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जप चर्चा पंढरपुर धाम 29 जुलाई 2021 925 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं । हरि हरि ! गौर प्रेमानंदे ! हरि हरि बोल ! गौर हरि बोल ! बाहु तुले ! बांग्ला भाषा में कहते हैं । बाहु तुले हरि हरि बोल ! (परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज एक भक्तों को संबोधित करते हुए ) वेदांत चैतन्य क्या तुम वहां हो ? ठीक है तूम वहां पर हो वेदांत चैतन्य । ठीक है आप सभी उपस्थित हो ही । जब कल मैंने पढ़ा या सुना बहुत कुछ चिंतन कर रहा था कल भी । आज जप करते समय वही विचार आ रहे थे । तो फिर इसलिए सोच रहा हूं कि उसका में चिंतन या श्रवण कीर्तन कल फिर और फिर स्मरण भी हो रहा था और आज प्रातः काल में भी यह है महामंत्र के श्रवण कीर्तन के समय भी वही विचार प्रकट हो रहे थे मन में तो उसी को शेयर करते हैं । वैसे, कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की ! ज्यादा दूर नहीं है ! यह भी कारण हो सकता है । यह कुछ पढ़ रहा था या कुछ सोच रहा था । उसमेंकुछ लीला भी है या कृष्ण की लीला और कृष्ण का तत्व कहो , भगवत तत्व विज्ञान भी है । श्रीमद् भागवत् स्कंद 10 अध्याय 5 श्लोक संख्या 1 । उसमें से कुछ ही बातों का जिक्र होगा । यहां शुकदेव गोस्वामी कहे हैं । श्रीशुक उवाच नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाता ह्लादो महामनाः । आहूय विप्रान्वेदज्ञान्स्नातः शुचिरलङ्कृ तः ॥ 1 ॥ वाचयित्वा स्वस्त्ययनं जातकर्मात्मजस्य वै । कारयामास विधिवत्पितृदेवार्चनं तथा ॥ 2 ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.5.1 ) अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी ने कहा : नन्द महाराज स्वभाव से अत्यन्त उदार थे अत : जब भगवान् श्रीकृष्ण ने उनके पुत्र रूप में जन्म लिया तो वे हर्ष के मारे फूले नहीं समाए । अतएव स्नान द्वारा अपने को शुद्ध करके तथा समुचित ढंग से वस्त्र धारण करके उन्होंने वैदिक मंत्रों का पाठ करने वाले ब्राह्मणों को बुला भेजा । जब ये योग्य ब्राह्मण शुभ वैदिक स्तोत्रों का पाठ कर चुके तो नन्द ने अपने नवजात शिशु के जात - कर्म को विधिवत् सम्पन्न किए जाने की व्यवस्था की । उन्होंने देवताओं तथा पूर्वजों की पूजा का भी प्रबन्ध किया । इसमें से कुछ ही बातों का उल्लेख होगा । यहां शुकदेव गोस्वामी कृष्ण के जन्म का वर्णन यहां कर रहे हैं । अब जन्म हो चुका है । तो यहां पर वह कह रहे हैं "नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाता ह्लादो महामनाः" । "नन्दस्तू" "नन्दः तू" यह जो तू अक्षर का यहां उपयोग किए हैं । तो मतलब नंद महाराज ने तो , तो मतलब किंतु ,किंतु में से "तू" जो है, तू कहो या किंतु कहो एक ही बात है । किंतु में से तू ही यहां कहा है । "नन्दस्त्वात्मज" एक तो नंद महाराज के हुए जब "आत्मज" आत्मा से उत्पन्न या आत्मज कहा जाता है या देह से उत्पन्न कहा जाता है श्री कृष्ण । "नन्द आत्मजः" जब नंदनंदन ने जब जन्म लिया यहां गोकुल में नंद भवन में तू तब किंतु कुछ भिन्न हुआ । यहां पर शुकदेव गोस्वामी , मथुरा के कारागार में वासुदेव ने जन्म लिया है ,वसुदेव के पुत्र बने हैं वासुदेव । वासुदेव ने जब मथुरा के कारागार में कंस के कारागार में जन्म लिया तो वहां तो वें उत्सव नहीं मना पाए । वैसे यहां पर मध्य रात्रि को जन्म है मथुरा में मध्य रात्रि में जन्म हुआ । और फिर रातों-रात ही वसुदेव ले गए कृष्ण को गोकुल वहां रखे अपने आत्मज को ,वासुदेव को ,कृष्ण को या मथुरा के कृष्ण को वहां गोकुल में रखे । वसुदेव तो उत्सव नहीं बना पाए । बनाना चाहते तो थे किंतु हथकड़ी, बेड़ी और कारागार में जो हैं । कैसे उत्सव बनाएंगे ! वैसे भी उल्लेख हुआ है उन्होंने मन ही मन में उत्सव बनाया । और कई सारी गायों का वो दान भी देने लगे । दान धर्म के कृत्य । "कारयामास विधिवत" "जातकर्मात्मजस्य वै" तो नंद महाराज तो वे नंदो उत्सव संपन्न करेंगे । जन्म हुआ अष्टमी को, अष्टमी के रात्रि को । और बालक अब यहां नवमी के प्रातः काल को अब मध्य रात्रि को पहुंचा गया लेकिन नवमी के प्रातः काल को पता चल ही गया नंद महाराज को की आत्मज पुत्र रत्न प्राप्त हुआ है । नंद महाराज अब नंदो उत्सव मनाएंगे विधिपूर्वक । मानसिक उत्सव नहीं मनाएंगे । जैसे वसुदेव ने मनाया था मन ही मन में उत्सव मना रहे थे । बालक का जन्म हुआ है तो जन्म उत्सव और गायों का दान दे रहे थे यह हो रहा था वह हो रहा था । तो उस उत्सव में वसुदेव ने जो मानसिक उत्सव संपन्न किया किंतु "नन्दस्तू" मैं आपका ध्यान वैसे इस तू की और आकृष्ट करना चाहता हूं । हमारे आचार्य ने जो भाष्य लिखे हैं इस श्लोक पर कहिए या जो अक्षर है "तू" तू से भेद ... साक्षाद्धरित्वेन समस्त-शास्त्रैर् उक्तस्तथा भाव्यत एव सद्भिः । किंतु प्रभोर्-यः प्रिय एव तस्य वंदे गुरोः श्री चरणारविंदं ॥ 7 ॥ ( श्री श्री गुर्वष्टक ) अनुवाद:- श्री भगवान के अत्यंत अंतरंग सेवक होने के कारण, श्री गुरुदेव को स्वयं श्री भगवान ही के समान सम्मानित किया जाना चाहिए । इस बात को सभी प्रमाणित शास्त्रों ने माना है और सारे महाजनों ने इसका पालन किया है । भगवान श्री हरी ( श्री कृष्ण ) के ऐसे प्रमाणित प्रतिनिधि के चरणकमलों में मैं सादर नमस्कार करता हूं । वह भी तो साक्षात हरि है । "किंतु" 1 मिनट रुक जाइए ! वैसा नहीं है ! वैसा क्यों है ? "किंतु प्रभोर्-यः प्रिय" यह भगवान को प्रिय है इसलिए उनको साक्षात हरि कहते हैं । एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु भगवान् स्वयम् । इन्द्रारिव्याकुलं लोकं मृडयन्ति युगे युगे ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 1.3.28 ) अनुवाद:- उपर्युक्त सारे अवतार या तो भगवान् के पूर्ण अंश या पूर्णांश के अंश ( कलाएं ) हैं , लेकिन श्रीकृष्ण तो आदि पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं । वे सब विभिन्न लोकों में नास्तिकों द्वारा उपद्रव किये जाने पर प्रकट होते हैं । भगवान् आस्तिकों की रक्षा करने के लिए अवतरित होते हैं । यहां पे "तू" आ गया । "एते" यह सारे अवतार श्रीमद्भागवत के प्रथम स्कंद के द्वितीय अध्याय में कई सारे अवतारों का उल्लेख हुआ । शुत गोस्वामी कहे यह अवतार वह अवतार और फिर कहे .."