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जप चर्चा
28 सितंबर 2021
पंढरपुर धाम से
885 स्थानों से आज भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि ।
हरि हरि । ठीक है । आप सभी का स्वागत है । आज कुछ अधिक नए भक्त जुड़े हैं या पुराने भक्तों को पुनः प्रातःकाल में जप करने की याद आ गई इसलिए संख्या में कुछ बढ़ती हो गई है । हरि हरि । यह हर्ष का विषय है । संकीर्तन! हम क्या करते हैं ? हम संकीर्तन करते हैं , मतलब कांग्रेगेशन जप करते हैं , अधिक संख्या तो अधिक संकीर्तन हो जाता है । कीर्तन का होता है संकीर्तन संग प्रकार में कीर्तन , संग प्रकार से जप भी हो जाता है जब संख्या में बढ़ती है तो संकीर्तन यहां अधिक संकीर्तन संग संग संग कीर्तन । शिरोमणि गोपीका सुन रही हो ? हरि हरि । ठीक है । जप करना जारी रखो लेकिन अभी नहीं अभी सुनिए मैं कीर्तन कर रहा हूं । यह अभी कीर्तन है , जो बोलते हैं यह भी कीर्तन ही है । वैसे हम कल परसों बता रहे थे , कीर्तनिय सदा हरी ।
सिर्फ हरे कृष्ण हरे कृष्ण यहीही कीर्तन नहीं है भगवान की कथा कहना भी कीर्तन ही है । मैं कीर्तन कर रहा हूं , अब मैं कीर्तनकार बन चुका हूं । महाराष्ट्र में खूब कीर्तनकार होते हैं , कीर्तनकार ! कीर्तन करने वाले । मैं कीर्तनकार और आप श्रवणकार या श्रवण करता । कीर्तन करता और कीर्तन करता । श्रवण करते-करते फिर आपको भी कीर्तन करना है । हां , राधा माधवी तुमको भी कीर्तन करना है । हर एक को कीर्तन करना है । पहले श्रवण करना है । हरि हरि । यहां पर भी वैसे ही हुआ , सुखदेव गोस्वामी कीर्तन कर रहे थे और परीक्षित महाराज श्रवण कर रहे थे । उस सभा में , उस धर्म सभा में , उस भागवत कथा में सुत गोस्वामी भी भागवत कथा श्रवण कर रहे थे । राजा परीक्षित आगे बढ़े , नहीं रहे , भगवान के नित्य लीला में प्रविष्ट हुए , भगवान के नित्य लीला में उन्होने प्रवेश किया किंतु सूत गोस्वामी नई शरण्य में कथा करने लगे , उन्होंने कथा की जो कथा उन्होंने सुनी थी सुखदेव गोस्वामी से उसी कथा को उन्होंने श्रवण आदि मुनियों को सुनाया । मैं यह कह रहा हूं कि पहले हम श्रवण करते हैं और फिर श्रवण के उपरांत फिर हमारी बारी होती है कीर्तन करने की । हर जीव को भगवान की किर्ती का गान करना चाहिए । आप सब जीव हो , हो कि नहीं ? (हंसते हुए) अगर आप जीवित हो मतलब आप भी जीव हो । हरि हरि । श्रवण कीर्तन । प्रातकाल आज जब हम उठे और मंगल आरती में जाना था , गए भी लेकिन यहा इतनी भारी वर्षा हो रही थी कि पूछो मत । पंढरपुर निवास में , मंदिर पहुंचने के लिए कई सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा था । उस समय हम याद कर रहे थे ,
शीत आतप , वात बरिषण , ए दिन यामिनी जागि'रे ।
विफले सेबिनु कृपण दुरजन , चपल सुख - लव लागि' रे ।।
अरे मन ! तू सर्दी - गर्मी , आँधी - तूफान , बरसातमें तथा दिन - रात जागकर इन संसारी दुर्जनोंकी सेवा जिस सुख प्राप्तिकी आशासे कर रहा है वह क्षणभरका सुख तो चंचल अर्थात अनित्य है ।
शीत आतप , वात बरिषण, ए दिन यामिनी जागि'रे ।
ऐसा ही जीवन है । गोविंद दास अपने एक गीत में लिखते हैं । हम लोग ज्यादा सोचते नहीं लेकिन यह जो वैष्णव आचार्य होते है यह सोचते हैं और कुछ निरीक्षण करके हमारे लिए कुछ पीछे छोड़ कर गए हैं । बात तो सीधी से है लेकिन हम सोचते नहीं । उन्होंने कहा कि यह संसार में क्या होता है ?
