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जप चर्चा,
22 अप्रैल 2022,
वृंदावन धाम.
ओम नमो भगवते वासुदेवाय।
क्या सुना आपने, या अब तक महामंत्र ही सुन रहे हो। मैंने जप चर्चा प्रारंभ की हुई है। ओम नमो भगवते वासुदेवाय, मैंने कहा। ध्रुव महाराज वृंदावन में इसी मंत्र का उच्चारण कीर्तन या जप कर रहे थे। कौन सा मंत्र, ओम नमो भगवते वासुदेवाय। वह युग अलग था सतयुग की बातें हैं यह। कलयुग में तो हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।। इस महामंत्र का ही जप कीर्तन करते हैं। और यह नहीं कि, हम ओम नमो भगवते वासुदेवाय कहते ही नहीं। हम जरूर कहते हैं। भागवत कथा के प्रारंभ में कहते हैं, या और भी कहीं कह सकते हैं। कहते रहते हैं।
हरि हरि, मैं वैसे कानपुर में था कुछ दिन पहले और इस्कॉन कानपुर के मंदिर के कुछ ही दूरी पर बिठूर नाम का स्थान है। 10 किलोमीटर के अतंर पर ही यह स्थान है और यह बिठूर ध्रुव महाराज का जन्म स्थान है। वहां पर जाने का प्रस्ताव, कुछ विचार, इच्छा तो हो रही थी। जब मैं नहीं जा पाया था किंतु जैसे ही वृंदावन आया मैं अनायास ही मतलब बिना प्रयास ही ध्रुव महाराज की कथा का श्रवण और कीर्तन पठन अध्ययन करने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। तो यही श्रवन अध्ययन के उपरांत मैंने सोचा कि, ध्रुव महाराज की कृपा हुई मुझ पर। उनकी जन्मस्थली को जाने जाकर देखने की इच्छा तो हुई लेकिन नहीं जा पाया तो, वह जन्म स्थान बिठूर तो फिर हम उनके कर्म स्थान आए। ध्रुव महाराज यहां वृंदावन में मधुबन है। यहां वैसे थ्रुव महाराज बिठूर छोड़कर बालक ही है। हरि हरि और वैसे हम कानपुर से वैसे हम तो गाड़ी घोड़े से आ गए। ध्रुव महाराज तो चल कर आए थे और इस प्रकार उनका तपस्या का जीवन रास्ते में ही प्रारंभ हो चुका था।
हरि हरि, ध्रुव महाराज अपने तपस्या के लिए प्रसिद्ध है। और उनसे कुछ सीखना है तो उनकी तपस्या से कुछ प्रेरणा प्राप्त करो और उनकी तपस्या के, उनका संकल्प कहो, दृढ़ संकल्प उनका निश्चय कहो उत्साहात निश्चयात धैर्यात यह ध्रुव महाराज के जीवन से सीखने समझने की बातें हैं। ध्रुव महाराज हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं। कार्तिक मास में ब्रज में भी तपस्या करनी पड़ती ही है। तो हम परिक्रमा के भक्तों को पहले स्थान जहां लेकर जाते हैं, वह होता है जो ध्रुव टीला मधुबनमे ध्रुव टीला है वहा ले जाते हैं। और ध्रुव महाराज की कथा या तपस्या का स्मरण करते हैं, दिलाते हैं और ब्रजमंडल परिक्रमा के भक्तों को हम प्रेरित करते हैं या उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त होती है। ध्रुव महाराज के चरित्र से यह तपस्या करने की जो बातें हैं।
