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जप चर्चा, वृंदावन धाम से, 6 सितंबर 2021 आज जप चर्चा में 720 भक्त सम्मिलित हैं। आज हम 10 मिनट पहले चर्चा शुरू कर रहे हैं।पद्ममाली क्या आप यहा उपस्थित हो? (पद्ममाली प्रभुजी ने उत्तर दिया- जी गुरु महाराज मैं उपस्थित हूँ। ) प पू लोकनाथ महराज जी ने कहा- मैं थोड़े समय के लिए कृष्ण कथा कहूंगा और फिर मंदिर के भक्त प्रभुपाद कथा शुरू रखेंगे। पद्मामाली प्रभु जी ने कहां- सभी भक्तों को मेरा दंडवत प्रणाम हैं। कल मंदिर के भक्तों से हमने सुना हैं, लेकिन काफी भक्त कह नहीं पाएं, इस्कॉन पंढरपुर के भक्त और सहस्त्रनाम प्रभु और अनंतशेष प्रभु कल यात्रा कर रहे थे, तो वह आज बोलेंगे, अमरावती के भी कुछ भक्त हैं, इस्कान नागपुर और आरवड़े के भी कुछ भक्त,और आल इंडिया पदयात्रा से प्रभु और उनका मंडल हैं,जो भक्त कल बोल नहीं पाए उनसे अनुरोध हैं कि हैंड रेज़ करीए।जब गुरु महाराज अपना जपा टॉप संपन्न करेंगे तो या पुर्ण करेंगे तो उसके पश्चात हम आप सभी को बारी-बारी से अवसर देंगे और आप सभी बोल सकेंगे।अब गुरु महाराज पनी जपा टौक प्रारंभ करेंगे और उसके उपरांत आप श्रील प्रभुपाद का गुणगान कर सकते हो। प पू लोकनाथ महाराज जी जपा टौक शुरू करते हैं। मैं वृंदावन में हूं। वृंदावन धाम कि जय...! इसलिए भी यहां कि लीलाएं कथाओं का स्मरण कर रहा हूं और जो-जो याद कर रहा हूं, उसको आपसे साझा भी कर रहा हूं और इतना सारा मैं याद करता हूं इतना सारा तो मैं आपसे साझा नहीं कर सकता लेकिन उसका अंश प्रस्तुत करता रहता हूँ ,जो भी मैं कभी पढ़ता हूं,सुनता हूं, कुछ अनुभव करता हूं,तो मेरे पढ़ने का, श्रवण का और स्मरण का उद्देश्य ये भी होता हैं कि मैं इसको तुरंत किसी के साथ साझा करूं। यह मेरा चलता रहता हैं,जैसा मेरा मनोभाव रहता हैं कि मैं अधिक-अधिक पढूं, सुनूं और भगवान को याद करूं और जिन भक्तों को मैं मिलता हूं, जो यहां जपा सेशन में या फिर अन्य भी मंच होते हैं बोलने के,वहां मैं यह बातें प्रस्तुत करता हूं। मेरा पढ़ना, सुनना,याद करना वैसे खुद के लिए नहीं होता या मैं सुनता पढता या याद करता हूं, वह मैं आपके लिए भी, औरों के लिए भी औरों को याद रखते हुए मैं पढ़ता हूं या सुनता हूं और पढी,सुनी, चिंतन की हुई बातें विचार या लीला कथा मैं उसको बांटता हूं,मैं औरों के पास पहुचाता हूंँ। हरि हरि! पुनः हम एक साल के कार्तिक मास कि याद कर रहे थे, यह कृष्ण के समय कि बात हैं, कृष्ण कि प्रगट लीला संपन्न हो रही हैं और कृष्ण ने अब पौगंड अवस्था को प्राप्त किया हैं।पौगंड लीला संपन्न कर रहे हैं,मतलब क्या समझना चाहिए? कृष्ण की उम्र अब कितनी हैं? 5 और 10 के बीच में है और वे 7 साल के ही हैं, क्योंकि मैं गोवर्धन लीला कि बात करने वाला हूंँ। पूरी लीला कथा तो नहीं किंतु जो घटना क्रम हैं, इस गोवर्धन लीला के संबंध में वह कहूंगा। तो कृष्ण सात साल के हैं। हम पढते हैं, सुनते हैं,जब कृष्ण उतने आयु के थे, यह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष कि बातें हैं। शुक्ल पक्ष प्रारंभ होने के एक दिन पूर्व अमावस्या थी,यहा इंद्र पूजा कि तैयारियां हो रही थी। प्रतिवर्ष नंद महाराज और उनके अनुयाई या वृंदावन का वैश्य समाज इंद्र पूजा करते थे (इनके नेता नंद महाराज थें)। हर वर्ष के भाती इंद्र पूजा कि तैयारी कर रहे थे,तो कृष्ण अब उम्र में बड़े हो रहे थे ।