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जप चर्चा परम पूजनीय लोकनाथ स्वामी द्वारा दिनाँक 13 जून'23 हरे कृष्ण भगवान इस शरीर में हमारे साथ आकर हमारा‌ साथ देते हैं। हम इस शरीर में हैं, हमारी आत्मा शरीर में हैं। आत्मा हमारे हृदय में स्थित होती है वहां कृष्ण पहुंच जाते हैं। जीव के साथ हृदय में कृष्ण परमात्मा रूप में वास करते हैं। कृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च । वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ॥ (श्रीमद भगवद्गीता 15.15) अनुवाद: मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है। मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ। निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ।  मैं सबके हृदय प्रांगण में रहता हूं।भगवान ने हमें यह शरीर भी दिया है और जब भगवान के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा होती है, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होती है, मंदिर बनाया जाता है, विग्रह लाए जाते हैं, उनकी प्राण प्रतिष्ठा होती है। उसी प्रकार शरीर भी एक मंदिर है और जब हमको यह शरीर दिया जाता है, तो भगवान भी स्वयं को वहां स्थापित करते हैं, जीव के बगल में वह भी आकर खड़े होते हैं और हमारी रखवाली करते हैं। उनका हमारे ऊपर ध्यान होता है जैसे इस संसार में माता-पिता का ध्यान बच्चों पर होता है। हमारे वास्तविक माता-पिता तो भगवान ही हैं, त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव। या सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या: । तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद: पिता ॥ (श्रीमद भगवद्गीता 14.4) अनुवाद - हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ। कृष्ण ने भगवद् गीता में कहा है कि मैं सभी जीवों का माता-पिता हूं। जैसे माता-पिता को अपने बच्चों की चिंता होती है, उससे अधिक चिंता भगवान को हमारी होती है, इस संसार के माता पिता यदि हमारा इतना ख्याल रखते हैं हमको इतना संभालते हैं तो , हमारे परम पिता हमारा कितना ख्याल करते होंगे। हरि हरि। हमारी रक्षा के लिए ही भगवान इस हरि नाम के रूप में प्रकट होते हैं। कलि-काले नाम -रूपे कृष्ण-अवतार। नाम हैते हय सर्व-जगनिस्तार ॥ (चैतन्य आदि लीला 17.22) अनुवाद- इस कलियुग में भगवान् के पवित्र नाम अर्थात् हरे कृष्ण महामन्त्र भगवान् कृष्ण का अवतार है। केवल पवित्र नाम के कीर्तन से मनुष्य भगवान् की प्रत्यक्ष संगति कर सकता है। जो कोई भी ऐसा करता है , उसका निश्चित रूप से उद्धार हो जाता है। कलयुग में भगवान नाम के रूप में हमें अपना संग देते हैं, हम उनका ध्यान कर सकते हैं। उनको प्रार्थना कर सकते हैं। उनका वर देने वाला हस्त सदैव हम पर बना रहता है। जब तक हम जप करते रहते हैं, भगवान हमारा ध्यान करते हैं और उसके बाद भी करते हैं। इस नाम के रूप में भगवान स्वयं को प्रकट करते हैं जीवन अनित्य जानह सार् ताहॆ नाना विध विपद-भार्।