Hindi

जप करते समय भगवान के साथ आदान प्रदान कीजिये   मैं अभी पंढरपुर में हूँ। आज पापमोचनी एकादशी हैं अतः निरंतर जप तथा श्रवण करते रहिये। एक भक्त पूछ रहा था , "क्या हम हरिनाम पर ध्यान केंद्रित करें अथवा और कुछ सेवा करें। हरिनाम पर ध्यान किस प्रकार केंद्रित किया जाता हैं ?"  हमें जप करना चाहिए : हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस हरिनाम के माध्यम से हम भगवान का सम्बोधन करते हैं। जब हम कृष्ण कहते हैं तो हम हरिनाम का सम्बोधन करते हैं। कल मैं चैतन्य चरितामृत में कृष्ण दास कविराज गोस्वामी द्वारा वर्णित आध्यात्मिक सेवाओं के विषय में पढ़ रहा था। उनमे से एक विशेष बात जिसपर मेरा ध्यान आकृष्ट हुआ वह हैं : हमें भगवान के विग्रह तथा भगवान के समक्ष अपने ह्रदय को खोलना चाहिए। जैसा कि  हम कहते हैं : ददाति प्रतिगृह्णाति , गुह्यं अख्याति प्रछति। भुंक्ते भोजयते चैव षड विधिम प्रीति लक्षणं।। उपहार देना ,उपहार स्वीकार करना ,अपने मन की बात कहना , दूसरे के मन की बात सुनना ,प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद वितरण करना , ये प्रेम के छः लक्षण हैं , जिन्हे भक्त आपस में एक दूसरे के साथ करते हैं।    (उपदेशामृत श्लोक ४)   भगवान को अपना सुख - दुःख बताइये। रूप गोस्वामी ने इसका वर्णन किया हैं तथा कृष्णदास कविराज गोस्वामी ने पुनः इसको बताया हैं। वे बताते हैं कि हमें भगवान के श्री विग्रह के समक्ष अपने ह्रदय को खोलना चाहिए परन्तु श्री विग्रह तथा हरिनाम में कोई भेद नहीं हैं।   रूप तथा नाम अभिन्न हैं। इसलिए श्री विग्रह के समक्ष अपने ह्रदय की बात कहना अथवा हरिनाम के समक्ष कहना दोनों एक समान हैं। जब जब हम हरे , कृष्ण कहते हैं ये सभी सम्बोधन हैं , जिसके माध्यम से हम भगवान का आव्हान करते हैं। ओह राधे ! ओह कृष्ण ! इस प्रकार हम १६ बार भगवान का सम्बोधन करते हैं। जब हम ओह राधे ! ओह कृष्ण ! कहकर उनका सम्बोधन करते हैं तो राधा कृष्ण हमारे समक्ष प्रकट होते हैं। नाहं वसामी वैकुण्ठे , योगिनां हृदयं न च। मद भक्त यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारदः।। न तो मैं वैकुण्ठ में रहता हूँ और न ही योगियों के ह्रदय में। हे नारद ! जहां मेरे भक्त मेरे नामों तथा गुणों का गान करते हैं मैं वहीँ रहता हूँ। जहाँ मेरे भक्त जप तथा कीर्तन करते हैं , मैं वहीँ रहता हूँ।  