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*जप चर्चा* *13 -04 -2022* (कृष्णभक्त प्रभु द्वारा) हरे कृष्ण ! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* इस ज़ूम पर उपस्थित सभी लोगों को बहुत-बहुत धन्यवाद स्पेशली धन्यवाद पदमाली प्रभु को जो कि इस ज़ूम कांफ्रेंस के ऑर्गेनाइजर हैं। जैसे कि हम हर बार सुना करते ही हैं गुरु महाराज जी से (इस शरीर या हेल्थ के विषय में अपने भक्तों को सारे शिष्यों को बताते रहते हैं) हम हर बार श्रवण करते हैं कि आत्मा शाश्वत है, शरीर नश्वर है फिर भी हमें शरीर का क्यों बहुत अच्छे से ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि जब तक हमारा यह शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा तब तक हम साधना नहीं कर सकते। हेल्थ, साधना और सेवा यह तीन सीक्वेंस हैं। सबसे पहले हमारी हेल्थ उसके बाद साधना और उसके बाद सेवा कभी-कभी भक्तों को लगता है कि हम तो शरीर नहीं हैं हम तो आत्मा हैं क्यों शरीर का ध्यान देना है, चलो तपस्या करते हैं रघुनाथ दास गोस्वामी ने तो इतनी तपस्या की षडगोस्वामियों ने तो खाना भी छोड़ दिया। प्रायः 24 घंटे में वह 2 घंटे विश्राम करते थे हरिदास ठाकुर 22 घंटे जप करते थे तो हमें भी करना चाहिए तो नौसिखिया अवस्था में ऐसी भावनाएं ऐसे तरंग हृदय में उत्पन्न होते हैं। मगर शरीर का ध्यान देना वह भी कितना महत्वपूर्ण है मेरे पढ़ने में आने में श्रीमद्भागवत का यह दशम स्कंध प्रथम अध्याय का शीर्षक है, भगवान कृष्ण का अवतार परिचय *मृत्युर्बद्धिमतापोह्ये यावद्बुद्धिबलोदयम्। यद्यसौ न निवर्ते नापराधोअ्स्ति देहिनः।।* ( श्रीमद्भागवतं १०.१.४८) अनुवाद:- बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि जब तक बुद्धि तथा शारीरिक पराक्रम रहे, तब तक मृत्यु से बचने का प्रयास करता रहे। हर देहधारी का यही कर्तव्य है। यदि उद्यम करने पर भी मृत्यु को टाला नहीं जा सके तो मृत्यु को वरण करने वाला मनुष्य अपराधी नहीं है। बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि जब तक बुद्धि तथा शारीरिक पराक्रम रहे तब तक मृत्यु से बचने का प्रयास करता रहे। हर देह धारी का यही कर्तव्य है यदि उद्यम करने पर भी मृत्यु को टाला नहीं जा सके तो मृत्यु को वरण करने वाला मनुष्य असमय मृत्यु का सामना करने वाला है। मनुष्य के लिए यह स्वाभाविक है कि वह अपनी रक्षा का पूरा प्रयत्न करें यद्यपि मृत्यु निश्चित है किंतु प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि उससे बचे और बिना विरोध के मृत्यु को वरण ना करें, क्योंकि प्रत्येक जीव् एक मृत आत्मा है। क्योंकि इस जीवन में निंदनीय जीवन पर थोपा गया दंड अतः वैदिक संस्कृति मृत्यु से बचने पर आधारित है। *जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः | त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ||* ( श्रीमद् भगवद गीता ४.