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जप चर्चा परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज 12 अप्रैल 2022 आज मैं इस्कॉन उदयपुर में हूँ और उदयपुर के भक्तों के साथ में हूँ । मैं सोच रहा था कि अच्छा होता कि मैं आज पंढरपुर में भी होता क्योंकि आज जो एकादशी चैत्र एकादशी है , पंढरपुर में बहुत बड़ा उत्सव प्रतिवर्ष आज के दिन चैत्र एकादशी के दिन होता है, हजारों लाखों भक्त पैदल चलते हुए जिसे दिंडी कहते है और कीर्तन करते हुए वहां पहुंच जाते हैं, पहुंच चुके हैं। पंढरपुर धाम की जय | या फिर मैं यह भी सोच रहा था कि अच्छा होता कि मैं आज मायापुर में होता, जहाँ श्री जय पताका स्वामी महाराज का व्यास पूजन महोत्स्व संपन्न हो रहा है, मैं ऐसा सोच रहा था। मेरा जन्म भी एकादशी के दिन हुआ था आषाढ़ महीने की एकादशी थी, जय पताका स्वामी महाराज का जन्म चेत्र एकादशी। लेकिन वैसे हम दोनों का जन्म एक साल ही हुआ था, हम दोनों ही 1949 में जन्मे थे, वे मुझसे थोड़ा सीनियर वरिष्ठ पहले जन्मे, चेत्र में जन्मे थे एकादशी के दिन और फिर कुछ महीनों के उपरांत आषाढी एकादशी को मेरा जन्म हुआ था | जय पताका स्वामी महाराज की जय | अविर्भाव व्यास पूजा महोत्सव की जय | आज मैं आज उदयपुर में हूँ इस बात से भी मैं प्रसन्न हूँ और मेरी प्रसन्नता का एक और विशेष कारण भी है यहां के भक्तों से मिलन भी हुआ और महा सत्संग भी हुआ और हम कुछ कथा कीर्तन नर्तन भी यहां के भक्तों के साथ कर पाए लेकिन मैं कहूंगा कि मैं इस साल उदयपुर के भक्तों का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे यहां आमंत्रित किया और मुझे श्रीनाथजी का दर्शन कराया | जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा की जय | गौर निताई की जय | उनके दर्शन से तो पवित्र और लाभान्वित हो ही गए किन्तु श्रीनाथजी का दर्शन कुछ विशेष रहा, चित्त आकर्षक रहा, भगवान को कहते हैं चितचोर। चोरों में अग्रगण्य है, कई प्रकार की चोरी करते हैं, माखन चोर है, यह चोर वो चोर, गोपियों के वस्त्र चोरी किए हैं लेकिन कल मैं अनुभव कर रहा था कि यह चितचोर ही है। श्री नाथ जी की जय | हरि नाथ मतलब राधा नाथ श्रीनाथ मतलब राधा नाथ और क्या कहें ऐसी ऐसी यादें आ रही थी जब हम दर्शन कर रहे थे और दर्शन करते समय ही नहीं अब भी तब भी आज भी और अब तक तो यादें आ ही रही है। श्रीनाथजी विशेष विग्रह है और हम गौड़ीय वैष्णव के लिए भी विशेष है सभी के लिए। क्योंकि हमारे गौड़ीय वैष्णव परंपरा के प्रथम आचार्य माधवेंद्र पुरी जी का श्रीनाथजी के साथ घनिष्ठ संबंध रहा, उनके स्वप्न में आए, यह विग्रह उनके स्वप्न में आए, वृन्दावन की बात है और कहा मुझे वहां से निकालो, उन्हें वहां जमीन में गड्ढा में छीपाए थे श्रीनाथ जी को उनकी रक्षा हेतु। मुसलमानों का आक्रमण हुआ था और तंग कर रहे थे और जब उन्होंने लगभग सात आठ सौ वर्ष तक कारोबार चला रहे थे, कई प्रकार के विघ्न डाल रहे थे, उत्पात मचा रहे थे, वृंदावन में भी वे काफी सक्रिय रहें, जिसके कारण विग्रहो को या तो स्थानांतरित किया जा रहा था या वहीं पर किसी कुंड में छिपाया जा रहा था | तो और कहना तो है और कह तो रहा हूँ कुछ ऐसी बातों को कहने का विचार आया है ही और यह इतिहास जो मैं बता रहा हूँ, भगवान माधवेंद्र पुरी के सपनों में आए थे मुझे वहां से निकालो और फिर वैसे ही माधवेंद्र पूरी श्रीनाथजी गिरिराज क्षेत्र में थे तो गिरिराज धरण की जय