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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *11 अगस्त 2021* *हरे कृष्ण !* 845 स्थानों से भक्त आज जप में सम्मिलित हैं, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! ओम नमो भगवते वासुदेवाय ! वैसे आप में से कुछ या तो प्रश्न पूछने वाले थे या कमेंट, कल के जप टॉप के ऊपर, लेकिन मुझे आज भी पहले बोलने दो और फिर देखते हैं...., मैं थोड़ा पहले रुकने का प्रयास करूंगा और टॉक के अंत में कल वाला कोई प्रश्न उत्तर या साक्षात्कार है या आज जो कुछ कहूंगा उसके ऊपर भी कुछ कहना है आपको या कुछ विचार है, शंका है, उसका भी समाधान करने का प्रयास करेंगे। कल था भगवत गीता नाउ वी आर जम्पिंग टू भागवतम, ऐसे हम कर रहे हैं कभी गीता तो कभी भागवतम तो कभी चैतन्य चरित्रामृत तो कभी कलयुग दोष निकालते हैं। *कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान्गुणः । कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत् ॥* (श्रीमद भागवतम 12.3.51) अनुवाद- हे राजन् , यद्यपि कलियुग दोषों का सागर है फिर भी इस युग में एक अच्छा गुण है केवल हरे कृष्ण महामंत्र का कीर्तन करने से मनुष्य भवबन्धन से मुक्त हो जाता है और दिव्य धाम को प्राप्त होता है । या फिर इसकी चर्चा होती है ऐसी विविधता हमारे प्रेजेंटेशन में हो ही रही है। वैसे सबको पसंद भी होती है वैरायटी, मेरे मन में जो भी आता है आपको सुना देता हूं ज्यादा तैयारी नहीं करता हूं या जब भी किसी समय कुछ विचार आए या कल मैंने जो कुछ पढ़ा था या चिंतन किया था उसी के आधार पर या वही आधार बनता है मैं बोलता रहता हूं हरि हरि ! जपा टॉप होता रहता है और वैसे भी शुकदेव स्वामी की भागवत कथा इस महीने में होने वाली है। उस भागवत कथा की एनिवर्सरी कहिए जब भाद्र पूर्णिमा आएगी तब, भाद्रपद महीने की पूर्णिमा के दिन समापन होगा। नवमी को प्रारंभ करेंगे ऐसा हुआ था इसीलिए मैं बता रहा हूं। कलयुग के कुछ ठीक 30 साल बीत चुके थे। कलयुग जब 30 साल का था आप जानते ही हो, कलयुग कब प्रारंभ हुआ, पता नहीं जानते होंगे या नहीं जानते होंगे ? हमने कई बार कहा तो है *यदा मुकुन्दो भगवान् क्ष्मां त्यक्त्वा स्वपदं गतः । तद्दिनात् कलिरायातः सर्वसाधनबाधकः ॥* (श्रीमद भागवतम माहात्म्य ६६) *एतावान् साड्ख्ययोगाभ्यां स्वधर्मपरिनिष्ठया। जन्मलाभ: पर: पुंसामन्ते नारायणस्मृति:।।* ( श्रीमद् भागवतम् 2.1.6) अनुवाद: -पदार्थ तथा आत्मा के पूर्ण ज्ञान से, योगशक्ति के अभ्यास से या स्वधर्म का भलीभाँति पालन करने से मानव जीवन कि जो सर्वोच्च सिध्दि प्राप्त कि जा सकती है, वह है जीवन के अन्त में भगवान् का स्मरण करना। इसको नोट भी कर सकते हो यदि आप लिख सकते हो। जिस दिन श्याम त्यक्तवा, भगवान पृथ्वी को त्याग कर अपनी पदवी को, अपने धाम को पुनः प्राप्त किए, तद दिन से कलि यहां आ गया और फिर क्या करने लगा? कलि ने अपना धंधा शुरू किया। सर्व साधन बाधकः, साधकों की साधना में बाधा उत्पन्न करना यह कलि का काम शुरू हुआ। तददिनत, उस दिन से, जब भगवान