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जप चर्चा परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज द्वारा विषय-महामंत्र जप मे निहित भाव दिनांक - 23 जुलाई 2023 हरे कृष्ण आप सभी का स्वागत है सुप्रभातम। आशा है कि आपने कल शाम, आज प्रातः काल के जप के लिए पूर्व तैयारी की है और अपनी मानसिकता को भी तैयार किया है। हरि हरि। गौरांग। यह ब्रह्म मुहूर्त की पावन बेला है और पुरुषोत्तम मास भी चल रहा हैं और आपने अपने अपने स्थान ग्रहणकर लिए हैं। कल या परसों आपको यह भी बताया गया था कि जप के लिए आपका आसन कैसा होना चाहिए। हरि हरि। अब जो जप रिट्रीट के अंदर जप हो रहा है, उसको आगे बढ़ाते हैं।हरि हरि। आप कैसे हो? इसका सामान्य जवाब होता है कि मैं ठीक हूं, किंतु हम भूल जाते हैं कि अभी-अभी कुछ देर पहले हमने गाया है- संसार-दावानल-लीढ-लोक त्राणाय कारुण्य-घनाघनत्वम्।प्राप्तस्य कल्याण-गुणार्णवस्य वन्दे गुरोःश्रीचरणारविन्दम्॥ (गुर्वष्टकम-1) अनुवाद- श्रीगुरुदेव कृपासिन्धु से आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं । जिस प्रकार वन में लगी दावाग्नि को शान्त करने हेतु बादल उस पर जल की वर्षा कर देता है, उसी प्रकार श्रीगुरुदेव भौतिक जगत् की धधकती अग्नि को शान्त करके, भौतिक दुःखों से पीड़ित जगत् का उद्धार करते हैं। शुभ गुणों के सागर, ऐसे श्रीगुरुदेव के चरणकमलों में मैं सादर वन्दना करता हूँ ॥ हम यह भूल जाते हैं कि हम इस संसार दावानल में हैं तो हम कैसे सुखी हो सकते हैं? हा हा प्रभु नित्यानंद, प्रेमानंद सुखी कृपालोकन कोरो अमी बोरो दुखी (श्रीगौर पद पदे‌ प्रार्थना) अनुवाद- मेरे प्रिय भगवान नित्यानंद, आप हमेशा आध्यात्मिक आनंद में आनंदित रहते हैं। चूँकि आप हमेशा बहुत खुश दिखते हैं, मैं आपके पास आया हूँ क्योंकि मैं सबसे ज्यादा दुखी हूँ। यदि आप कृपा करके अपनी दृष्टि मुझ पर डाल दें तो मैं भी प्रसन्न हो जाऊँ। हम गाते हैं कि हे नित्यानंद प्रभु मैं दुखी हूं, कृपा करके मुझे सुखी कीजिए, हम इस संसार में संसार दावानल में जल रहे हैं और हम सुखी हो, यह कैसे संभव हो सकता है? हम ठीक हो ही नहीं सकते। ऐसी अवस्था में हमें भगवान की तरफ दौड़ना चाहिए। हमे भगवान से सहायता प्राप्त करने के लिए दौड़ना चाहिए, जैसा अजामिल ने किया। मेरी मदद करो मदद करो,मुझे कोई मदद नहीं मिल रही है, ऐसे भावों के साथ.. अजामिल ने कहा था... नारायण नारायण। हरि हरि। तब नारायण के दूत विष्णु दूत वहां पहुंचे। प्रभुपाद जी कहा करते थे कि हमें बच्चें की तरह रोना चाहिए। बच्चा जब संकट में होता है या मां से बिछुड जाता है तो उसको तुरंत मां याद आती है, वह क्रंदन करने लगता है,रोने लगता है, मां को पुकारने लगता है। तो हम जप कर्ताओं को भी, यह समझते हुए जप करना चाहिए कि हम किस स्थिति में हैं, हम इस संसार दावानल में हैं, इसको भगवान ने दुखालय कहा है, तो जब हम महामंत्र को कहते हैं, पुकारते हैं, तो यह भाव होना चाहिए। अयि नंद-तनुजा किंकरम् पतितं माम् विषमे भवाम्बुधौ।कृपया तव पद-पंकज- स्थित-धूलि-सदृशं विचिन्तय।। (शिष्टांष्टकं) अनुवाद- " हे नंद तनुज (कृष्ण) !