९) अनुवाद:-हे अर्जुन! जो मेरे अविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है | हर व्यक्ति को चाहिए कि आध्यात्मिक जीवन का अनुशीलन करके मृत्यु तथा पुनर्जन्म से बचने का प्रयास करें और जीवित रहने के लिए संघर्ष किए बिना मृत्यु के सामने घुटने ना टेके जो व्यक्ति मृत्यु को रोकने का प्रयास नहीं करता वह बुद्धिमान मनुष्य नहीं है क्योंकि व्यक्ति को आसान मृत्यु का सामना करना पड़ रहा था अतः वसुदेव का कर्तव्य था कि उसे प्राण पद से बचाते हैं, अतः उन्होंने कंस को फुसलाने का दूसरा तरीका सोचा जिससे व्यक्ति को बचाया जा सके यह भागवत का प्रसंग है। जब देवकी और वसुदेव के विवाह के उपरांत उनके भ्राता श्री कंस उनको छोड़ने जा रहे थे रथ की डोरी हाथ में लेकर और जब आकाशवाणी हुई कि इसी देवकी और वसुदेव का आठवां पुत्र कल तेरा काल बनने वाला है और तुझे मृत्यु दंड देगा तब तुरंत ही वह विचलित हो गया। जो आसुरी प्रवृत्ति के जो लोग होते हैं वह किसी चीज का सोच विचार ना रखते हुए तुरंत अपनी प्रिय बहन जिसको घर छोड़ने जा रहा था उसको तलवार से काट कर मारने के लिए तैयार हुआ और उस समय वसुदेव अलग अलग दृष्टांत या अलग अलग सिद्धांत के द्वारा देवकी की रक्षा करने का प्रयास कर रहे हैं। यहां पर प्रभुपाद जी लिख रहे हैं जो व्यक्ति अपनी मृत्यु के सामने घुटने टेक देता है वह बुद्धिमान नहीं है। ऐसा नहीं है कि भक्तों को मृत्यु प्राप्त होने वाली नहीं है भक्तों को भी मृत्यु प्राप्त होगी यह तो फाइनल टैस्ट है हम सभी का, मगर मृत्यु को प्राप्त करने से पहले हमें अपना आध्यात्मिक जीवन पूर्ण करने के लिए यह मनुष्य जीवन की प्राप्ति हुई है जिसे हम हर रोज सुनते हैं। *शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्* (कालिदास द्वारा रचित कुमारसम्भव) अर्थ:--यह शरीर वास्तव में [अच्छे] कर्म करने का साधन है महाराज जी बार-बार इस श्लोक को जोकि उपनिषद का श्लोक है उसको वर्णित करते हुए बताते हैं *शरीर माध्यम खलु धर्म साधनम* शरीर ही सारे कर्तव्यों को एकमात्र पूर्ण करने का साधन है। इसीलिए शरीर को स्वस्थ रखना बहुत आवश्यक है, सारे कर्तव्य कि सिद्धि भी इसी शरीर के माध्यम से प्राप्त होनी है जो हम साधना कर रहे हैं, साधना करने के लिए यह शरीर ही साधन है। साधन साधना और सिद्धि, साधना हमारे हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना, गुरु के द्वारा प्रदत आदेशों का पालन करना, जिस में शारीरिक सेवाएं हो गई यदि हमारा शरीर ठीक नहीं है तो हम कहां से भक्ति और शारीरिक सेवाएं कर सकेंगे स्वास्थ्य से, इसीलिए “स्वा अस्थ” कहा गया है अपने स्वा में स्थित है। लोगों को लगता है स्वास्थ्य मतलब अपने शरीर के विषय में पूछा जा रहा है आपका शरीर कैसा है ,हाउ आर यू ,आई एम गुड आई एम फाइन, मगर अपने स्वास्थ अपने स्वा में स्थित है क्या स्वा मतलब अपनी आत्मा, आत्मा के उद्धार के लिए यह शरीर क्या कार्य कर रहा है। जैसे हमारी संस्था में फूड फॉर लाइफ होता है। जीने के लिए अन्न मगर लोग जीने के लिए नहीं खाते हैं खाने के लिए भी जीते हैं। अब देखिए कहीं भी रास्ते में कोई भी दुकान या कोई भी गाड़ी