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*जप चर्चा* *पंढरपुर धाम से* *14 April 2021* हरे कृष्ण! आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 797 लगभग 800 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि! हरि! जय श्री राम! वेणु माधव, कृष्ण कांता एंड कंपनी, क्या तुम तैयार हो? हरि! हरि! आज प्रात: काल मैं रामायण महात्म्य पढ़ रहा था। श्रील व्यासदेव ने स्कन्द पुराण में रामायण महात्मय की रचना की है। उस रामायण महात्मय के अध्याय 5 के श्लोक संख्या 51 में वर्णन है कि *रामनामैव नामैव नामैव नामैव मम् जीवनं कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।* ( स्कन्द पुराण) अनुवाद:- श्री राम जी का नाम, केवल श्री राम नाम ही, राम नाम ही मेरा जीवन है। कलियुग में राम नाम के सिवाय और किसी उपाय से जीवों की सद्गति नहीं होती। वैसे आप इस श्लोक से परिचित तो होंगे ही, लेकिन यह वही नहीं है, पर वैसा ही है। ( मिलता जुलता ही है) रामनामैव नामैव नामैव नामैव राम का नाम, राम का नाम, राम का नाम ही केवल कलियुग में मेरा जीवन है, नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा , दूसरा कोई उपाय नहीं हैं। दूसरा कोई उपाय नहीं है। इस प्रकार श्रील व्यासदेव, स्वयं राम के नाम की महिमा का गान रामायण महात्मय में करते हैं। जब हम ऐसे वचन पढ़ते हैं, तब हम जो प्रतिदिन जप किया करते हैं, उस जप के लिए हमें ऐसे वचनों से प्रेरणा प्राप्त होती हैं और होनी भी चाहिए। यहां हरिनाम की महिमा की पुष्टि हुई है। हरि हरि! जय श्री राम! कल हम बता ही रहे थे कि पत्थर भी तैर रहे थे। नल और नील जब भगवान् राम का नाम उन पत्थरों पर लिखते थे तब वे पत्थर तैरने लगते थे। इसलिए आप क्या चाहते हो? डूबना चाहते हो या तैरना चाहते हो? जीना चाहते हो या मरना चाहते हो? या जी कर पुनः मरना या मर के पुनः जीना और फिर मरना या मरण की माला को चाहते हो अथवा अमर बनना चाहते हो? मृत्यु से बचना चाहते हो? यहां वर्णन है कि 'रामनामैव केवलम' अर्थात राम का नाम लो। रामायण की रचना करने वाले वाल्मीकि जी वल्मिक में बैठे हुए थे जिसे चीटियों का पहाड़ अथवा ऐन्ट हिल भी कहते हैं। चीटियों ने एक छोटा सा टीला बनाया जिसके अंदर रत्नाकर बैठे हुए थे। ऐसा उल्लेख आता है कि वाल्मीकि जी का पहले का नाम रत्नाकर था। वे राम... राम.. राम.. उच्चारण करने से पूर्व तो पापी ही थे, वह पूर्व के जगाई मधाई थे अर्थात जैसे चैतन्य महाप्रभु के समय में जगाई मधाई थे, वैसे ही वह त्रेतायुग के जगाई मधाई ही थे। यह रत्नाकर डाकू व चोर था अथवा क्या नही था। वह पापियों में नामी था किंतु दैव योग से उसकी नारद जी से मुलाकात हुई। रत्नाकर अन्यों को तो लूटते ही था क्योंकि वह लुटेरा था, लेकिन जब नारद जी आए तब रत्नाकर उनको भी लूटना चाह रहा था परंतु नारद जी के पास लूटने के लिए क्या है? वैसे है। क्या था? राम नाम के हीरे मोती बिखराऊं मैं गली गली। उसी गीत में कहा गया है 'लूट सके तो लूट। वैसे' हम भी इस संसार में छोटे-मोटे लुटेरे होते ही हैं। हम भी, आप भी, मैं भी.. हम सब लूटते रहे हैं। हैं या नहीं? जब तक हम राम या श्री कृष्ण के शुद्ध भक्त नहीं बनते, तब तक हम छोटे-मोटे लुटेरे होते ही हैं। इस संसार का हर व्यक्ति लुटेरा है। लूटता ही रहता है। हरि! हरि! 