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जप चर्चा, पंढरपुर धाम से, 27 सितंबर 2021 आज जप चर्चा में 877 भक्त उपस्थित हैं। हरि बोल!क्या आप तैयार हो! हरि हरि! आप काफी हिल डुल रहे हो। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। जय अर्जुन कैसे हो! कैसे रहा जप आपका? वेदांत चैतन्य तो अभी भी जप कर रहे हैं। ठीक हैं!कम से कम वृंदावन में तो भक्ति विनोद ठाकुर द्वारा रचित गीत ही मंगल आरती के समय गाया जाता हैं। "विभावरी शेष, अलोक-प्रवेश" उठ जाओ! विभावरी शेष और फिर संध्या आरती में भी हम भक्ति विनोद ठाकुर का ही गीत गाते हैं। संध्या आरती मे कौन सा गीत गाते हैं? कौन सा भजन गाते हैं? आप कभी गायें होंगे तभी तो पता होगा। "किबो जय जय गोराचाँदेर आरतिको शोभा।" सारे विश्व भर भक्ति विनोद ठाकुर के गीत गाये जाते हैं एक ओर भक्ति विनोद ठाकुर का गीत हैं, जिस को भोग आरती कहा गया हैं।भगवान राजा जैसा भोजन करते हैं।जब भगवान का लंच टाइम(मध्यान्ह भोजन समय)होता हैं, उस समय भी एक गीत गाया जाता हैं, गाया गाना चाहिए। वैसे हर मंदिर में गाते ही हैं,मायापुर में गाते हैं और भी कुछ मंदिरों में गाते हैं,क्या गाते हैं?राजभोग या भोग आरती। उस आरती का नाम भी भोग आरती हैं और उस गीत का नाम भोग आरती हैं; या भज भकत वत्सल यह नाम वैष्णव गीत नामक पुस्तिका में दिया गया हैं।मैं भज भक्त वत्सल गीत का स्मरण करना चाहता हूँ। गीत को गाअूगा तो नहीं लेकिन पढूंगा जरूर और आपको भी पढना हैं और यह भगवान कि भोजन लीला हैं।भगवान कि कोन सी लीला है?भोजन लीला हैं। भगवान केवल खाते ही हैं ओर लीला हो जाती हैं।भगवान कि हर बात लीला हैं और वह सोते हैं तो भी लीला होती हैं। भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरम्। मधुराधिपतेरखिलं मधुरम्।। 'भुक्तं और सुत्पं ' यह भगवान की लीला है,भुक्तं या भोग और भगवान भोक्ता भी है भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम्। सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति।। (श्रीमद्भगवद्गीता 5.29) अनुवाद: - मुझे समस्त यज्ञो तथा तपस्याओं का परम भोक्ता, समस्त लोकों तथा देवताओं का परमेश्वर एवं समस्त जीवो का उपकारी एवं हितैषी जानकर मेरे भावनामृत से पूर्ण पुरुष भौतिक दुखों से शांति लाभ करता हैं। भगवान भोक्ता हैं, भोग भगवान के लिए हैं और प्रसाद हमारे लिए हैं। इसको भी समझ लीजिए। भोग भगवान के लिए और प्रसाद हमारे लिए! भज भकतवत्सल श्री-गौरहरि। श्री-गौरहरि सोहि गोष्ठबिहारी, नन्द-यशोमति-चित्त-हारि॥1॥ अनुवाद:-अरे भाइयों! आप सभी लोग भक्तवत्सल श्रीगौरसुन्दर का भजन करो, जो और कोई नहीं, श्रीनन्दबावा व यशोदा मैया के चित्त को हरण करनेवाले, गोचारण के लिए वन वन में विचरण करने वाले नन्दनन्दन ही हैं। भज भकतवत्सल श्री-गौरहरि। मै कहने जा रहा था कि यह भोजन लीला एक मेडिटेशन हैं, जो भोग आरती हैं, यह एक ध्यान ही हैं,एक चिंतन का, मनन का विषय हैं और मधुर हैं और देख लीजिए भगवान क्या-क्या करते हैं। हमको पता नहीं है लेकिन भक्ति विनोद ठाकुर जानते हैं।