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*जप चर्चा* *परम पूजनीय लोकनाथ स्वामी* *गुरु महाराज द्वारा* *दिनांक 25 जून 2022* हरे कृष्ण!!! *सुंदर तें ध्यान उभे विटेवरी । कर कटावरी ठेवोनियां ॥१ ॥* *तुळसी हार गळां कांसे पीताम्बर । आवडे निरंतर तेंचि रूप ॥२ ॥* *मकरकुंडलें तळपती श्रवणीं । कंठीं कौस्तुभमणि विराजित ॥३॥* *तुका ह्मणे माझें हेंचि सर्व सुख । पाहीन श्रीमुख आवडींने ॥४ ॥* एकादशी महोत्सव की जय! संसार के कुछ देशों अथवा क्षेत्रों में या भारत के कुछ क्षेत्रों में कल एकादशी मनाई गई किंतु जहां मैं अब स्थित हूं अर्थात यहां पंढरपुर धाम में हम आज एकादशी उत्सव मना रहे हैं। पंढरपुर धाम की जय! एकादशी महोत्सव की जय! *माधव - तिथि , भक्ति जननी , यतने पालन करि । कृष्णवसति , वसति बलि ' , परम आदरे वरि ।।* ( एकादशी - कीर्तन , शुद्ध भक्त रेणु- वैष्णव गीत) अर्थ:- माधव तिथि ( एकादशी ) भक्ति को भी जन्म देने वाली है तथा इसमें कृष्ण का निवास है , ऐसा जानकर परम आदरपूर्वक इसको वरणकर यत्नपूर्वक पालन करता हूँ । माधव तिथि, माधव की तिथि है। यह हरि वासर है। वासर मतलब दिन। रविवासर, सोमवासर, यह निश्चित ही पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग! विट्ठल! विट्ठल! विट्ठल! क्या कहा जाए, मैं उनके बगल में ही बैठा हूं या वे मेरे बगल में ही हैं। आप देख रहे हो! ठीक है। वैसे मैं सोच रहा था कि जैसा हम बाहर देख रहे हैं या आप देख रहे हो कि मैं भगवान के निकटस्थ बैठा हूं या उपस्थित हूं लेकिन ऐसी वस्तु स्थिति हृदय प्रांगण में है ही, केवल मेरे ही नहीं अपितु हम सभी के हृदय प्रांगण में भगवान विराजमान हैं। याद रखिए वैसे यह मेरा आज का विषय तो नहीं है लेकिन मैं ऐसा याद भी कर रहा था। मैं आपको भी याद दिलाना चाहता हूं, भगवान हमारे साथ सदैव हैं। *सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ||* ( श्रीमद भगवद्गीता १५.१५) अनुवाद:- मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ | वे भगवान, जो आपके हृदय प्रांगण में विराजमान हैं। आप भी वहां उनके साथ ही हो। वे भगवान आप सबको और मुझे भी बुद्धि दे। *तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ||* ( भगवद्गीता १०.१०) अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं | ताकि हमारे जीवन की यात्रा अर्थात जर्नी ऑफ दिस लाइफ मंगलमय हो। यात्रा की बात का अभी उल्लेख हुआ है और आप पीछे पढ़ भी रहे हो कि पंढरपुर की दिंडी यात्रा। (पढ़ रहे हो? चिंतामणि, पढ़ रही है? क्या तुम्हें पढ़ना आता है? यह संस्कृत, मराठी या कहो हिंदी है। वैसे कल भी आपको हरिकीर्तन प्रभु और कृष्ण भक्त प्रभु पंढरपुर आने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि यहां पंढरपुर धाम में किस प्रकार की तैयारियां हो रही है। (किसकी तैयारी? अगली एकादशी की।) आज एकादशी है फिर अगली एकादशी होगी- शयनी एकादशी। इस एकादशी के दिन भगवान ने मुझ पर कृपा की और इसी एकादशी के दिन मुझे जन्म भी दिया था। अगली एकादशी के