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हरे कृष्ण
जप चर्चा,
पंढरपुर धाम,
२७ दिसंबर २०२०
692 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।
हरि हरि
आप सभी का स्वागत है। हरि हरि।
जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन, श्री गोविंद, गोपीनाथ मदन मोहन, श्याम कुंड, राधा कुंड, गिरी गोवर्धन, कालिंदी जमुना जय, जय महावन, केशी घाट, बंसी बट, द्वादश कानन जहां सब लीला कोइलो श्री नंद नंदन।
जहां निमाई भी है। कई सारे बालक भी सुन रहे है। हरि हरि। गीता जयंती महोत्सव की जय। गीता जयंती तो एक दिन होती है किंतु गीता जयंती उत्सव तो हम लोग पूरे एक मास भर के लिए बनाते रहते हैं। गीता का अध्ययन करते हैं, गीता का वितरण करते हैं और इसी से उत्सव हो जाता है। क्या करता है उत्सव ? हमारा उत्साह बढ़ाता है। उत्सव से उत्साह। गीता भागवत करिती श्रवण । अखंड चिंतन विठोबाचें । ऐसे तो कारा महाराज ने भी मराठी में कहा था। गीता भागवत करिती श्रवण जो गीता को सुनेंगे और भागवत को सुनेंगे, क्या होगा? अखंड चिंतन विठोबाचें पांडुरंग विट्ठल का, जो श्रीकृष्ण ही है उनका स्मरण होगा उनका चिंतन प्रारंभ होगा अगर हम गीता और भागवत को पढ़ेंगे और श्रवण करेंगे। यह दो ग्रंथ गीता और भागवत अलग हैं और है भी नहीं।
अचिंत्य भेद और अभेद की बात है। इन दोनों में कोई भेद नहीं है और उसमें कुछ भेद है भी। तो यह गीता और भागवत के मध्य का भेद अभेद का थोड़ा हम लोग विचार करते हैं। दोनों का स्मरण करते हैं। हरि हरि। गीता तो भगवत गीता ही है भगवत गीत है। गीता की वक्ता स्वयं भगवान हैं। यह इस ग्रंथ भगवत गीता का व्यशिष्ट बन जाता है। स्वयं भगवान बोले, भगवान ने कहा, तो हो गई भगवत गीता।श्रीमद् भागवत के वक्ता है शुकदेव गोस्वामी किंतु उन्होंने भी यह भागवत पढ़ा, सीखा, समझा श्रील व्यासदेव से। तो फिर श्रील व्यासदेव भी इसके रचयिता रहे,लेखक रहे और जो विद्यार्थी रहे इस भागवत के वह श्रील व्यासदेव के पुत्र ही थे।
उनको सौभाग्य प्राप्त हुआ या उनको निमित्त बनाया है भागवत का वक्ता बने है। हरि हरि। शुकदेव गोस्वामी सुनाते रहेंगे और हमें भागवत में कही सारे वक्ता मिलेंगे। फिर आगे भागवत में सूत गोस्वामी उवाच भी है, इसमें ब्रह्मा उवाच भी मिलेगा आपको। कुंती महारानी की प्रार्थना और कई सारी प्राथनाएं, भीष्म पितामह की स्तुति, शिवजी का गीत है रुद्र गीत जिसको कहा है, गोपी गीत है जिसमें गोपियां वक्ता बन जाती है, उद्धव बोलते हैं, मैत्री मुनि उवाच है, विदुर उवाच है, ध्रुव महाराज उवाच है, प्रहलाद महाराज है, युधिष्ठिर महाराज है, नारद मुनि है। तो इस प्रकार भागवत में कई सारे वक्ता है क्योंकि श्रीमद् भागवत इतिहास है। तो संसार के प्रारंभ से या इतिहास सुनाया है भागवत में, पुराणों में, महापुराण में भी। तो श्रीमद् भागवत में कई सारे वक्ता हो जाते हैं।
भगवत गीता के जो वक्ता है श्रीभगवान उवाच तो प्रथम अध्याय कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में सैन्यनिरीक्षण में मंच बनाया है। परिस्थिति का वर्णन किया हैऔर वहां फिर धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में वक्ता पहुंच जाते हैं। गीता की द्वितीय अध्याय में ही भगवत गीता के वक्ता श्रीभगवान उवाच, उनके वचन हम पढ़ते हैं। तकनीकी तौर पर गीता प्रारंभ होती है द्वित्तीय अध्याय से, भगवान ने कहा वाली बातें जो है। प्रथम अध्याय में नहीं है एक छोटा सा वाक्य है आपको पहले बता चुके हैं। भागवत के मूल वक्ता या सारी कथा जो सुना रहे हैं शुकदेव गोस्वामी। तो उनकी कथा द्वितीय स्कंद से शुरु होती है। प्रथम स्कंध की कथा तो सूत उवाच, सूत गोस्वामी सुनाएं है। शुकदेव गोस्वामी द्वारा कही हुई कथा केवल द्वितीय स्कंध से शुरु होती है। प्रथम स्कंद में शुकदेव गोस्वामी नहीं बोलते जैसे प्रथम अध्याय में गीता के श्रीकृष्ण नहीं बोले हैं। हरि हरि। यह दो ग्रंथ एक दूसरे के पूरक है। यहां भगवत गीता का एक दृष्टि से समापन होता है गीता का, वहां श्रीमद् भागवत प्रारंभ होता है।