कोई भी होटल खोल दिया जाए, लोग कुछ भी बिना सोचे समझे वहां पर लेना प्रारंभ कर देते हैं, वह कौन है? वह व्यक्ति किस भावना से पका रहा है? कौन सी शुद्धता का पालन कर रहा है? कुछ नही। लोग अच्छा स्वाद देखते ही तुरंत होटल में लाइन लगा देते हैं और फिर जैसा अन्न वैसा मन स्वयंपाक मराठी में कहा गया है स्वयं मतलब खुद ही स्वयं अपने आप पाक वृत्ति करना है। जो साधक है जो ब्रजवासी है या अलग-अलग धाम में जो साधना कर रहे हैं ऋषि मुनि योगी वह कभी भी किसी के हाथ का बना हुआ भोजन नहीं स्वीकारते, वह स्वयं बना करके खाते हैं। इसी को कहा गया है स्वयंपाक स्वयं कुकिंग करके उसको भगवान को अर्पित करके अच्छी भावना में, अच्छी चेतना में स्वीकार करते हैं और उसको कहा गया है स्वयंपाक, आजकल की स्थिति ऐसी है फैशन और आजकल कई आधुनिक समाज विशेष रुप से यंगस्टर यह शारीरिक त्वचा का, मेकअप पूरे शरीर को सजाना उस में लगे रहते हैं विशेष रूप से त्वचा में, त्वचा का ख्याल करने में, त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए मगर जब तक सिर्फ त्वचा को ही नहीं, शरीर को भी स्वस्थ रखना पड़ेगा और इसीलिए शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्य नमस्कार प्राणायाम तो आज कल का यह खानपान फास्ट फूड फास्ट ट्रेक और फास्ट नर्क की ओर जैसे एक बात बता रहे थे पिज़्ज़ा पास्ता नरकेर रास्ता, पिज्जा और पास्ता खा कर लो फास्ट नरक की ओर जाना पसंद करते हैं। जैसे गुरु महाराज भी हर बार बताते हैं जब कोई व्यक्ति सिगरेट पीने के लिए अपने हाथ में सिगार लेता है और एडवर्टाइज कर रहा है। किंग साइज जो सिगरेट पी रहा है व्यक्ति उसको लग रहा है कि मैं बहुत बड़ा राजा बन गया हूं और मैं राजा की तरह जी रहा हूं मगर उसके और थोड़ा सा आगे बताया गया है, कैंसर हॉस्पिटल आगे हैं आप लेफ्ट लेना और आपके लिए कैंसर हॉस्पिटल और इसीलिए कहा गया है कि जब तक हमारा शरीर स्वस्थ नहीं है तब तक हम भगवान की भक्ति और साधना अच्छी तरह से नहीं कर पाते और इसीलिए कभी-कभी भक्तों के जीवन में भ्रांत धारणा है यह शरीर का कुछ काम नहीं है इसको कष्ट देना है *यदा मुकुन्दो भगवान क्षमं त्यक्त्वा स्व पदम् गतिः। तद दिन कलीर अयातः सर्व साधना वधकः ।।* (1.65 श्रीमद भगवत महात्म्य) सभी साधना की जैसे की हम चर्चा कर ही रहे थे साधना के विषय में की कली हमेशा साधना में बाधा डालने का कार्य करता ही है। शरीर धर्म खलु, धर्म साधनम्, महाराज ने उपनिषद का वाक्य के द्वारा श्रवण करते हैं जो शरीर सारे कर्तव्यों को पूरा करने का एकमात्र साधन है और इसी शरीर को स्वस्थ रखना है, क्यों आवश्यक है? सारे कर्तव्य और कार्य सिद्धि शरीर के माध्यम से ही होती है और इसीलिए हम शरीर का ध्यान रखते हैं क्योंकि हम इस शरीर के द्वारा भगवान की भक्ति अच्छी तरह से कर सकें और जैसे कहा गया है। *नायम बलहीनन लभ्यो न च प्रमादत् तपसो वाप्यलिङ्गात्। एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वानस्तस्यैैष आत्मा धाम।।