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*जप चर्चा*
*12 अप्रैल 2021*
*पंढरपुर धाम से*
*हरे कृष्ण!*
836 स्थानो से जप करने वाले आप सभी भक्तों का स्वागत हैं।
क्या आप तैयार हैं?
*हरि हरि!!*
आज हम आपको एक छोटी सी वीडियो दिखाने वाले हैं। जो लोग जुम पर हैं,वह लोग इसे देख पाएंगे लेकिन जो लोग यूट्यूब पर हैं वह इसे नहीं देख पाएंगे।
*"जय श्री राम, हो गया काम"।*
क्या कहा मैंने?आप इसे सीख सकते हो। जय श्री राम हो गया काम। राम आने वाले हैं। बात बनने वाली हैं। रामनवमी करीब आ रही हैं। यह वीडियो नासा ने प्रकाशित किया हैं। नासा मतलब नॉर्थ अमेरिकन स्टेट एजेंसी,जो एस्ट्रोनॉमी या खगोल शास्त्री होते हैं और जो अंतरिक्ष में जाते हैं,उन्होंने यह वीडियो खींचा हैं और उनको एक पुल दिखा जिसको उन्होंने ऐडम्स ब्रिज नाम दिया। उन्होंने इस पुल को जमीन पर नहीं समुद्र में देखा।रामेश्वरम से लंका तक जो श्री राम ने पुल बनाया था उस पुल का उन्होंने वीडियो खींचा हैं और वह दिखा रहे हैं और यह सिद्ध कर रहे हैं कि हां!हां!यह किसी के द्वारा बनाया गया पुल हैं। यह लोग भाग्यवान ही हैं,जिन्होंने यह वीडियो खींचा हैं और प्रकाशित किया हैं।उनका कहना हैं कि उन्होंने कहीं से पता लगवाया की रामायण काल में राम ने एक पुल बनाया था।यह बात भूगोल शास्त्रज्ञ भी कह रहे हैं ,शास्त्रज्ञ यानी एस्ट्रोनोमरस भी मान रहे हैं कि यह राम के द्वारा बनाया गया पुल हैं।
*"जय श्री राम"*
हम मे से जिन लोगों को सबूत चाहिए होते हैं, कि सबूत दो। नासा वाले यह एक सबूत दिखा रहे हैं और यह ब्लैक एंड वाइट भी नहीं हैं,यह रंगीन वीडियो हैं और केवल वीडियो ही नहीं हैं,ऑडियो वीडियो हैं।
श्री राम का बनाया हुआ यही पुल हैं। उन्होंने केवल वीडियो ही नहीं खींचा बल्कि इस पर और भी अध्ययन किया हैं और जो वीडियो में पत्थर दिखते हैं, वह पत्थर भी साधारण नहीं है। यह मोती हैं और समुद्र के भूतल में जो पत्थर हैं, यह वह पत्थर नही हैं।वास्तव में वह लोग भी घोषित कर रहे हैं कि वह पत्थर दूर-दूर से वहां पर फेंके गए या लाए गए हैं। वह वही के पत्थर नहीं हैं। वह पत्थर पहले वहां नहीं थे बल्कि कहीं से लाए गए पत्थर वहां रखे गए हैं। ऐसा उनका कहना हैं कि उन्हीं लाए गए पत्थरों से यह पुल बनाया गया हैं।हरि!हरि!
