दृश्य कहो या उनके सारे अनुभव कहो जो अभी वह सुनते थे देखते थे संग थे या वह सब लिखते थे, मुरारी गुप्त नोट करते थे। जैसे तुकाराम महाराज का हो, उनके भी साक्षात्कार अभंग के रूप में उन्होंने लिखें थोड़ा अलग है वहां तो परोक्ष में तुकाराम महाराज जहां भी हैं देहू में है वहीं से दर्शन कर रहे हैं। *सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी । कर कटावरी ठेवुनिया ॥ तुळसी हार गळा कासे पीतांबर । आवडे निरंतर तेची रूप ॥* (संत तुकाराम अभंग 1) पंढरपुर में खड़े हैं या बैकुंठ में है या गोलोक में है। वहां के अनुभव या दूरदर्शन हो रहा है। तुकाराम महाराज को कैसा दर्शन दूर का दर्शन, दूर नगरी कृष्ण जहां है। लेकिन यहां तो मुरारी गुप्त के लिए है प्रत्यक्ष दर्शन, जो उनके दर्शन और जो वो सुनते थे अनुभव करते थे वह लिखते जाते थे। क्या आप इतना सारा बताते जाते हो कि कृष्ण ऐसे हैं, वैसे लीला खेली, हमने देखा है , लोग बोलते हैं, अच्छा भाई ठीक है, हमने तो नहीं देखा हम देखना चाहते हैं इसीलिए सारे प्रयास हो रहे हैं। श्रील प्रभुपाद की जय ! लेकिन हम उनको जानते हैं जिन्होंने देखा और वह हैं मुरारी गुप्त और उन्होंने भी देखा लेकिन वैशिष्ट यह रहा कि उन्होंने कृपा करके, उस सब को लिखा, अगर मुरारी गुप्त नहीं लिखते तो कुछ पता नहीं चलता। चैतन्य महाप्रभु की बाल लीला, नवदीप लीला का, मुरारी गुप्त का कड़चा दैनंदिनी ही आधार है। जो ग्रंथों की रचना हुई चैतन्य भागवत, चैतन्य चरितामृत चैतन्य मंगल, वह सब भी रेफरेंस लेते हैं। हरि हरि ! ऐसे में चैतन्य महाप्रभु ने मुरारी गुप्त को दर्शन दिए। वह दर्शन था राम दरबार का चैतन्य महाप्रभु अचानक वह है नहीं, उनके स्थान पर उन्होंने देखा कौन है जय श्री राम और फिर उन्होंने लक्ष्मण को भी देखा, राम के ऊपर छत्र धारण किए हैं और भरत और शत्रुघ्न को भी देखा वह दोनों चामर ढूला रहे हैं और राम की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने देखा कि कई सारे वानर हैं जो स्तुति कर रहे हैं श्रीराम की और मुरारी गुप्त कौन हैं स्वयं ही हनुमान हैं। उन्होंने और एक लीला में जो अष्ट पहर लीला हुई थी उसमें भी चैतन्य महाप्रभु ने दर्शन दिया राम के रूप में और दर्शन कर रहे थे। मुरारी गुप्त ने देखा वह मायापुर के प्रकट लीला के मुरारी गुप्त नहीं थे हनुमान थे , लेकिन पीछे पूछ भी थी। यह दर्शन करके वे मूर्छित हो गए और जब उन्हें बाहरी ज्ञान हुआ तब अपने घर लौटे और धर्मपत्नी से बोले भोजन तैयार है ?धर्म पत्नी ने कहा भोग तैयार है। भोजन तैयार नहीं है, भोग होता है भगवान के लिए और भोजन होता है हमारे लिए, भगवान जब भोजन करते हैं भोग भोगते हैं तो बन जाता है प्रसाद , हमारे लिए भोजन तो उसने कहा भोग तैयार है। वह दे दो, उसमें कई सारे पकवान थे, एक एक करके बंगाली आइटम भी थे उसे उठा के ऐसे फेंक रहे थे मानो किसी को खिला रहे हैं। धर्मपत्नी को आश्चर्य लगा, शायद उसने सोचा होगा कि आज का भोग मंदिर के विग्रह के सामने रखेंगे, वही भोग लगाएंगे वह ऐसा नहीं कर रहे थे वह किसी को खिला रहे थे। धर्मपत्नी अनुभव कर रही थी कि कोई खा रहा है कोई ग्रहण कर रहा है कुछ गिर भी रहा था भूमि पर, उसमें से कुछ पकवान तो विशेष भोजन था घी की अधिक मात्रा थी तो सुखी जीवन *यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः ।। त्रयोवेदस्य कर्तारौ भण्डधूर्तनिशाचराः । चार्वक।।* अनुवाद- मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये । ऋण करके भी घी पिये । अर्थात् सुख-भोग के लिए जो भी उपाय करने पड़ें उन्हें करे । दूसरों से भी उधार लेकर भौतिक सुख-साधन जुटाने में हिचके नहीं । परलोक, पुनर्जन्म और आत्मा-परमात्मा जैसी बातों की परवाह न करे । भला जो शरीर मृत्यु पश्चात् भष्मीभूत हो जाए, यानी जो देह दाहसंस्कार में राख हो चुके, उसके पुनर्जन्म का सवाल ही कहां उठता है । जो भी है इस शरीर की सलामती तक ही है और उसके बाद कुछ भी नहीं बचता इस तथ्य को समझकर सुखभोग करें, उधार लेकर ही सही । तीनों वेदों के रचयिता धूर्त प्रवृत्ति के मसखरे निशाचर रहे हैं, जिन्होंने लोगों को मूर्ख बनाने के लिए आत्मा-परमात्मा, स्वर्ग-नर्क, पाप-पुण्य जैसी बातों का भ्रम फैलाया है । घी से बने हुए पकवान उसकी अधिक महिमा है या उसका अधिक मूल्य है या फायदा भी है । तेल डालडा वगैरह नहीं था, घी था अधिक ही था लेकिन हम को ऐसा नहीं करना चाहिए घी की मात्रा को कंट्रोल करना चाहिए नहीं तो हमारे लिए परेशानी होंगी किसी डॉक्टर ने कहा कि इस्कॉन के डेवोटीस को कहा करो , उनको दिखता है शक्कर और खूब घी का हलवा बगैरा खाते हैं ना , कुछ समय के उपरांत यह भी हो सकता है डिनर खिलाया और फिर नेक्स्ट मॉर्निंग चैतन्य महाप्रभु भागे दौड़े आए हैं दवा है ? यह मुरारी गुप्त वैसे वैद्य थे प्रसिद्ध वैद्य थे। चैतन्य महाप्रभु , क्या हुआ क्या हुआ होना क्या है इतना अजीन इनडाइजेशन, आपने कुछ ज्यादा खाया , क्या? जो की ज्यादा मात्रा वाला था , क्या तुमको पता नहीं ? खिलाने वाले तो तुम थे और तुम खिलाते गए खिलाते गए खिलाते गए। शायद क्योंकि यह आवेश में, भाव में थे, उनको पता भी नहीं उन्होंने क्या किया , कितना कितना क्या-क्या खिला दिया लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने कहा अपनी धर्मपत्नी से पूछो वह तो होश में थी उसको पता है फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को और कोई दवा देने से पहले मुरारी गुप्त के घर में एक विशेष जल औषधि, वह जल ही औषधि का काम करता था, चैतन्य महाप्रभु ने उसको देखा और दौड़े और खूब पी लिए मुरारी गुप्त बोले आपके लिए नहीं है। वह छोड़ दीजिए आप इसे, लेकिन चैतन्य महाप्रभु ने उसको ग्रहण किया है और ठीक हो गए। थैंक यू धन्यवाद औषधि के लिए , तुम्हारे पास तुम ही उलझन के कारण बने और तुम ही सुलझन के कारण भी, प्रॉब्लम एंड सलूशन तो यह भी एक दिन