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जप चर्चा परम पूजनीय लोकनाथ स्वामी महाराज द्वारा विषय -जपा रिट्रीट दिनांक 26 जुलाई 2023   हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। बहुत से लोगों ने तुलसी भी रखी है और तुलसी के पास बैठे हैं। धीर चैतन्य परिवार सहित तुलसी की आरती कर रहे हैं और यह बहुत ही सुंदर आईडिया है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। दर्शन कीजिए खुली आंखों से श्री राधा रास बिहारी की जय। 1973 में श्रील प्रभुपाद ने मुझे श्री राधा रास बिहारी का हेड पुजारी बनाया था। अब आप अपनी आंखों से और कुछ नहीं देख रहे हो, भगवान का दर्शन कर रहे हो, संकीर्तन कर रहे हो और जिनको देख रहे हो जिनकी कीर्ति का यश गान कर रहे हो क्योंकि जब आप जप करते हो तो वही करते हो। यह है हरे कृष्ण हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते हुए आप आराधना करते हो उनका दर्शन कर रहे हो और उनकी आराधना कीर्तन के साथ कर रहे हो। कीर्तन के बिना की हुई आराधना अधूरी रहती है, जीव जागो । भगवान इज कॉलिंग 6:30 बज गए कब तक सोए रहोगे दिस इज वेक अप कॉल। आप किसी ने अपनी बिटिया को जगाया या घर वालों को जगा सकते हो। अच्छा है पति-पत्नी साथ में जप कर रहे हैं ऐसा ही होना चाहिए पत्नी की जिम्मेदारी है पति को मुक्त करने की और पति की vice versa एक दूसरे को मुक्त करने की जिम्मेदारी है। गुरुर्न स स्यात्स्वजनो न स स्यात् पिता न स स्यात्स्वजनि न सा स्यात्। दैवं न तत्स्यान्न पतिश्च स स्या-न्न मोचद्यः समुपेतमृत्युम् ॥ (श्रीमद भागवतम 5.5.18) जो व्यक्ति अपने आश्रितों को बार-बार जन्म और मृत्यु के मार्ग से नहीं बचा सकता, उसे कभी आध्यात्मिक गुरु, पिता, पति, माता या पूजनीय देवता नहीं बनना चाहिए। यदि अपने स्वजन को मुक्त करने वाले नहीं हो तो अच्छा होगा कि आप स्वजन मत बनिए , गुरु न सस्यात गुरु भी मत बनिए यदि आप अपने शिष्यों को मुक्त करने वाले नहीं हो तो, पिता भी मत बनिए, ऐसा भी कहा गया है माता मत बनिए जननी ना सस्यात माता पिता मत बनिए। बालक बालिकाओं को जन्म मत दीजिए यदि आप उनको मुक्त करने वाले नहीं हो तो आपको उन्हें इस दुखालय संसार में नहीं लाना चाहिए। यही कर्तव्य है गुरु के साथ औरों का भी पति का पत्नी का बच्चों का मित्रों का स्वजनों का उनको मुक्त करने की जिम्मेदारी (कर्तव्य है, रियल ड्यूटी है) बाकी कर्तव्य तो रोटी कपड़ा मकान वाली यह तो पशु पक्षियों की योनियों में भी होता है कुछ स्पेशल नहीं है नथिंग स्पेशल हरि हरि आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥ आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये तो इन्सान और पशु में समान है । इन्सान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है । धर्म ही विशेष है, मानव समाज में स्वयं धार्मिक बनना, कृष्ण कॉन्शियस बनना औरों को भी कृष्ण कॉन्शियस बनाना, कृष्ण भक्त बनाना दिस इस द मेन ड्यूटी। हरे कृष्ण हरे कृष्ण याद रखिए, यही तथ्य है हम कुछ भी बढ़ा-चढ़ाकर एक अक्षर भी नहीं कह रहे हैं। यह सारी बातें भगवान ने कही है, यह सभी बातें शास्त्रों में लिखी हुई है। यह भगवान की बातें हैं, भगवान के विचार हैं शास्त्रों में, हरे कृष्ण हरे कृष्ण .... कहने का कार्य, सुनने का कार्य बहुत कुछ कहता भी रहा हूं और कुछ कहने की आवश्यकता भी है और भी कुछ कहना चाहता हूं। इस जप रिट्रीट के अंतर्गत