हरि हरि, ध्रुव महाराज भगवान को प्राप्त करना चाहते थे। भगवान जब प्राप्त होंगे तो उनसे ऐसा स्थान, ऐसी पदवी प्राप्त करना चाहते थे जो उनके घराने में और किसी को ऐसे पदवी प्राप्त नहीं थी। मुझे कहां मिल सकते हैं भगवान? सुनीती ने कहा था, उनकी मां ही बन गई शिक्षा गुरु वर्त्म प्रदर्शक गुरु। माता-पिता, वैसे भविष्य में गुरु प्राप्ति के पहले माता-पिता ही ही होते हैं गुरु। सुनीती ने कहा कि, बेटा तुम भगवान को मिलना चाहते हो प्राप्त करना चाहते हो तो ऋषिमुनि उनको वन में प्राप्त करते हैं। वन में उनका दर्शन करते हैं।
वे वन की ओर प्रस्थान किए और सुदैवसे मधुबन या वृंदावन में पहुंच गए। और भी कई सारे वन है लेकिन वृंदावन जैसा वन या स्थान कहीं पर भी नहीं है। ऐसे वन में आए। वैसे माता ने तो कुछ मार्गदर्शन किया था, यह भगवत प्राप्ति के लिए और व्यक्ति जब और गंभीर होता हैं, कृष्ण प्राप्ति करने के संबंध में, भगवान व्यवस्था करते हैं। ब्रह्मांडभम्रिते कौन भाग्यवान जीव। गुरु कृष्ण प्रसादे पाए भक्तिलता बीज।। भगवान मिला देते हैं गुरु से गुरुजनों के संपर्क में लाते हैं उस व्यक्ति जो कुछ पूरे गंभीर भगवत प्राप्ति के संबंध में या कुछ जिज्ञासा है। जैसे कृष्ण ने कहा है, चार प्रकार के लोग मेरे पास आते हैं। चतुर्विधा भजन्त माम ए जनः जो पुण्यात्मा होते हैं। चतुर्विधा, चार प्रकार के लोग होते हैं जो मेरी ओर आते हैं। कृष्ण भगवदगीता मे कहे हैं। चार प्रकार के लोग नहीं आते हैं मेरी ओर जो दुरात्मा होते हैं। चार प्रकार के लोग मेरी ओर आते हैं वह पुण्यात्मा होते हैं।
अर्थो अर्थार्थी जिज्ञासु ज्ञानी चार प्रकार के लोग। अभी तो पूरा नहीं समझाएंगे लेकिन आपको समझना तो चाहिए। अर्थो मतलब दुखी व्यक्ति भगवान के पास जाता है। अर्थाथी या धनार्थी या फिर धन संपदा प्राप्त करने वाला, चाहने वाला व्यक्ति भगवान के पास जाता है। कोई जिज्ञासु भगवान के पास पहुंचता है। तो कोई पहले ही कुछ ज्ञान है तो ज्ञानवान मां प्रपद्यंते, ज्ञानी व्यक्ति भगवान के पास पहुंच जाता है। इसमें से ध्रुव महाराज किस प्रकार में स्थित होते हैं, किस उद्देश्य अर्थाथी उनको कुछ पदवी, कुछ स्थान चाहिए था। उनकी तीव्र इच्छा थी लेकिन अभी इतना ही कहेंगे। भगवान की व्यवस्था से उनको नारद मुनि मिले। जमुना के तट पर ध्रुव घाट भी है। आपके जानकारी के लिए मतलब विश्राम घाट मथुरा के जमुना के तट पर है। वहां से कुछ ही दूरी पर ध्रुव घाट है। वहा ध्रुव और नारद मुनि का मिलन हुआ और उन्होंने परीक्षा भी ली है। इतनीसी उम्र में भगवान को प्राप्त करना चाहते हो! वन में जाकर। तो इनका निश्चय दृढ़ निश्चय है कि ऐसे ही कुछ बात कर रहे हैं ध्रुव महाराज पता कर रहे हैं नारदमुनि। तो नारदजी समझ गए कि यह तो बड़ा पक्का है। इसका निर्णय इसका निश्चय दृढ़ निश्चय है। घर लोटो अपने महल लोटो यहां क्या वन में क्यों आए हो, कुछ बातें तो ध्रुव महाराज परीक्षा पास हो गए और फिर उनको आदेश उपदेश किए हैं। ओम नमो भगवते वासुदेवाय। इसका तुम जप करो इसी के साथ उनको आदेश दिए हैं और ध्यान करो। वैसे सतयुग है तो सतयुग के अनुरूप कृतये ध्यायतो विष्णु त्रेतायाम यजतो मखे।