नामाश्रय कोरि जतनॆ तुमि थाकह आपन काजे।। (उदिलो अरूण- भक्ति विनोद ठाकुर) इसमें कहा है कि नाम का आश्रय लेकर अपने कार्य करो, अपने कार्य भी करते रहो और नाम भी लेते रहो। वह कहते हैं ना हाथ मे काम, मुख में नाम। अगर हमारे मुख से नाम निकल रहा है तो हम जो कार्य करेंगे वह सही करेंगे और भगवान उसे सफल भी कराएंगे... हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे जप चर्चा श्रीवास ठाकुर तिरोभाव विशेषांक परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज द्वारा 13 जून 2023 लिखना भी‌ प्रारंभ कर सकते हैं। श्रीवास ठाकुर कौन हैं? आप श्रीवास ठाकुर को जानते हो ना? श्रीवास ठाकुर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के पार्षद रहे हैं। वह उनके केवल पार्षद ही नहीं थे, बल्कि एक विशेष पार्षद या परिकर रहे। श्रीमद् भागवत में कहा है - कृष्णवर्णं त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञै: सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधस: ॥ (श्रीमद भगवद्गीता 11.5.32) अनुवाद :-कलियुग में, बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन (संकीर्तन) करते हैं, जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है। यद्यपि उसका वर्ण श्यामल (कृष्ण) नहीं हैं किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है। वह अपने संगियों, सेवकों, आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है। भागवत में कहा हैं कि श्रीवास ठाकुर साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम्। पञ्च-तत्त्वात्मकं कृष्णं भक्त-रूप-स्वरूपकम्।भक्तावतारं भक्ताख्यं नमामि भक्त-शक्तिकम् ॥ (आदि लीला 1.14)  अनुवाद:- मैं उन परमेश्वर कृष्ण को सादर नमस्कार करता हूँ, जो अपने भक्तरूप,भक्तस्वरूप, भक्तावतार शुद्ध भक्त और भक्तशक्ति रूपी लक्षण से अभिन्न हैं। यह एक महत्वपूर्ण मंत्र है। यह पंचतत्व का प्रणाम मंत्र हैं, यह आप सब को पता होना चाहिए।यह भी पता होना चाहिए कि तत्व भी कोई चीज होती है। भगवान को तत्व से जाना जाता है। कई प्रकार के तत्वों में से पंचतत्व एक तत्व हैं, पंचतत्व तो यह सारे व्यक्तित्व ही हैं। श्रीवास ठाकुर पंच तत्वों के सदृश्य रहे। जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द। यह पंचतत्व का महा मंत्र है। हम हरे कृष्ण महामंत्र का जप या कीर्तन करते हैं, तो हर नई माला के प्रारंभ से पहले हम पुन: पुन: यह पंचतत्व प्रणाम मंत्र का उच्चारण करते हैं। दो मंत्र होते हैं, एक प्रणाम मंत्र और एक पंचतत्व महामंत्र। श्रीवास ठाकुर पंच तत्वों में से एक हैं, अब तो नहीं पूछेंगे कि यह पंचतत्व, एक-एक कौन कौन हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद, श्री अद्वैत,गदाधर यह चार हुए और पांचवे हैं, श्रीवास ठाकुर, नारद मुनि श्रीवास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए। नारायण नारायण नारायण। यह नारद मुनि हमारी परंपरा के आचार्य भी हैं।हमारी परंपरा के आचार्य कौन-कौन हैं? हम ब्रह्म मध्व गोडिय वैष्णव कहलाते हैं और नारद ब्रह्मा के पुत्र या शिष्य हैं और नारद मुनि द्वादश भागवतो में से भी एक हैं। नारद मुनि श्रीवास ठाकुर के रूप में प्रकट हुए। यह श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्यक के बहुत पहले प्रकट हुए थे, महा प्रभु के जन्म से 50 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। यह चार भाई थे, श्री राम, श्रीवास,श्री निधि..इस प्रकार से। यह चारों गोर भक्त थेे, उनका जन्म पूर्व बंगाल में और आज के समय के बांग्लादेश में हुआ था, किंतु वह स्थानांतरित हुए और मायापुर में आकर निवास करने लगे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। का कीर्तन करने वाले चैतन्य महाप्रभु की टोली में कई सारे भक्त थे और उनमें अद्वैत आचार्य, नाम आचार्य श्रील हरिदास ठाकुर, श्रीवास ठाकुर और उनके भ्राता श्री भी थे। यह चैतन्य महाप्रभु के बहुत पहले जन्मे, चैतन्य महाप्रभु के परिकर, चैतन्य महाप्रभु के जन्म से पहले ही कीर्तन किया करते थे। श्रीवास ठाकुर का घर जिसे बंगला में ठाकुर बाडी कहते हैं,ठाकुरेर बाडी। बाड़ी मतलब घर या संपत्ति। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का जो जन्म स्थान है, उसको योगपीठ कहते हैं। योग पीठ से जब हम बाहर प्रवेश द्वार पर आते हैं, तो वहां से जब हम बाएं जाएंगे , मायापुर चंद्रोदय मंदिर की तरफ जाएंगे तो उससे पहले बाएं में 200 मीटर, दूरी पर ही है,श्रीवास ठाकुर की बाड़ी। जिसे श्रीवास आंगन कहते हैं। विदेश के भक्त इसे श्रीवास अंगन कहते‌ हैं, कहना चाहिए श्रीवास आंगन।आंगन मतलब कोर्टयार्ड। आपका कर्तव्य है कि विदेश के भक्तों का उच्चारण ठीक कीजिए। आप ही स्मरण दिलाओ, जब जब भी कोई अंगन कहे, तो आप उन्हे ठीक कीजिए। मेरा भी यही मिशन है कि सभी सही उच्चारण करें। आचार हो, प्रचार‌ हो और सही उच्चार हो, अर्थात उच्चारण भी ठीक होना चाहिए। यह श्रीवास ठाकुर की बाड़ी चैतन्य महाप्रभु की कर्म भूमि बनी। एक होता है जन्म भूमि और दूसरा कर्म भूमि। योग पीठ है, वहां पर जन्म हुआ और 24 वर्ष तक कुछ लीलाएं वहा होती रही, किंत चैतन्य महाप्रभु को जो संकीर्तन आंदोलन करना था, उसके लिए उन्होंने श्रीवास बाडी को चुना। संकीर्तनेक पितरो संकीर्तन आंदोलन के पिता श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहे और उन्हें फिर नित्यानंद प्रभु ने ज्वाइन किया, इन दोनो ने मिलकर संकीर्तन और प्रचार किया। इन दोनों ने श्रीवास ठाकुर की बाड़ी को अपना हेड क्वार्टर बनाया।जैसे श्रील प्रभुपाद ने न्यूयॉर्क में अंतरराष्ट्रीय श्रीकृष्णभावनामृत की स्थापना की, रजिस्ट्रेशन भी करवाया और न्यूयॉर्क को उस समय हेड क्वार्टर बनाया। वहां से प्रभुपाद आगे प्रचार कर रहे थे, लॉस एंजिल्स कैलीफोर्निया को प्रभुपाद अपना वेस्टर्न हेड क्वार्टर कहते थे। मुंबई को भी उन्होंने अपना हेड क्वार्टर बनाया था।श्रीवास ठाकुर का आंगन चैतन्य महाप्रभु की गतिविधियों का केंद्र बना। हरि हरि। श्रीवास ठाकुर गृहस्थ थे, जैसे आप भी गृहस्थ हो, सभी तो नहीं ज्यादातर। श्रीवास ठाकुर ने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के साथ सहयोग दिया था कि संकीर्तन आंदोलन चलता रहे। आप सभी भक्तों के लिए श्रीवास ठाकुर आपके आदर्श हैं। नारद मुनि श्रीवास ठाकुर बने हैं और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आंदोलन में पूरा योगदान दे रहे हैं। यहीं पर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का संकीर्तन आंदोलन प्रारंभ हुआ। चैतन्य महाप्रभु ने गया में दीक्षा ली, मायापुर नवद्वीप आए और श्रीवास ठाकुर के आंगन में संकीर्तन आंदोलन होने लगा। सारे पंचतत्व मेंबर वहां उपस्थित रहा करते थे और शुद्ध भक्तों की संगति में पूरी रात भर जागरण होता था और श्रीवास ठाकुर के आंगन में कीर्तन होते थे । एक दिन श्रीवास ठाकुर के पुत्र की मृत्यु हो गई। उस वक्त भी उनके आंगन में कीर्तन हो रहा था। श्रीवास ठाकुर कि धर्म पत्नी मालिनी और कुछ माताएं कंद्रन करने लगी। श्रीवास ठाकुर ने कहा..ए..