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज |
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा श्रुचः || ६६ || (श्रीमद्भगवद्गीता 18.66)
अनुवाद
समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । मैं समस्त पापों से तुम्हारा उद्धार कर दूँगा । डरो मत ।
गीता के 18वे अध्याय में श्रीकृष्ण कहते हैं सर्वधर्मान्परित्यज्य।
धर्म: प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां
वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम् ।
श्रीमद्भागवते महामुनिकृते किं वा परैरीश्वर:
सद्यो हृद्यवरुध्यतेऽत्र कृतिभि: शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात् ॥ २ ॥
(श्रीमद् भागवत 1.1.2)
श्रीमद भागवत की प्रारंभ में कहा है धर्म: प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां। तो सर्वधर्मान्परित्यज्य जो कहा श्रीकृष्ण ने और फिर मामेकं शरणं व्रज। तो यही भाव यही विचार भी श्रीमद् भागवत के प्रारंभ में ही प्रथम स्कंध प्रथम अध्याय द्वितीय श्लोक में ही कहा है। धर्म: प्रोज्झित ऐसे पाखंड धर्म को या अन्य धर्म को भागवत से तापत्रयोन्मूलनम् जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया है। श्रीमद् भागवत प्रारंभ होता है ॐ नमो भगवते वासुदेवाय और गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं मामेकं शरणं व्रज। तो भागवत के प्रारंभ में ही वह शरणागति हैं। भगवत गीता का सार है भक्ति सार हैं। भक्ति सिखा रहे हैं भगवान गीता में, भक्ति योग सिखाएं हैं। तो ग्रंथ राज श्रीमद् भागवत भक्ति का ग्रंथ है भक्ति से परिपूर्ण है। हरि हरि। तो भगवत गीता में 18 अध्याय हैं और ग्रंथ राज श्रीमद्भागवत में 18000 श्लोक हैं, 12 स्कंद है और 335 अध्याय हैं। आकार में मोटा ग्रंथ है। श्रीमद् भागवत को वांग मय मूर्ति कहा है और गीता को भी कहा जा सकता है। तो गीता भी मूर्ति रुप धारण करती है और श्रीमद्भागवत भी अपना रूप धारण करता है। तो ग्रंथ राज भगवत गीता आकार में लघु है 700 श्लोक ही है और 18 ही अध्याय हैं। श्रीमद्भागवत की वपु विशाल है आकार में। श्रीमद् भागवतम की जय। श्रीमद्भगवद्गीता का प्रवचन 30-45 मिनट में पूरा हुआ है। राजा परीक्षित को मिला श्राप 7 दिनों में मृत्यु होगी। श्रीमद् भागवत 7 दिन 7 रात्रि बिना आहार के भागवत की कथा हो रही थी, बड़े आराम से। धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में आपातकालीन परिस्थिति थी इसलिए भगवान ने फटाफट गीता के उपदेश के वचन दिए थे, सिद्धांत की बातें कहते हैं। लेकिन भागवत कथा बड़े आराम से हो रही थी क्योंकि वहां पर युद्ध की स्थिति नहीं थी। मृत्यु 7 दिनों के बाद सर्प तो डसने वाला है, एक दृष्टि से यह आपातकालीन परिस्थिति तो है लेकिन 7 दिनों की अवधि है। तो आराम से कथा हुई है। तो आराम से कथा हुई है अपने सारे भाव, शारीरिक हाव - भाव व्यक्त करते गए हैं शुकदेव गोस्वामी।
अर्जुन उवाच
सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य मेऽच्युत |
यावदेतान्निरिक्षेऽहं योद्धुकामानवस्थितान् || २१ ||
कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन्रणसमुद्यमे || २२ ||
(श्रीमद्भगवद्गीता 1.21-22)
अनुवाद
अर्जुन ने कहा – हे अच्युत! कृपा करके मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच में ले चलें जिससे मैं यहाँ युद्ध की अभिलाषा रखने वालों को और शस्त्रों कि इस महान परीक्षा में, जिनसे मुझे संघर्ष करना है, उन्हें देख सकूँ |
धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थाप्य दोनों सेना के मध्य में अर्जुन के रथ को अर्जुन के सारथी पार्थसारथी कृष्ण ने रथ को आगे बढ़ाया दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा किया। कुरुक्षेत्र में हुआ फिर भगवान उवाच। जहां तक भागवत की कथा का प्रश्न है और उत्तर भी है। यह हस्तिनापुर के बाहर, गंगा के तट पर ही है हस्तिनापुर, जानते ही होगे कभी हस्तिनापुर गए हो या नहीं? हस्तिनापुर थी उनकी राजधानी, हस्तिनापुर के सम्राट राजा परीक्षित। जैसे ही उन्होंने शराब की बात सुनी तो चौक गए है। हरि हरि। केवल कॉपी में बाहर आए है और वृंदा के तट पर सुकताल उस स्थान पर राजा परीक्षित बैठे है और फिर भगवान की रचना से गीता के जो श्रोता थे वह एक ही थे जो अर्जुन थे और संजय ने भी सुना वह बात अलग है, और पास में खड़ा वृक्ष सभी गीता सुन रहा था और वह मुक्त हुआ यह बातें अलग है। लेकिन श्रोता भी एक और वक्ता भी एक ही थे। कृष्णम वंदे जगत गुरु। लेकिन भागवत वैसे सुनाना था राजा परीक्षित को और सुनाएं भी, किंतु जब यह समाचार प्राप्त हुआ कि राजा परीक्षित को श्रृंगी ने ब्राह्मण बालक जिसकी बुद्धि परिपक्व नहीं थी उन्होंने श्राप दिया कि केवल 7 दिन के लिए राजा परीक्षित जिंदा रहेंगे तो सारे संसार को और सारी जिम्मेदारियों को छोड़कर राजा परीक्षित अंतिम क्षण भागवत सुन रहे थे और यह समाचार सारे पृथ्वी पर ही नहीं, सारे ब्रह्मांड में यह समाचार फैल गया। और उसी के साथ सारे ब्रम्हांड के राजर्षि और देवर्षि वहां पर सुक़ताल यानी गंगा के तट पर पहुंच गए। राजा परीक्षित दो प्रमुख श्रोता थे लेकिन उन्हीं के साथ हजारों लाखों श्रोताओंने, संतों ने और राजर्षि ने श्रीमद् भागवत कथा सुनी। भगवतगीता केवल एक श्रोता सुन रहे थे किंतु भागवत हजारों, लाखों श्रोता सुन रहे थे। हरि हरि। तो भगवतगीता के श्रोता रहे अर्जुन और अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु और उनके पुत्र परीक्षित महाराज बने है भागवत के श्रोता! एक ही परिवार के अर्जुन जिन्होंने भगवद्गीता सुने थे उन्हीं के परपोता परीक्षित महाराज जो भागवत के प्रमुख श्रोता बने है। भगवतगीता जब श्री कृष्ण सुना रहे थे तब कृष्ण की उम्र थोड़ा विचित्र लगता है यह सुनने में की कृष्ण की उम्र १०० साल थी! वैसे कृष्ण तो शाश्वत है लेकिन इस संसार के दृष्टि से जब गन्ना होती है तो श्री कृष्णा कुरुक्षेत्र में जब उन्होंने भगवतगीता का उपदेश अर्जुन को सुनाया तब 100 साल के थे। और फिर 25 साल बीत गए जब श्री कृष्णा 125 साल के थे तब उन्होंने,
यदा मुकुनदो भगवान कमां तयकतवा सवपदंगतः ।
तदीनातकिलरायातः सवरसाधनबाधकः ॥६६॥
भागवत महात्म्य १.६५
यदा मुकुनदो भगवान कमां तयकतवा सवपदंगतः जब श्री कृष्ण पृथ्वी को त्याग कर अपने धाम लौटे तदीनातकिलरायातः सवरसाधनबाधकः तो उसी दिन से, जिस दिन भगवान अपने धाम लौटे या अंतर्धान हुए और अपने लीला का अंत किया तो उसी दिन से कलयुग प्रारंभ हुआ। और यह समाचार जब पांडवों को पता चला और यह बुरा समाचार पहुंचाने वाले अर्जुन ही थे जो द्वारकाधीश गए थे कि जाओ पता लगाओ श्री कृष्ण का! तो 7 महीने बीत गए अर्जुन नहीं लौटे थे, और युधिष्ठिर महाराज और बाकी पांडव चिंतित थे, और जब अर्जुन लौटे तो पांडवों को यह समाचार मिला कि अब श्री कृष्ण नहीं रहे और यह समाचार सुनते ही, कुंती नहीं रही! जैसे ही यह समाचार सबने सुना और विशेषता कुंती महारानी ने सुना तो उसी समय उनका देहत्याग हुआ! और फिर पांडवों ने निर्णय लिया कि, जब कृष्ण नहीं रहे तो अब हम क्यों जिएंगे? तो तुरंत ही वे सेवानिवृत्त हुए और बद्रिकाश्रम की ओर यानी हस्तिनापुर