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हरे कृष्ण! जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 18 मार्च 2021 आज 741 स्थानों सें अभिभावक जप चर्चा में उपस्थित हैं। सूनो! *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद।* *जयाव्दैत-चन्द्र जय गौर-भक्त-वृंद।।* अब आप कि बारि है। कहो! *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद।* *जयाव्दैत-चन्द्र जय गौर-भक्त-वृंद।।* यहा भागवत कथा होती है तो हम *ओम् नमो भगवते वासुदेवाय* प्रारंभ में कहकर प्रणाम करते हैं। चैतन्य चरितामृत या चैतन्य कथा के प्रारंभ में *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद।* *जयाव्दैत-चन्द्र जय गौर-भक्त-वृंद।।* ये प्रार्थना हम करते हैं। वैसे कृष्णदास कविराज गोस्वामी भी सभी अध्यायों के प्रारंभ में चैतन्य चरित्रामृत में यह मंत्र लिखा हैं। *जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद।* और *जयाव्दैत-चन्द्र जय,* और *गौर-भक्त-वृंद।।* भी कहना हैं, याद रखिये गा! हरिनाम चिंतामणी! याद रखिए थोड़ा सरल, मधुर, बजरंगी तो जानते हैं। वह पंडित हैं। हरि हरि! आप तैयार हो! आप कौन हो? आप आत्मा हो? हां कि नहीं, तो फिर क्या आप कि आत्मा तैयार हैं, श्रवण के लिए। क्यूँ नहीं होगी। तैयार करो!, मन को मत सूनो!, चैतन्य महाप्रभु को सूनो!, या मन को विघ्न मत डालने दो! चैतन्य कथा,कृष्ण कथा या कृष्ण नाम और हम (आत्मा) के बीच में यह चंचल मन आ जाता है इसका चांचल्य चलते ही रहता है और इसीके साथ शाँर्टसर्किट होता है पावरहाउस से जो पावर हमको, हमको मतलब हमारी आत्मा को मिलनी चाहिए। वो पावरहाउस तो श्री कृष्ण, श्री कृष्ण चैतन्य है, श्री राम हैं। शक्ति के स्त्रौत भगवान हैं। ऐसे शक्ति को प्राप्त करेंगे तो हम शक्तिमान होंगे, भक्ति के शक्ति से युक्त होंगे, शक्तिमान होंगे। कलि-कालेर धर्म ---कृष्ण-नाम-सड़्कीर्तन। कृष्ण- शक्ति विना नहे तार प्रवर्तन।। (श्रीचैतन्य चरितामृत अन्त्य लीला 7.11) अनुवाद: - कलयुग में मूलभूत धार्मिक प्रणाली कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन करने की है। कृष्ण द्वारा शक्ति प्राप्त किए बिना संकीर्तन आंदोलन का प्रसार कोई नहीं कर सकता। कृष्ण- शक्ति विना नहे तार प्रवर्तन।। कृष्ण के शक्ति बीना, कृष्ण शक्ति बीना हम आप कि पहलवानी आपके मसल्स, मसल पावर का यहां ज्यादा उपयोग नहीं हैं। ऐसी शक्ति को प्राप्त करना है, कृष्ण शक्ति को प्राप्त करना है, तो ध्यानपूर्वक श्रवण करना होगा। नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।। (श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.107) अनुवाद:-कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी बस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।। सिद्धांत है यह। हमको याद होना चाहिए। *नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय।* *श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।।* कृष्ण प्रेम तो जीव के पास है ही जीव तो कृष्ण प्रेमी है ही किंतु आच्छादित हुआ है, भूले हैं। जीव का कृष्ण के प्रति जो प्रेम है वह हम भूले हैं। हम उस प्रेम को जागृत करते हैं। *नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम 'साध्य" कभु नय।