गिरिराज क्षेत्र में ही माधवेंद्र पुरी ने श्रीनाथ जी की स्थापना की और पूजा अर्चना प्रारंभ हुई और अन्नकूट महोत्सव मनाया करते थे और माधवेन्द्र पुरी ने श्रीनाथजी के लिए जो अन्नकूट का आयोजन किया उसकी तुलना जैसा प्रश्न नहीं | कृष्ण ने कहा नंद बाबा को गोवर्धन की पूजा करो इंद्र की पूजा छोड़ दो तो उस समय नंद महाराज और सारे ब्रज वासियों ने जो अन्नकूट बनाया था, कूट मतलब पर्वत, अन्नकूट मतलब अन्न का पर्वत। जैसे चित्रकूट कूट मतलब पर्वत | तो जैसे कृष्ण बलराम की उपस्थिति में गोवर्धन पूजा मनाई गई थी पहली बार उस समय जैसे अन्नकूट महोत्सव मनाया गया था वैसे ही माधवेंद्र पुरी ने श्रीनाथजी के लिए बनाया। इसमे कई सारी घटनाएं हैं श्री चैतन्य महाप्रभु वृन्दावन आए थे, गोवर्धन जी की परिक्रमा कर रहे थे, उस समय श्रीनाथजी पर्वत के शिखर पर स्थापित थे तो चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि मुझे गोवर्धन पर नहीं चढ़ना चाहिए लेकिन मैं दर्शन तो करना चाहता हूँ फिर वहां अफवाहे फैलाई श्री चैतन्य महाप्रभु ने, मुसलमान आने वाले हैं यवन आ रहे हैं यहां से भागो दौड़ो तो वैसे लोग कर रहे थे तो उस समय भगवान के विग्रह को जो गोवर्धन के शिखर पर विराजित हुआ करते थे वहां से गाथुली नामक ग्राम मे ले गए और फिर महाप्रभु वहां जाकर श्रीनाथजी का दर्शन किया, आप समझ सकते हो गोवर्धन चढ़ नहीं सकते थे इसलिए उन्होंने अफवाह फैलाई, चैतन्य महाप्रभु ने किसी को बताया नहीं। सब कारणों के कारण है। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय | जब सन्यास लिए थे श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु, चैतन्य महाप्रभु अब शांतिपुर से जगन्नाथपुरी जा रहे थे सन्यास दीक्षा लेने के बाद, जब वे खीर चोर गोपीनाथ मंदिर पहुंचे उड़ीसा में बालेसर के पास है। तो वहां पर श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने खीर चोर गोपीनाथ की कथा तो सुनाई ही, श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वहां पर माधवेंद्र पुरी की कथा सुनाएं, माधवेंद्र पुरी का जीवन चरित्र सुनाएं, माधवेंद्र पुरी के गुण गाए स्वयं श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने । ऐसे थे कौन? ऐसे थे माधवेंद्र पुरी। श्रीनाथजी ने ही वैसे माधवेंद्र पुरी जी को भेजा था जाओ जाओ जगन्नाथपुरी जाओ वहां से चंदन लेकर आओ इतने समय से जब मैं जमीन में था गड्ढे में था तो अब भी मैं कुछ गर्मी महसूस कर रहा हूँ तो चंदन लेकर आओ घीसो और लेपन करो, ऐसा कहा जब श्रीनाथजी माधवेंद्र पुरी के सपने में आए, पहली बार स्वपन मैं आये तो कहा मुझे गड्ढे से निकालो बाहर करो, जब पुनः सपने में आए तो कहा मेरे लिए चंदन लेकर आओ, तो चंदन लेकर जगन्नाथपुरी से वे आ ही गए, खीर चोर गोपीनाथ जी भी माधवेंद्र पुरी के सपनों में आए और कहे की अब खीर चोर गोपीनाथ की सेवा करो चंदन के, साथ मुझ में और खीर चोर गोपीनाथ में कोई अंतर नहीं है उनकी सेवा ही मेरी सेवा है | इस प्रकार माधवेंद्र पुरी जी का और श्रीनाथजी का घनिष्ठ संबंध रहा। वैसे ही जब श्रीनाथजी की स्थापना करने का इतिहास भी काफी प्राचीन और पुराना है, द्वारकाधीश श्री कृष्ण के पड़पोत्र बज्रनाभ है। बज्रनाभ ने कई सारे देव की स्थापना की - गोविंद देव या हरिदेव, बलदेव और उसी के साथ उन्होंने यह जो श्रीनाथजी है उनकी भी स्थापना की। किसने स्थापना की?