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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 16 अगस्त 2021 हरे कृष्ण! 833 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।हरे कृष्णा,आपका स्वागत हैं।ओम नमो भगवते वासुदेवाय।अर्थात मैं वासुदेव को नमस्कार करता हूं और उनको मैं वासुदेव क्यों कहता हूं? क्योंकि वह वसुदेव के पुत्र हैं और क्योंकि वह भगवान भी हैं, इसलिए ओम नमो भगवते वासुदेवाय। तो हरे कृष्णा श्वेत मंजरी सुनो।हरि हरि।क्या तुम तैयार हो? ठीक हैं। शुरू करते हैं। आज मैं जन्माष्टमी की कथा तो नहीं करने वाला हूं, किंतु क्योंकि जन्माष्टमी आ ही रही हैं, जन्माष्टमी अब दूर नहीं हैं तो मैंने सोचा कि कुछ तथ्य आपके साथ सांझा करूं।जन्माष्टमी के संबंध में कुछ जानकारी, तथ्य, कुछ हाइलाइट्स, कुछ वैशिष्ट्य का उल्लेख करता हूं, ताकि हम सब जन्माष्टमी के मूड में आ जाए और जन्माष्टमी कॉन्शियस हो जाएं और मेरा विचार यह भी था कि आपको भी जन्माष्टमी की कथा करनी होगी।कृष्ण जन्माष्टमी की कथा आप भी करोगे या नहीं करोगे या फिर कथा करने का ठेका केवल मैंने ही लिया हुआ हैं और आप सिर्फ आराम से सुनते जाओगें।नहीं आपको भी बोलना हैं। जब किसी से प्रेम होता हैं तो शुरुआत में आप छिप छिप के प्रेम करते हो,लेकिन जब वह एक सीमा तक पहुंच जाता हैं,तब आप बोलना शुरू करते हो, तब आपको फिर कहना ही पड़ता हैं कि मुझे उससे प्रेम हैं और वह ऐसी हैं, वैसी हैं,उसका रूप ऐसा हैं, उसका नाम ऐसा हैं,उसका गुण ऐसा हैं,हरि हरि।आप कृष्ण से प्रेम करते हो या नहीं?हां या ना? या फिर उतना नहीं जितना होना चाहिए।प्रेम हैं तो दिखा दो।आप जब कृष्ण के बारे में बोलना शुरू करोगे तब हम मान जाएंगे कि हां हां आप कृष्ण के सचमुच प्रेमी हो और वह प्रेम अब कायेन मनसा वाचा प्रकट होने लगेगा।उस बात को आप केवल मन में ही नहीं रखोगे। मुख से कुछ कहने लगोगे। जन्माष्टमी आ रही हैं, इसलिए आपको बोलना हैं। आपको कुछ कहना हैं। कृष्ण आपके हैं,आपके कृष्णा।इसीलिए मैं सोच रहा था आपको कोई आईडिया दे दू। फिर आप सोच सकते हो, कुछ खोज सकते हो और कह सकते हो और यही कीर्तन हैं। सुनना, पढ़ना और कहना अनत: लीला 12.1 श्रूयतां श्रूयतां नित्यं गीयतां गीयतां मुदा । चिन्त्यतां चिन्त्यतां भक्ताश्चैतन्य - चरितामृतम् ॥१ ॥ अनुवाद- हे भक्तों , श्री चैतन्य महाप्रभु का दिव्य जीवन तथा उनके गुण अत्यन्त सुखपूर्वक नित्य ही सुने , गाये तथा ध्यान किये जाँय । और फिर कीर्तन करना ही होता हैं,यह स्वभाविक हैं,श्रवण के उपरांत कीर्तन होता हैं। अबकी बार आपकी बारी हैं। आप सभी की बारी हैं। भगवद्गीता 4.7 “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || ७ ||” अनुवाद हे भरतवंशी! जब भी और जहाँ भी धर्म का पतन होता है और अधर्म की प्रधानता होने लगती है, तब तब मैं अवतार लेता हूँ | सभी कहते हैं कि भगवान आज से 5000 वर्ष पूर्व प्रकट हुए थे। इतना तो कोई भी कह सकता हैं, हर कोई ऐसा तो कहता ही हैं। किंतु अगर एग्जैक्ट बात करनी हैं, तो जैसा कि आप इस साल कहोगे कि कृष्णा आज से 5248 वर्ष पूर्व प्रकट हुए।