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जप चर्चा पंढरपुर धाम से 3 अगस्त 2021 हरि हरि । गौर हरी बोल । 921 स्थानों से आज जप हो रहा है । वैष्णव गोसाई पूरा परिवार है, कौन-कौन बैठे हैं? मित्र परिवार । ठीक है । आप सभी का स्वागत है । उपदेशामृत का विषय होगा ही , उसके पहले आपको वीडियो दिखाना चाहते हैं , मुझे लगता है कि आपको पसंद आएंगे । एक रथ यात्रा का वीडियो है , छोटा वीडियो है 4 मिनट का है और एक पदयात्रा का है । एक रथ यात्रा का और एक पद यात्रा का वीडियो है , एक 2 मिनट का ही है । कल हमने इस्कॉन इनकारपोरेशन डे मनाया । प्रभुपाद ने इस्कॉन का कारपोरेशन , रजिस्ट्रेशन , पंजीकरण किया , पंजीकृत हुआ फिर न्यूयॉर्क से श्रील प्रभुपाद सान फ्रांसिस्को गए और वहाँ वैसे इस्कॉन का पहला उत्सव तो इतना बड़ा हुआ , इतना यशस्वी हुआ उसके पहले कभी ऐसा उत्सव नहीं हुआ था । वह उत्सव रथ यात्रा था । जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय । उस संबंध में , उसका थोड़ा इतिहास कैसे शुरुआत हुई ? कैसे जगन्नाथ सुभद्रा बलराम किस रूप में प्रकट हुए ? इस्कॉन में भगवान ने प्रवेश किया और प्रभुपाद ने रथ यात्रा की योजना बनाई और उस नगरी को श्रील प्रभुपाद ने नवीन जगन्नाथ पुरी नाम भी दिया । सैन फ्रांसिस्को का नाम इस्कॉन जगत में प्रभुपाद ने ही रखा है , नवीन जगन्नाथपुरी । कैलिफोर्निया में जो सन फ्रांसिस्को है , उस सम्बंध का एक वीडियो है । हमारे लोक आर्काइव्स ने अभी-अभी बनाया हुआ है । आज की ताजी खबर है कहो शायद उन्होंने कल ही बनाया उसको देख लीजिए , अंग्रेजी में है लेकिन आप समझ जाओगे थोड़ा मनोरंजक भी है । (रथयात्रा सम्बंधित वीडियो) जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय । यह श्रील प्रभुपाद का 125 वा जन्मोत्सव भी है इसलिए हमने सोचा कि आपको यह दिखाते हैं । रथयात्रा प्रभुपाद ने प्रारंभ की , मैंने कहा ही इस वीडियो में की प्रभुपाद जगन्नाथ रथ यात्रा के संस्थापक आचार्य है और साथ-साथ पदयात्रा के फाउंडर आचार्य संस्थापक आचार्य भी श्रील प्रभुपाद ही है । रथयात्रा 1967 में प्रारंभ हुई और फिर पदयात्रा 1976 में शुरू हुई । 10 सितंबर 1976 में पहली पदयात्रा हुई , उन दिनों में हम उसे बुलक कार्ट संकीर्तन पार्टी कहते थे । वह रथयात्रा जब शुरू हुई तो फैल गई यहां वहां यहां वहां और चल ही रही है उसी प्रकार यह पदयात्रा भी 1976 में शुरू हुई यह भी रुकने का नाम नहीं ले रही है । इस पद यात्रा का लक्ष्य इस जगत का हर एक शहर हर एक गांव हर एक नगर है । चैतन्य भागवत पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम । सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।। ( चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड 4.1.26) पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । कुछ ही दिन पहले ऑल इंडिया पदयात्रा राजस्थान में हमारे जयतीर्थ प्रभु के गांव में पहुंच गई तब वहां कैसे स्वागत हुआ ? रथ यात्रा में आप देखी रहे थे अमेरिकन लोग सान फ्रांसिस्को में जुड़े और यहां पर पदयात्रा में देखिये राजस्थानी सदगृहस्थ या सज्जन और देवियां कैसे इसमें सम्मिलित हुई , देख लीजिए । (राजस्थान में, ऑल इंडिया पदयात्रा स्वागत विडिओ) जगन्नाथ रथयात्रा महोत्सव की जय । यह श्रील प्रभुपाद का 125 वा जन्मोत्सव भी है इसलिए हमने सोचा कि आपको यह दिखाते हैं । रथयात्रा प्रभुपाद ने प्रारंभ की , मैंने कहा ही इस वीडियो में की प्रभुपाद जगन्नाथ रथ यात्रा के संस्थापक आचार्य है और साथ-साथ पदयात्रा के फाउंडर आचार्य संस्थापक आचार्य भी श्रील प्रभुपाद ही है । रथयात्रा 1967 में प्रारंभ हुई और फिर पदयात्रा 1976 में शुरू हुई । 