* ( मुण्डक उपनिषद) अनुवाद:-इस आत्मा को कोई भी नहीं जीत सकता है जो बिना ताकत के है, न ही खोज में त्रुटि के साथ, और न ही एक सच्चे निशान के बिना एक पूछताछ के द्वारा: लेकिन जब ज्ञानी व्यक्ति इन तरीकों से प्रयास करता है तो उसका स्वयं ब्रह्म में प्रवेश करता है, उसका निवास स्थान। आत्मा परमात्मा को समझना है तो यह कमजोर शरीर और कमजोर मन उसको कभी नहीं समझ पाता है और इसीलिए हमारा कर्तव्य है की श्रील प्रभुपाद जी के आंदोलन में हमें यदि अच्छी तरह से सेवा करनी है तो सभी भक्तों को अपनी हेल्थ के ऊपर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि कई बार देखा गया है कि भक्तगण जब भी यात्राओं में या अपने दैनिक जीवन में भी, शरीर को कभी-कभी इतना द्वितीय स्थान दे देते हैं अपने कारोबार में या अपनी सेवाओं में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि शरीर साथ नहीं दे पाता और लंबे समय के लिए यदि हम भक्ति करना चाहते हैं, भगवान की सिद्धि प्राप्त करना चाह रहे हैं तो फिर वह कठिन हो सकता है और इसीलिए ऐसा नहीं है कि हमें शरीर के प्रति आसक्त होकर ही हमें कार्य करने मे भले ही शरीर के ऊपर आसक्ति सकती हो ना भी हो फिर भी हमें इस शरीर को एक मशीन के रूप में चलाना है। मशीन हमें भगवान की प्राप्ति, हरि नाम में रुचि प्राप्त करा सकती है जैसे प्रल्हाद महाराज अपने मित्रों को जब शिक्षाएं दे रहे थे महाराज ने कहा, श्री प्रह्लाद उवाच *कौमार आचरेत्प्राज्ञो धर्मान्भागवतानिह। दुर्लभं मानुषं जन्म तदप्यध्रुवमर्थदम्।।* ( श्रीमद्भागवतं ७.६.१) अनुवाद:-प्रह्लाद महाराज ने कहा:- पर्याप्त बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन के प्रारंभ से ही अर्थात बाल्यकाल से ही अन्य सारे कार्यों को छोड़कर भक्ति कार्यों के अभ्यास में इस मानव शरीर का उपयोग करें। यह मनुष्य शरीर अत्यंत दुर्लभ है और अन्य शरीरों की भांति नाशवान होते हुए भी अर्थ पूर्ण है क्योंकि मनुष्य जीवन में भक्ति संपन्न की जा सकती है। यदि निष्ठा पूर्वक किंचित भी भक्ति की जाए तो पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो सकती है। यह भगवतम के सातवें स्कंध के छठे अध्याय का पहला श्लोक है कि अपने मित्रों को प्रल्हाद महाराज समझा रहे हैं कि जब तब हमें भक्ति प्रारंभ करने, कब से करेंगे कौमारं आचरेत जब हमारी आयु 5 साल की है तभी हमें भक्ति करनी चाहिए और जो अंत में वह बता रहे हैं अ ध्रुवम मतलब यह शरीर भले ही टेंपरेरी नश्वर है कभी भी नष्ट हो सकता है मगर उसके साथ-साथ यह अ ध्रुवम फुल ऑफ मीनिंग यह परिपूर्ण भी है इसमें अर्थ है सिर्फ क्योंकि मनुष्य जीवन में ही भगवान की प्राप्ति आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है किसी अन्य शरीर में नहीं और इसी तात्पर्य में श्रील प्रभुपाद समझाते हैं कि कलयुग में सबसे जो महान भागवत धर्म है तो भागवत धर्म क्या है ? हरे कृष्ण महामंत्र का उच्चारण करना ही कलयुग में सबसे बड़ा एक धर्म बताया गया है जैसे अलग-अलग तथाकथित धर्म नहीं है भागवत धर्म यदि है तो