'लूट सके तो लूट।' अयोध्यानाथ! तुम लूट रहे हो? रत्नाकर ने हरि नाम को लूट लिया।जब उन्होंने नारद को लूटा, तब रत्नाकर को नारद जी से क्या प्राप्त हुआ? वैसे नारद को लूटने की आवश्यकता ही नहीं थी। नारद जी तो कृपालु व दयालु हैं। उन्होंने यह धन दिया। अरे बदमाश! तुम संसार भर का धन लूटते ही रहते हो। यह संसार की धन दौलत काम की नहीं है। मैं तुम्हें धनी बनाता हूं। 'ले लो, राम का नाम ले लो, राम का नाम लो, राम लो, राम को लो।' *जो आनंद लकीर फकीर करें, वह आनंद नाहि अमीरी में।* संसार भर के तथाकथित अमीर जिसे सुख या आनंद कहते हैं, वह आनंद तुच्छ है। वह आनंद त्यागियों, वैरागियों के आनंद के समक्ष तुच्छ है। जिन्होंने हरि नाम व राम नाम को अपना धन बनाया है व हरि नाम को लूटते रहते हैं अथवा हरि नाम लेते रहते हैं। राम नाम लेते रहते हैं, वे आनंद पाते हैं। वह आनंद नाही अमीरी में अथवा वह आनंद अमीर होने में नहीं है। नारद जी ने रत्नाकर को थोड़ी सी महिमा सुना कर राम नाम दिया। रत्नाकर इतने पापी थे। प्रारंभ में जब हम राम नाम का उच्चारण करते हैं( जैसे हमसे कई प्रकार के अपराध होते हैं। जैसे नाम अपराध।) वैसे ही वह राम राम राम कहने की बजाय म..रा.. म..रा... म..रा.. म.. राम राम राम राम राम राम राम.. कहने लगे। व्यक्ति कुछ समय बाद सीधे पटरी पर आ जाता है। व्यक्ति शुरुआत में अपराध करेगा लेकिन जब सुधरने का प्रयास करेगा अथवा अपराधों से बचने का प्रयास भी करेगा तब वह अपराधों से मुक्त होगा। रत्नाकर भी अपराधों से मुक्त हुआ और सही उच्चारण करने लगा और ध्यान पूर्वक जप करने लगा। तत्पश्चात वह राम नाम में इतना तल्लीन हो गया, उन्हें देहभान नही रहा। राम का नाम वे लेते ही रहे। इस प्रकार रात और दिन, कई महीने बीत गए, कई वर्ष बीत गए। त्रेता युग में लोग 10000 वर्षों तक जीते थे (आपको पता है या नहीं?) उन्होंने कई वर्षों तक नाम साधना की। हरि! हरि! उन्हें राम का साक्षात्कार हुआ। उन्होंने राम को अनुभव किया। राम! राम! राम! राम के उच्चारण में *रामनामैव नामैव नामैव नामैव मम् जीवनं कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।* ( स्कन्द पुराण) राम के नाम का श्रवण करने वाला यह रत्नाकर अब राम का दर्शन करने लगा। अब उन्हें भगवान् के विग्रहों का दर्शन, रूप का दर्शन, लीलाओं का दर्शन, गुणों का दर्शन होने लगा। इस प्रकार से वे रामायण लिखने के अधिकारी बनें। राम नाम ने उनको योग्य बनाया। उनमें ऐसी गुणवत्ता आयी कि वह राम की लीला को देखते देखते लिखा करते थे। वे राम की लीला देख रहे थे। वैसे वह कभी राम को मिले व देखे भी नहीं थे। राम के समय ही राम की लीला अथवा रामायण की रचना हुई है। जब वाल्मीकि मुनि के आश्रम में लव कुश का जन्म हुआ, उसी समय रामायण की रचना हो रही थी। उन दिनों में राम अयोध्या में थे। उत्तर कांड जोकि सातवां कांड हैं। सातवां कांड अर्थात उत्तर कांड में जब श्री राम अयोध्या में वनवास के बाद वापिस लौट आए। उसी समय रामायण भी लिखी गयी थी। *हत्वा क्रूरम दुराधर्षम् देव ऋषीणाम् भयावहम्। दश वर्ष सहस्त्राणि दश वर्ष शतानि च।