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जप चर्चा
26 अप्रैल 2022
परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज
जय जय राधे
जय जय श्याम
जय जय श्री वृन्दावन धाम
अच्छा पीछे पीछे भी गाना चाहते हो, कम से कम जो यहां मेरे पास बैठे हैं, उन्होंने तो गाना प्रारंभ कर दिया |
इसलिए यह स्पष्ट करने के लिए मैंने गाया कि मैं कहाँ हूँ और कहाँ से आपके साथ जप कर रहा था और यह जप चर्चा कहाँ से होगी |
वृंदावन धाम की जय |
एकादशी महोत्सव की जय |
और इसीलिए भी आज संख्या अधिक है | आप में से कुछ आया राम गया राम भी हो | प्रतिदिन आप नहीं रहते हो | जप करने वाले को जापक कहते हैं | कुछ जापक आज हमारे साथ जप कर रहे हैं, उसमे से कुछ हमारे साथ प्रतिदिन नहीं रहते है | या रहते हैं तो फिर देरी से पहुंचते हैं | आज तो 06:15 मे हाउसफुल हो गया, 06:15 तक 1000 भक्त आ गए थे | ऐसी उत्सुकता उत्कंठा आप यदि प्रतिदिन प्रदर्शित कर सकते हो तो मैं प्रसन्न हो जाऊँगा और भगवान तो निश्चित ही प्रसन्न होंगे |
एकादशी से संबंधित और कुछ बातें करने से पहले और कुछ बातें याद आ रही है स्मरण हो रही है | आज वृंदावन कृष्ण बलराम मंदिर में मैं मंगल आरती गा रहा था |
मंगल आरती महोत्सव की जय |
मंगल मंगल नाम भी क्या बढ़िया है | कैसी आरती ? मंगल आरती |यह नाम ऐसे ही नहीं दिया है |
आपकी यात्रा मंगलमय हो -- ऐसा रेलवे वाले भी कहते हैं | हमारी जो दिन की यात्रा है, 1 दिन की यात्रा है , प्रातः काल में प्रारंभ होती है तो मंगल आरती करने से हमारा पूरा दिन मंगलमय होता है, पूरे दिन की यात्रा मंगलमय होगी, शुभ होगी, शुभ मंगल होगी | इसलिए भी हमें मंगला आरती को अटेंड करना चाहिए। कई विचार तो आ ही जाते हैं
Uthi Uthi Gopala
Arunoday Jhala
*मराठी भजन*
यह गीत किसका है बताइए? यशोदा जी कन्हैया को जगाती है उठो उठो गोपाल जाओ माखन चोरी के लिए जाओ, माखन खाओ और खुश हो जाओ। उठो उठो क्योंकि थोड़ी देर में और ग्वाल बाल पहुंचेंगे द्वार पर घंटी बजाएंगे, कन्हैया उठो चलो | तो विचारिए कि हमें अभ्यस्त होना होगा, प्रातः काल में उठने का अभ्यास करना होगा नहीं तो फिर हमलोग गोलोक तो पहुंच गए और कृष्ण तो गए भी गाय चराने के लिए और हम सोते रहे।
Practice makes one perfact.
अभी से अभ्यास करना होगा प्रातः काल में उठने का क्योंकि हमें क्या करना है एक दिन नित्य लीला प्रविष्ट होना है भगवान की लीला में प्रवेश करना है जिसमें प्रातः कालीन भी कुछ लीलाए है या हो सकता है माखन चोरी आप ग्वाल बाल बनकर कृष्ण के साथ माखन चोरी के लिए आपको जाना होगा।
Very good reason
वैसे हमारा अभ्यास नहीं होगा प्रात काल में उठने का तो ऐसे गोलोक में एडमिशन भी नहीं होने वाला है, गोलोक में बैकुंठ में वृंदावन में प्रवेश भी नहीं होगा, जाओ भीड़ जाओ और सोते रहो। प्रातः काल में सोने वालों जागो। जो मंगला आरती में गीत यहां गाया जाता है
विभावरी शेष, आलोक-प्रवेश,
निद्रा छाड़ि’ उठ जीव।
बल’ हरि हरि, मुकुन्द मुरारी,
राम कृष्ण हयग्रीव॥1॥
रात्रि का अन्त हो चुका है तथा सूर्योदय हो रहा है। सोती हुई जीवात्माओं, जागो! तथा श्रीहरि के नामों का जप करो। वे मुक्तिदाता हैं तथा मुर नामक असुर को मारनेवाले हैं। वे ही भगवान् बलराम, भगवान् कृष्ण तथा हयग्रीव (भगवान् का अश्व ग्रीवा धारण किया हुआ अवतार) है।
तो ऐसी शुरुआत होती है सुबह आरती की और पता नहीं हम समझते हैं या नहीं समझते जो पहली पंक्ति है उसमें ही कहा है विभावरी शेष आलोक प्रदेश | क्या हुआ है? विभावरी शेष रात्रि समाप्त हो रही है, विभावरी शेष शेष मतलब समापन विभावरी शेष, आलोक प्रवेश आलोक मतलब प्रकाश प्रकाश का प्रवेश हो रहा है या होने वाला है। सूर्योदय होने ही वाला है, अंधेरा या रात्रि समाप्त होने वाली है, प्रकाश आ रहा है, निद्रा छाड़ी उठ जीव, हे जीव निद्रा को त्यागो और उठो और क्या करो?