अपने धाम लौटे और 125 वर्ष उन्होंने यहाँ प्रकट लीला खेली, और फिर प्रस्थान किया। जब आगमन हुआ था सभी देवता मथुरा मंडल में पधारे और देवताओं ने गर्भ स्तुति भी की थी। एक स्तुति का नाम है गर्भ स्तुति, श्रीमद्भागवत के दशम स्कंध के द्वितीय या तृतीय अध्याय में होगा, "देवताओं ने की स्तुति" देवता कृष्ण की स्तुति कर रहे हैं। जब गर्भ में हैं तब उन्होंने स्तुति की, स्तुति का नाम है गर्भ स्तुति, जब भगवान का आगमन हुआ, (प्रकट हुआ, जन्म हुआ) तब भी देवता वहां थे और जब वह प्रस्थान कर रहे थे अर्थात स्वधाम लौट रहे थे तब भी देवता वहां पर पहुंचे थे। भगवान ने प्रस्थान किया और फिर 30 साल बीत गए। राजा परीक्षित के प्रस्थान का समय आ चुका है उनको श्राप मिला है 7 दिनों में आप मृत्यु को प्राप्त होंगे। फिर राजा परीक्षित तैयार हुए, सब कुछ उन्होंने त्याग दिया, वस्त्र भी त्याग दिए केवल कोपीन पहने हैं और गंगा के तट पर जाकर बैठ गए और फिर सारी व्यवस्था हुई। भगवान ने व्यवस्था की यह 7 दिन कैसे बिताएंगे क्या करना चाहिए 7 दिनों में ताकि क्या हो जाए? अंते नारायणस्मृति: वहां सारा संसार पहुंच गया। देव ऋषि, राजऋषि, महर्षि वहां पहुंच गए, फिर आपस में विचार-विमर्श हो रहा है कि आने वाले 7 दिन कैसे बिताएंगे। राजा परीक्षित के ताकि जो लक्ष्य है अंतिम चरण में क्या होना चाहिये, नारायणस्मृति: नारायण की स्मृति होगी तो जीवन सफल होगा ऑल इज वेल डेट एंडस वेल, फिर वहां पर शुकदेव गोस्वामी पहुंच गए और राजऋषि, देवऋषि पहुंचे थे। आपस में विचार-विमर्श हो रहा था कुछ भी हो रहा था कुछ मतभेद भी हो रहा था क्या करें ? कैसे समय बिताना चाहिए ? कुछ कर्मकांड करना चाहिए, कुछ ज्ञान कांड करना चाहिए, अष्टांग योग करना चाहिए व्हाट शुड वी डू ? लेकिन जैसे ही शुकदेव गोस्वामी वहाँ पधार गए तो सब समझ गए राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा शुकदेव गोस्वामी के मुखारविंद से सुननी चाहिए और वे सुनेंगे और हम भी सुनेंगे तब जो भी मतमतान्तर चल रहा था उसका खंडन हुआ। वह सब समाप्त हुआ और स्पष्ट भी हुआ शुकदेव गोस्वामी के आगमन से सब समझ गए। *सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा | यस्याः श्रवण मात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत ||* (श्रीमद् भागवतम् महात्म्य 3.25) अनुवाद - भागवत की कथा का सदा सर्वदा सेवन करना चाहिए श्रवण करना चाहिए इसके श्रवण मात्र से भगवान श्रीहरि हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं | कथा के श्रवण मात्र से भगवान हृदय में प्रवेश करेंगे , *यस्याः श्रवण मात्रेण* शुक देव गोस्वामी की जय ! हम शुकदेव गोस्वामी का भी आज प्रातः स्मरण यहां कर रहे हैं। मुझे वैसे यह कहना था उस कथा के श्रोता वैसे कौन कौन थे? श्रील व्यास देव भी श्रोता बने हैं, वक्ता हैं शुकदेव गोस्वामी और श्रोता कौन है? श्रील व्यासदेव गोस्वामी कथा श्रवण कर रहे हैं। व्यासदेव भगवान के शक्त्यावतार हैं जो शुकदेव गोस्वामी के पिताश्री हैं या शुकदेव गोस्वामी के गुरु हैं, शिक्षा गुरु