अच्छा होता इसमें हमारे भारतीय वैज्ञानिक अपना दिमाग उपयोग करते और वह भी ऐसा वीडियो खींच कर दिखाते। हरि हरि! लेकिन हमको अधिक विश्वास तब होता है जब पाश्चात्य देशों के लोग इसे कहते हैं।तब बात पल्ले पड़ती हैं,क्योंकि हम लोग उनकी नकल करते हैं।भारतीय वैज्ञानिकों पर हम भरोसा नहीं करते।लेकिन जब अमेरिकी वैज्ञानिक कुछ कहते हैं तो हमें लगता है कि हां यह ठीक कह रहे हैं, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने ही यह वीडियो बनाया हैं।
और घोषित कर रहे हैं कि यह राम द्वारा बनाया गया हैं। चलिए अब आपको यह वीडियो दिखाते हैं।यह वीडियो अंग्रेजी में हैं ईसलिए ध्यान से देखीए और सुनिए। समझ में आना तो चाहिए क्योंकि ऑडियो भी हैं, इसलिए देखते-देखते उस से सुनिए भी। छोटी सी वीडियो हैं। केवल 2 मिनट की हैं, देख कर फिर आगे चर्चा करेंगे।
*श्री राम जय राम जय जय राम!!*
*श्री राम जय राम जय जय राम!!*
*जय श्री राम!!*
देखा सब ने?देखा और सुना भी?अब आपको विश्वास हो गया होगा। "दिखाओ हमें,दिखाओ हमें"। हम लोग ऐसा पूछा करते हैं कि अगर आपका भगवान हैं, तो अपना भगवान हमें दिखाओ।तभी हम विश्वास करेंगे। तो यहां यह जो ब्रिज हैं, यह रामसेतु हैं। राम के द्वारा बनाया गया सेतु। हरि हरि।।यह राम के द्वारा बनाया गया हैं या राम के वानरों की मदद से बनाया गया हैं।हरि हरि!! भारत में कुछ वर्ष पूर्व इस पुल के संबंध में चर्चा हो रही थी या कुछ राजनीतिक दलों के मध्य में विवाद हो रहा था। वह वाद-विवाद कर रहे थे और उस समय के तमिलनाडु के मुख्यमंत्री(जो कि नास्तिक थे,अब नहीं रहे। अच्छा हुआ कि नहीं रहें।) इस बात को मानने के लिए तैयार नहीं थे कि वहां पुल है और हैं भी तो उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि राम कौन सा किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में गए थे जो उनके पास ऐसी क्षमता होती कि वह पुल बना पाते।उनका कहना था कि पुल तो सिविल इंजीनियर बनाते हैं। राम किसी इंजीनियरिंग कॉलेज में गए हो ऐसा सुना तो नहीं गया हैं। पता नहीं पुल हैं भी या नहीं। और अगर है भी तो इसे राम तो नहीं बना सकते थे क्योंकि वह इंजीनियरिंग कॉलेज के स्नातक नहीं थे। देखो इन नास्तिकों की मूर्खता। इस राक्षसी प्रवृत्ति का कोई ठिकाना ही नहीं हैं। इनको हम भारतीय कहते हैं क्योंकि इनके पास इंडियन पासपोर्ट हैं।भारतीय नहीं इंडियन पासपोर्ट हैं।लेकिन इन अमेरिकी वैज्ञानिको को रामसेतु के संदर्भ में कोई संशय नहीं हैं, उन्होंने देखा और संशोधन किया और रामायण से भी कुछ पता लगाया और इस से संबंध जोड़ा।
जी हां-जी हां!!
यह वही पुल हैं,जिसकी चर्चा रामायण में हुई हैं। यही तो राम के द्वारा बनाया गया पुल हैं।और इसके लिए दूर-दूर से पत्थर लाए गए हैं।मिट्टी तो वहां पहले से ही थी लेकिन उस पर दूर-दूर से लाकर पत्थर रखे गए हैं। पर यह तो हम ही जानते हैं कि यह पत्थर वहां रखें नहीं गए हैं। राम के समय तो वह पत्थर तैर रहे थे।
*जय श्री राम!!*
पुल को जब बनाया जा रहा था तू जो कंस्ट्रक्शन कंपनी थी हनुमान एंड कंपनी वह लोग यह पुल बना रहे थे पत्थर लाला कर समुद्र में फेंक रहे थे समुद्र के जल को छूने से पहले ही उन पत्थरों पर नल नील राम-राम लिख रहे थे रामायण इतिहास है पद छेद करें तो इति ह आस इतनी मतलब इस प्रकार खास मतलब होना ऐसा हुआ ऐसी घटनाएं घटी और ऐसी घटनाओं का वर्णन जब होता है तो उसे इतिहास कहते हैं वाल्मीकि मुनि इतिहासकार रहे है और महाभारत के इतिहासकार रहे श्री व्यास देव यह इतिहास है यह कोई पौराणिक कथा नहीं हैं।