व्दापारे परिचर्याम कलोतद हरिकीर्तनात।। अब आप जानते हो या आपको जानना चाहिए। चार युगों में चार विधियां हैं। सतयुग की विधि कहे कि तुम ध्यान करो और केवल ध्यान करो ही नहीं कहां है। कैसे ध्यान करना है, ध्यान की सारी विधि गुरु नारद मुनि समझाएं।तत तथः गच्छभद्रमते यमुनायास ततम शुचि पुण्यं मधुबनम यत्र सानिध्यम नित्यदा हरेः यह नारद मुनि के वचन ही है। यह सब रिकॉर्ड करके रखा है भागवत में। यहां ध्रुव महाराज की कथा ध्रुव की कथा वैसे यहां मैत्रेय मुनिने विदुर जी को कथा सुना रहे हैं हरिद्वार में। शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित को सुनाएं और उसी कथा को फिर सुत गोस्वामी नैमिषारण्य में ऋषि-मुनियों को सुनाएं। उसी कथा को श्रील प्रभुपाद भी हमको सुनाया करते थे। और उसी कथा को फिर हम मैं आपको सुना रहा हूं और फिर इसे सुनी हुए कथा को आपको औरों को सुनाना चाहिए। तो इस प्रकार परंपरा में इस कथा का प्रचार और प्रसार होता है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु भी जब तोटा गोपीनाथ मंदिर में गदाधर पंडित थे पंचतत्व के सदस्य उनसे भागवत कथा सुनते थे। उन भागवत कथाओं में ध्रुव महाराज की कथा स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु सुना करते थे।
विशेष रुचि लेते थे ध्रुव महाराज की कथा सुनने में। और यह जब मैं कह रहा हूं तो भगवान की कथा सुनते हैं तो भगवान उनके भक्तों की कथा सुनते हैं। और उनका हे भी तो कौन। वे एक तो भगवान है और उनके भक्त हैं। तो बोधयन्तम परस्परम, भक्त सुनते हैं भगवान की कथा तो स्वयं भगवान अपने भक्तों की कथा सुनते हैं। सुनते ही रहते हैं। यहां श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु यह कथा विशेषता ध्रुव महाराज की कथा सुनकर बड़ा हर्षित होते हैं।
यहां ध्रुव घाट पर नारद मुनि ने ध्रुव महाराज को कहा, "हे पुत्र, हे शिष्य गच्छ भद्रं" जाओ जाओ तुम्हारा कल्याण हो। कहां जाओ यमुनायास तटम यमुना के तट पर ही लेकिन वहां से और कुछ दूर जाकर जमुना के तट पर जाओ। पुण्य मधुवनम या मधुबन में जाओ। पुण्य मधुबन में जाकर मैंने जो भी तुमको आदेश उपदेश दिए हैं वह साधना भक्ति तपस्या ध्यान तुम वहां करो। मधुबन में करो। ध्रुव महाराज ध्रुवा घाट से टीले जाते हैं। उस टीले का नाम पहले से कुछ होगा या नहीं होगा लेकिन, तब से जब से ध्रुव महाराज वहां गए और उन्होंने तपस्या की और उन्होंने 6 महीने में भगवान को अपने सामने खड़ा कर दिया। इसलिए उस स्थान का नाम ध्रुव के नाम से वह स्थान प्रसिद्ध है। ध्रुव टीला कहते हैं। जो ध्रुव टीला वहां स्थली ध्रुव महाराज के तपस्या का, चरित्र का, उनकी ध्यान धारणा का और वही से उनको भगवत प्राप्ति हुई, उसका स्मरण दिलाता है। ध्रुव महाराज की तपस्या यह सब हमारे कल्पना से परे हैं।
