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जप चर्चा
02 मार्च 2020
पुणे के रास्ते से
रिकॉडेड टॉक
आज हमारे साथ 487 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं जिनकी संख्या लगभग 1000 है | यह हमारे जप करने का पूर्वाभ्यास होता है कि प्रत्येक सुबह जब हम जप करते हैं तो उसकी तैयारी हमें पिछले दिन करनी होती है क्योंकि पिछले दिन का जो हमारा जीवन रहता है जो भी हम करते हैं उससे हमारा जप काफी प्रभावित रहता है | तो मैं ये बताना चाहता हूँ कि आज सुबह जप करने से पूर्व हमने कैसे तैयारी की है |
कल हम तुकाराम महाराज के देहू गांव गए थे, वहां जाकर हम तुकाराम महाराज से संबंधित विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया, दर्शन किया, तुकाराम महाराज के विषय में सुना, तुकाराम महाराज के विषय में, उन स्थानों के विषय में, उन स्थानों में घटित लीलाओं के विषय में अधिक से अधिक सुना | इस प्रकार आज सुबह के जप के लिए ध्यान कल की देहु यात्रा से प्राप्त हुआ |
निश्चित रूप से यह भगवान की व्यवस्था है कि भगवान अपने शुद्ध भक्तों को इस संसार में भेजते हैं और जिस प्रकार से भगवान के शुद्ध भक्त व्यवहार करते है, आचरण करते है, खाते है, सोते है, वह वास्तव में अन्य जीव आत्माओं के अनुकरण करने के लिए एक उदाहरण होता है |
कई बार हमारे मन में शंका आती है कि क्या वैकुंठ है, वह कौन सा स्थान है जहां पर भगवान रहते है | तो कल जब हम देहु में उस स्थान पर गए जहां से तुकाराम महाराज सशरीर बैकुंठ धाम गए थे | तुकाराम महाराज ने 4000 अभंग अपने जीवन काल में लिखें| उसमें से आखरी अभंग उन्होंने तब गाया जब वह साक्षात गरुड़ के ऊपर आरुढ थे, जब बैठ गए थे तब उन्होंने अपना आखिरी अभंग गाया
आम्ही जातो आमच्या गावा, आमच्या राम राम ध्यावा
इसका अर्थ है कि मैं अपने गांव जा रहा हूँ और आप सब को मेरा आखरी राम राम, आप कृपया इसे स्वीकार कीजिये और इस प्रकार से सब के देखते देखते वह बैकुंठ यान में बैठे और वह बैकुंठ यान वहां से जाने लगा तो कुछ गांव वालों ने सोचा इनका गांव तो यही है निश्चित रूप से यह कुछ आकाश में भ्रमण करके कुछ सैर सपाटा करके वापस आ जाएंगे परंतु यह उनका भ्रम था क्योंकि तुकाराम महाराज तो अपने गांव, अपने वास्तविक गांव, अपने वास्तविक घर वापस चले गए थे और वहां गांव वाले घंटों इंतजार करते रहे, कई दिन इंतजार करते रहे, कुछ महीने इंतजार करने में निकल गए लेकिन तुकाराम महाराज वापस नहीं आए तो भगवान इस प्रकार से जो हमारे संदेह होते हैं जैसे कि
बैकुंठ क्या है?
क्या भगवान का क्या कोई धाम है?