आप समझ गए होंगे कि यह जो जन्माष्टमी हैं यह कौन से क्रमांक की हैं,क्योंकि जानकारी उपलब्ध हैं, कि जिस दिन भगवान अपने धाम में लौटे उस दिन से कलयुग का प्रारंभ हुआ। यदा मुकुंदो भगवान् कसमांम त्यक्तवा स्व पदम् गतह: तद दिनात कलिर आयतह: सर्व साधन बाधक: तो कलियुग कब प्रारंभ हुआ? भगवान ने इस जगत से कब प्रस्थान किया? इसे विस्तार से नहीं बता पाऊंगा, कलियुग 3102 वर्ष पूर्व प्रारंभ हुआ।क्राइस्ट से पहले इसे बीसी कहते हैं। एक बिसी होता हैं, एक एडीसी होता हैं।कृष्ताब्द की चर्चा तो संसार में हैं ही। ईसाई मसीह के पहले 3102 वर्ष पूर्व भगवान अपने धाम लौटे थे। उस दिन से कलियुग प्रारंभ हुआ। मैं आपको यह बता रहा हूं कि 5248 संख्या कैसे आई?तो यह हो गए 3102।जब कृष्ण प्रकट हुए,"कृष्ण कन्हैया लाल की जय", तब वह 125 वर्ष इस संसार में इस धरातल पर रहे।125 प्लस 3102 प्लस 2021 इसका जोड करोगे तो टोटल हो जाता हैं 5248 साल पहले कृष्ण प्रकट हुए और नोट करने की बात यह हैं, कि वह दिन बुधवार का दिन था और कृष्ण का जन्म हुआ था। कहां हुआ था? ऐसे लोग अंदाज से बोल देते हैं कि मथुरा वृंदावन में जन्म लिया था,लेकिन कृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ हैं। मथुरा में ही कृष्ण का जन्म स्थान हैं। शायद आपने देखा भी होगा। यह सब बातें शुकदेव गोस्वामी ने भी कही हैं, कहां कही हैं? भागवत के दसवें स्कंध में भागवतम का पूरा दसवां स्कंध श्री कृष्ण चरित्र हैं। श्रीमद्भागवत का बहुत बड़ा अंग श्री कृष्ण चरित्र ही हैं। कथा को 90 अध्यायो में कहा गया हैं। भागवत में कुल 335 अध्याय हैं। 335 में से 90 अध्याय तो दसवें स्कंध में हैं और 11वे स्कंध में भी श्री कृष्ण का चरित्र हैं, उद्धव संदेश हैं। जैसे भगवद्गीता श्री कृष्ण और अर्जुन के मध्य का संवाद हैं,इसके अलावा एक और गीता हैं भगवान की गीता नहीं हैं, उद्धव की गीता हैं। उद्धव गीता 11 वे स्कंध में हैं। उसके कई सारे अध्याय हैं।दसवां स्कंध और 11वा स्कंध इन दो स्कंधो में आप कृष्ण चरित्र को पढ़ सकते हो। वहां पर शुकदेव गोस्वामी ने कहा हैं कि जब श्री कृष्ण का जन्म होने जा रहा था तो सर्वप्रथम वहां पर देवता पहुंच गए। सूत उवाच यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै- र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा: । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम: ॥ श्रीमद्भागवतम्12.13.1 सभी देवताओं ने स्तुति की हैं और श्रीमद्भागवत के दसवें स्कंध के दूसरे अध्याय में आपको गर्भ स्तुति मिलेगी। जब कृष्ण गर्भ में हैं और देवता आकाश में हैं और वही से कृष्ण की उन्होंने स्तुति की, उसका नाम गर्भ स्तुति हैं। जब आपको विस्तार से कथा कहने का अवसर मिले तो आप उस स्तुति का हर शब्द समझ कर उसे कह सकते हो।