एते चांशकलाः पुंसः कृष्णस्तु" किंतु कृष्ण स्वयं भगवान है बाकी तो अवतार है किंतु कृष्ण अवतारी हैं । यह जो तू जो है इसकी और ध्यान आकृष्ट कर रहा हूं । तो यहां भी "नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने" किंतु नंद महाराज का आत्मज अपना पुत्र ने जन्म लिया है तो नंद महाराज ने वास्तविक में नाकी सिर्फ वर्चुअल (आभासी ) आमने सामने लोगों को आमंत्रित किया लोग वास्तविक आ गए वहां । गोप गोपी पहुंच गए वहां और नंदो उत्सव संपन्न हुआ इसका यहां शुकदेव गोस्वामी वर्णन करने वाले हैं । तो "नंदस्तु" "उत्पन्ने जाता ह्लादो महामनाः" तो तू कह के शुकदेव गोस्वामी ने, मथुरा में तो जन्म लिया था वसुदेव नंदन बने । लेकिन वह उत्सव संपन्न नहीं कर पाए । किंतु "नंदस्तु" अब गोकुल में सचमुच भव्य उत्सव संपन्न होने जा रहा है और संपन्न हुआ भी इसका वर्णन शुकदेव गोस्वामी इस अध्याय में करने वाले हैं । यह पहला ही बच्चन प्रारंभ किया । तो यह एक बात हुई किंतु वाली यह तू वाली "नंदस्तु" । और दूसरा है आत्मज "नंद आत्मज" तो नंद महाराज का आत्मज , नंद महाराज को पुत्र हुआ एसे शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं "नंद आत्मज" । तो क्या यह , जिनका उत्सव मनाने जा रहे हैं यह "नंद आत्मज" है की या वसुदेव "आत्मज" है ? वे नंद नंदन है की वसुदेव नंदन है ? तो यह प्रश्न उठता है । वसुदेव तो अपने पुत्र को ले आए और सूतिका ग्रह में रातो रात अपने पुत्रों को रखें तो क्या जब प्रातःकाल हुई और पहले तो नंद महाराज को पता चला पुत्र जन्मा है । तो क्या वह जन्मा हुआ पुत्र उनका है कि वसुदेव का है ? वह वसुदेवनंदन है कि वे नंदन नंदन है ? इसके उत्तर में हमारे गौड़ीय वैष्णव आचार्य ने जो वे इस विषय पर प्रकाश डालते हैं , उनका कहना है ,उन्होंने समझाया है ! यह समझाने के लिए की यह जो बालिका ने जन्म लिया जिस बालिका को वसुदेव गोकुल से मथुरा ले आए । इस बालिका को जो स्वयं योगमाया है । योगमाया ने हीं जन्म लिया उस बालिका के रूप में यशोदा के गर्भ से और यह भी लिखा गया है की यशोदा ने जन्म तो दिया आपत्य को और बालिका को और बालक को भी लेकिन उसको पता नहीं चला कि उसने बालक को जन्म दिया की बालिका को जन्म दिया की बालक और बालिका दोनों को जन्म दीया । तो उत्तर तो यह है कि यशोदा ने बालक को और बालिका को जन्म दिया । यह जो बालिका है योगमाय इसके संबंध में उसी स्कंद के दशम स्कंद के द्वितीय अध्याय , मैं संक्षिप्त में कह सकता हूं ! कृष्ण कहे हैं ... ! अब तक कृष्ण बलराम का जन्म नहीं हुआ है वे दोनों अब तक प्रकट नहीं हुए हैं । कृष्ण गोलक में ही है ,बलराम भी गोलक में ही है । उस वक्त भगवान ने योगमाया को अपने धाम में योगमाया को बुलाया । और उसको आदेश दिया । गच्छ देवि व्रजं भद्रे गोपगोभिरल तम् । रोहिणी वसुदेवस्य भार्यास्ते नन्दगोकुले । अन्याश्च कंससंविग्ना विवरेषु वसन्ति हि ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.2.7 ) भगवान् ने योगमाया को आदेश दियाः हे समस्त जगत द्वारा पूज्या तथा समस्त जीवों को सौभाग्य प्रदान करने वाली शक्ति , तुम व्रज जाओ जहाँ अनेक ग्वाले तथा उनकी पलियाँ रहती हैं उस सुन्दर प्रदेश में जहाँ अनेक गावें निवास करती हैं , वसुदेव की पत्नी रोहिणी नन्द महाराज के घर में रह रही हैं । वसुदेव की अन्य पलियाँ भी कंस के भय से वहीं अज्ञातवास कर रही हैं कृपा करके वहाँ जाओ । हे योगमाया "गच्छ देवि व्रजं भद्रे" हे योगमाया देवी "गच्छ" जाओ ,कहां ? व्रज जाओ । "व्रजं गच्छ" 'व्रजं' मतलब वृंदावन जाओ । ठीक है जाती हूं । वहां मुझे क्या करना है ? कृष्ण वहां गोलक में योगमाया को दो आदेश दे रहे हैं ! उसका दो नौकरी विवरण है कहो । एक तो है बलराम जब अभी या निकट के भविष्य में बलराम जब देवकी के गर्भ में प्रकट होंगे अब गर्भ में ही है तो उस गर्भ को तुम्हें स्थानांतरित करना है रोहिणी के गर्भ में । रोहिणी होगी गोकुल में, नंद भवन में रोहिणी होगी जो वसुदेव की भारिया है । वसुदेव की पत्नी है रोहिणी । तो एक पत्नी के गर्भ से जो देवकी है दूसरे पत्नी के रोहिणी के गर्भ में बलराम को पहुंचाना है । यह पहला कारण है । यह कार्य तुमको करना है । और दूसरा है कृष्ण कहे गोलक में ही कह रहे हैं योगमाया को । अथाहमंशभागेन देवक्याः पुत्रतां शुभे । प्राप्स्यामि त्वं यशोदायां नन्दपत्न्यां भविष्यसि ॥ ( श्रीमद् भागवतम् 10.2.9 ) अनुवाद:- हे सर्व कल्याणी योगमाया , तब मैं अपने छहों ऐश्वर्यों से युक्त होकर देवकी के पुत्र रूप में प्रकट होऊँगा और तुम महाराज नन्द की महारानी माता यशोदा की पुत्री के रूप में प्रकट होगी । और दूसरा तुम्हारा भूमिका होगी कि तुम्हें जन्म लेना है । यशोदा के पुत्री के रूप में तुम्हें जन्म लेना है । तुम यशोदा की पुत्री बनोगी । फिर इसी पुत्री को वसुदेव मथुरा से आएंगे और तुमको ले जाएंगे यह तो बताया नहीं , यहां पे उल्लेख नहीं है लेकिन यशोदा के पुत्री के रूप में तुमको जन्म लेना है ,प्रकट होना है । यह जो योगमाया का यशोदा के गर्भ से जो जन्म हुआ है यह एक तथ्य है । तो इस पुत्री को जो योगमाया पुत्री के रूप में जन्मी है इसको कहा है "कृष्ण अनुजा" यह है कृष्ण अनुजा इसको समझ लीजिए । यह कृष्ण की अनुजा है । एक तो कृष्ण जो जन्म लेंगे यशोदा के गर्भ से । लिया भी इसीलिए यहां नंद आत्मज कहा है । वह नंद महाराज का ही पुत्र है । तो नंद महाराज के पुत्र रूप में भी कृष्ण प्रकट हुए थे । ठीक है ! इस प्राकट्य के उपरांत यह बालिका भी प्रकट हुई है यशोदा के गर्भ से इसीलिए उसको कृष्ण अनुजा कहा है । ज मतलब जन्म । इस बालिका का जन्म हुआ अनुजा कृष्ण अनुजा I पहले कृष्ण ने जन्म लिया, पहले कृष्ण प्रकट हुए गोकुल में यशोदा के पुत्र रूप में और अनु मतलब बाद में followed by, wide after , कृष्ण ने जन्म लिया फिर बालिका ने जन्म लिया और उसको कहते हैं कृष्ण अनुजा । योगमाया कृष्ण अनुजा बनी है । इस प्रकार यह दो आपत्तियों को जन्म की थी । हमारे गोडिय वैष्णव आचार्य समझाते हैं और स्पष्ट भी है शास्त्रों का आधार है । तो होता क्या है ? जिस वसुदेव का पुत्र बने हैं भगवान इसलिए वासुदेव कहलाते हैं । तो वासुदेव को लेके आए गोकुल । ठीक है ! ..