श्रील प्रभुपाद हमें समझा रहे हैं, भगवतानी है मतलब हरे कृष्ण मंत्र का उच्चारण करना कि यह सही में भागवत धर्म है, भगवत गीता के उपदेशों को सुनकर अपने जीवन में उतारना चाहिए। इस प्रकार भक्ति में सशक्त बने तथा पशु जीवन में प्रतीत होने के भय से मुक्त होने, इस कलयुग के लिए भागवत धर्म का अनुसरण अत्यंत सरल बना दिया गया है शास्त्र का कथन है *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* महामंत्र प्रमुख हैं प्रभुपाद जी यहां लिख रहे हैं। *हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्।कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।* (बृहन्नारदीय पुराण ३.८.१२६) अनुवाद:-- इस कलियुग में आध्यात्मिक उन्नति के लिए हरिनाम हरिनाम और केवल हरि नाम के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है ,अन्य कोई विकल्प नहीं है। मनुष्य के केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने की आवश्यकता है जो भी इस महामंत्र का कीर्तन करता है उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और वह जन्म-मृत्यु के चक्र से बच जाता है और इसी जन्म मृत्यु के चक्र से बचाने के लिए इस शरीर की हमें आवश्यकता है 84,00000 योनियों में एक ही मनुष्य शरीर है जो हमें भगवत प्राप्ति या भगवान के चरण कमलों में आसक्ति उत्पन्न कर आ सकता है श्रील प्रभुपाद कहते है *भजन कोरो साधन कोरो मूर्ते जानेले हया* बंगाली कहावत कितना साधन साधना की है वह हम जब मृत्यु की शैया पर होंगे तब पता चलेगा जैसे भगवान ने भी कहा *सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः ||* ( श्रीमद् भगवद्गीता १८.६६) अनुवाद:- समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत । मेरी शरण में जो आता है या अंत समय में जो भगवान का नाम स्वीकार करता है या भगवान को याद करता है वही भगवान की प्राप्ति करता है और यही प्रश्न पुष्टि पूर्णा एक रामानुजाचार्य के अलग-अलग गुरुओं में थे और यह पुष्टि पूर्ण की सेवा थी वरुण राज स्वामी कांचीपुरम में हैं, उनको जल् देने की सेवा हर रोज उनके अभिषेक के लिए जो कुछ करनी है पुष्कर्णी कुंड होते हैं जिनको दक्षिण भारत में पुष्कर्णी कहा जाता है उनको भगवान के लिए अभिषेक के जल् लाने की सेवा थी। जब यह तुष्टि पूर्ण को पूछा गया कि अब भगवान से पूछिए भगवान ने तो कहा है यदि तत्काल या एक्सीडेंट के कारण हमारी मृत्यु हो जाए और अंत समय में भगवान आपका स्मरण ना हो तो क्या होगा ?ब्रजराज स्वामी ब्रजराज मतलब सभी वरदानो को देने वालों में सबसे श्रेष्ठ और वह वरदराज भगवान ने कहा कि कोई चिंता नहीं यदि उसमें अपने जीवन में प्रमाणिकता से भगवत भक्ति का प्रयास किया है और अंत समय में यकृत यत किंचित या किसी कारणवश येन केन प्रकारेण उसको मेरा स्मरण नहीं हुआ इट्स माय ड्यूटी वह मेरी रिस्पांसिबिलिटी है कि मैं उसको वापस खुद लेकर आता हूं। देखिए और एक यही कारण है जो इस मनुष्य को हमें भगवान की सेवा में लगाना या भगवान की भक्ति में लगाने के लिए मनुष्य