वही मैं स्वयं को प्रकट करता हूँ। यह भगवान का वचन हैं। अतः भगवान वहां प्रकट हो गए हैं , वे अभी आपके समक्ष ही हैं। तत्पश्चात भगवान कहते हैं , " ओह ! तुम्हे  क्या चाहिए ? तुमने मुझे यहाँ क्यों बुलाया ? तुम्हारे मन में क्या हैं ? कृपया अपने हृदय की बात मुझे बताओ। " वे ऐसा भी कह सकते हैं , " क्या मैं आपकी कुछ सहायता कर सकता हूँ ?" तब आप अपने ह्रदय की बात उनके समक्ष प्रकट कर सकते हैं। मंच तैयार हो चूका हैं , आप भी वहीँ उपस्थित हैं तथा भगवान भी वहीं उपस्थित हैं। यह आपके तथा हरिनाम के रूप में भगवान के मध्य योग , आपस में आदान प्रदान तथा विनिमय करने का समय हैं। अतः किस प्रकार हम अपने ह्रदय को भगवान के समक्ष प्रकट कर सकते हैं ? इसके विषय में हमारे आचार्यों ने निर्देश दिए गए हैं। उन्होंने हरिनाम पर टिकायें भी दी हैं। भवबन्धनात मोचे। जब हम प्रथम बार हरे कहकर सम्बोधन करते हैं , तब श्रीमती राधारानी कहती हैं , " आपको क्या चाहिए ?" तब आप अपना मन तथा ह्रदय श्रीमति राधारानी के समक्ष प्रकट करते हैं। कृपया हमें इस भौतिक जगत के कष्टों से मुक्त कीजिये। तत्पश्चात हम कहते हैं : कृष्ण। गोपाल गुरु स्वामी कहते हैं : " स्वमाधुर्येन मत्तचित्तं आकर्षयः "हे भगवान ! आप अत्यंत मधुर हैं। आप अत्यंत आकर्षक हैं , कृपया मेरे मन को अपनी ओर आकर्षित कीजिये। इस प्रकार हम १६ बार इन्हे इस प्रकार से समझते हैं। इन सभी सोलह नामों में से प्रत्येक नाम पर अलग अलग टिका हैं। जब हम १ महामन्त्र बोलते हैं तो हम १६ बार राधा कृष्ण को सम्बोधित करते हैं : " सेवयोग्यं कुरुः " हम कहते हैं , " हे प्रभु ! कृपया मुझे आपकी सेवा के योग्य बनाइये। " श्रील प्रभुपाद सदैव हरिनाम पर टीका के इस वाक्य को दोहराते थे , " मैं आपका हूँ , कृपया मुझे अपनी सेवा में संलग्न कीजिये। " सेवा अधिकार दियो कर निज दासी , तुलसी महारानी को हम इस प्रकार प्रार्थना करते हैं। हम अपने आध्यात्मिक गुरु से भी प्रार्थना करते हैं कि हमें उनकी सेवा मिले। अथवा हम मंदिर अध्यक्ष से प्रार्थना करते हैं ," कृपया मुझे आपकी सेवा में संलग्न कीजिये। " तुलसी महारानी कृष्ण का प्रतिनिधित्व करती हैं , आध्यात्मिक गुरु भी कृष्ण का प्रतिधिनित्व करते हैं , इसी प्रकार हमारे जीबीसी , मंदिर अध्यक्ष , मैनेजर आदि हमारी परम्परा का प्रतिनिधिनित्व करते हैं। प्रभुपाद ने विशेष रूप से जीबीसी के विषय में कहा कि उनकी स्थिति आचार्य के समान हैं। इसलिए हम उनसे प्रार्थना कर सकते हैं जिससे वे हमें कुछ सेवा दे सकें। ललिता विशाखा आदि जत सखी वृन्द आज्ञाय क़रीबो सेवा चरणारविन्द। जब अन्य गोपियाँ तथा मंजरियाँ भगवान कृष्ण की सेवा करना चाहती हैं तो वे सीधा राधा - कृष्ण के पास नहीं जाती हैं , उन्हें ललिता विशाखा तथा इस प्रकार पुरे अनुक्रम के माध्यम से जाना होता हैं। वहां गोपियों की अध्यक्षा युवतेश्वरी नियुक्त रहती हैं। गोपियों के दल को युवतेश्वरी कहा जाता