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हरे कृष्ण, जप चर्चा, पंढरपुर धाम से 14 फरवरी 2021 आज हमारे साथ 634 स्थानों से भक्त जप कर रहे है। आप सभी का इस जपा टॉक में स्वागत है! ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम:।। मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम् । यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्दमाधवम् ॥ यह आप कभी सुने हो? तो गुरु कि कृपा से कठिन काम आसान हो जाते है। दुष्करम् सुकरं भवेत् यानी कठिन कार्य सुकर यानी आसान या सरल हो जाता है। पंगुं लंघयते गिरिम् यानी अगर वह लंगड़ा भी है वैसे तो शिष्य लंगड़े ही होते है, लेकिन अगर गुरु कृपा होगी तो हम पर्वत को भी लांग सकते है, पार कर सकते हैं। वाचालं यानी कोई गूंगा है वह वाचाल बन सकता है। मूकं करोति वाचालं मराठी में गूंगे को मुका बोलते है, जो बोल नहीं सकता है लेकिन अगर गुरु कृ कृपा हो जाती है तो वह वाचाल बनेगा बोलता रहेगा, खूब बोलता रहेगा। श्रील प्रभुपाद की जय! गुरु परंपरा के आचार्य की जय! तो हमारे परंपरा के प्रथम आचार्य तो ब्रह्मा है तो ब्रह्मा कहें और लिखें, गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देवि महेशहरिधामसु तेषु तेषु ब्रह्मसंहिता ५.३३ तो यह ब्रह्मसंहिता ब्रह्मदेव की रचना है और उसमें वे लिखते हैं कि, क्या लिखे हैं? अच्छा है अभी तो हम पूरा भाषा नहीं सुनाएंगे। गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य यानी गोलोक धाम की जय! गोलोक धाम यानी जहां पर भगवान श्री कृष्ण निवास करते है। और उसके नीचे है देवी धाम, सारे ब्रह्मांड। तो दुर्गा देवी के यह धाम है, तो उसे देवी धाम बोलते है। और देवी धाम के ऊपर है शिवजी यानी महेश का धाम, और उसके ऊपर है हरि का धाम या वैकुंठधाम, और वैकुंठ धाम से परे है साकेत धाम यानी अयोध्या धाम, और अयोध्या से भी परे है श्रीकृष्ण का धाम गोलोक धाम! और उसके ऊपर कुछ नहीं है। यह जो साक्षात्कार की बात लिखी है ब्रह्मा जी। आप कैसे कह सकते है कि भगवान ने अर्जुन को सारे विश्वरूप का दर्शन दिया कुरुक्षेत्र के मैदान में तो वैसे ही ब्रह्मा को भगवान ने विश्वरूप का दर्शन दिया यानी देवी धाम ही यह जगत नहीं है उसमें आध्यात्मिक धाम भी आता है। प्राकृत विश्व को भी दिखाएं और इसे ब्रह्मा देख रहे है और उसे देखते-देखते ब्रह्मा जी लिख रहे है। गोलोकनाम्नि निजधाम्नि तले च तस्य देखो देखो! गोलोक है और उसके नीचे यह धाम है, वह धाम है तो ऐसा दर्शन वैसे ब्रह्मसंहिता दर्शन ही है। ब्रह्मसंहिता यानी जो ब्रह्मा ने दर्शन किया या जो उन्होंने देखा या अनुभव की हुई बातें उन्होंने लिखी हुई है। और इस प्रकार हमें भगवान के पूरे सृष्टि का अवलोकन कराए है, दिखाए है। तो एक समय था जब आखरी बार कृष्ण धरातल पर थे और फिर द्वारिका में थे तब ब्रह्मा उनको मिलने के लिए आते है, तो द्वार पर उन्हें पूछा जाता है और वह बताते हैं कि, मै भगवान से मिलना चाहता हूं! तो द्वारपाल कहते हैं कि, आपके पास इसकी अनुमति नहीं है तो द्वारकाधीश से हम अनुमति लेकर आते है। तो वह द्वारपाल द्वारकाधीश के पास गए और कहे कि, एक व्यक्ति आए है, जिनका नाम वह ब्रह्मा बोलते है और आपसे मिलना चाहते है। द्वारपाल जाकर ब्रह्मा जी से कहने लगा हा हा! आप मिल सकते है लेकिन, पहले यह बताइए आप कौन से ब्रह्मा हो! तो ब्रह्मा जी कहने लगे कौन से ब्रह्मा? आप ऐसा कैसे पूछ सकते हो? ब्रह्मांड में और कितने सारे ब्रह्मा है? मैं तो समझता हूं कि मैं अकेला ब्रह्मा हूं! यह