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जप चर्चा,
24 सितंबर 2021,
सोलापुर.
मेरी आवाज आ रही है सबको। आपके लिए भी और संसार भर के भक्त सुन रहे हैं, धन्यवाद। हम किसी पर मेहरबानी तो नहीं करते जप करके। भगवत साक्षात्कार के लिए हम जप करते हैं। जैसे संसार भर के लोग नतै विदुः स्वार्थगतिं ही विष्णुं नतै विदुः स्वार्थगतिं ही विष्णुं प्रल्हाद महाराज ने कहा है, नतै विदुः स्वार्थगतिं ही विष्णुं लोग जानते नहीं अपने फायदे के लिए, स्वार्थ के लिए कुछ करते रहते हैं लेकिन, उनको स्वार्थ का मतलब पता नहीं। करते रहते हैं, कुछ करते रहते हैं। नतै विदुः स्वार्थगतिं ही विष्णुं विष्णु प्राप्ति कृष्ण प्रार्थी में ही हमारा स्वार्थ है। स्व आत्मा का मतलब है मतलब की बात है, कृष्ण, कृष्ण प्राप्ति हुई जहां हईते यह जप कर करके, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जो इस कलयुग का धर्म भी है। भगवान का नाम हमें रूप तक पहुंचाता है। यह नाम हमें रूप तक पहुंचाता है, कह भी दिया तो ठीक है कि नाम ही रूप है। नाम से रूप तक पहुंच गए की बात सही नहीं है। और कैसे समझ तो है नाम तत्व के दृष्टि से नाम ही रूप है। नाम से रूप तक और फिर रूप से भगवान के गुणों तक हम पहुंचते हैं। यह जीव का साक्षात्कार होता है ।नाम से धाम तक। वैसे मैं कहते रहता हूं, नाम से धाम तक। नाम से धाम तक मतलब भगवत धाम तक। वृंदावन धाम तक। मायापुर धाम तक। पंढरपुर धाम तक। यह नाम हमें धाम तक पहुंचाता है। धाम तक पहुंचाता है मतलब भगवान तक पहुंचाता है। धाम में रहते हैं भगवान। गोलोक, गोलोक में निवास करते हैं। नाम से रूप, रूप से गुण और गुणों से लीला और लीला खिलाने कोई साथ है। कोई पागल है, अकेला लीला करेगा। लीला में परीकरो कि अनिवार्यता है। नंदबाबा यशोदा है तो फिर, वात्सल्य लीला होगी। मधुमंगल सुदामा इत्यादि अष्टसखा है और अनेक सखा है तो फिर गोचारण लीला संभव होगी। गाय भी चाहिए। राधारानी है तो निकुंज में माधुर्यलीला फिर गोपियां, गोपियों के बिना राधारानी के बिना वह लीला संभव नहीं है। इसलिए फिर परिकर भी आ जाते है। कृष्ण के संगी साथी। संबंध का ज्ञान वही ज्ञान हो जाता है। नाम से, रूप रूप से, गुण तक गुण से लीला फिर लीला के पहले भक्त तो चाहिए। हवा में तो नहीं होगी। लीला धाम में होती है। यह नामजप हमें परिचय कराता है। हमें साक्षात्कार कराता है। भगवत साक्षात्कार मतलब भगवान के रूप का साक्षात्कार। भगवान के रूप का दर्शन। फिर गुणों का दर्शन भी, गुणों का दर्शन मैंने कह तो दिया बात सही है गुणो का दर्शन। गुणों का अनुभव उसको भी दर्शन कहते हैं। जैसे अलग-अलग शास्त्र षड्दर्शन कहलाते हैं। रूप का साक्षात्कार, गुणों का साक्षात्कार। समाधिस्थ होकर आप सुन रहे हो, यह समस्या है। लेकिन समाधि में कैसे, यह ध्यान रहे आंखें आधी खुली होनी चाहिए, आधी बंद होनी चाहिए। लेकिन हम क्या करते हैं, हम आंखें पूरी बंद करते हैं। या तो आंखें पूरी खोल देते हैं और सारी दुनिया को देख लेते हैं। वह भी सही नहीं है। और आपके पूरे बंद कर दिया तो अंधेरा हो गया अंदर। हरि हरि, जीव जागो यह बातें हम सुनेंगे नहीं तो हमारे जप में सुधार नहीं होगा। जपा टॉक होता है। जपा रिट्रीट होता है। जपा रिट्रीट में तो कई भक्त 1 सप्ताह भर के लिए एकत्रित होते हैं। और उनके लिए उनका ट्रेनिंग होता है। चर्चासत्र होता है। कैसे ध्यान पूर्वक जप करना है। यहां हम तो रोज हर रोज जपा रिट्रीट, प्रतिदिन हम जपा रिट्रीट करते हैं। या कुछ सीखते हैं, समझते हैं।