हैं। इसलिए हमें उनके माध्यम से जाना होता हैं। हमारी प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए , " हे भगवान ! कृपया मुझे आपकी सेवा में संलग्न कीजिये। " यह उचित प्रकार हैं जिसके माध्यम से हम भगवान के समक्ष अपने मन तथा ह्रदय को प्रकट करते हैं तथा प्रार्थना करते हैं ," कृपया मुझे अपनी सेवा में संलग्न कीजिये। " यह एक माध्यम हुआ। प्रभुपाद अपनी टीका में एक स्थान पर लिखते हैं , " सेवा योग्यं कुरुः " हे राधे , हे कृष्ण कृपया मुझे आपकी सेवा के योग्य बनाइये। इस प्रकार सभी सोलह नामों पर जीव गोस्वामी तथा अन्य आचार्यों की टिकाएं हैं। 'हरे कृष्ण ' का जप करते हुए किस प्रकार हमारे मन तथा ह्रदय को भगवान के समक्ष प्रकट किया जा सकता हैं। राधा तथा कृष्ण को, जो हरिनाम के रूप में आपके सम्मुख प्रकट हैं , क्या तथा किस प्रकार कहा जा सकता हैं ? इसप्रकार ये प्रार्थनाएं हैं जप , श्रवण तथा स्मरण तत्पश्चात समाधी , ये सभी ' अभ्यास ' हैं। आज भी हम यहाँ दीक्षा समारोह का आयोजन करेंगे। हम दीक्षा का प्रथम भाग अभी संपन्न कर रहे हैं। अभी हमने जो कहा वह दीक्षा समारोह के प्रवचन का अंग था। अब दीक्षार्थियों को माला तथा उनके आध्यात्मिक नाम प्रदान किये जाएंगे। हमारे साथ इटली से नंदलाल की धर्मपत्नी साधना हैं , जो दीक्षा लेना चाहती हैं। नन्दलाल हमारे प्रारम्भिक शिष्यों में से एक हैं , जिन्होंने लगभग २५ वर्ष पहले दीक्षा  ली थी। १९७१ में श्रील प्रभुपाद ने क्रॉस मैदान में एक विवाह समारोह का आयोजन किया था। इसमें दूल्हे थे मेरे गुरुभाई वेगवान जो स्वीडन से थे तथा दुल्हन ऑस्ट्रेलिया से थी एवं प्रभुपाद उनका विवाह भारत में संपन्न करवा रहे थे। यह दीक्षा तथा विवाह समारोह का एक साथ आयोजन था। प्रभुपाद ने कहा , यह आध्यात्मिक जगत का संयुक्त राष्ट्र हैं। (गुरु महाराज ने मॉरिशियस से एक माताजी को दीक्षा दी तथा उनके साथ थोड़ी बातचीत की ) पंढरपुर में एकादशी के पावन दिन चन्द्रभागा नदी के तट पर , राधा पंढरीनाथ मंदिर में ब्रह्म मुहूर्त के समय हमारी जोन के वरिष्ठ वैष्णवों से  घिरे हुए तथा सम्पूर्ण विश्व से ४७० भक्तों के मध्य आप दीक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वे सभी भी इस कांफ्रेंस के माध्यम से इस दीक्षा समारोह को देख रहे हैं। क्या आपके परिवार के सदस्य भी इसे देख रहे हैं ? मॉरिशियस से लगभग ४० - ५० सदस्य इसे देख रहे हैं। आपका नाम हैं , " शारदीय रास देवी दासी " जप करते समय आप अपने नाम पर चिन्तन कर सकती हैं। कुछ समय पश्चात यज्ञ होगा , कुछ भक्त आज ब्राह्मण दीक्षा भी ग्रहण कर रहे हैं। हम इसे यहीं विराम देंगे। हरे कृष्ण !

English

1st April 2019 COMMUNICATE WITH THE LORD WHILE CHANTING! I am in Pandharpur. Today is Papamocani Ekadasi. So keep chanting and hearing. One devotee was inquiring - should we concentrate on Harinama or do something else. Also how to concentrate on the holy name? We have to chant HARE KRISHNA HARE KRISHNA KRISHNA KRISHNA HARE HARE HARE RAMA HARE RAMA RAMA RAMa HARE HARE The holy name is addressing the Lord. When we say Krishnawe are addressing the holy name. YesterdayI was going through the list of Devotional service which Krsnadas Kaviraj Goswami has mentioned in the Caitanya Caritamrita. One item which caught my attention was - one should reveal his mind unto the Deity, unto the Lord. Like we say dadāti pratigṛhṇāti guhyam ākhyāti pṛcchati bhuṅkte bhojayate caiva ṣaḍ-vidhaṁ prīti-lakṣaṇam Offering gifts in charity, accepting charitable gifts, revealing one’s mind in confidence, inquiring confidentially, accepting prasāda and offering prasāda are the six symptoms of love shared by one devotee and another.( NOI verse 4) Tell the Lord of your happiness and grief. Rupa Goswami has mentioned it and Krsnadas Kaviraj Goswami is repeating it. He was talking of revealing one's mind unto the Deity, but the Deity is non-different from the holy name. The Form is the name. Revealing your mind unto the Deity is non-different from revealing your mind to the holy name. When we say Hare, Krishna, each name is an address. Oh Radhe! Oh Krsna! Sixteen times we are addressing the Lord. Oh Radhe! Oh Krsna! When we address like that, Radha and Krishna make their appearance. naham vasami vaikunthe yoginam hridaye na cha mad-bhakta yatra gayanti tatra tishthami narada Neither do I reside in Vaikuntha nor in the hearts of the Yogis, but I dwell where my devotees sing my name, O Narada !(Padma Purana, Uttara-khanda 92.21) Wherever My devotees chant My glories or wherever I am addressed, I reveal Myself, I make My appearance there. That is the Lord's promise. The Lord has made His Appearance. He is right there with you. The Lord then says , Oh!Why you are calling me? What do you want? What's on your mind?Please reveal your mind unto me.” He may say, “ May I help you?” Then you could reveal your mind. The scene is set. You are present. The Lord is there. That's the time for Yoga, reciprocation, communication between you and the Lord in the form of the holy name. So how to reveal our heart and mind unto the Lord? There are hints given by our acaryas. Given commentaries on the holy name. Bhavabandhanat mochay. When the address begins by saying the first HareShe asks what do you want? You are revealing your heart and mind unto Radharani. Please free me from this entanglement of material bondage. Then next we say Krishna. Gopal Guru Goswami, - swamadhuryen mattchittaam aakrashay. Oh Lord! You are sweet. You are attractive, please attract my mind unto You. Sixteen times we are addressing like this. For each of the sixteen names there is a commentary. When we chant the mahamantra once, we address Radha and Krishna sixteen times. Seva yogyam kuru. Please make me eligible to serve you,Oh Lord! Srila Prabhupada always repeated this part of the commentary. “I am Yours.Please engage me in Your service.” Seva adhikar diyo kar nija dasi like that we pray to Tulasi maharani. We also pray to the spiritual master to give you service. Or we may be praying to the temple president - 'please engage me in your service.’They represent Tulasi Maharani represent Krsna. Spiritual Master is representing Krsna and our GBCs , Presidents, managerial parampara. Prabhupada also said , specially about the GBCsthat they have acarya like position. Then we could request them to give some service. lalita vishakha adi jat sakhi vrinda ajnayai karibo seva caranaravinda Even when other gopis and manjaris wish to serve Krsna, they don't go directly to Radha and Krsna. They have to go through Lalita and Vishakha, the whole hierarchy. The leader of the