कैसा प्रश्न है? तो अब व पूछ रहे हैं तो उन्हें बताइए कि मैं चतुर्मुखी ब्रह्मा हूं जो चार कुमारो का पिता हूं! नारद जी मेरे एक मानस पुत्र है। तो द्वारपाल ने द्वारकाधीश से जाकर बताया कि कौन से ब्रह्मा आए हैं, और फिर जब ब्रह्मा उस कक्ष में या महेल में पधारे जहां श्री कृष्ण या द्वारकाधीश उस समय पर थे। तो फिर वहां पर उनका स्वागत हुआ। ब्रह्मा जी आए, बैठे और आगे वार्तालाप होने से पहले ब्रह्मा जी ने पहला प्रश्न पूछा कि, आपने यह क्या पूछा कि कौन सा ब्रह्मा आया है मैं इसको कुछ समझा नहीं! यह प्रश्न बड़ा संभ्रमित करने वाला था। कृपया इसका स्पष्टीकरण दीजिए! तो उस समय द्वारकाधीश ने उस लीला में उसका कह के उत्तर नहीं दिया क्योंकि, वह प्रत्यक्ष दिखाना चाहते थे। तो थोड़ी देर में एक व्यक्ति आय उनके 5 सिर थे उन्होंने द्वारकाधीश को साष्टांग दंडवत प्रणाम किया और भगवान को उनको बोले पधारिए! और थोड़ी देर बाद और एक व्यक्ति आय जिनके 6 मुख थे और फिर उनका भी स्वागत हुआ। और ऐसे करते-करते फिर 50 मुख वाले, 100 मुख वाले, 1000 मुख वाले, 100000 मुख वाले और फिर लाखों मुख वाले और फिर 100000 से ऊपर भी 100001,100002,100003 ऐसे सिर वाले यह सब आकर अपने अपने स्थान ग्रहण कर रहे थे। और द्वारकाधीश के योग माया की व्यवस्था से जो लाखों-करोड़ों व्यक्ति आ रहे थे, और यह सारे ब्रह्मा ही थे! तो उनके लिए बैठने की व्यवस्था के लिए उस कक्ष्य या महल का विस्तार होता गया। और हमारे चतुर्मुख ब्रह्मा अचरज के साथ सर्वत्र देख रहे थे और सारे ब्रह्मा उनका स्वागत हो रहा था। और उन सभी के मध्य में ब्रह्मा को लगा कि, मैं छोटा सा खरगोश, चूहा, बिल्ली या छोटा सा मच्छर हूं! और इतने सारे ब्रह्मा के मध्य में वह सोचने लगे इतने सारे ब्रह्मा है या इतने सारे ब्रह्मांड है, और इतने सारे ब्रह्मांड के एक एक ब्रह्मा है, और यह चतुर्मुखी ब्रह्मा जो सबसे छोटा ब्रह्मांड है इसीलिए इनके केवल चार सिर है! और बाकी ब्रह्मांड का आकार बड़ा है इसलिए उनके अधिक से अधिक सिर है! तो ब्रह्मा जी को साक्षात्कार हुआ कि, हां हां! कई सारे ब्रम्हांड होने चाहिए, जहां के यह सारे ब्रह्मा पधार चुके है। तो वह कहने लगे कि, क्षमा कीजिए, क्षमस्व! मैं आपका आभारी हूं,ऋणी हूं प्रभु!कि आपने मेरे अज्ञान को हटाया ॐ अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । कृष्णम वंदे जगतगुरु! तो भगवान ब्रह्मा को इस प्रकार का ज्ञान दिए और दर्शन कराए। हरि हरि। वैसे ब्रह्मा के गुरु तो भगवान ही बन जाते है। जब ब्रह्मांड में कोई नहीं था तब भगवान ही थे, जो भगवान आदि गुरु थे और ब्रह्मा जी आदि शिष्य थे। और जगतगुरु थे श्री कृष्ण! तो जब जब होता है, क्या होता है? यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। जब जब इस पृथ्वी पर धर्म की ग्लानि होती है या ब्रह्मांड में धर्म की ग्लानि होती है तो तदात्मानं सृजाम्यहम् मैं प्रगट होता हूं तो जब-जब धर्म का नाश होता है यह देवता भगवान के पास पहुंच जाते है। और भगवान को विशेष निवेदन करते है। तो प्रायः वे जाते है, श्वेतदीप या जिसे क्षीरसागर बोला जाता है। जो दूध का सागर है, इसीलिए श्वेत यानी सफेद वर्ण का है इसलिए श्वेतदीप कर कहते है। या क्षीरोदक्ष्यायी विष्णु का वह स्थान है। वैसे तीन विष्णु है, कारणोंदक्ष्यायी, गर्भोदक्ष्यायी और क्षीरोदक्ष्यायी! यह तीनों भी जहां पर विश्राम करते है, या अपने योग निद्रा में लेटे रहते है इसीलिए वहां का जल जो जल नहीं है दूध ही है। क्षीरोदक्ष्यायी मतलब सोने वाले विश्राम करने वाले भगवान। वहां पर देता देवता प्राय: पहुंचते हैं। यह श्रीमद भागवत के दशम स्कंध के प्रथम अध्याय में ऐसा वर्णन हम करते हैं। 