शीत मतलब कभी शीतकाल , आतप , कभी गर्मी है । कभी शीतकाल है तो कभी गर्मी है । वात मतलब हानि , आंधी को कहा है । वात से बात , आंधी तूफान है । बरिषण मतलब वर्षा ।
शीत आतप , वात बरिषण , ए दिन यामिनी जागि'रे ।
ए दिन मतलब दिन में , यामिनी रात में , रातों दीन कोई ना कोई समस्या इस संसार में बनी रहती है , ऐसे गोविंदास लिख रहे हैं । हम इस गीत को याद कर रहे थे और फिर आगे यह भी कहा है ।
ए धन , यौवन , पुत्र परिजन , इथे कि आछे परतीति रे ।
कमलदल - जल , जीवन टलमल , भजहुँ हरिपद निति रे ।।
अरे ! इस धन , यौवन , पुत्र तथा परिजनोंकी तो बात ही क्या , स्वयं तेरा जीवन ही तो कमलके पत्तेपर स्थित पानीकी बूंदकी भाँति टलमल - टलमल कर रहा है अर्थात् तेरा जीवन भी कब समाप्त हो जाएगा , यह भी निश्चित नहीं है । अतः तुम भगवानके श्रीचरणमकलोंका भजन करो ।
कमलदल - जल , जीवन टलमल , भजहुँ हरिपद निति रे ।।
यह जीवन कैसा है ? कैसा है यह जीवन ? कमलदल - जल, कमल के पत्ते के ऊपर जल का एक बिंदु , एक-एक शब्द को आप पढ़ते जाइएगा या सुनते जाहिए । कमलदल - जल यह क्या है ? जीवन टलमल , हमारे जीवन की तुलना वह किसके साथ कर रहे कमल के दल पर जल का बिंदु वह थोड़ी सी हवा के झोंके के साथ बिंदु गिर जाता है ज्यादा टिकता नहीं है बिल्कुल वैसा ही हमारा जीवन है । हरि हरि ।
श्रवण , कीर्तन , स्मरण , वन्दन , पादसेवन , दास्य रे ।
पूजन , सखीजन , आत्मनिवेदन , गोविन्द दास अभिलाष रे ।।
श्रवण , कीर्तन , स्मरण , वन्दन , पादसेवन , दास्य , पूजन , सख्य और आत्मनिवेदनरूप नवधा भक्तिकी अभिलाषा करता है ।
हरि हरि । उन्होंने कहा है समाधान क्या है । समस्या यह है कि यहां ,
शीत आतप , वात बरिषण , ए दिन यामिनी जागि'रे , यह भी है , आदि देवीक , आदि भौतिक , आध्यात्मिक यह तापत्रय हमारे पीछे लगे हुए हैं , यही तो माया है । उपाय क्या है यह ? इस गीत के शुरुआत में उन्होंने कहा ही है ,
भजहुँ रे मन श्रीनन्दनन्दन , अभय चरणारविन्द रे ।
दुर्लभ मानव - जनम सत्संगे , तरह ए भव सिन्धु रे ।।
हे मेरे मन ! तुम यह दुर्लभ मानव जन्म प्राप्तकर सत्संगमें ब्रजेन्द्रनन्दन श्रीश्यामसुन्दरके अभय अर्थात् समस्त प्रकारके भयोंका विनाश करनेवाले श्रीचरणकमलोंका भजन करो तथा इस अथाह भवसागरको पार कर लो ।
भजहुँ रे मन , इसलिए वह मन को प्रार्थना कर रहे है । मन को क्या करो । भजहुँ रे मन , किसको भजो ? श्री नंद नंदन । और यह भी लिखते हैं कि मनुष्य जीवन जो है,
दुर्लभ मानव - जनम सत्संगे , तरह ए भव सिन्धु रे ।।