का मुरारी गुप्त का अनुभव है फर्स्ट एंड एक्सपीरियंस उन्होंने लिख लिया इस प्रकार हंड्रेड्स सैकड़ों हजारों कहो छोटे-मोटे अनुभव रिलाइजेशन, लीला आज यह हुआ आज दोपहर को यह हुआ, आज शाम को यह हुआ, आज रात्रि को यह हुआ फिर नेक्स्ट डे यह हुआ यहां पर यह हुआ वहां पर वह हुआ यह सब लिखा। राइटिंग ब्लैक एंड वाइट यह जानकर भी हमारा विश्वास होना चाहिए। मन में ऐसे ही *अज्ञश्र्चाद्यधानश्र्च संशयात्मा विनश्यति | नायं लोकोSस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ||* अनुवाद- किन्तु जो अज्ञानी तथा श्रद्धाविहीन व्यक्ति शास्त्रों में संदेह करते हैं, वे भगवद्भावनामृत नहीं प्राप्त करते, अपितु नीचे गिर जाते है | संशयात्मा के लिए न तो इस लोक में, न ही परलोक में कोई सुख है | जीव संशय करता ही रहता है। सचमुच में चैतन्य महाप्रभु हुए थे ?क्या गॉड इज़ रियली एक्जिस्ट? किसी ने देखा भी था उनको ? यह मुरारी गुप्त की डायरी और फिर श्रीकृष्ण चैतन्य चरितामृत में मुरारी गुप्त, एक चरित्र लिखा महाप्रभु के चरित्र ने उसका नाम दिया श्रीकृष्ण चैतन्य चरिता मृत एक है। चैतन्य चरित अमृत और दूसरा है श्री कृष्ण चरितामृत , दो चरित्रामृत वैसे तो और भी है लेकिन थैंक यू। किसको थैंक यू ? मुरारी गुप्त को, ऋषि ऋण कहते हैं हम ऋणी हैं। ऋषि मुनियों के भी , पूर्व आचार्य के, कितना उपकार किया , मुरारी गुप्त ने सारे संसार के ऊपर हरी हरी ! ऐसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का प्रचार होता रहना चाहिए और उस प्रचार के अंतर्गत ही है। *यारे देख, तारे कह 'कृष्ण'-उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हञा तार' एइ देश ॥* ( चैतन्य चरितामृत मध्य 7.128) अनुवाद- "हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे। इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो।" यारे देख ता रे कह कृष्ण उपदेश ,आमार अज्ञाय गुरु हय तार ऐइ देश। ( चैतन्य चरितामृत मध्य 7.128) चैतन्य महाप्रभु ने आदेश दिया कि आप सब प्रचार करो कृष्ण का प्रचार करो या हरी नाम का प्रचार करो या पहुंचाओ *पृथ्विते आछे यत नगरादि ग्राम। सर्वत्र प्रचार होइबे मोरा नाम।।* ( चैतन्य भगवत अन्त्य 4.126) चैतन्य महाप्रभु ने कहा प्रचार होना चाहिए यह ड्यूटी भी चैतन्य महाप्रभु ने अपने अपने अनुयायियों को दी है और चैतन्य महाप्रभु के अनुयायी वह गौड़िये वैष्णव सभी प्रकार के वैष्णव में श्रेष्ठ है। गौड़िये वैष्णव , गर्व से कहो हम गौड़िये वैष्णव हैं। गर्व से कहो कि हम हिंदू हैं ,उसमें ऐसा कोई गर्व की बात नहीं है वैसे ,लेकिन गर्व से अभिमान के साथ आप कहते जाओ कि हम गौड़िये वैष्णव हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! श्रील प्रभुपाद की जय ! अनंत कोटी वैष्णव भक्त वृंद की जय ! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल

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