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12 अक्टूबर 2019
हरे कृष्ण!
आज हमारे साथ 540 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं परंतु यह संख्या काफ़ी कम है और यह नीचे जा रही है। अभी बांग्ला देश से संकीर्तन गौर प्रभु ने पुस्तक वितरण का स्कोर भेजा है। हम इस कॉन्फ्रेंस में जपा स्कोर की बात किया करते हैं। उसके साथ साथ आज प्रभुजी ने बुक वितरण का स्कोर भेजा है कि उन्होंने बांग्ला देश में नवरात्रि और दुर्गा पूजा के समय युवा भक्तों की सहायता से 32 लाख टका (जो कि बांग्लादेश की करेंसी मुद्रा है) की श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण किया है। ये जो पुस्तकें है हरि नाम की महिमा से पूर्ण हैं। हम संकीर्तनगौर प्रभु को उनके इस प्रयास के लिए बधाई और धन्यवाद देते हैं।महाप्रभु का निर्देश है-
य़ारे देख, तारे कह 'कृष्ण'- उपदेश।आमार आज्ञाय गुरु हञा
तार' एइ देश।।
श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना ही महाप्रभु के निर्देश का विस्तृत रूप है। प्रभुपाद की पुस्तकों में कृष्ण का आदेश है। चैतन्य महाप्रभु द्वारा जो निर्देश दिया गए हैं, वे श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों के माध्यम से हमें हरे कृष्ण महामंत्र का जप करने के लिए उत्साहित करते हैं।
यदि कोई श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करता है तो वह चैतन्य महाप्रभु के ' य़ारे देख, तारे कह 'कृष्ण'- उपदेश ' के निर्देश का पालन करता है।
चैतन्य महाप्रभु के य़ारे देख, तारे कह 'कृष्ण'- उपदेश, में हरे कृष्ण उपदेश भी समाहित हैं। इसलिए हम भी हरे कृष्ण उपदेश देते हैं।
मैं अभी तिरुपति में हूं। इस्कॉन तिरुपति पुस्तक वितरण के लिए जाना जाता है। यहां तिरुमला/तिरुपति में पुस्तक वितरण के लिए भक्तों के अलग अलग दल बने हुए हैं और वे तिरुपति में अलग अलग जाकर पुस्तक वितरण करते हैं। तिरुमला अर्थात तिरुपति अत्यंत ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थान है। यहां न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व से काफी अधिक संख्या में भक्त दर्शन के लिए आते हैं और हमारे इस्कॉन तिरुपति के भक्त वृहद स्तर पर उन भक्तों को श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें वितरित करते हैं। उनके इस प्रयास से राधा गोविंद देव, गौरांग महाप्रभु, श्रील प्रभुपाद अत्यंत प्रसन्न होंगे। इस प्रकार पुस्तक वितरण से संकीर्तन आंदोलन का विस्तार होगा। श्रील प्रभुपाद जी कहते थे कि books are the basis अर्थात पुस्तकें ही आधार हैं।
जब वे लोग पुस्तकें लेंगे तब वे लोग संकीर्तन आंदोलन को भी समझ पाएंगे और इसका विस्तार भी होगा।
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर पुस्तक वितरण को वृहद मृदंग कहते थे। जब हम संकीर्तन करते हैं तब हम उसमें मृदंग का प्रयोग करते हैं,तो उस मृदंग की आवाज़/ ध्वनि जहाँ हम संकीर्तन करते हैं या उस टेम्पल हॉल में ही रहती है या कुछ ही दूरी तक सुनाई देती है लेकिन जब हमारे भक्त पुस्तक वितरण के लिए जाते हैं, तब हम कहते हैं कि वे संकीर्तन के लिए गए हैं क्योंकि उनके पास में पुस्तक रूपी वृहद मृदंग होती है। जब वे पुस्तक वितरण करते हैं तो वे राधा गोविंद देव, गौरांग महाप्रभु की महिमा, उनकी लीलाओं को प्रत्येक स्थान पर पहुंचाते हैं। यह पुस्तक वितरण ही वृहद मृदंग है।
राधा गोविंददेव, गौरांग महाप्रभु और श्रील प्रभुपाद इससे अत्यंत प्रसन्न होते हैं। हम सभी को पुस्तक वितरण के लिए प्रयास करना चाहिए और यह सेवा करनी चाहिए।
हरि! हरि!
