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जप टॉक 28 sep 2019 हरे कृष्ण, आज 442 भक्त हमारे साथ जप कर रहे हैं, इनमें से महाराष्ट्र में यवतमाल मंदिर में लगभग 25 माताजी एकत्रित होकर एक साथ जप कर रही हैं इसलिए इससे हम बहुत ही प्रसन्न हैं। साथ ही साथ क्योंकि आज शनिवार है, तो ऑस्ट्रेलिया मेलबॉर्न में जो भक्त हैं, वे भी प्रभुपाद क्वार्टर में एकत्रित होकर वहां पर जप करते हैं तो जो भी भक्त इस में सम्मिलित हुए हैं आप सभी का आभार है। इसके साथ ही साथ लगभग 300 भक्त सच्चिदानंद प्रभु एक रिट्रीट कर रहे हैं गोवर्धन में वहां पर भी लोग एकत्रित हुए हैं और जप कर रहे हैं और उनका लक्ष्य आज 64 माला करना है और वे चाहते हैं कि कृष्ण के लिए रुदन करें। क्राय फॉर कृष्णा जो भक्त अभी गोवर्धन में जपा रिट्रीट कर रहे हैं उसका जो शीर्षक है वह है कृष्ण के लिए रुदन करना इस प्रकार से मेरे कई शिष्य एकत्रित होते हैं और मैं इससे प्रसन्न हूं और उन्हें उत्साहित भी करता हूं कि वे इस प्रकार की गोष्ठियों का आयोजन करें जहां सभी शिष्य एक साथ एकत्रित हो फिर वह चाहे मायापुर हो वृन्दावन हो, मॉरीशस हो, दक्षिण अफ्रीका हो या फिर और भी जगह जहां पर भी शिष्य हैं उन्हें एक साथ समूह बनाकर मिलना चाहिए और समय-समय पर आप इस प्रकार की इष्ट गोष्ठियाँ कर सकते हैं। फिर वे चाहे साप्ताहिक हो जहां आप सप्ताह में एक बार सभी आपस में मिले या मासिक हो कि महीने में एक बार मिलो। आप अपनी सुविधा अनुसार इस प्रकार से मिल सकते हैं और इसमें आप जप पर चर्चा कर सकते हैं इसके साथ ही साथ आप इस पर भी चर्चा कर सकते हैं कि किस प्रकार हम कृष्ण के लिए रुदन कर सकते हैं और कब वह दिन आएगा जब मैं कृष्ण को देखूंगा। कृष्ण आप कहां हैं तो आप किस प्रकार से कृष्ण के लिए रुदन कर सकते हैं। क्राई फॉर कृष्णा आप इस पर भी विचार कर सकते हैं चर्चा कर सकते हैं, यह जूम कॉन्फ्रेंस भी एक प्रकार से जपा रिट्रीट है । मैं यह सोच रहा था कि यह जो जूम कॉन्फ्रेंस है यह भी एक प्रकार से जपोत्सव है जहां हम सभी एक साथ एकत्रित होकर एक साथ बैठकर जप करते हैं और उसके साथ-साथ इससे हमने क्या समझा है इस पर हम चर्चा करते हैं आप भक्त अपने प्रश्न पूछते हैं और मैं उन प्रश्नों का उत्तर देता हूं तो इस प्रकार से जब भी आप भक्त आपस में इस प्रकार की इष्ट गोष्ठियों का आयोजन करते हैं तो आप अपने अनुभव यहां बता सकते हैं और निसंदेह कृष्ण के लिए जो रुदन है वह हरि नाम जप का परिणाम है और जब आपका जप अपराध मुक्त होगा जब शुद्ध नाम जप होगा जब प्रेम कीर्तन होगा अथवा प्रेम जब होगा तो उसका परिणाम यह होगा कि हमें ऑटोमेटिकली कृष्ण के लिए रुदन होगा अतः इस प्रकार आप भी इस प्रकार की रिट्रीट कर सकते हैं इसके लिए मैं आप सभी को प्रोत्साहित करता हूं कि आप जिस भी नगर शहर अथवा देश में हैं आप अपने गुरु भाइयों के साथ मिलकर के इस प्रकार की रिट्रीट का आयोजन कर सकते हैं और इन विषयों पर चर्चा कर सकते हैं ।यह जप करना रुदन है और जप ही प्रेम है वास्तव में और श्रील प्रभुपाद ने एक समय कहा है कि जप करते समय हमें एक बालक के समान रुदन करना चाहिए। यह वास्तव में हमारे जप का लक्ष्य है उसका परफेक्शन है उसकी सफलता है जब हम इस प्रकार से रुदन करते हुए जप करते हैं। मंत्र में परफेक्शन श्रद्धा से प्रारंभ होता है और इसका जो लक्ष्य है वह कृष्ण प्रेम है। जब हमें जप में श्रद्धा होती है, हमारा प्रारंभ श्रद्धा से होता है तत्पश्चात साधु संग फिर भजन क्रिया अनर्थ निवृत्ति, निष्ठा, रुचि, आसक्ति, भाव अंततः कृष्ण प्रेम की प्राप्ति होती है। अतः यह जो कृष्ण के लिए रुदन होता है वह भाव तथा कृष्ण प्रेम की स्थिति में जब हम होते हैं तब होता है। भगवान के लिए यह जो रुदन है जैसे कि ब्रह्म संहिता में ब्रह्मा जी कहते हैं [प्रेमाञ्जन छुरित भक्ति विलोचनेन संत सदैव ह्र्दयेषु विलोक्यन्ति। भगवान के दर्शन करना उस व्यक्ति के लिए संभव है जिस के नेत्रों में यह प्रेम रूपी आंसू हैं। यदि किसी भक्त के नेत्र प्रेम रूपी आंसुओं से भरे हुए हैं तो वह भगवान का दर्शन कर सकता है, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी कहते हैं "नयनं