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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *28 जुलाई 2021* *हरे कृष्ण !* हरे कृष्ण ! 919 स्थानों से आज भक्त जप कर रहे हैं हरि हरि! आज का दिन विशेष है। आप कहोगे व्हाट हैपन इस दिन का क्या विशेष है ? 500 वर्ष पुरानी बात है आज ही के दिन गोपाल भट्ट गोस्वामी का तिरोभाव तिथि महोत्सव का दिन है हरि हरि ! उन्हीं का स्मरण करने का प्रयास होगा हरि हरि ! उनका स्मरण करेंगे, तो चैतन्य महाप्रभु का स्मरण हो ही जाएगा और वृंदावन का भी, और श्री श्री राधारमण देव की जय ! इन सब का भी स्मरण दिलाने वाले जिनका घनिष्ठ संबंध रहा इन सभी से और, औरों से भी और अन्य स्थानों से भी, *नानाशास्त्रविचारणैकनिपुणौ सद्धर्मसंस्थापकौ लोकानां हितकारिणौ त्रिभुवने मान्यौ शरण्याकरौ ।राधाकृष्णपदारविन्दभजनानन्देन मत्तालिकौ वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ ।। २ ।।* गोस्वामी अष्टक में से यह द्वितीय अष्टक है जिसको हम गाते रहते हैं। षडगोस्वामियों के स्मरण पर या समय-समय पर या किसी कथा के प्रारंभ में भी, यह गाया जाता है। यह पूरा या फिर यह जो द्वितीय अष्टक है *वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ* गोपाल भट्ट गोस्वामी यह श्रीरंगम में 1503 में जन्मे थे। और उसी श्रीरंगम में, श्रीचैतन्य महाप्रभु 1511 में पधार गए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब दक्षिण भारत की यात्रा में थे तो भ्रमण करते करते कीर्तन और नृत्य करते-करते महाप्रभु कावेरी के तट पर पहुंचे, जिस कावेरी के तट पर ही श्रीरंगम धाम है। उन्होंने कावेरी में स्नान किया और धाम में प्रवेश किया कीर्तन और नृत्य के साथ। यहां के सारे धाम वासी, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के बारे में क्या कहा जाए कि उनका सौंदर्य या उनका औदार्य है उनके हावभाव देखने के बाद वह भी महाप्रभु के साथ कीर्तन और नृत्य करने लगे। दे हेड नो चॉइस क्योंकि श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु, वह कठपुतली वाले भी हैं , उन्होंने कृपा की और सभी धाम वासी नृत्य कर रहे थे। उसमें से एक वेंकट भट्ट भी थे। इस कीर्तन का अंत तो नहीं होता है किंतु हुआ धीरे-धीरे समापन हुआ। तब वेंकट भट्ट ने विशेष निवेदन किया श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरण कमलों में कि आप हमारे घर पधारिए आज की भिक्षा हमारे घर में, और फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने वेंकट भट्ट के घर में प्रसाद ग्रहण किया, विश्राम भी किया और वहीं रुकने का विशेष निवेदन किया कि आज से ही चातुर्मास प्रारंभ हो रहा है और आप इसी धाम में रहिए हमारे निवास स्थान पर ही रहिए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने, वैसे जो रुकने का नाम नहीं लेते एक नगर या एक ग्राम में एक ही रात मुश्किल से बिताते, वे अब मान गए। ठीक है और उसके उपरांत वे 4 महीने श्रीरंगम में रहने वाले हैं। रंगनाथ का दर्शन भी करने वाले हैं या कीर्तन और नृत्य भी यहां खूब होने वाला है। सबसे अधिक लाभान्वित वेंकट भट्ट का परिवार ही हुआ। वेंकट भट्ट के ही पुत्र थे गोपाल भट्ट ! कुछ ६ या ७ साल के होंगे। यह बालक श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को बारंबार प्रणाम करता दर्शन इत्यादि तो होता ही रहता था