* अलग से प्राप्त करने कि जरूरत नहीं हैं। जीव को कृष्ण प्रेम, भागवत प्रेम प्राप्त है। बस आवश्यकता किस बात कि हैं। *श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।।* श्रवण करने से, उस चीत्य में कृष्ण प्रेम उदित होगा। हम अनुभव करेंगे कृष्ण प्रेम का। माया काम मायवी काम के स्थान पर कृष्ण प्रेम कि स्थापना होगी। यह करने के लिए, यह करते समय हमें *सावधान!* *साधु सावधान!* मन की ओर ध्यान दो! मन की चंचलता को रोको! बुद्धि का उपयोग करो! दिमाग लगाओ लड़ाओ ताकि चंचल मन स्थिर हो क्या उसको लगाओ हरि कीर्तन में ,या हरि कथा श्रवण में लगाओ। हरि हरि! हम कुछ दिनों से भागवत कथा गौर लीला या चैतन्य महाप्रभु का भ्रमण कि लीला, कथा संक्षिप्त में सुन ही रहे हैं। *गौर पूर्णिमा महोत्सव कि जय...!* और गौर पूर्णिमा महोत्सव के उपलक्ष में हम कर रहे हैं। हरि हरि! गौरपौर्णिमा भी पास में आ रही है तो हम भी *गौरांग! गौरांग! गौरांग!* नित्यानंद के पास हम अधिक अधिक निकट पहुंचना चाहते हैं। गौरपूर्णिमा कि तिथि पास में आ रही है और हम भी हम मतलब जीव को भी हम गौरांग महाप्रभु के अधिक निकटतम पहुंचाना चाहते हैं। मायापुर में भी मायापुर महोत्सव संपन्न हो रहा हैं और नवद्वीप मंडल परिक्रमा भी जारी हैं। आज कई सारे भक्त थोडे़ तो मैंने देखे भी नवद्वीप मंडल परिक्रमा में भक्त परिक्रमा कर रहे हैं और परिक्रमा करते करते इस जपा टौक में भी संमिलित हुए हैं। संभावना है कि जपाटौक को भी सुन रहे हैं।वे हैं नवद्वीप में लेकिन योगदान दे रहे हैं, जुड़े है इस जपाटौक के साथ। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने दक्षिण और मध्य भारत कि यात्रा भ्रमण करके श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथपुरी लौटे, मध्य लीला कि बातें हम कर रहे थें, मध्य लीला के अंतर्गत वैसे केवल भ्रमण कि ही लीलाएं नहीं हैं। छ: सालों तक चैतन्य महाप्रभु ने अधिकतर भ्रमण किया हैं किंतु हर वक्त भ्रमण करके लौटे तो जगन्नाथपुरी में भी रुके रहे और वहा भी लीला संपन्न हुई जब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु दक्षिण और मध्य भारत से लौटे तो वे रहे जगन्नाथ पुरी में ,रथ यात्रा उत्सव में सम्मिलित होते रहे इत्यादि इत्यादि। जगन्नाथ का दर्शन करना और कीर्तन करते हुए हरिदास ठाकुर तक पहुंचना इत्यादि कई सारी लीलाएं *जगन्नाथ पुरी धाम कि जय...!* जगन्नाथ पुरी मैं संपन्न होती थीं, किंतु श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के मन में, चैतन्य महाप्रभु का मन है मेरो मन वृंदावन वह कहते थे मेरो मन ही वृंदावन है या मेरे मन में वृंदावन हैं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कि एक इच्छा अभितक वह पूरी नहीं हुई थी,बहुत समय से ऐसी इच्छा थी और वह थी वह वृंदावन जाना चाहते थें। *वृंदावन धाम कि जय...!* वृंदावन धाम कि यात्रा करना चाहते थें वैसे गया में ईश्वर पुरी से दीक्षा प्राप्त करते ही महाप्रभु वृंदावन कि तरफ दौड़ने गए। उनको रोका गया, नवदीप लाया गया फिर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कि सन्यास दीक्षा हुई दीक्षा के तुरंत उपरांत उन्होंने अपना लक्ष्य बनाया। *वृंदावन धाम कि जय...!