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*जप चर्चा,* *2 अप्रैल 2021,* *पंढरपुर धाम.* हरे कृष्ण 756 स्थानों से भक्त हमारे साथ जप के लिए जुड़ गए हैं। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल! *ओम अज्ञान तिमिरंधास्य ज्ञानांजन शलाकाय।* *चक्षुरन्मिलीतन्मेन तस्मै श्रीगुरुवे नमः।।* *नमो ओम विष्णुपादाय कृष्णप्रेष्ठाय भूतले,* *श्रीमते भक्तिवेदांत स्वामिने इति नामिने।* *नमस्ते सारस्वती देवे गौरवाणी प्रचारिणे,* *निर्विशेष शुन्यवादी पाश्चात्य देशतारीणे।* *जय श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद।* *श्रीअद्वैता गदाधर श्रीवासआदी गौर भक्त वृंद।।* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।* *हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* *श्रील प्रभुपाद की जय!* अगर आपको याद हैं, सूचना के अनुसार कई दिन पहले दों, तीन एवम् चार अप्रैल को जो 1971 में हरे कृष्ण फेस्टिवल क्रॉस मैदान में हुआ था, आज हम उसी पर चर्चा करेंगें। हमारी विषय वस्तु वही होंगी। 1971 में क्रॉस मैदान में हरे कृष्ण फेस्टिवल से ही मैं जुडा था।उस समय जो अनुभव हुआ उन स्मृतिया का संस्मरण आपको सुनाया जाएगा या कहां जाएगा। ऐसी घोषणा हुई थी आपको याद हैं ना? इसलिए हमने ओम अज्ञान तिमिरंधास्य ऐसा कहा।हमनें श्रील प्रभुपाद का प्रणाम मंत्र भी कहां । और श्रील प्रभुपाद की जय ऐसा भी हमने कहा। हमने कहा तो, पता नहीं आपने सुना या नही। जब हमने कहा श्रील प्रभुपाद की जय,आपके मन में ऐसे विचार उठे या नहीं।यह उत्सव 1971 में 25 मार्च को प्रारंभ हुआ था और 4 अप्रैल को खत्म हुआ।वैसे अभी भी 25 तारीख से प्रतिदिन सायंकाल 6:00 बजे कुछ प्रोग्राम हो ही रहा हैं। आशा है कि आप भी वह देखते होंगे। सायं काल विशेष कार्यक्रम 2,3 एवम् 4 तारीख को होगा। यह घोषणा मैं ही कर रहा हूं। विशेषतह: जो 4 तारीख को प्रोग्राम होगा वह 7:00 बजे प्रारंभ होगा। आप लोग उसे भूलना मत। उस कार्यक्रम से जरूर जुड़ना। उस कार्यक्रम में मैं तो रहूंगा ही, लेकिन 1971 में जो-जो भक्त मंच पर थे,जिन्होंने कीर्तन किया या फिर और भी कुछ सेवाएं की उनमें से कुछ भक्त आज भी हैं और कुछ भगवद् धाम श्रील प्रभुपाद के पास जा चुकें हैं,किंतु कुछ भक्त जो आज भी है उनमें से कुछ उस दिन उपस्थित होंगे।उनमे राधानाथ महाराज भी रहेंगे।क्योंकि मैं इस्कॉन से पहली बार जुड़ रहा था इसलिए इस कार्यक्रम में मैं प्रेक्षक था,श्रोता था। वैसे राधानाथ महाराज भी श्रोता थे। जैसे मैं भक्त रघुनाथ था। वह भक्त रिचर्ड थे। वैसे राधानाथ स्वामी महाराज इसके बारे में 4 तारीख को और अधिक बताएंगे।देखते हैं कौन-कौन रहेंगे।इस उत्सव में यदुवर प्रभु रहेंगे, पद्मावती माता जी रहेंगी,विशाखा माताजी रहेगी और भी कुछ भक्त रहेंगे जो कि उस उत्सव में श्रील प्रभुपाद के साथ थे या जिन भक्तों ने इस उत्सव के लिए श्रील प्रभुपाद के साथ पूरा योगदान दिया।