हरि हरि, तो इस प्रकार कुछ थोड़ासा कहा और फिर हम कह रहे हैं। इस प्रकार यह जो नाम है हमें धाम तक पहुंचा सकता है। और यह अतिशयोक्ति नहीं है। अतिशयोक्ति नहीं है या ऐसा समझना नाम अपराध हुआ। गुणका महिमा है। इतना महान है यह भगवान का नाम। यह नाम हमें धाम तक पहुंचा सकता है। सच में ऐसा कोई सोच सकता है। सचमुच अगर किसी के मन में शंका उत्पन्न होते हैं या विश्वास नहीं होता है कि नाम से धाम तक हम जा सकते हैं। नाम की मदद से तो यह अपराध ही होता है। नाम प्रभु के चरणों में मतलब कृष्ण के चरणों में अपराध होता है। यह तो सत्यकथा है। यह सत्य है किंतु हमारा विश्वास नहीं होता। बहुत सारी चर्चाएं या हरिनाम का महिमा सुनने के उपरांत भी हरिनाम में श्रद्धा नहीं होना भगवान के शुद्धनाम में विश्वास नहीं होना। यह कौन सा अपराध है, दसवां नाम अपराध है। ऐसा अपराध हमें नहीं करना है। करना चाहते हो, फिर नामप्रभु प्रसन्न नहीं होंगे। मैं यह भी सोच रहा था, जप करते समय आपसे क्या कहें। आज कुछ विशेष सम्मेलन यहां सोलापुर में हो चुका है। कई सारे मंदिर फुल हाउस है तो हाउसफुल मंदिर है तो मंदिरफुल। मंदिर फुल हो गए। मंदिरफुल और भक्त प्रातकाल में जप करने के लिए पहुंच गए। वैसे आप जपते रहते हैं अपने अपने घरों में वहां पर बैठकर जप करते रहते हैं। लेकिन आपने आज विशेष प्रयास किया। इस पर भी ध्यान देते हैं भगवान। जल्दी उठे हैं। कुछ असुविधा तो होती है पहुंचने में। यहां जप हो रहा है। मंदिर पहुंचना है। ऐसे होते हुए भी जब हम मंदिर पहुंचते हैं तो इस बात से भगवान प्रसन्न होते हैं। यहां पहुंचने के लिए कुछ तपस्या करनी पड़ती है। यह तपस्या फिर हम को शुद्ध ही बनाती हैं कि, हम कितने गंभीर हैं कृष्णप्राप्ति के लिए या हरिनाम जप करने के लिए या भक्तों के संग प्राप्ति के लिए इसका भी थोड़ा अंदाजा लगता है।
जब हम तपस्या करते हुए, कठिनाइयों का सामना करते हुए, हम पहुंच ही जाते हैं. मंदिर पहुंच जाते हैं या मंदिर पहुंचते हैं तो, अच्छी बात है। स्वागत है। ठीक है, आज समय ज्यादा नहीं है। मैं जरा सोच रहा था, बात तो कुछ नई नहीं है। एक ही बात हर बार होती है। घर छोड़कर यहां छोड़ कर वह छोड़ कर अपना कंफर्ट जोन छोड़ कर हम मंदिर पहुंच जाते हैं। धाम में जाते हैं। सत्संग में जाते हैं मतलब हम थोड़ा दुनियादारी से अलग होना चाहते हैं। दुनियादारी दुनिया से अलग होना चाहते हैं। माया से बाहर निकलना चाहते हैं। हां या नहीं, हम तो वैसे भगवान के हैं और हम भगवतधाम के भी हैं। हम केवल भगवान के नहीं हैं। हम भी भगवत धाम के हैं लेकिन, हमसे बहुत बड़ी भूल हो गई। चूक हो गई। कैसी घोड चूक कहते हैं मराठी में। हमने क्या किया, हम बहिर्मुख हुए। हम भगवत धाम और भगवान को त्याग कर हम इस संसार में आए। और फिर क्या करने लगे, भोगवांछा भोग कि वांछा इच्छा, भोग। और फिर क्या करती है माया, निकटस्थ माया तारे झपटीया धरे। जब जब हम भोग की इच्छा करते हैं पछाड लेती है हमें माया। यह बातें संबंधित है एक