Hindi

29-12-2019 जब हम ध्यानपूर्वक जप करने का प्रयास करते हैं तो हमारा लक्ष्य होता हैं परम भगवान का चिंतन करना तथा उनका स्मरण करना। नित्य सिद्ध कृष्ण प्रेम सभ्य कबु नय। श्रवणादि शुद्ध चित्ते करया उदय।। हम पुनः भगवान के प्रति अपने इस प्रेम का प्रदर्शन करना चाहते हैं। प्रत्येक साधक परम् भगवान की दिव्य आध्यात्मिक सेवा में संलग्न रहना चाहता हैं। राधा कृष्ण पादारविन्द भजनानन्देन मत्तालिकौ। वन्दे रूप सनातनो रघु युगो श्री जीव गोपालकौ।। गौड़ीय वैष्णव सम्पूर्ण विश्व में हैं तथा वे वृन्दावन में भी हैं। मैं भी आज वृन्दावन में हूँ तथा हम यहाँ पर आज श्रील जीव गोस्वामी का तिरोभाव दिवस मना रहे हैं। हम सभी आचार्यों को प्रभुपाद कहकर सम्बोधित करते हैं। वृन्दावन के सभी छः गोस्वामी भी प्रभुपाद हैं : रूप गोस्वामी , सनातन गोस्वामी , जीव गोस्वामी , रघुनाथ दास गोस्वामी , रघुनाथ भट्ट गोस्वामी तथा गोपाल भट्ट गोस्वामी। आज हम श्रील जीव गोस्वामी का तिरोभाव दिवस मना रहे हैं। आज से लगभग ४२२ - ४२३ वर्ष पूर्व उन्होंने राधा दामोदर मंदिर में समाधी ली थी , वे वहीं निवास करते थे तथा सदैव भगवान की संलग्न रहते थे। आज भी उनकी समाधी का दर्शन राधा दामोदर मंदिर में हैं। आचार्यवान पुरुषो वेद " जो आचार्यों की शरण लेता हैं तथा उसका अनुगमन करता हैं , वही सिद्धांत को तत्त्वतः समझ सकता हैं। " जो भक्त बनता हैं , उसे आचार्यवान बनना चाहिए। आचार्य एक विशिष्ट पदवी हैं। आप अपने आध्यात्मिक गुरु को आचार्य कह सकते हैं। गुरु की सहायता के बिना हम भगवान का साक्षात्कार नहीं कर सकते। आचार्यवान पुरुषो वेद श्रील जीव गोस्वामी हमारे आचार्य हैं। गौड़ीय वैष्णव उन्हें अपने आचार्य के रूप में स्वीकार करते हैं। हम रूपानुग हैं, अर्थात हम रूप गोस्वामी के पदचिन्हों का अनुसरण करते हैं। जीव गोस्वामी ने रूप गोस्वामी से ही दीक्षा ग्रहण की थीतथा अपने आध्यात्मिक गुरु की सेवा की थी। जीव गोस्वामी द्वितीय पीढ़ी के गोस्वामी थे। वे सभी गोस्वामियों में सबसे छोटे थे तथा वे सभी को राधा दामोदर मन्दिर में आमंत्रित करते तथा नाना शाश्त्र विचारनेक निपुणौ , अर्थात वे सभी षड गोस्वामी वहाँ शास्त्रों पर चर्चा करते और उन्होंने कई शास्त्रों की रचना भी की। इन सभी में जीव गोस्वामी शास्त्रों की रचना करने में अग्रणी थे। उन्होंने अकेले 25 पुस्तकों तथा लगभग 4 लाख श्लोकों की रचना की। इतिहास में जीव गोस्वामी के जैसा विद्वान और कोई नहीं हुआ हैं जिसने अकेले ४ लाख श्लोकों का निर्माण किया हो। श्री कृष्ण ऐसा करने में सक्षम हैं क्योंकि वे परम् भगवान हैं , परन्तु उनके पश्चात व्यासदेव के अतिरिक्त और किसी ने इतने अधिक शास्त्रों की रचना नहीं की। हम जीव गोस्वामी की विद्वत्ता के विषय में क्या कह सकते हैं ? इसलिए ये सभी गोस्वामी हमारे आचार्य हैं। आज श्रील जीव गोस्वामी का तिरोभाव दिवस हैं। राधा कृष्ण पदारविन्द भजनानन्देन मत्तलिकौ। वे सदैव अपने भजन में निमग्न रहते थे। वे जब भी हरे कृष्ण महामंत्र का जप करते तो तुरन्त ही उन्हें भगवान का स्मरण हो जाता तथा उनके वियोग में वे सभी वृन्दावन के वनों में इधर उधर कृष्ण को ढूंढते हुए भागने लगते। श्रीनिवास आचार्य ने इस षड्गोस्वामी अष्टकम की रचना की हैं , यह अत्यंत अद्भुत हैं। कृष्णोतकीर्तन गान नर्तन परौ प्रेमामरतम्भो निधि यहां उन्होंने षड्गोस्वामियों के भावों का वर्णन किया हैं। हे राधे ! व्रज देवीके च ललिते हे नन्द सुनो कुतः। हे राधे ! हे कृष्ण ! आप कहाँ हैं ? इस प्रकार से वे राधा कृष्ण को ढूंढते तथा उन्हें न पाकर विव्हल हो जाते। श्री गोवर्धन कल्प पादप तले कालिन्दी वने कुतौ : क्या आप गोवर्धन पर हैं ? अथवा आप यमुना के तट पर हैं ? कृपया बताइये आप कहाँ हैं ? घोषणान्तवो इति सर्वतो व्रजः - इस प्रकार रुदन करते हुए वे सम्पूर्ण व्रज में भगवान को ढूंढते तथा सदैव हरे कृष्ण महामंत्र का जप और कीर्तन करते। ये सभी षड्गोस्वामी हमारे आचार्य हैं। आचार्य वह होता हैं जो हमें अपने आचरण से सिखाता हैं। इन सभी गोस्वामियों ने तथा विशेष रूप से जीव गोस्वामी ने हमारे लिए कई ग्रंथों की रचना की हैं। आचार्यवान पुरुषो वेद हम कृष्ण को तथा श्रीमद भागवतम को इनकी पुस्तकों के माध्यम