दिन, मेरा जन्मदिन भी है। वैसे मैं यह कह ही रहा था कि हरि वासर है। एकादशी, हरि वासर है या माधव तिथि है। इसलिए निश्चित ही यह एकादशी तिथि पांडुरंग, विट्ठल तिथि है। पंढरपुर में हर एकादशी महोत्सव को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है और यहां पर असंख्य विट्ठल भक्त पहुंच जाते हैं। उन सभी एकादशियों में जो शयनी एकादशी है अर्थात अगले वाली एकादशी में सबसे अधिक संख्या में यात्री/ दर्शनार्थी या विठ्ठल भक्त पंढरपुर पहुंच जाते हैं। यह पंढरपुर में दर्शन करने या पहुंचने की एक विधि कहो या एक प्रकार कहो, वह दिंडी यात्रा है। दिंडी यात्रा, यह दंडी यात्रा नहीं है जो महात्मा गांधी ने गुजरात में दंडी यात्रा की थी। वह एक अलग बात है यह दिंडी यात्रा है, पदयात्रा है इसको दिंडी यात्रा भी कहते हैं। इसको पालकी भी कहते हैं। यहां पालकी में भगवान के विग्रह या भक्तों की चरण पादुका को ढोते हैं या बैलगाड़ी से उसको खींचते भी हैं। इस साल अथवा इस वर्ष की दिंडी यात्रा प्रारंभ हो चुकी है और इस दिंडी यात्रा में पांच लाख यात्री भाग ले रहे हैं, यह 18 दिन की यात्रा होती है। ( चित्रों में आप देख सकते हो- यह इस्कॉन अरावड़े द्वारा यात्रा हो रही है और पंढरपुर आ रहे हैं) वैसे महाराष्ट्र के हर नगर, हर ग्राम से यह यात्राएं प्रारंभ होती है। दिंडी यात्रा में दो प्रमुख यात्राएं होती हैं एक- तुकाराम दिंडी कहलाती है जो देहू से प्रारंभ होती है। तुकाराम महाराज की जय! दूसरी यात्रा- आलंदी कहलाती है, आलंदी में ज्ञानेश्वर महाराज की समाधि है। वहां से एक दूसरी यात्रा प्रारंभ होती है। ( चित्र में - देहू के प्रवेश द्वार पर आप देख रहे हो दिंडी यात्रा) यह दिंडी यात्रा पिछले 700 वर्षों से चल रही है। (क्या कहा मैंने? पिछले 700 वर्षों से यह दिंडी यात्रा संपन्न हो रही है। यह बात भी उल्लेखनीय होगी कि हमारे इस्कॉन के भक्त भी इस यात्रा में प्रतिभाग लेते हैं। (जैसा कि आप यहां देख रहे हो ) हमारे जो अलग-अलग पदयात्राएं हैं, महाराष्ट्र पदयात्रा है। महाराष्ट्र पदयात्रा भी इस दिंडी में ही जुड़ गई है। देहू से प्रारंभ होने वाली और आलंदी से प्रारंभ होने वाली इन दोनों यात्राओं में इस्कॉन भक्त भी सम्मलित होकर दिंडी यात्रा कर रहे हैं। हरि! हरि! हमारे इस्कॉन यात्री सिक्योरिटी पर्सन्स को भी प्रेरित कर रहे हैं। यह ताजी खबरें हैं। आप देख सकते हो। लेटेस्ट खबरें, ब्रेकिंग द न्यूज़। हरि! हरि! हरि नाम का प्रचार *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* हो रहा है। हरे कृष्ण भक्त इसका कीर्तन साथ में कर रहे हैं और बाकी जो अन्य यात्री है उनको वारकरी भी कहते हैं। वारकरी आपने सुना होगा, इनकी संख्या देखिए। कुछ तो यात्रा करने वाले हैं व अन्य कुछ यात्रा करने वालों का स्वागत या दर्शन करने के लिए रास्ते में लाखों लोग एकत्रित हो जाते हैं । देखिए! दिस इज द गुड सीन। आप गिन लीजिए जो मैंने कहा, कई मील लंबा यह जुलूस होता है। इसमें अधिकतर भक्त ही होते हैं। बाकी जो इसमें वारकरी होते हैं वे- *जय जय राम कृष्ण हरि!