फिर हरि हरि बोलो
Uttisthatā jāgrata prāpya varān nibhodata
[Kaṭha Upaniṣad 1.3.14]
यह भी उपदेश है, उत्तिष्ठ वेद वाणी उत्तिष्ठ जाग्रत और समझो भी कि यह मनुष्य देह प्राप्त हुआ है, यह वरदान मिला हुआ है, हे जीव दुर्लभ मानव मानव जन्म कैसा है? दुर्लभ है |
भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन,
अभय चरणारविन्द रे।
दुर्लभ मानव-जनम सत्संगे,
तरह ए भव सिन्धु रे॥1॥
हे मन, तुम केवल नन्दनंदन के अभयप्रदानकारी चरणारविंद का भजन करो। इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर संत जनों के संग द्वारा भवसागर तर जाओ!
From Bhajahu re mana bhajan by Govinda Das Kaviraja
इसलिए क्या करो? जन्म सत्संग में बिताओ। यह प्रातः काल में उठने के संबंध में बात या विचार हुआ |
और कुछ दिन पहले हम एक मॉर्निंग वॉक में गए | श्रील प्रभुपाद भी मॉर्निंग वॉक में जाया करते थे वृंदावन में ही, मैं भी उनके साथ जाया करता था। तो जब हम गए कुछ दिन पहले मॉर्निंग वॉक में तो हम एक रामताल नामक स्थान पर गए, वृंदावन में ब्रज विकास संस्थान बड़ा सक्रिय है तो उन्होंने उस स्थान को अन्वेषण करके, खोज कर उसे निकाला और उसका विकास किया और वह स्थान है शोभरी मुनि की तपस्या स्थली। बाद में पढ़िएगा वहां के कुछ शिलालेख जानकारी फोटोग्राफ। तो इसी स्थान पर शोभरी मुनि तपस्या किए तो हम स्मरण कर रहे थे तो शोभरी मुनि का स्मरण किया और उन्होंने गरुड़ वैष्णव के चरणों में किए हुए अपराधों का भी स्मरण किया, वैसे यह तपस्या स्थली है बाद में तपस्या किए यहां पर, पहले तो वह गए जो कालिया रेत जो है कालिया दह, वहा पहले तपस्या करते थे, ध्यान करते थे | पूरी लीला प्रारंभ हो रही है जो कहने के लिए अब समय नहीं है | तो वहां एक समय गरुड़ आएं और दो चार मछलियां खाई और चले गए तदुपरांत उन सारी मछलियों ने एक सभा बुलाई एक यूनियन की स्थापना हुई और गरुड़ मुर्दाबाद | उसका नेतृत्व यह शोभरी मुनि ही कर रहे थे उन्होंने भी हां में हां मिलाई और शोभरी मुनि ने श्राप भी दिया तुम इस स्थान पर नहीं आ सकते, इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि शोभरी मुनि के मन में काम वासनाए जगी और यही होता है अपराध का फल विशेषकर वैष्णव अपराध का परिणाम दुष्परिणाम ही होता है | वह शोभरी मूनी के ऊपर वे प्रभावित हुए और उनकी काम वासना इतनी प्रबल हुई कि अपने ध्यान भावना छोड़कर वृंदावन भी छोड़ दिया, वृंदावन से उनको बाहर कर दिया, you are not fit to stay in Vrindavan, वृंदावन में रहने के लिए तुम योग्य नहीं हो, वृंदावन में अपराध करते हो वैष्णव अपराध | हम तो वृंदावन में नहीं है सोलापुर में है तो सोलापुर में अपराध कर सकते हैं, ऐसी बात नहीं है कहीं भी नहीं करना चाहिए वृंदावन में तो करना ही नहीं चाहिए तो सोलापुर नागपुर कानपुर में भी या उदयपुर यह सारे पूर है वहा भी वैष्णव अपराध नहीं करने चाहिये, करोगे तो क्या होगा या क्या हुआ शोभरी मुनि के साथ। यह सब हम वहां रामताल जहां हम गए थे मॉर्निंग वॉक में यह सारी बातें स्मरण हो रही थी तो सोचा कि आपको स्मरण दिलाएं दिला दे यह वैष्णव अपराध। और आज का जो दिन है यह संकल्प का