चुप..। महाप्रभु का कीर्तन हो रहा है, उनके कीर्तन में व्यवधान उत्पन्न नहीं होना चाहिए। हरि हरि। उसी स्थान पर ही, ऐसे ब्रह्मचारी जिनका आहार केवल दूध ही था, आए और वह चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन में सम्मिलित होना चाहते थे। उनकी महत्वकांक्षा थी कि हमें चैतन्य महाप्रभु का दर्शन भी हो जाए और हम उनके संकीर्तन में सम्मिलित होकर कीर्तन भी कर पाए। श्रीवास ठाकुर ने उन्हें संकीर्तन में सम्मिलित होने की अनुमति तो दे दी लेकिन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु केवल शुद्ध भक्तों के साथ कीर्तन करते थे और यह दुग्ध पान करने वाले ब्रह्मचारी, यह पूर्णत: शुद्ध नहीं थे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उन व्यक्तियों के साथ कैसे व्यवहार किया, वह लीला भी इस श्रीवास आंगन में हुई। अब नित्यानंद प्रभु भी आ चुके हैं। नित्यानंद प्रभु श्रीवास ठाकुर के घर में ही रहने लगे।चैतन्य महाप्रभु अपने घर में योगपीठ में रहते थेे, परंतु नित्यानंद प्रभु ने श्रीवास ठाकुर के निवास स्थान को ही अपना निवास स्थान बना लिया। भविष्य में जब जीव गोस्वामी अपना घर-बार छोड़कर हरे कृष्ण आंदोलन को ज्वाइन करने के लिए नवद्वीप आए तो सबसे पहले यही श्रीवास आंगन मे ही आए। उनका जन्म स्थान रामकेली था, जिसको वह छोड़ कर सीधे श्रीवास ठाकुर की बाड़ी पर ही आए और नित्यनंद प्रभु से उनका मिलन हुआ, नित्यानंद प्रभु और जीव गोस्वामी की सर्वप्रथम मिलन स्थली यह श्रीवास ठाकुर का आंगन ही रहा। श्रीवास ठाकुर के घर पर जब पूरी रात भर कीर्तन हुआ करता था, कर्मकांडी ब्राह्मण,समार्त ब्राह्मण, निंदक ब्राह्मण इसे पसंद नही करते थे।उन्होंने एक दिन क्या किया, वह श्रीवास ठाकुर की बेज्जती करना चाहते थे कि यह कैसा वैष्णव है, देखो इसके घर के सामने क्या हैै? गोपाल चापल करके एक व्यक्ति था जो कि निंदा करने में बड़ा पटाइत था, वह वैष्णवो की निंदा करने में बहुत निपुण था। हमे ऐसा निपुण नही होना‌‌ चाहिए‌। अगर कोई इस प्रकार से निपुण है तो ऐसी निपुणता को छोड दो।वैष्णव अपराधों मे हमारा नाम होता है। कुछ अपराधी नामी अपराधी होतें हैं, उनका नाम वैष्णव अपराध करने में होता है।वैसे ही गोपाल चापल एक नामी अपराधी हैं, हमें ऐसा नामी अपराधी नहीं बनना। उन्होंने श्रीवास ठाकुर ‌के घर के आगे एक मटके में कुछ शराब, कुछ मास लाके रखा था, उनके घर के सामने उन्होंने ऐसी सामग्री ला कर रखी थी जिसका उपयोग दुर्गा पूजा में करते हैं। जब उस रात्रि का कीर्तन बंद हुआ, तो गोपाल चापल ने कई सारे व्यक्तियों को श्रीवास ठाकुर के घर के सामने इकट्ठे करके रखा था कि यह देखो! यह वैष्णव नहीं हैं। यह तो दुर्गा का भक्त है, यह तो दुर्गा पूजा करने वाला है । इस अपराधी का बहुत बुरा हाल हुआ, इसे लेप्रसी बीमारी ने पकड़ लिया ऐसा ही होता है, पहले या बाद में ऐसा ही होता है। इसे नोट कर लो कि अपराध का परिणाम ऐसा ही होता है । यह लीला श्रीवास ठाकुर के द्वार के आगे घटी है, यह एक लीला है, इसे आपको चैतन्य भागवत में पढ़ना होगा। चैतन्य चरित्रामृत में महाप्रभु की मायापुर, नवद्वीप लीलाओं का वर्णन कम ही हुआ है। उनकी मायापुर, नवदीप लीलाओं का वर्णन आप चैतन्य भागवत में पढ़ सकते हो। चैतन्य महाप्रभु श्रीवास ठाकुर के घर में ही नित्यानंद प्रभु की व्यास पूजा मनाना चाहते थे। नित्यानंद प्रभु आदिगुरु भी हैं। यह उत्सव श्रीवास ठाकुर की बाड़ी पर ही मनाया गया था। एक सप्तपहर महा प्रकाश लीला संपन्न हुई, जिसमें श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने सभी नवद्वीप वासियों को आमंत्रित किया और एक विशेष दर्शन दिया। इस लीला में चैतन्य महाप्रभु ने अपनी भगवत्ता का प्रदर्शन किया। वह अपनी भगवत्ता को छुपाना चाहते थे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।