* *जय जय राम कृष्ण हरि!* *जय जय राम कृष्ण हरि!* करते हैं। यह उनका मंत्र है, रास्ते में तुकाराम के अभंग और महाराष्ट्र, अन्य स्थानों अथवा सारे संसार भर में जो विठ्ठल के भक्त हैं। वे ये अभंग गाते रहते हैं। हरि! हरि! देहू से कुछ दिन पहले हमारी यात्रा प्रारंभ हुई। हम रास्ते में हैं। तुकाराम महाराज भी ऐसे ही रास्ते में आया करते थे। वे 1 साल नहीं आ पाए, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। हमनें पूर्व में यह कथा सुनाई थी कि कैसे उन्होंने विट्ठल भगवान को पत्र भेजा। जब भगवान ने पत्र अर्थात समाचार सुना तो उसमें लिखा था कि मैं नहीं आ सकता, प्रभु ! क्या आप आ सकते हो? कुड यू प्लीज कम और फिर भगवान गए थे और फिर विट्ठल रुक्मणी गरुड़ को अपना वाहन बनाकर ( वैसे उनका वाहन गरुड़ ही है) भगवान देहु गए थे। विठ्ठल तो आला आला.. तुकाराम महाराज ने ऐसा गीत भी गाया था। *विठ्ठल तो आला आला माला भेंट न्याला* देखो दयालु विट्ठल, मुझे मिलने के लिए आए हैं। यह हमारी दो दिंडियां जो एक देहू से चलने वाली दूसरी आलिंदी से चलने वाली, दोनों हरे कृष्ण दिंडियों को यहां पुणे में एक साथ राधा कुंज बिहारी मंदिर के ( वैसे पुणे में कई मंदिर हैं। ) प्रांगण में देख सकते हैं ( चित्र में इस्कॉन की दोनों यात्राएं आप एक साथ देख रहे हो।) रूप रघुनाथ स्वामी महाराज भी स्वयं इस पद यात्रा में हैं। शंख ध्वनि करके वह घोषित भी कर रहे हैं कि यह दिंडी यात्रा आगे बढ़ रही है आप आइए, ज्वाइन अस। वे अड्रेसिंग द असेंबल डवोटी। हरि हरि। यहां चित्र में भक्त स्वयं ही रथ खींच रहे हैं। भक्त इस प्रकार से आनंद लूट रहे हैं। केशव प्रभु इस एक यात्रा का नेतृत्व भी कर रहे हैं। इस यात्रा को चलाने का श्रेय केशव प्रभु को भी जाता है, केशव प्रभु बहुत प्रयास करते हैं। आपकी जानकारी के लिए यह हमारे इस्कॉन की दिंडी यात्रा पिछले 25 वर्षों से हो रही है। इस वर्ष पार्थ सारथी प्रभु भी देख रहे हैं। वह भी नेतृत्व करते रहते हैं। (एक यात्रा जो... अब नाम नहीं कहूंगा। ) एक यात्रा जो पिछले 25 सालों से चल रही है, उसकी सिल्वर जुबली हम इस साल मना रहे हैं और दूसरी यात्रा को 18 या 19 वर्ष हो रहे हैं। इस्कॉन का प्रतिभाग इतने वर्षों से हो रहा है। शुरुआत में कुछ संख्या कम हुआ करती थी इस्कॉन की ! पदयात्रा में दिन-ब-दिन हर साल पद यात्रियों की संख्या में वृद्धि हो रही है और भक्त जप एंड नृत्य कर रहे हैं और यह होता ही है। यहां रास्ते में हर पग पग पर और एवरी स्टेप पर नृत्य होता है, कीर्तन होता है, प्रसाद वितरण होता है, सब समय कथाएं व कीर्तन होते हैं। यह दिंडी का अवसर एक विशेष अवसर है। जिसमें ग्रहस्थ भक्त भी, किसान भक्त और कई सारे कुछ जवान भी आप देख रहे थे, सब इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं और आनंद लूटते हैं। इस यात्रा में तपस्या भी करनी होती है। घर छोड़ा तो फिर कंफर्ट जोन फिनिश्ड। कंफर्ट जोन से बाहर आकर मैदान में आते हैं। रास्ते में आते हैं। ऐसे ही रहना पड़ता है यह देख रहे हो। ना तो ए.