गलदश्रु धारया" यदि कोई भक्त इस स्थिति में है तो वह रुदन कर सकता है, वह कृष्ण के लिए आंसू बहा सकता है, तो यह मंत्र सिद्धि है जब हमारे मन की यह स्थिति हो जाती है और हमारे विचार जो हम सोचते हैं, हमारी फीलिंग और हमारी विलिंग जो हम चाहते हैं, सभी इस प्रकार से हो जाते हैं, तो भक्त कहते हैं कि फीलिंग लाइक क्राइंग कि मैं रुदन का अनुभव कर रहा हूं। जब आप इस स्थिति में होंगे तो वह स्वत ही हो जाता है। इस प्रकार से यह जो सफलता है, जो मंत्र सिद्धि है हम कृष्ण के लिए रुदन कर सकें यह एक रात में या 1 दिन में आपको प्राप्त नहीं हो सकती है। आप अचानक से उसी स्थिति में पहुंच गए कि आप कृष्ण के लिए रुदन कर सकें । इसके लिए आपको अभ्यास करना होगा और इसमें समय भी लगेगा तो जब आप भगवान के लिए स्वाभाविक रूप से तभी रुदन कर पाएंगे जब आप निरंतर इस हरे कृष्ण महामंत्र का जप कर रहे हो और इसके ध्यान पूर्वक जप के लिए जब प्रयास करते हैं। इसमें आपको समय लगेगा परंतु आपको प्रयास करते रहना है, आप को ध्यान पूर्वक जप करना है इसमें आपको समय लगेगा परंतु आपको प्रयास करते रहना है, आप को ध्यान पूर्वक पूर्वक जप करना है। इसमें आपको कभी सफलता मिल सकती है और कभी असफलता भी मिल सकती है परंतु यदि वह हताश न होकर निरंतर जप करता रहे तो इस जीवन काल में कभी ना कभी वह कृष्ण के लिए रुदन कर सकता है। कृष्ण के लिए रुदन करना यह अत्यंत ही गंभीर विषय है यह इतना आसान विषय नहीं है। जब कोई कृष्ण को प्रेम करता है जब आप भगवान से प्रेम करते हैं तब आप भगवान के लिए स्वाभाविक रूप से रुदन कर सकते हैं। यह प्रेम का लक्षण है जो अष्ट सात्विक विकार होते हैं उनमें से यह रुदन भी एक प्रकार का अष्ट सात्विक विकार है, ऐसा नहीं है कि केवल रुदन ही हो जैसा कि हमने बताया चैतन्य महाप्रभु कहते हैं नयनं गलदश्रु धारया तो यह एक प्रकार का विकार हुआ जहां नैनों में आंसू भर जाते हैं "वदनं गदगद रुदया गिरा" जहां गला अवरुद्ध हो जाता है हम बोल नहीं पाते। 😊 पुलकैर्निचितं वपुः कदा तव नाम-ग्रहणे भविष्यति॥6॥ हम गुर्वाष्टकम में गाते हैं महाप्रभो कीर्तन -नृत्य-गीत- वादित्र-माद्यन-मनसो रसेन रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरङ्ग-भाजो वन्दे गुरोः श्री-चरणारविन्दम् यह अष्ट सात्विक विकार है जहां शरीर में रोमांच होता है कंपन शुरू होता है । कृष्ण के लिए रुदन करना यह उनमें से एक लक्षण है। प्रेम का यह अत्यंत ही गंभीर और अत्यंत ही वृहद विषय है इस पर हम चर्चा कर सकते हैं। इसे हमें इतना हल्के और आसानी से नहीं लेना चाहिए, जो सहजिया होते हैं वे कृष्ण के लिए रोने का अभिनय आसानी से कर लेते हैं। वे इस रुदन को बहुत हल्के में लेते हैं और कहीं भी आसानी से आंसू बहा देते हैं। इस प्रकार से कृष्ण के लिए रुदन करना हमें इस प्रकार का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए जब हम कृष्ण भावनामृत में परिपक्व स्थिति में आ जाते हैं तब स्वाभाविक रुदन होता है और यदि हम परिपक्व स्थिति में नहीं हैं और हम आंसू बहाने का प्रदर्शन करें तो यह ठीक नहीं है। जैसे कि सहजिया उस स्थिति को प्राप्त किए बिना ही रुदन करने का प्रदर्शन करते हैं, जैसे की भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर कहते हैं दुष्कर मन तुम किसेर वैष्णव तो जब मन उसी स्थिति में नहीं है और वे इस प्रकार से रुदन करते हैं उसका लक्ष्य यह होता है कि जब मैं इस प्रकार रुदन करूंगा तो आसपास के जो भक्त हैं वह मुझे देखकर सोचेंगे अरे वाह यह तो कितना अच्छा भक्त है। यह भगवान के लिए रुदन कर रहा है तो कहते हैं इजी टू क्राय इज नॉट गुड वर्क, तो इस प्रकार से आंसू बहाना कोई अच्छा कार्य नहीं है हम इस जपा कॉन्फ्रेंस को यहीं विराम देते हैं मैं अभी नागपुर में हूं और यहां 8:00 बजे नागपुर मंदिर में भागवतम पर कक्षा देनी है। अभी मैं विचार कर रहा था कि हमें ईमानदार होना चाहिए। हमें आत्मनिरीक्षण करना चाहिए हम जिस स्थिति में हैं वहां से हमें उच्च स्थिति प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए जो कि श्रद्धा से प्रारंभ होती है तो अभी आप किस प्रकार रुदन कर सकते हैं कि हे प्रभु मेरे में