* ( 1-15-29) अनुवाद:- देवताओं तथा ऋषिओं को भय देने वाले उस क्रूर व इतने वर्ष राम धरातल पर रहे। दुर्धर्ष राक्षस का नाश करके मैं ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी का पालन करते हुए इस मनुष्य लोक में निवास करूंगा। वैसे राम इस धरातल पर 11 हजार वर्ष रहे। दश वर्ष सहस्त्राणि दश वर्ष शतानि च। यह मैं कहता ही रहता हूँ, अच्छा लगता है। दश सहस्त्र अर्थात दस हजार। दश शतानि अर्थात दस बार सौ-सौ अथवा एक हजार हुआ। दस हजार और एक हजार। श्री राम ग्यारह हजार वर्ष इस धरातल पर थे लेकिन रामायण की रचना तब हुई जब राम अयोध्या में पहुंचे थे अर्थात उसी समय रामायण की रचना वाले वाल्मीकि जी ने की थी । रामायण की रचना करने की क्षमता उन्हें उनके गुरु नारद की कृपा से, ब्रह्मा की कृपा से प्राप्त हुई थी। वाल्मीकि नारद के कृपा पात्र शिष्य हुए। गुरु ने राम नाम का मंत्र दिया और वह मंत्र का उच्चारण करते करते शुद्ध बने। *चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम्।आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्।।* ( श्री श्री शिक्षाष्टकम्) अनुवाद:- श्रीकृष्ण-संकीर्तन की परम विजय हो, जो वर्षों से संचित मल से चित्त का मार्जन करने वाला तथा बारम्बार जन्म-मृत्यु रूप महादावानल को शान्त करने वाला है। यह संकीर्तन-यज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगलरूपी चन्द्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृत विद्यारूपी वधु का यही जीवन है। यह आनन्द के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्रीकृष्ण-नाम हमारे द्वारा नित्य वांछित पूर्णामृत का हमें आस्वादन कराता है। उन्हें भगवान् का दर्शन भी हुआ। वे भगवान् के नाम का दर्शन कर रहे थे। जैसे जैसे दर्शन कर रहे थे, वैसे वैसे वे लिखते गए। तब वह रामायण बन गयी। हरि! हरि! ऐसी है राम की महिमा। राम की महिमा के संबंध में यह भी कहा है कि जब हम राम कहते हैं( राम कहो. आप कह रहे हो.. राम....) तब हमारे किए हुए सारे पाप निकल जाते हैं। राम् कहते हुए हमारा मुख खुला होता है तब सारे पाप निकल जाते हैं। तत्पश्चात जब म कहा- द्वार बंद हुआ तब पुनः पाप प्रवेश नहीं करेंगे। दरवाजा बंद। रा...म... । इस राम नाम के पुजारी ..वैसे हम भी राम का नाम लेते हैं, पूरा संसार राम नाम ले रहा है, आप भी राम नाम ले रहे हो.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे. यह कृष्ण का नाम है। कृष्ण ही राम हैं। कृष्ण का नाम ही राम है। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कह कर हम कृष्ण और राम की सभी की आराधना करते हैं । जब हम राम राम राम कहते हैं, तब हम राम की तो जरूर करते ही हैं। राम भक्त हनुमान की जय! राम भक्त हनुमान की ख्याति है, वे भी राम नाम उच्चारण के लिए प्रसिद्ध हैं। हम हनुमान के कई चित्र, फोटोग्राफस देखते हैं। हनुमान का फोटो कैमरे से तो नहीं खींचा, लेकिन भक्त पेंटिंग बनाते हैं। उसमें हम हनुमान को देखते हैं। राम राम राम सीता राम राम राम राम राम राम सीता राम राम राम।। वे सदा भगवान राम के नाम का उच्चारण किया करते थे। उनके हाथ में काम और मुख में राम का नाम रहता था। वैसे कैसे सम्भव है कि राम का भक्त हो या कृष्ण का भक्त हो, वह कृष्ण का नाम ना ले, या राम का नाम ना ले, राम की कथा को कहें या ना सुनें। *तद्वाग्विसर्गो जनताघविप्लवो यस्मिन् प्रतिश्लोकमबद्धवत्यपि नामान्यनन्तसय यशोअङ्कितानि यत् श्र्ण्वन्ति गायन्ति गृणन्ति साधवः।।* ( श्रीमद् भागवतम 10.5.11) अनुवाद:- दूसरी ओर, जो साहित्य असीम प्रेमश्वर के नाम, यश, रूपों तथा लीलाओं की दिव्य महिमा के वर्णन से पूर्ण है, वह कुछ भिन्न ही रचना है जो इस जगत की गुमराह सभ्यता के अपवित्र जीवन में क्रांति लाने वाले दिव्य शब्दों से ओतप्रोत है। ऐसा दिव्य साहित्य, चाहे वह ठीक से न भी रचा हुआ हो, ऐसे पवित्र मनुष्यों द्वारा सुना गया तथा स्वीकार किया जाता है, जो नितांत निष्कपट होते हैं। वैसे ऐसे सभी भक्तों की महिमा भी है, वे सन्त या भक्त गृहस्थ भक्त भी हो सकता है, स्त्री भी हो सकती है, पुरुष भी हो सकते हैं। यह, वह कोई भी हो सकता है।. नाम का उच्चारण या श्रवण कीर्तन तो सभी भक्त करते ही रहते हैं। भक्त के जीवन से इस हरिनाम को, इस हरिकथा को अलग नहीं किया जा सकता। इस हरि नाम इस हरि कथा का गान सर्वत्र है। *वेदे रामायणे चैव पुराणे भारते तथा।आदावन्ते च मध्ये च हरिः सर्वत्र गीयते।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत आदि लीला 7.131 तात्पर्य) अनुसार- " वैदिक साहित्य में, जिसमें रामायण, पुराण तथा महाभारत सम्मिलित है, आदि से लेकर अंत तक तथा बीच में भी केवल भगवान् हरि की ही व्याख्या की गई हैं।" *आदावन्ते च मध्ये च हरिः ( राम) सर्वत्र गीयते।।* या हम कह ही रहे थे। *अक्षरं मधुरम अक्षरं*... वाल्मीकि मुनि ने रामायण की रचना की हैं। रामायण के प्रारंभ, मध्य व अंत में राम नाम की महिमा, राम लीला का गान, राम के गुणों का वर्णन, राम के भक्तों के चरित्र का वर्णन सर्वत्र पाया जाता है। इस प्रकार राम भक्तों अथवा कृष्ण भक्तों को राम नाम अथवा कृष्ण नाम से अलग नहीं किया जा सकता है। इसलिए *निम्नगानां यथा गङ्गा देवानामच्युतो यथा । वैष्णवानां यथा शम्भु: पुराणानामिदं तथा।।* ( श्रीमद् भागवतम् 12.14.16) अनुवाद:- जिस तरह गंगा समुन्दर की ओर बहने वाली समस्त नदियों में सबसे बड़ी है, भगवान् अच्युत देवों में सर्वोच्च हैं और भगवान् शम्भू ( शिव) वैष्णवों में सबसे बड़े हैं, उसी तरह श्रीमद् भागवतम् समस्त पुराणों में सर्वोपरि है। शिवजी ने एक समय कहा था - *राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।