शरीर की आवश्यकता है और इसीलिए प्रभुपाद जी लिख रहे हैं कि अभी हम पूरी तरह से शुद्ध नहीं इसीलिए हमें मृत्यु के सामने घुटने नहीं टेकना है। जो व्यक्ति मृत्यु के सामने घुटने टेक देता है वह बुद्धिमान नहीं है , मृत्यु तो आने वाली ही है मगर मृत्यु आने के पहले हमें हार नहीं माननी हमें पूरी अच्छी तरह से मृत्यु से लड़ते हुए अंतिम समय तक भगवत भक्ति करने का प्रयास करना चाहिए। श्रील प्रभुपाद और सभी आचार्य के द्वारा उनकी जीवनी से हम सीख सकते हैं कि किस प्रकार अंतिम समय तक प्रभुपाद जी भी अपने अंतिम समय के लिए ऋषिकेश से जब वापस आए तो उनको वृंदावन में हीं अपनी अंतिम लीला देह त्याग करने की इच्छा थी, सारे भक्तों ने आनंद से श्रील प्रभुपाद जी का स्वागत किया किंतु जब उनको पता चला कि ऋषिकेश से वृंदावन क्यों आए हैं तब सारे भक्त दुखी होकर रोने लगे कि प्रभुपाद अब हमारे बीच ज्यादा समय नहीं रहेगे और जैसे ही प्रभुपाद जी थोड़ा ठीक हो जाते तो वे अलग-अलग योजना बनाते हैं कि मुझे लंदन जाना है, मुझे अमेरिका जाना है, मुझे गोवर्धन की परिक्रमा करनी है, बैलगाड़ी में बैठकर अंतिम समय तक भी प्रभुपाद जी अपने जीवन में कृष्ण भक्ति और भगवान के चरणों को उन्होंने ऐसे पकड़ के रखा कि अपने घुटने उन्होंने मृत्यु के सामने ठेके नहीं और इसीलिए हम भक्तों को इस शरीर का ध्यान रखते हुए अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए स्वस्थ बनना है। स्वस्थ मतलब आत्मा में स्थित होने के लिए या साधना में स्थित होने के लिए इस शरीर को संभाल के रखना हमारा एक कर्तव्य है। जैसे हरिदास ठाकुर के पास महाप्रभु आए थे और कभी महाप्रभु क्रोधित नहीं हुए थे लेकिन एक दिन क्रोधित अवस्था में आए ,हरिदास यह क्यों सनातन गोस्वामी बार-बार आत्महत्या करने का विचार मन में ला रहा है उसको पता नहीं है कि यह शरीर अभी उसकी प्रॉपर्टी नहीं है देट बिलॉन्गस टू मी यह अभी भगवान की प्रॉपर्टी है शरीर भी भगवान की संपत्ति है तो उसका उपयोग भगवत भक्ति में करना है। महाप्रभु ने भी कहा सनातन गोस्वामी से हरिदास ठाकुर के द्वारा हरिदास ठाकुर के माध्यम से उन्होंने उनको संदेश पहुंचाया , बताओ कि शरीर की आत्महत्या आवश्यक नहीं है, भगवत भक्ति सबसे महत्वपूर्ण है और इसीलिए सभी भक्तों को अपने स्वास्थ्य का और विशेष रूप से जो भक्त कुछ पीड़ा से या अलग-अलग बीमारी से ग्रस्त हैं उनसे निवेदन है वह सभी अपनी दवाई ले या इस प्रकार बनाये रखें दिन का शेड्यूल जिससे हमें भक्ति करने के लिए या हरि नाम लेने के लिए आसानी हो और अंततोगत्वा हमें नारायण का स्मरण हो और लंबे समय तक श्रील प्रभुपाद और गुरु महाराज के इस आंदोलन में सक्रिय रूप से सेवा करते रहें। और देखिए अब जब भी प्रभुपाद लिखते हैं डिवोशनल सर्विस डिवोशन नहीं लिखते डिवोशनल सर्विस लिखते हैं सक्रियता वह सक्रियता रखने के लिए हमें स्वस्थ रहना आवश्यक है। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* धन्यवाद !

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