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हरे कृष्ण।। जप चर्चा पंढरपुर धाम से, १५.०३.२०२१ 755 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं।हरि बोल। क्या नेपाल के भक्त जप कर रहे हैं?सबको सूचना दो और बताओ जप चर्चा के बारे में।आप सभी भक्त दूसरों को जगाओ। जीव जागो जीव जागो करो, प्रातःकाल में सोने वालों के लिए।माया पिशाची की गोद में कब तक लेटे रहोगे। "जीव जागो जीव जागो, गौरचांद बोले कोत निद्रा जाओ माया पिशाचीर-कोले" भक्ति विनोद ठाकुर का यह गीत हमने कल के मायापुर कीर्तन मेले के प्रारंभ में गाया था।आज भी 9 बजे कीर्तन हैं और आज के कीर्तन की सूचना आप जप चर्चा के अंत में सुनोगे। जैसा कि हमने परसों कहना प्रारंभ किया था, यह गौर पूर्णिमा का समय हैं तो हम महाप्रभु के ही बारे में चर्चा करेगें।उनकी कथा,नाम रूप, गुण ,लीला,धाम का स्मरण करेंगे।श्रवण और कीर्तन होगा।तो उसी बात को आगे बढ़ाते हुए चर्चा करेगें।चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं पर चैतन्य भागवत है और चैतन्य चरित्रामृत है। चैतन्य चरित्रामृत वृंदावन दास ठाकुर द्वारा रचित है। चैतन्य चरित्रामृत के आदि खंड के द्वितीय अध्याय में चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य का वर्णन है। या फिर यह कह सकते हैं कि उनके प्राकट्य के पूर्व की तैयारी का वर्णन है। इसमें यह भी वर्णन है कि कौन-कौन से भक्त जिम्मेदार रहे चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य में या कौन-कौन से भक्त कारण बने उनके प्राकट्य के लिए इत्यादि इत्यादि। यह सब बातें संक्षिप्त में हम आज आपको पढ़कर सुनाएंगे। Krsna Rama bhakti sunya sakala samsara prathana kalite haila bhavisya acara (चैतन्य भागवत आदि लीला २.६३) चैतन्य महाप्रभु के प्राकट्य से पहले ही संसार के सभी स्थान भक्ति शूनय और माया से पूर्ण हो गए। Dharma Karma loka sabe ei matra Jane mangalacandira gite kare jagarane (चैतन्य भागवत आदि लीला २.६४) मंगल,चंडी,गणेश,दुर्गा इन की यात्राएं,इनके उत्सव, इनके नामों का उच्चारण तो खूब हो रहा था,लेकिन कृष्ण का कीर्तन नहीं हो रहा था।लोग राम की पूजा या रामनवमी नहीं मनाते थे। यह हैं कलियुग। Dhana nasta kare Putra kanyara vibhaya ei-mata jagatera vyartha kala yaya (चैतन्य भागवत आदि लीला २.६६) लोग शादी विवाह पर धन का खूब अपव्यय कर रहे थे और अब भी करते हैं। कल भी हमने यहां एक विवाह देखा। हरि हरि।। Yeba Bhattacharya cakravarti misra saba taharao na Jane saba grantha anubhava (चैतन्य भागवत आदि लीला २.६७) बंगाल में ऐसे ही नाम पाए जाते हैं।क्योंकि यह ग्रंथ बांग्ला भाषा में है तो वहां के ही नामों का विवरण हैं। नाम तो है भट्टाचार्य या चक्रवर्ती या मिश्र किंतु ग्रंथो का अध्ययन करना नहीं जानते हैं। नाम ऐसा होने पर भी ग्रंथों का अध्ययन नहीं करते हैं। जैसे किसी का नाम तो हो चतुर्वेदी, त्रिवेदी,दिवेदी किंतु उन्हें फिर चार वेदों का नाम तक ना पता हो। आपने यह नाम तो सुना होगा, लेकिन समझा नहीं होगा कि इसका मतलब क्या है। चतुर्वेदी मतलब चार वेदों का ज्ञाता। त्रिवेदी मतलब तीन वेदों का ज्ञाता। और जो कम से कम 2 वेदों को जानता है वह हैं द्विवेदी। लेकिन आजकल का हाल क्या है?