हरि हरि और अब मध्य रात्रि का समय हो रहा हैं और मध्य रात्रि को श्रीकृष्ण प्रकट हुए, इसका कारण बताया गया हैं कि क्योंकि श्री कृष्ण चंद्र वंश में प्रकट होने जा रहे हैं और यह भी नोट कीजिए कि बुधवार का दिन हैं,तब अष्टमी थी।उस अष्टमी का नाम ही पड़ गया कृष्णअष्टमी। हर एक व्यक्ति यही कहता हैं कि कृष्ण अष्टमी या कृष्ण जन्माष्टमी।तो अष्टमी का दिन था और अष्टमी का चंद्रमा मध्यरात्रि को उदित होता हैं। कृष्ण यह कैलकुलेशन कर रहे थे,कि मैं 10:00 बजे भी प्रकट नहीं होउगा और 12:00 बजे भी प्रकट नहीं होंउगा। ठीक मध्य रात्रि को जिस समय पूर्व दिशा में चंद्र उदित होंगे तब होउगा।दो चंद्र उदित हुए हैं, सूर्या चंद्र में जो चंद्र हैं वह उदित हुए हैं और हमारे कृष्णचंद्र उदित हुयें हैं।श्री कृष्ण चंद्र की जय। हरि हरि।भाद्रपद मास में भगवान का प्राकट्य हो रहा हैं। भादों मतलब मंगलमय।बहुत ही मंगलमय महीना। ऐसे पवित्र मंगलमय मास में श्रीकृष्ण प्रकट हो रहे हैं और वर्षा ऋतु भी हैं। जन्म के समय पर वर्षा भी हो रही हैं। मूसलाधार वर्षा नहीं हो रही हैं। महाराष्ट्र में कहते हैं कि रिमझिम वर्षा हो रही हैं। गोरांग। तो फिर कृष्ण प्रकट हुए हैं।श्री कृष्ण के प्रकट होते की सर्वप्रथम भगवान का दर्शन करने वाले कौन होंगे?वसुदेव।इसलिए शुकदेव गोस्वामी ने कहा हैं वसुदेव ने देखा।ऐसा शुकदेव गोस्वामी ने कहा भी हैं और जब वसुदेव ने देखा तो क्या देखा?जाहिर हैं बालक को देखा।बालक कैसा था,इसका सारा वर्णन सुखदेव गोस्वामी ने किया हुआ हैं।आप पढ़ लेना।आप जब विस्तार से कथा कहोगे तो उसका पूरा वर्णन कीजिएगा।बालक ने जन्म लिया हैं और वस्त्रों और अलंकार से सुसज्जित हैं।इस जन्म को स्वयं श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा हैं कि मेरा जन्म कैसे होता हैं? भगवद्गीता 4.9 “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||” अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता हैं | मेरा जन्म और मेरी लीला भी दिव्य हैं। जगत से परे हैं।ऐसा जन्म संसार में किसी का भी नहीं होता हैं,आप ही बताइए, क्या कोई बालक वस्त्र के साथ जन्म लेता हैं?नहीं लेता हैं। वस्त्र के साथ कोई भी बालक या बालिका जन्म नहीं लेती हैं। ऐसा सब जानते हैं, लेकिन यह बालक अद्भुत हैं। यह वस्त्रों और अलंकार के साथ जन्मा हैं। हरि हरि।इस बालक का चित्र आकर्षक हैं। इसका सौंदरय आकर्षक हैं। भगवद्गीता 10.9 “मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च || ९ ||” अनुवाद मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | इसलिए व्यक्ति ऐसे बालक पर अपने प्राण भी समर्पित करता हैं, इसीलिए ही व्यक्ति ऐसे बालक की सेवा और चरणों में अपने प्राण समर्पित करता हैं। मेरा सब कुछ तुम पर न्योछावर हैं। मानस-देह-गेह, यो किछु मोर। अर्पिलु तुया पदे, नन्दकिशोर!॥