मैं तो आपका नित्य किंकर (दास) हूँ, किंतु किसी ना किसी प्रकार से मैं जन्म मृत्यु रूपी सागर में गिर पड़ा हूं। कृपया इस विषम मृत्यु सागर से मेरा उद्धार करके, मुझे अपने चरणकमलों कि धूली का कण बना लीजिए"। हमारे जप के द्वारा यह भाव व्यक्त होने चाहिए और यहां हमारी मां-हमारे बाप, भगवान नाम के रूप में हमारे समक्ष अवतार लेते हैं। हरि हरि। हम भगवान से कहते हैं कि हम इस विषम संसार में फंसे हैं, कृपया मुझे उठाइए और अपने चरणों की दासी बनाईये। इस महामंत्र के कई सारे भाष्य भी हैं, भावार्थ भी हैं। आज की जप चर्चा के समय उनको भी प्रस्तुत करेंगे।जैसा की कल बताया गया था आज हम इस जप रिट्रीट को 8:30 तक भी खींच सकते हैं, तो क्या आज आप तैयार हो? आज के लिए यह भी प्रस्ताव है कि आज हम 25 माला करने का प्रयास करेंगे, देखते हैं कितना समय लगता है क्योंकि बीच में जप चर्चा भी है। आप इस जप रिट्रीट सेशन के समय 25 माला करने का संकल्प ले सकते हो और चाहे तो दिन में और अधिक जप कर सकते हो। जब जप रिट्रीट चलती है तो अधिक से अधिक जप किया जाता है। एक दिन 16 माला..दूसरे दिन 25 माला.. उससे अगले दिन 32 माला.. ऐसा करके बढ़ाते रहते हैं।हमारी भी यह जप रिट्रीट हो रही है, तो आज हम कम से कम 25 माला इसी सेटिंग में करेंगें। जैसे अभी आप आसनस्थ हुए हो और अभी ध्यानस्थ भी होने वाले हो, ध्यान करने वाले हो, ध्यान पूर्वक जाप करने वाले हो। जप के बीच में मैं कुछ-कुछ कहता भी रहूंगा और फिर जप भी करते रहना है, यह आपका प्रातः काल का संकल्प है। कल आपको यह भी संकल्प लेने के लिए कहा था कि आपको देखना है कि आपको जप में कौन-कौन से सुधार करने हैं, आप जप मैं कौन-कौन से सुधार कर सकते हो? हर जापक उसका स्मरण करते हुए भी इस संकल्प को पूरा करे। पूरे शक्ति सामर्थ या युक्ति का भी उपयोग करते हुए भगवान के नाम का स्मरण करें, जप करें, हरि नाम का स्पष्ट उच्चारण होना चाहिए.. जिव्हा में कंपन होनी चाहिए, होठ हिलने चाहिए। श्रवण होना चाहिए और फिर श्रवण से, कीर्तनम और विष्णु स्मरणं होना चाहिए। (एसबी 7.5.23-24) श्रीप्रह्लाद उवाच श्रवणं कीर्तनं विष्णुः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ इति पुंसरपिता विष्णुउ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा। क्रियायेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥ अनुवाद-, प्रहलाद महाराज ने कहा-भगवान विष्णु के दिव्य पवित्र नाम , रूप , साज सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान के चरण कमलो की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान की सादर पूजा करना, भगवान को प्रार्थना अर्पण करना, उनका दास बनना, भगवान को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना (अर्थात् मनसा,वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)- शुद्ध भक्ति कि ये 9 विधियां स्वीकार की गई हैं, जिस किसी ने इन नो विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है, उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है। विष्णु का स्मरण और ध्यान होना चाहिए। आज आपने 1900 लोकेशन से जॉइन किया है, आप सभी का पुनः पुनः स्वागत है। हम इस संख्या से प्रसन्न हैं। (यहाँ से जप शुरू होता है) जय श्री कृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानंद। श्री अद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि गौर भक्त वृन्द।