यह मनुष्य जीवन दुर्लभ है सभी शास्त्रों में कहा है वही बात वह इस गीत में लिख रहे हैं । दुर्लभ , लभ मतलब लाभ , दूर मतलब कठिन । एक होता है सुलभ , एक होता है दुर्लभ । सुलभ मतलब सुलभ शौचालय (हंसते हुए ) किसी ने शौचालय सुलभ कर दिया । सुलभ और यह दुर्लभ । मनुष्य जीवन दुर्लभ है ।
दुर्लभ मानव - जनम , इस लिए क्या करना चाहिए ? दुर्लभ जनम सत्संगे , सत्संग में बिताना चाहिए । जीवन को सत्संग में बिताना चाहिए , सन्तों के , भक्तों के संगति में , भक्तों के साथ में हमारा सम्बंध , संपर्क होना चाहिए और सत्संग प्राप्त हो या सत्संग उपलब्ध कराया जाए इसी उद्देश्यसे श्रील प्रभुपाद ने इस कृष्ण आंदोलन की स्थापना की है । वैसे आज के दिन श्रील प्रभुपाद का अमेरिका में आगमन हुआ यह हमारे वैष्णव कैलेंडर में लिखा है । हम तो सोच रहे थे कि 17 सितंबर को प्रभुपाद अमेरिका पहुंचे लेकिन 17 तारिक को तो बॉस्टन में पहुंचे । बॉस्टन रास्ते में आ गया , बॉस्टन पहुचे । लेकिन प्रभुपाद को न्यूयॉर्क पहुचना था । न्यूयॉर्क गंतव्य स्थान था । आज के दिन फिर 28 सितंबर को श्रील प्रभुपाद अमेरिका पहुंचे । जो आज के दिन हम अनुभव कर रहे थे ,
शीत आतप , वात बरिषण , इसमें से वर्षा खूब यहा हो रही थी । तब वह श्रीला प्रभुपाद का नौका जलदूत न्यूयॉर्क के पास पहुच रही थी आगे बढ़ रही थी न्यूयॉर्क की दिशा में किंतु कोहरा था , इतना कोहरा था कि जलदूत नौका को एक स्थान पर रोका था , आगे बढ़ना था लेकिन कुछ दिख नहीं रहा था । मैं नही बताऊंगा क्या-क्या होता है लेकिन प्रभुपाद अपने जलदूत डायरी में लिख रहे हैं ।
जलदूत डायरी समझते हो ये आपको समझना होगा एक डायरी का नाम है। जलदूत डायरी जलदूत जहाज में जब प्रभुपाद प्रवास कर रहे थे तब जो डायरी लिखे तो उसका नाम है जलदूत डायरी आप उसको पढ़ो या प्राप्त करलो कहीं ढूंढो इंटरनेट पर और वह डायरी प्रकाशित भी हो चुकी हैं। उस पुस्तक का नाम है जलदूत डायरी उसमे प्रभुपाद लिखे है कि उनकी नौका जलदूत उसका नाम न्यू यॉर्क के पास पहुंच रही थी पहुंचते पहुंचते ही रुक गई क्योंकि वहां कोहरा था समझते हो तो वैसा प्रभुपाद के लिए वहां कोहरे का अनुभव और उसके कारण दिक्कते हुई और आज हमारे लिए यहां वर्षा के कारण दिक्कत कोई ना कोई कारण बन ही जाता है।
श्रील प्रभुपाद न्यू यॉर्क पहुँचकर इस्कॉन की स्थापना किए किस उद्देश्य से ताकि संसार भर के लोगों को सत्संग प्राप्त हो दुर्लभ मानव जनम सत्संगे श्रील प्रभुपाद ने सत्संग उपलब्ध कराया इस्कॉन की स्थापना कर कर और फिर 14 बार वह उन्होंने पूरे पृथ्वी का भ्रमण किया जहां भी प्रभुपाद गए कृष्ण की मांग की कृष्णभावनामृत लोग चाह रहे थे। यही उपाय है यही एक पर्याय है एक तो माया हैं और दूसरे कृष्ण है तीसरा कुछ है एक है कृष्ण दूसरी है माया और हम बुरी तरह माया में फंसे हुए हैं। तब पर्याय क्या है सिर्फ कृष्ण ही एक पर्याय है इसीलिए केवलम कहा है हरेर नामेव केवलम कहा गया हैं अन्य कोई उपाय नहीं है अन्य कोई उपाय नहीं है अन्य कोई उपाय नहीं है सिर्फ एक ही उपाय है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे मंगला आरती की हमने राधापंढरीनाथ की और मंदिर के पीछे ही चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद प्रभु और विश्वरूप की पादुका की स्थापना हुई है। तो मुझे सौभाग्य प्राप्त होता है कि मैं उसका फायदा उठाता हूं जब मैं मंगला आरती के मंदिर के उपरांत में वहां जाकर चैतन्य महाप्रभु नित्यानंद प्रभु विश्वरूप की भी आरती करता हूं। पुष्प आरती करता हु मा नमस्कृरु नमस्कार करता हूं प्रदक्षिणा करता हूं और प्रार्थना करता हूं और एक प्रार्थना में मुझे याद आती है चैतन्य चरित्रामृत में कृष्णदास कविराज एक अध्याय और हर अध्याय के प्रारंभ में चैतन्य चरितामृत और हर अध्याय के प्रारंभ में एक विशेष प्रार्थना का उल्लेख कृष्णदास कविराज करते हैं अधिकतर वह संस्कृत भाषा में होती है।
चैतन्य चरितामृत ऐसे बांग्ला भाषा में है लेकिन हर अध्याय का पहला श्लोक जो होता है यह विशेष होता है उस अध्याय का मूल का उसका उल्लेख होता है उस प्रथम श्लोक में एक अध्याय के प्रारंभ में एक प्रार्थना वह लिखते हैं कृष्णदास कविराज गोस्वामी चरित्रामृत में
कथञ्चन स्मृते यस्मिन्दुष्करं सुकरं भवेत्।
बिस्मूते विपरीतं स्यात् श्री-चैतन्यं नमामि तम् ॥॥
अनुवाद:-
यदि कोई चैतन्य महाप्रभु का किसी भी प्रकार से स्मरण करता है, तो उसका कठिन कार्य सरल हो जाता है। किन्तु यदि उनका स्मरण नहीं किया जाता, तो सरल कार्य भी बड़ा कठिन बन
जाता है। ऐसे चैतन्य महाप्रभु को मैं सादर नमस्कार करता हूँ।
कथञ्चन स्मृते यस्मिन्दुष्करं सुकरं भवेत्। कैसे भी अगर आप स्मरण करोगे किनके चरणों का ऐसे अंत में कहां है तम चैतन्यम नमामि ऐसे चैतन्य महाप्रभु को मैं नमस्कार करता हूं या स्मरण करता हूं तो वह कहते हैं कि भगवान के चरण कमलों का स्मरण करने से दुष्कर्म सुकर्म भवेत यह महत्वपूर्ण है दुष्कर्म सुकरम भवेत वैसे मेरा कहता रहता हूं या मेरी प्रार्थना है। जब मैं चैतन्य महाप्रभु के चरण चिन्हों का दर्शन करता हूं प्रदक्षिणा करता हूं तो वहां प्रार्थना करते हुए यह वचन मुझे याद आता है। चैतन्य महाप्रभु के चरण कमलों का फिर कृष्ण ही तो चैतन्य महाप्रभु है तो कृष्ण का कहो या चैतन्य का कहो राम का भी कह सकते हो जय श्री राम हो गया काम