पहले भी तैयारी होती रही थी लेकिन कृष्ण तब केवल देखते थें,ज्यादा सोचते नहीं थे। इस साल कृष्ण ने प्रश्न उठाया क्या कर रहे हो?क्यो कर रहे हो?इसकी आवश्यकता हैं क्या? इत्यादि संवाद प्रारंभ होता हैं और कृष्ण ने प्रस्ताव दिया कि यह बंद करो! बस करो ये इंद्र पुजा! इसके बदले में आप गोवर्धन पूजा करो! यह संवाद भागवत में हैं। आप पढ़िएगा! अगले दिन वह अमावस्या का दिन था, जिस दिन यह संवाद हूआ और कृष्ण ने सभी को समझाया ,बुझाया और इंद्र पूजा के लिए जो सामग्री इकट्ठे कर थे,उसी सामग्री का गोवर्धन पूजा में उपयोग करो,ऐसा कृष्ण ने सुझाव दिया। फिर अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा आई। आप जानते हो प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया यह सब दोनों ही पक्षो में चलता रहता हैं चाहे कृष्ण पक्ष हो या शुक्ल पक्ष।शुक्ल पक्ष कार्तिक का पहला दिन हैं। प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा संपन्न हुई। गोवर्धन पूजा महोत्सव कि जय...! अब उस गोवर्धन पूजा का, गौरव गाथा का क्या कहना, मैं कहूंगा ही नहीं, समय नहीं हैं, लेकिन ब्रज की लीलाओं में यह एक प्रधान लीला हैं।गोवर्धन पूजा भी और फिर आगे गोवर्धन धारण भी और उसके संबंधित जो घटना प्रसंग घटते हैं, प्रतिपदा के दिन,गोवर्धन पूजा हुई अन्नकूट हुआ। सारे ब्रजवासी वहा गोवर्धन तलहटी के नीचे पहुंचे थें ,कृष्ण बलराम भी थें। "शैलोंस्मी" मैं गोवर्धन हूं ऐसे कृष्ण ने कहा, दर्शन दिया, गोवर्धन ने दर्शन दिया और गोवर्धन ने कहा "गोवर्धन उवाच" क्या कहा? "शैल:अस्मि" यह जो शीला हैं, ययहजो गोवर्धन पहाड़ है यह मै हूं गोवर्धन भगवान। आज अन्नकूट हैं। अन्नकूट-अन्न का पहाड़ कूट मतलब पहाड़।आपको इसको भी समझना चाहिए।अन्नकूट में कूट का क्या अर्थ हैं? कूट मतलब पहाड़।चित्रकूट मतलब पहाड़ पर।गोवर्धन के लिए बहुत से व्यंजन बनाए गए थे।सायं काल को या अपरान काल में गोवर्धन परिक्रमा भी हुई।पहली बार गोवर्धन परिक्रमा करने वाले कौन थे?सारे के सारे ब्रजवासी थे, जिन्होंने गोवर्धन की पूजा की और गोवर्धन की पूजा कर के गोवर्धन को प्रसन्न किया और गोवर्धन को ओर प्रसन्न करने हेतु या गोवर्धन से अपना संबंध स्थापित करने हेतु या गोवर्धन का स्मरण या गोवर्धन में होने वाली लीलाओं का स्मरण करने हेतु भी सारे ब्रजवासियों ने गोवर्धन की परिक्रमा की हैं। कृष्ण बलराम ने भी गोवर्धन की परिक्रमा की हैं और फिर सायंकाल को सारे बृजवासी अपने-अपने घर लोट गए।यह प्रतिपदा के दिन हुआ। समय हो भी गया?मैंने तो अभी अभी शुरुआत ही की थी।समय किसी के लिए भी नहीं रुकता। हरि हरि।मैं जितना आपको या जिस रफ्तार से आपको बताना चाहता था उस रफ्तार से मैं कह नहीं सकता। दूसरे दिन पुनः सारे बृजवासी मथुरा में विश्राम घाट पर पहुंचते हैं। विशेष रूप से भाई और बहन वहां पहुंच जाते हैं और वहां स्नान करते हैं। यमुना मैया की जय।