दूसरे से। शेर शेरनी के बच्चे भेडियो के भीड़ में मिल गया और फिर भेड़ियों के साथ ही वहां रहने लगा। भेडियो जैसी चाल उसने सीख ली। भेड़ियों जैसे जीवनशैली और उसका अन्न कहो, घास खाने लगा। और भेड़ियों जैसा ही डरने लगा शेर से, डरने लगा। और फिर शेर शेरनी आते हैं तो भेड़िये जैसे डर के मारे दौड़ते हैं तो यह भी डर के दौड़ता भेडियो के साथ और म्यँ म्यँ आवाज करने लगता। शेर को तो गर्जना करनी होती है, वह सीखता अगर शेर के साथ ही रहता तो धीरे-धीरे वह भी गर्जना कर देता। उनके कई सारे प्रयास तो असफल रहे लेकिन शेर और शेरनी ने अपने प्रयास छोड़े नहीं। प्रयत्न करते रहे इसको कैसे अलग किया जाए, भेडियो से कैसे अलग किया जाए, यह तो शेर है। भेड़ियों जैसा इसका काम धंधा हुआ है। अंततः एक दिन वह सफल हो गए। और उसको थोड़ा अलग ले गए एक तालाब के किनारे ले गए। उन्होंने कहा देखो देखो पानी में देखो अपनी शक्ल, अब हमारी और देखो। तुम, हम जैसे हो ना। उसका ब्रेनवाशिंग किया। गलत सीखा था, गलत संस्कार में थे। संस्कार तो होने चाहिए थे शेर के ताकि वह शेर बने रहता। शेर जैसा ही गर्जना करें। लेकिन और और सीखा और संस्कार हुए। भेड़िए जैसे संस्कार हुए। तो उन्होंने सारा क्रैश कोर्स दिया अपने बच्चे को और गर्जना करना भी सिखाया। अब उसका प्रात्यक्षिक होगा। तो उसको लेकर आए जहां भेड़ी की भीड़ थी। और मां बाप ने शेर शेरनी ने कहा आज तुम्हारी बारी है, तुम गर्जना करके दिखाओ। तो उसने जैसे गर्जना की तो सारी भेड़ी दौड़ पड़ी। तुम शेर हो ना, हां मैं शेर हूं। वनराज, केशरी, मैं जंगल का राजा हूं।
उसको साक्षात्कार हुआ, आत्म साक्षात्कार मैं कौन हूं, शेर हूं।तो इसी प्रकार उस भेड़ी की भीड़ से वह अलग हुआ। वह वही बन गया जो वह था, वह शेर था। हरि हरि। आप सो रहे हो क्या? तो सोने वाले पार्टी मे ही रहोगे आप। पार्टी बदलने की चर्चा शुरू है अभी। पक्ष दो ही है इस संसार में एक है माया का पक्ष और दूसरा है कृष्ण का पक्ष। जयस्तु पाण्डुपुत्राणा॑ येषा॑ पक्षे जनार्दन: पांडवों की विजय निश्चित है। क्योंकि येषा॑ पक्षे जनार्दनः वे जनार्दन के पक्ष के हैं, कृष्ण के पक्ष के हैं तो उनकी जीत निश्चित है। बात तो यह चल रही है की कैसे हम पक्षांतर, पक्षांतर मतलब एक पक्ष से दूसरे पक्ष में, दलबदल। दल बदल दलदल ऐसे चलता रहता है बीजेपी से कांग्रेश पक्ष इधर से उधर एक पक्ष से दूसरे पक्ष मे बदलना। तो हमें करना है, बहुत समय से, अनादि काल से हम इस माया के चक्कर में माया के पक्ष में रहे। लेकिन यह पक्ष हमारा नहीं है वैसे। जैसे शेर है तो भेड़ी के पक्ष का नहीं था, वह शेर ही था। भूल गया या भुला दिया उन भेड़ियों ने भुला दिया। तो वैसी ही हमारी हालत है। केवल आपकी ही नहीं, सारे संसार का हाल ऐसा ही है, यही है। जब से सृष्टि बनी तब से यही हाल है और जब तक सृष्टि रहेगी तब तक ऐसा होता रहता है। तो भगवान को छोड़कर, भगवदधाम छोड़कर कहां पर फस गए, कहां अटक गए। लेकिन हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह क्या करता है? हमारा ब्रेनवाशिंग करता है, दिमाग की सफाई करता है। मतलब यह क्या करता है? चैतन्य महाप्रभु के शब्दों में चेतो दर्पण मार्जनम चेतना के दर्पण का मार्जन करता है यह