सी है लेकिन मच्छरों से बचने के लिए कुछ ना कुछ अर्थात मॉस्किटो नेट तो है। कुछ तो सुविधा है, यहां भक्त कथा कर रहे हैं। यहां पर भक्तगण प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। इंजॉयनिगं प्रसादम। यह हमारे ब्रह्मचारी/ टेंपल भक्तों का मंडल है और भी दूसरे भक्त निश्चित प्रसाद ग्रहण करते हैं। रास्ते में कथा सुनते रहते हैं । भक्ति के पांच महासाधन है आपको याद है कि कौन से हैं? भक्ति के 64 अंग होते हैं। उसमें से 5 को रूप गोस्वामी कहते हैं कि ये महासाधन हैं साधु संग, भागवत श्रवण, नाम संकीर्तन, धाम वास और विग्रह आराधना। इस परिक्रमा अर्थात इस दिंडी में ( पदयात्रा में कह सकते हैं) भी इन पांचों के पांचों आइटम अथवा साधनों को करते हुए भक्त आगे बढ़ते रहते हैं। दिंडी करना एक साधना है, दिंडी करना एक तपस्या भी है। एक बार हमारे राघवेंद्र प्रभु ने इंटरव्यू लिया था, उन्होंने एक दिंडी के यात्री से पूछा कि इस यात्रा में सुख सुविधा कैसी है। उस व्यक्ति ने अथवा उस भक्त ने कहा था- सुविधा तो नहीं है लेकिन सुख है। (आपने नोट किया था, कृपया इसे नोट कीजिए। मैं समय-समय पर कहते ही रहता हूं। आप इसे सीखो- समझो। फिर आप इसे कह सकते हो, बता सकते हो।) ऐसी यात्रा में कुछ असुविधा हो सकती है, सुविधा कम होती है लेकिन सुख अधिक होता है। आपको क्या चाहिए ? सुविधा को छोड़ो। सुविधा को गोली मारो, कभी ऐसी तपस्या भी किया करो। पदयात्रा या दिंडी यात्रा या ब्रज मंडल परिक्रमा या नवद्वीप मंडल परिक्रमा भी है, श्री क्षेत्र परिक्रमा, जगन्नाथ पुरी में है। ऐसी पदयात्राओं या फिर इस दिंडी यात्रा में आपका स्वागत है, आप कभी आया करो। यह जो दिंडी यात्रा है, इसमें वारकरी कीर्तन और नृत्य करते हुए चलते हैं। प्रभुपाद ने चैतन्य चरितामृत के तात्पर्य में इस दिंडी यात्रा या वारकरियों की यात्रा कीर्तन मंडली की तुलना गौड़ीय वैष्णवों की कीर्तन मंडली के साथ करते हुए काफी साम्य अर्थात समानता को दर्शाया है। प्रभुपाद ने वारकरियों या दिंडी यात्रा की कुछ प्रशंसा भी की है, वे भी कीर्तन ही करते रहते हैं। जो कि कलियुग का धर्म है अर्थात नाम संकीर्तन। *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।* ( बृहन्नारदीय पुराण) अर्थ:-इस कलियुग में आध्यात्मिक उन्नति के लिए हरिनाम, हरिनाम और केवल हरिनाम के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है। वे हरि का नाम लेते हैं। किसी देवी देवता का नाम नहीं लेते हरे कृष्ण बोलते हैं ! उनके पास हमारे जैसे अर्थात गौड़ीय वैष्णवों की तरह ही मृदंग और करताल होते हैं। यह जो वारकरियों की यात्रा या कीर्तन मंडली है, उनका मृदंग थोड़ा सा भिन्न होता है। उसको पकवास कहते हैं, वह लगभग मृदंग जैसा ही होता है एवं उनके पास करताल होती है। वारकरी भक्त भी बड़े सुंदर सुंदर, मधुर कीर्तन और नृत्य करते रहते हैं। यह दर्शनीय, श्रवणीय कीर्तन उत्सव दिंडी यात्रा महोत्सव होता है। कभी-कभी 500 लोग करताल साथ में बजा रहे होते हैं या 1000 भक्त या वारकरी एक साथ करताल बजाते हैं। जब वह सुनते हैं तो लगता है कि एक ही व्यक्ति बजा रहा है, वे बड़े कुशल होते हैं। अपने कौशल्या का प्रदर्शन भी करते हैं। मृदंग वादन है या करताल का नाद् है। हरि! हरि! मेरे पिताश्री भी ऐसी दिंडियों में आया करते थे या मेरे गांव से जो लोग दिंडी में आते थे। हरि! हरि! 