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जप चर्चा
परम पूज्य श्री भक्ति प्रेम स्वामी महाराज
29 मार्च 2022
श्री गोविन्द घोष तिरोभाव दिवस महा महोत्सव की जय
हम श्रील प्रभुपाद के प्रति बहुत आभारी है | प्रभुपाद ने हमें बहुत कुछ दिया है विशेष रूप से हमारे आचार्य परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज जिन्होंने हमें आचरण करके दिखाया है, रोज सुबह without fail एक साथ बैठकर जप करना, घर में आप कर रहे हैं या नहीं कोई देखने नहीं जा रहा है, इसीलिए कम से कम कैमरे में सामने आकर करो | और वे साथ में खुद बैठकर जप करते हैं | इसे कहते हैं आचार्य | हम प्रभुपाद के बहुत आभारी हैं कि उन्होंने हमें इस तरह के आचार्य दिए है जो हाथ पकड़ कर के हमें भगवत धाम लेकर जाएंगे | मैं अपने आप को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ, मेरे ऊपर महाराज की विशेष कृपा दृष्टि है, वैसे तो हमें महाराज के मुख से सुनना चाहिए लेकिन माता-पिता कभी कभी देखना चाहते हैं कि बच्चे ने कितना सीखा है | आज बहुत ही पवित्र दिन है श्री गोविंद घोष की तिरोभाव तिथि है | गोविंद घोष महाप्रभु के अन्यतम पार्षद थे | तीन भाई थे गोविंद घोष, माधव घोष, वासुदेव घोष | बहुत बड़े कीर्तनया थे, सिर्फ कीर्तनया ही नहीं, तीनो भाई गान बहुत अच्छा करते थे | गोविंद घोष गान के रचयिता भी थे | जगन्नाथपुरी में जो कीर्तन नृत्य होता था गोविंद घोष उस कीर्तन का नेतृत्व करते थे | चांदकाजी के दलन में भी और भी बहुत जगह कीर्तन का नेतृत्व करते थे | बंगाल से सभी लोग उनसे मिलने, कीर्तन में शामिल होने आते थे | बाद मे तीनो भाइयों ने बंगाल में आकर तीन स्थानों पर अपने को स्थापित किया | बंगाल में एक स्थान अग्रद्वीप वहां पर गोविंद घोष ठाकुर ने अपना श्रीपाद बनाया | वे अपने पुत्र संग छूटने से बहुत दुखी हुये, इतने दिनों से गोपीनाथ की सेवा कर रहे थे, जब मैं चला जाऊंगा तो गोपीनाथ की सेवा कौन करेगा, मेरा पिंड कौन देगा, मेरा श्राद्ध कौन करेगा तो गोपीनाथ ने कहा कि दुखी होने की कोई बात नहीं है, मैं तुम्हारा पिंड दूंगा, गोविंद घोष के अप्रकट होने के बाद आज की तिथि में गोपीनाथ ने खुद पिंड दिया, गौर पूर्णिमा के बाद जो द्वादशी आती है, विग्रह भी इसी तरह से है गोपीनाथ की हाथ से पिंड देते हुए, बहुत सुंदर विग्रह है | आप सब पानीहाटी चिड़ा दही उत्सव जानते है वह लाखों लाखों भक्त आए थे, उसी प्रकार यहां लाखो लाखो लोग आते है, बहुत बड़ा उत्सव बहुत बड़े क्षेत्र में मनाया जाता है, अलग-अलग संप्रदाय साधारण मनुष्य वहां अपना तंबू लगाते हैं, भजन कीर्तन करते हैं, प्रसाद वितरण करते हैं, गोविंद घोष से प्रार्थना करते है, वह हमें महाप्रभु के चरणों में नित्य स्थान प्रदान करें |
गौरांगेर संगी-गने, नित्य-सिद्ध कोरी माने,
से जाये ब्रजेंद्र-सुत-पास
यह महाप्रभु के नित्य पार्षद है, यह ब्रज में कलावती सखी है |
हरि नाम की महिमा अनंत है |