10 सितंबर 1976 में पहली पदयात्रा हुई , उन दिनों में हम उसे बुलक कार्ट संकीर्तन पार्टी कहते थे । वह रथयात्रा जब शुरू हुई तो फैल गई यहां वहां यहां वहां और चल ही रही है उसी प्रकार यह पदयात्रा भी 1976 में शुरू हुई यह भी रुकने का नाम नहीं ले रही है । इस पद यात्रा का लक्ष्य इस जगत का हर एक शहर हर एक गांव हर एक नगर है । चैतन्य भागवत पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम । सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम।। ( चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड 4.1.26) पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । कुछ ही दिन पहले ऑल इंडिया पदयात्रा राजस्थान में हमारे जयतीर्थ प्रभु के गांव में पहुंच गई तब वहां कैसे स्वागत हुआ ? रथ यात्रा में आप देखी रहे थे अमेरिकन लोग सान फ्रांसिस्को में जुड़े और यहां पर पदयात्रा में देखिये राजस्थानी सदगृहस्थ या सज्जन और देवियां कैसे इसमें सम्मिलित हुई , देख लीजिए । (राजस्थान में, ऑल इंडिया पदयात्रा स्वागत विडिओ) पदयात्रा महोत्सव की जय। आपको पसंद आई ? फिर उससे जुडो घर बैठे बैठे तो अच्छा लग रहा है । पदयात्रा करो , अपने अपने मोहल्ले में नगर संकीर्तन करो या कहीं पर परिक्रमा करो ब्रज़मंडल परिक्रमा या नवदीप मंडल परिक्रमा या कहीं पदयात्रा में जा सकते हो , वनडे पदयात्रा भी आजकल चल रही है । हमारे मुरली मोहन प्रभु प्रमोट कर रहे हैं , वनडे पदयात्रा आपके नगर में , ठीक है । इस प्रकार की श्रील प्रभुपाद की जो योजनाएं थी ताकि कृष्ण भावनामृत सर्वत्र फैले । खासकर लोगों को उत्सव अच्छे लगते हैं । उत्सव प्रिय मानव: , याद रखिए आप कह भी सकते हो मनुष्य कैसे होते हैं ? या मनुष्य की कमजोरी है कहो कि सभी को उत्सव अच्छे लगते हैं और क्यों नहीं लगेग उत्सव अच्छे? क्योंकि हम उस जगत के हैं , हम गोलोक के हैं , हम मूलतः वृंदावन से हैं या वैकुंठा से है जहां सदैव उत्सव संपन्न होते रहते हैं । हर कदम पर नृत्य और हर शब्द में गीत है ऐसा ब्रह्म संहिता में भी कहा है । हमारे आत्मा को इसीलिए उत्सव अच्छे लगते हैं क्योंकि हम उत्सव के जगत से हैं और गलती से यहां पहुंच गए । उत्सव अच्छे लगते ही हैं और फिर गलती से हम मटन महोत्सव ( हंसते हुए ) मटन उत्सव संपन्न करते हैं या इंटरनेशनल फिल्म महोत्सव , फिर डॉग शो , यह शो वह शो , यह उत्सव वह उत्सव ऐसे करते हैं । उत्सव अच्छे लगते हैं लेकिन हम गलत उत्सव के पीछे हैं । महोतसवान पुरस्कृत्य अन्य धर्मा तिरस्कृत , ऐसा नारद मुनि ने कहा था । नारद मुनि का संवाद जब भक्ति देवी के साथ हो रहा था तब नारद मुनि ने ऐसा संकल्प लिया , यह घोषित किया ,"हे भक्ति देवी में तुम्हे सर्वत्र फैलाऊंगा" गेहे गेहे जने जने (भागवत महात्म्य) घर घर में पहुंचाऊंगा , यह भक्ति मैं घर घर पहुंचाऊंगा । गांव गांव , नगर नगर में