और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं को, कीर्तन नृत्य को, यह गोपाल भट्ट गोस्वामी दर्शन करता था (अभी गोस्वामी तो नहीं बना था वृंदावन पहुंचेगा तो कहलायेगा गोपाल भट्ट गोस्वामी ) इस बालक को श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का अंग संग प्राप्त हुआ। हरि हरि ! श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को प्रणाम करने के लिए जब यह उनके पास में पहुंचता तो महाप्रभु इस बालक को अपनी गोद में बिठाते इस बालक को आलिंगन देते और बारंबार उसको पास में बुलाकर प्रसाद देते, प्रसाद खिलाते, बस हो गया और क्या चाहिए भगवान ने उद्धार किया इस बालक का कल्याण हुआ हरि हरि ! और साथ ही साथ परिवार में वेंकट भट्ट के दो भाई थे उसमें से एक भाई आगे चलकर प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर बने। इस परिवार के दो सदस्य एक गोपाल भट्ट, वेंकट भट्ट के पुत्र और यह प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर गोपाल भट्ट के अंकल और वेंकट भट्ट के भ्राता श्री, यह दोनों गौड़िये वैष्णव बन गए। दोनों ने ही वृंदावन के लिए प्रस्थान किया साथ में नहीं, एक के बाद एक पहुंचे हैं। वहां यह श्री संप्रदाय के सदस्य रहे। हरि हरि वेंकट और यह सभी गौड़िये वैष्णव परंपरा के साथ जुड़े। ऐसा था श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का आकर्षण हरि हरि ! क्या कहा जाए श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के विषय में *श्रीकृष्ण चैतन्य राधाकृष्ण नही अन्य* उन्होंने कौन सी सेवा, लक्ष्मी नारायण की सेवा को त्यागा वैसे कह भी नहीं सकते कि त्यागा, क्योंकि अभी राधा कृष्ण की आराधना करने लगे, गोपाल भट्ट गोस्वामी और प्रबोध आनंद सरस्वती। राधा कृष्ण की सेवा कोई करता है तो लक्ष्मी नारायण की सेवा तो हो ही गई। वैसे दोनों भिन्न भी नहीं है अलग अलग नहीं है। ऐसा नहीं कि यह है राधा कृष्णा और यह लक्ष्मी नारायण कुछ अलग से हैं । यहां पहुंचने पर गोपाल भट्ट गोस्वामी, वे दिक्षित होते हैं कल्पना कीजिए, किन से दीक्षा ली उन्होंने ? अपने चाचा अंकल प्रबोध आनंद सरस्वती से दीक्षित हुए। वैसे जब गोपाल भट्ट वृंदावन पहुंचे तब अन्य गोस्वामी वहां पहुंच ही चुके थे। रूप सनातन स्पेशली, जब गोपाल भट्ट गोस्वामी वहां पहुंचे थे, रूप सनातन किसी दूत को किसी मैसेंजर को जगन्नाथपुरी भेज रहे थे। उन दिनों में ऐसा कम्युनिकेशन यह पत्र व्यवहार भी हुआ करता था बिटवीन वृंदावन एंड जगन्नाथ पुरी, तो जिस दूत को, मैसेंजर को वहां भेजा, उन्होंने संदेशा भेजा कि गोपाल भट्ट वृंदावन पहुंच चुके हैं। जब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु को ये समाचार जगन्नाथपुरी में प्राप्त हुआ तब श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बहुत प्रसन्न हुए उनको पता था कि ऐसा एक दिन आएगा, ऐसा होना ही है, गोपाल भट्ट वृंदावन जरूर आएगा। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने गोपाल भट्ट के लिए कुछ भेंट भेजी, क्या था? लंगोट या कोपीन भेजी और बाबाजी का वेशभूषा कुछ वस्त्र भेजें, कोपीन और वस्त्र भेजा और एक दृष्टि से उनको वह भी दीक्षित कर रहे हैं कि तुम अब क्षेत्र सन्यास लो, तुम अब बाबाजी बनो, तुम अब वैरागी बनो, यह रही कौपीन और यह रहे वस्त्र इसको पहनो। गोपाल भट्ट गोस्वामी को चैतन्य महाप्रभु की यह भेंट प्राप्त हुई तो उनकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा हरि हरि ! क्योंकि इसी के साथ उनको और भी गौड़िए वैष्णवता प्राप्त हुई। *वंचितोस्मि वंचितोस्मि वंचितोस्मि न संशयः* ऐसा प्रबोध आनंद सरस्वती ठाकुर लिखते हैं कि जो गौड़ीय वैष्णविज़्म है गौड़ीय वैष्णवता है यह सर्वोपरि है। वे लिखते हैं मैं ठगा था मुझे ठगाया गया था *वंचितोस्मि वंचितोस्मि वंचितोस्मि न संशयः गौर रसे मग्नं विश्वे गौर रसे मग्नं स्पर्श अपि मम न भवत* यह गौड़ीय वैष्णव जगत उस अमृत में या चैतन्य चरितामृत में या कृष्ण करुणामृत में गोते लगा रहे थे और उनका सर्वात्म - स्नपन हो रहा था *चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम् ।आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्॥1॥* (श्री श्री शिक्षाष्टकम) अनुवाद " भगवान् कृष्ण के पवित्र नाम के संकीर्तन की परम विजय हो, जो हृदय रूपी दर्पण को स्वच्छ बना सकता है और भवसागर रूपी प्रज्वलित अग्नि के दुःखों का शमन कर सकता है । यह संकीर्तन उस वर्धमान चन्द्रमा के समान है , जो समस्त जीवों के लिए सौभाग्य रूपी श्वेत कमल का वितरण करता है । यह समस्त विद्या का जीवन है । कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनन्दमय सागर विस्तार करता है । यह सबों को शीतल और मनुष्य को प्रति पग पर पूर्ण अमृत का आस्वादन करने में समर्थ बना। किंतु मेरे ऊपर अमृत की एक बूंद भी नहीं आई , मुझे एक बूंद भी नहीं मिली उस भक्तिरसामृत सिंधु की वंचितोस्मि वंचितोस्मि वंचितोस्मि न संशयः श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन की कहो या चैतन्य महाप्रभु ने जो हरि नाम दिया सारे संसार को या वृंदावन दिया या *आराध्यो भगवान् व्रजेशतनयस्तद् धाम वृंदावनं रम्या काचीदुपासना व्रजवधूवर्गेण या कल्पिता । श्रीमद भागवतं प्रमाणममलं प्रेमा पुमर्थो महान् श्रीचैतन्य महाप्रभोर्मतामिदं तत्रादशे नः परः ।।* (चैतन्य मंज्जुषा) अनुवाद : भगवान व्रजेन्द्रन्दन श्रीकृष्ण एवं उनकी तरह ही वैभव युक्त उनका श्रीधाम वृन्दावन आराध्य वस्तु है । व्रजवधुओं ने जिस पद्धति से कृष्ण की उपासना की थी , वह उपासना की पद्धति सर्वोत्कृष्ट है । श्रीमद् भागवत ग्रन्थ ही निर्मल शब्दप्रमाण है एवं प्रेम ही परम पुरुषार्थ है - यही श्री चैतन्य महाप्रभु का मत है । यह सिद्धान्त हम लोगों के लिए परम आदरणीय है । यह श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का मत है या सिद्धांत है या यह सारी देन है महाप्रभु की , यह सारा गोपाल भट्ट गोस्वामी को भी अब प्राप्त हुआ। गोपाल भट्ट गोस्वामी एक समय हिमालय गए, नेपाल में गंडकी नदी गए। वहां उनको शिलाए प्राप्त हुई। शिलाए उनकी ओर आ रही थी, जब वे हाथ आगे बढ़ाते तो शिलाए उनके हाथ में बैठ जाती, वे उसको उठाते भी नहीं या हाथ में आई हुई शिला को उठाने का प्रयास भी नहीं करते तब भी उनके हाथ में आकर बैठ जाती। ऐसी शिलाओं को लेकर गोपाल भट्ट गोस्वामी वृंदावन लौटे और इन शिलाओ की आराधना "अर्चो विष्णु शिलाधिर गुरु शुनुर्मति वैष्णावे जाति बुद्धि " यह शीला कोई साधारण पत्थर नहीं होता निर्जीव या फिर यह शिला जिस विग्रह कि हम आराधना करते हैं वह स्वयं भगवान होते हैं। यह भगवान का ही रूप स्वरूप, शिलाओं के रूप में उनको प्राप्त था। उनकी आराधना करते हुए एक ऐसा समय था कि वे इन शिलाओं को एक वस्त्र मैं बांधकर गले में लटका कर