Hindi
6th अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
 
आज हमारे साथ 440 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। यह अत्यंत ही सुन्दर दृश्य है। कुछ भक्त ग्रुप (समूह) में  भी जप कर रहे हैं।  कुछ भक्त मंदिर तथा बेस के भक्तों के  साथ बैठकर बड़ी संख्या में जप कर रहे हैं। यद्यपि आज हमारी  संख्या कम है, केवल 440 ही है परंतु व्यक्तिगत रूप से सहयोगी  (कॉन्ट्रीब्यूटर)  एक साथ बैठकर अधिक संख्या में जप कर रहे हैं जिसे देखकर मैं अत्यंत प्रसन्न  हूं।
 हरि !हरि!
इस समय भारत में बहुत सी पदयात्राएं  चल रही हैं। इन्हीं पदयात्राओं में एक और पदयात्रा शामिल हुई  हैं जोकि  इस्कॉन  नोएडा से प्रारंभ होकर  वृन्दावन जा रही हैं। हमारे इस्कॉन नोएडा के भक्त पदयात्रा करते हुए दिन प्रतिदिन वृन्दावन के ओर अधिक समीप पहुंच रहे हैं। वे  इस पदयात्रा के दौरान नगरों, गाँवो में  कीर्तन करते   हुए  वे एक गाँव से दूसरे गांव जाते हैं, बीच रास्ते में जो  भी  जगह खाली रहती है, उस पर भी वे चुपचाप नहीं बल्कि नगर कीर्तन करते हुए चलते हैं।    चैतन्य महाप्रभु की  भविष्यवाणी है कि प्रत्येक नगर और गांव में मेरे  नाम का प्रचार होगा, कीर्तन होगा। केवल नगर और गांव में ही नहीं अपितु  दो गाँवों के बीच की जो दूरी है, वहाँ पर  भी नगर संकीर्तन हो रहा है। महाप्रभु ने जो भविष्यवाणी की थी, उससे कई अधिक मात्रा में  ये पदयात्री उसको पूरा कर रहे हैं। आप भी इस पदयात्रा  या नगर कीर्तन में सम्मलित हो सकते हैं। इससे गौरांग महाप्रभु अत्यंत प्रसन्न होंगे एवं आपको उनकी कृपा भी प्राप्त होगी।
हरि! हरि!
मैं अभी दिल्ली में हूँ। यहाँ आने से कुछ दिन  पूर्व मैं पंढरपुर में था।  पंढरपुर में मुझे  भगवान विट्ठल के दर्शन का लाभ प्राप्त हुआ एवं मुझे  राधा पंढरीनाथ के दर्शन भी प्राप्त हुए। पंढरपुर के जो आराध्य देव  व ठाकुर हैं, वे भगवान विठ्ठल हैं। उनका अत्यंत विशेष श्रृंगार होता है। यद्यपि अभी नवरात्रि चल रही है और नवरात्रि में  भगवान विठ्ठल और रुक्मिणी का अत्यंत विशेष और सुंदर श्रृंगार होता है।मेरे लिए  विट्ठल का  दर्शन अत्यंत ही महत्वपूर्ण और विशेष  है क्योंकि विट्ठल मेरे इष्टदेव हैं।
  कल जब मैं दिल्ली पहुंचा, दिल्ली एयरपोर्ट पर  मुझे इन्द्रद्युम्न स्वामी महाराज का दर्शन हुआ। मैं दक्षिण भारत से दिल्ली आया था और इन्द्रद्युम्न महाराज उत्तर भारत, हिमालय के बद्रिकाश्रम से दिल्ली आए थे। मैंने पंढरपुर में भगवान  विट्ठल पांडुरंग के दर्शन किए थे और  इन्द्रद्युम्न महाराज ने  बद्रिकाश्रम में भगवान बद्रीनारायण  के दर्शन किए। इस प्रकार जब  हम दोनों एयरपोर्ट पर मिले तब हम एक दूसरे को अपने दर्शन का विवरण व अपनी यात्राओं का अनुभव  बता  रहे थे। 
 हम  दोनों ने सर्वप्रथम भगवान के दर्शन किए। ततपश्चात भगवान की कृपा से जब हम एयरपोर्ट पर मिले तब हमें भक्तों के दर्शन हुए एवं हमनें एक दूसरे के दर्शन किए। भगवान की कृपा के कारण ही हमें भक्तों का दर्शन होता है और तभी वह दर्शन पूर्ण होता है। जब भक्त आपस में मिलते  हैं, वह क्या करते हैं?  वे बोधयन्त: परस्परं  करते  हैं,भगवान की  कथाओं  का वर्णन करते हैं।अपने अनुभवों को बताते हैं व  आनन्द लेते हैं।  तुष्यन्ति च रमन्ति  च  इससे उन्हें आनंद मिलता है, वे प्रसन्न होते हैं।