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। .... माया को पार करना कठिन तो है, ऐसा स्वयं कृष्ण ने कहा है कि मेरी माया बड़ी जबरदस्त है, मेरी माया बड़ी बलवान है और क्यों नहीं होगी, भगवान स्वयं बलवान हैं तो भगवान की माया तो बलवान होनी ही चाहिए। दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया । मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥ (भगवद्गीता 7.14) अनुवाद- प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है। किंतु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं वह सरलता से इसे पार कर जाते हैं। इतना कह कर तुरंत भगवान ने कहा है कि मेरी माया तो बड़ी ही बलवान है, इसको पार करना कठिन तो है, किंतु तुरंत भगवान ने फिर कहा "मामेव ये प्रपद्यन्ते माया मेतां तरन्ति ते"। यदि कोई व्यक्ति मेरी शरण में आता है तो वह माया से तर जाएगा। हरि हरि। हम जब जप करते हैं, तब हम नाम का आश्रय लेते हैं और क्योंकि नाम ही भगवान है, हम भगवान का आश्रय लेते हैं। यह समय भगवान का आश्रय लेने का समय है तो भगवान का आश्रय लीजिए और ऐसा आश्रय लेने वाले को महात्मा कहा गया है। महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता: |भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् || (भगवद्गीता 9.13) अनुवाद-हे पार्थ, मोह मुक्त महात्मा जन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं। वे पूर्णत: भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान के रूप में जानते हैं। रबर स्टैंप महात्मा नहीं, वास्तविक महात्मा वह है जिसने दैवी प्रकृति का आश्रय लिया है, वह दैवी प्रकृति राधा रानी है। महाभावा ठकुरानी राधा रानी का आश्रय लेना मतलब महात्मा होना है। हमें राधा रानी की शरण में जाना है और जब हम हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। कह रहे हैं तो हम राधा रानी के शरण में ही जा रहे हैं। हरि हरि। तो राधा को पुकारिए, कृष्ण को पुकारिए, आश्रय लीजिए और इस संसार के पार पहुंच जाइए।यहीं पर, इसी समय चिंता छोड़िए और चिंतन कीजिए। यह चिंतन का समय है चिंतन करते ही आप चिंता मुक्त हो जाओगे। हरि हरि। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। राम हरे राम राम राम हरे हरे।। कृष्ण को पुकारिए। मैं भी बीच-बीच में कुछ-कुछ कहता रहता हूं, उसको भी सुनना है। यह जप रिट्रीट हो रही है और यह सभी के लिए कहा जा रहा है, तो आप सब भी अपने स्क्रीन ऑन और ऑडियो ऑन रखिए, ताकि कुछ आदान-प्रदान संभव हो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे... कृष्ण-प्राप्ति होय जाहां हैते (श्री गुरु वंदना-(प्रेम-भक्ति-चंद्रिका से) अनुवाद- श्री गुरु की कृपा से जीव भौतिक कलेशों के महासागर को पार कर सकता है तथा कृष्ण की कृपा प्राप्त कर सकता है। तो उत्साह के साथ, निश्चय के साथ, धैर्य के साथ, जप कीजिए।