पहुंचाऊंगा , नगर आदि ग्राम और कैसे पहुंचाओगे ? महोत्सवान , महोत्सव को प्राधान्य देंगे । उत्सव के माध्यम से भक्ति देवी को फैलायेगे । श्रील प्रभुपाद , उसी परंपरा के हम हैं ना ? ब्रह्मा - नारद- मध्व - गौड़ीय - श्रीलभक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर - भक्तिवेदांत स्वामी श्रील प्रभुपाद यह परंपरा है । नारद मुनि की इस परंपरा में प्रभुपाद आए , जो संकल्प लिया था जिस योजना की घोषणा नारद मुनि ने की थी कि उत्सव के माध्यम से हम भक्ति को फैलाएंगे । श्रील प्रभुपाद ने जब कल के दिन इनकारपोरेशन डे जो रहा । इस्कॉन का रजिस्ट्रेशन हुआ और , इस्कॉन के 7 उद्देश्य होंगे , वह कौन-कौन से होंगे उसका भी रजिस्ट्रेशन हुआ, और फिर इस्कॉन की स्थापना हुई फिर इस्कॉन का विकास , विस्तार होने लगा तब प्रभुपाद ने दुनिया को उत्सव दिए । लव फिस्ट , संडे फेस्टिवल । भुमते भोजयते चैव , (उपदेशामृत) कल हैं उपदेशामृत में पढ़ रहे थे घूमते भोजयते चैव , प्रसाद खाओ और खिलाओ । षठ विधि प्रीति लक्षणं , यह प्रीति का लक्षण है । प्रीतिभोज लव फिस्ट , श्रील प्रभुपाद ने जो संडे फेस्टिवल शुरू किया पहले उसका नाम हुआ करता था लव फिस्ट , और यह फिस्ट खा खा के कितने सारे लोग भक्त बने, भक्ति करने लगे या उनको भक्ति प्राप्त हुई और भक्ति करने लगे , प्रसाद ग्रहण करके , भुमते भोजयते चैव । रुप गोस्वामी का भी इस उपदेशामृत में यह उपदेश है ऐसा करो , घूमते भोजयते चैव षठविध प्रीति लक्षणम , और फिर , ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति । भुन्कते भोजयते चैव षडविथम् प्रीति लक्षणम्।। (उपदेशामृत 4) अनुवाद दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। हरि हरि । और फिर श्रील प्रभुपाद ने धीरे-धीरे हम सभी को ग्रंथ भी दिये , ग्रंथ ही आधार है इस इस्कॉन का आधार है ।कल इन कारपोरेशन डे हुआ । इस्कॉन का फाउंडेशन ग्रंथ है । उन ग्रंथों में यह उपदेशामृत एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है । रूप गोस्वामी भी फाउंडर आचार्य ही है । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और उनका संघ , षठ गोस्वामी वृंद और चैतन्य महाप्रभु इस संघ ने ही तो यह हरे कृष्ण आंदोलन प्रारंभ किया । हरे कृष्ण आंदोलन की स्थापना की , संकीर्तनेक पितरो आप याद रखो हम कई बार कहते हैं , आप लिखते नहीं हो फिर उसको पढ़ते नहीं हो । एक बार सुन लिया तो फिर शायद उसका चिंतन नहीं करते होंगे । प्रभुपाद यह भी कहा करते थे कि मेरे शिष्य क्या करते हैं ? एक दो पन्ने पढ़ लिया और फिर तुरंत ही प्रश्न पूछना शुरू कर देते है । प्रभुपाद ! प्रभुपाद ! मुझे यह समझ में नहीं आया , इसका अर्थ क्या है प्रभुपाद । प्रभुपाद कहते हैं ऐसा नहीं करना चाहिए कि एक दो पन्ने पढ़ लीये , 5 - 10 मिनिट पढ़ लिये और प्रश्नोत्तर शुरू हो गए , पढ़ते जाओ और पढ़ो या पुनः पढ़ो , एक बार पढ़ने से जब समझ में नहीं आया , दोबारा बढ़ने से और समझ में आएगा और वही बात तीसरी बार पढेगे तो और समझ में आएगा , इस तरह अलग-अलग साक्षात्कार अनुभव , स्मृतिया स्मरण होगा ।