कोई माता जी भोजन बना रही हैं। शशी मुखी।नहीं नहीं जप कर रहीं है( हंसते हुए )।प्रभुपाद कहां करते हैं कि जब हम भगवान के संबंध में या कृष्ण लीला को पढ़ते हैं तो एक खिड़की बन जाती हैं, जिसमें से हम देख सकते। हम तो ब्रह्मांड के अंदर हैं, उस ब्रह्मांड में एक छेद या खिड़की बन जाती हैं। ” परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः | यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 8.20) अनुवाद:-इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता | जो भगवान का सनातन धाम हैं,वहां होने वाली लीलाओं को हम घर या मंदिर में बैठे बैठे देख सकते हैं। ऐसे गीत पढ़ते हैं या सुनते हैं तो देख पाते हैं।जब गीत पढ़ते या शास्त्र पढ़ते हैं 'शास्त्रशक्षुक्ष: च' कहां ही हैं,तो शास्त्र हमारी आंखें बन जाती हैं,जब शास्त्र हमें दृष्टि देते हैं,तब हमको दिखाई देता हैं। भक्तिविनोद ठाकुर हमें दृष्टि दे रहे हैं या चश्मा दे रहे हैं। एक खास तरह का ग्लास दे रहे हैं। “न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा | दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्र्वरम् ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 11.8) अनुवाद:-किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते । अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखें दे रहा हूँ । अब मेरे योग ऐश्र्वर्य को देखो । गीता के ग्यारहवें अध्याय के प्रारंभ में कृष्ण ने कहा हैं कि मैं तुमको एक विशेष रूप, विश्वरूप का दर्शन कराऊंगा। लेकिन इस आंखों से तुम नहीं देख पाओगे। तो यह चश्मा ले लो "दिव्यं ददामि ते चक्षु:" मैं तुम्हें आंखें दे रहा हूं। चश्मा दे रहा हूं ताकि तुम देख पाओ। ऐसी व्यवस्था हैं।यह सब कहते कहते वक्त समाप्त हो रहा हैं।भजन थोड़ा विस्तृत हैं। "भज भकतवत्सल श्री-गौरहरि।" ऐसी शुरुआत हैं।यहा गौरहरि का भी स्मरण हैं।हरि हरि। गौर हरि! हरि हरि गौर हरि! हरि हरि गौर हरि! और वह कैसे हैं? भक्तवत्सल हैं।भक्तवत्सल गौर हरि और फिर यहा कहा गया हैं,भज मतलब भजन करो!किसका भजन करो? भज भकत वत्सल मतलब गौर हरि भक्तवत्सल हैं,उनका भजन करो!श्री-गौरहरि सोहि गोष्ठबिहारी, और फिर आगे कहा हैं जो गौरहरि हैं वही तो गोष्ठबिहारी हैं। गोष्ठबिहारी तो कृष्ण हुए। गोष्ठ मतलब ब्रज में कृष्ण गोचरण लीला खेलते हैं। तो गोष्ठ याने गोचारन लीला। वही तो हैं गोष्ठबिहारी। यह गीत आप के पास हैं तो आप लेकर पढ़ सकते हो या बाद में देखना लेकिन पढ़ना चाहिए।हम को समझना चाहिए। क्या-क्या कहा जा रहा हैं? गीत में?शास्त्र में? नन्द-यशोमति-चित्त-हारि॥1।। और वे गोष्ठबिहारी कैसे हैं? गौरहरि ही हैं गोष्ठबिहारी और गोष्ठबिहारी कैसे हैं नंद-यशोमति- चित्त - हरि।नंद यशोदा के चित्त को हरने वाले।