जिस प्रकार भगवान का गुण अनंत है, भगवान का नाम अनंत है, उसी प्रकार भगवान के नाम की महिमा भी अनंत है | जिस प्रकार आकाश अनंत है, लेकिन चिड़िया आकाश को खत्म करने के लिए उड़ती है, इसी प्रकार वैष्णव जन हरि नाम की महिमा को खत्म करने के लिए जप करते है, हरि नाम इतना शक्तिशाली है, यह हमारे हृदय में आग जल रही है, वासना रूपी आग जल रही है, कामना वासना अग्नि की तरह हृदय में जल रही है, इस अग्नि को शमण करने के लिए हरि नाम अमृत की बारिश करता है, जिस प्रकार वन की अग्नि को बुझाने के लिए बारिश चाहिए | जिस प्रकार कामना वासना सुष्म है, यह हरिनाम कान के छिद्र से प्रवेश करता है और हृदय में प्रवेश करता है |
Jaiva Dharma –
visaya-väsanänale mora citta sadä jvale,
ravi-tapta maru-bhümi sama
karna-randhra-patha diyä, hrdi mäjhe pravesiya
barisaya sudhä anupama
hrdaya haita bale, jihvära agreta cale
sabda-rüpe näce anuksana
kanthe mora bhange svara, anga kämpe thara thara
sthira haite nä päre carana
cakse dhärä, dehe gharma, pulakita saba carma,
vivarna haila kalevara
mürcchita haila mana, pralayera ägamana
bhäve sarva-deha jara-jara
kari eta upadrava, citte varse sudhä-drava
more däre premera sägare
kichu nä bujhite dila, more ta bätula kaila
mora citta-vitta saba hare
lainu äsraya jän’ra hena vyavahära tän’ra
varnite nä päri e sakala
हरिनाम हृदय में जाकर बहुत सुंदर अमृत की वर्षा करता है | जहां पर कामना वासना की आग जल रही थी, वहाँ इतनी अमृत की वर्षा करता है, वह आग बुझ जाती है और वहां अमृत का तालाब बन जाता है और कमल खिल जाते है | और जब वह हृदय में प्रवेश करता है तब वह हृदय से बलपूर्वक जिह्वा में आता है |
हरिनाम शब्द रूप में जिह्वा पर नृत्य करता है | हरि नाम में इतनी शक्ति है जब वह जिह्वा पर नृत्य करता है, हमारे पूरे शरीर पर नियंत्रण कर लेता है और शरीर दूसरे के नियंत्रण से बाहर निकल जाता है | जिस तरह क्रिकेटर जब बॉलिंग करने जाता है, तो अपनी फील्डिंग को पूरा सजा लेता है, उसका पूरा नियंत्रण फील्डिंग पर रहता है, कहां किसको खड़ा करना है |
हरि नाम के प्रभाव से इस प्रकार कंठ अवरुद्ध हो जाता है, पसीना होने लगता है, शरीर कांपने लगता है, चरण स्थिर नहीं रह पाते है अर्थात पूरे शरीर का नियंत्रण हरिनाम कर लेता है | आंख से वर्षा की तरह आंसू आते है, शरीर से पसीना आता है, रोंगटे खड़े हो जाते है, शरीर का रंग बदल जाता है| शरीर में आठ प्रकार के परिवर्तन विकार आते है, शरीर के परिवर्तन को भी विकार कहते है | यह तामसिक राजसिक विकार नहीं है, तामसिक विकार में क्रोध करते है, आंखें लाल होती है | यह सात्विक विकार है, आठ प्रकार के सात्विक विकार होते है और यह हरि नाम करवाता है | और अंत में बेहोश हो जाता है |
यह शरीर के साथ एक प्रकार का उपद्रव है | हमें कहीं जाना है और कोई शत्रु आकर हमारे शरीर को नियंत्रण कर ले तो हम नहीं चल पाते है, इस प्रकार शत्रु हम पर उपद्रव करता है | इसी प्रकार हरि नाम हम पर एक प्रकार का उपद्रव शुरू कर देता है | भक्ति विनोद ठाकुर गाते है हमने जो हरि नाम का आश्रय लिया है, वह हमारे साथ इस तरह का व्यवहार कर रहा है, यह क्या? हमने उसका आश्रय लिया है, उसे हमारे साथ अच्छा करना चाहिए | जिसका आश्रय लेते हैं वह हमारे साथ इस तरह का व्यवहार करेगा क्या?