सहस्र नामभिस्तुल्यं रावम- नाम वरानने।।* ( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 9.32) अथवा बृहद्विष्णु-सहस्त्रनाम स्त्रोत 72.335) अनुवाद:- ( शिवजी ने अपनी पत्नी दुर्गा से कहा:- हे वरानना, मैं राम, राम, राम के पवित्र नाम का कीर्तन करता हूँ और इस सुंदर ध्वनि का आनंद लूटता हूँ। रामचंद्र का यह पवित्र नाम भगवान् विष्णु के एक हजार नामों के बराबर है। यह अच्छा वचन है। मनोरमे! मनोरमा, पार्वती का नाम है। मनोरमे मतलब शिवजी, पार्वती जी को सम्बोधित कर रहे हैं, इसलिए मनोरमे हुआ। जैसे सीता का सीते सम्बोधन होता है, वैसे ही मनोरमा का मनोरमे हुआ। हे मनोरमे! *ददाति प्रतिगृह्णाति गुह्यमाख्यति पृच्छति। भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्विधं प्रीति-लक्षणम।* ( उपदेशामृत श्लोक संख्या 4) अनुवाद:- दान में उपहार देना, दान- स्वरूप उपहार लेना, विश्वास में आकर अपने मन की बातें प्रकट करना, गोपनीय ढंग से पूछना, प्रसाद ग्रहण करना तथा प्रसाद अर्पित करना- भक्तों के आपस में प्रेमपूर्ण व्यवहार के ये छः लक्षण हैं। यह पति- पत्नी गुह्यम् को सुनते और सुनाते रहते हैं। वैसे केवल शिवजी ही कथा नहीं करते,पार्वती की भी बारी आती है। पार्वती भी राम कृष्ण की कथा करती है। यहाँ शिवजी अपने दिल की बात पार्वती को सुना रहे हैं। वे कहते हैं कि राम रामेति रामेति अर्थात यह जो राम नाम है, रमे रामे , उसमें मैं रमता हूं। अहम रमे। ( संस्कृत का वाक्य हुआ मैं रमता हूँ। संस्कृत में कहो - मैं रमता हूँ- अहम रमे, मैं भजता हूँ- अहम भजे, मैं वंदना करता हूँ-अहम वंदे) शिवजी कह रहे हैं कि अहम रमे- रामे अर्थात मैं राम में रमता हूँ या राम के नामों में मैं रमता हूँ। कह सकते हैं कि शिवजी बहुत बडे़ या सबसे बडे़ राम के भक्त हैं, शिव भक्तों, शिवजी को समझो। वे स्वयं भी राम की भक्ति करते हैं। आप भी राम की भक्ति करो। शिवजी आचार्य हैं और सिखा रहे हैं कि किनकी भक्ति अथवा सेवा करनी चाहिए। हरि! हरि! *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* यह जप और कीर्तन करते रहो। हम राम नाम का कीर्तन करेंगे। जैसा कहा कि राम कहने से सारे पाप बाहर निकल जाएंगे और पुनः पाप का प्रवेश नहीं होगा। दरवाजे बंद हो जाएंगे। हम कीर्तन करेंगे। जब कीर्तन करते हैं, कीर्तन का विपरीत क्या होता है। यदि कीर्तन का उल्टा करके आप लिखोगे (कम् से कम् जो थोड़ा लिख रहे हैं- वे झट से लिख सकते हैं) कीर्तन का उल्टा नर्तकी होगा। सुल्टा है कीर्तन। हमें सुल्टी बात करनी चाहिए लेकिन हम इस संसार में उल्टी बात करते हैं। यह संसार सुलटे को उल्टा बना देता है। उल्लू का पट्ठा बना देता है। सीधी( सुल्टी) बात कीर्तन है, उल्टी बात है -नर्तकी। सारे संसार में जो नट व नटियां है, वे गान में नर्तक अर्थात वे नर्तकी बन जाती हैं, हम उनको पर्दे पर देखते रहते हैं और पागल हो जाते हैं, उसमें तल्लीन हो जाते हैं व उसका ध्यान करते हैं। उनकी सराहना करते हैं और कामवासना को बढ़ाते हैं। *ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते । सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते ॥