अंत हमें क्या करना है ? लक्ष है , भगवान का स्मरण करना है चैतन्य महाप्रभु ने कहा , ऐसी भक्ति करो जैसे गोपियों ने भक्ति की , रम्याकांच उपासना ब्रज वधु वर्गनया कल्पेत मतलब गोपिया , उनकी भक्ति , गोपिया आदर्श भक्ता है । इस वक्त हम बात कर रहे हैं इस समय गोपिया भी है , गोपिया शाश्वत है ऐसा समय नहीं था जब गोपिया नहीं थी वह आज भी है । कृष्ण भी है , गोपिया भी है उनका धाम सनातन है वहां लीला कैसी होती है? नित्य लीला संपन्न होती है । नित्य लीला , गोपियों की खासियत क्या है? स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । सर्वे विधि - निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ॥ (चैतन्य चरितामृत मध्य 22.113) अनुवाद “ कृष्ण ही भगवान् विष्णु के उद्गम हैं । उनका सतत स्मरण करना चाहिए और किसी भी समय उन्हें भूलना नहीं चाहिए । शास्त्रों में उल्लिखित सारे नियम तथा निषेध इन्हीं दोनों नियमों के अधीन होने चाहिए । " सब समय भगवान का स्मरण करो यह एक बात हुई , विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् और भगवान को कभी नहीं भूले यह क्या दूसरी बात हुई क्या ? (हंसत हुए )भगवान को कभी नहीं भूले यह दूसरी बात नहीं हुई यह पहली बात हुई मतलब ही भगवान का स्मरण करो । स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । स्मर्तव्यः इसको आप लिख भी सकते हो । स्मर्तव्यः अच्छा शब्द है । स्मर्तव्यः मतलब स्मरणीय , स्मरण करने योग्य स्मर्तव्यः , श्रोतवयः , कर्तव्य: ऐसे शब्द संस्कृत में बनते हैं । गोपियां बस भगवान का स्मरण करती रहती है । गोपिया बस इतना ही जानती है , गोपियों का तत्वज्ञान बड़ा सरल है । क्या करती है? सिर्फ कृष्ण का स्मरण करती है । हमको भी वही करना है हमारा लक्ष्य भी क्या है ? सदैव भगवान का स्मरण करना । फिर उसी श श्लोक में , स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । उसी को आगे कहा है सर्वे विधि - निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ।। यह जो सब समय भगवान का स्मरण करना है यह करने के लिए विधि और निषेध है ।शास्त्रों में जो विधि बताई है और निषेध बताए हैं । विधि - निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः यह दो दास है , स्वामी कौन है ? सदैव स्मरण करना यह लक्ष्य है । किस की मदद से यह होगा ? दो बातें हैं । एक विधी है और एक निषेध है । स्युरेतयोरेव किङ्कराः विधि और निशेध एतयो मतलब दो । यह दो किंगकर है , स्मरण के दास है । स्मरण लक्ष्य है , यह स्मरण कैसे संभव होगा ? कुछ विधियों का पालन करना होगा , कुछ निषेध को भी याद करके जो निषेध है उनको नही करना चाहिए और विधि है उसको करना चाहिए । ऐसा करने से क्या होगा ? स्मरण होगा , भगवान का स्मरण होगा । भगवान का ध्यान करना है अष्टांग योग विधि जो है , अष्टांग योग पद्धति है जिसका लक्ष्य समाधि है । यम नियम , अष्टांगो में उसकी शुरुआत कैसी होती है ? यम नियम । आसन प्राणायाम फिर प्रत्याहार, ध्यान , धारणा , समाधि । इस अष्टांग योग की शुरुआत कैसी हैं ? जिसका लक्ष्य है ध्यान , भगवान का ध्यान , उसकी शुरुवात कैसी है यम नियम। यम मतलब निषेध वही बात हो गई विधि और निशेध हो गए । अष्टांग योग जो पद्धति है जिसका लक्ष्य समाधि है , भगवान का ध्यान है उसकी शुरुआत कहां से हुई ? यम नियम से , यम नियम से शुरुआत हुई , यम नियम मतलब विधी निशेध से शुरुआत हुई ।