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जप चर्चा 5 अक्टुबर 2021 पंढरपुर धाम से 856 स्थानों से जप हो रहा है । उसमे से कुछ स्थान हमने आपको दिखाये थे , सुजाता गोपी , परिवार जप करते हुये आपको दिखाया । वह एक स्थान था । इस्कॉन पंढरपुर के भक्त जप करते हुए वह भी दृश्य आपने देखा । हरि हरि । आपके विग्रहों का भी दर्शन हमको या आप सभी को करा सकते हो । आप पद्मावली को अगर पहले सूचना दोगे तो आपके विग्रह का भी दर्शन हम सभी कर सकते हैं । थोड़े समय के लिए , बारी बारी से हो सकता है । यह कुछ नहीं कल्पनाये हम ला रहे हैं । विग्रहों के दर्शन कई दिनों तक करते रहे हैं । आपको सिर्फ स्वयं मुझे ही जप करते हुए देखने की आवश्यकता नहीं है और भी कोई दृश्य हम देख सकते हैं । वृंदावन में अगर आप जप कर रहे हो , जमुना के तट पर जप कर रहे हो तो वह दृश्य मैं भी देखना चाहूंगा । आपके घर के विग्रह पद्मराधा या किसी के घर में आप समझते हो कुछ विशेष विग्रह आराधना होती है , विशेष श्रृंगार होता है , आपके विग्रह सौंदर्य की खान है तब हमें सूचना दीजिए , पद्मावली आपभी ध्यान रखो । हम सभी उन दर्शनो से लाभान्वित हो सकते हैं या जप करते समय हम उनका दर्शन कर सकते हैं उसी के साथ , श्रवनम , कीर्तनम , विष्णु स्मरणम मरणम में सहायता होगी । याद रखिए हम नए-नए कल्पनाएं ला रहे हैं । हरि हरि । ठीक है । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय । चैतन्य महाप्रभु ने शिक्षाष्टक की रचना की और आप समझते होंगे , ऐसा कहते भी हैं कि जहाँ तक चैतन्य महाप्रभु की लिखित शिक्षा है , श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की लिखित शिक्षाएं है वहीं शिक्षाष्टक है । हरि हरि । कृष्ण का उपदेश भगवत गीता है और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का उपदेश शिक्षाष्टक है । चेतोदर्पन मार्जन हम इसको शिक्षाष्टक कहते है इसको भी समझीयेगा । इस शिक्षाष्टक के अलावा चैतन्य महाप्रभु ने कई बार उपदेश दिये है , शिक्षाये प्रदान की हुई है । अलग-अलग भक्तों के साथ उनके संवाद एवं प्रश्न उत्तर हुए हैं । यह हरि नाम चिंतामणि जो श्रील भक्ति विनोद ठाकुर ने लिखा है , यह भी श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और नामाचारी श्रील हरिदास ठाकुर के मध्य का संवाद है , वह भी एक आदेश , उपदेश शिक्षा हुई । हरि नाम चिंतामणि में हम श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा कोही हम पढ़ते है । राय रामानंद और महाप्रभु के मध्य का जो संवाद है । कृष्ण और अर्जुन के मध्य का संवाद भगवद्गीता है लेकिन राय रामानंद और चैतन्य महाप्रभु के बीच का जो संवाद है , वह तो पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्स है । भगवत गीता तो प्राथमिक ज्ञान है । चैतन्य महाप्रभु का रामानंद राय के साथ जो संवाद है वह काफी ऊंची बाती है , गहरी बातें हैं । हरि हरि । गोपनीय बातें कही हैं । इस प्रकार और भी स्थानों पर चैतन्य महाप्रभु का आदेश , उपदेश मिलता है । प्रकाशानंद सरस्वती के साथ वाराणसी में जो वार्तालाप हुआ और फिर सनातन और चैतन्य महाप्रभु के मध्य का संवाद वाराणसी में संपन्न हुआ वह बहुत प्रसिद्ध है । 