मैं जब कुछ बोलता हूं तो आपको जप रोकने की आवश्यकता नहीं है, मुझे भी सुनते रहिए और जप भी करते रहिए या हल्का सा बीच में कुछ लिखते भी रहिए, आपके अंतकरण में एक स्मृति पटल भी है, वहां पर भी आप लिख सकते हो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। आज 25 माला करनी है राधा आपसे कह सकती है कि मुझे पुकार तो रहे हो लेकिन क्या कहना चाहते हो? आपका क्या विचार है? क्या चाहते हो मुझसे?कहो तो सही। तो इस भाष्य में लिखा गया है कि भगवान से क्या कहना चाहते हैं, हमारी क्या प्रार्थना है, रो रो कर हम कुछ कह रहे हैं। यह जप करना ही रोना है। क्या कह रहे हो? कहो तो सही। तो गोपाल गुरु गोस्वामी हमको सिखा रहे हैं कि क्या कहना चाहिए। क्या विचार होना चाहिए? हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे..जप करते रहिए। जप करते हुए आप इस महामंत्र का दर्शन कर सकते हैं, महामंत्र दर्शनीय है। "हरे"- हरे: मच्चित्तं ह्त्वा भवबन्धनान्मोचय।। अनुवाद-हे हरे! मेरे चित्त को हर कर मुझे भव बंधन से विमुक्त कर दीजिए। यह भाव है, यह संस्कृत में लिखा गया है इसका हिंदी में अनुवाद भी लिखा गया है। आप कृष्ण नाम का दर्शन भी कर सकते हैं हरे कृष्ण कहा तो "कृष्ण " कृष्ण : मच्चित्तमाकर्ष।। अनुवाद-हे कृष्ण ! मेरे चंचल चित को अपनी ओर आकर्षित कर लीजिए। जब हम कृष्ण कहते हैं तो हमारे मन में ऐसे विचार उठने चाहिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जप करते रहिए। तीसरा नाम हरे है। हरे- हरे: स्वमाधुर्येण मच्चित्तं हर।। अनुवाद-हे हरे! अपने स्वाभाविक माधुर्य से मेरा चित्त हर लीजिए हे राधे! तुम माधुर्य की मूर्ति हो, उसी माधुर्य से मेरे चित्त को हर लीजिए इसलिए तुम्हें हरा कहा जाता है। क्योंकि तुम चित्त को हर लेती हो, जो हरती है, उनको हरे कहते हैं। वह क्या करती है, वह चित्त को हरती है। हे राधे, कृपया मेरे चित्त की चोरी करें। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे..हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.. चौथा नाम कृष्ण है- "कृष्ण"- कृष्ण: स्वभक्तद्वारा भजनज्ञकृषनेन मच्चित्तं शोधय अनुवाद-हे कृष्ण!भक्तितत्ववेत्ता अपने भक्त के द्वारा अपने भजन का ज्ञान देकर मेरे चित्त को शुद्ध बनाईए। यह सब कहना होता है। ऐसा विचार गोपाल गुरु गोस्वामी का है और केवल इतना ही नहीं और भी बहुत अधिक सोच है और भी विचार हो सकते हैं, किंतु यह केवल एक गाइडलाइन है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.. हे कृष्ण....... मुझे अपने भक्तों का संग प्रदान करें, ताकि वह भक्त मुझे भजन के संबंधित ज्ञान का दान दें। मेरा मार्गदर्शन करें, ताकि मेरे चित्त का शुद्धिकरण हो। चेतो दर्पण मार्जनं कैसे होगा?आपके भक्त का संग करके,वह भक्त मुझे ज्ञान का दान करेंगे चेतोदर्पणमार्जनं भवमहादावाग्नि-निर्वापणं श्रेयः कैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधूजीवनम् आनन्दाम्बुधिवर्धनं प्रतिपदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्मस्नपनं परं विजयते श्रीकृष्ण संकीर्तनम्॥ (शिष्टांष्टकं-1) अनुवाद:- श्री कृष्ण संकीर्तन की परम विजय हो, जो वर्षों से संचित मल से चित्त का मार्जन करने वाला तथा बारंबार जन्म मृत्यु रूपी महा दावानल को शांत करने वाला है यह संकीर्तन यज्ञ मानवता का परम कल्याणकारी है क्योंकि यह मंगल रूपी चंद्रिका का वितरण करता है। समस्त अप्राकृतिक विद्या रूपी वधू का यही जीवन हैं। यह आनंद के समुद्र की वृद्धि करने वाला है और यह श्री कृष्ण नाम हमारे द्वारा नित्य वांछित पूर्णामृत का हमें आस्वादन करता हैं। आगे बढ़ते हैं। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.. जैसे यहां साधु संत शिरोमणि उदाहरण दे रहे हैं, श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी महाराज ने अभय चरण को दान दिया। अब जो आगे का "कृष्ण" है "कृष्ण"- कृष्ण नामरूपगुणलीलादिषु मन्निष्ठां कुरू अनुवाद:- हे कृष्ण! अपने नाम, रूप ,गुण, लीला आदि में मेरी निष्ठा उत्पन्न करा दीजिए। यह कौन सा कृष्ण है? हरे कृष्ण महामंत्र में यह पांचवा है। मेरी आपके नाम, रूप, गुण ,लीलाओं में निष्ठा हो और आदिषु अर्थात और भी हैं.. धाम हैं, परिकर भी होने चाहिए, इन सभी में मेरी निष्ठा हों।हमारी कृष्ण से ऐसी प्रार्थना है, जब हम कृष्ण कहते हैं, वह कृष्ण पांचवा नाम है। अगला नाम का उच्चारण है, कृष्ण "कृष्ण"- "कृष्ण : रूचिभवतु मे" अनुवाद:- हे कृष्ण! आपके नाम रूप गुण लीला आदि में मेरी रूचि उत्पन्न हो जाए। कृष्ण से ऐसी प्रार्थना है कि आपके नाम, रूप, गुण लीला में मेरी रुचि उत्पन्न हो जाए, श्रद्धा के जो सोपान है, उसमें जो रुचि है, मुझे वह रुचि प्राप्त हो जाए। कह तो हम कृष्ण रहे हैं, किंतु मन में हमारे यह विचार है, कृष्ण से प्रार्थना है कि आपके प्रति मेरी रुचि उत्पन्न हो जाए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। सातवां हैं.. आगे का हरे "हरे"- हरे : निजसेवायोग्यं मां कुरू अनुवाद:- हे हरे! मुझे आप अपनी सेवा के योग्य बना लीजिए। मुझे अपनी सेवा के योग्य बना दो, पात्र बना दो, लायक बना दो। मुझे सेवा दो और मुझसे सेवा करवाओ। मुझे शक्ति, बुद्धि दो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे... जब हम "हरे" कहेंगे "हरे"- हरे: स्वसेवामादेशय अनुवाद-हे हरे! मुझे आप अपनी सेवा के योग्य बनाकर अपनी सेवा का आदेश दीजिए। पहले तो प्रार्थना थी, कि मुझे सेवा योग्य बना दो और यहां जब हमने हरे कहा तो यहां प्रार्थना है, कि मुझे आदेश दीजिए, मुझे सेवा के लिए योग्य तो बना दिया, किंतु अब मुझे सेवा दीजिए, आदेश दीजिए। इतना जब हम कहते हैं,जब हमने हरे कहा तो यह नाम और यह शब्द निर्जीव नहीं है। यह सजीव है, यह सच्चिदानंद है, यह शब्द, यह नाम, यह नाम भगवान है। और अब हैं‌‌ नोंवा हरे "हरे" हरे: स्वप्रेष्ठेन सह स्वाभीष्टलीलां मां श्रावय अनुवाद :- हे हरे!