लेकिन उसके पहले क्या करते है? जब इस प्रकार का उपद्रव करता है, हृदय को अमृत में डूबा देते है और इस प्रकार इतनी अमृत की वर्षा होती है कि तालाब अमृत का सरोवर बन जाता है और उसमें डूबा देते है | हरिनाम जब अमृत के सागर में जब डूबाता है तो अमृत छोड़कर कुछ भी नहीं मिलता है , ठीक वैसे ही जैसे पानी में डूबने पर पानी छोड़कर कुछ भी नहीं मिलता है | मेरे चित्त की जो वृत्ति है, कहीं कुछ नियंत्रण नहीं रहता है, मेरे पर ही मेरा नियंत्रण नहीं रहता है | बड़े आश्चर्य की बात है मैंने जिसका आश्रय लिया वह मेरे साथ ऐसा कर रहा है | फिर बाद में हम सोचते हैं कि ठीक है भगवान इच्छामय है जो चाहे वह कर सकते हैं उनका एक नाम इच्छामय है, ठीक है उनकी ऐसी इच्छा है तो भगवान की इच्छा के विरुद्ध क्या कर सकते है, वह मेरे साथ ऐसा ही करना चाहते है | जैसे हम शिक्षाष्टकम में गाते है -
आश्लिष्य वा पादरतां पिनष्टु मामदर्शनान्-मर्महतां करोतु वा।
यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राणनाथस्-तु स एव नापरः॥८॥ श्री शिक्षाष्टकम्
हे भगवान मैं आपकी पैर में स्थित दासी हूँ, आप उसको आलिंगन करें या उसे अस्वीकार कर दें फिर भी आप मेरे प्राणनाथ हैं |
Jaiva Dharma-
krsna-näma icchämaya jähe jähe sukhi haya
sei mora sukhera sambala
premera kalikä näma, adbhuta-rasera dhäma
hena bala karaye prakäsa
isat vikasi’punah, dekhäya nija-rüpa-guna
citta hari laya krsna päsa
pürna-vikasita hanä, braje more jäya lanä
dekhäya more svarüpa-viläsa
more siddha-deha diyä, krsna-päse räkhe giyä
e dehera kare sarba-näsa
krsna-näma cintämani akhila-rasera khani
nitya-mukta, suddha-rasamaya
namera bäläi yata, sabha la’ye hai hata
tabe mora sukhera udaya
इसी प्रकार कृष्ण इच्छामय है,
तो इस प्रकार में हमें कष्ट देकर सुखी होना चाहते हैं तो मैं मान लूंगा यही मेरा सुख है | लेकिन एक बात है कि हरि नाम मे इतनी शक्ति कहां से आती है | यह तो केवल शब्द है | जिस प्रकार एक फूल कली से आता है, कली धीरे-धीरे जब खिलती है तो बहुत सुंदरता और खुशबू आती है, यह सुंदरता और खुशबू दूसरों का आकृष्ट करती है, उसी प्रकार नाम कृष्ण प्रेम की कली की तरह है | जैसे हम किसी का नाम लेते हैं, तो उस व्यक्ति का रूप स्वतः आ जाता है, जब रूप देखते हैं तो साथ साथ गुण भी मन मे आ जाते है, जब गुण देखते हैं तो साथ-साथ उनके परिकर पार्षद भी देखते हैं किनके साथ कर रहे है और जब यह देखते हैं तो उनके साथ धाम का दर्शन भी होता है | अर्थात सब कुछ नाम के अंदर है | नाम से रूप गुण लीला परिकर धाम सब कुछ प्रकाशित होता है, जिस प्रकार फूल कली से आता है|
