Hindi

" आइये एक साथ जप करें " का सौवां दिन क्या आप जप करने के लिए उत्साहित हो रहे हैं ? आप में से कुछ भक्त अभी भी जप कर रहे हैं। यह इस बात को दर्शाता हैं कि आप जप करने के लिए अत्यंत उत्साहित हैं। आज लगभग ३७० प्रतियोगी इस कांफ्रेंस में सम्मिलित हुए हैं। यह संख्या एक प्रकार से औसत बन गई हैं। कुछ दिन पहले हमने ४०० की संख्या को पार किया था , इसका अर्थ हैं कि उनमे से कुछ भक्त आज जप नहीं कर रहे हैं। मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि आज का दिन हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन हैं , यह हमारे " आइए एक साथ जप करें " सत्र का १०० वां दिन हैं। हम एक नई वेबसाइट को भी प्रारम्भ कर रहे हैं। इस कांफ्रेंस का शुभारम्भ भी आज ही के दिन हुआ था। विशेष रूप से यह कांफ्रेंस जो ज़ूम के माध्यम से हम संपन्न करते हैं। जप सत्र के सभी हिंदी तथा अंग्रेजी भाषा के अनुवाद उस वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे। आपके प्रश्न , अनुभव तथा टिप्पणियां ये सभी भी वहां उपलब्ध होंगी। कल दिनानुकम्पा माताजी मुझे बता रही थी कि दिल्ली निवासी माधवी गौरी माताजी कल इस वेबसाइट का प्रक्षेपण करेंगी। किस प्रकार तथा कहाँ से आप इससे जुड़ सकते हैं , यह आपको बता दिया जाएगा। हम अब तक इन सभी सत्रों को लोकसंग पर प्रकाशित करते थे। ये सभी अब जप कांफ्रेंस वेबसाइट पर उपलब्ध होंगे। हमने इसका प्रारम्भ बहुत कम भक्तों , १० से भी कम भक्तों के साथ किया था परन्तु धीरे धीरे अधिक से अधिक मात्रा में भक्त इसमें सम्मिलित होते रहे। तब एक दिन ऐसा आया जब इसमें सम्मिलित होने वाले भक्तों की संख्या १०० से भी अधिक थी , उसके कुछ सप्ताह पश्चात हमने २०० , फिर ३०० की संख्या को भी पार किया इस प्रकार हम सभी सीमाओं को पार कर रहे हैं क्योंकि इसमें सम्मिलित होने वाले भक्तों की कोई सीमा नहीं हैं। हमने ४०० की संख्या को भी पार कर लिया हैं परन्तु हमारा उद्देश्य इसे दोगुना करना हैं। अगले १०० दिनों में अथवा मेरी व्यासपूजा तक हम इस संख्या में वृद्धि चाहते हैं अथवा इस संख्या को दोगुना देखना चाहते हैं। हमने इस कांफ्रेंस का प्रारम्भ १० दिसंबर २०१८ को किया था। यह दोगुनी संख्या के विचार की पूर्ति केवल आपके प्रयासों से ही हो सकती हैं। आप सभी के प्रयासों से ही हम इस संख्या पर भी पहुँच पाए हैं तथा इसमें सम्मिलित होने वाले भक्तों की संख्या ४०० से भी ऊपर हो चुकी हैं। हम अब इसे दोगुना करना चाहेंगे। अतः आपको इस पर कार्य करना चाहिए , यह आप सभी के लिए गृहकार्य हैं। प्रत्येक व्यक्ति कम से कम एक व्यक्ति को इस कांफ्रेंस में जोड़िये। आप में से किसी ने लिखा हैं कि बहुत शीघ्र हम १००० के आंकड़े को भी पार कर जाएंगे। इस प्रकार सुदूर देश यथा ऑस्ट्रेलिया , मध्य - पूर्व के देश , दक्षिणी अफ्रीका ,संयुक्त द्वीप ,मॉरिशियस , यूक्रैन ,रूस तथा निस्संदेह भारत से भी भक्त इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। इनके अलावा अन्य भी कई देशों से भक्त इसमें सम्मिलित हो रहे हैं। अतः हमें निरंतर जप करते रहना चाहिए। आप सभी से मुझे जो प्रतिक्रिया मिल रही हैं वह अत्यन्त उत्साहजनक हैं। मैं समझ सकता हूँ कि इस कांफ्रेंस से आपको लाभ हुआ हैं। इससे आपका जप नियमित तथा ध्यानपूर्वक होता हैं। इस कांफ्रेंस में सम्मिलित होकर आप सभी प्रकार के लाभ को प्राप्त कर रहे हैं। चुँकि इससे आपको लाभ हो रहा हैं अतः मुझे इस सत्र को आगे जारी रखने के अलावा अन्य कोई मार्ग नहीं दिखता हैं। कल मैंने कहा था कि आज हम नाशिक की धार्मिक स्थलीयों तथा लीलाओं के विषय में चर्चा करेंगे। अब समय कम ही बचा हैं तथा हमने अधिकतर समय जप सत्र के १०० वें दिन के विषय में ही बात की। अब हम इसके विषय में कुछ बातें कहने का प्रयास करेंगे। नाशिक कुम्भ मेले के लिए भी प्रसिद्द हैं। जब भी नाशिक में कुम्भ मेला होता हैं तब , कुम्भ मेले का महंत होने के नाते मैं उसमें अवश्य सम्मिलित होता हूँ। निस्संदेह यह स्थान भगवान श्री राम