नंद यशोदा का ध्यान आकृष्ट करने वाले चित्तहरि। चित्त शब्द क्या हैं? चित्त मच्चित्ता मद्गतप्राणा चेतना ,चित्त से संबंधित हैं। “मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम् | कथयन्तश्र्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च ||” (श्रीमद्भगवद्गीता 10.9) अनुवाद: -मेरे शुद्ध भक्तों के विचार मुझमें वास करते हैं, उनके जीवन मेरी सेवा में अर्पित रहते हैं और वे एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करते तथा मेरे विषय में बातें करते हुए परमसन्तोष तथा आनन्द का अनुभव करते हैं | यह भगवान भगवद्गीता के 10 वे अध्याय में कहते हैं।यह चित्त भावना से संबंधित हैं।मैंने एक शिष्य को नाम दिया हैं चित्तहरि, जो मिडल ईस्ट में रहता हैं। "बेला ह'लो दामोदर! आईस एखन। भोग-मन्दिरे बसि’ करह भोजन॥2॥" अनुवाद:-श्रीनन्दबाबाजी ने दामोदर को आदेश दिया कि समय हो गया है भोगमंदिर में जाकर भोजन करने के लिए बैठो। "बेला ह'लो दामोदर! आईस एखन।" नन्देर निर्देशे बैसे गिरिवरधारी। बलदेव-सह सखा वैसे सारि-सारि॥3॥) आपको बंगाली होना चाहिए था ताकि आप पढ़ भी सकते और समझ भी सकते।माफ करना हमारा उच्चारण ठीक नहीं होगा " बेला होलो" होलो लिखा तो हैं ह'लो लेकिन बंगाली में बोलते होलो हरे कृष्णो हरे कृष्णो ओ..ओ उन का चलता रहता हैं।बेला होलो बेला मतलब समय हुआ हैं। कृष्ण को संबोधित करते हुए नंद महाराज कह रहे हैं या नंद यशोदा में से कोई कह रहे हैं-हे दामोदर! वह पुकार रहे हैं कि दामोदर! समय हो गया! समय हो गया! गोधूलि बेला मतलब समय।नोट करो! आप नोट नहीं करते हैं, आपको कुछ परवाह नहीं हैं।"आईस एखन।" एखाने मतलब यहां उखाणे मतलब वहां। आईस यहां आओ! यहां आओ! हे दामोदर समय हो गया है यहां आओ! समय किसका हुआ हैं? भोजन का समय हुआ हैं। हमारा सारा ध्यान यहा होना चाहिए। अब गोकुल में हमें पहुंचना चाहिए और वहां जा कर हमें देखना चाहिए।इस लीला को देखना चाहिए जिसका वर्णन यहां हो रहा हैं या नंदग्राम पहुंचना चाहिए गोकुल पहुंचना चाहिएं।अब देह वहा नहीं रहना चाहिए जहा अभी हैं।हम को नागपुर में या थाईलैंड में, यहां वहां नहीं रहना चाहिए। हमको पहुंचना हैं गोकुल या नंदग्राम,जहां यह सब बातें कही जा रही हैं, ये लीला घटित हो रही हैं। भोग-मन्दिरे बसि’ करह भोजन॥2।। आओ आओ मंदिर में,एक मंदिर आप जिसको डायनिंग हॉल कहते हैं। यहां डाइनिंग टेबल भी होतें हैं। आपके लेकिन यहा डाइनिंग टेबल तो नहीं हैं। यहां जमीन पर ही बैंठना होगा, कुछ आसन तो होगा। "भोग-मन्दिरे बसि’ करह भोजन"आसन पर बैठकर, हें दामोदर भोजन करो! "नन्देर निर्देशे बैसे गिरिवरधारी। बलदेव-सह सखा वैसे सारि-सारि॥3।।" अनुवाद:-उनके आदेश पर गिरिवरधारी बलदेव तथा अन्य सखाओं के साथ बैठ गए। "नन्देर निर्देशे बैसे गिरिवरधारी। बलदेव-सह सखा वैसे सारि-सारि॥ तो कृष्ण दौड़ पड़े।कहा? भोग मंदिर कि ओर। नंद महाराज का आदेश हैं।नंद महाराज डाट भी रहे हैं कि खेलना बंद करो आ जाओ भोजन का समय है गया हैं।