वैसे हर 3 दिन में पहले महीने में 3 दिन में एक बार त्रिरात्रान्ते त्रिरात्रान्ते ऐसे लिखा है। फिर कुछ बेर या ऐसे ही कुछ फल खाते थे। यह नहीं कि वह सेव या अमरूद या ऐसे कुछ फल नहीं खाते थे। साधा फल बेर ही खाते थे। और कब 3 दिन में एक बार। हम लोग तो दिन में दो बार हमारा चलता रहता है लेकिन ध्रुव महाराज 3 दिन में एक बार खाते थे। थोड़ा सा फलम और फिर दूसरे महीने में 6 दिनों में एक बार। पहले फल थे और आप वहां कुछ पत्ते ही खा लेते थे। और ऐसा भी जो पत्ते के गिरे हुए हैं सूखे पत्ते हैं उसी को खा लेते थे। अगले महीने तीसरे महीने में नो दिनों में एक बार मतलब 1 महीने में वह 3 बार ही भोजन करने वाले। क्या खाएंगे पहले फल खाते थे दूसरे महीने में उन्होंने सिर्फ पत्ते ही खाए और अब तीसरे महीने में थोड़ा जल पीने वाले हैं। पत्रं पुष्पं फलं तोयं तो यह मतलब दूध या थोड़ा जल पी रहे हैं। और अब चौथे महीने में 12 दिनों में एक बार क्या करते थे, हवा खाते थे। सांस लेते थे 12 दिनों में एक बार सांस ले लिया। अभी यहां फल भी नहीं, पत्ते भी नहीं, जल भी नहीं केवल हवा और फिर पांचवा महीना आ गया तो फिर उन्होंने सांस लेना भी छोड़ दिया। बस एक पैर पर ही खड़े हैं मतलब वहां से ना तो हिलेंगे ना डुलेंगे या शरीर के कोई मांग की पूर्ति नहीं होगी। नहीं सुनेंगे। कठोर तपस्या एक पैर पर ही खड़े रहेंगे। जब तपस्या कठोर होती है तपस्वी एक पैर पर ही खड़े होते हैं। ध्रुव महाराज एक पैर पर खड़े हैं। और इसी के साथ ओम नमो भगवते वासुदेवाय। ओम नमो भगवते वासुदेवाय।
ओम नमो भगवते वासुदेवाय। इसका उच्चारण, श्रवण, कीर्तन, स्मरण आप जानते हो इसकी कथा के क्रम में ध्रुव महाराज स्मरण के लिए प्रसिद्ध है। आप जानते हो नवविधा भक्ती के 1-1 भक्ति के 1-1 आचार्य हैं एक विशेष भक्त है। श्रवण के आचार्य है या भक्त है राजा परीक्षित श्रवणम के नाम हैं। श्रवणं कीर्तनम विष्णु स्मरणं की जब बात आती है तो, नंबर एक पर है ध्रुव महाराज। श्रवणम
कीर्तनम और विशेषता ध्रुव महाराज कर रहे थे। भगवान को वहां पहुंचना पड़ा और भी बातें हैं। सारी हवा बंद मामला हुआ और सांस लेना भी कठिन हुआ। जब ध्रुव महाराज ने सांस लेना रोक दिया तो सारे ब्रह्मांड में हवा का चहल-पहल बंद हुआ। इससे देवता भी परेशान हुए और मदद मदद भगवान से प्रार्थना करने लगे तो फिर भगवान, बहुत छोटा बालक है ना मधुबन में वह तपस्या कर रहा है। उसमें सांस लेना बंद कर लिया है। ठीक है, मैं ही जाता हूं और सांस लेना जो बंद किया है उसको बंद करता हूं। सांस लेने के लिए मैं निवेदन करता हूं। मैं जाता हूं। ऐसा देवताओं से कहकर भगवान स्वयं मधुबन आए हैं और ध्रुव महाराज को दर्शन दिए हैं मतलब आ गए।