यह सब भक्त 4 तारीख को इस कार्यक्रम में रहेंगे और वह कार्यक्रम का अंतिम सत्र रहेगा।यह उत्सव जो हम लोग मना रहे हैं यह उस उत्सव की 50वीं सालगिरह हैं, जब मैने और राधानाथ स्वामी महाराज ने श्रील प्रभुपाद को प्रथम बार देखा या सुना।उस सालगिरह का अंतिम सत्र 4 तारीख को होगा।आप लोग यह भूलना नहीं।आप ओर लोगो को भी आमंत्रित कर सकते हैं। ठीक हैं इसी बातचीत में बहुत समय बीत गया लेकिन आपको कोई बेकार की बातें तो नहीं बताई हैं,आपको कोई ग्राम कथा तो नहीं सुनाई हैं। यह कृष्ण कथा ही हैं।यह हरे कृष्ण उत्सव के संबंधित कथा थी।यह कृष्ण कथा ही कहलाएगी। वह दिन भी कुछ विशेष थे। वह उत्सव भी विशेष था, क्योंकि उत्सव के केंद्र में श्री कृष्ण भगवान थे।श्री कृष्ण भगवान की जय।वहां मंच पर,मंच क्या वह मंदिर ही था। पूरे मैदान को मंदिर ही बनाया था और राधा कृष्ण के विग्रह विद्यमान थे। श्रील प्रभुपाद लोगों को दिखाना चाहते थे,कि भगवान को देखो। "यह कृष्णा हैं"। हरि हरि।"परम भगवान कृष्ण"। कृष्ण ही परम भगवान हैं।कृष्ण केवल परम भगवान ही नहीं हैं,उनका अपना व्यक्तित्व हैं, चरित्र हैं, रूप हैं। हरि हरि। उस जमाने के हो,या सभी जमाने के लोग स्वयं ही भगवान बनना चाहते हैं।श्रील प्रभुपाद के समय भी भारत के कई सारे प्रचारक खुद को भगवान घोषित कर रहे थे।कई सारे बदमाश स्वयं को भगवान घोषित करना चाह रहे थे। हां मैं ही भगवान हूं।आपको भी भगवान बनाना चाहता हूं। श्रील प्रभुपाद इस बात के कट्टर विरोधी थे। वैष्णव होने के नाते मंच पर उन्होंने स्वयं ही भगवान यानी राधा कृष्ण के विग्रहों को स्थापित किया था।श्रील प्रभुपाद जब भी मंच पर चढ़ते थे,सर्वप्रथम विग्रहो का दर्शन करते और फिर मन्मना भव मदभक्तों मद्याजी मां नमस्कुरु कहते।श्रील प्रभुपाद आचार्य जो हैं,आचार्य मतलब अपने आचरण से संसार को सिखाने वाले और यह श्रील प्रभुपाद की कृष्ण भावनामृत का भी तो दर्शन ही हैं कि श्रील प्रभुपाद भगवान के श्री विग्रह का दर्शन करते और उनको साष्टांग दंडवत करते।प्रभुपाद पूरी तरह से कृष्ण भावनाभावित हैं,उनका यह विश्वास कि विग्रह भगवान ही हैं, यह दृढ भावना,दृढ़ विश्वास कि यह भगवान हैं।षडऐश्वर्य पूर्ण भगवान यही हैं। यह विग्रह के रूप में हमें दर्शन दे रहे हैं। विग्रह के रूप में उपस्थित हुए हैं, प्रकट हुए हैं। ऐसी मान्यता,ऐसी समझ श्रील प्रभुपाद ने हमें सिखाई हैं।जब वे आते तो उनका दर्शन करते और उनको प्रणाम करते।कुछ दिन पहले गौर पूर्णिमा के वक्त हम विट्ठल दर्शन के लिए गए थे,तो वहां के जो पुलिस अधिकारी थे और पुरोहित थे वह अपना काम कर रहे थे। पुलिस तो अपने मोबाइल पर दुनिया का दर्शन कर रहा था और पुरोहित अखबार पढ़ रहा था।वह भगवान के विग्रह से कुछ ही मीटर दूरी पर थे।