तो कृष्ण पहुंच गए। थोड़ा डर भी गए,नंद बाबा डांट रहे हैं,भोजन का स्मरण दिला रहे हैं। वैसे भोजन का भी आकर्षण हैं, एक और खेल का भी आकर्षण हैं।एक ओर खेल खीच यहा हैं तो दुसरी ओर भोजन खींच रहा हैं।पर अब आ गए हैं।भोजन ने खींच लिया। गिरिवरधारी बलदेव - सह सखा बलदेव भी हैं। बहुत सारे सखा खेल रहे थे तो सभी आ गए। कृष्ण के पीछे पीछे उनकी मित्र मंडली भी आ गई और पंक्ति में सब बैठ गए एक दूसरों को "वैसे सारी सारी" एक दूसरे के लिए स्थान बना रहे हैं। थोड़ा मुझे बैठने दो! कोई यहां खिसक रहा हैं, कोई वहा खिसक रहा हैं। कोई वहा बीच में गांव के गोप आकर बैठ रहे हैं और अब यहां वर्णन हैं कि सब बैठ गए। अभी भोजन परोसना शुरू हो गया हैं। तो कौन-कौन से व्यंजन खिलाए जा रहे हैं?माताएं भी नोट कर सकती हैं। "शुक्ता-शाकादि भाजि नालिता कुष्माण्ड। डालि डालना दुग्ध तुम्बी दधि’ मोचाखण्ड॥4॥" अनुवाद:-शुकता, शाक, भाजि, नालिता, कुष्माण्ड, डालि, डालना, दुग्ध तुम्बी दधि, मोचाखंड "शुक्ता-शाकादि भाजि नालिता कुष्माण्ड। डालि डालना दुग्ध तुम्बी दधि’ मोचाखण्ड॥" ये सभी पदार्थ बंगाल के हैं। बंगाल कि रेसिपी चल रही हैं। भक्ति विनोद ठाकुर बंगाल नवदीप में या जगन्नाथपुरी में रहते थे तो अधिकतर व्यंजन बंगाल के हैं, इसमें से कोई पंजाबी डिश नहीं हैं,दक्षिण भारत कि डिश नहीं हैं, या गुजरात का ढोकला नहीं हैं, ना तो महाराष्ट्र कि भाकरी हैं। ऐसे ऐसे व्यंजनों का नाम हमने सुना भी नहीं हैं, बंगाल में शुक्ता खूब चलता हैं या बंगाल में जितनी शाख सब्जी खाते हैं इतनी सब्जियां और कहीं नहीं खाई जाती।वह लोग बहुत सारी सब्जियां खाते हैं। इसलिए इस्कान में भी हमने बहुत सी सब्जियां खाना सीखा हैं। जब हम मायापुर जाते हैं, तो बहुत सब्जियां खाते हैं,हमारे इस्कान का हेड क्वार्टर भी मायापुर में हैं।वहां जाकर हम बिगड़ जाते हैं।वहां जैसा भोग राधा माधव को लगता हैं, वैसा कहीं नहीं लगता।बहुत से व्यंजन होते हैं और अलग अलग तरीके की सब्जियां होती हैं। बंगाल में खूब सब्जियां उगती भी हैं। वहा जल भी प्रचुर मात्रा में हैं और बंगाल ऐसा देश हैं जहा कभी भी सूखा नहीं पड़ता। उन्होंने यह शब्द कभी सुना भी नहीं। मुद्गबड़ा माषवड़ा रोटिका घृतान्न। शुष्कुली पिष्टक क्षीर पुलि पायसान्न॥5॥ अलग-अलग बड़े के बारे में बात की गई है बड़ा होता है ना, दाल का बड़ा और रोटी की बात की गई है बंगाल में रोटी थोड़ी कम होती है लेकिन होती भी है यहा रोटी की बात की गई है और घी और अन्य की बात की गई है और सारा भोजन घी में पकाया जा रहा है मतलब पोष्टिक खाना क्योंकि यह भगवान का राजभोग है इसलिए वह राजा जैसा होना चाहिए सूखा सूखा नहीं होना चाहिए। मुद्गबड़ा माषवड़ा रोटिका घृतान्न। शुष्कुली पिष्टक क्षीर पुलि पायसान्न पायसम तो समझ ही गए होंगे।दक्षिण भारत में दूध से एक खीर बनती हैं जिसे पायसम कहते हैं या क्षीर कहते हैं। एक खीर होती हैं और एक क्षीर होती हैं। खीर में दूध में चावल की मात्रा अधिक होती हैं, 16 किलो दूध में 1 किलो चावल और क्षीर में चावल नही होते हैं।