हमारे शास्त्रों में या वेदों में जिन घटनाओ का विवरण हुआ हैं, उसे पाश्चात्य देश के लोग पौराणिक कथा कहने लगे। मतलब कि कुछ काल्पनिक जो वास्तविक नहीं हैं।वह कहते रहे और हम सुनते रहे और अब हम भी सिर हिला हिला कर कहने लगे हैं कि हां आप ठीक कह रहे हैं। यह काल्पनिक ही हैं। अगर आप कह रहे हैं तो ऐसा ही होगा। यह काल्पनिक ही हैं। यह कुचार हमारे देश में हुआ और हमारे देश के जो बुद्धिजीवी हैं उन्होंने ही इसे काल्पनिक कहा। हमारे जैसे लोगों ने तो इसे कभी काल्पनिक नहीं कहा।जो अंग्रेजों ने प्रथा शुरू की उसे आजकल के आधुनिक और बुद्धिजीवी लोग आगे बढ़ा रहे हैं। शास्त्रों और पुराणों की लीलाओं को यह लोग काल्पनिक कहते हैं, यह फर्जी प्रचार हैं। रामायण सत्य हैं।
*जय श्री राम।*
राम जब पुल बना रहे थे तो उन पत्थरों पर नल और नील राम राम राम,लिख रहे थे।राम नाम के स्पर्श से ही वह पत्थर तैर रहे थे।आप बताइए कि आप का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत कहां हैं?राम ने गुरुत्वाकर्षण के नियम का उल्लंघन किया और भगवान राम ने ऐसा पुल बनाया जो कि दुनिया का सबसे बड़ा पुल हैं।
भगवान हीं केवल दुनिया का सबसे बड़ा पुल बना सकते हैं और हम इंसान कभी भी भगवान से मुकाबला नहीं कर सकते।हमने भी पुल बनाए हैं,परंतु वह ज्यादा से ज्यादा 5 मील या 10 मील लंबा हो सकता हैं या इससे कुछ और अधिक। चाइना में काफी बड़े-बड़े पुल हैं लेकिन वह भी समुद्र में नहीं होते। अधिकतर जमीन पर ही होते हैं। भगवान ने १०० योजन अर्थात 800 मील लंबा पुल बनाया और ऐसा नहीं है कि कोई पगडंडी जैसा रास्ता बनाया हो कि एक के पीछे एक हो।ऐसा रामायण में वर्णन हैं कि भगवान ने बहुत चौड़ा पुल बनाया।क्योंकि भगवान की वानर सेना अरबों और खरबों में थी।अगर एक के पीछे एक जाते तो सदिया बीत जाती और युद्ध कब होता और सीता के साथ कब मिलन होता। इसलिए काफी लंबा और ना सिर्फ लंबा बहुत चौड़ा पुल बनाया। अद्भुत घटना हैं।यह प्राक्रम भगवान राम ने दिखाया हैं।जब हनुमान को सीता की खोज में लंका जाना था, हनुमान तो उड़ान भरकर गए थे। वह कोई श्रीलंका विमान सेवाओं से नहीं गए थे। नारद मुनि की तरह हनुमान जी को ऐसी सिद्धियां प्राप्त थी कि वह हवाई मार्ग से गए। लेकिन भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, वह अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहते थे। जब राम जी के भक्त हनुमान जी उड़ान भर सकते हैं तो क्या स्वयं भगवान उड़ान भरकर नहीं जा सकते थे? बेशक जा सकते थे। लेकिन नहीं गए।क्योंकि भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।वह मर्यादा का पालन कर रहे थे। इसलिए वह चलकर गए। इसीलिए उन्होंने यह पुल बनाया। जब निर्जीव पत्थर राम नाम के स्पर्श से तैर सकते हैं तो हम सजीव क्या