सुनिए और कैसे सुनना है ध्यान पूर्वक सुनिए या अपने कान खोल कर सुनिए। पता है ना आपको सुनने वाला तो आत्मा ही होता है, यह कान नहीं सुनता आत्मा ही सुनता है। आत्मा के कारण ही जब यह शरीर मरता है तब कान होते हुए भी कान सुनते नहीं, आंखें होती हैं लेकिन कुछ दिखता नहीं क्योंकि वहां आत्मा नहीं होती है। देखने वाला सुनने वाला या सूंघने वाला वहां नहीं रहा, मुझे हमारे भक्ति वेदांत हॉस्पिटल के एक डॉक्टर बता रहे थे उन्होंने कहा कि मृत्यु के समय अंतिम इंद्रिय जो कार्यरत रहता है वह होता है कान। एक समय उसको स्पर्श का अनुभव नहीं होता या किसी दृश्य का कुछ दिखाई नहीं देता, अंतिम इंद्रीय कान होता है, अच्छा है कि श्रवण करना ही महत्वपूर्ण होता है। अंतिम सांस तक ठीक है और इंद्रियां अभी काम नहीं कर रही वह मर गई लेकिन एक इंद्रिय अब भी जीवित है और वह कान होता है। हम सुन सकते हैं इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले गोविंद नाम लेकर यह प्राण तन से निकले। हम नाम दे पा रहे हैं या और भी हम सुन सकते हैं गोविंद का नाम हरे कृष्ण हरे कृष्ण तो वह कृष्ण नाम सुनके प्राण तन से निकले। वैसे क्या कहा जाए और कितना कहा जाए शरीर जब वृद्ध होता है और शिथिल होता है, विकार बन जाता है। ना तो हम तीर्थ यात्रा में जा सकते हैं ना तो विग्रह की आराधना कर सकते हैं सब धीरे-धीरे करना बंद ही हो जाता है। एक ही कार्य अंतिम सांस तक हम कर सकते हैं वह है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कहने का कार्य, हरे कृष्ण हरे कृष्ण सुनने का कार्य। हरी नाम इस प्रकार अंतिम सांस तक हमारा साथ दे सकता है, देता है इसीलिए भी यह नाम संकीर्तन, नाम जप अधिक महत्वपूर्ण है और जो आध्यात्मिक विधि विधान है उनका पालन शारीरिक रूप से संभव नहीं होता किंतु यह श्रवण कीर्तन तो व्यक्ति कर ही सकता है। उसमें से श्रवण तो बाकी सब बंद होने पर भी चलता रहता है हरि हरि। सो थिस इज रिलायबल और जप करने वाला और सुनने वाला आत्मा ही है। इसका भी एक उदाहरण है हमारे गौड़ीय वैष्णव अब वृद्ध हुए और बीमार चल रहे थे, डॉक्टर स्टेथोस्कोप के साथ जांच पड़ताल कर रहे थे , जब उनका डायग्नोसिस चल रहा था उनको अचरज हुआ उनके स्टेथोस्कोप से उनको हरे कृष्ण हरे कृष्ण सुनाई दे रहा था, उन्होंने गौड़ीय वैष्णव महात्मा के मुख की ओर देखा, मुख बंद था तो भी डॉक्टर को महामंत्र सुनाई पड़ रहा था। वक्षस्थल पर जांच पड़ताल कर रहे थे या पीछे कर रहे थे तो महामंत्र का उच्चारण कौन कर रहा था, कौन करता होगा उनकी आत्मा पुकार रही थी, बोल रही थी, मुख में बोलने की क्षमता नहीं थी। आत्मा हरि हरि तो आत्मा तो नाच रही थी शरीर का जन्म हो रहा है । नाम नाचे- जीव नाचे, नाचे प्रेम धन ऐसा श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने भी लिखा है हरि नाम चिंतामणि में , नाम नाचे जीव नाचे नाचे प्रेम धन तो जब नाम नाचता है तो जीव भी नाचने लगता है नाम ही भगवान है। भगवान साथ में नृत्य करते हैं, जो हम होते हैं तो हम भी नृत्य करने लगते हैं और जो प्रेम का धन है, प्रेम की तरंगे हैं लहरे हैं वह आंदोलित हो रही है, वह भी नाच रही है। मानो नाम नाचे, भगवान नाच रहे हैं जीव नाच रहा है और आनंद का सागर भी आंदोलित हो रहा है तो लव एट द फर्स्ट साइट ऐसा अंग्रेजी में कहते हैं। पहली बार देखा और प्रेम हुआ हरि-हरि क्योंकि जीवन में ऐसा होता है लव एट फर्स्ट साइट, मेरा भी