केवल दूध होता हैं।क्षीर कहा होती हैं?क्षीर चोरा गोपीनाथ आपने सुना होगा? जहां भगवान ने माधवेंद्र पुरी को क्षीर की चोरी करके दी थी। कर्पूर अमृतकेलि रम्भा क्षीरसार। अमृत रसाला अम्ल द्वादश प्रकार॥6॥ इन सब में लड्डू तो समझ में आ गया बाकी सब क्या है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा और यह सारे व्यंजन कृष्ण अपने मित्रों के संग में बड़े कुतूहल के साथ बड़े उत्साह और उत्कंठा के साथ खा रहे हैं और खाते जा रहे हैं। तो यहां पर इन 4 पंक्तियों में तो अलग-अलग व्यंजनों के नाम ही आ गए हैं।भक्ति विनोद ठाकुर आगे लिखते हैं अमृत अकेली और क्षीरसार, उसमें कपूर भी डालते हैं।अमृत रसाल किसे कहा गया हैं? 12 प्रकार के अलग-अलग अचार इत्यादि हैं अमृत रसाल। उनका स्वाद भी अलग अलग होता हैं कोई खट्टा हैं तो कोई मीठा है तो कोई तीखा है और इसी विभिन्नताओं के कारण आप अपने खाने को आनंदपूर्वक खा सकते हैं, तो यह सब तैयार हुआ हैं। लुचि चिनि सरपुरी लाड्डू रसावली। भोजन करेन कृष्ण हये कुतुहली॥7।। इन सब में लड्डू तो समझ में आ गया बाकी सब क्या है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा और यह सारे व्यंजन कृष्ण अपने मित्रों के संग में बड़े कुतूहल के साथ,बड़े उत्साह और उत्कंठा के साथ खा रहे हैं और खाते जा रहे हैं।तो यहां पर इन 4 पंक्तियों में तो अलग-अलग व्यंजनों के नाम ही आ गए हैं।भक्ति विनोद ठाकुर आगे लिखते हैं राधिकार पक्व अन्न विविध वयंजन। परम आनन्दे कृष्ण करेन भोजन॥8॥ यह सारे व्यंजन बनाने में राधा का बड़ा योगदान हैं।वैसे मुख्य रसोईया तो माता यशोदा हैं और ऐसा कहा भी गया है कि सबसे उच्चतम रसोईया तो माता ही होती हैं।इसमें पत्नी का नाम ही नहीं आता हैं।उच्चतम रसोइए की बात की जाए तो वह माता ही होती है। तो कृष्ण के लिए उत्तम रसोईया तो माता यशोदा है। तो उस उच्चतम को और उत्तम बनाने के लिए यशोदा क्या करती है?जावट से राधिका को नंदग्राम बुलाती है। जावट आपने सुना ही होगा।जावट राधा रानी का ससुराल है और राधा रानी एक उत्तम रसोईया हैं और यशोदा यह बात जानती है कि राधा रानी के हाथ से पका हुआ भोजन अगर कोई खाता है तो वह कभी बीमार नहीं होता।इसलिए भी यशोदा राधा रानी को बुलाया करती थी।कृपया आओ,खाना बनाओ और मेरी सहायता करो।तो राधा रानी आ जाती थी और भी कई सखीया आ जाती थी और राधा रानी कई सारे व्यंजन बनाती थी।इसीलिए यशोदा मैया का और राधा रानी का पकाया हुआ भोजन कृष्णा बड़े उत्साह से खा रहे हैं और आनंद ले रहे हैं छले-बले लाड्डू खाय श्रीमधुमङ्गल। बगल बाजाय आर देय हरिबोल॥9॥ कृष्ण के बगल में ही मधुमंगल बैठे हैं।ब्राह्मणों को लड्डू बहुत पसंद होते हैं।ब्राह्मण मोदक प्रिय होते हैं।वैसे गणेश जी को भी मोदक खिलाते हैं।तो यहां यह मधुमंगल कृष्ण के बहुत प्यारे मित्र हैं और विनोदी भी हैं। वह लड्डू खा रहे हैं।वह लड्डू खाने में स्पेशलिस्ट हैं और लड्डू कैसे खा रहे हैं?