उनको यदि कहीं आना जाना है तो यह शिलाएं उनके साथ ही रहती थी। ऐसी खासियत वैसे लोकनाथ गोस्वामी की भी है उनके पास तो मूर्ति थी राधा विनोद की। वे मूर्ति को लेकर गले में बांध लेते और वे आ रहे हैं जा रहे हैं। उसी प्रकार गोपाल भट्ट गोस्वामी भी शिलाओं को लेकर सारे ब्रज में घूमते फिरते, एक दिन की बात है वैसे उनके मन मंा भी एक इच्छा जग रही थी की अन्य गोस्वामियों के विग्रह हैं। रूप गोस्वामी के राधा गोविंद देव हैं। सनातन गोस्वामी के मदन मोहन हैं, लेकिन मेरी तो शिला ही हैं। मेरे पास सर्वांग सुंदर रूप वाले विग्रह नहीं है उनका श्रृंगार या उनकी आराधना मैं नहीं कर सकता। अच्छा होता की मेरे लिए भी ऐसा विग्रह प्राप्त होता या यह शिला ही वो रूप धारण करती, और फिर वैसे ही हुआ। भगवान ने या इन शिलाओं ने , उसमें से एक शिला ने उनकी बात सुन ली। एक दिन की बात है कोई धनी व्यक्ति आये और गोपाल भट्ट गोस्वामी को भगवान के विग्रह की आराधना के लिए कई सारे साज श्रृंगार वस्त्र आभूषण देकर गए तभी गोपाल भट्ट गोस्वामी सायं काल को अपने विग्रहो को विश्राम करा रहे थे। शयन आरती वगैरा हुई और जो वस्त्र और श्रृंगार वगैरह का सामान लाया था उसको वहीँ शिलाओं के साथ रखा। दूसरे दिन जब गोपाल भट्ट गोस्वामी उठे और यमुना मैया में स्नान करके लौटे तो देखते हैं उनकी कई शिलाओं में से एक शिला ने विग्रह रूप धारण किया है और वे थे और हैं अभी राधारमण ! राधारमण की जय ! राधारमण, कृष्णरमण भगवान बन गए। गोपाल भट्ट गोस्वामी के लिए विग्रह बन गए और यह विग्रह भी विश्व प्रसिद्ध हैं। यह विग्रह और गोपाल भट्ट गोस्वामी द्वारा स्थापित मंदिर राधारमण वृंदावन में, हरि हरि! एक समय की बात है गोपाल भट्ट गोस्वामी उनके जीवन चरित्र में ऐसा उल्लेख आता है कि वह उत्तर भारत में गए वैसे वृंदावन ऑलरेडी इन उत्तर भारत, जब वे हरिद्वार की ओर जाते हैं सहारनपुर नाम आपने सुना होगा दिल्ली और हरिद्वार के बीच में सहारनपुर है। वहां गोपाल भट्ट गोस्वामी थे और वहां से भी आगे बढ़ रहे थे किंतु अचानक आंधी तूफान शुरू हुआ और गोपाल भट गोस्वामी पास में ही किसी गृहस्थ के घर में आश्रय के लिए गए कि आंधी तूफान वर्षा होने जा रही है तो वह गृहस्थ, गृहम शून्यं पुत्रं शून्यं उसकी संतान नहीं थी तब गोपाल भट्ट गोस्वामी ने उनको आशीर्वाद दीया था पुत्र होगा, यह आशीर्वाद प्राप्त करते हुए उस गृहस्थ ने कहा कि जब मुझे पुत्र रत्न प्राप्त होगा तो मैं उसको आपकी सेवा में भेज दूंगा। फिर वैसा ही हुआ इस पुत्र ने जन्म लिया उसका कुछ सालों तक लालन-पालन किया गया उस गृहस्थ के द्वारा और फिर एक दिन गोपाल भट्ट गोस्वामी ने वृंदावन में अपनी कुटिया के बाहर एक बालक को बैठे हुए देखा तो पूछा कि तुम कौन हो कहां से पधारे हो ? उस बालक ने फिर सब कहानी बताई कि आपको याद है कि आप सहारनपुर में थे आपको याद है आपने मेरे पिताश्री को वरदान दिया था और उन्होंने भी कहा था मेरे पुत्र को आपकी सेवा में आपकी सहायता के लिए भेजूंगा। अब मैं पधार चुका हूं आप मुझे सेवा के लिए स्वीकार कीजिए। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने उस बालक को स्वीकार किया और वैसे जीवन भर वो गोपाल भट्ट गोस्वामी के विग्रह की आराधना करता रहा उसका नाम हुआ "गोपीनाथ पुजारी गोस्वामी" गोपाल भट्ट गोस्वामी के तिरोभाव के उपरांत भी इन्होंने ही टेक ओवर किया और सारे डिटी वरशिप, विग्रह आराधना या राधा रमण की आराधना यह गोपीनाथ पुजारी गोस्वामी ने संभाली हरि हरि! गोपाल भट्ट गोस्वामी अन्य गोस्वामियों की तरह उनकी टीम भी थी और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने इनको नियुक्त किया था। वृंदावन में कृष्ण भावना की स्थापना, उसके लिए मंदिरों की स्थापना, उसके लिए ग्रंथो की रचना इत्यादि इत्यादि , यह जॉब डिस्क्रिप्शन था यह कार्य था षड गोस्वामी वृंदों का , सारे वृंदावन में वे भ्रमण करते हुए वैसे पंचकोशीय वृंदावन में उन्होंने अधिक समय बिताया है वहां मंदिरों की स्थापना उन्होंने की है किंतु मैं यह सोच रहा था गोपाल भट्ट गोस्वामी की भजन कुटीर बरसाना और नंद ग्राम के बीच , एक संकेत नामक स्थान है हम जब ब्रज मंडल परिक्रमा को जाते हैं तो वहां पर हम जरूर जाते हैं और वहां पर गोपाल भट्ट गोस्वामी की इतनी छोटी सी संकीर्ण भजन स्थली है। यदि आप उसका आकार वगैरह देखोगे तो हैरान हो जाओगे कि हमारे षड गोस्वामी वृंद कितने तपस्वी थे हरि हरि ! उसका एक अनुभव हम कर सकते हैं। इन षडगोस्वमियों की भजन स्थलीय को जब हम देखते हैं। गोपाल भट्ट गोस्वामी उन्होंने कई ग्रंथ लिखे हैं *सत क्रिया सार दीपिका नामक ग्रंथ* उन्होंने लिखा जिसमें यज्ञ की विधि , यज्ञ और कई संस्कार, यह तो वैसे कर्मकांड के रूप में चलता रहता है कर्मकांड या कर्मी यज्ञ करते हैं। कर्मी ही अलग-अलग संस्कारों के विधि विधान करते रहते हैं। किंतु गोपाल भट्ट गोस्वामी ने वैष्णव के लिए फ्री फॉर कर्मकांड, कर्मकांड से मुक्त, *कर्म - काण्ड , ज्ञान - काण्ड , केवल विषेर भाण्ड , ' अमृत ' बलिया येबा खाय नाना योनि सदा फिरे , कदर्य भक्षण करे , तार जन्म अधः - पाते याय* (प्रेम - भक्ति - चन्द्रिका) अनुवाद:- सकाम कर्म और मानसिक तर्क दोनो केवल विष के पात्र हैं । जो भी उन्हें अमृत समझकर पीता है , उसे जन्म के बाद जन्म अनेक प्रकार के शरीरों में कठोर संघर्ष करना ही होगा । ऐसा व्यक्ति सभी प्रकार की तुच्छ चीजें खाता है और उसके तथाकथित इंद्रियभोग के कार्यों से घृणित हो जाता है । कर्मकांड विष का प्याला या पात्र है। सावधान ! उस कर्मकांड से जो *कृष्ण - भक्त - निष्काम , अतएव ' शान्त ' । भुक्ति - मुक्ति - सिद्धि - कामी - सकलि अशान्त ।।* 19.149 अनुवाद " चूँकि भगवान् कृष्ण का भक्त निष्काम होता है , इसलिए वह शान्त होता है । सकाम कर्मी भौतिक भोग चाहते हैं , ज्ञानी मुक्ति चाहते हैं और योगी भौतिक ऐश्वर्य चाहते हैं ; अत : वे सभी कामी हैं और शान्त नहीं हो सकते। जो भुक्ति कामी होते हैं वे कर्मकांड करते हैं वे भी यज्ञ करते हैं वे भी कुछ संस्कार इत्यादि संपन्न करते हैं किंतु वह होते हैं कर्मी, कर्मकांड करते हैं। कर्मी मतलब जो फ्रूटिव वर्कर प्रभुपाद अंग्रेजी में कहते हैं फ्रूटिव वर्कर्स, अपने कार्य का तथाकथित धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कर रहे हैं लेकिन कुछ फल चाहते हैं। *काङ्न्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः । क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ।।* (श्रीमद भगवद्गीता ४. १२) अनुवाद- इस संसार में मनुष्य सकाम कर्मों में सिद्धि चाहते हैं, फलस्वरूप वे देवताओं की पूजा करते हैं | निस्सन्देह इस संसार में मनुष्यों को सकाम कर्म का फल शीघ्र प्राप्त होता है | फिर वे यज्ञ करते हैं अलग-अलग देवताओं की प्रसन्नता के लिए। वे कर्मी कहलाते हैं लेकिन कृष्ण ने भगवत गीता में कहा है। *यज्ञार्थात्कर्मणोऽन्यत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः | तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङगः समाचर ।।