* वृंदावन को अपना गंतव्य स्थान बनाकर वृंदावन जाना चाहते थें।सन्यास लिया मुक्त हुए। भवबंधन में नहीं रहे,तो जीव कहा जाएगा? भव बंधन नहीं रहेंगे तो जीव सीधा भगवत धाम लौटेगा, वृंदावन लौटेगा, नवद्वीप लौटेगा। उसमें भी शची माता ने रोकथाम लगाई। नहीं नहीं तुम जगन्नाथपुरी में रहो! हां ऐसा ही हो मैय्या।जगन्नाथ पुरी में रहना प्रारंभ किया था,और जगन्नाथ पुरी मे उनका परिभ्रमण हो ही रहा था। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।। (श्रीमद्भगवद्गीता 4.8) अनुवाद :-भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ | धर्म संस्थापन के लिए नगर आदि ग्रामों में भी जा रहे थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु अबकी बार प्रचार से लोटे थें पुनः उनके मन में यह विचार आया भूले तो नहीं थें। क्या विचार? क्या ईच्छा?मैं वृंदावन जाना चाहता हूंँ। इस बात का पता जब चला राजा प्रताप रूद्र को चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी त्याग कर, छोड़ कर जाने के विचार में है तो राजा प्रताप रूद्र ने...हरी हरी! रामानंद राय से कहा या स्वरूप दामोदर से भी कहा होगा। ऐसा कुछ उपाय करो या ऐसी कुछ बात करो ताकि श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वृंदावन जाने का विचार छोड़ देंगें। वैसे प्रयास तो हुए राय रामानंद कि ओर से उन्होंने कहा था चैतन्य महाप्रभु को नहीं नहीं! अभी क्यों जा रहे हो?अब रथ यात्रा होगी! जगन्नाथ रथ यात्रा के उपरांत आप जाओ। चैतन्य महाप्रभु कुछ दिनों के लिए रुके रहे रथ यात्रा संपन्न हुई। अब जाना चाहते थे फिर उनके भक्त कहने लगे इस वक्त तो वृंदावन में बहुत थंड भी होती है कभी-कभी झीरो डिग्री तक टेंपरेचर पहुंच जाता हैं आप डोल यात्रा के बाद, गौर पोर्णिमा,फागुन पूर्णिमा के बाद जा सकते हो! डोल यात्रा भी हुई और-और बहाने वह कह देते और इस प्रकार रोके चैतन्य महाप्रभु को कुछ समय के लिए किंतु उनकी इच्छा वृंदावन जाने कि थी उसमें कोई परिवर्तन होना संभव ही नहीं था। वह तो स्वाभाविक आकर्षण था वृंदावन से, एक तो वे स्वयं कृष्ण हि है तो कहा रहेंगे गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवीमहेशहरिधामसु तेषु तेषु। ते ते प्रभावनिचया विहिताश्च येन गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।। (ब्रम्ह संहिता 5.43) अनुवाद: -जिन्होंने गोलोक नामक अपने सर्वोपरि धाम में रहते हुए उसके नीचे स्थित क्रमशः वैकुंठ लोक (हरीधाम), महेश लोक तथा देवीलोक नामक विभिन्न धामों में विभिन्न स्वामियों को यथा योग्य अधिकार प्रदान किया है, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूंँ। गोलोक में रहेंगे। वृंदावन में रहने वाले श्रीकृष्ण तो वृंदावन में ही लौटना चाहेंगे। वृंदावन में ही अपना निवास चाहेंगे। या फिर वे भक्त हैं। गौरभक्त! गौरांग महाप्रभु कृष्ण भक्त बने है तो भक्तों को भी पसंद होता है धाम। धाम कि यात्रा, धाम का वास, ब्रजवास। वे जाना चाहते थे तो फिर कौन रोक सकता है? राजा प्रताप रुद्र ने राजा जो थे उन्होंने सारी एडवांस में एडवांस पार्टी(अग्रीम दल) को भेजा सब स्थानों पर कम से कम सारे उड़ीसा में एक