हम उनसे और दूर थे। वह पास थे। तो कहां हैं उनकी कृष्णाभावना?पूरी मायाभावना। एक दूरदर्शन देख रहे थे,मोबाइल पर इंटरनेट पर सिनेमा देख रहा था और दूसरा आज की ताजा खबर। सारी दुनिया भर की खबरें वह पढ़ रहा था।कहां है कृष्ण भावना, भगवद् भावना? कहां हैं?श्रील प्रभुपाद की जय। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे ।1 दिन यज्ञ हुआ। दीक्षा हो रही थी। दस, बीस हजार लोगों के समक्ष,मंच पर दीक्षा समारोह संपन्न हुआ। दीक्षा भी हो गई और एक विवाह यज्ञ भी हो रहा था। तो श्रील प्रभुपाद दीक्षा दे रहे थे। उसमें दो अमरीकी थे। उनको दीक्षा दी। एक का नाम महंस हुआ। वे पारसी थे और दूसरे वर्धन। वे भारतीय थे।प्रभुपाद उनको दीक्षा दे रहे थे। वहां कोई जात पात का प्रश्न ही नहीं था।ऐसा नही था कि केवल हिंदुओं को दीक्षा दे रहे हो या ब्राम्हण कुल में जन्म लिया है तो उन्हीं को दीक्षा दे रहे हो,नही। प्रभुपाद सभी को दीक्षा दे रहे थे। हरि हरि। *किरातहूणान्ध्रपुलिन्दपुल्कशा* *आभीरशुम्भा यवना: खसादय: ।* *येऽन्ये च पापा यदपाश्रयाश्रया:* *शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नम: ॥ १८ ॥* *( श्रीमद् भागवत 2.4.18)* कोई भी, कही का भी हो,किसी भी देश का या जात- पात का या किसी भी धर्म का उनको आश्रय दिया जाना चाहिए। ऐसा भागवत का सिद्धांत है। *प्रभविष्णवे नम:* ऐसा है प्रभाव विष्णु नाम का,यह सभी का शुद्धिकरण करेगा जो भी हो। *दीनहीन यत छिल, हरिनामे उद्धारिल,* *तार साक्षी जगाइ-माधाइ* वहां पर जो दीक्षा हो रही थी, हम लोग कैसे उसे समझ सकते हैं?हम इस संसार के कलयुग के जन हैं, हम तो जगाई मधाई ही हैं या दीन हीन हैं,या पापी तापी है। पापी हैं पाप से,या तापी है मतलब ताप से ग्रसित हैं। तापी मतलब आदि भौतिक ताप,आदि दैविक,अध्यात्मिक ताप। कष्ट के तीन प्रकार हैं। तो श्रील प्रभुपाद इस भागवत के सिद्धांत के अनुसार सभी को दीक्षा दे रहे थे, सभी को। ज्यादा संख्या तो नहीं थी, लेकिन जो भी थे उनमें वैविध्य था। देसी विदेशी थे, देसी भी थे, विदेशी भी थे, कुछ हिंदू भी थे, एक पारसी भी था। तो यह प्रभुपाद मुंबई आने के पहले कर रहे थे या हरे कृष्ण उत्सव संपन्न करने के पहले। 14 बार सारे विश्व का भ्रमण कर चुके थे और जहां जहां श्रील प्रभुपाद गए थे, वहां वहां के लोगों को उन्होंने दीक्षा दी, हरि नाम की दीक्षा दी, हरि नाम दिया। *गोलोकेर प्रेम धन हरि नाम संकीर्तन*। जो प्रेम धन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अपने धाम से, गोलोकधाम से लेकर आए थे। उसी धन को, उसी नाम को श्रील प्रभुपाद वितरित कर रहे थे। परंपरा में,गौड़ीय वैष्णव परंपरा में दीक्षित कर रहे थे। हरि हरि। और फिर विवाह भी हुआ, एक विवाह यज्ञ हो रहा था, उसमे दूल्हा थे प्रभुपाद के शिष्य स्वीडन के वेगवान और दुल्हन थी ऑस्ट्रेलियन पद्मावती। उनके नाम भी पहले के अलग थे। अभी तो पद्मावती हुआ, एक का नाम हुआ वेगवान। तो कुछ टिप्पणी हो रही थी कि यह एकजुट राष्ट्र हैं। विवाह हो रहा हैं, तो कुछ मिलन हो रहा है। कुछ मैचिंग हो रहा है। यह आध्यात्मिक जगत का एकजुट राष्ट्र हैं। मुंबई में स्वीडन के जेंटलमैन और ऑस्ट्रेलिया की महिला का विवाह संपन्न हो रहा था।