यह सभी निर्वेदी है। मतलब नाम तो है चतुर्वेदी लेकिन वेदों का नाम तक नहीं जानते हैं।पढ़ना तो बहुत दूर की बात है चतुर्वेदी से कहो कि तुम चतुर्वेदी हो चलो चार वेदों के नाम बताओ तो वह चार वेदों के नाम तक नहीं बता पाएगा। तो वह कैसा चतुर्वेदी है। इसलिए हम इनको कहते हैं निर्वेदी। Yeba saba virakta tapasvi abhimani tan sabara mukheha nahika Hari dvani (चैतन्य भागवत आदि लीला २.७०) कई तपस्वी ज्ञान का अर्जन तो करते हैं,लेकिन उनको उसका अहंकार होता हैं।कि हम इतने ज्ञानी है,हम इतने तपस्वी हैं। हरि हरि।। यह‌ लोग अधिकतर पाखंडी होते हैं या अहंकारी होते हैं। कृष्ण तो कहते हैं कि विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि | शुनि चैव श्वपाके च पण्डिता: समदर्शिन: || भगवद्गीता 5.18 हमे विद्या और विनय से संपन्न होना चाहिए।हमें बहुत ही विनम्र होना चाहिए,लेकिन उस वक्त ऐसा नहीं हो रहा था। यह 500 वर्ष पूर्व के पहले की बात है। अब तो बातें और भी ज्यादा बिगड़ रही हैं।लोगों के मुख से हरि ध्वनि नहीं निकलती थी। हो सकता है कि कोई सिनेमा का संगीत ही निकलता होगा या फिर देवी देवताओं के भजन,कीर्तन या जागरण।अगर दिल्ली की तरफ जाओ तो आज कल भी देवी का जागरण चलता है।लोग देवी के गुण गाते हैं।लेकिन आदि देव कृष्ण के गुण नहीं गाते।और फिर दूसरा नाम अपराध करते हैं। Ati vada sukrti se snanera samaya Govinda pundarikaksa nama uccaraya (चैतन्य भागवत आदि लीला २.७१) और कोई कोई विरला व्यक्ति लाखों में से एक व्यक्ति स्नान के समय कृष्ण नाम का उच्चारण करता और गुणगान करता था। मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये| यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वत: || भगवद्गीता 7.3 तो कोई विरला व्यक्ति स्नान के समय गाता था।उनको कहते हैं बाथरूम सिंगर। कौन होता है बाथरूम सिंगर?जो स्नान के समय बाथरूम में गाते रहते हैं।बाथरूम में कुछ समय गा भी लेते हैं और बाथरूम से बाहर आकर तो कुछ और ही गान शुरू हो जाता है जैसे दूरदर्शन,टेलीविजन और भी बहुत कुछ। रेडियो भी है।बस यही सब सुनते हैं। Gita bhagavata ye-ye janete padaya bhaktira vyakhyana nahi tahara jihvaya (चैतन्य भागवत आदि लीला २.७२) भक्ति का व्याख्यान नहीं सुनते। गीता या भागवत नहीं सुनते। बल्कि उसकी बजाय माया वाद भाष्य सुनते हैं। माया वाद भाष्य हो या निरविशेष भाष्य हो या सामयवाद भाष्य हो। ऐसे भाष्य लोग सुना करते थे।लेकिन भगवत गीता यथारूप नहीं सुनते या पढ़ते थे या भागवतम नहीं सुनते पढ़ते थे।अब भी ऐसा ही हो रहा है। परंपरा में श्रवण और कीर्तन नहीं करते हैं। केमने एइ जीव सब पाइबे उद्धार विषये सूखेते सब माझिला‌ संसार (चैतन्य भागवत आदि लीला २.७४) ऐसे जीवो का कैसे उद्धार होगा?इस संसार के सांसारिक लोग विषय भोगो में या सुख और विलास में मस्त है उनका कैसे उद्धार होगा? सेई नवद्वीपे वैसे वैष्णव अग्रगण्य अद्वैत आचार्य नाम सर्व लोकेर धन्य (चैतन्य भागवत आदि लीला २.