से बद्रिकाश्रम की यात्रा पर निकल गए। और फिर एक-एक करके सब की मृत्यु होती है। तो उसी समय पांच पांडव और युधिष्ठिर महाराज जो कि सम्राट थे उन्होंने अर्जुन का पौत्र यानी राजा परीक्षित को सम्राट बनाएं और पांडवों ने बद्रीकाश्रम की ओर प्रस्थान किया। और राजा परीक्षित ने 30 साल यह कारोबार संभाला, वे सम्राट थे सम्राट मतलब राजाओं के राजा थे! सारे पृथ्वी पर उनका साम्राज्य फैला हुआ था, तो 30 साल उन्होंने इस राज्य को संभाला। और फिर उनको श्राप मिला, वैसे मतलब उस समय कलयुग 30 साल का था! जब श्री कृष्ण प्रस्थान किए थे तब कली आया था, और फिर कलयुग के प्रारंभ से ही राजा परीक्षित सम्राट बने थे। और फिर वह गंगा के तट पर पहुंचे है और श्रीमद् भागवत कथा प्रारंभ हुई, तो जब कलयुग 30 साल का था तब भागवत की कथा हुई। तो कृष्ण के प्रस्थान के 25 वर्ष पूर्व भगवतगीता का प्रवचन हुआ और उनके प्रस्थान के 30 साल बीत गए थे तब श्रीमद् भागवत की कथा का प्रारंभ हुआ। हरि हरि। भगवतगिता तो उपनिषद ही है गीतोपनिषद। उपनिषद की बातें तो सूत्रों या सिद्धांतों में होती है। और फिर उपनिषद वेद का ही अंग या भाग है। और गीता को उपनिषद ही कहा है। तो वेद या उपनिषद जो वेदों का सार सूत्र रूप में कहा है, उपनिषदोंके सिद्धांत और तत्वों को भगवान की लीलाओं के साथ समझाया जाता है तो वह पुराण हो जाता है। और श्रीमद् भागवत महापुराण है! तो गीता के है वचन,
क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्र्वच्छान्तिं निगच्छति |
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति ||
भगवतगीता ९.३१
अनुवाद:- वह तुरन्त धर्मात्मा बन जाता है और स्थायी शान्ति को प्राप्त होता है | हे कुन्तीपुत्र! निडर होकर घोषणा कर दो कि मेरे भक्त का कभी विनाश नहीं होता है |
न मे भक्तः प्रणश्यति मेरे भक्तों का कभी नाश नहीं होता! तो फिर भागवत में आप सुनोगे, भगवान केसे प्रल्हाद महाराज की रक्षा किए। गीता में न मे भक्तः प्रणश्यति यह सिद्धांत सूत्र रूप में कहा और भागवत महापुराण में उस करुणा को इतिहास के रूप में आपको सुनाया जाता है। या गीता में कृष्ण कहे,
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् |
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ||
भगवतगीता ४.८
अनुवाद :- भक्तों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
और फिर श्रीमद्भागवत में अलग-अलग युगों में भगवान के अलग-अलग अवतार का वर्णन आप पढ़ोगे। और फिर हर अवतार में विनाशाय च दुष्कृताम् होता ही है। जेसे राम अवतार में रावण का वध किया या फिर स्वयं कृष्णा के रूप में प्रकट हुए तो केसे विनाशाय च दुष्कृताम् किया। और धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे तो हर युग में मैं प्रकट होता हूं और धर्म की स्थापना करता हूं। और श्री कृष्णचैतन्य के रूप में भी मैं प्रकट होता हूं और वह तो स्वयं रूप है, और कलयुग का जो धर्म है हरि नाम संकीर्तन उसकी मैं स्थापना करता हूं। और यह भी गीता में कहा है और अगर आप उदाहरण, इतिहास है? ऐसा आप पूछोगे तो, हां! हां! जरूर है! भागवत में, पुराणों में यह सब समझाया है। और फिर चैतन्य चरितामृत भी भागवत कथा ही है या गौरकथा, गौरभागवत है! तो ऐसे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु धर्म की स्थापना किए है। हरि हरि। तो इस प्रकार यह गीता और भागवत यह सभी अनिवार्य है! और यह सब मिलाके पूर्ण शास्त्र हो जाता है। यह सारे शास्त्र मिलकर फिर वेद हो जाते है। वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् गीता में कृष्ण ने कहा है। गीता भागवत यह सब शास्त्र रही है इसीलिए मुझे जानने के लिए उसको पढ़ो। ठीक है। अब मैं रुक जाता हूं। हरे कृष्ण!