gopis, yuvateshwaris are there .Gopi groups are called yuvateshwaris. So you have to go through them. Prayer has to be like that, “Please engage me in Your service Lord!” This is how we are revealing our mind and heartand we are begging, “Please engage me in Your service. This is one of the ways. Prabhupada has written in his commentary at one place 'seva yogyam kuru’ He Radhe He Krsna please make me eligible for Your service. Like that for each of the sixteen names there are commentaries of Jiva Goswami and other acaryas. How to reveal your mind by chanting 'Hare Krishna’. How and what to sayto Radha and Krsna who are present before you in the Form of the holy name? So these are the prayers. Chanting , hearing and remembering, then samadhi - full absorption , this is ‘abhyas’. (study) Today also we are also conducting an initiation ceremony. We are doing the first part of the initiation. What we just did was an initiation lecture. We will be giving the name and the beads. We have Bhaktin Sadhana, wife of Nandlal from Italy, who will be taking initiation today. He is one of the first disciples,25 years ago. In 1971 Prabhupada once conducted a marriage ceremony in Cross Maidan. Vegavan my godbrother from Sweden and his wife was from Australia. Prabhupada was conducting an initiation in India. It was initiation cum marriage ceremony. Prabhupada said, this is the United nations of the spiritual world. (Gurumaharaj gave initiation to one Mataji from Mauritius and had short a conversation with her) In Pandharpur on the day of Ekadasi, on the banks of Chandrabhaga River in Radha Pandharinath temple, during Brahma muhurta surrounded by Vaisnavas, senior leaders from our zone and 470 participants from all over the planet. They are also witnessing the initiation on the conference. Your family members are they watching? 40 - 50 devotees from Mauritius are watching. Your name is 'Saradiya Rasa Devi dasi’. While chanting your japa you can meditate on your name. Later on yajna will be done. Some devotees are getting second initiation today. So we conclude here. Hare Krishna!

Russian

Джапа сессия 01.04.2019 Общайтесь с Господом во время воспевания! Я в Пандхарпуре. Сегодня Папамокани Экадаши. Поэтому продолжайте воспевать и слушать. Один преданный спрашивал: нужно ли нам сосредоточиться на Харинаме или заняться чем-то другим. Как сосредоточиться на святом имени? Мы должны воспевать Харе Кришна Харе Кришна Кришна Кришна Харе Харе Харе Рама Харе Рама Рама Рама Харе Харе Святое имя это обращение к Господу. Когда мы говорим Кришна мы обращаемся к святому имени. Вчера я просматривал список преданного служения, который Кришнадас Кавирадж Госвами упомянул в Чайтанья Чаритамрите. Одна вещь, которая привлекла мое внимание, была - нужно открыть свой разум Божеству, Господу. Как мы говорим дадати пратигрхнати гухйам акхйати прччхати бхункте бходжайате чаива шад-видхам прӣти-лакшанам Подносить дары и принимать дары, поверять свои мысли и спрашивать о сокровенном, принимать прасад и угощать прасадом — таковы шесть проявлений любви, которую преданные испытывают друг к другу.( Нектар наставлений, стих 4) Расскажите Господу о своем счастье и горе. Рупа Госвами упомянул об этом, и Кришнадас Кавирадж Госвами повторил тоже. Он говорил о раскрытии своего ума Божеству, но Божество ничем не отличается от святого имени. Форма это имя. Раскрытие вашего ума Божеству ничем не отличается от раскрытия вашего ума святому имени. Когда мы говорим «Харе, Кришна», каждое имя - это обращение. О, Радхе! О, Кришна! Шестнадцать раз мы обращаемся к Господу. О, Радхе! О, Кришна! Когда мы обращаемся таким образом, Радха и Кришна появляются. naham vasami vaikunthe yoginam hridaye na cha mad-bhakta yatra gayanti tatra tishthami narada Я не живу ни на Вайкунтхе, ни в сердцах йогов, но живу там, где мои преданные поют мое имя, о Нарада! (Падма Пурана, Уттара-кханда 92.21) Где бы мои преданные ни воспевали Мою славу или где бы ко Мне ни обращались, Я открываю