से समझ सकते हैं। उन्होंने 6 विशेष ग्रंथों की रचना की हैं जिन्हे षड सन्दर्भ के नाम से जाना जाता हैं। यह श्रीमद भागवतम पर आधारित हैं ये सन्दर्भ तत्त्व सन्दर्भ , परमात्मा सन्दर्भ , समाधी सन्दर्भ , प्रीति सन्दर्भ आदि नामों से जाने जाते हैं। इन्होने श्रीमद भागवतम पर अपनी टिका भी लिखी हैं। गोपालचम्पू नामक उनकी पुस्तक अत्यंत विख्यात हैं जिसमें उन्होंने वृन्दावन , मथुरा तथा द्वारका लीला का विस्तृत वर्णन किया हैं। हरिनामामृत व्याकरण भी अत्यंत प्रसिद्द हैं। इन ग्रंथों का अध्ययन करना भी हमारी जिम्मेदारी हैं। आज हम उनसे प्रार्थना करते हैं। वास्तव में तो वह एक मंजरी हैं अतः यहाँ अपनी लीला समाप्त करके वह पुनः कृष्ण लीला में अपने मंजरी स्वरुप में स्थित हो गए होंगे। अभी इस समय भी वे कृष्ण के साथ होंगे। यस्य प्रसादात भगवद प्रसादो यस्य अप्रसादान न गति कुतौ अपि। हम जीव गोस्वामी से उनकी कृपा के लिए याचना करते हैं जिससे हमें कृष्ण की कृपा प्राप्त हो सके। कृष्ण से तोमार कृष्ण दिते पार तोमार शकती आछे। आमी तो कंगाल कृष्ण कृष्ण बोली धाई तव पाछे पाछे।। हम तो कंगाल हैं तथा कृष्ण रोपी यह धन आपके पास हैं। अतः हम श्रील जीव गोस्वामी के चरणों में प्रार्थना करते हैं कि वह हम पर कृपा वृष्टि करें जिससे हम इस आंदोलन को और अधिक आगे बढ़ा सकें तथा भगवान की सेवा में संलग्न रह सके एवं अपनी साधना ठीक प्रकार से कर सकें। अतः हम उनके चरण कमलों में भक्ति तथा शक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जिससे हम राधा कृष्ण को प्राप्त कर सकें , जो इस मानव जीवन का लक्ष्य हैं। श्रील जीव गोस्वामी की ..... जय

English

29 December 2019 When we try to chant attentively the goal of japa sadhana is to meditate on the Lord and remembrance of the Lord. nitya siddha krsna prema sadhya kabhu naya  sravanadi-suddha-citte karaye udaya Translation “Pure love for Krsna is eternally established in the hearts of the living entities. It is not something to be gained from another source. When the heart is purified by hearing and chanting, this love naturally awakens.(CC. Madhya 22.107) Every jiva soul loves the Lord, but it's covered so we need to revive that Krsna prema. We want to again experience the love of Lord. Every sadhaka wants to experience the loving devotional service to the Lord. Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare - Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare By chanting and hearing the Lord’s holy names it's possible. Many of our acaryas could experience Krsna prema. nānā-śāstra-vicāraṇaika-nipuṇau sad-dharma-saḿsthāpakau lokānāḿ hita-kāriṇau tri-bhuvane mānyau śaraṇyākarau rādhā-kṛṣṇa-padāravinda-bhajanānandena mattālikau vande rūpa-sanātanau raghu-yugau śrī-jīva-gopālakau I offer my respectful obeisances unto the six Gosvamis namely Sri Rupa Gosvami, Sri Sanatana Gosvami, Sri Raghunatha Bhatta Gosvami, Sri Raghunatha Dasa Gosvami, Sri Jiva Gosvami, and Sri Gopala Bhatta Gosvami, who are very expert in scrutinizingly studying all the revealed scriptures with the aim of establishing eternal religious principles for the benefit of all human beings. Thus they are honored all over the three worlds and they are worth taking shelter of because they are absorbed in the mood of the gopis and are engaged in the transcendental loving service of Radha and Krishna. [Sad Goswamiastakam 2] The Gaudiya Vaisnavas in the whole world and also in Vrndavan. I am in Vrndavan today and we are celebrating disappearance day or tirobhava tithi mohotsava of Srila Jiva Goswami. We call all of them as Prabhupada. All Sad Goswamis vrnda are Prabhupada, Rupa Goswami, Sanatana Goswami, Gopal Bhatta Goswami, Raghunath Dasa Goswami, Raghunath Bhatta Goswami and Jiva Goswami all are Prabhupada. We are