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे महामंत्र का और राम नाम का आस्वादन करके नहीं तर जाएंगे? क्या हमारा बेड़ा पार नहीं हो जाएगा।जब राम नाम के स्पर्श से पत्थर तैर सकते हैं तो हम भी तर सकते हैं। हमारी ऐसे श्रद्धा होनी चाहिए।यह राम और कृष्ण नाम को और अच्छे से करने के लिए प्रेरणा देता हैं।जब पत्थर तैर रहे थे तो हम भी तर सकते हैं। रघुपति राघव राजाराम पतित पावन सीताराम। पतित कौन हैं? हम पतित हैं। हमको राम पावन बना सकते हैं। सीताराम या राधाकृष्ण हम पतित्तों को पावन बना सकते हैं। हमारा भी उद्धार संभव हैं।श्रीराम हमारे उद्धार के लिए ही प्रकट हुए थे।हमारे उद्धार के लिए ही सम्भवामि युगे युगे होता हैं।
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |*
*धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।(भगवद गीता ४.८)*
*अनुवाद-भक्तों का उद्धार करने दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की* *फिर स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूं।*
भगवान बार-बार आकर लीला करते हैं और हमारा उद्धार करते हैं। रामेश्वर से श्रीलंका तक भगवान ने एक पुल बनाया, युद्ध हुआ, सीता के साथ मिलन हुआ और जब राम, माता सीता,हनुमान,विभीषण, सुग्रीव और ऐसे कुछ विशेष भक्तों के साथ अयोध्या लौट रहे थे, और जब वह विमान उस पुल के ऊपर से आकाश में जा रहा था तो राम ने सीता को दिखाया कि देखो, नीचे देखो। सीता ने जब नीचे देखा तो वह हैरान रह गई। फिर चर्चा हुई कि यह किसने बनाया और क्यों बनाया। रामजी ने कहा कि और कौन बना सकता हैं। मैं ही तो हूं। तुम्हारी प्राप्ति के लिए या तुम्हारे साथ मिलन के लिए देखो हमें क्या क्या नहीं करना पड़ा। हमने कई प्रयास किए और सभी प्रयासों में से यह पुल बनाने का प्रयास भी हमारी तरफ से रहा। भगवान सीता का भी गौरव बढ़ा रहे हैं, कि ऐसी सीता हैं कि उनकी प्राप्ति के लिए पुल बनाया गया हैं और राम का जो सीता के लिए प्रेम हैं, यह रामसेतु उस प्रेम का प्रतीक हैं। यहां सीता के लिए राम जी के प्रेम का प्रदर्शन हो रहा हैं। *हरि हरि!!*
यह पुल बनाना रामेश्वर से प्रारंभ हुआ और श्रीलंका तक गया। आज प्रातः काल में मैं पढ़ रहा था कि यह जो रामेश्वर हैं, चार युगों में चार धामों की महिमा हैं। सतयुग में बद्रिकाश्रम तीरथ होता हैं।
तीरथ तो सभी ही होते हैं लेकिन सतयुग में सर्वोपरि महिमा बद्रिका आश्रम की हो जाती हैं,त्रेता युग में रामेश्वरम,द्वापर में द्वारिका और कलीयुग में जगन्नाथ पुरी धाम। अब आप कहेंगे कि वृंदावन का क्या हुआ? तो वृंदावन तो इन चारों धामों से भी ऊंचा हैं। इन से परे हैं। इसमें उसका उल्लेख नहीं हुआ हैं। रामेश्वर धाम वह हैं,जहां राम की लीला हुई। पाश्चात्य देशों की विचारधारा थोड़ी संकीर्ण हैं। संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों के अनुसार तो कुछ ७००० वर्ष पूर्व इन पत्थरों को यहां पर लाया गया और उन्हें यहां रखा गया लेकिन हमें रामायण से पता चलता है कि यह १०००००० वर्ष पूर्व की बात हैं, त्रेता युग के काल में जब राम इस धरातल पर थे, तब उन्होंने इस पुल को बनाया। पूल बनाना भी राम की एक लीला रही। एक अद्भुत लीला। यह ७००० वर्ष पूर्व बना यह मानना गलत हैं,संशोधन करके वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं ने इसे ऐडम्स ब्रिज का नाम दिया। लेकिन यह राम जी का पुल हैं। उनकी समझ के अनुसार ऐडम्स और ईव एक दंपत्ति उत्पन्न हुए।इनकी आदिमानव जैसी समझ हैं,लेकिन राम तो आदि पुरुष हैं। मेरा ऐसा मानना है कि इसीलिए विदेश में इसे ऐडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता हैं।