एक दिन उन्होंने कहा- ठीक है, लेट्स गो। उस दिन उन्होंने 21 घंटो तक सप्तपहरिय लीला की।अष्ट प्रहर से पूरे 24 घंटे हो जाते हैं, सप्तपहर अर्थात 21 घंटे,एक पहर तीन घंटे। 21 घंटों तक भगवत साक्षात्कार। वैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु एक भक्त की भूमिका निभा रहे थे, किंतु उस दिन, वह बन ही गए..कृष्णस्तु भगवान स्वयं, या उन्होने श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में दर्शन दिए। उन्होंने उस दिन कई दर्शन दिए। हर एक भक्त को उसके भाव के, उसके संबंध के अनुरूप दर्शन दिए। मुरारी गुप्त को श्री राम के रूप में दर्शन दिए, मुरारी गुप्त के लिए वह श्री राम बने। जब मुरारी गुप्त ने खुद को देखा तो उनके पीछे पूछ थी और वह हनुमान बन गए थे। निरोधोऽस्यानुशयनमात्मन: सह शक्तिभि: । मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति: ॥ (श्रीमद् भागवतम् श्लोक  2.10.6 ) अनुवाद;- अपनी बद्धावस्था के जीवन-सम्बन्धी प्रवृत्ति के साथ जीवात्मा का शयन करते हुए महाविष्णु में लीन होना प्रकट ब्रह्माण्ड का परिसमापन कहलाता है। परिवर्तनशील स्थूल तथा सूक्ष्म शरीरों को त्याग कर जीवात्मा के रूप की स्थायी स्थिति ‘मुक्ति’ है। हर भक्त का जो भगवान की शाश्वत लीला में स्वरूप है, जो भी संबंध हैं, उसी स्वरूप को सभी भक्तों ने धारण किया था। और उनका जिस रूप और जिस अवतार के साथ संबंध था, उसी अनुसार वह दर्शन भी कर रहे थे।भगवद् साक्षात्कार भी हो रहा था और अपना खुद का साक्षात्कार भी हो रहा था। गोड रिलाइजेशन और सेल्फ रिलाइजेशन दोनों हो रहा था। 21 घंटे तक यह चलता रहा और यह इसी श्रीवास ठाकुर के आंगन में हो रहा था। श्रीवास ठाकुर के आंगन में यह अद्भुत लीला घटी।हरि हरि। अद्वैत आचार्य ने श्रीवास ठाकुर के निवास स्थान पर ही यह विशेष निवेदन किया था कि मैंने आपको आमंत्रित किया था, पुकारा था कि आप इस संसार में आकर धर्मसंस्थानार्थाय करोगें परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ (भगवद्गीता श्लोक  4.8) अनुवाद:- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ। लेकिन आप ऐसा कुछ नहीं कर रहे हो। आप की लीला तो शुद्ध भक्तों के संग में संपन्न हो रही है। दुनिया का क्या होगा? जिन लोगों के लिए मैंने आपको बुलाया, उनका क्या होगा? श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने उनका यह निवेदन भी स्वीकार किया और उस समय से चैतन्य महाप्रभु ने इस संकीर्तन को सारे संसार के लिए उपलब्ध कराया और पूरे नवदीप में नगर संकीर्तन होने लगा। उदिलो अरुण पूरब-भागे, द्विज-मणि गोरा अमानी जागे भक्त-समुहा लोइया साठे, गेला नगर-बाजे (वैष्णव भजन) जो कीर्तन केवल श्रीवास ठाकुर की बाड़ी तक सीमित था वह अब अद्वैत आचार्य के निवेदन से हर जगह फैल गया। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सर्वत्र प्रचार करने लगे। जब प्रचार करने लगे तो उसका विरोध भी होने लगा, तो उस समय जो सरकार चल रही थी वहां के काजी चांद काजी , कीर्तन को रोक रहे थे और कीर्तन करने वाले भक्तों की पिटाई हो रही थी। एक समय श्रीवास ठाकुर के आंगन के पास भी चांद काजी के लोगों ने कीर्तन करने वाले भक्तों को पीटा। उनका मृदंग भी तोड़ दिया श्रीवास ठाकुर के आंगन का नाम खोल भंग भी है, जब हम वहां परिक्रमा के लिए जाते हैं, वहा एक साईन