इस प्रकार से इन सब प्रश्नों का प्रत्यक्ष प्रमाण अपने शुद्ध भक्तों के माध्यम से देते हैं जैसे हमने देखा कि तुकाराम महाराज सशरीर भगवत धाम गए |
देहु मे तुकाराम महाराज की कोई समाधि नहीं है, हमें उनके किसी समाधि के दर्शन नहीं होते, वे स्वयं अपने शरीर के साथ बैकुंठधाम को चले गए |
कीर्तनीय सदा हरि
संत तुकाराम महाराज हमेशा जप करते रहते थे कीर्तन करते रहते थे |
पांडुरंग पांडुरंग
जय जय राम कृष्ण हरि
जय जय राम कृष्ण हरि
इस प्रकार हमेशा हमेशा वे भगवान के नाम का जप करते रहते थे | वास्तव में उनके लिए जप को रोक पाना बहुत ही कठिन होता था जबकि अधिकांशतः तो हम लोगों के लिए जप करना बहुत कठिन हो जाता है | जब वे जप करते थे कीर्तन करते थे तो घंटों नृत्य करते थे, उच्च स्वर में कीर्तन करते थे और उनका कीर्तन कभी रुकता नहीं था |
गौरांग महाप्रभु चाहते थे कीर्तनीय सदा हरि हमेशा हरि नाम का जप करते रहे |
तो तुकाराम महाराज के जीवन से ये पूर्ण रूप से परिलक्षित था| वे कभी भी नाम का जप छोड़ते नहीं थे |
एक सुबह एक अपराधी तुकाराम महाराज के निवास पर आया | उन्होंने घर के बाहर से आवाज लगाई "तुकोबा तुकोबा कहां हो तुम, तुम कहां गए हो "|
तुकाराम महाराज के घर के अंदर से किसी ने कहा "बैठो, वह कहीं गए हैं, थोड़ी देर में आएंगे"|
वह व्यक्ति वहां पर बैठे थे | उन्होंने कुछ समय पश्चात देखा कि जब तुकाराम महाराज वापस आए तो उनके हाथ में लोटा था और वह शौच आदि क्रियाओं से निर्वित्त होकर आ रहे थे |
जो व्यक्ति थे वो एक वैष्णव अपराधी थे, तुकाराम महाराज के अपराधी थे |
उन्होंने उस लौटे को देख कर के कहा - "क्या तुमने अभी तक स्नान नहीं किया है? क्या तुम नाम का जप कर रहे हो? क्या तुम इतने मूर्ख हो कि तुम्हें यह भी नहीं पता कि बिना स्नान किए बिना शुची हुए नाम का जप नहीं किया जाता है? अन्यथा कोई धार्मिक क्रिया नहीं की जाती है, हमें पहले स्नान करना चाहिए फिर हमें किसी धार्मिक क्रिया या अनुष्ठान करना चाहिए" |
तब तुकाराम महाराज ने कहा कि मेरे लिए नाम को छोड़ना बहुत कठिन हो जाता है और मुझे नहीं पता कि स्नान के पहले मैं अपने भगवान का ध्यान नहीं कर सकता या जप नहीं कर सकता उनके नाम का कीर्तन नहीं कर सकता | यह याद रखना मेरे लिए बहुत ही कठिन हो जाता है बहुत ही मुश्किल हो जाता है |
तुकाराम महाराज ने कहा कि मुझसे जप बंद नहीं होता और यह मेरे बस की बात भी नहीं है | मेरे भीतर से कुछ होता है कि मैं अनायास बिना किसी प्रयास किए जप करता रहता हूँ | वो जो पाखंडी अपराधी था उसने बलपूर्वक तुकाराम महाराज के होठों को अपने हाथों से बंद कर दिया और उसने जोर से तुकाराम महाराज का एक प्रकार से मुंह बंद करने का प्रयास किया पर तब उसने देखा कि तुकाराम महाराज के पूरे शरीर से हरि नाम जप निकल रहा था, उनके एक एक रोम कूप से हरि नाम का उच्चारण हो रहा था और तब उसने देखा कि तुकाराम महाराज वास्तव में सिर्फ मूँह से ही जप नहीं कर रहे थे, उनका पूरा शरीर उनकी आत्मा जप कर रही थी क्योंकि जप तो आत्मा करती है, ना कि यह शरीर | एक प्रकार से तुकाराम महाराज की आत्मा हर समय निरंतर जप करती थी |