100 किलोमीटर चल वे कुछ ही दिनों में यहां पहुंच जाते थे। दशमी के दिन पंढरपुर में यह दिंडी पहुंच जाती है और अगले दिन एकादशी होती है। कौन सी एकादशी? शयनी एकादशी। यह भी तो समझने की बात है कि शयनी अथवा आषाढी एकादशी में इतनी बड़ी संख्या में क्यों आते हैं? नाम से ही पता चलता है, शयनी। इस चित्र में देखिए कुछ माताएं तो विट्ठल रुक्मिणी के विग्रह लेकर चल रही हैं, कुछ माताएं तुलसी को ढो रही हैं। वैसे 100 - 100 के ग्रुपस, नगर व ग्राम से आते हैं अर्थात दिंडी में जो पांच लाख की संख्या में भक्त आते हैं इसमें कई सारी टीमें होती हैं। ग्रुप्स होते हैं, मंडल होते हैं। हर मंडली में तुलसी होती है, उनकी पालकी होती है। वे भगवान के विग्रह को ढोते हैं या विग्रहों या संतों के चरण पादुकाओं को ढोते हैं। हरि! हरि! शयनी एकादशी मतलब इस दिन भगवान अब शयन करेंगे अर्थात भगवान सोएंगे, कितना समय सोएंगे। चार महीने। यही चातुर्मास है। आषाढ़, सावन, भाद्रपद, आश्विन कार्तिक। मैंने तो पांच कहें, वास्तव में 4 महीने होते हैं। .... तत्पश्चात कार्तिक में एकादशी होगी, उसका नाम होगा उत्थान एकादशी। उत्थान मतलब उठना, शयन मतलब सोना। तब भगवान विश्राम करेंगे। उनके विश्राम करने से पहले चलो हम दर्शन कर लेते हैं। इस उद्देश्य से भी भगवान के विश्राम से पहले कई यात्री इतनी बड़ी संख्या में पंढरपुर पहुंच जाते हैं। शायद ऐसी दिंडी या पदयात्रा करते हुए नहीं आते होंगे लेकिन कई सारे तीर्थों में भक्त आ ही जाते हैं। जैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय भी जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए पूरे बंगाल, उड़ीसा के भक्त आया करते थे। हरि! हरि! द्वितीय को रथ यात्रा होगी। जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव की जय! भगवान जब लौटेंगे तब उल्टा रथ होगा। रथ यात्रा होगी, गुंड़ीचा मंदिर जाएंगे। तत्पश्चात उल्टा रथ होगा। जगन्नाथ अपने मंदिर लौटेंगे, जगन्नाथपुरी में भी अषाढ़ी एकादशी महोत्सव है। चैतन्य महाप्रभु के समय में जगन्नाथ पुरी में बड़ी संख्या में भक्त आया करते थे। फिर चातुर्मास प्रारंभ होता है, कई सारे यात्री धाम वास करने के उद्देश्य से भी आ जाते हैं और धाम में ही रहते हैं। कई अपने अपने घर गांव नगर आदि ग्राम में लौटते भी है लेकिन कई सारे साधक धाम वास करते हैं। चार महीनों में कुछ विशेष या अधिक साधना भी करते हैं। अधिक जप तप करते हैं। पठन-पाठन अधिक करते हैं। हरि! हरि! यह चतुर्मास का समय साधना का समय भी है। यह चार महीने का समय विशेष साधना का समय होता है। इसका फायदा उठाते हैं। चातुर्मास की जो कालावधि