की लीलाओं के विषय में भी जाना जाता हैं। यहाँ गोदावरी नदी बहती हैं। यह सभी नदियों में एक प्रमुख नदी हैं। राम , लक्ष्मण तथा सीता यहाँ रहे थे , हनुमान यहाँ नहीं थे। यहाँ उन्होंने एक छोटी सी पर्णकुटी का निर्माण किया था। दो दिन पहले हम वहां दर्शन करने गए थे। भगवान राम यहाँ लगभग १० लाख वर्ष पहले आए थे। इस प्रकार के इतने प्राचीन स्थल आपको केवल भारतवर्ष में ही मिल सकते हैं। यहाँ एक स्थान हैं जहाँ रावण की बहन सुपर्णखा आई थी। वो राम से विवाह करना चाहती थी परन्तु राम ने उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया तथा उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने भी उसके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार वो बारी बारी से दोनों भाइयों के पास जाकर विवाह का प्रस्ताव रख रही थी। अंततः लक्ष्मण ने उसकी नाक को काट दिया तथा यही वह स्थान हैं जहाँ उसकी कटी हुई नाक गिरी थी। नाक को नासिका भी कहते हैं अतः इस स्थान का नाम नाशिक हो गया। वे इस स्थान का नाम लक्ष्मण नगर अथवा राम नगर भी रख सकते थे परन्तु इसका नाम नाशिक रखा गया जिसका अर्थ हैं सुपर्णखा का नाक। यह हमें उस लीला का स्मरण कराता हैं। यही वह स्थान हैं जहाँ से सीता का अपहरण हुआ था। इस प्रकार पहले बहन आई और उसके पश्चात उसका भाई रावण यहाँ आया। वो एक ब्राह्मण के वेश में आया था - " भिक्ष्याम देही " अर्थात कृपया मुझे भिक्षा दिजिए। जैसे ही सीता ने लक्ष्मण रेखा को पार किया दुष्ट रावण ने उनका अपहरण कर लिया। उसके पश्चात जटायू जो कि एक रक्षक के समान थे , उन्होंने सीता को बचाने के लिए प्रयास किया। उन्होंने इसमें अपनी पूरी क्षमता लगा दी परन्तु अंततः उनके पंख काट दिए गए , जिससे वे भूमी पर गिर पड़े। वह स्थान भी इसी क्षेत्र में हैं। रावण अपने पुष्पक विमान में आया था , जिसे गधे खेंच रहे थे। जटायु एक संरक्षक थे तथा वे उस क्षेत्र में राम की सेवा कर रहे थे। जटायु ने रावण को ललकारा तथा अपने पुरे सामर्थ्य के साथ उससे युद्ध किया परन्तु दुर्भाग्यवश उनके दोनों पंखों को काट दिया गया जिससे वे भूमि पर गिर पड़े। वह स्थान भी यहाँ से समीप ही हैं। तत्पश्चात यहाँ मरीचि , जो कि एक हिरण बनकर आया था और राम ने उसका पीछा किया था तथा अंततः वह राम द्वारा मारा गया , वह लीला भी यहीं संपन्न हुई हैं। मरीचि को मारने के पश्चात जब राम तथा लक्ष्मण पुनः आश्रम में आए तो उन्हें कहीं भी सीता नहीं मिली। उन्होंने सीता को खोजना प्रारम्भ किया , " सीते ! सीते ! " राम इस प्रकार सीता का नाम ले लेकर उन्हें पुकार रहे थे। इस प्रकार खोजते हुए वे उस स्थान पर आए जहाँ उन्हें अधमरी स्थिति में जटायु मिले। वे मरणासन्न थे तथा उनकी केवल कुछ ही साँसे बची हुई थी। जटायु दशरथ में पुराने मित्र थे। राम तथा लक्ष्मण को अयोध्या में दशरथ का अंतिम संस्कार करने का सौभाग्य नहीं मिला , अतः उन्होंने दशरथ के मित्र जटायु का अंतिम संस्कार करने का निश्चय किया। वह स्थान भी इसी क्षेत्र में हैं। इस प्रकार यहाँ भगवान राम के वनवास के दौरान घटित हुई कई लीला स्थलियाँ हैं। आप इन्हे रामायण में पढ़ सकते हैं। ठीक हैं अब मुझे जाना होगा। मैं नाशिक से आज प्रस्थान कर रहा हूँ तथा मुझे पहले एक पास ही के गाँव में जाना हैं जहाँ उन्होंने एक कार्यक्रम का आयोजन किया हैं , तथा वहां से मैं कल होने वाली रथ यात्रा के लिए अहमदनगर जाऊँगा। अतः आप सभी से किसी अन्य दिन पुनः भेंट होगी। हरे कृष्ण !

English