* ( श्रीमद् भगवतगीता 2.62) अनुवाद:- इन्द्रियाविषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उनमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है और ऐसी आसक्ति से काम उत्पन्न होता है और फिर काम से क्रोध प्रकट होता है। यह संसार भर का जो सिनेमा संगीत है- महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन। रोमाञ्च-कम्पाश्रु-तरंग-भाजो वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्॥ अनुवाद:- श्रीभगवान् के दिव्य नाम का कीर्तन करते हुए, आनन्दविभोर होकर नृत्य करते हुए, गाते हुए तथा वाद्ययन्त्र बजाते हुए, श्रीगुरुदेव सदैव भगवान् श्रीचैतन्य महाप्रभु के संकीर्तन आन्दोलन से हर्षित होते हैं। वे अपने मन में विशुद्ध भक्ति के रसों का आस्वादन कर रहे हैं, अतएव कभी-कभी वे अपनी देह में रोमाञ्च व कम्पन का अनुभव करते हैं तथा उनके नेत्रों में तरंगों के सदृश अश्रुधारा बहती है। ऐसे श्री गुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ। श्रीचैतन्य महाप्रभु भी कीर्तन के साथ नृत्य किया करते थे व भक्त भी करते हैं। दुनिया वाले भी वैसा ही करते हैं। वे गाते भी हैं और नाचते भी हैं, नंगा नाच होता है लेकिन उनका सारा विषय 'विषय' होता है। संसार के विषय होते हैं। ध्यायतो विषयान्पुंसः। हम उनसे आसक्त होते हैं, वह आसक्ति ही काम- वासना को बढ़ाती है किंतु जब राम, कॄष्ण नाम का कीर्तन करेंगे। *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।।* तब इसी के साथ पाप करने की प्रवृत्ति अथवा वासना है अथवा पाप के जो विचार हैं, वे धीरे- धीरे अर्थात क्षणे क्षणे( शीघ्रता से नहीं) समाप्त हो जाएंगे। हम इस नर्तकी का पीछा छोड़ देंगे तत्पश्चात हम राम के हो जाएंगे। हम श्रीराम, श्री कृष्ण, श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु से आकर्षित होंगे। रामचन्द्र कृष्ण चन्द्र, चैतन्य चंद्र ऐसे चंद्रो से हम आकर्षित होंगे। हम उसी के साथ चरित्रवान बनेंगे। जो नर्तकी का पीछा करता रहता है और नर्तकी को देखता है, नर्तकी को देखने के लिए आज कल सिनेमा घर जाने की भी आवश्यकता नहीं हैं। हमनें घर को ही सिनेमा घर बना लिया है। होम थियेटर। हरि! हरि! काम आसान हो गया है। वह नर्तकी आपको आपकी प्रसन्नता के लिए रिझा रही है। वह नाचती है, वह गाती है। वह नंगा नाच करती है। इसी के साथ हम दानव बनते हैं। हमारी दानवी प्रवृत्ति बढ़ती है और हम चरित्रहीन बनते हैं। सारी मानव जाति चरित्र हीन बन रही है। सारा देश चरित्र हीन, मनुष्य चरित्र हीन बन रहे हैं। करैक्टरलेस में लेस क्या है अर्थात करैक्टर( चरित्र) नहीं है। चरित्रवान बनने के लिए राम का चरित्र अथवा रामायण का अध्ययन करना होगा, श्रवण करना होगा। राम के नामों का उच्चारण करना होगा। ऐसा खूब हुआ करता था। हर घर, हर गाँव में रामायण का