मार्ग बनाकर वे आगे बढ़ेंगे और राजा प्रताप रूद्र ने आदेश दिया कि जहाँ-जहांँ पड़ाव होगा श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का वहां उनके लिए नया घर, नया निवास स्थान का निर्माण होना चाहिए और उनकी पाकशाला, रसोई कि व्यवस्था के स्थान नये होने चाहिए। स्टोरेज(भंडारण) साग,सब्जी मसाले इत्यादि भंडारण किए जाएंगे उसके लिए अलग से भंडारगृह बनने चाहिए, और बनाना प्रारंभ हुआ राजा प्रताप रुद्र के आदेशानुसार तो श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पुरी से प्रस्थान कर दिए और पुनः वही हाल पूरी के निवासी साथ में जाना चाहते थे तो उनको रोका गया। कई भक्त साथ में जा रहे हैं या जाना चाहते हैं, उस में गदाधर पंडित जरूर जाना चाहते हैं। चैतन्य महाप्रभु कहां जा रहे हैं? चैतन्य महाप्रभु वृंदावन के लिए प्रस्थान कर रहे हैं। ऐसा लिखा तो नहीं है लेकिन गदाधर पंडित भी अगर वृंदावन जाना चाहते थे तो उनका क्या कसूर हैं? गदाधर पंडित राधारानी ही हैं। वृंदावन जाना चाहेगी। राधारानी कहाँ रहेगी? राधा तो वृंदावन में रहेगी।वृंदावन जा रहे है महाप्रभु तो गदाधर भी साथ में जाना चाहते है, किंतु चैतन्य महाप्रभु नहीं चाहते थें। वैसे चैतन्य महाप्रभु चाहते थे कि उनके साथ कोई भी नहीं जाए। गदाधर पंडित को भी नहीं जाना चाहिए। चैतन्य महाप्रभु ने वैसे गदाधर पंडित को जगन्नाथ पुरी के क्षेत्र सन्यासी बनाया था। ऐसा उनको व्रत संकल्प करवाया था। जगन्नाथ पुरी को कैसे छोड़ सकते हैं और टोटागोपिनाथ कि आराधना तो उन्हीं कि जिम्मेदारी थीं। चैतन्य महाप्रभु नहीं चाहते थे लेकिन स्वरूप दामोदर चाहते थें। नहीं-नहीं! मैं तो जाऊंगा ही आपके साथ। कटक तक वो अलग से गए गदाधर पंडित तो चैतन्य महाप्रभु ने उनको बुलाया और साफ आदेश दिया कि यहां से आगे नहीं जा सकते चैतन्य महाप्रभु नौका में नदी को पार कर रहे थे नौका आगे बढ़ रही थी गदाधर पंडित को वही रोक आ गया रुक जाओ बेचारे गदाधर पंडित जगन्नाथपुरी को नहीं छोड़ना !चैतन्य महाप्रभु कह रहे थे चैतन्य महाप्रभु को वह कह रहे थे कि आप जहां पर भी हो वहीं जगन्नाथपुरी है पर चैतन्य महाप्रभु ने नहीं मानी तो गदाधर पंडित बेहोश होकर गिरने लगे रोने लगे क्रंदन करने लगे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़े उन्होंने कहा वृन्दावन तो जाना है पर कैसे जाऊंगा? बंगाल होते हुए ,मैं वृंदावन जाऊंगा तो उड़ीसा से बंगाल में प्रवेश करेंगे फिर बंगाल में कई स्थानों पर जाना है और वहां पर सच्ची माता से भी मिलना है और भक्तों से मिलेंगे और बंगाल से सीधा वृंदावन जाऊंगा ऐसी प्लानिंग थी ऐसा विचार या दृष्टिकोण था, चैतन्य महाप्रभु का । तो उड़ीसा से जैसे चैतन्य महाप्रभु जा रहे हैं कटक से भद्रक से रेमुना की ओर रेमुना में जहां क्षीर चोर गोपीनाथ वैसे उसी मार्ग पर वह चल रहे हैं जहां पर चैतन्य महाप्रभु सन्यास लेने के बाद काटवा और शांतिपुर से जगन्नाथपुरी आए थे उसी मार्ग से उल्टी दिशा में अब बंगाल जा रहे हैं ।