5000 वर्ष पूर्व जब धर्म की ग्लानि हुई। पृथ्वी माता रोती हुई गई, ऐसा हो रहा वैसा हो रहा है। हरि हरि। तो सभी को लेकर फिर ब्रह्मा जिसमें पृथ्वी माता भी थी और सारे देवता भी थे और ब्रह्मा उस दल का नेतृत्व कर रहे थे। वह गए हैं श्वेत द्वीप और वहां से उनका ताररहित संपर्क होता है।मध्य में द्वीप है, जहां पर भगवान निवास करते हैं। उसी तट पर सभी देवता और पृथ्वी माता भी पहुंची है। ब्रह्मा पृथ्वी माता की ओर से निवेदन प्रस्तुत करते हैं। भगवान कहते हैं मैं आऊंगा जल्दी ही। आप आगे बढ़िए और देवताओं आप भी ब्रजमंडल में प्रकट हुए। ऐसा लिखा है एक समय की बात है जब धर्म की ग्लानि हुई ही थी और भगवान के प्राकट्य के लिए सभी देवताओं को भगवान से निवेदन करना था। श्वेत द्वीप नहीं जाना चाहते थे वे सीधा गोलोक जाकर श्री कृष्ण से मिलना चाहते थे। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। सीधा उनके चरणों में अपना निवेदन प्रस्तुत करना चाहते थे। सभी देवता यात्रा पर निकल पड़े। इस बार भी ब्रह्मा नेतृत्व कर रहे हैं। इस देवी धाम में जो ब्रह्माण्ड है और उनको जाना है देवताओं का गंतव्य स्थान निर्धारित किया हम गोलोक जाएंगे और सीधा कृष्ण को ही निवेदन करेंगे। ऐसा वर्णन गोपाल चंपू में जीव गोस्वामी की यह रचना है। देवताओं की गोलोक की यात्रा। इस ब्रह्माण्ड के बाहर भी तो निकलना होगा।यह स्त्री भुवन और फिर स्वर्ग, पाताल ब्रह्माण्ड के अंदर है। देवता भी इस ब्रह्माण्ड में हैं। ब्रह्माण्ड के बाहर जाना है। तो कैसे जाए? जाए तो जाए कैसे? कैसे जाए? प्रभुपाद कहते हैं यह ब्रह्माण्ड तरबूज या फुटबॉल के समान है। हम सभी यात्री भुवन या 14 भुवन के सभी जन सभी योनियां उस फुटबॉल के अंदर है या तरबूज के अंदर है। इस तरबूज और फुटबॉल का ब्रह्मांड का आवरण है कहीं सारे हैं, बड़े मजबूत है। कैसे निकलेगे? फिर उनको पता चला एक रास्ता है। कौन सा रास्ता उनको याद आया? जब वामन भगवान अवतरित हुए थे और त्रिविक्रम बन गए थे। बलि महाराज के उस यज्ञ शाला में और तीन पग भूमि पर्याप्त है मेरे लिए। एक पग से तो पूरी पृथ्वी को घेर लिया। दूसरे पग से सारे लोक को घेर लिया। अब भगवान के चरण ब्रह्माण्ड का जो अंदर वाला भाग है वहां हल्का सा स्पर्श होने से ब्रह्माण्ड में छेद हुआ और वहां सुरंग बन गया। इसी के साथ सारे ब्रह्माण्ड वैसे तैरते रहते हैं। दूसरा जल है कारणोदकशायी का या महा विष्णु के श्री अंग से जल उत्पन्न होता है। उसी जल में सारे ब्रह्माण्ड तैरते हैं। भगवान त्रीविक्रम के चरण के स्पर्श से जो छेद हुआ था। तो बाहर का जल उस सुरंग में से अंदर आकर बहने लगा। पाद नखनीर जनितजनपावन गंगा मैया की जय। गंगा एक समय गंगा नहीं थी इस ब्रह्मांड में। वामन के बने त्रिविक्रम और भगवान के नाखून से ही जनितजनपावन और भगवान के चरणों को इस जल ने स्पर्श किया और फिर जल बहने लगा। गंगा इस ब्रह्माण्ड में फिर स्वर्ग में गंगा है गोमुख से फिर गंगासागर में गंगा बहती है और फिर पाताल में भी गंगा है। सर्वत्र उद्धार करती रहती है पावनी गंगा। बात यह है कि देवताओ को ब्रह्मांड से बाहर निकलना है तो उनको रास्ता मिल गया। जो छेद हुआ था। त्रिविक्रम भगवान के चरण के स्पर्श से छेद हुआ था और देवता बाहर जा रहे हैं। गंगा बहती हुई ब्रह्मांड में प्रवेश कर रही है और उसी गंगा के तट पर चल रहे हैं। ब्रह्मा और अन्य देवता और जब उसको पार करके जब बाहर आए और देखने लगे सर्वत्र तो क्या कहना, तो क्या दिखाई दिया होगा? उन्होंने सारे अनंत कोटी ब्रह्माण्ड देखे, उस कारण उदक में जो कारण कारणम जो कारण बनता है। उस कारण जल में कई सारे ब्रह्मांड तैर रहे थे। तो इस प्रकार भगवान यहां पर ब्रह्मा और अन्य देवता को दर्शन दे रहे हैं। व्यवहारिक प्रदर्शन हो रहा हैं। द्वारका में ब्रह्मा ने अलग-अलग ब्रह्माओ को देखा था। 