आई फॉल इन लव विद दिस होली नेम, पहली मुलाकात में 1971 का जो हरे कृष्ण फेस्टिवल क्रॉस मैदान के पास मुंबई में जो श्रील प्रभुपाद संपन्न कर रहे थे। वहां जब मैं गया जो भी देखा सुना श्रील प्रभुपाद के साथ, उनकी शिष्य मंडली जो कीर्तन कर रही थी, नृत्य कर रही थी बस दैट वाज इट पहली मुलाकात में आई वाज सोल्ड आउट उस उत्सव से मैं क्या प्राप्त करके आया टेक अवे वह यह हरि नाम था। मेरे कानों में गूंज रहा था उत्सव के उपरांत भी और दृश्य अविस्मरणीय था अनफॉरगेटेबल एक्सपीरियंस ! जब मेरे कमरे में मैं अकेला ही रहता हमारे रूममेट् नहीं रहते तो मैं कमरे के सारे खिड़की दरवाजे पर्दे बंद करके अकेला ही नाचता और कूदता यह गाते हुए, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जीव नाचे नाम नाचे नाचे प्रेम धन इसका मैं अनुभव करता रहा आगे फिर श्रील प्रभुपाद ने मुझे दीक्षा भी दी, हरि नाम दीक्षा दी, उन्होंने श्रीकृष्ण को दिया महामंत्र के रूप में और जप करने के लिए मुझसे संकल्प लिया तब से अब तक आज की तारीख तक मैं हर रोज एवरीडे इसको विदाउट फेल वगैरह जो कहते हैं आई हैव चैनटेड मिनिमम 16 राउंड एवरी सिंगल डे और इतना ही नहीं और भी क्या कहोगे इसको विशेषता या समथिंग लाइक दैट। पिछले कुछ 51 या 52 वर्षों से मैंने प्रतिदिन हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन भी और जप भी किया है और कब किया है प्रतिदिन। प्रतिदिन 365 मल्टीप्लाई 51/52 में बहुत बड़ी संख्या बनती है इतने दिन मैंने जप किया है इतने दिनों में से अधिकतर दिन हो सकता है 95 या 96% ऑफ़ द डेज मैंने प्रातः काल में जप किया है, मंगल आरती हुई और चैनटेड हरे कृष्ण महामंत्र। कुछ भक्त ऐसा सोचते हैं कि आज तो छुट्टी है, आज तो थोड़ा ट्रैवलिंग करना है ही ऐसा वैसा कर लेंगे, दिन में जप कर लेंगे। क्या हुआ होगा मैंने ऐसा नहीं किया है पहले कार्य पहले सेवा, हरिनाम प्रभु की सेवा। महामंत्र की सेवा मैंने प्रतिदिन प्रातः काल में मैंने जप ही किया है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। और सुनिए बहुत सी बातें हैं जारे देखो तारे कहो कृष्ण उपदेश यह बात तो पूरी जानकारी नहीं है सिर्फ अंदाजा लगा कर ही मैं कह सकता हूँ कि प्रभुपाद ने यह बात मुझे ही कही जारे देखो तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश स्टैंडर्ड की बात तो चैतन्य महाप्रभु ने ही कही थी, किंतु मुझे प्रभुपाद जब पद यात्रा का उद्घाटन कर रहे थे 1976 में मंथ ऑफ़ सेप्टेंबर 10 तारीख कृष्ण बलराम मंदिर के पीछे वृंदावन में प्रभुपाद के क्वार्टर में जब पदयात्रा का उद्घाटन हुआ तो उस उद्घाटन के अंत में हम जब प्रस्थान कर रहे थे, पदयात्रा प्रारंभ हो रही थी तो प्रभुपाद ने फाइनली कहा हे लोकनाथ स्वामी ,जारे देखो तारे कहो हरे कृष्ण उपदेश तो इस प्रकार का आदेश उपदेश प्रभुपाद ने मुझे किया, उस आदेश का पालन भी मैं कर रहा हूं तो फिर हमें क्या कहा जाए यह जप कॉन्फ्रेंस भी शुरू की जो कई वर्षों से चल रही है और उसमें अधिकतर हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने से संबंधित ही आदेश उपदेश और प्रेरणा के वचन कहे जाते हैं आप सबका स्वागत है आप जुड़े रहिए इस जप कॉन्फ्रेंस से और फिर जप टॉक भी देते हैं, और इस तरह से ये जप चर्चा ही जप रिट्रीट बन जाती है। कल की कक्षा में प्रश्नोत्तरी होगी। हरे कृष्ण

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