1॥ अनुवाद:- हे नन्द महाराज के पुत्र, मेरा मन, शरीर, मेरे घर का साज-सामान तथा अन्य जो कुछ भी मेरा है, मैं आपके चरणकमलों पर अर्पित करता हूँ। जो भी कन्हैया को जानेंगे, जिनको कृष्ण का साक्षात्कार और अनुभव होगा और फिर अगर दर्शन भी हो जाए तो उनका तो क्या कहना।वैसे दर्शन तो होता ही हैं। आप सभी ने भगवान का दर्शन किया हैं।अगर कोइ पूछे कि आपको दर्शन हुआ हैं? तो नंदी मुखी क्या कहेगी? हां हां हुआ हैं। हम सोचते हैं जो फाइनल दर्शन हैं, जो अंततोगत्वा दर्शन होगा वही दर्शन हैं, लेकिन नहीं प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति। यं श्यामसुन्दरमचिन्त्यगुणस्वरूपं गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि ।। (ब्रम्हसंहिता 5.38) अनुवाद :जिनके नेत्रों में भगवत प्रेम रूपी अंजन लगा हुआ है ऐसे भक्त अपने भक्ति पूर्ण नेत्रों से अपने ह्रदय में सदैव उन श्याम सुंदर का दर्शन करते हैं जो अचिंत्य है तथा समस्त गुणों के स्वरूप है । ऐसे गोविंद जो आदि पुरुष है मैं उनका भजन करता हूं ।यह जो दर्शन हैं, यह भी दर्शन हैं।पूरा दर्शन तो अचानक नहीं होता।भगवान के दर्शन होते होते होते अंत में पूरा दर्शन होता हैं।और दर्शन किया फिर और दर्शन किया और फिर 1 दिन पूरी तरह से दर्शन हो जाता हैं। वैसे शास्त्रों को भी दर्शन कहा जाता हैं। वेदांत दर्शन, षड्दर्शन भगवद्गीता भी एक दर्शन हैं, भागवतम् एक दर्शन हैं। शास्त्रों को दर्शन कहा गया हैं। यह शास्त्र हमको दर्शन देते हैं। हमको तैयार करते हैं फाइनल दर्शन के लिए। तो हर क्षण दर्शन और अधिक स्पष्ट होता चला जाता हैं, हो सकता हैं कि शुरुआत में धुंधला दिख रहा हो ,कुछ दिख गया लेकिन भगवान का नाम ही स्वरूप हैं। भगवान का गुण भी स्वरूप हैं और भगवान बड़े दयालु और कृपालु हैं। या केवल आपने पढ़ लिया था इसलिए आप कह रहे हो कृष्ण बड़ा दयामय या सचमुच आपको अनुभव हो रहा हैं कि भगवान सचमुच दयालु हैं। भगवान ने मेरे लिए क्या-क्या किया हैं, कृपालु हैं, भगवान दयालु हैं, अगर आप ऐसा सोच रहे हो,नहीं ऐसा अनुभव कर रहे हो तो आप ने कृष्ण को देखा हैं। आपने भगवान को देखा हैं। क्या आपने भगवान का अनुभव किया हुआ हैं? भगवान के कुछ गुण का अनुभव किया गया हैं?भगवान की लीला का अनुभव किया हुआ हैं? जैसे पढ़ते-पढ़ते दामोदर लीला का अनुभव हुआ हो और भी कई सारी लीलाएं हम पढ़ते हैं और पढ़ते-पढ़ते उन श्लाकों में अधिकाधिक विश्वास होने लगता हैं। हरि हरि।ऐसा नहीं हैं। क्या आपने कृष्ण को देखा नहीं हैं? अगली बार अगर कोई पूछता हैं कि क्या आपने कृष्ण को देखा हैं?