दुष्कर्म सुकर्म भवेत दुष्कर दु के आगे दो बिंदु होते हैं दु कर जमा कम जमा कर तो यह दुष्कर करने के लिए कठिन कोई कार्य करने के लिए कठिन है। दुष्कर्म सुकर्म भवेत दु के स्थान पर सु आ गया और करने के लिए कठिन था लेकिन सुकर हुआ आसान हुआ कठिन काम आसान होगा क्या करने से यस्मिन स्मृतेहे जिनके स्मरण मात्र से कठिन कार्य आसान होता है और फिर किंतु अगर हम याद नहीं करेंगे भगवान के चरण कमलों को विपरीतम शाखात विस्मृति विपरीतम शाख लेकिन हम भूल जाएंगे याद नहीं करेंगे भगवान को भगवान के चरण कमलों को तो आसान काम भी कठिन होगा बोहोत आसान काम भी कठिन हो जाएगा जब हम भगवान का स्मरण नही करने से और उनके स्मरण से कठिन काम आसान होगा तो यह एक प्रार्थना है जो मुझे यह प्रार्थना याद आती है तो मैं प्रार्थना करता हूं वैसे प्राथना तो हर समय कर सकते हैं और वह प्रार्थना है वैसे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे यह क्या है यह प्रार्थना है। यह केवल आरती के समय ही प्रार्थना करने की प्रार्थना नही है यह तो कीर्तनिया सदा हरी भी कहां है सदैव कीर्तन करते रहो सदैव समस्याओं से मुक्त रहो कीर्तन मत करो मर जाओ। फिर फ़सों तो ठीक है फिर इस अवसर पर आपको हम कुछ विडियो दिखाएंगे पद्ममालि क्या आप उपस्थित हो आज प्रभुपाद का आगमन हुआ इस उपलक्ष में कहो हम वीडियो दिखाने वाले हैं और मेरे प्रिय शिष्य शांताकारम प्रभु कल वृंदावन में मंगल आरती के समय देहांत हुआ तो उस संबंध में भी हम कुछ चर्चा करेंगे शांताकारम प्रभु जो नागपुर के निवासी थे वैसे किंतु वह 15 सालों से यहां लगभग 15 सालों से वृंदावन में रहते थे।
इस्कॉन वृंदावन की सेवा कर रहे थे पूर्ण समर्पित हो कर राधाश्यामसुंदर की सेवा के लिए फंडरेजिंग उनकी सेवा थी लाइफ मेंबरशिप डायरेक्टर कहो या और हरि हरि राधा रानी उनकी धर्मपत्नी वह भी खूब सेवा करती रही करती रहेगी बुक डिसटीब्यूशन या कई सारी सेवाएं दोनों भी पति पत्नी करते रहे और राधारानी माताजी में पति मेरे प्रिय शिष्य शांताकांरम इनका तिरोभाव हुआ तो हम सुनेंगे शायद एक भक्त से कम से कम कल तो मंदिर के सारे भक्त एकत्रित हुए थे अंतिम संस्कार के लिए तो हम प्रार्थना करते ही है पद्ममालि आगे इस बात को बढ़ाएंगे एक बार कहिए हरे कृष्ण महामंत्र और उनके लिए प्रार्थना ताकि वो सदा के लिए राधाश्यामसुंदर के चरणों की सेवा सदा के लिए करते रहे शरीर नहीं रहा लेकिन वह तो है ही वह शरीर थे नही शरीर है या नहीं है तो इसका कोई महत्व नहीं है हम तो आत्मा है ही सेवा तो आत्मा करती है शरीर है तो शरीर सेवा करते हैं लेकिन भगवान की सेवा करने के लिए शरीर नहीं होने से और भी अच्छा है ठीक है हरे कृष्ण।