हैं। श्रीमद् भागवत की कथा का अध्ययन किया शुकदेव गोस्वामी ने, किन से...? श्रील व्यास देव, उनके गुरु बने, वहां नारद मुनि हैं नारायण ! नारायण ! वहां नारद मुनि भी श्रोता बने हैं। श्रीमद्भागवत की रचना की प्रेरणा श्रील व्यास देव को नारद मुनि से प्राप्त हुई। उन्होंने और भी कई ग्रंथ लिखे थे, लेकिन इतने सारे ग्रंथ लिखने पर भी श्रील व्यास देव् संतुष्ट नहीं थे। कुछ निराशा को प्राप्त हुए थे। तब बद्रिकाश्रम में उनकी मुलाकात नारद मुनि से हुई। जो परिवज्रकाचार्य हैं। इंटरप्लेनेटरी ट्रेवल उनका चलता रहता है। नॉट इंटरनेशनल यहाँ से गए थाईलैंड, म्यांम्मार नेपाल, यूक्रेन इत्यादि वहां गए और फिर वहां से घूम फिर के यहां आ गए। नारद मुनि उनके जैसा एक्सटेंसिव ट्रैवेलिंग और प्रीचर और कोई नहीं है। पूरे ब्रह्मांड भर में उनका ट्रेवल होता है भ्रमण होता है और यहां तक कि वैकुंठ भी जा सकते हैं। बैकुंठ से ब्रह्मांड आ सकते हैं, कोई रोकथाम नहीं है। जब भगवान प्रकट होते हैं तब भगवान की लीला में भी उनका प्रवेश होता है, द्वारका भी विजिट करते हैं। द्वारका पहुंच गए तो श्रीकृष्ण सुस्वागतम नारद ! सुस्वागतम ! स्वयं भगवान जिनका स्वागत करते हैं स्वयं भगवान जिन के चरणों का पाद प्रक्षालन करते हैं ऐसे नारद मुनी भी वहां श्रोता बने हैं। शुकदेव गोस्वामी कथा सुना रहे हैं और उस सभा में सूत गोस्वामी भी हैं सूत गोस्वामी जी कथा सुन रहे हैं। यह सूत गोस्वामी, नैमिषारण्य में कलयुग के प्रारंभ में पहुंच गए हैं और उनसे भी पहले वहां 88000 ऋषि मुनि पहुंचे हैं नैमिषारण्य में, जो उत्तर भारत लखनऊ से ज्यादा दूर नहीं है। वहां सूत गोस्वामी पहुंच गए, वैसे गंगा के तट पर और भी पहुंचे थे राज ऋषि महर्षि और फिर सूत गोस्वामी, उनका जैसे आगमन हुआ गंगा के तट पर हस्तिनापुर के बाहर ,आउटस्कर्ट्स आफ हस्तिनापुर, वैसे ही यहां नैमिषारण्य में शौनक आदि ऋषि मुनि पहुंचे थे। सभी मुनियों की ओर से शौनक मुनि उनके संवाददाता या उनके स्पोक्सपर्सन बने। तो यहां से वहां संवाद हो रहा था, राजा परीक्षित और शुक देव गोस्वामी के मध्य में, उस कथा में, गंगा के तट पर शुक ताल भी उसको कहते हैं। हम गए थे। शायद आप भी आए होंगे कुछ साल पहले हम लोग शुक्रताल गए थे, याद है कथा आदि कर रहे थे? वहां एक नदी है नैमिषारण्य में, मुझे नाम तो याद नहीं आ रहा, वहां पर भी हम गए थे, अपनी बात मैं कह रहा हूं। हम भी शुक्र ताल गए और भागवत कथा मैंने की, अहम यह तो चलता ही रहता है उसको टाल ही नहीं सकते कितने बद्ध हैं हम , कुछ पूछो नहीं और फिर नैमिषारण्य भी गए थे। कोई 10 /15 साल पहले की बात हो सकती है वहां भी हमने कथा की थी 7 सत्रों की भागवत कथा, उस नैमिषारण्य में भागवत कथा हो रही है वहां संवाद हो रहा है। सूत गोस्वामी और शौनक ऋषि आदि के मध्य में सभी ऋषियों की ओर से प्रश्न पूछ रहे हैं। जिज्ञासा हो रही है। नैमिषारण्य में कथा को जब प्रारंभ करना था हम देखते हैं श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध का द्वितीय अध्याय का पहला श्लोक , पहला तो नहीं है दूसरा है 1. 