तो हां मैंने कृष्ण को देखा हैं। तो जितना हमने देखा हैं, उससे हम कह सकते हैं कि हां हमने कृष्ण को देखा हैं। जितना हमने अनुभव किया हैं और कैसे अनुभव होता हैं? भगवद्गीता 4.11 “ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् | मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः || ११ ||” अनुवाद जिस भाव से सारे लोग मेरी शरण ग्रहण करते हैं, उसी के अनुरूप मैं उन्हें फल देता हूँ | हे पार्थ! प्रत्येक व्यक्ति सभी प्रकार से मेरे पथ का अनुगमन करता हैं | भगवान ने कहा हैं कि जो जितना मेरी शरण में आएगा उनको उसी प्रकार मेरा दर्शन होगा। यह भगवान थोड़ा व्यापार की बात कर रहे हैं।लेन-देन की बात कर रहे हैं। भगवान कह रहे हैं कि मैं तुमको उतना ही प्रकट होउगा जितना कि तुम मेरे शरण में आ रहे हो।अगर आप का भाव 50-50 है तो मैं भी तुमको 50-50 दर्शन दूंगा।इतना ही नहीं भगवान तो यह भी कह रहे हैं, तान मतलब जिन्होंने जितनी मेरी शरण ली हैं, तान मतलब उनको और तथा एवं मतलब उतना ही भगवान कह रहे हैं कि उनका मैं भजन करूंगा।मैं उनकी सेवा करूंगा।वे मुझे उतना ही समझ पाएंगे।तांस्तथैव भजाम्यहम् यह साधक और भगवान की बात हैं। पहले साधना भक्ति करते हैं। फिर भाव भक्ति होती हैं और अंततोगत्वा प्रेम भक्ति होती हैं। यह भक्ति के 3 सोपान बताए गए हैं। साधक अगर साधना भक्ति ठीक से कर रहा हैं तो कुछ सिद्धियां प्राप्त कर रहा हैं। वह कृष्ण का कुछ अनुभव कर रहा हैं। हरि हरि।गुजरात में प्रभास क्षेत्र नामक स्थान हैं, जहां से भगवान ने अपने धाम को प्रस्थान किया था, वहां से भगवान अपने धाम को लौट गए थे। 1.3.43 कृष्णे स्वधामोपगते धर्मज्ञानादिभिः सह । कलौ नष्टृशामेष पुराणाकोऽधुनोदितः ॥ ४३ ॥ यह भागवत पुराण सूर्य के समान तेजस्वी हैं और धर्म, ज्ञान आदि के साथ कृष्ण द्वारा अपने धाम चले जाने के बाद ही इसका उदय हुआ हैं। जिन लोगों ने कलियुग में अज्ञान के गहन अन्धकार के कारण अपनी दृष्टि खो दी हैं, उन्हें इस पुराण से प्रकाश प्राप्त होगा। हम एक बार अपनी नारद मुनि ट्रैवलिंग कीर्तन पार्टी के साथ गए थे ।हम दर्शन के लिए वहां गए थे,जहां से कृष्ण ने प्रस्थान किया। 125 वर्षों के उपरांत वाली बात हैं।जब हम वहा पहुंचे तो हम अलग-अलग लीला स्थलिया देख रहे थे। वैसे मुख्य लीला तो भगवान के अंतर ध्यान होने की लीला स्थली हैं, तो वहां एक साइन बोर्ड लगा था और उस पर लिखा था,गॉड डाइड हेयर। यहां पर भगवान की मृत्यु हुई।तो हमारी संकीर्तन पार्टी में मेरे गुरु भ्राता इंग्लैंड के थे। उनका नाम था रविदास प्रभु। तो उन्होंने जब यह पड़ा किगॉड डाइड हेयर तो उनसे सहा नहीं गया, उन्होंने गुस्से में पूछा कि कौन हैं यह लिखने वाला? क्या भगवान की भी कभी मृत्यु होती हैं? तो वहां एक आश्रम भी था। वह आश्रम की तरफ दौड़ने लगे कि इन्हीं में से किसी ने यह लिखा होगा।