७८) उसी नवदीप के पास शांतिपुर में अद्वैत आचार्य रहते थे। उनका नाम अद्वैताचार्य था।अद्वैत मतलब भगवान से भिन्न नहीं भगवान से अभिन्न।वह भगवान ही थे। और वह धन्य थे। वह ज्ञानवान और धनवान थे।उनके पास हरि नाम का धन था और उनका जीवन धन्य था। Tulasi Manjari sahita Ganga jale niravadhi seve krsne maha kutuhale (चैतन्य भागवत आदि लीला २.८१) उन दिनों में अगर कोई चिंतित था कि इन कलियुग के पतित जीवो का कैसे उद्धार होगा तो वह थे अद्वैत आचार्य प्रभु।पतितानाम पावनेभयो। ऐसे पतितो का उद्धार करने के लिए आएंगे महाप्रभु। अद्वैत आचार्य को चिंता थी कि इन पतित लोगों का उद्धार कैसे होगा। इनका कल्याण कैसे होगा। यह लोग कैसे धन्य होंगे। यही चीज वह निरंतर सोचते हुए अपनी शालिग्राम शिला की आराधना करते थे तुलसीदल और गंगा जल अर्पित करते हुए यह प्रार्थना करते थे और और पुकारते थे कि है प्रभु कृपया इन पतित्तों का उद्धार करने के लिए प्रकट होइए। huṅkāra karaye kṛṣṇa-āveśera teje ye dhvani brahmāṇḍa bhedi’ vaikuṇṭhete bāje (चैतन्य भागवत आदि लीला २.८२) उनकी जो पुकार थी,या उनका जो हुंकार था वह ब्रह्मांड का भेदन या छेद करते हुए ब्रह्मांड के परे, विरजा नदी के परे, वैकुंठ तक या फिर अंततोगत्वा गोलोक तक पहुंच गई और उनकी पुकार गोलोक में श्री कृष्ण सुन रहे हैं। Sva Bhave Advaita bada Karunya hrdaya jivera uddhara cinte haiya sadaya (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.90) स्वभाव से अद्वैत आचार्य करुणा की मूर्ति थे। दया भाव उन में भरा हुआ था। Mora Prabhu asi yadi kare avatara tabe haya e sakala jivera uddhara (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.91) अगर मेरे प्रभु उत्तीर्ण होगे,यदि वह अवतार लेंगे, तो इन सब का उद्धार होगा। अद्वैताचार्य बार-बार यह प्रार्थना कर रहे थे। Aniya Vaikuntha natha saksat kariya naciba Sarva Jiva uddhariya (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.93) वह यह स्वपन देख रहे हैं कि वह दिन कब आएगा जब नवदीप में सभी जीवों को साथ में लेकर महाप्रभु नाचेंगे, गाएंगे । जब नाम नाचेगा, जीव नाचेगा।हरि नाम नाचेगा। Sei navadvipe vaise pandita srivasa yanhara mandire haila caitanya vilasa ( चैतन्य भागवत आदि लीला 2.96) उसी नवद्वीप में श्रीवास ठाकुर रहते थे और वह भगवान के अनन्य भक्त थे। Sarva kala cari bhai krsna nama tri Kala karaye krsna puja Ganga snana (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.96) यह चार भाई थे। श्रीवास ठाकुर, श्रीनिधि, श्री राम ।ऐसे चार भाई थे। वह सभी कीर्तन करने लगे थे। महाप्रभु के प्राकट्य से पहले नाम आचार्य श्रीहल हरिदास ठाकुर भी कीर्तन कर रहे थे।श्रीवास ठाकुर भी कीर्तन कर रहे थे।श्रीवास ठाकुर तो मायापुर धाम के ही थे। महाप्रभु के संगी गन सभी अलग-अलग जगह पर प्रकट हुए थे ।कोई राढ देश में, तो कोई उड़ीसा प्रदेश में ।