यही भैयादूज हैं, जो कि अलग-अलग नामों से भारत में जाना जाता हैं। भैया दूज क्यों कहते हैं? क्योंकि द्वितीय का दिन हैं। इस दिन यमुना के तट पर उत्सव मनाया गया। उत्सव के अंतर्गत उन्होंने बहुत कुछ किया और वही विश्राम घाट पर दो भाई बहन भी रहते हैं।यम और यमी। यम और यमी कौन हैं? यम मतलब यमराज और यमी मतलब यमराज की बहन यानी कि यमुना। यमुना यमराज की बहन हैं। वहां इन दोनों के विग्रह हैं यानी मंदिर हैं। जब हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं तब हम उनके दर्शन वहा कर सकते हैं। वैसे परिक्रमा का प्रारंभ ही विश्राम घाट से होता हैं। तब हम वहां यम और यमी के दर्शन कर सकते हैं। यह दोनों सूर्य के पुत्र और पुत्री हैं। यमराज सूर्य पुत्र हैं और यमुना सूर्य पुत्री हैं। तो यहां द्वितीया के दिन भाई और बहन स्नान करने के लिए आते हैं और वह इन दो भाई बहनों का भाई यानी यमराज और बहन यानी यमुना का दर्शन करते हैं।यमुना तो वहां हैं ही अपने जल रूप में।यह सब ब्रज में घटित हुआ और यह सब जब हो रहा था तो इंद्र के पास समाचार पहुंच गया कि इस साल तुम्हारी पूजा नहीं हुई और उसके बदले में वह जो कृष्ण हैं ना उसने यह प्रस्ताव रखा हैं कि तुम्हारी पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा हो और देखो वैसा ही हुआ इससे इंद्र क्रोधित हो गए और खूब वर्षा की। भागवतम् में लिखा हैं कि इंद्र संवरतक नामक बादलों का प्रयोग करते हैं। यह संवरतक नामक बादल कौन हैं?जो बादल महाप्रलय के समय वर्षा करते हैं। यह बादल वहा इंद्र के द्वारा पहुंचाए गए और मूसलाधार वर्षा हुई। इसी के साथ सारा ब्रज जलमय हो गया और सब लोग इससे परेशान हो गए। गर्गाचार्य ने नंद महाराज को कहा था कि जब आप किसी कठिनाई में होते हैं तो तुरंत इस बालक के पास पहुंच जाया करें,यह तुम्हारी रक्षा करेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए सभी कृष्ण की शरण में गए। तो कृष्ण यह सब सुनकर उन सब को अपने साथ लेकर जाने लगे।पता नहीं कहां ले जा रहे थे।बस कहा कि चलो चलो और साथ लेजाते ले जाते कहां पहुंचे?गोवर्धन। गोवर्धन के पास और यह कौन सा दिन हैं? तृतीया का दिन था। प्रथमा भी बीत गई, अमावस्या भी बीत गई, द्वितीय भी बीत गई और अब तृतीया का दिन हैं, तृतीया के दिन कृष्ण अब गोवर्धन को धारण करेंगे। भगवान ने गोवर्धन को धारण किया और गोवर्धन को धारण करना,भगवान के लिए बाएं हाथ का खेल था।कौन से हाथ का? दाहिने हाथ का नहीं।दोनों हाथों का भी नहीं ।बाएं हाथ का खेल।कहावत आपने सुनी होगी।अगर आपको उदाहरण देना हैं कि कृष्ण ने गोवर्धन कैसे उठाया, तो आप बाएं हाथ का खेल बोल सकते हो। कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ उठाया, मतलब क्या किया उन्होंने उन्होंने बाएं हाथ का खेल किया।तो वह तृतीया का दिन था और इसी के साथ कृष्ण ने सारे ब्रज वासियों की रक्षा की। सारा ब्रज वहां पहुंचा हैं। तृतीया से नवमी तक कौन कौन सी तिथि हुई?तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, शष्टि, सप्तमी, अष्टमी,नवमी यानी कि 7 दिन और 7 रात्रि। ब्रज वासियों के लिए उनके जीवन में ऐसा समय कभी नहीं आया था। कृष्ण के इतने समीप,उनका संग, सानिध्य और दर्शन उन्हें प्राप्त हो रहा था। श्रीमद भागवतम् 10.23.22 श्यामं हिरण्यपरिधिं वनमाल्यबर्ह धातुप्रवालनटवेषमनव्रतांसे । विन्यस्तहस्तमितरेण धुनानमब्जं कर्णोत्पलालककपोलमुखाब्जहासम् ।। २२ ।। उनका रंग श्यामल था और वस्त्र सुनहले थे । वे मोरपंख , रंगीन खनिज , फूल की कलियों का गुच्छा तथा जंगल के फूलों और पत्तियों की वनमाला धारण किये हुए नाटक के नर्तक की भाँति वेश बनाये थे । वे अपना एक हाथ अपने मित्र के कंधे पर रखे थे और दूसरे से कमल का फूल घुमा रहे थे । उनके कानों में कुमुदिनियाँ सुशोभित थीं , उनके बाल गालों पर लटक रहे थे और उनका कमल सदृश मुख हँसी से युक्त था । भागवतम् में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन आता हैं, इस लीला का वर्णन आता हैं और बताया जाता हैं कि वह उनके जीवन का सबसे सुंदर,सबसे सुखमय समय था। सब लोग बहुत प्रसन्न थे।सातवें दिन वर्षा बंद हुई और इंद्र हार गए।इंद्र की हार हो गई।श्री कृष्ण ने इंद्र के गर्व को चूर चूर कर दिया और गोवर्धन को उसके स्थान पर रख दिया ।उससे पहले सभी ब्रज वासियों को कहा कि आप सब बाहर निकलो। दशमी आ गई और दशमी के दिन सारे ब्रज में चर्चा होने लगी कि आखिर यह बालक हैं कौन।एक बालक ने गोवर्धन पहाड़ को उठा लिया और 7 दिन और 7 रात्रि तक धारण किया रखा। इसके संबंध में कई चर्चाएं कई प्रश्न उठ रहे थे और उसी समय नंद महाराज ने बताया, क्या बताया? जो गर्गाचार्य ने कृष्ण के नामकरण के वक्त बताया था। गर्ग मुनि ने बताया था कि यह बालक कौन हैं? 10.8.19 तस्मान्नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः । श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥१ ९ अतएव, हे नन्द महाराज , निष्कर्ष यह हैं कि आपका यह पुत्र नारायण के सदृश हैं। यह अपने दिव्य गुण , ऐश्वर्य , नाम , यश तथा प्रभाव से नारायण के ही समान है । आप इस बालक का बड़े ध्यान से और सावधानी से पालन करें । उन्होंने सीधा यह नहीं कहा कि यह नारायण हैं, बल्कि उन्होंने कहा कि यह नारायण के गुणों वाला बालक हैं। उन्होंने ऐसे संकेत दिए थे कि यह नारायण के गुणों वाला बालक हैं,यह सब गर्गाचार्य ने नंद महाराज को बताया था और आज जब नंद महाराज से सभी लोग पूछ रहे थे तो नंद महाराज को जवाब देना पड़ा इसलिए नंद महाराज ने रहस्य का उद्घाटन किया।यही अध्याय कृष्ण बुक में अद्भुत कृष्ण के नाम से प्रभुपाद जी ने लिखा हैं। अद्भुत कृष्ण नाम के अध्याय में यह चर्चा हैं कि कृष्ण कौन हैं या कृष्णा अद्भुत हैं। तो उस दिन दशमी थी और दशमी के बाद एकादशी हुई और एकादशी के दिन का पालन सभी ने काफी अच्छे से किया। वृंदावन में नंद महाराज ने भी एकादशी का पालन किया। फिर द्वादशी के दिन नंद महाराज प्रातकाल: में थोड़ा जल्दी ही ब्रह्म मुहूर्त में जमुना के तट पर स्नान करने के लिए गए, लेकिन स्नान करने की विधि के अंतर्गत एक निश्चित समय होता हैं, जब आपको स्नान करना चाहिए। वह थोड़ा जल्दी वहां पर पहुंचे थे और थोड़ा जल्दी स्नान कर रहे थे।वह समय से पहले ही वहां पहुंचकर स्नान कर रहे थे।नंदमहाराज यह आप का कसूर हैं।