* (श्रीमद भगवद्गीता 3.9) अनुवाद- श्रीविष्णु के लिए यज्ञ रूप में कर्म करना चाहिए, अन्यथा कर्म के द्वारा इस भौतिक जगत् में बन्धन उत्पन्न होता है | अतः हे कुन्तीपुत्र! उनकी प्रसन्नता के लिए अपने नियत कर्म करो | इस तरह तुम बन्धन से सदा मुक्त रहोगे | मैं ही यज्ञ पुरुष हूं और सारे यज्ञ मेरी प्रसन्नता के लिए होने चाहिए। यज्ञ मतलब केवल स्वाहा! स्वाहा ! ही नहीं है। हमारा हर कार्यकलाप भी यज्ञ होता है आफरिंग होती है हम आहुति चढ़ाते हैं। कायना मनसा वाचा या भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा *मानस-देह-गेह, यो किछु मोर* मेरा मन ,मेरा तन, मेरा धन, जो कुछ भी, जो थोड़ा थोड़ा या अधिक जो भी है आपके सेवा में समर्पित है। हे नंदकिशोर ! यह है गौड़ीय वैष्णविसजम और यह है वैष्णव पद्धति यज्ञ करने की या कोई अनुष्ठान करने की ,यहाँ इस को समझाया और सिखाया है। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने "सत क्रिया सार दीपिका" नामक ग्रंथ में उनका दूसरा भी एक ग्रंथ प्रसिद्ध है "हरीभक्ति विलास" जिसमें सारी अर्चना पद्धति विधि को समझाया गया है। इस हरीभक्ति विलास की रचना का कार्य वैसे सनातन गोस्वामी ने प्रारंभ किया था और उनके द्वारा प्रारंभ किए गये इस हरीभक्ति विलास ग्रंथ का कार्य, उसको गोपाल भट्ट गोस्वामी ने आगे पूरा किया सो इट्स जॉइंट एफर्ट और "षड -संदर्भ " जैसा शायद ही कोई ग्रंथ होगा षड -संदर्भ यह जीव गोस्वामी की रचना है। ऐसा हम मानते हैं और है किंतु इसकी रचना का कार्य प्रारंभ किया गोपाल भट्ट गोस्वामी ने अपना लाउड थिंकिंग कहो उस ग्रंथ की रूपरेखा कहो लिखना प्रारंभ किया लेकिन जो लिखा था वह क्रमबद्ध नहीं था। नॉट वेरी वेल ऑर्गेनाइज्ड, उसी रचना को यह षड संदर्भ उसको फिर जीव गोस्वामी ने परिष्कृत किया उस का संपादन किया उसका एडिटिंग किया। इस प्रकार यह षड संदर्भ भी ज्वाइंट एफर्ट रहा गोपाल भट्ट गोस्वामी प्रारंभ करते हैं और जीव गोस्वामी उस का समापन पूर्ण करते हैं। गोपाल भट्ट गोस्वामी ने कृष्ण करुणामृत पर भी भाष्य लिखा है वह भी प्रसिद्ध है। हरि हरि ! *त्यक्त्वा तूर्णमशेषमण्डलपतिश्रेणीं सदा तुच्छवत् भूत्वा दीनगणेशकौ करुणया कौपीनकन्थाश्रितौ । गोपीभावरसामृताब्धिलहरीकल्लोलमग्नौ मुहु-र्वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ || ४ ||* ऐसे षड गोस्वामी अलग-अलग प्रकार का वैभव त्याग कर यह सारे षड गोस्वामी वृंद चैतन्य महाप्रभु की इच्छा और आदेश अनुसार वृंदावन पहुंच जाते हैं और वहां पर वे करते हैं संख्या पूर्वक नाम गान करते हैं *सङ्ख्यापूर्वकनामगाननतिभिः कालावसानीकृतौ निद्राहारविहारकादिविजितौ चात्यन्तदीनौ च यौ । राधाकृष्णगुणस्मृतेर्मधुरिमाऽऽनन्देन सम्मोहितौ वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ || ६ ||* "हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे" वह कीर्तनीय सदा हरी करते रहते हैं और नित्यम भागवत सेवया हरि कथा करते रहे सुनते और सुनाते रहे। इसीलिए भी कहा है। *नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥* (श्रीमद भागवतम १.२.