हमारे जीवन का लक्ष्य है कृष्ण प्रेम | वह कृष्ण प्रेम फूल है लेकिन नाम कली है | इसमें इतना रस है कि ये अद्भुत है कल्पना से परे है | यह जो नाम है जब थोड़ा खिल जाता है, विकसित हो जाता है, वाह कितना सुंदर है यह, यह सुंदरता दिखाकर यह हमारे चित्त की वृत्ति को हर लेते हैं |
जब हम शुरू शुरू में हरि नाम लेते है, कितना मजा आता है, चलो करते रहते है | धीरे-धीरे हमारा व्यवसाय धंधा संसार शरीर के प्रति ध्यान हमारा दुर चला जाता है और ध्यान कृष्ण के ऊपर चला जाता है | और जब यह कली पूर्ण विकसित हो जाती है, वृंदावन में लेकर जाती है और मेरा जो स्वरूप है, मैं कृष्ण का नित्य दास हूँ, वह हरिनाम दिखाता है |
हरि नाम इतना शक्तिशाली है कि वह पकड़ कर रखता है और कृष्ण के पास लेकर जाता है, ले जाकर सिद्ध देह दान करता है, चिन्मय देह दान करता है, इस शरीर को विनाश कर देता है | जिसे विनाश करने की इच्छा नहीं है उसे हरि नाम नहीं करना चाहिए | क्योंकि हरिनाम करने से इस शरीर का विनाश हो जाएगा |
आनंदाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं ( श्री शिक्षाष्टकम्)
कृष्ण नाम चिंतामणि है, जितने भी प्रकार के रस है, सारे रस की खान है, रस एक प्रकार की वस्तु है जिसका स्वाद अत्यंत सुंदर और दूसरे को जोड़ने वाला है, जो रस भगवान के साथ जोड़ाता है, वहीं चिन्मय रस है, सारा आनंद इसके अंदर है, हमें आनंद पाने के लिए कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं है | हरि नाम शुद्ध रस है, इसके अंदर कोई कल्मस कलुसिता नहीं है | जिस प्रकार हम मीठा खाते हैं बहुत स्वादिष्ट लगता है परंतु डर लगता है कहीं डायबिटीज ना हो जाए, लेकिन भगवान के साथ भक्ति का जो रस है वो सिद्ध रस है | ये रस कब मिलेगा? फायदा कब होगा? जब हम नाम अपराध से मुक्त होकर हरिनाम करेंगे |
इस प्रकार आनंदमय जीवन हम प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन एक शर्त है | नाम अपराध से मुक्त होकर हरिनाम करना होगा | यह तो बहुत कठिन बात है | पहले तो आसान लग रहा था परंतु अब कठिन लगता है | लेकिन पद्म पुराण में कहा है कि यदि हम निरंतर हरिनाम करेंगे, तो हमें अपराध करने का मौका नहीं मिलेगा | अपराधों से मुक्त होना तो मुश्किल काम है, तो सबसे अच्छी बात है कि यदि हमेशा हरिनाम करेंगे, तो अपराध करने के लिए समय ही नहीं मिलेगा |
nämäparädha-yuktani nämanyeva haranty agham
avisranta-prayutani tany evartha-karani hi- Padma Purana
हो सकता है आप शुद्ध नाम नहीं ले पाते हैं, अपराध युक्त नाम करते हैं लेकिन ये नाम यदि आप निरंतर करेंगे, तो आप अपराध से मुक्त हो जाएंगे और शुद्ध नाम का जो फल है कृष्ण प्रेम वह प्राप्त होगा | मेरा सौभाग्य है कि श्री लोकनाथ स्वामी महाराज और आप जैसे शुद्ध भक्तों के संग में हरिनाम करने का अवसर मिला है यह मेरे लिए प्रभुपाद का और चैतन्य महाप्रभु का बहुत ही सुंदर तोहफा है |