सब अलग-अलग जगह प्रकट हुए लेकिन महाप्रभु के प्राकट्य के उपरांत सभी नवदीप पहुंच गए Saba uddharibe krsna apane asiya bujhaibe krsna bhakti toma saba laiya (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.119) कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के रूप में प्रकट होंगे और हम सब को साथ में लेकर कृष्ण भक्ति सिखाएंगे और कृष्ण भक्ति करवाएंगे। कृष्ण नाम संकीर्तन होगा। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। Krsna Sindhu bhakti data Prabhu balarama avatirna haila dhari Nityananda nama (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.131) और चैतन्य महाप्रभु से पहले नित्यानंद प्रभु प्रकट होंगे।अब उनके बारे में उल्लेख हुआ है कि वह कैसे हैं।कृपासिंधु बलराम,भक्ति दाता बलराम नित्यानंद राम के रूप में प्रकट होंगे।उनका नाम नित्यानंद होगा। Navadvipe ache Jagannatha misra vara Vasudeva praya tenho sva dharme tatpara ( चैतन्य भागवत आदि लीला 2.136) उसी नवदीप मायापुर में जगन्नाथ मिश्र भी प्रकट हुए थे ।भगवान ने ऐसी व्यवस्था की है कि अपने परिकरो को, पार्षदों को पहले भेजा हैं। तो इन पार्षदों में जगन्नाथ मिश्र जोकि चैतन्य महाप्रभु के पिता बनने वाले हैं ।वह मानो वसुदेव ही थे। मानना क्या है वह वसुदेव थे ही। वसुदेव और देवकी दोनों ही प्रकट हुए। हरि हरि ।। दशरथ और कौशल्या प्रकट हुए या कह सकते हैं कि नंद महाराज और यशोदा माई प्रकट हुए। अलग-अलग स्थानों पर इसका विवरण मिलता है ।जो महाप्रभु को जन्म देंगी (शचि गर्भ सिंधु) शचि माता के गर्भ से आएंगे श्री कृष्णा चेतनय।जिनका नाम निमाई होगा। Tanna patni saci nama maha pati vrata Murti mati Visnu bhakti sei Jagan mata (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.139) जगन्नाथ मिश्र की पत्नी होगी शचि माता। कैसी शचि माता?महा सति। मूर्तिमती विष्णु भक्ति।विष्णु भक्ति का ही मूर्तिमत रूप।विष्णु भक्ति शचि माता के रूप में प्रकट हुई। Visvarupa Murti yena abhinna madana dekhi harasita dui brahmani brahmana (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.141) पहले तो शचि माता ने 9 पुत्रियों को जन्म दिया और जन्म लेते ही उनकी मृत्यु हो गई थी। देवकी के छह पुत्रों का वध कंस ने किया था। ऐसे ही यहा नवदीप में भी शचि माता ने नौ पुत्रियों को जन्म दिया और जन्म के कुछ ही समय उपरांत उनकी मृत्यु हुई और दसवें हुए विश्वरूप। यह पहले पुत्र थे और यह भगवान की कृपा से जीवित रहे। मदन मोहन जैसे मदन को भी मोहित करने वाले अति सुंदर सुकुमार के रूप में प्रकट हुए विश्वरूप को देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी मतलब शचि माता और जगन्नाथ मिश्र बहुत ही प्रसन्न हुए। Jaya Jaya mahaprabhu janaka sabara Jaya Jaya sankirtana hetu avatara (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.151) अब चैतन्य महाप्रभु की बारी है।