लिखा है- खोल भंग डांगा। खोल अर्थात मृदंग और भंग अर्थात तोड़ा और डांगा-स्थान। इसी स्थान पर चांद काजी के आदमियों ने भक्तों के मृदंग को तोड़ा और जब हम श्रीवास ठाकुर के आंगन का दर्शन करने जाते हैं, तो उनके मंदिर में वह टूटा हुआ मृदंग भी रखा है, उसका दर्शन भी कर सकते हैं। फिर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने नॉन को ऑपरेशन मूवमेंट प्रारंभ किया। हम सरकार के साथ योगदान नहीं देंगे। यह आंदोलन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने शुरू किया। सरकार चाहती थी कि कीर्तन ना हो, तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि हमें कोई परवाह नहीं हैं। वी डोंट केयर कीर्तन तो होता ही रहेगा। हम ऐसा योगदान नहीं देंगे। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने ऐसे कीर्तन का आयोजन किया कि सारे नवद्वीप के भक्त श्रीवास ठाकुर की बाड़ी पर पहुंच गए। पूरे नवद्वीप की आबादी से, जनसंख्या से कई सौ गुना अधिक लोग वहां पहुंच गए। चैतन्य भागवत में ऐसा वर्णन है कि देवता भी अपनी वेशभूषा को परिवर्तित करके उस कीर्तन में सम्मिलित हुए थे। विशेष शोभा का वर्णन है, उस कीर्तन की शोभा कहो, भाव कहो या भक्ति कहो या सारा आयोजन कहो , उसका वर्णन चैतन्य भागवत में आया है। कीर्तन श्रीवास ठाकुर के घर से प्रारंभ हुआ और उसका अंतिम गंतव्य कहां हैं? चांद काजी की कोठी, आप जानते ही होगे कि चांद काजी की समाधि कहां हैं। आप परिक्रमा में गये होंगें तो आपको पता ही होगा कि वहा चांद काजी की समाधि है। भगवान ने कंस का तो वध किया किंतु श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चांद काजी का वध नहीं किया, उन्होंने चांद काजी को भक्त बनाया। चांद काजी भक्त बन गए। यह उस नगर संकीर्तन का ही परिणाम था, जिससे चांद काजी प्रभावित हुए और वह श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के शरण में आ गए और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने चांद काजी के ऊपर विशेष अनुग्रह किया और चांद काजी ने फिर घोषणा भी की और भी कई घटनाएं घटी थी। उसने यह घोषणा की कि मेरे श्रेत्र में या पूरे नवदीप मायापुर में आज से संकीर्तन आंदोलन को कोई रोक नहीं सकेगा। उसकी कोई रोकथाम नहीं होगी और अधिक‌ से अधिक‌ संकीर्तन करते रहो।मेरा सारा योगदान आपके साथ है , यह चांद काजी वैष्णव बन गए। गोड़िय वैष्णव जब नवदीप मंडल परिक्रमा में जाते हैं, तो चांद काजी की समाधि के दर्शन के लिए जाते हैं। हम वहां चांद काजी की समाधि की परिक्रमा करते हैं। वहां की धूल अपने मस्तक पर लगाते हैं। वाञछा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एवं च । पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः। (वैष्णव प्रणाम मंत्र) श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु तो विष्णु ही थे, महा विष्णु। ऐसे विष्णु चैतन्य महाप्रभु ने पतितो को वैष्णव बनाया। इसका उदाहरण चांद काजी है। इस प्रकार श्रीवास ठाकुर और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का घनिष्ठ संबंध रहा। हरि हरि। श्रीवास ठाकुर के आंगन से ही श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आंदोलन का प्रारंभ हुआ। ऐसे श्रीवास ठाकुर का कल तिरोभाव दिवस था। श्रीवास ठाकुर तिरोभाव दिवस की जय।निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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