भी है या ऐसी विधि भी है। हम लोग आपके लिए भी, योजना बना रहे हैं। आने वाले चातुर्मास में या 4 महीनों में आप किस प्रकार प्रभुपाद के ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हो। यह योजना हमारे वेदान्त चैतन्य प्रभु व कुछ अन्य भक्तों की मदद से बन रही है और इसकी घोषणा .. मैं सोचता हूँ कि कुछ संकेत तो आपको मिला है और भी बताया जाएगा। आप तैयार रहो "टू रीड, प्रभुपाद बुक्स" हम लोग बुक डिस्ट्रीब्यूशन मैराथन करते ही रहते हैं लेकिन इस चातुर्मास में 'रीड माय बुक्स" अर्थात प्रभुपाद के ग्रंथों का मैराथन होगा। इस संबंध में और आपको बताया जाएगा। क्या आप तैयार है? ठीक है। कुछ रिस्पॉन्स है। आप तैयार हो रहे हो। हरि! हरि! यहां जब यात्री आ जाते हैं तो क्षण भर का ही दर्शन होता है। विट्ठल भगवान के दर्शन के लिए आते क्यों है? 18 दिन चलते हैं, रास्ते में इतनी सारी तपस्या को झेलते हैं। यहां आने पर कभी-कभी या कुछ कुछ यात्रियों को 18 घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ता है। हरि! हरि! पंढरपुर के पास में आ गए यात्री तो..शरण में आ रहे हैं,. हमनें एक वीडियो बनाया है- डॉक्यूमेंट्री। आपको कभी दिखाने का प्रयास होगा। 18 दिन की यात्रा और दस- बीस घंटे लाइन में खड़े होने के उपरांत, हर यात्री को... एक दिन में 20 लाख लोग दर्शन करना चाहते हैं । वन एट ए टाइम। यहां के दर्शन का यह विशिष्टय है। यहां एक समय एक ही व्यक्ति दर्शन करता है। इसलिए हर भक्त अथवा हर दर्शनार्थी को कुछ फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड कहिए। एक सेकंड में कईयों को दर्शन करा कर आगे भेजा जाता है। आउट... नेक्स्ट.. अगला... अगला... अगला... अगला. मैं जो कह रहा हूं यह भी स्लो हो गया। नेक्स्ट.. उससे भी अधिक तेजी से उनको आगे बढ़ाना होता है। क्षण भर का या आधे क्षण का दर्शन हुआ तो बस,तो उनकी यात्रा सफल। सारी यात्रा / सारी तपस्या/ सारे प्रयासों का फल क्या है? क्षण भर का दर्शन। उनकी यात्रा सफल, उनका जीवन सफल। दर्शन करने के उपरांत उनके चेहरे देखोगे तो समाधान/ तृप्ति देखोगे। जब वे दर्शन करके बाहर आते हैं। हरि! हरि! हम भी जब छोटे थे। हमारे पिता या गांव के लोग भी दिंडी यात्रा में जाते तो हम उनकी प्रतीक्षा में रहा करते थे। वैसे हम बच्चों की रुचि तो कुछ प्रसाद लेकर आने में थी। फिर गांव के लोग यात्रा करके जब लौटेते हैं अर्थात जो विट्ठल का दर्शन करके आए हैं, उनका दर्शन करना, उनके चरणों का स्पर्श करना या उनको आलिंगन देना, भगवान को आलिंगन देने के बराबर की बात है। जो इस दिंडी यात्रा में गांव वाले या नगर वाले नहीं जा पाए, तो वे उन यात्रियों का दर्शन करते हैं। उनका चरण स्पर्श करते हैं, उनका अलिंगन करते हैं और उनसे कुछ प्रसाद भी प्राप्त करते हैं। जो नहीं गए उनको भी दर्शन का लाभ प्राप्त होता है और इस प्रकार यह कृष्ण भावनामृत या भगवद भावना या यह कृष्ण भावना विट्ठल पांडुरंग भावना सर्वत्र फैलती है। हरि! हरि! प्रभुपाद ने मुझे पदयात्रा करने के लिए आदेश