2 महीने संवाद चल रहा था अर्जुन श्रीकृष्ण का संवाद 45 मिनट चला , सनातन गोस्वामी और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का संवाद 2 महीनों तक चला ।रूप गोस्वामी और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का संवाद प्रयागराज में संपन्न हुआ , दशमेश घाट पर यह संवाद हुआ 10 दिनों तक चलता ही रहा और वह संवाद ही फिर भक्तिरसामृत सिंधु इत्यादि ग्रंथों की रचना में परिणत हुआ । इसी तरह चैतन्य महाप्रभु की शिक्षाएं चैतन्य चरित्रामृत है , चैतन्य भागवत है जिसमे हमें पढ़ने सुनने मिलती है , हमें जरूर पढ़नी चाहिए , जरूर समझनी चाहिये और समझ कर फिर उसका हमको प्रचार भी करना है तो ऐसे ही एक शिक्षा चैरानी महाप्रभु ने दी है , कहीं है । आदि लीला के नवम परिच्छेद में , परिच्छेद मतलब अध्याय । चैतन्य चरित्रामृत आदि लीला नवम परिच्छेद ।हम सुनते रहते हैं जब प्रभुपाद कहते हैं , बारंबार, भारत - भूमिते हैल मनुष्य जन्म झार । जन्म सार्थक करि ' कर पर - उपकार ॥ (चरितामृत आदि 9.41) अनुवाद:- “ जिसने भारतभूमि ( भारतवर्ष ) में मनुष्य जन्म लिया है , उसे अपना जीवन सफल बनाना चाहिए और अन्य सारे लोगों के लाभ के लिए कार्य करना चाहिए । आपको याद है ? यह आपने सुना है ? इस वचन को आपने कभी सुना है ? हां ! चैतन्य ने सुना है और किसने सुना है ? ऐसा संभव नहीं है अगर आप श्रील प्रभुपाद के प्रवचन सुनते हो या प्रभुपाद के ग्रंथ पढ़ते हो तो यह बात आपको सुनाई पड़ता है । भारत - भूमिते हैल मनुष्य जन्म झार । जन्म सार्थक करि ' कर पर - उपकार ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.41) श्रील प्रभुपाद बारंबार दोहराया करते थे । यह वचन श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु का है , यह वचन कहने के पहले श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने और क्या-क्या कहा और फिर अंत में कहा , भारत - भूमिते हैल मनुष्य जन्म झार । जन्म सार्थक करि ' कर पर - उपकार ॥ उसको हम आज आपको सुनाने जा रहे हैं । ध्यान से सुनिए हम कुछ बांग्ला पयाड भी पढेगे । इसी के साथ आप चैतन्य महाप्रभु को सुनोगे , चैतन्य महाप्रभु को आप सुनना चाहते हो ? चैतन्य महाप्रभु को सुनना चाहते हो ? तो सुनिए, फिर आप कहोगे कहां है चैतन्य महाप्रभु ? उनको तो आपने माइक्रोफोन नहीं दिया । वह दिख नहीं रहे हैं । यह चैतन्य चरित्रामृत की वाणी कहो यह चैतन्य महाप्रभु की वाणी है उसको हम पढेगे और सुनाएंगे । यह चैतन्य महाप्रभु की वाणी है । देखिए उस वक्त हम नहीं थे जब चैतन्य महाप्रभु ने यह वाणी कहीं और अब कोई चिंता की बात नहीं है या शोक की बात नहीं है । आज हम पढ़ सकते हैं , आज अभी वर्तमान में हम सुन सकते हैं । यह भगवान के वचन कोई भूतकाल की बात नहीं है वर्तमान में भी यह वचन है । चैतन्य महाप्रभु ने कई सारी बातें कही है मैं उसको फटाफट कहने का प्रयास करते हैं । प्रभु कहे , आमि ' विश्वम्भर ' नाम धरि । नाम सार्थक हय , यदि प्रेमे विश्व भरि ॥ (चैतन्य चरितामृत 9.7) चैतन्य महाप्रभु ने सोचा , " मेरा नाम विश्वम्भर अर्थात् ' अखिल ब्रह्माण्ड का पालन करने वाला है । यह नाम तभी सार्थक बनेगा , यदि दूँ । " मैं अखिल ब्रह्माण्ड को भगवत्प्रेम से भर दू । चैतन्य महाप्रभु ने कहा मेरा नाम विश्वंभर है । आप जानते हो ना चैतन्य महाप्रभु का नाम है , जब उनका नामकरण हुआ तब उनको नाम दिया विश्वंभर नीलांबर चक्रवर्ती उन्होंने नामकरन किया । तुम्हारा नाम विश्वंभर, विश्वंभर की जय। जो उपस्थित थे उन्होंने कहा होगा विश्वंभर की जय । चैतन्य महाप्रभु कहते हैं , "मेरा विश्वंभर नाम तभी सार्थक होगा जब मैं , यदि प्रेमे विश्व भरि , मैं अगर सारे विश्व को प्रेम से भर दूँगा । प्रेम के साथ सारे संसार का पोषण , पुष्टि करूंगा , भरण पोषण होता है ना , विश्वंभर ! विश्व को भरना है , विश्व का पालन पोषण करना है । यदि मैं प्रेम दूंगा , प्रेम खिलाऊंगा उनको या प्रेम खिला पिला के सारे विश्व को मैं अपने नाम विश्वंभर को सार्थक करूंगा । एत चिन्ति ' लैला प्रभु मालाकार - धर्म । नवद्वीपे आरम्भिला फलोद्यान - कर्म ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.8) अनुवाद:- इस प्रकार सोचते हुए उन्होंने माली का कार्य स्वीकार किया और नवद्वीप में एक उद्यान ( बगीचा ) लगाना प्रारम्भ कर दिया । ऐसा सोच कर श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने एक व्यवसाय को अपनाया । कोनसा? वह मालाकार बन गए मतलब माली बन गए । फलोद्यान कर्म और उस फल के वृक्षों को भी वह उगाने लगे । श्री चैतन्य मालाकार पृथिवीते आनि ' । भक्ति - कल्पतरु रोपिला सिञ्चि ' इच्छा - पानि ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.9) अनुवाद:- इस प्रकार महाप्रभु भक्ति - रूपी कल्पवृक्ष को इस पृथ्वी पर ले आये और स्वयं इसके माली बने । उन्होंने बीज बोया और उसे अपनी इच्छा रूपी जल से सींचा । यह अक्षर भी छोटे है और यह भाषा मेरी नहीं है बांग्ला भाषा है । चैतन्य महाप्रभु ने फिर उस उद्यान में जो वृक्षारोपन किया उसका सेचन करने लगे । श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु उसको खात , जल खिलाने , पिलाने लगे और यह सारे वृक्ष भक्ति वृक्ष है ऐसा भी कह रहे हैं । कैसे वृक्ष हैं ? भक्तिवृक्ष कार्यक्रम की जय । इसका सिंचन कैसा ? इच्छा पानी , अपने खुद की श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की इच्छा के जल से सिंचन रहे हैं । यह समझने में आपका दिमाग काम करता है ? चैतन्य महाप्रभु की इच्छा को पानी बनाया है और उन वृक्षो को जल दिया जा रहा है , वृक्षों को जलपान करा रहे हैं , सिंचन करा रहे किसका? इच्छा पानी , अपने खुद की इच्छा का । इच्छा से खिलाएंगे पिलाएंगे उस वृक्षों को मोटा बनाएंगे । जय श्री माधवपुरी कृष्ण प्रेम - पूर । भक्ति - कल्पतरुर तेंहो प्रथम अङ्कुर ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.10) अनुवाद :-कृष्ण - भक्ति के आगार श्री माधवेन्द्र पुरी की जय हो ! वे भक्ति के कल्पवृक्ष हैं और उन्हीं में भक्ति का प्रथम बीज अंकुरित हुआ । बीजारोपण हुआ , इच्छापानी से सिंचन हो रहा है । चैतन्य महाप्रभु की इच्छा से ही वह वृक्ष अंकुरित हुए, वह बीज अंकुरित हुए । पहला जो अंकुर निकला , रामलीला अंकुर को समझते हो ? अंकुर