Себя, Я  являюсь там. Это обещание Господа. Господь является. Он прямо там с вами. Тогда Господь говорит: О, Зачем ты зовешь меня? Чего ты хочешь? О чем ты думаешь? пожалуйста, открой мне свой разум ». Он может сказать:« Могу ли я тебе помочь?». Тогда вы можете раскрыть свой ум. Произошла встреча. Вы присутствуете. Господь тоже здесь. Это время для йоги, взаимности, общения между вами и Господом в форме святого имени. Так как открыть наше сердце и разум Господу? Есть подсказки наших ачарьев. Даны комментарии к святому имени. Bhavabandhanat mochay. Когда вы произносите первый раз Харе, Она спрашивает, что вы хотите? Вы открываете свое сердце и разум Радхарани. Пожалуйста, освободи меня от этой материального рабства. Затем мы говорим Кришна. Гопал Гуру Госвами, - swamadhuryen mattchittaam aakrashay. О, Господь! Ты сладкий. Ты привлекательный, пожалуйста, привлеки мой разум. Мы обращаемся так шестнадцать раз. Для каждого из шестнадцати имен есть комментарий. Когда мы повторяем махамантру один раз, мы обращаемся к Радхе и Кришне шестнадцать раз. Seva yogyam kuru. Пожалуйста, разреши мне служить тебе, Господи! Шрила Прабхупада всегда повторял эту часть комментария. "Я весь твой. Пожалуйста, займи меня служением Тебе». seva-adhikara diye koro nija dasi, так мы молимся Туласи Махарани. Мы также молимся духовному учителю, чтобы он занял нас в служении ему. Или мы можем молиться президенту храма - «пожалуйста, займите меня служением». Они представляют Туласи Махарани, представляют Кришну. Духовный Учитель представляет Кришну и GBC, Президент - административную парампару. Прабхупада особенно говорил о GBC, что они занимают позицию подобную ачарье. Тогда мы могли бы попросить их о каком-нибудь служении. lalita vishakha adi jat sakhi vrinda ajnayai karibo seva charanaravinda Даже когда другие гопи и манджари хотят служить Кришне, они не идут напрямую к Радхе и Кришне. Они должны пройти посредством Лалиты и Вишакхи, всю иерархию. Там находятся старшие гопи, юватешвари. Группы гопи называются юватешвари. Таким образом, вы должны пройти через них. Молитва должна быть такой: «Пожалуйста, займи меня служением Тебе, Господь!» Вот так мы раскрываем свой разум и сердце и просим: «Пожалуйста, займи меня служением Тебе. Это один из способов. Прабхупада написал в своем комментарии в одном месте: ‘seva yogyam kuru’ О, Радхе,  О Кришна, пожалуйста, сделайте меня достойным служить Вам. Например, для каждого из шестнадцати имен есть комментарии Дживы Госвами и других ачарьев. Как раскрыть свой разум, повторяя «Харе Кришна». Как и что сказать Радхе и Кришне, которые присутствуют перед вами в форме святого имени? Итак, это молитвы. Воспевание, слушание и памятование, затем самадхи - полное погружение, это «абхйас». (изучение) Сегодня мы также проводим церемонию посвящения. Мы проводим первую часть посвящения. То, о чем мы сейчас говорили, было лекцией перед посвящением. Мы будем давать имя и четки. У нас есть Бхактин Садхана, жена Нандлала из Италии, которая будет получать посвящение сегодня. Он один из первых учеников, 25 лет назад. В 1971 году Прабхупада однажды провел церемонию бракосочетания на Кросс Майдане. Вегаван, мой духовный брат из Швеции, и его жена были из Австралии. Прабхупада проводил посвящение в Индии. Это было начало церемонии бракосочетания. Прабхупада сказал, что это Объединенные нации духовного мира. (Гурумахарадж дал посвящение одной Матаджи из Маврикия и коротко поговорил с ней) В Пандхарпуре в день Экадаши, на берегах реки Чандрабхага в храме Радха Пандхаринатх, во время Брахма-мухурты в окружении вайшнавов, старших руководителей нашого региона и 470 участников со всей планеты. Они также являются свидетелями инициации на конференции. Члены вашей семьи смотрят? 40 - 50 преданных с Маврикия смотрят. Вас будут звать "Сарадия Раса Деви даси". Повторяя джапу, вы можете медитировать на свое имя. Позже будет проведена ягья. Некоторые преданные получат сегодня второе посвящение. Итак, мы завершим здесь. Харе Кришна!