उनके अनुसार ऐडम्स पहले पुरुष थे, लेकिन यह उनकी नासमझी हैं, क्योंकि हम तो जानते हैं कि इस ब्रह्मांड के पहले मनुष्य ब्रह्मा थे। लेकिन उनका कहना है कि ऐडम्स पहले थे।हम यह भी जानते हैं कि राम ही आदि पुरुष हैं। इनके लिए तो ७००० वर्ष पूर्व होना भी बहुत पुराना होता हैं। उनका कहने का भाव है कि ७००० वर्ष पूर्व मतलब बहुत बहुत बहुत ज्यादा पुराना। उनको यह समझ नहीं आता कि ७००० वर्ष पूर्व होना कोई बहुत प्राचीन बात नहीं हैं। ७००० वर्ष क्या होता हैं,जब हम तो १०००००० वर्ष पूर्व की बात कर रहे हैं। और १०००००० भी कुछ नहीं है क्योंकि हम तो करोड़ों वर्षों पूर्व की बात करते हैं। ब्रह्मा की आयु और ब्रह्मा का दिन ही कितना बड़ा हैं।और एक एक युग कितना बड़ा हैं। केवल एक कलयुग ही ४३२००० वर्षों का हैं। द्वापर युग दौगुना हैं,त्रेतायुग तिगुना हैं और सतयुग इससे चौगुना हैं। यह जो काल की गन्ना हैं, यह सभी को पता हैं। ऋषि-मुनियों को पता हैं।व्यास देव को इसका ज्ञान हैं या वाल्मीकि मुनि को इसका ज्ञान हैं और शास्त्रों में यह सब बातों का वर्णन हैं। आपको तो मैंने अब यह वीडियो भी दिखाई ताकि आपका श्रीराम में और श्रीराम कि लीलाओं में विश्वास बढ़े। लेकिन यह जरूरी नहीं हैं, क्योंकि हमारा विश्वास तो शास्त्रों में हैं। शास्त्र जो हमको दिखाता हैं,उसी से हमको ज्ञान प्राप्त होता हैं। यह ज्ञान अर्जन करने की प्रणाली हैं।इसी को हम शास्त्र चक्षुक्ष: कहते हैं। अगर देखना और समझना है तो शास्त्र का चश्मा पहनो। शास्त्रों रूपी चश्में का उपयोग करो। ऐसे ही क्योंकि हम अज्ञानी हैं और अंधकार में फंसे हैं,इसलिए हमें कुछ भी दिख नहीं रहा हैं और हमें देखना है तो कैसे देखना चाहिए शास्त्र रूपी चक्षु से। शास्त्रों को अपनी आंखें बनाओ। शास्त्र का चश्मा पहनो। फिर सब कुछ दिखाई देगा।ऐसे शास्त्र हैं रामायण,महाभारत,श्रीमद भागवतम्,अन्य पुराण ताकि हमको भगवान का दर्शन हो सके या १०००००० वर्ष पूर्व जो घटनाएं घटी,उनका दर्शन हो सके। जब रामजी थे,तब उन्होंने क्या-क्या किया, कहां-कहां गए। रामेश्वर पहुंचे। उन्हें आगे बढ़ना हैं, परंतु समुद्र के मार्ग से जाना हैं इसलिए वह पुल बना रहे हैं। यह शास्त्र हमको क्रमशः दिखाते हैं। एक घटना हुई।उसके बाद क्या हुआ,फिर उसके बाद क्या हुआ।शास्त्र हमको १०००००० वर्ष पूर्व जो घटित हुआ वहां पहुंचा देते हैं।
जब हम शास्त्रों की आंखों से देखते हैं तो १०००००० वर्ष पूर्व जो घटित हुआ और अब जो घटित हो रहा है उसकी जो दूरी है वह समाप्त हो जाती हैं।शास्त्रों की आंखों से देखते ही हम उस स्थान पर भी पहुंच जाते हैं और वह जो काल हैं, वहां भी हमें यह शास्त्र पहुंचा देते हैं।
हरि हरि!!
साधु शास्त्र और आचार्यों में अपना विश्वास बढ़ाओ।हम गोडिय वैष्णवो में यह मान्यता है कि हमें शास्त्र,साधु और आचार्य में विश्वास होना चाहिए। रामायण भी शास्त्र हैं।
भगवान कृष्ण ने कहा हैं कि शास्त्र ही प्रमाण हैं।
*तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्याकार्यव्यवस्थितौ *ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तं कर्म कर्तुमिहार्हसि।।(भगवद गीता १६.२४)*
*अनुवाद-अतएव मनुष्य को यह जानना चाहिए कि शास्त्रों के अनुसार *क्या कर्तव्य है और क्या अकर्तव्य हैं,उसे ऐसे विधि विधानो को* *जानकर कर्म करना चाहिए जिससे वह क्रमशः ऊपर उठ सके।*
शास्त्र ही प्रमाण हैं और वह स्वयं सिद्ध हैं। हरि हरि!!