सभी स्थानों पर चैतन्य महाप्रभु का भव्य सत्कार ,सम्मान हो रहा है और चैतन्य महाप्रभु पहले की तरह ,जैसे दक्षिण भारत में संकीर्तन होते रहे ,ऐसे कीर्तन हो रहे हैं और हजारों ,लाखों ,करोड़ों की संख्या में भक्त एकत्रित होते और उन सभी को चैतन्य महाप्रभु संकीर्तन में जोड़ते। आबादी बहुत थी उस समय भी लोगों की और लोग दूर-दूर स्थानों से नगरों से ग्रामों से चैतन्य महाप्रभु के कीर्तन में सम्मिलित हुआ करते थे ।हरि हरि। रेमुना से फिर रामानंद राय को लौटना पड़ा जगन्नाथ पुरी। वहां से चैतन्य महाप्रभु आगे बढ़ते हैं तो राय रामानंद आंसू बहा रहे हैं। विरह से व्यथित हैं।वैसे सभी जाना चाहते हैं महाप्रभु के साथ सभी रहना चाहते हैं। महाप्रभु के साथ हमें छोड़ के मुझे छोड़ के बाकी सब लोग तो चाहते थे। हम नहीं चाहते हैं बाकी लोग तो चाहते थे कि सदैव रहे चैतन्य महाप्रभु के साथ ।यह हमारा दुर्दैव है। यह जब ये लीला कथा का जब श्रवण करते हैं तो देखो औरों की कैसी दशा हो रही है ?और भी आगे वर्णन है ।जब गदाधर पंडित को जग्गनाथ पूरी लौटने को कहा और रेमुना से रामानंद राय को लौटना पड़ा रहा है,उनका क्या हाल हुआ।आगे बढ़ते हैं तो ओरिसा और बंगाल का बॉडर आ गया और वहां से अब महापात्र नाम के एक अफसर चल रहे थे।जो सारा संचालन कर रहे थे।सारि व्यवस्था को देख रहे थे।ओड़ीसा मैं सारि आवास निवास की व्यवस्था का संचालन करने वाले महापात्र को लौटना पड़ा रहा है तोह उनके लिए भी मुश्किल हो रहा है चैतन्य महाप्रभु का अंग संग छोड़ कर उन्हें वापस जाना होगा।महापात्र को भी ओड़ीसा बंगाल के बॉर्डर से लौटना था तो चैतन्य महाप्रभु अब बंगाल में प्रवेश करने जा रहे हैं तो उनके निवास की व्यवस्था उस गवर्नर को करनी होगी।और ये गवर्नर मुस्लिम थे और वह बदमाश भी थे। हिंसक भी थे ।ऐसी उनकी कु ख्याति तो थी। किंतु जब उन्होंने श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के आगमन के बारे में सुना और सुना कि उनका क्या उनका व्यक्तित्व, उनका सौंदर्य और उनसे कैसे लोग आकृष्ट होते हैं। कैसे प्रेम करते हैं ,यह बात जब उस मुस्लिम गवर्नर ने सुनी तो वह भी श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को मिलने के लिए बहुत उतकंठित हुए ।तो उन्होंने महापात्र से संपर्क किया ताकि गवर्नर को अपॉइंटमेंट मिल जाए ।महाप्रभु से मिलने के लिए तो उन्होंने कहा। हां हां। चैतन्य महाप्रभु तैयार थे। गवर्नर साहब आ गए। आपके जो भी पांच सात ऑफिसर्स हैं, आप उनको ले आना।साथ मे कुछ हथियार मत लाना। ऐसी शर्त रखी थी। और मुस्लिम गवर्नर ने चैतन्य महाप्रभु को देखते ही साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और पास में आकर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के चरणों में बैठे हैं और वार्तालाप हो रहा है और गवर्नर ने कहा।प्रभु आपका बंगाल मे स्वागत है। और आपकी यात्रा निर्विघ्न रहेगी यह सी जिम्मेदारी मेरी है ऐसा मुस्लिम गवर्नर कह रहे हैं ।वैसे तो भगवान के लिए क्या फर्क पड़ता है। हम लोगो ने किसी ने स्वयं को हिंदू बना लिया या मुस्लिम बना लिया ।हमने ऐसी उपाधियां दे दी है। लेकिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ,सभी जीव उन्हीं के हैं भगवद गीता 15.7 ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः | मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति || ७ || इस बद्ध जगत् में सारे जीव मेरे शाश्र्वत अंश हैं । बद्ध जीवन के कारण वे छहों इन्द्रियों के घोर संघर्ष कर रहे हैं, जिसमें मन भी सम्मिलित है । परिचय संबंध हर जीव का भगवान के साथ है । श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने अपनी कृपा ,प्रेम की दृष्टि की वृष्टि की है इस मुस्लिम गवर्नर पर। ऐसा नहीं कहा कि यह हिंदू नहीं है ।