स्तुतिका गृह में प्रवेश किया और उस स्थिति में वैसे अभी-अभी जन्म दी है यशोदा आपत्तियों को । उसको सूदबुध नहीं है तो उस अवस्था में । वसुदेव आते हैं और रखते हैं, ऐसा हम कहते हैं रखे वे वासुदेव को या वसुदेव नंदन को वहां रखे और यशोदा के पुत्री को उठाए और मथुरा लौट आए । तो होता क्या है ? ऐसा समझा जाता है कि ! यह सिद्धांत है यह तत्व है की यशोदा ने जो कृष्ण को नंदन नंदन को नंद आत्मज को या यशोदा नंदन को जन्म दिया था उस नंदन नंदन ने यह देवकीनंदन प्रवेश करते हैं । तो दो कृष्ण । एक नंद नंदन कृष्ण और वसुदेव नंदन कृष्ण । तो वसुदेव नंदन प्रवेश करते हैं नंदन नंदन में और दो के , उसके बाद वह एक हो जाते हैं । प्रातः काल जब हुई तो पता चला पुत्र जन्मा है । जिस पुत्रों को या शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं "नंद आत्मज" । "नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने" उत्पन्न शब्द का भी प्रयोग किया है । उत्पन्न हुआ नंद आत्मज "नन्दस्त्वात्मज उत्पन्ने जाता ह्लादो" अह्लाद हुआ "महामनाः" नंद महाराज को और फिर उन्होंने बुलाए "आहूय विप्रान्" ब्राह्मणों को पुरोहितों को वैदज्ञ को । और नंद महाराज भी स्नान किए "स्नातः शुचिरलङ्कृ तः" स्नान किए हैं नए वस्त्र धारण किए हैं । कुछ अलंकार भी पहने हैं नंद महाराज । "वाचयित्वा" उन्होंने विधि पूर्वक यह जात कर्म के संस्कार जात कर्म नामक संस्कार । जब बालक जन्म होता है तो बालक का संस्कार होता है उसको जात कर्म कहते हैं । उसका स्वस्तिवाचन के साथ विधि पूर्वक "कारयामास" यह उत्सव नंद उत्सव उन्होंने संपन्न किया । जिसको आप कहते रहते हो नंद के घर आनंद भयो ! नंद के घर में क्या हुआ ? क्या हुआ नंद के घर पर ? आपको पता नहीं है ! या जो हुआ होने दो । हमको कोई फिक्र नहीं है । क्या हुआ ? आप किसी को है फिक्र ? नंद के घर आनंद भयो ! वैसे हम अगर याद करते हैं तो या कहते हीं है आनंद भयो आनंद भयो ! उसी से क्या होगा ? नंद महाराज को आनंद तो हुआ ही "जाता ह्लादो महामनाः" नंद महाराज, वैसे नाम तो देखो नंद महाराज का नाम ही है नंद, नंद महाराज । तो इस नंद का भी आनंद के संबंध है । आनंद ने जन्म लिया गोकुल में नंद भवन में तो हो गए नंद महाराज नंद हो गए आनंद । आनंद का अनुभव कर रहे हैं तो उनका नाम भी वैसा है । स्वयं ही आनंद में निमग्न रहते हैं और जो भी उनके संपर्क में आता है नंद महाराज की तो वह भी आनंद अह्लाद का अनुभव करता है । लेकिन यह सारे आनंद का आनंद के जो स्रोत है श्री कृष्ण । इसीलिए कृष्ण का एक नाम भी है आनंद । आनंद मतलब क्या ? कृष्ण ! आनंद और कौन हो सकता है ? सच्चिदानंद । तो बड़े धूमधाम के साथ बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ नंद महाराज नंदो उत्सव मनाए । और उसी दिन वैसे श्रील प्रभुपाद का भी जन्म हुआ । नंदो उत्सव के दिन । उसी साल नहीं ! लेकिन लगभग 5000 वर्षों के उपरांत इस संसार 1896 में लोगों ने कृष्ण जन्माष्टमी मनाई और फिर दूसरे दिन नंदो उत्सव मना रहे थे । उस दिन कोलकाता में श्रील प्रभुपाद का जन्म हुआ । तो नंदू नंदू ! श्रील प्रभुपाद को नंदू नंदू भी कहते थे ' । उनका जन्म हुआ नंदो उत्सव के दिन । तो इससे