1. 2 अंग्रेजी में आप समझ सकते हो कैंटो वन चैप्टर वन चैप्टर 2 श्लोका , दूसरे में शुक देव गोस्वामी बोलेंगे। जो पूरा प्रथम स्कंध है यह कथा सूत गोस्वामी सुनाने वाले हैं इसको भी हमने आपसे नोट करवाया था लेकिन आप लिखते नहीं हो, तो फिर भूल भी जाते हो। जैसे भगवत गीता का पहले अध्याय में भगवान ने कुछ नहीं कहा है। दो-चार शब्द ही कहा है। भगवत गीता के पहले अध्याय में श्रीभगवान उवाच नहीं है केवल कुछ शब्द कहे हैं पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति *भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम् | उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति ||* |(भगवद्गीता १. २५) अनुवाद - भीष्म, द्रोण तथा विश्र्व भर के अन्य समस्त राजाओं के सामने भगवान् ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्र सारे कुरुओं को देखो |” बस इतना ही कहे पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति गीता में अर्जुन से इतने ही शब्द प्रथम अध्याय में भगवान ने कहा है। गीता में कृष्ण का प्रवचन द्वितीय अध्याय से प्रारंभ होता है। वैसे भागवत में भी, शुक देव गोस्वामी के द्वारा कही हुई कथा द्वितीय अध्याय से प्रारंभ होती है। प्रथम अध्याय की कथा सूत् गोस्वामी ने सुनाई है। उसमें 19 अध्याय हैं उसमें भी जो पहला अध्याय है श्रीमद् भागवतम का उसमे शौनक ऋषि के प्रश्न हैं और शौनक मुनि ने छ अलग-अलग प्रश्न पूछे हैं हाउ मेनी सिक्स ? अब नहीं बताऊंगा आपको, यथासंभव आप होमवर्क कीजिए और पता लगाइए कि श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंध के प्रथम अध्याय में शौनक मुनि के द्वारा पूछे हुए कौन से 6 प्रश्न है ? *ब्रूहि योगेश्वरे कृष्णे ब्रह्मण्ये धर्मवर्मणि । स्वां काष्ठामधुनोपेते धर्मः कं शरणं गतः ॥* (श्रीमदभागवतम 1.1.23 ) अनुवाद- चूँकि परम सत्य , योगेश्वर , श्रीकृष्ण अपने निज धाम के लिए प्रयाण कर चुके हैं , अतएव कृपा करके हमें बताएँ कि अब धर्म ने किसका आश्रय लिया है ? इस प्रकार और भी पांच है। उसका पता लगाइए। हमने कभी भागवत कथा में उसे बताया है और भी कई सोर्सेस हैं जिनसे आप पता लगवा सकते हो। उस पर विचार विमर्श करो फिर द्वितीय अध्याय जब शुरू होता है। श्रीमद् भागवत प्रथम स्कंध द्वितीय अध्याय, अब सूत उवाच, सूत गोस्वामी बोलेंगे, पहली बात जो उनके मुख से निकली है यह गुरु वंदना है। सूत गोस्वामी के द्वारा की गई गुरु वंदना। कौन है उनके गुरु ? शुक देव गोस्वामी हैं उनके गुरु। भागवत कथा जिनसे उन्होंने सुनी, वही उनके गुरु हैं। वे वंदना करते हैं। सूत उवाच *यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥* (श्रीमदभागवतम 1.2.2) अनुवाद- श्रील सूत गोस्वामी ने कहा : मैं उन महामुनि ( शुकदेव गोस्वामी ) को सादर नमस्कार करता हूँ जो सबों के हृदय में प्रवेश करने में समर्थ हैं । जब वे यज्ञोपवीत संस्कार अथवा उच्च जातियों द्वारा किए जाने वाले अनुष्ठानों को सम्पन्न किये बिना संन्यास ग्रहण करने चले गये तो उनके पिता व्यासदेव उनके