१८) भागवत की कक्षाओं में नियमित उपस्थित रहने तथा शुद्ध भक्त की सेवा करने से हृदय के सारे दुख लगभग पूर्णतः विनष्ट हो जाते हैं और उन पुण्यश्लोक भगवान् में अटल प्रेमाभक्ति स्थापित हो जाती है , जिनकी प्रशंसा दिव्य गीतों से की जाती है । *नानाशास्त्रविचारणैकनिपुणौ सद्धर्मसंस्थापकौ लोकानां हितकारिणौ त्रिभुवने मान्यौ शरण्याकरौ ।राधाकृष्णपदारविन्दभजनानन्देन मत्तालिकौ वन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ || २ ||* ऐसा भी समय था राधा दामोदर मंदिर के कोर्टयार्ड में जो राधा दामोदर की सेवायत थे। जीव गोस्वामी उस मंदिर के कोर्ट यार्ड में सभी गोस्वामी और षड गोस्वामी वृंद वन प्लेस इन वन टाइम, एक स्थान पर सभी इकट्ठे होते और कई शास्त्रों का संग्रह, ढेर मध्य में है और शास्त्रार्थ चल रहा है या बोधयन्तः परस्परम् चल रहा है *मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ||* (श्रीमद भगवद्गीता १०. ९) अनुवाद- मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं। गोपाल भट्ट गोस्वामी भी वहां है। रूप सनातन भी वहां हैं। रघुनाथ दास, रघुनाथ भट्ट और जीव गोस्वामी भी वहां है। हे राधे हे राधे - *हे राधे व्रजदेवीके च ललिते हे नन्दसूनो कुतः श्रीगोवर्धनकल्पपादपतले कालिन्दीवने कुतः । घोषन्ताविति सर्वतो व्रजपुरे खेदैर्महाविह्वलौवन्दे रूपसनातनौ रघुयुगौ श्रीजीवगोपालकौ || ८ ||* बड़े व्याकुल और विह्लल हो कर गोपाल भट्ट गोस्वामी वृंदावन मैं दौड़ा करते थे कृष्ण की खोज में कहां हो? कहां हो ? हे राधे !हे राधे! हे ब्रज देवीके! और यह नंद सुनो !नंद महाराज के पुत्र नंद नंदन कहां हो? श्रीगोवर्धनकल्पपादपतले , गोवर्धन के किसी कल्पवृक्ष के तले नीचे कहीं बैठे हो या इस समय कालिंदी नदी के तट पर हो ,कहां हो ?कहां हो? ऐसा उनके भाव हैं उनकी विहलता है और राधाकृष्णपदारविन्दभजनानन्देन मत्तालिकौ ऐसे व्याकुल रहते ,ऐसे मस्त रहते राधा कृष्ण पद अरविंद, भजन आनंद , मत तालिका, मस्त रहते किस में? सुनिए इसको राधा कृष्ण, भजन आनंद, राधा कृष्ण, पदारविंदं, राधा कृष्ण के पद अरविंद चरण कमल के भजन में यह षड गोस्वामी वृंद तल्लीन हुआ करते थे और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु जब वे लाए *गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन, रति ना जन्मिल केने ताय। संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले, जुडाइते ना कैनु उपाय॥* अनुवाद -गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता। यह सारा संकीर्तन आंदोलन सङ्पिकीर्तन कपितरौ * अजानुलम्बितभुजौ कनकावदातौ, संकीर्तनैकपितरौ कमलायताक्षौ। विशवम्भरौ व्दिजवरौ युगधर्मपालौ, वन्दे जगत्प्रियकरौ करुणावतारौ*॥(चैतन्य भगवत १.१) अनुवाद - जिनकी भुजा अजानुलम्बितभुजौ , जिनका श्री अङ्ग सुवर्ण सदृश उज्वल और कमनीय , जिनके नयन - दब कमलदल सरश पित्तीर्ण , जो श्रीहरिनाम संकीर्तन के एक मात्र पिता ( जन्म दाता ) , विश्व संसार के भरण पोपण कर्ता , युग धर्म पालक , जगत् के प्रियकारो , ब्राह्मणों के मुकुटमणि सुर्व करुणावतार हैं , मैं इन दोनों श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और श्रीनित्यानन्द प्रभु की वन्दना करता हूँ ॥ गौर नित्यानंद संकीर्तन आंदोलन के पिताश्री उन्होंने षड गोस्वामी वृंदो को यह सब दे दिया। जो धन है पूंजी है यह कृष्ण भावना है और फिर उनकी जिम्मेदारी रही। यह हमारे फर्स्ट जेनरेशन चैतन्य महाप्रभु के समय की और उसमें भी यह षड गोस्वामी वृंद, यह जो टीम रही 6 गोस्वामियों की, यह हमारे प्रथम आचार्य हैं। राइट आफ्टर चैतन्य महाप्रभु , अर्थात उनका चरित्र उनका जीवन हमारे लिए आदर्श है और उसी में से एक का गोपाल भट्ट गोस्वामी का तिरोभाव तिथि महोत्सव हम संपन्न कर रहे हैं हरि हरि ! आज के ही दिन यह शायद अनाउंसमेंट भी पदमाली करने वाले होंगे। मैं भी कुछ कहना चाहता हूं। एक और तिरोभाव आज ही हुआ "मधुर गोपी माताजी" मेरी शिष्या और औदार्य गौर प्रभु जो हमारे इस्कॉन सांगली के मैनेजर हैं अध्यक्ष हैं उनकी माताश्री मधुर गोपी माता जी का आज निधन हुआ। सो इट्स नॉट अ गुड न्यूज़ लेकिन हम भी दुखी हैं इस दुखद निधन के समाचार से, यह माताजी बहुत बड़ी सेविका थी। अधिकतर देखा जाता है की माताएं उनका पुत्र हरे कृष्ण इस्कॉन जॉइन करता है तो फिर उनका हर प्रयास होता है कि उसको कैसे पुनः घर वापस लाया जाए या वह ब्रह्मचारी ना बने किंतु यह माताजी वैसी नहीं थी। कुछ वर्ष पूर्व वैसे औदार्य गौर प्रभु के पिता श्री नहीं रहे उस समय भी अपने पुत्र को अपने घर बुला सकती थी कि आप मेरी सहायता के लिए आ जाओ हेल्प हेल्प मदद करो , मुझे कौन संभालेगा, अपना कर्तव्य निभाओ मुझे संभालने का, ऐसा कह सकती थी। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं कहा, अपने पुत्र ब्रह्मचारी को घर नहीं बुलाया उल्टा उन्होंने क्या किया उन्होंने स्वयं ही इस्कॉन ज्वाइन किया, जिस आश्रम में सांगली में, पुत्र औदार्य गौर रहता था वहां स्वयं आ गई वहीं रहने लगी और वहीं सेवा कर रही थी पिछले कई सालों से और अपने पुत्र एक दृष्टि से अपना जो छोटा परिवार था , उसका पति और पुत्र उसको त्याग कर एक बड़े परिवार इस्कॉन फैमिली, इस्कॉन सांगली भक्तों का जो परिवार है उसी को ज्वाइन किया और कृष्णेर संसार करी छाडे अनाचार ,भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं कृष्णेर संसार, कृष्ण के लिए संसार करो यह संसार एक कार्य है। कृष्ण के लिए संसार करो , छोटा सा संसार छोटा सा परिवार उसको त्याग दिया और मोटा परिवार बड़ा परिवार जो हरे कृष्ण परिवार, उनका संसार है उसी का वह अंग बनी और अपने पुत्र की सहायता करती रही , इतने सालों से , हर प्रकार से तन मन धन से या कुछ धनराशि भी थी। अपनी धनराशि का उपयोग वह हरे कृष्णआंदोलन की सेवा में ही किया करती थी। काफी दान धर्म उन्होंने किए हैं मेरे पास अभी डिटेल्स तो नहीं है लेकिन मैं जानता हूं उसके सारे सैक्रिफाइस, उनका सारा त्याग, उनका वैराग्य, उनका समर्पण, उसको हम नहीं भूलेंगे और कोई भी नहीं भूल सकता। इस प्रकार की उनकी ख्याति के रूप में वह जीती रहेंगी। जैसे मराठी कहते हैं। मरावी परी कीर्ति रूपी उरावे, आज के दिन वह नहीं रही या भगवान के घर लौटी लेकिन पीछे क्या छोड़ा? नाम यह कीर्ति ,कीर्ति यशस्य जीवती, जो कीर्तिमान है वही जीवित है। वह अपनी कीर्ति के रूप में जीती रहेंगी और हम सभी को प्रेरणा भी देती रहेंगी। जैसे वे सारे सेवाएं निभा रही थी और उनका सारा जीवन ही समर्पित था भगवान की सेवा में, इस्कॉन की सेवा में, उनका एक आदर्श जीवन रहा। आप और भी पता लगाइए, सीखिए ,समझिए उनके सारे त्याग , वैराग्य, और समर्पण अतः हरग्रेस मधुर गोपी माताजी तिरोभाव दिवस की जय ! गौर प्रेमानन्दे ! हरी हरी बोल !

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