हरि हरि, भगवान आकर सामने खड़े हुए लेकिन ध्रुव महाराज भगवान की और देख भी नहीं रहे। अरे तुम मुझे मिलना चाहते थे। तुम मुझे चाहते थे। मेरा दर्शन करना चाहते थे. मैं तो आ गया हूं। मेरी तरफ देखो। ध्रुव महाराज ध्यान अवस्था में ध्यानावस्थित तदगतेन मनसा पश्यन्ति यंयोगिनो यह नहीं की वे देख नहीं रहे थे लेकिन भगवान को कहां देख रहे थे, ध्यान अवस्था में अपने हृदय प्रांगण में जो परमात्मा है उन्ही का दर्शन कर रहे थे। भगवान ने क्या किया, अंदर का जो दर्शन है उसको बंद कर दिया. तो ध्रुव महाराज सोचने लगे क्या मैंने अपने भगवान को खो दिया, क्या हुआ भगवान अदृश्य हो गए क्या? ध्रुव महाराज ने जैसे ही आंखें खोल दी तो वही भगवान जो हृदय में थे, वही समक्ष प्रत्यक्ष उपस्थित थे।
हरि हरि, भगवान को देखते ही ध्रुव महाराज उनका स्तुतिगान प्रार्थना करने चाहते थे लेकिन ऐसा कुछ पहले का उनको ट्रेनिंग नहीं था। वह नहीं कर पाए थे। कुछ स्तुति गान तो करना चाह रहे थे। पुनः भगवान समझ गए कुछ प्रार्थना करना चाहता है। कुछ कहना चाहता है उसकी तीव्र इच्छा तो है, कुछ कहने, बोलने की, स्तुति करने की तो, भगवान ने अपने शंख भगवान उसके सिर पर रखा। भगवान चतुर्भुज है। अपने शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए चतुर्भुज मूर्ति में दर्शन दे रहे थे। अपने हाथ के एक हाथ में शंख था। उसीसे सिरपर स्पर्श करते है ध्रुव महाराज को। ध्रुव महाराज फटाफट या धड़ाधड़ स्तुति के वचन कहने लगे। कह पाए। वह सब स्तुति भागवत में विस्तार से दी हुई है। और यह सब कथा आपके जानकारी के लिए, यह चतुर्थ स्कंध है। हां यह आठवां अध्याय, नववा अध्याय दसवां अध्याय ऐसे कई सारे अध्याय में ध्रुव महाराज कथा चौथे स्कंध में आप पढ़ सकते हो। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु पढ़ते या सुनते थे ध्रुव महाराज कथा। और वैसे भी एक ध्रुव महाराज और प्रल्हाद महाराज कथा अधिकतर होती रहती है, इस संसार में या भारतवर्ष में।
हम भी जब छोटे थे तो, स्कूल में भी पढाते। आजकल सेकुलर स्टेट बन गया तो वह भी बंद कर दिया। यह ध्रुव महाराज कथा, यह धर्म है। यह धर्मनिरपेक्षता संविधान, यह सब असुरी संपदा का प्रभाव या प्रसार के कारण अब बच्चों को स्कूल कॉलेज में कॉलेज तो दूर बाकी स्कूल में भी बंद कर दी है। ध्रुव महाराज कथा बचपन में हम सुने थे और मैं अकेला ही थोड़े सुना हुं। ध्रुव महाराज और प्रह्लाद महाराज की कथा तो सभी को सुनने को मिलती ही है। आपने भी सुने होगी। हां कि नहीं? गुरु महाराज कांफ्रेंस में एक भक्त को संबोधित करते हुए पूछ रहे हैं। ध्रुव महाराज, प्रह्लाद महाराज कथा आपने भी सुनी होगी।
हरि हरि, आप कहां पर पढ सकते हो यह हमें बता रहा हूं। भागवत में चतुर्थ स्कंध