अभी अभी एक भक्त शुद्ध हरिनाम जप के लिए आशीर्वाद मांग रहे थे। वे चाह रहे थे कि उन्हें आशीर्वाद प्राप्त हो जिससे वो शुद्ध हरि नाम का जप कर सकें। यह विचार तथा प्रार्थना अति उत्तम है। हम सब उनका स्वागत करते हैं। हमारा भी यह विचार होना चाहिए कि कब हम शुद्ध नाम जप कर पाएंगे। मैंने अभी अभी कहीं पर पढ़ा भी था कि भगवान की कई प्रकार की ऊर्जाएं हैं। उनमें से एक भगवान की ऊर्जा का नाम है- कृपा शक्ति।
हम सभी को भगवान से उनकी कृपा के लिए याचना करनी चाहिए। हमें भी भगवान की वह कृपा प्राप्त हो सकती है। भगवान की कई प्रकार की ऊर्जाएं हैं जिसमें एक ऊर्जा उनकी कृपाशक्ति है जो हमें हमारे आध्यात्मिक गुरु के माध्यम से प्राप्त हो सकती है और जो इस कृपा को प्राप्त करने के लायक है,उसे ही यह कृपा मिलती है। जैसा कि कहा जाता है- 'First deserve than desire' अर्थात 'पहले आप इसके लायक बनिए तब आप इसकी इच्छा कीजिए'। सर्वप्रथम हमें इसके लायक बनना होगा और वह पात्रता ग्रहण करनी होगी जिससे हम शुद्ध नाम का जप कर सकें। जब हमारे अंदर यह इच्छा होती है, तभी हमें वह कृपाशक्ति प्राप्त हो सकती है।
इस प्रकार से दो बातें होती है एक साधना सिद्धि और दूसरी कृपा सिद्धि। हम सभी कृपा सिद्धि को प्राप्त करने के लिए अधिक आतुर रहते हैं। हमें यह बात अवश्य समझ लेनी चाहिए कि यदि हम कृपा सिद्धि चाहते हैं तो पहले हमें साधन सिद्धि प्राप्त करनी होगी। कृपा केवल उन्हीं को मिल सकती है जिन्होंने अपनी साधना को ठीक प्रकार से किया है।यह उसी प्रकार से है जैसे कि हम किसी से हाथ मिलाते हैं।
यदि हम अपनी साधना ठीक प्रकार से करेंगे, तब हम उसमें सिद्ध हो जाएंगे और हमें स्वत: ही कृपा प्राप्त हो जाएगी। इस प्रकार से हमें सर्वप्रथम अपनी साधना को ठीक प्रकार से करके, इसके लायक बनना चाहिए कि हमें वो कृपा प्राप्त हो सके। जहाँ साधन सिद्धि है वहां कृपा सिद्धि उन भक्तों को स्वत: मिल जाती है।
नोएडा से सुपद्मिनी माताजी ने हमें इस प्रार्थना के विषय में स्मरण दिलाया है कि श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण करना भी हमारी साधना का एक प्रमुख अंश है। जैसा कि हमने बताया कि श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का वितरण- 'य़ारे देख, तारे कह 'कृष्ण'- उपदेश,' इस निर्देश का सबसे उत्कृष्ट प्रकार है।
यदि आप पुस्तकों का वितरण करते हैं तो आप अत्यंत उत्तम प्रकार से इस निर्देश का पालन करते हैं।
यह आपकी साधना होती है। जब आप पुस्तक वितरण द्वारा अपनी साधना को सम्पन्न करते हैं तो आप उस कृपा को प्राप्त करने के लिए अधिकारी बन जाते हैं व आप सम्पूर्ण गुरु परंपरा, हमारे गौड़ीय आचार्यो, श्रील प्रभुपाद व अपने आध्यात्मिक गुरु की कृपा को प्राप्त करने के पात्र बन जाते हैं।
रायचूड़ से हमारे जयतीर्थ प्रभु कार्तिक महीने में वृंदावन में वास करने हेतु आशीर्वाद मांग रहे हैं। आप सभी का स्वागत है। आप रायचूड़ से अन्य भक्तों को भी ले कर आइए। कुछ दिन पहले मैंने आप सभी को कहा था कि कार्तिक में वृंदावन वास का महत्व है, इसलिए आप सभी वृंदावन आइए और कार्तिक व्रत का पालन कीजिए। आप सभी का वृंदावन वास के लिए स्वागत है। मैं एक विशेष बात आप सभी को बताना चाहता हूं कि हमारी साधना का एक प्रमुख अंग है- श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करना। हम पुस्तकों का वितरण करते हैं। वितरण करना एक बात है परंतु हमें स्वयं भी श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों को पढ़ना चाहिए। जैसा कि अंग्रेजी में कहते हैं - 'Charity begins at home' अर्थात यदि हम कुछ भी चैरिटी करना चाहते हैं, वह सर्वप्रथम घर से शुरू होती है। हमें सर्वप्रथम स्वयं को पुस्तक वितरण करना चाहिए। हमारे पास श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें जैसे श्रीमद् भागवतम, चैतन्य चरितामृत, श्री मद्भगवत गीता होनी चाहिए।
हमें इन पुस्तकों को न केवल पढ़ना चाहिए अपितु इनका गहन अध्ययन करना चाहिए। जब हम इस प्रकार से करेंगे तो यह हमारी साधना का एक प्रमुख अंश बन जाएगा और हमारी साधना उत्तम हो जाएगी।
जब हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का अध्ययन करते हैं, वास्तव में हम उनका श्रवण करते हैं। हम उन पुस्तकों को सुनते हैं। हम उन पुस्तकों के माध्यम से संस्थापक आचार्य,पूर्ववर्ती आचार्यों की वाणी का श्रवण करते हैं। जैसा कि हम कहते हैं गौर वाणी प्रचारिणे। हम पुस्तकों के माध्यम से गौरांग महाप्रभु की वाणी का श्रवण करते हैं।
कल से कार्तिक महीना प्रारंभ हो रहा है। आप सभी इस कार्तिक महीने में यह व्रत ले सकते हैं कि हम श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों का नियमित रूप से अध्ययन करेंगे। इसके साथ ही साथ ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक का भी अध्ययन कीजिए। श्रील प्रभुपाद की पुस्तकों,विशेष रूप से 'श्री कृष्ण' को आधार बना कर ही इस ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक की रचना की गई है।आप ब्रजमंडल दर्शन, श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ कर अपने कार्तिक व्रत का पालन कर सकते हैं।
मॉरीशस से कुछ भक्त वृंदावन आ रहे हैं। सोलापुर से भी छह माताजी वृंदावन आ रही हैं।आप सभी का स्वागत है। सुंदराचल प्रभु लिख रहे हैं कि वे नियमित रूप से श्रील प्रभुपाद की पुस्तकें पढ़ने का संकल्प ले रहे हैं। आप
इन कमैंट्स को पढ़ सकते हैं। मैं इस कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देता हूँ।
हरिबोल!
गोविंद!गोविंद!गोविंद!