इस समय थोड़ी ना स्नान करना होता हैं। आपने विधि के विपरीत इस स्नान के समय का चयन किया हैं। वरुण देवता के सेवक ने नंद महाराज को गिरफ्तार कर लिया और वहा ले गए जहां उनके स्वामी का निवास स्थान था। बृज वासियों ने देखा कि नंद महाराज अभी तो यहां स्नान कर रहे थे,लेकिन अभी कहां गए। अभी तो वह यहां थे कहा गए। सब लोगों उनहें खोज रहे थे और लोग भयभीत हो गए। नंद महाराज नहीं मिल रहे थे उस कारण लोग भयभीत हुए। इसलिए उस गांव का क्या नाम हुआ?भयगांव। और जहां नंद महाराज ने स्नान किया था उस घाट पर वज्रनाभ ने नंद घाट की स्थापना की और यह घाट आज भी वहां मौजूद हैं। तो सभी ब्रजवासी जब उन्हें खोज रहे हैं, तो कृष्ण बलराम उन्हें खोजते हुए यमुना में कूदे और सीधे वरुण लोक पहुंच गए।वहा वरुण देवता को मिले।उनको पता चला कि यह वरुण देव की करतूत हैं और वहां उन्हें नंद महाराज मिले। हरि हरि और वरुण देवता ने कृष्ण बलराम का खूब स्वागत सत्कार किया और कहा कि ठीक हैं, आपके पिताजी को आप ले जा सकते हैं। वह तो केवल कृष्ण बलराम का दर्शन चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने नंद महाराज को कैद किया था। अब हमको दर्शन मिला। धन्यवाद। यह नंद महाराज हैं आप इनहे ले जा सकते हैं। नंद महाराज को लेकर कृष्ण बलराम फिर वृंदावन लौट गए और यह वरुण लोक जाना और वहां पर उन लोगों का जिस प्रकार से स्वागत सत्कार हुआ, उसकी भी चर्चा अब होने लगी तो लोगों को और शक होने लगा और प्रश्न उठने लगे और शंकाय होने लगी कि आखिर यह बालक हैं कौन? इसका परिचय क्या हैं? इसका महात्मय क्या हैं? तब कृष्ण ने सोचा कि इसका कुछ मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। लोग काफी संमभ्रमित हो रहे हैं। मुझे पहचान नहीं रहे हैं। सारे ब्रज वासियों को कृष्ण बलराम अक्रूर घाट पर ले गए। यमुना के तट पर अक्रूर घाट हैं। इस अक्रूर घाट को ब्रह्मरद् भी कहते हैं और यहां इक प्रकार का टेलीस्कोप कह सकते हैं यहा से दूरदर्शन संभव होता हैं। वहां से वैकुंठ लोक और गोलोक भी देखा जा सकता हैं। वहां ऐसी व्यवस्था हैं। तब कृष्ण बलराम ने सभी ब्रज वासियों को कहा कि देखो ऊपर देखो। जब ऊपर देखा तो ऊपर भी गोलोक देखा। वहां भी कृष्ण बलराम दिखे और सारा वैभव दिखा और फिर कहा कि अब नीचे हमारी और देखो। तो वे फिर कृष्ण बलराम की तरफ देखने लगे। तो जो कृष्ण बलराम गोलोक पति हैं या गोलोकनायक हैं वही कृष्ण बलराम अब यहां पर भी हैं। अब जान गए। समझ गए।आप जानना चाहते थे ना कि कौन हैं यह बालक? लो देख लो। इस प्रकार कृष्ण बलराम ने सारे ब्रज वासियों की समस्या का समाधान किया। जिस दिन उन्होंने गोलोक का दर्शन कराया वह पूर्णिमा का दिन था। कार्तिक पूर्णिमा का दिन। इस प्रकार अमावस्या से लेकर पूरे पक्ष यानी के शुक्ल पक्ष 15 दिन अमावस्या तक एक के बाद एक घटनाक्रम घटता रहा और इसके केंद्र में कृष्ण बलराम और गोवर्धन धारण लीला हैं। गिरिराज धरण की जय। इसमें गिरिराज भी हैं और गिरिराज को धारण करने वाले भी हैं। बोलो श्री राधे श्याम और कृष्ण बलराम। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। हरे कृष्णा।

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