अगला प्राकट्य निमाई का होगा। चैतन्य महाप्रभु का अवतार संकीर्तन के प्रचार प्रसार के हेतु हुआ। Jaya Jaya veda dharma Sadhu vipra paila Jaya Jaya abhakta damana mahakala (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.152) गौरांग महाप्रभु साधुओं की रक्षा करेंगे और दुष्टों का दमन करेंगे। Jaya Jaya Sarva Satya maya kalevara Jaya Jaya iccha Maya maha mahesvara ( चैतन्य भागवत आदि लीला 2.153) उनका कलेवर सत्य है ।भगवान सत्य है। एक तू सच्चा और एक तेरा नाम सच्चा। गीता में भगवान कह रहे हैं कि मैं अपनी इच्छा से प्रकट होता हूं। आत्म मायय।अपनी इच्छा से अपनी योग माया से भगवान प्रकट होते हैं। Navadvipa pratio thakura namakara saci Jagannath grhe yatha avatara (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.193) ग्रंथकार लिख रहे हैं कि हम उस नवद्वीप को नमस्कार करते हैं। जैसे लोग जहां भी है वहीं से मीका को नमस्कार करते हैं।जेरूसेलम को नमस्कार करते हैं ।यहां अब नवदीप में महाप्रभु प्रकट होंगे तो उस नवदीप को हमारा नमस्कार। नमस्कार हो उस धाम को जिस धाम में शचि माता और जगन्नाथ मिश्र के घर पर भगवान प्रकट होने जा रहे हैं। Ei mata brahmadi devata prati dine Gupte rahi isvarera Karena stavane (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.194) जैसे कृष्ण जन्म के समय सभी देवता गण मथुरा मंडल में पहुंचे थे। वही देवताओं की मंडली आज नवद्वीप पहुंची है और उन्होंने अपना स्तुति गान प्रारंभ किया हैं। Saci garbhe vaise Sarva bhuvanera vasa Phalguni Purnima asi haila prakasa ( चैतन्य भागवत आदि लीला 2.195) चैतन्य महाप्रभु जगन्निवास हैं या त्रिभुवन नाथ हैं। त्रिभुवन नाथ या जगन्निवास जिनमें सारा जग निवास करता है। वह अभी शचि माता के गर्भ में वास कर रहे हैं।थोड़ा ज्यादा समय वह गर्भ में बने रहे। 10 महीने के उपरांत प्रकट होना था परंतु वह कुछ और समय तक रहे और फिर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन महाप्रभु का प्राकट्य हुआ। हरि बोल।। उसी फाल्गुनी पूर्णिमा का नाम हुआ फिर गौर पूर्णिमा। संसार इसको फाल्गुन पुर्णिमा कहता है लेकिन गोडिय वैष्णव जगत में इस पूर्णिमा का नाम है गौर पूर्णिमा।गौर पूर्णिमा महोत्सव की जय।। Ananta brahmande yata ache sumangala sei purnimaya asi milila sakala (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.196) उस समय नवद्वीप में मांगलय प्रकट हुआ। सारा मंगल वहा प्रकट हुआ हैं। Sankirtana sahita prabhura avatara grahanera chale taha Karena pracara (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.197) कीर्तन के साथ चैतन्य महाप्रभु ने अवतार लिया हैं या उनके प्राकट्य के पहले दिन ही संकीर्तन प्रारंभ हुआ है। उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी तो चंद्रग्रहण था।पूर्णिमा के दिन चंद्र ग्रहण होता है और अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण होता है। यह तो एक कारण बनना था और कारण बन गया कि लोग यहां वहां से दौड़ कर नवद्वीप स्नान करने पहुंचे थे। केवल पुण्य आत्मा ही नहीं पापी आत्मा भी दौड़ रहे थे। पता नहीं क्यों महा प्रभु की कृपा ही थी कि सभी को पहुंचा दिया। केवल मानव ही नहीं दानव भी वहां पहुंच गए। हरि हरि।। केवल रक्षक ही नहीं भक्षक भी वहां पहुंच गए। यह सभी के सभी वहां जाकर कीर्तन कर रहे थे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे का कीर्तन हो रहा था ।