दिन है यहां थोड़ी देर में समय बिताना चाहता हूँ और मैं आपको बताना चाहता हूँ कि आज एकादशी के दिन आप कैसे कैसे संकल्प ले मैं कहते रहता हूँ, वैसे भक्ति विनोद ठाकुर कहते थे उनका रिकमेंडेशन हुआ करता था कि एकादशी के दिन वैष्णव को पिछले दो सप्ताह में हमारा जो परफॉर्मेंस रहा, हमारी साधना सेवा रही, वह कैसी रही, इसका परीक्षण निरीक्षण संस्कृत में कहा जा सकता है यह करने का दिन यह एकादशी का दिन है | तो आप क्या क्या मैं आपको एक टॉपिक दे रहा हूँ कि और थोड़ा समय भी दे रहा हूँ कि आप मे से कुछ भक्त आप कह भी सकते हो कि यह आप क्या-क्या संकल्प लेना चाह रहे हो। क्या स्वीकार करना चाहते हो कि यह गलती हुई,यह अपराध हुआ, यह कसूर कभी यह अभाव, यह माया का ऐसा प्रभाव रहा, मैं इससे बचना चाहता हूँ, आने वाले दो सप्ताह अगली एकादशी तक यहां पर सुधार वहां पर सुधार या कहीं निधी या निषेध होते हैं does और donts होते है does को मैं और करूंगा इस विधि को मैं और करूंगा या अधिक जप करूंगा या अधिक अध्ययन करूंगा यह भी संकल्प है। और निषेध है यह अपराध नहीं करूंगा या मंगला आरती के समय नहीं सोऊंगा या ज्यादा नहीं खाऊंगा, कई सारी बातें हैं | आप जानते यह संसार जो सुख दुख का मेला है। इसके पहले मैं एक और बात कहना चाहता था यह मैंने पुनः कल सुनी या मैंने पहली बार सुनी |
राधारमण भगवान की जय
वृंदावन के राधा रमण
यह भी नोट किया मैंने कि लगभग चार सौ पांच सौ वर्ष पूर्व वृंदावन में जो मुसलमानों के हमले हुआ करते थे और इसके कारण कई सारे वृंदावन के विग्रह को स्थानांतरित किया, जयपुर, करोली, नाथद्वारा, यहां कानपुर के पास हरिदेव गोवर्धन के हरिदेव कानपुर के पास एक स्थान पर पहुंचाया गया, इस प्रकार कई सारे विग्रहो को स्थानांतरित किया गया था किंतु राधारमण तो यही रहे, उनको यही सुरक्षित रखा गया, राधारमण विग्रह का स्थानांतरण करने की आवश्यकता नहीं रही |
राधारमण की जय |
राधारमण तो पहले शीला थे आप यह जानते हैं और हमारे षट गोस्वामी वृंदो में से एक गोपाल भट्ट गोस्वामी वे गंडकी नदी से शिलाए ले आए उनकी आराधना करते थे | फिर एक दिन की बात है कोई धनी दानी व्यक्ति कई सारे मंदिरों में गए जहां गोड़िय वैष्णव या गोस्वामी वृंद उन विग्रहों की आराधना करते थे अलग-अलग राधा गोविंद, राधा दामोदर, राधा मदन मोहन इत्यादि | तो उन्होंने विग्रहो की आराधना के लिए कई साज श्रृंगार अलंकार मुकुट मुरली इत्यादि दान में दिए ये सब। और वे गोपाल भट्ट गोस्वामी के पास भी आए और उनको उन्होंने एक सेट दे दिया वस्त्रों का और अलंकार मुरली | उसको स्वीकार तो किया लेकिन गोपाल भट्ट गोस्वामी सोच रहे थे कि मेरे विग्रह भी अगर राधा गोविंद जैसे होते मेरे विग्रह भी यदि राधा मदन मोहन जैसे होते या मेरे विग्रह भी यदि राधा गोपीनाथ जैसे होते तो मैं भी यह जो सारा साज सिंगार मुझे प्राप्त हुआ है मैं भी श्रृंगार करता |
श्री-विग्रहाराधन-नित्य-नाना-
शृङ्गार-तन्-मन्दिर-मार्जनादौ
युक्तस्य भक्तांश् च नियुञ्जतोऽपि
वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम्