HUNDREDTH DAY OF “ LET'S CHANT TOGETHER!” Are you feeling enthusiastic to chant? Some of you are still chanting. That's the indication that you are very enthusiastic. Around 370 devotees have participated today. It is kind of becoming our average now. Few days we had crossed the four hundred mark. That means someone is not chanting with us. I have to let you know that today is a special day for our Let's Chant together japa conference, as it's the hundredth day of our conference. Haribol! We are launching a new website. This conference is also getting inaugurated today. Specially dedicated to this zoom chanting conference. All the Japa talks transcriptions in Hindi and in English will be posted there. All your questions, realisations will get posted there on that conference. Dinanukampa Mataji mentioned to me yesterday that Madhavi Gauri mataji based in Delhi will be launching it today. Where and how to join will be communicated to you. We had been doing all the postings on Loksanga so far. All that would be now to be found on the Japa conference. We started with a handful of devotees, less than ten and gradually more and more chanters have been joining us. So then there was a day when we crossed the hundred mark and then couple of weeks later two hundred and then three hundred and then we have been crossing the limit or no limits. Four hundred is also crossed, but our target is to double it, In next one hundred days or something like that, till my Vyasa Puja day, we would like to see numbers increasing and doubling it. We started this conference on 10th of December 2018. This doubling idea is possible with your efforts only. By your efforts only we have reached so far. We have crossed mark of 400 participants. We will try to double it now. So work on this. This is your homework. Each one, Teach one. Someone has written we will cross the mark of 1000 very soon. Thus far many countries - Australia, Middle East, South Africa, Reunion Island, Mauritius, Ukraine, Russia and of course India. Many more countries have been chanting on this conference. So let's keep chanting. The feedback which I am getting is very encouraging. I understand you are being benefited by this conference. Your japa is becoming regulated and concentrated and what not. You are deriving all sorts of benefits by attending this conference. Because you are being benefited, then I don't have any choice but to continue. I had mentioned yesterday, that I will say some things about the pilgrimage to Nasik. Now time is running out and mostly we talked about the hundredth day. We will try to say a few things. Nasik is also famous for Kumbha-mela. I had been joining Kumbha-mela as Mahant of Kumbha whenever there is Kumbha-mela in Nasik. Of course this is a place known for Lord Rama's pastimes. There is a Godavari River over here. It is one of the principal Holy Rivers. Rama, Laxman and Sita stayed on the banks of the Godavari.Hanuman was not here. They had built a small Parnakuti. We had gone there for darsana 2 days back. Rama was here about a million years ago. Such places you find in Bharat - Varsha. This is the place is where Surpanaka, sister of Ravana had come. She wanted to marry Rama but He refused her proposal and she was sent to Laksman. Laksman also refused. She kept on putting her proposal to both the brothers one after another. Finally here Laksman chopped off her nose and her nose fell here. The word for nose is nasika, so this town is called Nasik. They could have named it Laksman nagar or Rama-nagar. But somehow, this place is known as Nasik - nose of Surpanaka. It reminds us of that pastime. This is also the place where Sita was kidnapped. So sister had come first and then eventually brother Ravana had also come. 