celebrating the disappearance day of Srila Jiva Goswami. Today 422 - 423 years back in Radha Damodar temple where he was not just staying but serving the Lord. Today he took samadhi there. His Samadhi is still there in the temple. acharyavan purusho veda "One who follows the Acaryas knows things as they are." (Candogya Upanishad, 6.14.2) One who wants to become a bhakta should become acaryavan. Without Guru or you can call a sadhu, acarya. Acarya is a special designation. Spritual master is also acarya. So without spiritual master we can't know the Lord. acharyavan purusho veda Srila Jiva Goswami is our acarya. Gaudiya Vaisnavas accept Jiva Goswami as acarya. He is already an acarya. We are Rupanuga, followers of Rupa Goswami. Jiva Goswami took initiation from Rupa Goswami and also served his spiritual master. Jiva Goswami is second generation Goswami. He was the youngest among the Goswamis and he used to invite all the five Goswamis to Radha Damodar temple and nana-sastra-vicharanaika-nipunau The Sad Goswami would discuss different sastras there and also all of them wrote many books there. Amongst them Jiva Goswami was number one in writing books. He wrote 25 books and 4 lakh slokas. In the history of the world there was no one as intelligent as Jiva Goswami who wrote 4 lakh slokas. The Lord his number one and Srila Vyasdev was the second one. Except Srila Vyasdev there is no one in history who has written so many books and so many slokas. What to say of Srila Jiva Goswami’s intelligence? So all these Goswamis are our acarya. Today is Srila Jiva Goswami’s disappearance day. radha-krsna-padaravinda-bhajananandena mattalikau They were always absorbed in their bhajan. Whenever they chanted Hare Krsna Hare Krsna they would experience separation from the Lord and they would run in the forests of Vrndavan saying, ‘Hare Krsna’. Srinivas Acarya has written Sad Goswamiastakam. It’s very nice. krsnotkirtana-gana-nartana-parau premamrtambho-nidhi Therein he writes the bhava the emotions of Sad Goswami. he radhe vraja-devike cha lalite he nanda-suno kutah Where are you O Radhe O Krsna? They would call Krsna Radha and not finding Them they would become morose. sri-govardhana-kalpa-padapa-tale kalindi-vanye kutah Are you at the base of Govardhana or on the bank of Jamuna. Where are you? ghosantav iti sarvato vraja They would keep calling the Lord chanting, Hare Krsna Hare Krsna Krsna Krsna Hare Hare - Hare Rama Hare Rama Rama Rama Hare Hare So all these Sad Goswamis are our acaryas. Acarya means that personality who teaches by his own example. All the Sad Goswamis and amongst them Srila Jiva Goswami has put so many ideals in front of us. He has written so many books. acaryavan purusho veda We could understand Krsna by reading his books or we can understand Srimad-Bhagavatam by reading his books. He has written 6 granthas known as Sad Sandarbha related to Srimad-Bhagavatam, Tatva Sandarbha, Parmatma Sandarbha, Samadhi Sandarbha, Priti Sandarbha etc. He has written commentary on Srimad-Bhagavatam. His book named Gopalcampu is very famous wherein he has described Vrndavan, Mathura and Dwarka lila. Harinamruta vyakaran is also famous. Reading those grathas is also our duty. So we pray to him wherever he is at this time. He is a Manjari. So today after his disappearance he entered Krsna lila. He is with Krsna now at this moment also. yasya prasada bhagavat prasado yasyaprasadan na gatih kuto pi We pray that we get Jiva Goswami’s mercy krpa and then it’s possible that we get the Lord's krpa. Krsna se tomar, Krsna dite paro, tomar sakti aache ami to kangal Krsna Krsna boli dhayi tava pache pache We are beggars and you are enriched with Krsna. Krsna is with you with all His opulence. So we pray and bow down at the lotus feet of Jiva Goswami so that we can take forward his mission can serve Lord and also do our sadhana properly. So we beg at his feet for bhakti and sakti to achieve Radha Krsna which is the goal of our life. Srila jiva Goswami ki …jai