अपने प्रियतम के सहित की गई अपनी अभीष्ट लीलाओं का मुझे श्रवण कराईये। तुम तुम्हारे कृष्ण के साथ जो अपनी मनपसंद लीलाओं को खेलती हो, मुझे उन लीलाओ को सुनाओं। मैं वह लीला सुनना चाहता हूं, मुझे सुनाओं या फिर वह लीला हम भक्तों से भी सुन सकते हैं। राधा रानी की ओर से भक्त हमें सुनाएगें, साधु शास्त्र हमें सुनाएगें, ऐसा निवेदन है कि अपनी स्वाभीष्टलीला मुझे सुनाईए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.. अब जब हम राम कहेंगे "राम" रामकृष्ण का ही नाम है। य: रमति स: राम: राम: प्रेष्ठया सह स्वाभीष्टलीलां मां श्रावय अनुवाद:- हे राम! हे राधिका रमण , आप अपनी प्रियतमा श्री राधिका के सहित की गई अपनी अभीष्ट लीलाओं का मुझे श्रवण कराइए। यह राम से प्रार्थना है। पहले राधा से प्रार्थना की और अब राम से, कृष्ण से प्रार्थना है, आपकी प्रेष्ठा राधा रानी है और गोपियां भी हैं और भी कुछ प्रेष्ठ हैं और कुछ प्रेष्ठाएं हैं, उनके साथ जो आपकी लीलाएं संपन्न होती हैं, वह लीला मुझे सुनाईएं। मुझे सुनाईए, मैं सुनना चाहता हूं, जब हम हरे राम कहते हैं तो ऐसी प्रार्थना करते हैं। हरे- राधा को प्रार्थना और राम-कृष्ण को प्रार्थना और आगे का हरे नाम है, यह राधा का नाम है, जब हम राधा को संबोधित करते हैं तो आप क्या कह रहे हैं- "हरे" हरे: स्वप्रेष्ठेन सह स्वाभीष्टलीलां मां दर्शय अनुवाद:- हे हरे! श्री राधिके!आप अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के साथ अपनी अभीष्ट लीलाओं का दर्शन कराइए! पहले दोनों को ही राधा को और कृष्ण को हमने कहा था, आपकी लीला, राधा के साथ आपकी लीला, हे राधे आपकी कृष्ण के साथ की लीला को सुनाइए, किंतु यहां निवेदन क्या है, वह लीला मुझे दिखाइए। लीला का मुझे दर्शन कराइए, तो पहले श्रवण, फिर दर्शन। श्रवण से ही दर्शन होता है, यही विधि है। दर्शन की विधि श्रवण है। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। अब जब हमने आगे का राम कहा "राम" जप करते-करते हम राम तक पहुंच गए हैं जो कि कृष्ण ही हैं राम: प्रेष्ठया सह स्वाभीष्टलीलां मां दर्शय अनुवाद:- हे राम! हे राधिका रमण! आप अपनी प्रियतमा के साथ अपनी अभिष्ट लीलाओं के दर्शन कराईए। जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे । यह ऐसी ही प्रार्थना है, मेरे मन में आपके दर्शन की लालसा और उत्कंठा है। दर्शन लौलयम का फल होता है, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे.. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.. और फिर आगे का राम "राम" राम: नामरूपगुणलीलास्मरणादिषु मां योजय अनुवाद:- हे राम, अर्थात अंतरंग भक्तों के साथ क्रीड़ा करने वाले कृष्ण.. आप मुझे कृपया अपने नाम, रूप ,गुण, लीला आदि के स्मरण में लगा दीजिए। पहले कह रहे थे कि मुझे सुनाईए फिर प्रार्थना थी कि मुझे दिखाइए, दर्शन दीजिए और यहां अब राम से कृष्ण से कह रहे हैं कि कृपया मुझे इन लीलाओं का सदैव स्मरण रहे, ऐसा कुछ करिए। जिन लीलाओं का मैंने श्रवण किया, उनका दर्शन भी हुआ वह सदैव मेरे मन में, वह स्मरण निरंतर मेरे मन में होता रहे। हे राम, ऐसा कुछ कीजिए ।