भगवान ने ग्रहण का बहाना बनाया ताकि सभी भगवान के नाम का गुणगान कर सके। चंद्र ग्रहण के दिन या सूर्य ग्रहण के दिन भी लोग पवित्र नदी में जाकर स्नान करते हैं और भगवान के नामों का उच्चारण करते थे और करते हैं।चंद्र ग्रहण के बहाने से बहुत लोगों को भगवान ने उस जगह पर जुटाया। उन्हें नवदीप लाए स्नान कर रहे हैं लोग और साथ में कीर्तन भी कर रहे हैं। स्वयं प्रकट होने से पहले कीर्तन के रूप में प्रकट हुए। स्वयं तो तब प्रकट होंगे जब चंद्रोदय होगा। लेकिन उस दिन तो चंद्र ने भी अपना मुख मंडल नहीं दिखाया। चंद्र ग्रहण का बहाना बनाकर चंद्र ने भी अपने मुंह को छुपा लिया। चंद्र सोच रहा था कि यह ऐसा मुखड़ा है जिसमें कई सारे धब्बे हैं। दाग है,कलंक है,मेरे मुंह पर तो उस बेचारे चंद्र ने सोचा कि चलो इस मुख को छुपा लेते हैं ।उसने अपने मुख को घुंघट से ढक लिया चंद्र ग्रहण के बहाने से। बहुकोटिचन्द्र जिनिवदनउज्ज्वल । गलदेशेवनमाला करेझलमल जिनका तेज कोटि-कोटि चंद्रमा सदृश है,ऐसे चैतन्य महाप्रभु के सामने मैं अपने धब्बे वाला मुख कैसे दिखाऊंगा। तो चलो मैं इसे छुपा लेता हूं। चंद्र ग्रहण के बहाने से उसने अपना मुखड़ा छुपा लिया है ।संसार को चैतन्य चंद्र का ही दर्शन करने दो ।मुझ चंद्र के दर्शन करने की कोई आवश्यकता नहीं है। Hari bola Hari bola sabe ei suni sakala brahmande vyapileka Hari dvani (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.206) जन्म का क्षण जितना अधिक निकट आ रहा हैं उतना ही अधिक जोर से अधिक उत्साह से हरि बोल,हरि बोल का स्वर गूंज रहा है। कीर्तन एवं नृत्य हो रहा है। kibā śiśu, vṛddha, nārī, sajjana, durjana sabe ‘hari’ ‘hari’ bole dekhiyā ‘grahaṇa (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.205) छोटे बालक वृद्ध नारी सज्जन और यहां तक कि दुर्जन भी सभी हरि बोल हरि बोल का उच्चारण कर रहे हैं। catur-dike puṣpa-vṛṣṭi kare deva-gaṇa ‘jaya’-śabde dundubhi bājaye anukṣaṇa (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.207) चारों दिशाओं से देवता गन पुष्प वृष्टि कर रहे हैं। मंगल गान हो रहा है। दुंदुभी और नगाड़े बज रहे हैं। अप्सराएं नृत्य कर रही हैं। गंधर्व गा रहे हैं। जय हो। जय हो ।जय हो की ध्वनि सुनाई दे रही है। Henai samaye Sarva Jagat jivana avatirna hailena Sri saci Nandana (चैतन्य भागवत आदि लीला 2.208) इसी क्षण चंद्रोदय का समय हैं। आज चंद्र का उदय तो होगा लेकिन दर्शन नहीं देगा चंद्र।उसी समय शचिनंदन का प्राकट्य हुआ। निताई गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। जय निमाई जय निमाई जय निमाई।। गौरंगा नित्यानंदा गौरंगा नित्यानंदा नित्यानंदा गौरंगा। हो गए भगवान प्रकट। धन्यवाद।। हरे कृष्णा।।

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