'bhiksham dehi’ - please give me some alms. As Sita moved ahead of Laksman rekha she was kidnapped by that demon - Ravan. We took darsana of Laksman rekha. Then Jatayu who was like a guard or protecter attempted to rescue Sita. He did his best, but ultimately he lost his wings and fell to the ground. That place is also in this region. Ravana came in Pushpak plane which was being pulled by donkeys. Jatayu was a protector and was serving Ram in that region. Jatayu challenged Ravana and put all his efforts. But he lost both his wings and fell down. That place is also nearby. Then Marici who had become a deer was chased by Rama. Eventually he was killed. That place is also in this area. When Rama and Laksman returned to the asrama after killing of Marici, they could not find Sita anywhere. They started their search, “Site! Site!“ Rama was calling out Her name while searching. Searching and searching They arrived at a place where they met half killed Jatayu. He was almost on the verge to death with only a few breaths to go. Jatayu was an old friend of Dasarath. Rama and Laksman had no privilege or opportunity to perform the final rites of Dasarath in Ayodhya. So they took this opportunity to perform the last rites of Jatayu - friend of Dasarath. That place is also in this region. Like that there are several other locations regarding the exile of Rama in the forest. You read it from Ramayan. Okay , I need to get ready to leave. I am leaving Nasik and going to one village where they have arranged a program, and then I will go to Ahmadnagar for Ratha-yatra which is tomorrow. So we will meet again another day. Hare Krishna!!

Russian

СОТЫЙ ДЕНЬ «ДАВАЙТЕ ВОСПЕВАТЬ ВМЕСТЕ!» Вы чувствуете энтузиазм воспевать? Некоторые из вас все еще воспевают. Это признак того, что вы полны энтузиазма. Около 370 преданных сегодня приняли участие в конференции. Это как бы становится нашим средним показателем сейчас. Несколько дней назад мы пересекли отметку 400. Это означает, что кто-то не воспевает с нами. Я должен сообщить вам, что сегодня особый день нашей джапа конференции «Давайте воспевать вместе», поскольку это сотый день нашей конференции. Харибол! Мы запускаем новый сайт. Эта конференция также открывается сегодня. Специально для этой зум-конференции все транскрипции джапы на хинди и английском будут опубликованы там. Все ваши вопросы, реализации будут опубликованы на этой конференции. Динанукампа Матаджи вчера сказала мне, что Мадхави Гаури Матаджи, находящаяся в Дели, запустит его сегодня. Вам сообщат где и как можно будет найти сайт. До сих пор мы делали все публикации на Локсанге. Всю эту информацию теперь можно найти на Джапа конференции. Мы начали с горстки преданных, меньше десяти, и постепенно к нам присоединились много-много воспевающих. Наступил день, когда мы пересекли отметку в 100, а затем через пару недель 200, а затем и 300, и затем мы иногда пересекали эту черту иногда нет. Мы пересекли также отметку 400, но наша цель - удвоить это количество. В следующие сто дней или, до моей дня Вьяса-пуджи, мы хотели бы, чтобы число повышалось и удваивалось. Мы начали эту конференцию 10 декабря 2018 года. Идея удвоить наше количество возможна только благодаря вашим усилиям.