ऐसा भगवान क्यों सोचेंगे ?तो यहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के कई सारे व्यवहार और विचार या आदान-प्रदान से चैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता का भी प्रदर्शन स्पष्ट है। वह घोषित तो नहीं कर रहे हैं कि मैं भगवान हूं । साईं बाबा भगवान या यह भगवान, रजनीश भगवान ,या कल्कि भगवान।कल्कि का अवतार हो गया। उनको ही पता नहीं है कि कब अवतार होना चाहिए था। एडवांस में आ गए । कल्कि भगवान चल रहे हैं आजकल। कल्कि भगवान को तो कलियुग के अंत में आना था यह भविष्यवाणी है। तो कल्कि भगवान को यही पता नहीं कि कब प्रकट होना चाहिए था, अनाड़ी, मूर्ख और ठग और कई सारे भगवान गलियों में घूमते फिरते रहते हैं। लेकिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वह रियल थे ।वह भगवान थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय। ऐसे भक्तों रूप में ही वे रहना चाहते हैं, भक्ति करना चाहते हैं ।भक्ति का आस्वादन करना चाहते हैं। भक्त होने का अनुभव करना चाहते हैं। उनको भगवान होने का अनुभव तो है ही लेकिन अब भक्त बनकर भगवान को समझेंगे या भक्ति का आस्वादन करेंगे इसीलिए राधा भाव में ।राधा भगवान की आदि भक्ता है। भगवद गीता 7.7 मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव || ७ || हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है | कृष्ण ने कहा मेरे समकक्ष और मुझ से ऊपर या ऊंचा और कोई भगवान या भगवत तत्व है ही नहीं ।मैं सर्वोपरि हूं ।जहां तक भगवत्ता की बात है ।तो वैसे ही भगवान षड ऐश्वर्या पूर्ण हुए भगवान और फिर भक्त ।राधा रानी भक्त हैं राधा रानी के संबंध में भी कहा जा सकता है भगवद गीता 7.7 मत्तः परतरं नान्यत्किञ्चिदस्ति धनञ्जय | मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव || ७ || हे धनञ्जय! मुझसे श्रेष्ठ कोई सत्य नहीं है | जिस प्रकार मोती धागे में गुँथे रहते हैं, उसी प्रकार सब कुछ मुझ पर ही आश्रित है | राधा से कोई ऊंचा भक्त है नहीं ।तो कृष्ण भक्त बने हैं ।कौन से भक्त बने हैं ? चैतन्य चरितामृत आदि लीला 1.5 राधा कृष्ण - प्रणय - विकृति दिनी शक्तिरस्माद् एकात्मानावपि भुवि पुरा देह - भेदं गतौ तौ । चैतन्याख्यं प्रकटमधुना तद्वयं चैक्यमाप्तं ब - द्युति - सुवलितं नौमि कृष्ण - स्वरूपम् ॥५५ ॥ राधा - भाव अनुवाद " श्री राधा और कृष्ण के प्रेम - व्यापार भगवान् की अन्तरंगा ह्लादिनी शक्ति की दिव्य अभिव्यक्तियाँ हैं । यद्यपि राधा तथा कृष्ण अपने स्वरूपों में एक हैं , किन्तु उन्होंने अपने आपको शाश्वत रूप से पृथक् कर लिया है । अब ये दोनों दिव्य स्वरूप पुनः श्रीकृष्ण चैतन्य के रूप में संयुक्त हुए हैं । मैं उनको नमस्कार करता हूँ , क्योंकि वे स्वयं कृष्ण होकर भी श्रीमती राधारानी के भाव तथा अंगकान्ति को लेकर प्रकट हुए हैं । " राधा का भाव ,राधा की कांति ,राधा का रंग भगवान ने अपनाया है। और उसी भाव में ,भक्ति भाव में ,श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भ्रमण कर रहे हैं प्रचार कर रहे हैं ।