पता चलता है श्रील प्रभुपाद का कृष्ण के साथ जो घनिष्ठ संबंध है यह घनिष्ठ संबंध स्थापित होता है जब हम ध्यान करते हैं कि, भगवान ने श्रीला प्रभुपाद को अभय को, अभय भी नाम हुआ । फिर अभय बाबू कहलाते थे जब अभय बड़ा हुआ तो अभय बाबू कहते थे । तो इस साल हम यह दोनों उत्सव श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव और यह प्रभुपाद का जन्मोत्सव और यह होगा 125 वा जन्म उत्सव श्रील प्रभुपाद की होगी , हम इस वर्ष मनाएंगे । तो उस दिन हम कई उपहार लेके कृष्ण जन्माष्टमी में भी उपहार लेके आएंगे । जैसे नंद के घर आनंद भयो ! नंदन नंदन ने जन्म लिया इसका पता जब चला व्रजवासियों को तो सारे व्रजवासी , पूरा व्रज दौड़ पड़ा गोकुल की ओर सज धज के और कई सारी उपहार अब जन्म उत्सव मनाई जाएगी कृष्ण का जन्म दिवस गोकुल में । इसका वर्णन आप पढ़िएगा शुकदेव गोस्वामी लिखे हैं इस अध्याय में 5 वा अध्याय 10 वा स्कंद । तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दिन भी हम यथासंभव कोरोनावायरस , लॉकडाउन स्थिति ध्यान में रखते हुए ,नहीं तो फिर हम जहां भी है अपने घरों में तो मना ही सकते हैं या अपने मोहल्ले में मना सकते हैं । मेरा कहने का मतलब है कि अकेले में । तो देखते हैं what is in the store for us? लेकिन बात यह है कि इस साल की जन्माष्टमी विशेषकर इस साल का श्रील प्रभुपाद व्यास पूजा दिवस यह 125 वा शताब्दी का दिन होगा तो वह भी बड़े उत्साह के साथ मनाना है और मैं कह चुका हूं कि हमको कई सारे उपहार , हमारी श्रद्धांजलि और ना सिर्फ केवल शब्द ही लेकिन कुछ वास्तविक में श्रद्धांजलि भी आप सभी ने कुछ अलग अलग संकल्प आप ले चुके हो । यह विशेष वर्ष है 125 वी जन्म उत्सव वर्ष है पूरा साल ही । हम यह करेंगे हम वह करेंगे हम लीलामृत का वितरण करेंगे हम कई सारी वह 125 वी यह 125 वीं ,हमारे मंदिर इस्कॉन मंदिर के भक्त, कांग्रेगेशन , आप सब दीक्षित शिक्षित भक्त श्रीला प्रभुपाद के अनुयायियों ने भी कई सारे संकल्प आप ले चुके हो तो उसको भी आप पूरे करते जाइए । और वह सारा ऑफर करना है । की घोषणा होगी इसने यह किया उसने वह किया । तो आपने क्या क्या करोगे आपने संकल्प लिए हैं ,नहीं लिए हैं तो और सोचो श्रील प्रभुपाद के खुशी के लिए । आप क्या क्या करने जा रहे हो और सब श्रद्धांजलि होगी । श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव की जय ! श्रीला प्रभुपाद 125 वी जन्मदिवस उत्सव की जय ! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल ! कृष्ण का परिचय देने वाले श्रील प्रभुपाद । वह कृष्ण के परिचय दिए पूरे विश्व को । और कृष्ण को यथारूप में । कृष्ण है पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान यह जो ..."कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्" यह सिखाया यह समझाये श्रील प्रभुपाद । तो हम सभी कृतज्ञ हैं या होना चाहिए फिर हमको यह जो ऋण है प्रभुपाद का हमारे ऊपर उसको चुकाना होगा इस ऋण से मुक्त होने का कुछ प्रयास करना होगा । ठीक है । हरि हरि ! ॥ हरे कृष्ण ॥

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