बराबर है ? यह मैं आपको क्यों कह रहा हूं ? इस उपदेशामृत ग्रंथ में भी इस ग्रँथ की शुरुआत भी विधि और निषेध से हुई है । भगवान को याद करना है , लीलाओं का स्मरण करना है इत्यादि इत्यादि बातें इस उपदेशामृत ग्रंथ में आगे बताई है । यह संक्षिप्त ग्रंथ है , मुझे लगता है यह केवल 11 श्लोक वाला ग्रंथ है और 11 श्लोक में ही पूर्ण ग्रंथ है लेकिन शुरुआत कहां से हो रही है ? यम नियम से हो रही है, विधि निषेध से हो रही है । विधि - निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः , गोपियों का लक्ष्य या उनका जीवन ही भगवान का स्मरण करना है और कुछ नहीं करती केवल भगवान का स्मरण करती है , उनको याद करती है , खूब याद आती है । या उनको कृष्ण की खूब याद सताती है , यह विधि निषेधों का पालन करने से संभव होता है । इस ग्रंथ में से कल जो 4 प्रथम , प्रारंभिक श्लोक हमने आपको सुनाये या आपको स्मरण दिलाएं उसमें से दो निषेध के श्लोक है , ऐसा नहीं करना चाहिए , ऐसा मत करो , ऐसा मत करो , इसे यम कहते है । निषेध मतलब निशिब्ध । वह निषेध की बात करते हैं और तीसरा और चौथा विधि की बात करते हैं । पहला और दूसरा श्लोक यम की बात करते हैं और तीसरा और चौथा श्लोक निषेध की बात करते हैं ।या पहला और दूसरा श्लोक यम की बात करते हैं और तीसरा चौथा श्लोक नियम की बात करते हैं । पहला दूसरा श्लोक कहते है यह मत करो , यह मत करो। तीसरा चौथा श्लोक कहते है यह करो , यह करो । अगर आपको याद है , सभी मैं चार चार बातें हैं हम कह रहे थे । "वाचो वेगं मनस: क्रोधवेगं जिव्हावेगमुदरोपस्थ वेगम्। एतान्वेगान् यो विषहेत धीर: सर्वामपीमां पृथिवीं स शिष्यात्।।" (श्रीउपदेशामृत श्लोक 1) अनुवाद: - वह धीर व्यक्ति जो वाणी के वेग को, मन कि मांगों को,क्रोध कि क्रियाओं को तथा जीभ, उधर एवं जननेन्द्रियों के वेगो को सहन कर सकता है,वह सारे संसार में शिष्य बनाने के लिए योग्य हैं। आप सभी ने कल कुछ गृहपाठ किया ? कुछ पढ़ा उपदेशामृत ? आपके घर में ऐसा ग्रंथ है भी या नहीं कि केवल एक बार ही है ? आपके पास यह है तो दिखा दो । अच्छा ठीक है , बेंगलोर वाले यह दिखा रहे हैं राखी माताजी दिखा रही है और किसके पास है हाथ ऊपर करो । किनके किनके घर में पर्सनल लाइब्रेरी में उपदेशामृत नामक ग्रंथ है । हाथ ऊपर करो , ठीक है ! ठीक है ! ठीक है ! बहुत अच्छा कुछ दिखा भी रहे हैं । पूर्ण सबूत हुआ ना? बाप दाखव नाही तर श्राद्ध कर (हँसते हुये) आप दिखा रहे हो । जिनके घर में अब तक भी उपदेशामृत ग्रंथ नहीं है उनके लिए गृहपाठ क्या है ? उनको यह ग्रँथ लेना है देखो कोई अगर आप को तोफा देता है । ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्ममाख्याति पृष्छति । भुड.कते भोजयते चैब पडविरं प्रीति-लकषणम् ॥४॥ (उपदेशामृत 4) अनुवाद दान में उपहार देना, दान-स्वरूप उपहार स्वीकार करना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना -भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छह लक्षण हैं। कुछ भक्त भेट भी दे सकता है लेकिन कोई दे नहीं रहा है तो फिर आप उसको ले लो । किसने किसने इसको पढ़ा है ? यह चार श्लोक पढ़े या कुछ आगे सोचा या चिंतन किया या किसको यह श्लोक कंठस्थ है ? किसको किसको यह श्लोक कंठस्थ है ? कंठस्थ समझते हो ? कंठ में बैठ गया , कहने के लिए तैयार है , जब चाहे तब हम कह सकते है । ठीक है सुनाओ , पद्मावली ? नागपुरी की मनोप्रिया कहती है कि वह जानती है , एक एक श्लोक सुनाओ । आप में से चार भक्त एक एक श्लोक सुनाओ , देखते हैं किसने किसने याद किया , कंठस्थ किया फिर आप की प्रॉपर्टी हो गई ना ? ग्रंथ में तो है ही ग्रँथ से आपके दिमाग में फिर दिल में उसकी स्थापना करनी है तभी फायदा होगा । नही तो ग्रँथ में तो सब छाप के रखा हुआ है वह सारी पूंजी तो वहां है ही फिर वहां से हमें हमारे मन में या हमारे ह्रदय प्रांगण में उसको डिपाजिट करना है वहा स्थापना करनी है तो फिर वह आपकी संपत्ति हो गई , आपकी प्रोपर्टी हो गई । (मनोप्रिया माताजी द्वारा उपदेशामृत प्रथम श्लोक) बस ! बस! बस! बहुत अच्छा ( ताली बजाते हुए )अगला और कौन ? दूसरा श्लोक कहना होगा जो भी है । मनोप्रिया ने एक कह दिया और कौन कह सकता है । कोई भी ? ( नागपुर से आल्हादिनी माताजी द्वारा उपदेशामृत द्वितीय श्लोक ) ठीक है । थोड़ा सा कच्चा है । (हंसते हुए )ठीक है थोड़ा हल्कासा कच्चा है । ठीक है , बहुत अच्छा । अभी नागपुर से नहीं और किसी नगर से कोई है ? नागपुर से दो हुए , दो माताये हुई । (रचकरंजी से राधिका माताजी द्वारा उपदेशामृत तृतीय श्लोक) जय । बहुत अच्छा । छान , सुंदर ठीक है । चौथा श्लोक अब कोई पुरुष भक्त ? माताओं की मेजोरिटी हो गई (हंसते हुए) उदयपुर से कौन है ? (जयपुर से अजय गौरांग प्रभु द्वारा उपदेशामृत चतुर्थ श्लोक) बहुत ज्यादा गति से हो गया , थोड़ा धीरे धीरे बोलिए। (दोबारा अजय गौरांग प्रभुजी द्वारा उपदेशामृत चतुर्थ श्लोक) बीच में चैव रह गया । ठीक है । बहुत अच्छा । ठीक है । मुझे लगता है कि कल हम इसको आगे बढ़ाएंगे । आपमे से कुछ भक्तो ने श्लोक याद किये और याद करने का आज प्रयत्न करो । पर्यासस्य परजल्पान नियमग्रह प्रयास तो करना चाहिए भगवान के लिए प्रयास कर सकते है , खूब प्रयास कर सकते हैं और फिर हम आपसे सुनना चाहेंगे । एक श्लोक को एक भक्त कहेगा फिर कुछ कॉमेंट्री करेंगे या थोड़ा शब्दार्थ , भावार्थ हमको सुना सकते हैं हमको या सभी को सुना सकते हैं । और फिर देखते हैं कुछ प्रश्न उत्तर की आवश्यकता है तो उसको भी कर सकते हैं और देख लो जिनके पास अभी तक नहीं है तो डाउनलोड भी कर सकते हो । चोरी कर सकते हो इंटरनेट से (हंसते हुए) वहां कुछ भुगतान नहीं करना है । आप भेट दे सकते हो , माधवी गोपी आपके मित्र परिवार में जिनके पास नहीं है उनको भेट दे दो , उनके घर पर पहुंचा दो । आजकल तो शराबी भी होम डिलीवरी हो रही है तो फिर उपदेशामृत की भी डिलीवरी हो जाये । वह जहर पिला रहे हैं , शराब पिलाते हैं फ्री का माल हरि हरि । वह मूर्खता है हरी हरि । आप कृपा करो आपके मित्रों पड़ोसियों पर प्रीति लक्षण , यह उपदेशामृत ग्रँथ भेट दे सकते हो । कुछ प्रश्न भी लेकर आओ लेकिन पहले पढ़ना होगा जैसे प्रभुपाद ने कहा एक दो पन्ने पढ़ लीये और फिर प्रभुपाद प्रभुपाद मुझे प्रश्न है , थोड़ा और पढो , चिंतन करो , भगवान से प्रार्थना करो कि भगवान मुझे इसका उत्तर दिजिये , भगवान दूर नही है । सबसे निकट कौन है? सबसे निकटतम कौन है ? क्या उत्तर है भगवान है। शांतारूपीको थाइलैंड में इतना तो पता चला । यह भी बहुत बड़ा सत्य है कि नहीं ? सबसे अधिक निकट निकटतम जो व्यक्ति है और प्रियतम भी है जिनका हम से प्रेम है । यह नही की केवल हम ही भगवान से प्रेम करते हैं और भगवान हमसे प्रेम नहीं करते , ऐसी बात नहीं है । हम भगवान से प्रेम करते हैं और भगवान हम से प्रेम करते हैं यह नहीं कि केवल बच्चे ही माता-पिता से प्रेम करते हैं । माता-पिता प्रेम नहीं करते क्या ? माता-पिता तो प्रेम करना कभी नहीं छोड़ते हम तो बदमाश हो जाते हैं बड़े हो गए तो माता-पिता को भूल जाते हैं लेकिन माता-पिता कभी हमको भूलते नहीं है ।