महामंत्र। श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम तो आपकी जय हो या संकीर्तन आंदोलन की जय हो। ऐसे चैतन्य महाप्रभु ने घोषणा की है। तो इस अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावना मृत संघ का उद्देश्य जो संघ भगवान का संघ है। संघ, यह हरे कृष्ण संघ भगवान का संघ, भगवान का संगठन है। इस संसार में कई सारे संगठन तो है लेकिन अधिकतर मायावी संगठन है। मायावी गट या दल या संस्था। लेकिन यह जो संस्था है, यह संस्था तो धर्मसंस्थापनार्थाय धर्म की स्थापना के लिए इस संस्था की स्थापना हुई है। श्रील प्रभुपाद की जय। स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर से, यह गौर निताई की ओर से श्रील प्रभुपाद इस हरे कृष्ण संस्था आंदोलन की स्थापना किए हैं। ताकि क्या उद्देश है? हर जीव को भगवत धाम ले जाने के लिए। और क्या कहोगे? तो जप करते रहिए और इसी के साथ कीर्तनीय सदा हरी भी है। कीर्तनीय सदा हरी। यह बताया जाता है कि कीर्तन करना है, जप करना है तो मन की स्थिति कैसी होनी चाहिए।
तृणादपि सुनीचेन
तरोरपि सहिष्णुना
अमानिना मानदेन
कीर्तनीयः सदा हरिः।।
यह सब हम को समझना होगा। इसी समझ के साथ, ऐसी मन की स्थिति के साथ जो जप करेंगे तो फिर वह सब समय जप भी कर पाएंगे। एक तो कीर्तनीय सदा हरी है और उसके साथ में वैसे श्रील प्रभुपाद हमको मॉर्निंग प्रोग्राम, मॉर्निंग साधना या डेअली साधना दिए हैं। उसमें हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे इसका कीर्तन है, इसका जप है। और साथ में आचार्य उपासना भी है। गुरुपूजा भी है आचार्य, गुरुजनों की आराधना। और फिर नित्यम भागवत सेवया भी है। ओम नमो भगवते वासुदेवाय यह गीता, भागवत का श्रवण कीर्तन, पठन पाठन यह जब करते हैं, तो फिर हमें नाम का महीमा, नाम से रूप शास्त्रों में क्या है? गीता भागवत में क्या है? भगवान के सौंदर्य का वर्णन है या आपकी आत्मा के सौंदर्य का वर्णन है। हम तो बस शरीर को लेकर बैठे हैं, जो भी है सामने हैं। जो भी दिखता है वही है और तो कुछ है ही नहीं। जैसे हम प्रत्यक्षवाद कहते हैं, प्रत्यक्षवाद। एक वाद होता है, प्रत्यक्षवाद। जो दिखता है, अगर सुन सकते हैं तो है स्पर्श कर सकते हैं तो है, नहीं तो फिर है ही नहीं। उसको प्रत्यक्षवाद कहते हैं। लेकिन बहुत सारी बातें हैं उनका अस्तित्व है, वास्तविकता है, वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम्। उसका पता कैसे चलेगा? उसका पता चलता है श्रवण से या अध्ययन से। शास्त्र प्रमाण या श्रुति प्रमाण कहते हैं। सुन लिया समझ गए। तो क्या समझेंगे? जब हम शास्त्र पढ़ते हैं तो इसी का पता चलता है। गीता भागवत करिती श्रवण अखंड चिंतन विठोबाचे अगर गीता भागवत का श्रवण करेंगे तो अखंड चिंतन विठोबाचे विठोबा का, भगवान कृष्ण का स्मरण होगा। कृष्ण का स्मरण होगा मतलब कृष्ण के नाम का स्मरण दिलाता है। यह शास्त्र भगवान के रूप का स्मरण दिलाता है, ऐसा, ऐसा..।
सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी
कर कटावरी ठेवोनिया
तुळसीहार गळा कासे पितांबर
आवडे निरंतर हेची ध्यान
मकर कुंडले तळपती श्रवणी
कंठी कौस्तुभ मणी विराजित
तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख
पाहीन श्रीमुख आवडीने