 वास्तव में पहले हम भक्तों से मिलते हैं और भक्त हमें  भगवान की महिमा के विषय में  बताते हैं कि भगवान कितने महान हैं। अब आप जाओ और भगवान का दर्शन करो अर्थात जब भक्त हमें भगवान का दर्शन करने और उनकी  महिमा के विषय में बताते  हैं और हम भगवान का दर्शन  करते हैं, हम भगवान का दर्शन करके पुनः भक्तों से मिलते हैं। ऐसा नहीं है कि हम पहले भगवान का दर्शन करते हैं, तत्पश्चात हमें भक्तो का दर्शन होता  है। अपितु हमें पहले भक्तों का दर्शन होता है, वे हमें  भगवान की महिमा  बताते हैं तब हम भगवान का दर्शन कर पाते हैं। 
  इस जगत में दर्शन करने योग्य यदि कोई है तो वह  केवल भगवान और भगवान के भक्त हैं। इस जगत में कई  सांसारिक राक्षस हैं , वे दर्शन करने योग्य नहीं है, वे  दर्शनीय नहीं हैं। केवल भगवान  और भक्त  दो ही है जोकि दर्शन करने योग्य हैं और हमें उनका ही दर्शन  करना चाहिए।
हरि! हरि!
 संस्कृत में  एक विशेष शब्द है - दर्शनीय। जिसका अर्थ  होता है- दर्शन करने योग्य। भगवान के विग्रह और भगवान के भक्त, ये दोनों ही दर्शन योग्य हैं। हमें दोनों का दर्शन करना चाहिए।भगवान के विग्रह  स्वयं भगवान हैं,भगवान के विग्रह और भगवान, दोनों में कोई भी भेद नहीं हैं।  हम  विग्रह के माध्यम से  भगवान और भगवान के भक्तों का दर्शन करते हैं।
हरि! हरि!
 मैंने आप  भक्तों को बताया नहीं कि मैं दिल्ली में क्यों आया हूँ ? आज दिल्ली में एक बहुत बड़ा प्रोग्राम आयोजित किया जा रहा है। नेशनल कैपिटल रीजन (एन.सी.आर.) में आने वाले सभी मंदिर मिल कर इस प्रोग्राम को आयोजित कर रहे हैं। दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, गाजियाबाद , गुरुग्राम  आदि सभी मंदिर एक साथ में  युवाओं के लिए यह  विशेष  प्रोग्राम आयोजित कर रहे हैं।  यह  प्रोग्राम दिल्ली के इंदिरागांधी स्टेडियम  में होगा जो कि दिल्ली का  सबसे बड़ा स्टेडियम है। हो सकता है कि यह सम्पूर्ण भारत  देश का सबसे बड़ा स्टेडियम हो!
  हमें इस प्रोग्राम में 15000 से अधिक युवाओं के आने की उम्मीद है। इस प्रोग्राम की  थीम नशाबंदी है, जिसमें हम बताएंगे कि युवा किस  प्रकार  नशे से बच सकते हैं। सम्पूर्ण विश्व के युवा  इस नशे की लत में आ चुके हैं,जकड़े जा चुके हैं। वे शराब पीना, ड्रग्स लेना, ध्रूमपान करना आदि की लत में फंस चुके हैं। भारत के युवा भी अब इससे अछूते नहीं हैं। वे भी इसमें आ चुके हैं। इस्कॉन यूथ फोरम, इस प्रोग्राम को आयोजित कर रहा  है।वहाँ पर हम सभी,युवाओं  को बताएंगे कि  वे किस प्रकार से इन नशों की लत से छुटकारा पा सकते हैं व इससे छूट सकते हैं  जैसा कि कहते हैं prevention is better than cure दवाई लेने से बचाव करना ज़्यादा अच्छा है । हम उन्हें बताएंगे कि वे किस प्रकार इस नशे की लत से छूट सकते हैं और स्वयं को बचा सकते हैं, यह इस कार्यक्रम  की विषय वस्तु होगी।