उसी के साथ श्रील प्रभुपाद वर्णाश्रम धर्म को भी परिचित करा रहे थे।पाश्चात्य देश में ऐसा गृहस्थ आश्रम और ऐसे विवाह यज्ञ किसी ने नहीं देखे थे तो प्रभुपाद दिखाकर आए थेे। कई विवाह श्रील प्रभुपाद करा कर आये थे। और यहां पर हरे कृष्ण उत्सव के समय एक ऐसा ही यज्ञ हो रहा था। वर्णाश्रम धर्म भी प्रभुपाद सिखा रहे थे। *चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः* चार वर्ण और चार आश्रम। हमारेेेेेेेे धर्म का एक नाम वर्णाश्रम धर्म भी हैं।वर्णाश्रम धर्म, सनातन धर्म, भागवत धर्म, जैव धर्म। तो यह वर्णाश्रम धर्म ही भगवान की सृष्टि हैं। *चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं* मया मतलब कौन? वक्ता कौन है? श्री भगवान कह रहे हैं *चातुर्वर्ण्यं मया सृष्टं* यह मेरी सृष्टि है। चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चार आश्रम ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यासी, यह मेरी रचना हैैैैं। मेरी व्यवस्था हैं। लेकिन यह विभाजन कैसे होगा? *गुणकर्मविभागशः* व्यक्ति के गुण और कर्मों के अनुसार। गुुण मतलब कौन से गुण? कई गुण हो सकते हैं। लेकिन यहां पर भगवान जो गुण कह रहे हैं वे तीन गुणों की बात कर रहे हैं। सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण। उस व्यक्ति के वर्ण का विभाजन होगा जन्म से नहीं वर्ण से या गुणों से। हां जन्मे तो हैं विदेश में, इस धर्म में, उस धर्म में,किंतु अब उनका आहार भी सात्विक हैैैैैैैैैैै, उनके विचार भी सात्विक है, सारे कृत्य उनकेेेे सात्विक है। श्रील प्रभुपाद उनको ब्राम्हण दीक्षा भी देेेेे रहे हैं। पहले जो भी थे चांडाल थे या यौवन थे या म्लेच्छा थे या शुद्र थे किंतु अब उनके कर्म देखो, गुण कर्म देखो। वैसे प्रभुपाद ही उनको कृष्ण भावना से परिचित करा के या उनको महामंत्र देकर महामंत्र का जप करवा कर या फिर प्रसाद खिला कर भगवान के विग्रह का दर्शन दिला कर या गीता भागवत का पाठ सुना कर ब्राह्मण बना रहे थे।श्रील प्रभुपाद ने क्या किया था? *चेतो दर्पण मार्जनम* उनके चेतना के दर्पण का मार्जन। चेतना का परिवर्तन, चेतना में क्रांति। श्रील प्रभुपाद कहां करते थे, रेवोलुशन इन कॉन्शसनेस। हमारे भावों में क्रांति। अंततोगत्वा क्या भाव हैं?भगवान ने भी कहा हैं आपका भाव सर्वोपरि होता हैं। *यं यं वापि स्मरन्भावं* मृत्यु के समय आपका कैसा भाव हैं? *तं तं* वैसे ही हमारा भविष्य या भविष्य का जन्म भी उसी पर निर्भर रहता हैं।