श्रीगुरुदेव मन्दिर में श्रीश्रीराधा-कृष्ण के अर्चाविग्रहों के पूजन में रत रहते हैं तथा वे अपने शिष्यों को भी ऐसी पूजा में संलग्न करते हैं। वे सुन्दर सुन्दर वस्त्र तथा आभूषणों से श्रीविग्रहों का श्रृंगार करते हैं, उनके मन्दिर का मार्जन करते हैं तथा इसी प्रकार श्रीकृष्ण की अन्य अर्चनाएँ भी करते हैं। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ।
तो हुआ क्या यह दान देकर यह भेंट देकर वह दानी धनी व्यक्ति तो प्रस्थान किए और अगली सुबह जब गोपाल भट्ट गोस्वामी जगे और अपने विग्रह की आराधना का समय था, मंगला आरती का समय था भोर मे तो देखते हैं कि उनकी शीला ने रूप धारण किया है, त्रिभंग ललित हुए है, और उनका जो मुख मंडल है वह गोपीनाथ जैसा है, वक्षस्थल गोविंद जैसा है और उनका चरण कमल राधा मदन मोहन जैसे हैं | जहां तक मुझे याद है कुछ उल्टा-पुल्टा भी हो सकता है | लेकिन यह तीन विग्रह जो गोड़िय वैष्णव के यह तीन विशेष विग्रह है। सम्बन्ध विग्रह और फिर अभीदेय विग्रह और प्रयोजन विग्रह। तो इन तीन विग्रहों के समान राधा रमण का विग्रह ऐसा रूप धारण किए। कितनी अदभुत घटना है, अविस्मरणीय घटना है। और मैंने फिर कल इस बात को सुना, पहली बार मैंने इस बात को सुना कि भगवान की आराधना के अंतर्गत भोग भी होते हैं और रसोई भी बनती है तो गोपाल भट्ट गोस्वामी में साढे चार सौ पाँच सौ वर्ष पूर्व एक समय मंत्र उच्चारण के साथ अग्नि को प्रज्वलित किया रसोई घर में और रसोई बनी और वह अग्नि प्रज्वलित रही बिना बुझे जब तक गोपाल भट्ट गोस्वामी थे और आज तक वही ज्वाला जिसको गोपाल भट्ट गोस्वामी ने मंत्रों उच्चारण द्वारा प्रज्वलित किया था, दियासलाई से नहीं, उसी अग्नि से पिछले 500 वर्षों से राधारमण जी की रसोई बन रही है, वहां गैस वगैरह नहीं है, बस चूल्हा है और लकड़ी आदि का ही उपयोग होता है और वहां अखंड ज्योति अखंड ज्वाला जल रही है, राधारमण जी के लिए भोग बन रहे हैं।
राधारमण जी और गोपाल भट्ट गोस्वामी की जय।
बस मैं आपको बताना चाहता था कल जो मैंने यह बातें सुनी राधा रमण जी के संबंध में।
मैं सुनना चाहता हूँ | मैं ही नहीं आप सबको सुनाइए कि आप क्या करोगे |
पिछले एकादशी को मैं उदयपुर में था नोएडा मे भी था और आज वृंदावन मे हूँ। आप जहां भी थे वैसे आप तो कहीं आते-जाते नहीं। यह नहीं कहूंगा अभी आपको दुख होगा। हमें अपना स्थान छोड़ना भी चाहिए, हम इतने आशक्त हैं इसलिए हम घर को नहीं छोड़ते हमारे गांव को नहीं छोड़ते | छोड़ना चाहिए, धाम यात्रा में जाना चाहिए, सत्संग में जाना चाहिए, नाथद्वारा जाना चाहिए, पास में ही तो है या बिठूर जाना चाहिए कानपुर के पास ही है या जहां ध्रुव महाराज का जन्म हुआ | हम बड़े ही भाग्यवान है इस देश के वासी जहां कई सारे तीर्थ हैं या फिर पदयात्रा में जा सकते हैं एक दिन पदयात्रा में निकल सकते हैं, या ग्रन्थ वितरण के लिए जा सकते हैं इस प्रकार हम घर को भी छोड़ सकते हैं अगर आपने घर को नहीं छोड़ा, छोड़ना तो चाहिए था तो आप इसमें सुधार करोगे। अच्छा कहो मैं सुनना चाहता हूँ आपके क्या-क्या निरीक्षण रहे पिछले दो सप्ताह के और उसमें आप कैसे सुधार करना चाहोगे आपको केवल एक मिनट में कहना है,
ये brainstorming है दिल खोल के सारी की सारी बातें कहने का समय नही है |