पाठ हुआ करता था। हर माता पिता अपने बच्चों को रामायण की कथा सुनाया करते थे जिससे बच्चे चरित्रवान हो लेकिन हम तो अभी धनवान बनना चाहते हैं। कौन बनेगा करोड़पति? यह बन गया करोड़पति। फिर सीतापति का क्या? करोड़पति के पीछे सीतापति श्रीराम का क्या? क्या कहते हैं कि मनी इज लॉस्ट, नथिंग मच इज लॉस्ट ( धन को खो देने से ज़्यादा कुछ नुकसान नहीं होता। धन चला गया) लेकिन ऐसा कहा तो गया है कि स्वास्थ्य बिगड़ गया तो कुछ तो बिगाड़ हो ही गया। कुछ लॉस्ट हुआ लेकिन हम चरित्र को खो बैठे हैं, चरित्र हीन बन गए है तब कितना लॉस्ट हुआ? सब कुछ खो गया। हमें राम चाहिए राम बिना मुझे चैन पड़े ना। अभाव तो राम का है। राम को अपने जीवन, अपने परिवार, देश में स्वीकार कीजिए। देश में राम राज्य हो। हरि! हरि!महात्मा गांधी ने ऐसा सोचा था। पता नहीं क्यों उनको राष्ट्र पिता कहते हैं। ठीक हैं। उन्होंने सोचा था कि जब देश स्वतंत्र होगा। हम राम राज्य की स्थापना करेंगे। कौन सा राज्य? राम राज्य। क्योंकि न तो राम जैसे राजा हुए। न तो राम जैसा राज्य इस संसार ने देखा है। न भूतों न भविष्यति ऐसा राज्य राम राज रहा। राम अपने प्रजा का इस तरह ख्याल रखते थे कि मानो अपनी संतान ही है। उन्होंने कहा था, ऐसा करेंगे, ऐसा स्वप्न तो देखा था किन्तु किस्सा कुर्सी का। कुछ लोगों को बस कुर्सी ही चाहिए थी। जब कुर्सी मिली तब राम राज्य की स्थापना करने का प्रयास तो भूल गए। धीरे-धीरे रावणराज ही फैल गया क्योंकि अब शराब की होम डिलीवरी हो रही है। बहुत आवश्यकता की वस्तु बन गयी है। लॉक डाउन में केवल आवश्यकता की वस्तुएं उपलब्ध करवाई जाएगी। उसमें टॉप ऑफ द् लिस्ट वाइन है। वाइन के बिना जीना तो क्या जीना। उनको पता नहीं है कि वाइन उनकी जान लेगी लेकिन आप तो जग गए हो। जय श्री राम! आप पूरी शक्ति व सामर्थ्य के साथ प्रयास करो ताकि राम नाम का प्रचार हो। रामायण का प्रचार हो। राम राज की स्थापना करो। ठीक है, अपने घर में राम राज्य की स्थापना करो। अपना घर भी एक राज है। आप वहां के राजा हो। जगन्नाथ? आपकी रानी भी है। एक राजा और एक रानी, अपने घर में सही लेकिन आप राम राज्य की स्थापना करो। वहां तो आपके अधिकार है या जहां जहां तक आपकी पुंहच है, आपका व्यापार, उधोग व दफ्तर या अन्य कोई कार्यक्षेत्र है, वहां राम राज की स्थापना करने का प्रयास करो। लोगों को राम दो और राम लो। हरि! हरि! वैसे यह राम की कथा हो ही रही है और भी होने वाली है। ऐसी घोषणा भी आप सुनोगे। आजकल राम नवमी का सीजन है। राम नवमी दूर नहीं है, इस्कॉन नागपुर की ओर से राम नाम का सफल प्रयास हो रहा है। राम की कथा का प्रसारण प्रतिदिन हो रहा है।आज द्वितीय दिन है। सुनते रहिए और सुनाते रहिये और इसका प्रचार कीजिये व औरों को जोड़िये। चैतन्या! औरों को भी बता दो कि आठ बजे रामायण की कथा है। इस्कॉन अमरावती की ओर से महोत्सव मनाया जा रहा है। हरि! हरि! पूरा लाभ उठाएं। हरे कृष्ण! जय श्री राम!

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