10 मुख वाले, 100 मुख वाले, हजार मुख वाले। लेकिन यहां अब भगवान को दिखा रहे हैं। क्या दिखा रहे हैं? इन ब्रह्मांडो से द्वारका में पधारे हुए ब्रह्मा आए थे। यह बड़ी अचरज की बात, ब्रह्मा और देवताओं ने सारे ब्रह्माण्ड ही ब्रह्माण्ड देखे। हम क्या कहते हैं अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक, भगवान कैसे हैं? अनंत कोटि ब्रह्मांडो के नायक है। उन ब्रह्मांडो के बीच में से मोड़ लेते हुए, ब्रह्मा उनको टालते हुए बीच में जो अन्तरिक्ष है। इंटर मॉलिक्यूलर स्पेस जैसे होता है। अणु के बीच में जो जगह होती है, उसे मॉलिक्यूलर स्पेस कहते हैं।ब्रह्मांड के बीच में जो जगह थी वहां से आगे बढ़ रहे हैं ब्रह्मा और उनके साथ देवता और फिर उस स्थान पर वह पहुंचे हैं। अब यहां बॉर्डर है विर्जा नदी कहलाती है। भगवान की जो भौतिक सृष्टि है प्राकृतिक जगत और अप्राकृतिक जगत या वैकुंठ जगत उसके बीच में एक नदी है। इसको विर्जा कहते हैं। विर्जा को भी पार किए हैं। ब्रह्मज्योति को देख रहे हैं, देखना मुश्किल है। आगे बढ़ रहे हैं उनको गोलोक पहुंचना है तो कोहरे जैसा कहो वैसा अंधेरा तो नहीं था। लेकिन वहां इतना प्रकाश था। अंधेरा है तो हम नहीं देख सकते और प्रकाश भी बहुत ज्यादा है तो भी हम लोग नहीं देख सकते। तो ब्रह्मज्योति का इतना प्रकाश होता है, व्यक्ति अंधा ही बन जाता है। उसको भगवान का रूप का दर्शन नहीं होता। केवल ब्रह्मज्योति ही देखता है, एक प्रकार से अंधा होता है। तो यह देवता आगे बढ़े हैं। ब्रह्मज्योति को पार किए है। फिर वैकुंठ लोक देखते हैं पहले तो उन्होंने ब्रह्माण्ड देखे थे। फिर विर्जा नदी को पार किया और ब्रह्मज्योति में आध्यात्मिक आकाश है। यह भौतिक आकाश में पृथ्वी जल वायु आकाश अग्नि है। यहां भी आकाश है। लेकिन एक आध्यात्मिक आकाश भी है। आध्यात्मिक आकाश में कहीं सारे वैकुंठ लोक हैं। वहां से भी आगे बढ़े है। साकेत रास्ते में आया।अयोध्या धाम वहां से भी आगे बढ़े। फिर गोलोक पहुंचे और गोलोक में वृंदावन स्थान, चिंतामणि धाम और वहां राधा कृष्ण विराजमान थे। एक जमुना का पद्मा में वह विराजमान थे। तट भी था और जमुना जल। हरि हरि। तो ब्रह्मा और देवता ने साक्षात दंडवत प्रणाम किया है। सभी ने भगवान की स्तुति की है। सूत उवाच यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै- र्वेदै: साङ्गपदक्रमोपनिषदैर्गायन्ति यं सामगा: । ध्यानावस्थिततद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो यस्यान्तं न विदु: सुरासुरगणा देवाय तस्मै नम: ॥ १ ॥ (श्रीमद् भागवत 12.13.1) ऐसे हैं भगवान, तस्मै नम: ऐसे भगवान को बारंबार प्रणाम है। तो फिर आगे इस उद्देश्य से ब्रह्मा और देवता आए थे। फिर उन्होंने अपना निवेदन प्रस्तुत किया है। इस प्रकार ब्रह्मा और देवताओं की यात्रा सफल हुई है। हरि हरि। आप की भी यात्रा सफल हो। आपको भी जाना है एक समय की नहीं? जीना या मरना यही है , छोड़कर जाना कहां। ऐसा तो नहीं है ना? आपको थोड़ा रास्ता दिखाया है। दुष्कर्म सुकर्म भवेत् भगवान नाम थोड़ा और आसान कर देते हैं। हम जब भक्ति करते हैं, भक्त बनते हैं। भगवान के शरण में जाते हैं। तो मेरी ओर आओगे, गीता में भगवान कहते हैं। मेरी ओर आओगे नहीं तो मैं तुम्हें मेरी ओर ले आऊंगा। ऐसी व्यवस्था करते हैं। भगवान कुछ क्षण में पहुंचा देंगे आपको उनके धाम में। समय हो गया इतना तो याद रखो। इसको अनुभव करो, चिंतन करो, मनन करो। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।