Только благодаря вашим усилиям мы этого достигли. Мы пересекли отметку в 400 участников. Мы постараемся удвоить это число. Так что работайте над этим. Это ваша домашняя работа. Учиться никогда не поздно. Кто-то написал, что мы скоро пересечем отметку 1000. Так много стран участвуют: Австралия, Ближний Восток, Южная Африка, Остров Реюньон, Маврикий, Украина, Россия и, конечно, Индия. Также много других стран воспевали на этой конференции. Давайте продолжим воспевать. Отзывы, которые я получаю, очень обнадеживают. Я понимаю, что вам помогает эта конференция. Ваша джапа становится регулярной и внимательной. Вы получаете все преимущества, посещая эту конференцию. Поскольку вы получаете пользу, у меня нет другого выбора, кроме как продолжать. Я упоминал вчера, что скажу кое-что о паломничестве в Насик. Время истекает а мы в основном говорили о сотом дне. Мы постараемся сказать несколько вещей. Насик также известен как Кумбха-мела. Я присоединяюсь к Кумбха-меле как Махант Кумбхи всякий раз, когда в Насике проходит Кумбха-мела. Конечно, это место, известное играми Господа Рамы. Здесь есть река Годавари. Это одна из главных священных рек. Рама, Лакшман и Сита останавливались на берегу Годавари. Ханумана здесь не было. Они построили маленькую Parnakuti. Мы были там на даршане 2 дня назад. Рама был здесь около миллиона лет назад. Такие места вы найдете в Бхарата - Варше. Это место, куда пришла Шурпанака, сестра Раваны. Она хотела выйти замуж за Раму, но он отказался от ее предложения, и ее отправили к Лакшману. Лакшман тоже отказался. Она продолжала делать свое предложение обоим братьям по очереди. В итоге Лакшман отрубил ей нос, и ее нос упал здесь. Nasika – означает нос, поэтому этот город называется Nasik. Они могли бы назвать это место Лакшман Нагар или Рама-Нагар. Но каким-то образом это место известно как Насик - нос Шурпанаки. Это напоминает нам об этой лиле. Это место где похитили Ситу. Итак, первой пришла сестра, а затем в конце концов пришел и брат Равана. "Бхикшам дехи" - пожалуйста, дайте мне немного милостыни. Когда Сита пересекла черту Лакшман Рекхи, ее похитил этот демон - Раван. У нас был даршан Лакшмана Реха. Затем Джатаю, который был как охранник или защитник, попытался спасти Ситу. Он сделал все возможное, но в конечном итоге он потерял свои крылья и упал на землю. Это место также в этом регионе. Равана прилетел на «Пушпаке», которую тянули ослы. Джатаю был защитником и служил Раме. Джатаю бросил вызов Раване и приложил все свои усилия, но потерял оба крыла и упал. Это место тоже рядом. Затем Маричи, ставший оленем, которого преследовал Рама. В конце концов он был убит. Это место также в этой области. Когда Рама и Лакшман вернулись в ашрам после того как убили Маричи, они нигде не смогли найти Ситу. Они искали ее. «Сита! Сита!» - Рама звал ее по имени. Искали и искали. Они прибыли в место, где встретили полуживого Джатаю. Он был почти на грани смерти, ему оставалось всего несколько вдохов. Джатаю был старым другом Дашаратхи. У Рамы и Лакшмана не было возможности совершить заключительные обряды для Дашаратхи в Айодхье. Поэтому они воспользовались этой возможностью, чтобы совершить последние обряды Джатаю - другу Дашаратхи. Это место также в этом регионе. Есть еще несколько мест об изгнании Рамы в лесу. Вы можете прочитать это в Рамаяне. Хорошо. Мне нужно подготовиться к отъезду. Я уезжаю из Насика и еду в одну деревню, где преданные организовали программу, а затем я поеду в Ахмаднагар на Ратха-ятру, которая пройдет завтра. Так что мы встретимся снова в другой день. Харе Кришна!