कौन हैं? दरवाजा खटखटाने लगे कि दरवाजा खोलो। मैं उस व्यक्ति से मिलना चाहता हूं, जिसनें यह लिखा हैं कि गोड डाइड हेयर। और वह इस बात को लेकर बहुत गंभीर थे। उस वक्त मैं सोच रहा था और आप भी कल्पना कर सकते हो कि यह भगवान का साक्षात्कार हैं। उनका अनुभव रहा कि कृष्णा ऐसे हैं, वैसे कृष्ण जन्मे ही नही हैं, जिनका जन्म नहीं होता जिसका जन्म होता हैं, उसकी मृत्यु भी होती हैं और जिसका जन्म ही नहीं होता हैं तो उसकी मृत्यु कैसे हो सकती हैं? भगवद्गीता 2.20 “न जायते म्रियते वा कदाचिन् नायं भूत्वा भविता वा न भूयः | अजो नित्यः शाश्र्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे || २० ||” अनुवाद आत्मा के लिए किसी भी काल में न तो जन्म है न मृत्यु | वह न तो कभी जन्मा है, न जन्म लेता है और न जन्म लेगा | वह अजन्मा, नित्य, शाश्र्वत तथा पुरातन है | शरीर के मारे जाने पर वह मारा नहीं जाता | अगर आत्मा का जन्म नहीं हैं, आत्मा की मृत्यु नहीं हैं, तो यह बात परमात्मा पर भी लागू होती हैं। भगवान का जन्म नहीं हैं। भगवान की मृत्यु नहीं हैं। इस बात से यह रवि प्रभु जी इतने कन्विंस्ड थे,तो क्या उनको भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ? जिस किसी ने भी वह उल्टा सीधा लिखा था वह उसका भी विरोध करने लगे।ऐसा अनुभव उनको हुआ।यह भी भगवान का दर्शन ही हैं।भगवान ने उनको दर्शन दिया।यह अनुभव हैं, यह साक्षात्कार हैं। कृष्ण ने गीता के वचन में कहा हैं। BG 4.9 “जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन || ९ ||” अनुवाद हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता हैं, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता हैं| भगवान का जन्म और उनकी लीलाओं को तत्वत: समझना हैं। विषय तो जन्म का हैं, क्योंकि जन्माष्टमी आ रही हैं। तो हमें इसका तत्व भी समझना चाहिए।कृष्ण जन्म तत्व। हरि हरि।कृष्ण वासुदेव और देवकी के पुत्र तो बन रहे हैं। लेकिन क्या वास्तव में यह वसुदेव और देवकी के पुत्र हैं?नहीं। यह वसुदेव और देवकी के बाप हैं। वह पुत्र किसी के नहीं हैं। भगवद्गीता 14.4 “सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः | तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता || ४ ||” अनुवाद हे कुन्तीपुत्र! तुम यह समझ लो कि समस्त प्रकार की जीव-योनियाँ इस भौतिक प्रकृति में जन्म द्वारा सम्भव हैं और मैं उनका बीज-प्रदाता पिता हूँ | कृष्ण कह रहे हैं कि मैं सबका पिता और माता हूं।जब हमें यह समझ नहीं आता तो हम कृष्ण को साधारण जीव समझते हैं। आपने गर्भ की बात तो की,भगवान गर्भ में थे और हम भी गर्भ में रहते हैं। यह सब बातें सुनकर हम कृष्ण को एक साधारण जीव समझने लगते हैं। जैसे कि हम हैं। आतमवत मन्नते जगत। मैंने जैसे जन्म लिया वैसे ही कृष्ण ने जन्म लिया।लेकिन इसका तत्व शुकदेव गोस्वामी ने समझाया हैं कि भगवान कैसे पहले वसुदेव के मन में प्रकट हुए और वहां से वह देवकी के गर्भ में प्रकट हो रहे हैं। फिर वहां से वह अष्टमी के दिन प्रगट हो रहे हैं। तो यह स्त्री पुरुष के लैंगिक क्रिया का सहयोग नहीं हैं।