तो यह साधु हो गए। प्रमाण है शास्त्र प्रमाण है, साधु प्रमाण है, आचार्य प्रमाण। साधु, शास्त्र, आचार्य प्रमाण है। हमारा मन प्रमाण नहीं है। हमारा मन, मेरा मन, मेरा विचार है यह हुआ मनोधर्म। यह कौन सा धर्म हुआ? मनोधर्म। भागवत धर्म नहीं हुआ। तो इस प्रकार जब हम यह हरे कृष्ण आंदोलन संस्था है यह हमें भगवान के नाम का, भगवान के रूप, गुण, लीला,धाम, पार्षद, परिषद उनका परिचय देता है। और इसी के साथ हमको इस संसार की कीचड़ से अलग कर देता है। या फिर हम इस संसार में ही हैं। बी इन द वर्ल्ड बट नॉट ऑफ द वर्ल्ड ऐसा अंग्रेजी में कहते हैं। संसार में रहते हैं लेकिन संसार के नहीं होते हो। आप सुनते हो क्या कहा जाए, संसार में तो रहते हैं सोलापुर में है, महाराष्ट्र में है। लेकिन इस संसार के नहीं होते। संसार में हैं लेकिन संसार के नहीं हैं। कृष्णेर संसार कर छाडि’ अनाचार सारे अनाचार छोड़कर कृष्ण के लिए संसार करते हैं। कृष्ण के प्रसन्नता के लिए सारे कार्यकलाप करते हैं। तो इस प्रकार यह हरे कृष्ण आंदोलन सारे संसार भर के लोगों को ट्रेन करता है स्मरण दिलाता है। जैसे वह शेर शेरनी प्रयास करते रहे। शुरुआत में तो पकड़ में नहीं आ रहा था। ऐसे भी लोग होते हैं, हां हम बिजी हैं बिजी हैं।
आ जाओ जन्माष्टमी है, नहीं नहीं हम बिजी हैं। हमें मरने के लिए समय नहीं है। तो एक व्यक्ति बहुत व्यस्त था गाड़ी चला रहा था। किसी ने फोन किया आपसे मिलना चाहता हूं कितने समय कब मिल सकता हूं। वह गाड़ी चला रहा था उन्होंने कहा आज कहां, मैं बहुत बिजी हूं नहीं मिल सकता, नहीं मिल सकता। तो इतनी रफ्तार से वह जा रहा था। तब मोबाइल का वगैरा उपयोग नहीं करना चाहिए। डोंट मिक्स ड्राइविंग एंड कॉलिंग। तो इतने में हो गया एक्सीडेंट हो गया। फिर वह दूसरे जो बोल रहे थे, अपॉइंटमेंट मांग रहे थे। उन्होंने कहा कि यमराज स्पीकिंग, यमराज बोल रहा हूं। क्या हम कह सकते हैं हम बिजी है बिजी हैं। लेकिन यमराज अगर अपॉइंटमेंट चाहते हैं, तो क्या हम कह सकते हैं? नहीं नहीं अगली बार और कभी और फिर कभी मिलेंगे। हरि हरि। तो इस प्रकार हमारा पुनरपि जननं पुनरपि मरणं, पुनरपि जननी जठरे शयनम् यह सब चल रहा है। लेकिन हम जिस विकट परिस्थिति में फंसे हैं, बुरी तरह फंसे हैं। उसको भी हम अगर समझ सकते हैं, तो फिर हम क्या करेंगे? फिर प्रार्थना करेंगे। कृपया पारे पाहि मुरारे हे मुरारी रक्षा करो, रक्षा करो। कृष्ण कृष्ण कृष्ण पाहिमाम रक्षामाम तो यही तो बात या भाव होना चाहिए। यह भाव जप करते समय होना चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे मतलब बचाओ बचाओ, मदद करो मदद करो कृष्ण मैं आपका हूं। मैं आपका हूं मैं दुनिया का नहीं, मैं सोलापुर का नहीं, इनका नहीं, उनका नही, मैं आपका हूं, मैं आपका हूं। मुझे सेवा दीजिए हे कृष्ण, हे राधे। सेवायोग्यं कुरू सेवा के लिए मुझे योग्य बनाइए। हरे कृष्ण का जप कीर्तन इस भाव के साथ होना चाहिए। और भी भाव है, उसमें यह एक भाव है। तो हम अलग होंगे, सारे संसार में होते हुए भी। जैसे कमल का फूल कीचड़ मे हीं होता है, लेकिन कीचड़ को स्पर्श नहीं करता है, ऊपर ही रहता है। इसलिए हम सबको सदैव जप करना चाहिए। हरेर्र नामैव केवलं ऐसा शास्त्र का वचन भी है। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।