अभी श्रद्धा नहीं हैं मैं आपके नाम का जप नहीं कर पा रहा हूं मेरे अंदर इतनी भी श्रद्धा नहीं है तो इस प्रकार आप ऐसा विचार करके रुदन कर सकते हैं। तत्पश्चात साधु-संग जो साधु संग की स्थिति में है वह इस प्रकार रुदन कर सकते हैं कि मुझे भक्तों का संग प्राप्त नहीं है। मेरे पति मुझे मंदिर नहीं जाने देते हैं मैं इतना अधिक व्यस्त हूं कि भक्तों से मिल नहीं पा रहा हूं हे प्रभु आप कृपा कीजिए ताकि मैं साधु संग की प्राप्ति कर सकूं, तो इस प्रकार आप रुदन कर सकते हैं। भजन क्रिया -उसके लिए आप रुदन कर सकते हैं कि मेरा जप ठीक से नहीं हो रहा है मुझे भजन में रुचि नहीं आ रही है मैं अपनी16 माला भी ठीक से नहीं कर पा रहा हूं, मेरे में यह अनर्थ है मेरे में वह अनर्थ है। हे प्रभु आप कृपा कीजिए जिससे कि मेरी नाम में रुचि उत्पन्न हो, जिससे मैं आपके नाम का जप ठीक प्रकार से कर सकूं अन्यथा तो मैं आया राम गया राम की स्थिति में अभी हूं तो इस प्रकार से इन सभी स्थितियों में आप भगवान से प्रार्थना करते हुए उनकी कृपा के लिए पूजन कर सकते हैं। चैतन्य महाप्रभु भी कहते हैं नानुराग मुझे इस हरि नाम में अनुराग उत्पन्न नहीं हो रहा है अर्थात रुचि उत्पन्न नहीं हो रही है जब मुझे स्वयं की इस स्थिति का पता चलता है तो इसी स्थिति में हम रुदन कर सकते हैं, इस प्रकार से हम भगवान से प्रार्थना करते हुए उनसे सहायता की याचना करते हुए रुदन कर सकते हैं। यह रुदन करना हमारी इमानदारी का लक्षण है कि हमें अपनी स्थिति का पता होता है और हम तब रुदन कर रहे हैं तो जैसे कि कहते हैं कि थिंक फर्स्ट, हमारा जो लक्ष्य है वह कृष्ण के लिए प्रेममयी आध्यात्मिक सेवा करना है तो वह श्रद्धा, साधु संग, अनर्थ निवृत्ति इस प्रकार से हम जिस भी स्थिति में हैं, हमें उससे उच्च स्थिति को प्राप्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए और अंततः कृष्ण प्रेम की प्राप्ति जो हमारा लक्ष्य है उसके लिए हमें प्रयासरत होना चाहिए। हमने जो कहा अभी आप उस पर चिंतन मनन कीजिए उसके पश्चात कल हम इस पर और चर्चा करेंगे। हरे कृष्ण

English

28 SEPTEMBER 2019 CRY FOR KRSNA!! We have 442 devotees chanting with us today. In Yavatmal in Maharashtra one Mataji is chanting with 25 other Matajis. I am very happy seeing this. Also this being Saturday devotees in Melbourne, Australia get together. I think they must have assembled in Prabhupada quarters in Australia so they are also with us. Also there is a special mention of the other devotees who have assembled in Vrindavan. Few hundred devotees have assembled in Sacidananda Prabhu's retreat. They are also chanting. They are going to chant 64 rounds today, that's their target. Then they will end up crying for Krisna, end up or during chanting? Let's see whether they can achieve that. Devotees have assembled in Govardhan for Japa retreat, they have termed it as 'Crying for Krsna'. I was thinking devotees should get together. I am encouraging gatherings of my disciples in Mayapur, Vrindavan, Mauritius, Melbourne , South Africa at various places. We have formed different groups basically consisting of my disciples. We have formed disciple care communication committees. They should get together not that they are not getting together now but those who are not coming together they should have such meetings. So you get together every month or week. This also could be the subject matter of discussion and that is chanting. Chanting should be the theme. Crying for Krsna. Devotees in Mauritius get together and they discuss 'How could we cry for Krsna'? Oh! When that day will be mine when I will cry for Krsna'. Where are you Krsna? This zoom conference that we have been conducting is also a Japa retreat, japotsava - festival of chanting. Whenever we get together you can discuss further what you have