मराठी में बहुत चलता है वैसे हर भाषा में चलता होगा ही । वह अंकुर था माधवेंद्र पुरी , हमारे गौड़ीय संप्रदाय के प्रथम आचार्य , पहले तो यह संप्रदायवाद मध्व संप्रदाय ही था । वहां से एक उपशाखा उत्पन्न हुई और हमारे संप्रदाय के पहले आचार्य माधवेंद्र पुरी प्रकट हुए । यह चैतन्य महाप्रभु की इच्छा से प्रकट हुए हैं इसको आप समझ सकते हो । श्री - ईश्वरपुरी - रूपे अंकुर पुष्ट हैल । आपने चैतन्य माली स्कन्ध उपजिल ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.11) अनुवाद:- इसके बाद भक्ति का बीज श्री ईश्वरपुरी के रूप में अंकुरित हुआ और फिर श्री चैतन्य महाप्रभु जो स्वयं माली थे , उस भक्ति रूपी वृक्ष का मुख्य तना बने । माधवेंद्र पुरी के बाद उनके , माधवपुर के कई सारे शिष्य हुए और उन शिक्षो में प्रधान शिष्य ईश्वर पुरी थे । जिन के शिष्य कौन ? श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बनने वाले हैं । आपने चैतन्य माली स्कन्ध उपजिल ॥ वृक्षेर उपरे शाखा हैल दुइ स्कन्ध । एक ' अद्वैत ' नाम , आर ' नित्यानन्द ' ॥ CC Aadi 9.21 ॥ अनुवाद:- वृक्ष के ऊपरी तने के दो भाग हो गये । एक तने का नाम श्री अद्वैत प्रभु था और दूसरे का श्री नित्यानन्द प्रभु । तो चैतन्य महाप्रभु से फिर वो स्कन्द हैं या तना है दो शाखायें उत्पन्न हुई एक शाखा है अद्वैत नाम अद्वैत आचार्य और दूसरे है नित्यानंद महाप्रभु आगे बताते हैं। सेइ दुइ इ - स्कन्धे बहु शाखा उपजिल । तार उपशाखा - गणे जगत्छाइल ॥ चैतन्य चरितामृत आदि 9.22॥ अनुवाद:- इन दोनों तनों से अनेक शाखाएँ एवं उपशाखाएँ उत्पन्न हुईं , जो सारे जगत् पर छा गईं । फिर धीरे धीरे फिर चैतन्य महाप्रभु से फिर अद्वैत आचार्य नित्यानंद महाप्रभु ये शाखा फिर शाखा से उप शाखा ऐसे पूरे सारे विश्व में फैल गया है या फैल रहा है ये वृक्ष और हम जो हैं उसी परंपरा से है और ये परम्परा भी आगे बढ़ती रही और फिर गौड़ीय वैष्णव परंपरा उसी के साथ इसी परंपरा में कई सारे आचार्य और उनके शिष्य प्रशिष्य भक्ति विनोद ठाकुर श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती ठाकुर भक्तिवेदांता स्वामी श्रील प्रभुपाद की जय ये उसी वृक्ष के शाखा उपशाखा और फिर ऐसे होते होते फिर हम तक पोहोच गए हमारा भी सम्बंध स्थापित हुआ इस वृक्ष के साथ हम भी इस वृक्ष का बन गए कोई शाखा ही बन गए या कोई पत्ता बन गए तो कोई फूल बन गए तो कोई बाद में कोई फल इस प्रकार हम सारे आप सभी उपस्थित आप सभी का सम्बंध उस चैतन्य वृक्ष से है क्या आपको मंजूर है या मंजूर नहीं है तो फिर वह शाखा सूख जाएंगे ऐसा प्रभुपाद कहते हैं वह जो शाखा है या जो पत्ता है वह सूख जाएगा उसको रस नहीं मिलेगा प्रेम नहीं मिलेगा शुष्क होगा मतलब ड्राई हमारा संबंध नहीं है परंपरा के माध्यम से इस वृक्ष के साथ हम यूजलेस ब्रांच या यूज लेस लीप कह सकते है। जिसका कोई उपयोग नहीं है ना तो खुद के लिए ना तो औरों के लिए शिष्य , प्रशिष्य , आर उपशिष्य - गण । जगत्व्यापिल तार नाहिक गणन ॥ चैतन्य चरितामृत आदि 9.24॥ अनुवाद:- इस तरह शिष्य , उनके शिष्य और उन सबके प्रशंसक सारे जगत् में फैल गये । इन सबको गिना पाना सम्भव नहीं है । शिष्य हुए उनके प्रशिष्य हुये और सारे जगत में फैल गया ये वृक्ष और कहां तक फैला कितने शाखा कितने प्रशाखा इसकी कोई गणना ही नहीं हो सकती । हमको धीरे धीरे ये समझना है कि इसी प्रकार क्या होना है? चैतन्य भागवत पृथिवीते आछे यत नगरादि - ग्राम । सर्वत्र प्रचार हइबे मोर नाम पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं , उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा । ( चैतन्य भागवत अन्त्य - खण्ड ४.१.२६ ) इसी के साथ श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कुछ भविष्य की बात कर रहे हैं , अभी तो ऐसा नहीं है लेकिन चैतन्य महाप्रभु का यह दूर दृष्टि है , ऐसा विचार है और यह सब हो रहा है और कुछ इस सुवर्ण काल में होने वाला भी है। ठीक है। ए वृक्षेर अङ्ग हय सब सचेतन । बाड़िया व्यापिल सबे सकल भुवन ॥ चैतन्य चरितामृत आदि 9.33॥ अनुवाद:- " इस वृक्ष के सारे अंग आध्यात्मिक रूप से सचेतन हैं और वे ज्यों ज्यों बढ़ते हैं त्यों - त्यों सारे जगत् में फैल जाते हैं । अभी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अब हम सभी को संबोधित कर रहे हैं या संसार के लोगों को संबोधित कर रहे हैं कहो या कुछ निवेदन कर रहे हैं। चैतन्य महाप्रभु की कुछ मांग है , डिमांड है , वह सोच रहे हैं । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। आप पूरा जग जाइये । जीव जागो जीव जागो । गौरा चांद बोले । गौरा चांद बोल रहे है इसलिए जीव जागो और सुनो चैतन्य महाप्रभु की क्या अपेक्षाएं है । वह क्या चाहते हैं , हमसे क्या चाहते हैं । वह तो कह रहे हैं कि , एकला मालाकार आमि काहाँ काहाँ ग्राब । एकला वा कत फल पाड़िया विलाब ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.34) अनुवाद:- “ मैं ही अकेला माली हूँ । मैं कितने स्थानों में जा सकता हूँ ? मैं कितने फल तोड़ और बाँट सकता हूँ ? मैं अकेला मालाकार हूं । जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु प्रकट हुए तब वहां प्रारंभ में उन्ही से शुरुआत हुई पहले वह अकेले ही थे , वह कहते हैं कि एकला मालाकार आमि काहाँ काहाँ ग्राब । एकला वा कत फल पाड़िया विलाब ॥ एकला उठाञा दिते हय परिश्रम । केह पाय , केह ना पाय , रहे मने भ्रम ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.35) अनुवाद:- अकेले फलों को तोड़कर उन्हें वितरित करना निश्चित ही अत्यधिक परिश्रम का कार्य है , परन्तु इतने पर भी मुझे सन्देह है कि कुछ लोग उन्हें प्राप्त कर पाएँगे और कुछ नहीं । मैं अकेला कितना परिश्रम कर सकता हूं और कितने फलों को स्वयं में तोड़ सकता हूं ? कीतने फलों को मैं स्वयं वितरित कर सकता हूं ? और यह सब सारे प्रयास में केह पाय केह ना पाए रहे मने भ्रम , किसको फल मिला किस को नहीं मिला कृष्ण प्रेम का फल ऐसा भी संभव होगा , मैं सम्भ्रमित भी हो जाऊंगा की किसको मिला और किसको नहीं मिला । डिमांड इतनी हैं और इसका वितरण होना है और मैं अकेला हूं तो वितरक की जरूरत है , वांटेड का वह कॉलम अखबार में होता है ना कि यह चाहिए वह चाहिए एंप्लाइज चाहिए । चैतन्य महाप्रभु स्वयं क्या चाहते हैं ? वितरक चाहिए । चैतन्य महाप्रभु को वितरक चाहिए , कृष्ण प्रेम के वितरक , कृष्ण प्रेम के डिस्ट्रीब्यूटर चाहिए । एकला मालाकार आमि कत फल खाब । ना दिया वा एइ फल आर कि करिब ॥ ( चैतन्य चरितामृत आदि 9.37) अनुवाद:- “ मैं अकेला माली हूँ । यदि मैं इन्हें वितरित न करूँ तो मैं इनका क्या करूँगा ? अकेले मैं कितने फल खा सकता हूँ ? ( हंसते हुए ) और कोई वितरण करने वाले नही तो आप खाओ । वितरण नहीं हो रहा तो आप खाओ लेकिन वह कहते है ," मैं अकेला कितना खा सकता हूं खा खा के , कई सारे बचही जाएंगे ना ।" नादिया व फल आर की करिबो । मैंने खा भी लिया तो बचे हुए जो फल हैं इन फलों का क्या होगा । आत्म - इच्छामृते वृक्ष सिञ्चि निरन्तर । ताहाते असङ्ख्य फल वृक्षेर उपर ।। (चैतन्य चरितामृत आदि 9.38) अनुवाद:-“ पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की दिव्य इच्छा से सारे वृक्ष पर पानी छिड़का गया है और इस तरह भगवत्प्रेम के असंख्य फल लगे हैं । मैं इसका सिंचन तो करता ही रहता हूं , इच्छा पानी पिलाता रहता हूं । यह फल , यह वृक्ष बढ़ रहा है । कई सारे फूल या फिर फल बाद में उत्पन्न हो रहे हैं । अतएव सब फल देह ' नारे तारे । खाइया हउक् लोक अजर अमरे ॥ (चैतन्य चरितामृत आदि 9.39 ) अनुवाद :- , “ इस कृष्णभावनामृत आन्दोलन का वितरण सारे विश्व में करो , जिससे सारे लोग इन फलों को खाकर अन्ततः वृद्धावस्था तथा मृत्यु से मुक्त हो सकें । इसलिए मैं चाहता हूं कि यह सारे फलों का वितरण हो जाए ताकि लोग इस फलों को खा कर क्या होंगे ? अजर होंगे , अमर होंगे । ऐसा ही कर रहे हैं , अजर मतलब अ मतलब नहीं , और जर मतलब जरा । कोई रोगी नहीं होगा सभी निरोगी होगे , काम रोग है । आप कामरोग समझते हो ? जिसको सुखदेव गोस्वामी ने वृत रोग भी कहा है । काम रोग , भव रोग । रोगों के नाम तो लिखो । इन रोगों के नाम पता है ? आजकल के कितने डॉक्टर , मेडिकल शॉप , ड्रग स्टोर में कोई जा कर बोलता है की भवतोग के लिए कोई औषधि है आपके पास ? न तो कोई डॉक्टर बताता है , हां ! तुम्हारा डायग्नोसिस हो गया है । मैंने नाड़ी परीक्षा कर ली , तुमको काम रोग हुआ है ऐसा कोई बताता भी नहीं है । यह बड़ा भयानक रोग है। जन्म जन्मांतर के लिए यह रोग हमारा पीछा कर रहा है । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कह रहे हैं अजर अमर सारे रोगों से मुक्त होंगे । गिर मत बनो कल्चर्ड बनो सुसंस्कृत बनो और ये सब करो । केन केन प्रकारेन मन को भगवान में लगाओ और भगवान को दे दो औरों को ये बात श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कही है , और अब तो समय नहीं है किंतु । कृष्ण दास कबीर गोस्वामी यही पर चैतन्य महाप्रभु ने जब कहा वृत अनात्मा भारतभूमिते मनुसूजन मोविलजा जन्म सार्थक करी कर परुपकार तो श्रीमद भागवत के chapter 22 verse no. 35 note करो इसमें जो वचन है इसी के साथ मिलता जुलता है जो चैतन्य महाप्रभु ने कहा भारतभूमित कारीकर परुपकार तो जो चैतन्य महाप्रभु ने कहा उसकी पुष्टि करने हेतु ये श्रीमद् भागवत में से उधारण दिया गया है । प्रनेय अर्थे धियावाचा श्री आचारणाम सदा तो क्या करो करीकर परुपकार औरों का उपकार करो औरों पर कुछ उपकार