दिया। प्रभुपाद के आदेशानुसार महाराष्ट्र में यात्रा या भारतवर्ष में कई स्थानों पर दिंडी यात्रा टाइप पदयात्रा होती हैं लेकिन पंढरपुर में जो दिंडी यात्रा होती है। यह बड़ी अनोखी है, यह बड़ी अनुपम है। इसकी तुलना किसी भी यात्रा के साथ संभव नहीं है। श्रील प्रभुपाद ने यह पदयात्रा करने के लिए मेरा चयन किया अर्थात मुझे सिलेक्ट किया। हम देशभर में और विदेशों में यह पदयात्रा स्पिरिट को फैला रहे हैं। जब प्रभुपाद का जन्म शताब्दी महोत्सव उत्सव मनाया गया.. (जन्म शताब्दी समझ रहे हो? जन्म शताब्दी अर्थात सौवीं बर्थ एनिवर्सरी वर्ष १९९६ में मनाए ) इस्कॉन की एक पदयात्रा मिनिस्ट्री है जिसका मैं मिनिस्टर हूं। हम लोगों अर्थात पदयात्रियों ने सौ से अधिक देशों में पदयात्रा संपन्न की हुई है। क्या सुना आपने? कुछ तो थक गए, आप सो रहे हो। १०० से अधिक देश में पदयात्रा हुई। मैं भी कई सारे देशों में गया भी लेकिन वहां के स्थानीय निवासी या हरे कृष्ण भक्तों ने पदयात्रा की और प्रभुपाद को जन्म शताब्दी के उपलक्ष में यह हमारी श्रद्धांजलि रही। आज तक कई देशों में ऐसी पदयात्राएं चल ही रही है। वर्तमान में भारत में भी, अधिक अधिक संख्या में पदयात्राओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। वनडे पदयात्रा इत्यादि भी चल रही है और साथ ही साथ... किसी और दिन बताएंगे। आपको भारत में नगर आदि ग्राम योजना बन रही है। श्रील प्रभुपाद का 130 वां जन्म वर्ष हम मनाएंगे। जो कि चार-पांच वर्षो के उपरांत है। तब तक हरि नाम को और अधिक अधिक भारत के कोने कोने में इस पदयात्रा को पहुंचाने की योजना या कीर्तन अर्थातनगर आदि ग्राम योजना बन रही है। इस्कॉन इण्डिया के लीडर्स मिलकर ऐसी योजना बना रहे हैं। अगले 5 वर्षों में सभी बड़े नगरों में डिस्ट्रिक्स टाउन, तहसील व कई सारे ग्रामों में भी हरिनाम को पहुंचाने की योजना है और भी बताएंगे बड़ी विशेष योजना है। एक मिनट में नहीं कहा जा सकता। इसके लिए लंबा समय चाहिए, अधिक समय की आवश्यकता है समय भी बीत चुका है। मैं अपनी वाणी को... पदयात्रा को तो यहां विराम नहीं दे रहे हैं लेकिन यहां अपनी वाणी को विराम देंगे। देखिए, कैसे स्वागत होता है। पदयात्रा में कितने लोग जुड़ जाते हैं। सारा गांव ही इकट्ठा हो जाता है। श्री श्री निताई गौर सुंदर की जय! श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दर्शन और साथ में *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* अर्थात इस कीर्तन को सुनने के लिए और कुछ प्रसाद प्राप्त करने के लिए और प्रभुपाद के ग्रंथ का वितरण भी होता है। हरि! हरि ओके आज एकादशी है तो अगले एकादशी आपको मिलेंगे। व्यक्तिगत फिजिकली। ऐसी आशा और प्रार्थना के साथ वाणी को विराम दे ही देते हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग! गौरांग! गौरांग गौरांग! तुकाराम महाराज की जय! श्रील प्रभुपाद की जय! गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल!

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