और वह भूलेंगे तो वह माता-पिता ही नही होंगे , मातापिता की जो परिभाषा हैं समझ है , वह प्रेम करते रहते है । हम उनसे प्रेम करते या प्रेम करते नहीं कोई फर्क नही पड़ता । ऐसे ही इस संसार के माता-पिता अगर हम से प्रेम करते ही रहते तो आदी माता आदी पिता जो है , परमपिता जो है वह अपने आपत्तियों से कितना प्रेम करते होंगे ? भगवान का हमसे कितना प्रेम है ? इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते , वह हम से प्रेम करते हैं , वह आप से प्रेम करते हैं । यह बाते समझना भी भगवान को समझना है । मैं भगवान की जानता हूं , मैं कृष्ण को जानता हूं । ऐसे समझना कि भगवान हमसे प्रेम करते हैं , भगवान हमको चाहते हैं ।वह मुझे चाहते हैं , वह मुझसे प्रेम करते है , उन्हें मेरी जरूरत है , ठीक है । कल उपदेशामृत के विषय को आगे बढ़ाते है । आप भी अपना गृहपाठ करके आईये , आप भी कुछ बोलिये । आपमे से कुछ भक्त , आपने जो जो समझा या आज पढ़कर और समझोगे , भगवान से प्रांर्थना करके भी आ जाओ । प्रार्थना करेंगे तो भगवान क्या करते है , सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || (भगवद्गीता 15.15) अनुवाद:- मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ | यह बात भगवान ने किस शास्त्र में कही? हमने अभी जो वचन कहा यह किस शास्त्र कभी , किस पुराण का है? चैतन्य? ठीक हैं , भगवद्गीता है कह रहे है । भगवद गीता में कहा है , किस अध्याय का है , यह किस अध्याय में भगवान ने कहा? हर एक किताब खोलकर नही देखना है (हँसते हुये) किसे पता है ? क्या यह 15 वे अध्याय में है ? श्लोक संख्या? वह भी 15 ही है । तो 15 - 15 याद रखो । 15 वा अध्याय 15 वा श्लोक , भगवान ने कहा है सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो तुम्हारे हृदय प्रांगणमें मैं रहता हूं और वहां ऱहकर मैं क्या करता हु? भगवान का कर्तव्य क्या है? वह भगवान ने कहा , मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् || स्मृती , ज्ञान , विस्मरण , स्मरण , हम भगवान को याद करते है तो उनके कारण ही । हम भूल चुके है क्योंकि उन्होनेही वैसी व्यवस्था की है , क्योकि हम भूलना चाहते है तो भगवान व्यवस्था कर देते है । एको बहूनां यो कामन्दि कहा है , वह एक हम अनेको की कामना की पूर्ति करते है । हम भूलना चाहते है यह हमारी कामना है तो भगवान उसकी भी पूर्ति करते है हमको भुला देते है । स्मरण होता है भगवान जे कारण , विस्मरण हम भूल गए तो उसके कारण भी भगवान है । सर्व कारण कारणम , ठीक है । कल पुनः मिलने है , पुनः मिलाम: इसे आप याद रखिये , आप भी कह सकते है पुनः मिलाम: , पुनः मिलेंगे , फिर मिलेंगे लिख लो । हिंदी में , उर्दू में क्या क्या हम लोग कहते रहते है । आप संस्कृत बोल सकते हो पुनः मिलाम:, पुनः मिलेंगे , ठीक है ।

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