जब कल मैंने यह देहु मे सुना, तो मैंने इस बात का स्मरण किया कि किस प्रकार से तुकाराम महाराज बिना किसी प्रयास के बिना कोई बल लगाएं हरिनाम का निरंतर जप करते थे जैसा कि गौरांग महाप्रभु ने कीर्तनीय सदा हरी करने के लिए कहा है तो इसका हम ज्वलंत उदाहरण तुकाराम महाराज के रूप में देख सकते हैं |
तो मैंने यह भी स्मरण किया था कि यह जो कर्मकांडी होते हैं पाखंडी होते हैं, वैष्णवो के अपराधी होते हैं, किस किस प्रकार से अपराध करते हैं |
जब तुकाराम महाराज अत्यंत ख्याति प्राप्त कर रहे थे और सभी जो उनके गांव के निवासी थे, उनसे बहुत प्रेम किया करते थे | जिस प्रकार से हमने देखा कि नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के जीवन में भी यही हुआ कि सब लोग उनसे बहुत प्रेम करते थे तो कुछ लोग उनके प्रति बहुत ईर्ष्या रखते थे |
इसी प्रकार तुकाराम महाराज के भी जीवन में हुआ कि कुछ लोग उनसे ईर्ष्या करने लगे थे |
उन लोगों ने एक वैश्या को तुकाराम महाराज को आकर्षित करने के लिए तुकाराम महाराज के पास भेजा और हमने सुना कि तुकाराम महाराज के पास जो वैश्या आई तो जिस प्रकार से तुकाराम महाराज निरंतर कीर्तन कर रहे थे |
जय जय राम कृष्ण हरि
जय जय राम कृष्ण हरि
उनके पास उनका तंबूरा और उनकी चीपड़ी थी, चिपड़ी एक प्रकार से करताल की तरह होती है, तुकाराम महाराज उसे बजा बजाकर अत्यंत भाव के साथ हरि नाम का कीर्तन कर रहे थे और नाच रहे थे तो वह बेचारी वेश्या क्या करती वहां बैठी थी और अपना कार्य कर रही थी नाच रही थी और इस प्रकार से कुछ विभिन्न तरीकों से उनका ध्यान अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी परंतु तुकाराम महाराज को पूर्ण रूप से ध्यान मग्न थे उनके अंदर तो कोई ऐसा रिक्त स्थान ही नहीं था जहां पर कोई वाह्य वस्तु, कोई बाहरी भाव प्रवेश कर सके तो इस प्रकार से तुकाराम महाराज और उस वेश्या के बीच में कुछ वार्ता भी हुई और उसने तुकाराम महाराज के समक्ष अपने को पूर्ण रूप से समर्पित कर किया, उनके चरणों में गिर गई | तुकाराम महाराज तो अच्युत थे क्योंकि वे भगवान अच्युत के पूर्ण शरणागत थे इसलिए कोई भी संसार की वाह्य शक्ति उनका पतन कर ही नहीं सकती थी जिस प्रकार से नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर के जीवन में हुआ वैसे ही हमने कल देहु गांव में संत तुकाराम महाराज के विषय में सुना कि किस प्रकार माया ने वेश्या के रूप में उनपर अपना प्रभाव डालने का प्रयास किया |
यह घटना यहां से कुछ ही दूर देहू गांव में घटी थी | तो हम सभी माया को पूर्ण रूप से परास्त कर सकते हैं यदि हम हरि नाम में पूर्ण शरणागति लेते हैं तुम्हारा माया कुछ भी नहीं कर पाएगी जैसा भगवत गीता में कहा है
यत्र योगेश्वर कृष्ण,
यत्र पार्थो धनुर्धर
इस प्रकार से हम विजयी होंगे, हम माया को जीतेंगे | जिस प्रकार से नामाचार्य श्रील हरिदास ठाकुर ने माया को जीता था, माया के युद्ध को जीता था और वह वैश्या जो आई थी वह भी एक प्रकार से माया से जीत गई थी वह भी विजयी हुई थी क्योंकि उसका आगे का जीवन बहुत ही सुंदर हो गया था और उसने हरि नाम को ग्रहण किया |