understood. As we get together and chant what you have, or haven’t understood or your realisations. You can raise some questions. You also raise certain questions here and I answer that. But during your meetings that should be the topic of discussion. Crying for Krsna should be as a result of the chanting. . Offense less chanting, pure chanting,suddha nama japa. ' prem-japa' or prem-kirtana. This is crying for Krsna. How to achieve that? We do discuss that to encourage the people on a regular basis whenever you get together with your counsellors or with the group of devotees or disciples or in your temple or in your town. There could be more discussion when you get together in your temple, in your country. Chanting is crying. Chanting is prem. Srila Prabhupada did mention that our chanting is crying. We should be crying like a baby. That's the goal or target. That's the perfection. That is ‘Mantra-siddhi' - perfection of chanting. What is perfection of chanting? We start chanting at the level of faith. Then we have to evolve from sraddha to prem. We have to evolve from sraddha to sadhusanga, bhajan kriya, anartha nivrutti, nistha, ruci, aasakti, bhava, and finally Krsna prem. Crying is going to happen at the level of bhava or prema. Crying-premnajana-cchurita-bhakti-vilocanena santah sadaiva hrdayez su vilokayanti yam syamasundaram acintya-guna-svarupam govindam adi-purusam tam aham bhajami "I worship the primeval Lord, Govinda, who is always seen by the devotee whose eyes are anointed with the pulp of love. He is seen in His eternal form of Syamasundara, situated within the heart of the devotee.” ( Brahma-samhita 5.38) This is the statement in the Brahma-samhita by Lord Brahma. Such darsana is possible for that person whose eyes are anointed or decorated with premanjan or tears of love. That is crying. The intensity with which it comes. There are torrents of tears. Caitanya Mahaprabhu had prem . nayanam galad asru dharaya vadanam gadgada rudhaya gira pulakair nicitam vapuh kada tava nam grahane bhavisyati Translation: O My Lord, when will my eyes be decorated with tears of love flowing consulantly when I chant Your holy name? When will my voice choke up, when will the hairs me my body stand on the end at the recitation of your name. (Siksastakam Verse 6) A person in that state of mind. Crying is state of our mind. When he is crying that is perfection. Crying is expression also of thinking, feeling, willing. I feel like crying. Sometimes you feel like crying. Such perfection is not going to be achieved overnight. Rome was not built in a day as they say. Practice makes a man perfect. The state of mind when you feel like crying is perfection and it is not going to be achieved without practice. It will take practice of chanting attentively day after day, months after months, years after years chanting and attentively making all the endeavours. Sometimes there will be success or failure. But with great patience we have to go on endeavouring, so one day or one of these lifetimes, we will be crying for Krsna. Crying for Krsna is not a cheap thing. Crying for Krsna is such a title, which means loving Krsna or praying to Krsna .We love Krsna. We love God. Crying is one thing or crying is one of the symptoms . There are 8 different symptoms - asta-sattvic vikara. Caitanya Mahaprabhu explained nayanam galad asru dharaya that's one - crying or shedding tears. vadanam gadgada rudhaya gira- , choking of voice, pulakair nicitam vapuh kada/ tava nam grahane bhavisyati - trembling of the body. Or Mahaprabhu Kirtana mahaprabhoh kirtana-nrtya-gita- vaditra-madyan-manaso rasena romanca -kampasru-taranga-bhajo vande guroh sri-caranaravindam Translation: Chanting the holy name, dancing in ecstasy, singing, and playing musical instruments, the spiritual master is always gladdened by the sankirtana movement of Lord Caitanya Mahaprabhu. Because he is relishing the mellows of pure devotion within his mind, sometimes his hair stands on end, he feels quivering in his body, and tears flow from his eyes like waves. I offer my respectful obeisances unto the lotus feet of such a spiritual master (Sri Gurvastakam Verse 2) We sing in Gurvastakam that there is romanca or hair standing on the ends. Why single out the crying? When am I going to cry or when am I I going to love. Love is again a big, very deep topic. We should not take it lightly. Sahajiyas are very expert in crying for Krsna. Sahajiyas are sahaj. They take crying for Krsna very cheaply. They do an exhibition of their crying. One should not be shedding tears immaturely. When we advance in Krishna consciousness , we attain a certain maturity in Krishna consciousness then there will be crying. Crying is a feeling, it's a state of mind in which we are expected to achieve love of God. Not like sahajiyas. It is said, 'Easy to cry and easy to dry.' One may do whole a exhibition of crying. One may feel I am such an exalted devotee now, with this symptom and that symptom. That is deceiving others, aie dusta mana tumi kiser vaisnav O wicked chanter , what kind of Vaisnav are you? Bhaktivinoda Thakur said like that. Sahajiyas feel others will be impressed by such crying. I have to stop as I have Bhagavatam class in Nagpur temple. We should be honest and do introspection, do atma-parikshan and find where we stand and try to go to the next higher level . Starting from sraddha. We should be crying - Oh! I don't have faith. Crying for not having faith. At the level of sadhu sanga one should have feelings that I am so busy, can't go to Sunday Festival. At the level of anartha nivritti means look at the state of my bhajan? I am not able to chant 16 rounds properly. I don't have attraction for chanting. One could also cry like this. That is also crying for Krsna. You should be crying - when can I chant my sixteen rounds properly? I am such an ayaram- gayaram . I have no attraction for chanting of the holy names of the Lord. Caitanya Mahaprabhu said, “I have no attachment for You Oh My Lord. I have no attraction for You.” Like that also one can cry. This is also crying for Krsna. Look at me, no faith, look at me I don't get any association, look at my and anarthas There are so many anarthas that I have. When will I get rid of them. This is also honest crying. You could be praying like that. You have to keep your goal in mind. You have to do first thing first. Sraddha is first then there could be sadhu sanga. Sadhu sang can be the first level for someone. Anartha nivritti, becoming free from anarthas can be first stage for you. For different folks it will be different depending on where you stand. You should be crying - how can I go higher so that ultimately I will have bhava, emotion, feeling, prema. Such crying will be more honest. There will be rolling on the ground. Ultimate objective is Premamayi service. Think contemplate on whatever we shared. See you tomorrow. Hare Krishna.

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