भगवान ने दर्शन भी दिया है और कुछ वरदान भी देना चाहते हैं। मांगो मांगो लेकिन यही तो होता है। शुरुआत में जो कुछ कुछ इच्छा के साथ व्यक्ति भगवान के पास जाता है और भगवत प्राप्ति करना चाहता है ताकि, भगवान मिलते ही मैं यह मांग लूंगा। यह चाहूंगा। तो ध्रुव महाराज से जब पूछा। तो तुम किसी और उद्देश्य के साथ भगवत प्राप्ति करना चाहते थे। किंतु अब जब भगवत प्राप्ति हुई। भगवान का दर्शन हुआ लेकिन भगवान के दर्शन प्राप्ति के लिए उन्हें जो साधना की तपस्या की मंत्रों का उच्चारण किया उससे क्या होता है? चेतोदर्पण मार्जनम चेतना का दर्पण का मार्जन होता है। और यह तो मुक्ति की कामना, मुक्ति की कामना, भुक्ति मुक्ति सिद्धि कामी सकले अशांत, अशांति फैली होती है। भुक्ति मुक्ति सिदध्दी की कामना के कारण ऐसी कामना की बात ना समाप्त हो जाती है। पापाची वासना न लागो मना त्याहुनि आंधळा मी बरा। तुकाराम महाराज के यहां वचन है मुझे यह पापकी वासना है। इस पाप की वासना को समूल नष्ट करो। तो वही होता है जब आचार्यों के गुरुजनों के आदेश उपदेश अनुसार हम साधना भक्ति करते हैं।
साधना से फिर और फिर यह नहीं कि हमें सिर्फ साधना भक्ति ही करनी है जीवन भर में। साधना भक्ति भी करनी है किंतु उससे हम भाव, भक्तिभाव के स्तर पर भी पहुंचना चाहते हैं या वहां पर हम प्रेमाभक्ति के स्तर पर भी पहुंचना चाहते हैं। और हम पहुंचते हैं साधना भक्ति विधिपूर्वक हमने निभाई है, कि है तो भाव और प्रेम तक पहुंचते हैं। तो ध्रुव महाराज ने भाव और प्रेम उदित हुआ था इसलिए प्रेमान्जनाक्षुरीत भक्तिविलोचनेन। संत सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।। भगवान का दर्शन वैसे उन्ही को होता है जिनकी आंखें प्रेम आंसुओं से भर जाती है। प्रेमान्जनाक्षुरीत भक्तिविलोचनेन। फिर संत सदैव हृदयेषु विलोकयन्ति।। फिर वे देखते हैं। भगवान कह रहे थे, मांगो मांगो कुछ वरदान मांगो। तो फिर ध्रुव महाराज का उत्तर था,
कामेस्थतास्तोअस्मि वरंनयाचे। क्या कहा उन्होंने, कृतार्थ हो गया मैं। आपके दर्शन मात्र से मैं कृतार्थ हो गया। मैं संतुष्ट हो गया। मैं पूरा प्रसन्न हूं आपके साथ के लिए मिलन से यह दर्शन से। वरंनयाचे मुझे कोई वर नहीं चाहिए। आप जो मिल गए मुझे और कुछ नहीं चाहिए। यास्मीन तुष्टि जगत तुष्ट, भगवान मिल गए तो हो गया पूरी संतुष्टि।
हरि हरि, गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
ध्रुव महाराज के चरणकमलों का हमें भी अपने जीवन में अनुसरण करना है और हमको भी कृष्ण का भक्त बनना है। हम को भी दर्शन करने हैं भगवान के। और अंततोगत्वा भगवान, भगवत धाम भी अपना है। हो सकता है अगले सत्र में कुछ ध्रुव महाराज के चरित्र संबंधित कुछ चर्चा कर सकेंगे। अभी यहीं विराम देते हैं अगर आप के कुछ प्रश्न हैं किंतु अभी समय नहीं है। प्रश्न या कोई कमेंट है तो आप लिख सकते हैं। कोई कमेंट या प्रश्न है तो आप लिख लो, पद्ममाली प्रभुजी पढ सकते हैं आपके प्रश्न है या कमेंट कोई सीधा सरल प्रश्न है तो आप लिखो।
हरिबोल।