वियोग के भय से आतुर होकर चिल्ला उठे , " हे पुत्र , " उस समय जो वैसी ही वियोग की भावना में लीन थे , केवल ऐसे वृक्षों ने शोकग्रस्त पिता के शब्दों का प्रतिध्वनि के रूप में उत्तर दिया । यह गुरु वंदना है या अपने गुरु की स्तुति कहिए या अपने गुरु शुकदेव गोस्वामी को स्मरण कर रहे हैं। प्रातः स्मरणीय, सदैव स्मरणीय, शुक देव गोस्वामी का सूत गोस्वामी ने स्मरण किया, सारे 88000 ऋषि मुनियों के साथ, सभी बैठे हैं। क्या वहां दर्जनों माइक्रोफोन सिस्टम थे पब्लिक ऐड्रेस या माइक सिस्टम थे ? तो फिर कैसे सुना होगा ? हर एक के कान में जाकर कथा सुनाई क्या ? कल्पना कीजिए यह कैसे संभव हुआ करता था ? उन दिनों में हजारों लाखों श्रोता गण बैठे हैं कितना साइलेंस है। कितनी शांति है। पिन ड्रॉप साइलेंस, कुछ पिन तुम जानते हो जैसे हेयर पिंस और भी बहुत सारी पिंस होती हैं। पिन को गिरा दिया आवाज़ सुनाई देगी। कितनी शांति है कि पिन गिरने और गिराने से आवाज हो किन्तु अब तो बम ड्रॉप साइलेंस भी नहीं है। यदि बॉम भी फट गया तो भी सुनाई नहीं देता कितना नॉइस पोलूशन है। कितनी ध्वनि सर्वत्र होती रहती है, अशांति है। एक ऐसा समय था पिन गिरने का उसकी भी आवाज सुनाई देती थी। केवल बाहरी शांति ही नहीं हुआ करती थी सभी के मन भी शांत हुआ करते थे। श्रोताओं के मन शांत और सभी श्रोता बड़े उत्कंठित भी हुआ करते थे। वे सुनने के लिए आतुर हुआ करते थे। अभी पब्लिक मैं सुनाने के लिए लाउडस्पीकर भी चलता है, लेकिन हो सकता है लाउडस्पीकर तो चल रहा है और कथा हो रही है लेकिन हम सुन नहीं रहे हैं। हम वहां नहीं हैं। हमारा शरीर तो वहां है किंतु हमारा मन थाईलैंड चला गया यह हमारा मन काठमांडू गया या महाबलेश्वर गया अराउंड द वर्ल्ड इन एट डॉलर चल रहा है। कैसे सुनाई देगा हमारा मन ही वहां नहीं है और कहीं पहुंचे हैं। यह अंतर है जमाना बदल गया, वह 5000 वर्ष पूर्व की बात है वैसी परिस्थिति में, वैसे मन की स्थिति में वह संभव था। स्पीकर बोल रहे हैं सूत गोस्वामी बोल रहे हैं पहले शुक देव गोस्वामी बोले थे और हजारों लाखों श्रोता एकत्रित हैं। एंड देयर इज नो स्पीकर या स्पीकर तो है शुक देव गोस्वामी स्पीकर हैं लेकिन वहां बॉक्स स्पीकर नहीं है। वहां ट्रंपेट नहीं है। अब कथा होती है मुरारी बापू की कथा होती है एक्स्ट्रा ट्रंपेट लगाते हैं। हर 20 फीट की दूरी पर एक ट्रंपेट है या बॉक्स स्पीकर है। हरी हरी ! वहां पर सूत गोस्वामी ने ऐसा संस्मरण किया शुक देव गोस्वामी का सूत उवाच *यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥* (श्रीमदभागवतम १.२ .२) जैसे ही उनका जन्म हुआ, प्रकट हुए शुक देव गोस्वामी, कोई संस्कार नहीं हुआ उपनयन नहीं हुआ, या नामकरण नहीं हुआ, कोई संस्कार नहीं हुए, जिन्हे जन्मजात संस्कार कहते हैं और वे दौड़ पड़े प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं कोई ऐसा कार्य संस्कार संपन्न नहीं हुआ और वो वन की ओर, जंगल की ओर दौड़ पड़े। कोई आसक्ति नहीं थी। वह अहम ममेति से आसक्त नहीं