 हम इस प्रोग्राम में  उन युवाओं  को शराब, ध्रूमपान आदि छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे। कोई भी व्यक्ति, यह  शराब, नशा आदि की लत को तभी छोड़ सकता है, जब उसे, उससे अधिक  अच्छी वस्तु प्राप्त  हो जाए। जब तक कोई  हरिनाम, शास्त्रों  एवं संस्कृति को स्वीकार  नहीं करता जोकि उस नशे से बहुत उच्च स्थिति होती  है। तब तक वह शराब, ध्रूमपान आदि नहीं छोड़ सकता है। हम उन्हें बताएंगे कि वे किस प्रकार  इनको स्वीकार करके चरित्रवान बन सकते हैं। जब श्रील प्रभुपाद  पहली बार अमेरिका  गए थे। अमेरिका का युवा वर्ग नशे की आदत में एक प्रकार से जकड़ा हुआ था। उन सभी को नशे की लत थी, जब उन्हें पता लगा  ये स्वामी जी जो  भारत देश से आए हैं , वे अपने साथ में  एक नशा लेकर आए  हैं तब उन सभी युवाओं ने स्वामी जी से  कहा कि आप जो नशीला पदार्थ/ वस्तु लेकर आए हैं, वह हमें भी दीजिए। अमेरिका में  युवा वर्ग  जो कुछ नशीले पदार्थों का सेवन करता था, वे कुछ समय के लिए  स्वयं को एक उच्च स्थिति में समझता था, लेकिन  जब उसका  असर समाप्त हो जाता, वे पुनः निम्न स्थिति को प्राप्त हो जाते थे। तब  वे और अधिक मात्रा में  उस नशीले पदार्थ का सेवन किया करते थे।  
सेवन करके पुनः  उच्च स्थिति में तत्पश्चात पुनः निम्न स्थिति में आ जाते।  एक स्थिति ऐसी आती थी जब वे निम्नतम स्थिति में आ जाते थे और जहाँ  से वे पुनः अपनी चेतना में उच्च स्थिति को प्राप्त नहीं कर  पाते थे। ऐसी अवस्था में उन्होंने श्रील प्रभुपाद से पूछा कि स्वामी जी, 'आपके पास में कौन सी ऐसी नशीली वस्तु है? आप हमें  वह वस्तु दीजिए।तब श्रील प्रभुपाद ने कहा-  हां, मेरे पास में वह वस्तु है जिसको स्वीकार करके आप हमेशा के लिए उच्च स्थिति में रह सकते हो। वहां से आप  पुनः कभी निम्न स्थिति में नहीं आएंगे।  और वह वस्तु है- हरिनाम, कृष्ण प्रसाद, सादा जीवन उच्च विचार।  
हम  प्रतिदिन कृष्ण प्रसाद का आस्वादन  करते  हैं। हम इस संस्कृति के माध्यम से सदैव उच्च स्थिति में रहेंगे और कभी भी निम्न स्थिति में नहीं आएंगे।
 अमेरिकी युवाओं ने उसे स्वीकार किया और  इससे उनका जीवन पूर्णरूपेण बदल गया, वे  जैसे थे,वैसे नहीं रहे। उन्होंने आकर प्रभुपाद से कहा- 'स्वामी जी, अब हम शपथ लेते हैं  कि अब हम कभी भी नशा नहीं करेंगे। हम   मांसाहार, अवैध  संबंध, द्यूतक्रीडा,  और नशापान का त्याग करेंगे। वे ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि अब वे  हरिनाम का नशा कर रहे थे, अब वे कृष्ण प्रसाद का नशा कर रहे थे। इस प्रकार इस हरिनाम  के माध्यम से उनके हृदय में जो सुप्त कृष्णभावनामृत था , वह पुनः प्रकट हो रही थी। ये हिप्पिज़  जोकि नशेड़ी,शराबी थे। श्रील प्रभुपाद ने उन्हें वह मंत्र दिया जिससे वे सभी हिप्पी, हैप्पी हो गए। इस प्रकार से वह इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप करके  प्रसन्न हो गए।
परम् दृष्टवा निवर्तन्ते.. कुछ भक्त कमैंट्स भी कर रहे हैं। यह जो प्रोग्राम है उसका नाम उद्गार प्रोग्राम  है। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं। मुझे  अभी राधा पार्थसारथी का दर्शन करना है, वहां गुरु पूजा है, फिर कीर्तन होगा। तत्पश्चात राधा पार्थसारथी मंदिर में  मैं भागवतम पर  8 बजे  प्रवचन दूंगा। हम इस कॉन्फ्रेंस को यहीं  विराम देते हैं। आप सभी जप करते रहिए। अपने आस पास के क्षेत्र के युवाओं में प्रचार कीजिए और उन्हें  हरिनाम प्रदान  कीजिए।
हरे कृष्ण!