सन्यास भी लिया तो भगवान तो नहीं सन्यास लेते हैं। तो भगवान पहले तो भक्त बने हैं। पंचतत्वात्मकम कृष्णम भक्तरूप स्वरूपकं,भक्तावतरं भक्ताख्यम,नमामि भक्तशक्तिकम भक्त रूप बने हैं। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने फिर सन्यास लिया है। और फिर प्रचार कर रहे हैं सन्यासी भक्त बन के । इस परिभ्रमण मे ऐसी कई घटनाएं हैं, कई व्यवहार हैं ,जिनसे यह उद्देश्य तो नहीं है कि चैतन्य महाप्रभु की भगवत्ता का प्रकाशन हो किंतु टाल भी नहीं सकते हैं। वह स्पष्ट हो ही जाता है।की *श्री कृष्ण चैतन्य राधा कृष्ण नहीं अन्य* किसी कृष्ण चैतन्य महाप्रभु स्वयं भगवान हैं ।गौर भगवान हैं ।नहीं तो यह मुस्लिम गवर्नर वैसे अच्छा व्यक्ति नहीं था ,पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के गौरवगाथा ही उसने सुनी थी तो प्रभावित हुआ। उसकी चेतना में अंतर आया। और चैतन्य महाप्रभु का दर्शन, और उनसे मिलन चाहता था और आया भी है। भगवद गीता 18.65 “मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु | मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे || ६५ ||” अनुवाद सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रियमित्र हो | और सेवा के लिए उत्कंठित है ।तत्पर है ।मैं तैयार हूं ।बस आप आदेश कीजिए ।तो यह जो क्रांति है ऐसी विचारों की क्रांति ,भावों की क्रांति है गवर्नर में ,या तथाकथित मुस्लिम तो यह तो भगवान ही कर सकते हैं, ऐसा परिवर्तन ऐसी क्रांति ।जैसे झारखंड के जंगल में पशुओं को पक्षियों को नचाने वाले कीर्तन में। तो कई मनुष्य को पशु से कुछ कम नहीं होते। या उन से बत्तर होते हैं । आहार निद्रा भय मैथुनं च सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेष: धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥ आहार, निद्रा, भय और मैथुन – ये तो मनुष्य (इंसान) और पशु में समान है । मानव (इंसान) में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है । पर देखो चैतन्य महाप्रभु का प्रभाव ऐसे पशु वत ।जैसे चैतन्य चरित्रामृत में लिखा है ।यहाँ तक उन्होंने कहा इस मुस्लिम गवर्नर ने कहा कि अभागा मैं। जैसे प्रभोदनंद सरस्वती ने कहा कि, वंचितोस्मि,वंचितोस्मि, वंचितोस्मि मुझे ठगाया गया था ।मुझे ठगाया गया था । विश्वे गौर रस मग्नम जब गौड़ीय जगत गौर रस में गोते लगा रहा था उस प्रेम के सागर में गोते लगा रहा था पर उस अमृत की एक बूंद भी मेरी ओर नहीं आई मुझे स्पष्ट नहीं किया ।यह विचार ऐसे ही विचार गवर्नर भी कह रहे हैं ।कैसा मेरा जन्म मैं पतित हूं। या मेरा जन्म मुस्लिम परिवार में हुआ या, कहते हैं चांडाल। ऐसा हो शोक भी कर रहे हैं तो वह वैसे ही मुक्त हो गए ऐसे विचारों से। चैतन्य महाप्रभु के परिकर बन गए। चैतन्य महाप्रभु का सानिध्य दर्शन और सेवा प्राप्त हुई। कुछ ही घंटों में या मिनटों में क्षणों में। तो यह सब श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु का प्रताप रहा पराक्रम रहा उद्यम है। हरे कृष्ण

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