English

14 February 2021 Demigods witness the opulence of the Lord's creation Devotees are chanting from 635 locations. You are all welcome to chant and also to hear Katha. om ajnana-timirandhasya jnananjana-salakaya cakshur unmilitam yena tasmai sri-gurave namah Translation: I offer my respectful obeisances unto my spiritual master, who has opened my eyes, which were blinded by the darkness of ignorance, with the torchlight of knowledge. mūkaṁ karoti vācālaṁ paṅguṁ laṅghayate girim yat-kṛpā tam ahaṁ vande paramānanda-mādhavam Translation: “‘The Supreme Personality of Godhead has the form of sac-cid-ānanda-vigraha (BS 5.1)—transcendental bliss, knowledge and eternity. I offer my respectful obeisances unto Him, who turns the dumb into eloquent speakers and enables the lame to cross mountains. Such is the mercy of the Lord.’”[CC Madhya 17.80] Have you heard this prayer? By the mercy of the spiritual master, even the difficult targets becomes easy to achieve. kathañcana smṛte yasmin duṣkaraṁ sukaraṁ bhavet vismṛte viparītaṁ syāt śrī-caitanyaṁ namāmi tam Translation: Things that are very difficult to do become easy to execute if one somehow or other simply remembers Lord Caitanya Mahāprabhu. But if one does not remember Him, even easy things become very difficult. To this Lord Caitanya Mahāprabhu, I offer my respectful obeisances. [CC Adi 14.1] By the grace of the spiritual master, even a lame man can climb the mountain and a dumb person can start speaking. All glories to Srila Prabhupada! Brahma has composed in Brahma Samhita... goloka-nāmni nija-dhāmni tale ca tasya devī-maheśa-hari-dhāmasu teṣu teṣu te te prabhāva-nicayā vihitāś ca yena govindam ādi-puruṣaṁ tam ahaṁ bhajāmi Translation: "Below the planet named Goloka Vṛndāvana are the planets known as Devī-dhāma, Maheśa-dhāma and Hari-dhāma. These are opulent in different ways. They are managed by the Supreme Personality of Godhead, Govinda, the original Lord. I offer my obeisances unto Him."[ BS 05.43] All glories to Goloka Dhama! The topmost abode is Goloka where Lord Krsna stays. There is Devi-Dhama, the abode of Durga. Above this is the abode of Lord Shiva. Then Saket Dhama. Above that is Vaikuntha. And above that is Ayodhya Dhama. Finally above that is Goloka Dhama. Above that, there is nothing. This vision which Lord Brahma had, is described by him in Brahma Samhita. This is how he is giving us a tour of the whole creation. When Krsna was in Dvaraka, once Brahma came to see Him. He told the guards, “I want to meet Dwarakadhisa.” The guards stopped him and requested him to wait, till they ask the Lord for permission. The guards