यह मनन भी है, यह चिंतन भी है। "राम" राम: तत्र मां निजसेवायोग्यं कुरू अनुवाद:- हरे राम, अर्थात अंतरंग भक्तों को सुख देने वाले श्याम अपनी लीलाओ में मुझे अपनी सेवा के योग्य बना लीजिए। या दूसरे शब्दों में मैं जब नित्य प्रविष्ट हो जाऊंगा जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः। त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥  (भगवतगीता 4.9) अनुवाद:- हे अर्जुन! जो आविर्भाव तथा कर्मों की दिव्य प्रकृति को जानता है, वह इस शरीर को छोड़ने पर इस भौतिक संसार में पुनः जन्म नहीं लेता, अपितु मेरे सनातन धाम को प्राप्त होता है। आप मुझे अपने धाम बुलाईए और मुझे मेरे योग्य सेवा दीजिए, मुझे आपकी सेवा के योग्य बना दो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। "हरे"- जब आगे का हरे हम कहेंगे हरे मां स्वाङीकृत्य रमस्व अनुवाद-हे हरे अपने एक दास के रूप में मुझे स्वीकार करें, जैसा आप चाहें, उस प्रकार मुझसे आनंद उठाइए। यह राधा भाव में या गोपी भाव में प्रार्थना है, मेरा अंगीकार करो, मुझे स्वीकार करो। मुझे स्वीकार करो मेरे साथ रमिए, आप तो औरों के साथ रमते ही रहते हो जैसे राधा रमण, मुझे भक्त बनाईए और हे प्रभु, मेरे साथ रमिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। अब इस महामंत्र का अंतिम नाम है, हरे "हरे" हरे: मया सह रमस्व अनुवाद-हे हरे! कृपया मेरे साथ विशुद्ध क्रीडा कीजिए, आपके श्री चरणों में मेरी यही प्रार्थना है। यह और भी ऊंची बात है। मैं आपके साथ रमू आप मेरे साथ रमिए। मुझे आपके सानिध्य में, आपके संग में रमाईये। आपके श्री चरणों में मेरी यही प्रार्थना है, आप मेरे साथ विशुद्ध क्रीडा कीजिए। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। भागवत में अपने एक तात्पर्य में श्रील प्रभुपाद ने लिखा है कि जो हम यज्ञ संपन्न करके प्राप्त नहीं कर सकते या और कई सारे विधि विधानों से जिसको हम प्राप्त नहीं कर सकते, वह हम हरे कृष्ण महामंत्र के नाम जप से प्राप्त कर सकते हैं। हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम्। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा॥ अनुवाद-“कलह और पाखंड के इस युग में मुक्ति का एकमात्र साधन भगवान के पवित्र नामों का जाप है और कोई रास्ता नहीं। और कोई रास्ता नहीं। और कोई रास्ता नहीं।' ” क्या आप सबने देखा और सुना? अपने जप को सुधारिए। यह गोपाल गुरु गोस्वामी जी का भाषण अगर आपके जप को नहीं सुधार सकता तो फिर क्या सुधारेगा? फिर तो आपका और कुछ नहीं किया जा सकता। मुझे पूरा यकीन है कि केवल सुधार ही नहीं बल्कि इससे तो आपके जप में क्रांति होगी और क्रांति होनी ही चाहिए, परिवर्तन होना चाहिए। आपका जो जप के प्रति दृष्टिकोण था, वह बदलना चाहिए और ऐसी आशा और प्रार्थना भी है कि आप इससे लाभान्वित हुए होंगे और आप इसका पूरा लाभ उठाओगे और गोपाल गुरु गोस्वामी ने यह जो भाव व्यक्त किया है, उनसे प्रभावित होकर आप भी अधिक ध्यान पूर्वक, अधिक प्रेम पूर्वक और उत्साह के साथ जप करते रहोगे। आप मुझसे कहना चाहते होंगें कि बातें कम करो और जप अधिक करो। अब मैं आपसे अधिक बात नहीं करूंगा, क्योंकि हमें 25 माला का जप भी पूरा करना है। अभी-अभी हमने जो भी देखा, सुना उन बातों का स्मरण करते हुए अपने जप को आगे बढाइए और 25 माला का संकल्प जब तक पूरा नहीं होता तब तक हिलना डुलना नहीं है। गौर प्रेमानंद हरि हरि बोल।

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