यह तो हमारे तुम्हारे जन्म के संबंध में होता हैं। इसका कोई संबंध नहीं हैं। यह तत्व हैं और जब हम ऐसे तत्व समझेंगे फिर त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन। फिर ऐसे व्यक्ति के लिए पुनर्जन्म नहीं होगा। ऐसा व्यक्ति मेरी ओर आएगा,मुझे प्राप्त करेगा,मेरे धाम लोटेगा।कृष्ण जो तथाकथित जन्म ले रहे हैं उसी के साथ हमारी मृत्यु को मारने वाले हैं। कृष्ण हमारी मृत्यु को मारेंगे और फिर हमको पुनः पुनः जन्म नहीं लेना पड़ेगा।अपने धाम से अष्टमी के दिन कृष्ण आते हैं,हम सबको आमंत्रित करने के लिए, घर वापस आ जाओ, आ जाओ और आ जाओ और फिर भगवान ने हम सभी के लिए गीता भी समझाई ।भगवान ने बहुत कुछ किया ताकि हम कृष्णभावनाभावित हो। भगवत गीता भगवान की एक विशेष भेंट हैं। गीता में भगवान ने कहा हैं- भगवद्गीता 18.65 “मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || ६५ ||” अनुवाद सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | गीता के सार के रूप में अंत में भगवान ने कहा हैं कि मेरा स्मरण करो,मेरी पूजा करो, मेरे भक्त बनो,मुझे नमस्कार करो। इतना करोगे तो बस मैं जहां रहता हूं वहां तुम आओग। गर्भ स्तुति में देवताओं ने कहा था कि आप कैसे हो देवताओं ने कहा- 10.2.26 सत्यव्रतं सत्यपरं त्रिसत्यं सत्यस्य योनि निहितं च सत्ये सत्यस्य सत्यमृतसत्यनेत्र सत्यात्मकं त्वां शरणं प्रपन्नाः ॥२६ ॥ देवताओं ने प्रार्थना की हे प्रभु,आप अपने व्रत से कभी भी विचलित नहीं होते।जो सदा ही पूर्ण रहता हैं, क्योंकि आप जो भी निर्णय लेते हैं,वह पूरी तरह सही होता हैं और किसी के द्वारा रोका नहीं जा सकता। सृष्टि , पालन तथा संहार - जगत की इन तीन अवस्थाओं में विद्यमान रहने से आप परम सत्य हैं। कोई तब तक आपकी कृपा का पात्र नहीं बन सकता जब तक वह पूरी तरह आज्ञाकारी न हो अत : इसे दिखावटी लोग प्राप्त नहीं कर सकते । आप सृष्टि के सारे अवयवों में असली सत्य हैं, इसीलिए आप अन्तर्यामी कहलाते हैं । आप सबों पर समभाव रखते हैं और आपके आदेश प्रत्येक काल में हर एक पर लागू होते हैं । आप आदि सत्य हैं,अतः हम नमस्कार करते हैं और आपकी शरण में आए हैं।आप हमारी रक्षा करें । देवताओं ने भगवान को कहा कि भगवान आप सत्य हो। सत्य का स्रोत आप ही हो। सत्य का भी सत्य आप ही हो। आप सत्यात्मक हो, इसलिए हम आपकी शरण में आ रहे हैं। कई बार लोग लिखते और कहते हैं कि भगवान सत्य हैं।यह बात तो वैसे देवताओं ने गर्भ स्तुति में कही हैं,वही भगवान कह रहे हैं कि मेरा भजन करो। ठीक हैं।अब मुझे रुकना होगा। कुछ थोड़ा सा आपको मैंने मसाला दिया कि आप इस पर सोच विचार कर सको और भी कई सारी बातें हैं। ठीक हैं। हरे कृष्णा।

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