करो कैसे कर सकते है प्रणई ये भागवत के उस श्लोक में कहा है प्राण अपना प्राण दो पूरा समर्पण प्रणई अर्थई ध्यान दो समर्पित करों भगवान की सेवा में प्राणई अर्थी धीया कृष्ण दिमाग लड़ाओ कुछ सोचो कैसे कृष्ण भावना का प्रचार प्रसार हो सकता है ये नही तो कम से कम बोलो जो आचार्यों के विचार श्रील प्रभुपाद के विचार अपने गुरुजनों के जो विचार है उनको कहो उनको औरो तक पहुचाओ अपनी भाषा से ये हो गया तो आप खुद नही सोच सकते ऐसा दिमाग काम नही करता है । लेकिन जिसका काम करता है दिमाग उसके दिमाग से निकली योजनाएं उसको समझो, स्वीकार करो और उसका प्रचार करो । तो प्रणई अर्थी धिया वाचा कैसे उपकार कर सकते है तो विचार प्रकार से इस भागवत के वचन में कहा है श्री आचारनम सदा श्री आचरण इस प्रकार का आचरण श्रेयस्कर हैं कल्याण कारी है । हमारा खुद का भी । Yes गायत्री do you agree ? तुमको मंजूर है । मुंडी तो हिला रहे है । Ok We stop here यहा कल के कुछ प्रश्न थे । मैं उत्तर देना चाहता हु लेकिन अभी तो समय नहीं है तो देखते है। कल परसों कभी। उत्तर देंगे कल वाले प्रश्नों के ।आज भी कई प्रश्न है तो लिख लो या कुछ कमेंट्स है तो पब्लिश करते है । या फिर देखते है समय भी हो चुका है मैंने आज लिमिट क्रॉस कर दी। हरे कृष्ण श्रील प्रभुपाद की जय सभी भक्तो को दंडवत प्रणाम तो chat ऑप्शन आप सभी के लिए ओपन है यदि आपके कोई प्रश्न है या कमेंट्स है आज से संबंधित तो आप लिख सकते है।कल वैसे कोई हमने कल भी chat ओपन किया था कोई प्रश्न नहीं आए । २ -३ प्रश्न मिले है हमने नोट किए है सब उत्तर दिया जाएगा धीरे धीरे । तो आज भी chat ऑप्शन ओपन है तो यदि भक्तो के प्रश्न है तो वे पूछ सकते है।और फिर आने वाले दिनों में कभी यथा समय यथा संभव करेंगे हम । और कुछ इनोवेटिव ideas ऐसे जो भक्त अपने विग्रह के घर के सेवा करते है आप उनके दर्शन करवाना चाहते है।सभी से zoom पे शेयर करना चाहते है तो आप मुझे whatsapp कर सकते है।४ - ५ पिक्चर्स भेज सकते है घर के हॉल्टर के या उनके बेस्ट श्रृंगार के मै chat में no. शेयर कर रहा हु तो अपना whatsapp अपना नाम और चित्र का दर्शन नही कराएंगे DT का सीधा शृंगार के साथ live। अपने खुद के दर्शन के बजाए उनको भगवान के दर्शन कराएंगे नही तो हम उनको देखते हि रहते है । जैसे आप मुझे देखते हो मैं आपको देखता हु।तो जैसे ये देव दत्त है दिखा रहे है अपना श्रृंगार सोलापुर से this is one sample उसके विशेष दर्शन विशेष श्रृंगार । इस प्रकार आप दिखा सकते हो १ - २ मिनट थोड़े समय के लिए।जैसे देव दत्त प्रभु दर्शन करवा ही रहे है हमे ये जग्गानाथ सुभद्रा महारानी और राधा कृष्ण का तो इस प्रकार से आप भी कुछ समय के लिए ऐसे दर्शन करवा सकते है ।तो समय भी हो चुका है आजके सत्र को हम यही विराम देते है ।और पुनः लोकनाथ जी के हरिनाम जप talk ke लिए हम एकत्रित होंगे। श्री चैतन्य महाप्रभु की जय । चैतन्य चारितममृत की जय । श्रील प्रभुपाद कि जय । परम पुजनीय लोकनाथ स्वामी की जय। वांछा कल्पतरुभ्यश्च कृपा-सिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।

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