informed Krsna, “Brahma has come to see you.” In response, Dwarakadisha asked, "Which Brahma has come?” The guards came back to Brahma and asked him, "Dwarakadhisa is enquiring which Brahma has come?" Brahma was confused by this question, but still he replied, that the father of the Chatur Kumars has come. Then Dwarakadhisa said, "Let him come in.” Brahma was brought in. The very first question he asked Dwarakadhisa, "Why did you ask which Brahma has come? Are there any other Brahmas except me?” Dwarakadhisa remained silent and asked him to take his seat and then started a demonstration. Very soon a Brahma with 6 heads entered. Then a Brahma with 20 heads, 200 faced ,1000 and 100000 entered. Like that thousands of them filled the room. The room was further expanded by yoga Maya. Thus Brahma could understand that he is not the only one. There are innumerable Brahmas and innumerable universes and he felt as if he is just one small rabbit amongst so many others. There was a time when Brahma thought he was alone in the universe, but now through this demonstration, Krsna revealed another aspect of it. 5000 years ago when there was a threat to the religious principles the demigods including the Mother Earth under the leadership of Lord Brahma approached and prayed to Lord Visnu who told them that He will descend. yada yada hi dharmasya glanir bhavati bharata abhyutthanam adharmasya tadatmanam srjamy aham Translation: Whenever and wherever there is a decline in religious practice, O descendant of Bharata, and a predominant rise of irreligion—at that time I descend Myself. [BG 4.7] Usually they go to Sveta-dvipa. It is also called Ksirasagar [ ocean of milk]. That's why it is called Sveta-dvipa.. Ksirodakaśāyī Visnu stays here. There are 3 Visnus - Mahavisnu, Garbhodakśayī-Viṣṇu and Ksirodakaśāyī Visnu. The Lord takes rest in Ksirasagar. This happened 5000 years ago. There was another time when such a decline of religious principles had happened. This time they wanted to go directly to Goloka instead of Sveta-dvipa, again headed by Lord Brahma. This is explained in Gopal Champu in the chapter, "A visit of Demigods to Goloka.” These demigods were wondering how to go out of this material world. Srila Prabhupada has explained that this material world is like a watermelon and its coverings are very thick. Then they got this idea.They remembered when Lord Vamana transformed to Lord Trivikrama. At that time in just one foot the Lord covered the whole Earth planet and with His other foot He punctured a hole in the material creation and all the universes were floating on water in that portion, known as Karnojal( water). Through the hole which was created by the lotus feet of Lord Trivikrama the water flowed in this universe. chalayasi vikramane balim adbhuta-vamana pada-nakha-nira-janita-jana-pavana kesava dhrta-vamana-rupa jaya jagadisa hare Translation: O Kesava! O Lord of the universe! O Lord Hari, who have assumed