Russian

Перевод наставлений после совместной джапы за 29 декабря 2019 Сегодня у нас 342 участника. Пожалуйста не пользуйтесь чатом. Мы пытаемся воспевать внимательно.Цель воспевания это памятование о Господе. Наша любовь к Господу которую мы имеем, покрыта сейчас, должна возродится. Мы желаем снова испытать любовный экстаз к Господу и это возможно воспевая Святые Имена Господа. Это было возможно для многих наших Ачарьев. Шесть Госвами достигли этого. Я во Вриндаване и все Гаудия Вайшнавы празднуют сегодня день ухода Шрилы Дживы Госвами Прабхупады. Всех ачарьев называют Прабхупад. До этого 423 года назад, он останавливался в храме Радха Дамодар и поклонялся Им. Его самадхи находится в Радха Дамодар Мандир. Он наш ачарья. Тот кто хочет познать Господа, должен следовать за ачарьей. Без помощи ачарьи это невозможно. Джива Госвами наш ачарья. Мы также приняли его своим ачарья. Он получил инициацию от Рупы Госвами. Он получил дикшу, шикшу и служил с сердцем. Он был вторым поколением Госвами и был младшим из них. Он пригласил всех других 5 Госвами в храм Радха Дамодар, затем у них была ishtagoshti. Они обсудили множество различных писаний. Среди всех Госвами, Шрила Джива Госвами был номер один. Он написал 25 книг и 4 лакха стихов. Никто не мог сравнится с ним в истории, за исключением Вьясадевы, который является самим Господом. Что говорить о знаниях Шрилы Дживы Госвами? Они в экстазе воспевали славу Радхи и Кришны. Когда они воспевали Харе Кришна, они испытывали переживания отделённости от Радхарани и Кришны. Шринивас Ачарья составил Аштакам, которые описывают настроение Шесть Госвами. Как они использовали слух для Святого Имени. Они стремились обнаружить где Харе Кришна. Твои стопы на Говардхане или на берегах Ямуны? Они использовали название подобное этому? Поэтому все шесть Госвами наши Ачарьи. Ачарья тот, кто учит преданности своим собственным примером. Среди шести Госвами, Джива Госвами написал много книг через которые мы можем понять Кришну. Он написал Сад Сандарбха которая является комментарием на Шримад Бхагаватам. Он также составил Гопал Чампу которая описывает разнообразие игр. Он был Манджари и сегодня он снова вернулся к вечным играм Господа. Он там сегодня с Радхарани и Кришной. Мы молимся, чтобы получить его милость, таким образом мы получим даршан Господа. Кришна твой, у тебя есть Кришна и ты можешь дать мне Его. Поэтому я бегу за тобой. У меня нет ничего. Мы склоняемся к лотосным стопам Шрилы Дживы Госвами и молим, чтобы он занял нас деятельность во всём мире и хорошо выполнять садхану. Может он одарит силой оказывать преданное служение, так, чтобы смогли получить Кришна Прем, которая является целью жизни и мы получим Радхарани и Кришну. Уход Шрилы Дживы Госвами ки джай! Сейчас я живу в храме Кришна Баларам. Сегодня класс по Шримад Бхагаватам будет даватся мною. Если будет возможно для вас тогда пожалуйста послушайте. Мы будем вспоминать о Шриле Дживе Госвами. Продолжайте внимательно воспевать. Шрила Джива Госвами ки джай! Шрила Прабхупада ки джай! (Перевод матаджи Оджасвини Гопи)