थे। मुक्तात्मा, द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव, श्रील व्यास ने जब देखा हिज सन इज रनिंग, अरे पुत्र जा रहा है पुत्र की पीठ उनकी ओर है वह सन्मुख नहीं है। सन्मुख मतलब आमने-सामने नहीं है विमुख हो चुके हैं घर से, या जो भी संपत्ति है, या जो भी वैभव है ,रिश्ते नाते हैं, प्यारे दुलारे हैं , नो प्रॉब्लम, कोई चिंता नहीं है। विमुख होकर वन की और जब वे दौड़ने लगे विरह कातर पिताश्री, जो विरह से मर रहे हैं। व्याकुल हो रहे हैं और फिर पुत्रेति तन्मयतया और उन्होंने कहा पुत्र, ऐसा आचार्यों ने कहा है पुत्रेति, उन्होंने पुत्र, पुत्र ,पुत्र कहा कोई रिस्पांस नहीं, हे पुत्र पहले हृस्व कहा, फिर दीर्घ कहा पुत्र, फिर प्लुत कहा पुत्र, ऐसे संबोधन के तीन प्रकार होते हैं हृस्व दीर्घ और प्लुत, तीनों प्रकार से पुत्र कहा, कुकू कुकूकू कुकूकूकू इसको ऐसे भी कहा है जो हृस्व दीर्घ और प्लुत के उदाहरण हैं वह कुकुट वाला नहीं करना चाहिए कुकुट मुर्गा होता है हमने भी सुना जब हम गांव में थे। शहर में तो मुर्गे को आप डिनर के प्लेट में ही देखते हो लेकिन मुर्गा कैसा दिखता है सुंदर भी होता है और भगवान की कृपा से उसकी ड्यूटी भी लगाई है ब्रह्म मुहूर्त में सबको उठाने की। द्वारिका में भी मुर्गे हुआ करते थे, भागवत में वर्णन है द्वारिका के महल में और मुर्गों का कु कु कु सुनते ही भगवान छलांग मार के आउट ऑफ द बेड, लेकिन उनकी रानियां पसंद नहीं करती थी। मुर्गे को श्राप देती थी बदमाश कहीं का ! तुम्हारे कारण हम द्वारकाधीश के संग से बिछड़ गई हरि हरि ! इस प्रकार शुकदेव गोस्वामी को संबोधित कर रहे थे श्रील व्यासदेव पुत्रेति तन्मयतया पुत्र का विचार करते हुए, पुत्र को पुकार रहे हैं लेकिन पुत्र ने कोई जवाब नहीं दिया। जवाब किसने दिया ? तरवोऽ, यहाँ तरु से होता है तरवोऽ,तरु होता है एक वचन वहां बहुवचन तरवोऽ, बहुवचन , कौन बोले? उत्तर शुक देव गोस्वामी ने नहीं दिया। वृक्षों ने उत्तर दिया, वे कह रहे हैं हम भी तो अपने फल से आसक्त नहीं होते हैं कई लोग यहां से आते हैं वहां से आते हैं और चढ़ते हैं मेरे ऊपर और कई सारे फल तोड़ते हैं और ले जाते हैं लेकिन हम उनका पीछा नहीं करते। हम तो आसक्त नहीं होते अपने फल से हम पर जो फल उत्पन्न होते हैं हमारी शाखाओ के ऊपर जो फल होते हैं। लेकिन तुम स्वयं को आईने में देखो, देखो तुम्हारा चेहरा, तुम कितने आसक्त हो, पुत्र है वह फल ही है। माता पिता को पुत्र के रूप में फल प्राप्त हुआ उससे तुम आसक्त हो, हम तो आसक्त नहीं हैं। ऐसा मैसेज तरवोऽभि वृक्ष दे रहे हैं श्रील व्यास देव को, *सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि* सब जीवो के ह्रदय मैं विराजमान कहे जाने वाले उनके भावों को या विचारों को या सुख दुख को जानने वाले शुकदेव गोस्वामी सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ऐसे मुनि को नतोऽस्मि मेरा नमस्कार ऐसे, "यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि" हरि हरि ! गौर प्रेमानन्दे ! हरी हरी बोल !

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