the form of a dwarf-brahmana! All glories to You! O wonderful dwarf, by Your massive steps You deceive King Bali, and by the Ganges water that has emanated from the nails of Your lotus feet; You deliver all living beings within this world. [Sri Dasavatara stotra verse 5] That water is none other than Ganga, or Pavani Ganga. Ganga is flowing everywhere, in pataal, in svarga, and also in this universe. Brahma got this idea of how to get out of this universe. While going out he saw the complete Casual Ocean and all the innumerable universes floating in that ocean. Lord Krsna is the Hero of these universes. Brahma and company are going through the distances between these universes. Like there are molecular distances between two molecules, similarly there was a gap between these universes. After the Casual Ocean the demigods crossed Viraja River. Then they crossed over the Brahmajyoti which was full of effulgence. When there is darkness we can't see. Also when there is too much light then it is also difficult to see. The Brahmajyoti is full of effulgence. We can't see the Lord there. Then they saw the spiritual sky. There are so many Vaikunthas there. They crossed Saket Dhama, Vaikuntha then Ayodhya and then finally they reached Goloka. They saw Radha and Krsna sitting on the lotus. Then they offered their obeisances.... yaṁ brahmā varuṇendra-rudra-marutaḥ stunvanti divyaiḥ stavair vedaiḥ sāṅga-pada-kramopaniṣadair gāyanti yaṁ sāma-gāḥ dhyānāvasthita-tad-gatena manasā paśyanti yaṁ yogino yasyāntaṁ na viduḥ surāsura-gaṇā devāya tasmai namaḥ Translation: Sūta Gosvāmī said: Unto that personality whom Brahmā, Varuṇa, Indra, Rudra and the Maruts praise by chanting transcendental hymns and reciting the Vedas with all their corollaries, pada-kramas and Upaniṣads, to whom the chanters of the Sāma Veda always sing, whom the perfected yogīs see within their minds after fixing themselves in trance and absorbing themselves within Him, and whose limit can never be found by any demigod or demon—unto that Supreme Personality of Godhead I offer my humble obeisances.[ SB 12.13.1]. … and prayers to Lord Krsna and informed Krsna. In this way their yatra was successful. This is how we reach Krsna or Goloka. Do you want to go there? Or you just want to live and die here only? kathañcana smṛte yasmin duṣkaraṁ sukaraṁ bhavet vismṛte viparītaṁ syāt śrī-caitanyaṁ namāmi tam Translation: Things that are very difficult to do become easy to execute if one somehow or other simply remembers Lord Caitanya Mahāprabhu. But if one does not remember Him, even easy things become very difficult. To this Lord Caitanya Mahāprabhu I offer my respectful obeisances. Don't worry. Krsna will take you. Within a small period Krsna will pick you and take you back to His abode. Hear and chant His glories. If any of you want to share some realisation or have any comments, then you can share. Hare Krsna

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