छल बल से खा रहे हैं।कुछ छल के साथ खा रहे हैं और कुछ बल के साथ खा रहे हैं।कुछ जबरदस्ती कर रहे हैं मतलब कृष्ण की थाली में जो व्यंजन है उसी को उठा कर खा लेते हैं।अपना जो लड्डू परोसा गया था वह तो खा ही लिया और साथ ही साथ कृष्ण की थाली से भी लड्डू उठा कर खा लिया।छल करके कहते हैं कृष्ण उधर देखो उधर देखो और लड्डू उठा कर खा जाते हैं कभी युक्ति पूर्वक कभी छल से कभी बल से लड्डू खाने में मधुमंगल बहुत ही कुशल हैं और बिगुल बजाते हैं और हमने पहले यह भी समझा था कि बगल बजाए मतलब बगल में हाथ रखते हैं और कुछ आवाज करते हैं आपने सुना और देखा होगा,जब मित्र ऐसी आवाज सुनते हैं तो कृष्ण भी सुनते हैं।यह हास्यप्रद प्रोग्राम ही चल रहा हैं। मधुमंगल एंटरटेनर है और क्या कर रहे हैं?हरि बोल हरि बोल,बोल रहे हैं। राधिकादि गणे हेरि नयनेर कोणे। तृप्त हये खाय कृष्ण यशोदा भवने॥10॥ तो यह सब सारा भोजन कृष्ण और कंपनी कर रही है।भोजन का आनंद लूट रही है।राधिका आदि मतलब राधिका + आदि।राधिका और उनकी सखियां क्या कर रही हैं?हेरी मतलब देख रही हैं।कैसे देख रही है?नयनेर कोने। शास्त्रों में आंख को आंख नहीं कहा जाता, नयन कहते हैं।हम लोग तो आंख,आंख करते रहते हैं।कमलनयन या नेत्र कहा जाता हैं।यह कितना अच्छा शब्द हैं और हम लोग तो केवल आंख आंख करते रहते हैं।नयनेर कोने मतलब तिरछी नजर से देख रही हैं।राधा रानी कृष्ण को तिरछी नजर से देख रही हैं। सीधे देखने की अनुमति नहीं हैं,क्योंकि दोनों एक युवक और एक युवती हैं इसलिए वह सीधे नहीं देख सकती। देखना तो चाहती हैं, देख भी रही हैं, लेकिन यह दिखा रही हैं कि मैं देख नहीं रही हूं। मैं तो सामने देख रही हूं।कृष्ण को थोड़ी ना देख रही हूं। इसलिए तिरछी नजर से देख रही हैं। जो रसोइए होते हैं या जिसने भी भोजन बनाया होता हैं वह देखना चाहते हैं कि हमारा भोजन किसी को पसंद आ रहा हैं या नहीं आ रहा हैं, अच्छा बना कि नहीं। यह सभी कां हीं अनुभव हैं, मेरा भी यही अनुभव हैं, माताएं भी कभी मेरे लिए प्रसाद बनाती हैं तो वह देखना चाहती है कि मुझे पसंद आ रहा हैं या नहीं अगर संभव होता हैं तो देखती भी रहती हैं नहीं तो जब प्लेट बाहर पहुंच जाती हैं तो सोचती हैं,अरे महाराज ने यह तो खाया ही नहीं और यह तो बहुत ही कम खाया, ऐसी टिप्पणियां चलती रहती हैं।तो रसोइए की नजर खाने वाले पर ही होती हैं।मैने भोजन बनाया और उन्हें पसंद आया या नहीं। या कौन सी आइटम सबसे ज्यादा पसंद आई,अगली बार मैं इसे ही अधिक बनाऊंगी। इनको खीर पसंद हैं, इनको लड्डू पसंद हैं, इनको शुक्त पसंद हैं। तो राधा रानी निरीक्षण कर रही हैं और राधिका जब देख रही हैं तो उन्हें समझ में आ रहा हैं। कृष्ण भोजन खाकर तृप्त हो रहे हैं। वह बहुत ही संतुष्ट हैं। भोजनान्ते पिये कृष्ण सुवासित वारि। सबे मुख प्रक्षालय हये सारि-सारि॥11॥ अब भोजन का समापन हो रहा हैं। हस्त मुख प्रक्षालिया जत सखागणे। आनन्दे विश्राम करे बलदेव सने॥12॥ कृष्ण ने एक सुगंधित पेय को पिया और फिर सभी ने हाथ और मुंह धोए।सभी ने अपना हाथ मुंह धो लिया और अब थोड़ा विश्राम करेंगे ।पेट भर गया हैं, अब थोड़ा विश्राम करना होगा।इसलिए सभी थोड़ा थोड़ा लेट रहे हैं।इतने में कृष्णा लेटने ही वाले थे कि जाम्बुल रसाल आने ताम्बुल मसाला। ताहा खेये कृष्णचन्द्र सुबे निद्रा गेला॥13॥ जाम्बुल नाम के एक कृष्ण के मित्र हैं,जो तांबूल लेकर आए हैं, मसाला लेकर आए हैं। गुजरात में इसे कहते हैं मुख्वास।खाना पचाने के लिए खाने वाली चीज को मुखवास कहते हैं। विशालाक्ष शिखि-पुच्छ चामर दुलाय। विशालाक्ष नाम के उनके एक और मित्र आ गए,इनके हाथ में चावंर हैं और सीखीपुछ हैं,सीखी मतलब मयूर उसकी पूछ से भी पंखा बनता हैं। मोर पंख। जिससे पंखा किया जाता हैं। आरती में भी हम देखते हैं कि भगवान को दो प्रकार की चीजों से हवा दी जाती हैं। मोर पंख और चावंर।वह उनको उससे हवा कर रहे हैं। एसी की अलग से जरूरत नहीं हैं और कृष्ण जी शैया पर विश्राम कर रहे हैं। वह विशेष हैं। आपने ऐसी शैया पहले कभी देखी या सुनी नहीं होगी। यशोमती-आज्ञा पेये धनिष्ठा-आनीत। श्रीकृष्णप्रसाद् राधा भुञ्जे ह’ये प्रीत॥15॥ यशोदा की आज्ञा के अनुसार धनिष्ठा नाम की गोपी ने देखा कि क्या कुछ बचा हैं? क्योंकि कृष्ण जब खाते हैं और थाली में कुछ बचता हैं, तो सब कुछ प्रसाद बन जाता हैं, इसीलिए रसोई में जो कुछ भी बचा हुआ था यशोदा ने धनिष्ठा को कहा कि इसे बांट दो। सबको खिलाओ,सभी रसोइयों को भी खिलाओ। इस प्रकार से राधा रानी को भी वह प्रसाद मिला। राधा रानी ने उसको ग्रहण कर लिया और उनको बड़ा आनंद आ रहा हैं। ललितादि सखीगण अवशेष पाय। मने-मने सुखे राधा-कृष्ण गुण गाय॥16।। पहले राधा रानी को दिया हैं, फिर ललिता,फिर विशाखा और फिर सभी सखियों को कृष्ण का उच्चिष्ट प्राप्त हो रहा हैं। सभी प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। क्या कर रहे हैं।?सेई अन्नामृत पाओ और फिर क्या करो? सो जाओ और फिर राधा-कृष्ण गुण गाओ हम ऐसा क्यों बोलते हैं? क्योंकि ऐसा ही होता हैं। नंद ग्राम में, गोकुल में ,वृंदावन में, जो जो कृष्ण का प्रसाद ग्रहण करते हैं, प्रसाद के उपरांत मने मने सूखे राधा कृष्ण गुण गाए। मन ही मन में कुछ कह रहे हैं। उच्चारण हो रहा हैं। तो क्या कर रहे हैं? राधा कृष्ण का गुणगान हो रहा हैं। हरिलीला एकमात्र जाँहार प्रमोद। भोगारति गाय ठाकुर भकति विनोद॥17।। और भक्ति विनोद ठाकुर भोग आरती गा रहे हैं और भक्ति विनोद ठाकुर कैसे हैं?इसे जरूर नोट करना।हरि लीला यानी कृष्ण की लीला का गायन या स्मरण ही जिनके लिए प्रमोद हैं। मुद्र मतलब सुख या आनंद।भगवान की लीला में आनंद लूटने वाले या हरिलीला ही जिनका एकमात्र प्रमोद हैं। ऐसे भक्ति विनोद ठाकुर भोग आरती गा रहे हैं।श्रील भक्ति विनोद ठाकुर की जय।भोग आरती की जय। भक्तवत्सल गौर हरि की जय।गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल।

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