श्रील प्रभुपाद ने दुनिया भर के लोगों के भावों में अंतर लाया था। वे सत्व गुनी बन रहे थे। तो श्रील प्रभुपाद उनको ब्राह्मण दीक्षा भी दे रहे थे। उनको ब्राम्हण बना रहे थे।गायत्री मंत्र भी दे रहे थे, महामंत्र तो दे ही रहे थे। क्या उनको ब्राह्मण कहा जाएगा? एक ब्राम्हण को मैं भी मिला था अहमदाबाद में मैंने आपको बताया था शायद, लेकिन दोबारा बता देता हूं।मुझे पता नहीं था कि वह ब्राह्मण हैं,मैं तो उसे लाइफ मेंबर बनाने गया था।उससे जब बातें हो रही थी तो उसने कहा कि मैं ब्राह्मण हूं और इतना ही नहीं उस बदमाश ने.. मैं बदमाश क्यों कह रहा हूं?अभी आपको पता चलेगा। उसने कहा कि मैं ब्राह्मण हूं।लेकिन मैं क्या करता हूं? मैं क्या खाता हूं?बस अंडा वगैरह। तो यह तो कोई बड़ी बात नहीं हैं या मछली।उसने कहा कि मैं गौ मांस खाता हूं। गाय का मांस। यह मेरी विशेष पसंद है। उसने मैं खाता हूं भी नहीं कहा बलकि मैं इसका आस्वादन करता हूं। तो क्या इसे आप ब्राह्मण कहोगे? हां,अधिकतर तो ऐसे ही ब्राम्हण हैं,भारत मे। भारत मे जन्मे हुए ब्राह्मण। लेकिन भगवान कहते हैं। *गुण कर्म विभागशः* आपके गुणों और कर्मो के अनुसार विभाजन होगा। तो श्रील प्रभुपाद "इस्कॉन संस्थापकाचार्य",उनको सब विधी विधान सीखा के,दुनिया भर के लोगो के विचारों मे,भावो मे क्रांति ला रहे थे और केवल विधी ही नहीं निषेध भी सिखा के। यह हैं विधी यह हैं निषेध। यह हैं यम दूसरा हैं नियम। इसे कहते हैं यमनियम। इसको करना चाहिए।यह नहीं करना चाहिए।श्रील प्रभुपाद ने यह सब सिखाया। तो इसका भी प्रात्यक्षिक श्रील प्रभुपाद उस उत्सव मे मंच पर दे रहे थे।कोई कृष्ण भावना का प्रचार पुरे विश्व भर मे कैसे कर रहा है? उसका परिणाम क्या है? *फलेन परिचय* परिचय कैसे होगा? उसका फल देखो, परिणाम देखो, उसका नतीजा क्या हैं? उसका परिणाम यह निकल रहा था कि देश विदेश के लोग *सर्वधर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज* कर रहे थे। कृष्ण की शरण मे आ रहे थे, गीता, भागवत का अध्ययन कर रहे थे। हरे कृष्ण महामंत्र का जप कीर्तन कर रहे थे। और उनके आहार विहारो मे क्रांति आ रही थी, दुनिया देख रही थी। तो मैंने भी देखा, मे भी साक्षी था उन बातो का। यह सब देख के तो मे तो समझ ही गया, अपने विज्ञापन मे तो उन्होंने लिखा ही था,अमेरिकन साधु आए है, यूरोपिअन साधु आए है। वहां का सारा माहौल और इन साधुओ को देखा सुना और उनके भाव सुने समझें तो तब मेरा इरादा पक्का हुआ।इस समझ और दृढ श्रद्धा के साथ मेने मन मे सोचा, किसी को कहा तो नहीं मैंने, लेकिन मैंने सोचा,हा ये सचमुच साधु हैं, अमेरिकन हैं तो क्या हुआ? लेकिन साधु तो हैं। वह पहले जो भी थे परंतु अब साधु है, संत हैं, भक्त हैं। हरि हरि। ठीक हैं, में यही पर अपनी वाणी को विराम दूंगा। हरे कृष्ण।।

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