- वज्रनाभ। रहते तो द्वारका में, लेकिन कृष्ण के गोलोक धाम जाने के उपरांत वे मथुरा गए थे वृंदावन गए थे वहां के राजा भी थे तो वहां पर उन्होंने कई सारे मंदिरों की स्थापना की तो उसमें से यह विग्रह थे- श्रीनाथजी। उत्पाद तो चल ही रहे थे मुसलमानों के, तो कई सारे विग्रह राजस्थान में स्थानांतरित किए और उसमें श्रीनाथजी भी हैं। अच्छा हुआ एक दृस्टि से यहां के निवासियों के लिए श्रीनाथजी यहां उदयपुर यहां राजस्थान में आए। किसी का Loss तो किसी का gain होता है ब्रज के निवासी श्री नाथ जी को खोये तो आप सब श्रीनाथजी को पाएं। और यहां पर पहुंचते-पहुंचते भी उनको डेढ़ दो साल लगे, वृंदावन से नाथद्वारा की यात्रा कर ही रहे थे छिप छिप पर उनको लाया जा रहा था यहां छुपा लिया गया वहां छुपा लिया गया और वहां से मैंने उस रथ को भी देखा जिस रथ पर भगवान को बिठाकर यात्रा हुए उनका प्रवेश नाथद्वारा की ओर हुई। तो अब तो बल्लभाचार्य संप्रदाय भगवान की सेवा कर रहे हैं लेकिन एक समय यह गौड़ीय वैष्णव के श्री माधवेंद्र पुरी के सेवित विग्रह रहे हैं। भगवान आए तो है नाथद्वारा लेकिन मैंने सुना कि नाथद्वारा में यहां का जल नहीं पीते मुझे कहां का जल चाहिए मैं जमुना का जल पिऊंगा तो आज तक जमुना का जल ही पीते हैं जलपान जब करते हैं | और माधवेंद्र पुरी जो अन्नकूट का भोग लगाते थे वह परंपरा यहां नाथद्वारा में भी होती रहती हैं अन्नकूट महोत्सव, हर रोज इतना सारा अन्न उनको खिलाया जाता है संभावना है कि जो भी यात्री आते हैं वह प्रसाद या अन्नकूट ही ग्रहण करते हैं, मैं तो यहाँ था लेकिन मेरे लिए भी थाली आयी नाथद्वारा से। और क्या कहें श्रीनाथजी हम सभी का कैसे ख्याल रखते हैं, ये तो दर्शन दे रहे हैं ही। दर्शन दे रहे हैं यह कुछ कम है क्या और क्या चाहिए। भगवान ने दर्शन दिया, दुनिया को दर्शन देते हैं, हम कहते रहते हैं मैं दर्शन करने के लिए गया तो सही हां मैं दर्शन करने गया था, गए तो थे, दर्शन तो हम तब लेंगे यदि दर्शन देने वाले दर्शन देंगे तो हम दर्शन ले सकते हैं। और श्रीनाथजी तो दर्शन देते हैं। भगवान दर्शन देते हैं श्रीनाथजी भी। श्री नाथ जी की जय | हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे ये सारी आचार्यों की कृपा है कि पहले माधवेंद्र पूरी ने दर्शन किया तो उन्होंने दर्शन दिया और उनको। वैसे भगवान की 16108 रानियां है, भगवान जब अंतर्ध्यान हुए थे द्वारका में तो सबको लेकर अर्जुन जाते हैं, अर्जुन को कहा था - इनको संभालो यह तुम्हारी जिम्मेदारी है, तो वे लेकर गए और वे वृंदावन में पहुंच गई तब तक भगवान अंतर्ध्यान हो चुके थे, सारी लीला वृंदावन में संपन्न हो चुकी थी, भगवान की अब प्रकट लीला का पर्दा लगा हुआ था, पर्दे के पीछे तो लीलाएं संपन्न हो रही थी वृंदावन में भी। लेकिन प्रकट लीला सम्पन्न नहीं हो रही थी तो यह सब जो पहुंची हुई रानियां पूछ रही थी कहां गए कृष्णा कहां है कन्हैया कहां है और लीलाएं कहां है कहां है कहां है युगायितं निमेषेण चक्षुषा प्रावृषायितम्। शून्यायितं जगत् सर्वं गोविन्द विरहेण मे॥७॥ यह सब रानियां ऐसा कर रही थी और बड़ी उदास थी रानियां वृंदावन में होते हुए भी। तभी शांडिल्य ऋषि ने कहा था कि यहा तो राजा परीक्षित आए थे राजा परीक्षित हस्तिनापुर से मथुरा आए थे ब्रजनाभ को मिलने के लिए। सब ठीक-ठाक है? प्रजा प्रसन्न है? और उस समय ब्रजनाभ ने कहा था उनकी माताएं थी, मेरी माता है, यह जो 16108 रानियां तो प्रसन्न नहीं है, उनको भगवान के दर्शन नहीं हो रहे हैं, तो शांडिल्य ऋषि ने कहा था कि आप संकीर्तन का आयोजन करो गोवर्धन के तट पर, तो वैसे ही हुआ शांडिल्य ऋषि, मुनि गर्ग आचार्य थे यह 5000 वर्ष पूर्व का इतिहास है यह वह घटनाक्रम है जब हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं तो या हमारे ब्रजमंडल दर्शन पुस्तक मे यह सब चर्चा पढ़ सकते हो तो जब गोवर्धन में सारी रानियां वहां पहुंच गई और उन्होंने संकीर्तन किया तो हुआ क्या? उद्धव प्रकट हुए, जहां उत्सव वहां उद्धव ऐसे ही समझ है। और उत्सव देते हैं हमको उत्साह। अब सारी रानियों को उत्साहित करना है, सभी रानियां वहां पहुंची थी तब उद्धव जी प्रकट हुए और उन्होंने भगवान की कथाएं सुनाई, 1 महीने तक वह कथा चल रही थी और वैसे यह कथा भागवत कथा हो रही थी और राजा परीक्षित वहां थे हस्तिनापुर से वे आए थे मथुरा | और ब्रजनाभ तथा राजा परीक्षित दोनों मिलकर उन्होंने यह संकीर्तन का आयोजन किया था गोवर्धन के तट पर गोवर्धन की तलहटी में | तो उद्धव प्रकट हुए और कथा प्रारंभ होने जा रही थी तो उद्धव ने कहा राजा परीक्षित law and order maintain करो, जिससे हमारी कथा होती रहे, मुझे भी तो कथा सुननी है तो उद्धव कहे थे तुम्हारे लिए एक विशेष भागवत कथा का आयोजन होने जा रहा है, होने वाला है, तो वैसे भगवान अंतर्ध्यान हुए yadä mukundo bhagavän ksmäm tyaktvä sva-padam gatah/ tad dinät kalir äyätah sarva-sädhana-bädhakah //1.65// Srimad Bhagavata Mahatmya जिस दिन भगवान अंतरध्यान हुए 125 वर्ष के उपरांत। द्वारका से अंतरध्यान हुए। उसी दिन से कली प्रारम्भ हुआ day no.1। तो जब 30 साल बीत गए तो ये कली 30 साल का था तब श्री शुकदेव गोस्वामी राजा परीक्षित को कथा सुनाए। उद्धव कथा पहले सुनाए। उद्धव बैठक भी है, जैसे श्री नाथ जी की बैठक है। आचार्य बल्लभाचार्य जी भागवत कथा किया करते थे। और श्री नाथ द्वारा में उनकी बैठक है। वैसे ही उद्धव बैठक है वहाँ कुसुम सरोवर के तट पर। तो जब कथा सुनाने लगे उद्धव और सभी सुन रहे थे, पता नही आप सुण रहे है या नही, सुनने सुनने में भी अंतर है। जब ध्यान पूर्वक श्रद्धा पूर्वक जब ये रानियाँ कथा सुन रही थी उसका परिणाम ये हुआ की उनको वहाँ कृष्ण दिखने लगे। पहले जब आई थी तो कहाँ है कृष्ण, कहाँ है कृष्ण, दिख नहीं रहे कृष्ण, कहाँ है उनकी लीलाए। उद्धव जब लीला कथा का वर्णन सुनाने लगे, उसी के साथ भगवान का दर्शन और उनकी लीलाए प्रकट हुई और ये उद्देश्य भी होता है। ऐसे भी जब चार कुमार भागवत कथा सुना रहे थे, भक्ति देवी ज्ञान वैराग्य को नारद मुनि वहां थे नारद मुनि ने आयोजन किया था। जब कई लोग एकत्र हुए आनंद वन गंगा के तट पर हरिद्वार की बात है जब चार कुमार ने जब भागवत कथा सुनाई, उस कथा में स्वयं भगवान आ गए और कथा की पूर्णाहुति के समय स्वयं भगवान वहां थे और जम के वहां कीर्तन और नृत्य हो रहा था भगवान की उपस्थिति में। और उस कथा में जो श्रोता थे उन्होंने भी भगवान की उपस्थिति को नोट किया या देख लिया उस समय जो भी श्रोता थे उन्होंने निवेदन किया प्रभु जैसे आप आज की कथा में पधारे, वैसे ही जब कभी भविष्य में जहां-तहां भी आप की कथा होगी तो कृपया आप की ऐसी ही उपस्थिति और आपका ऐसा ही दर्शन संभव है क्या? तो ज्यादा सोचे नहीं कृष्णा कहे तथास्तु। nāhaṁ tiṣṭhāmi vaikuṇṭhe yogināṁ hṛdayeṣu vā tatra tiṣṭhāmi nārada yatra gāyanti mad-bhaktāḥ [Padma Purāṇa] तत्र वहां, बैकुंठ में भी नहीं मिल सकता, मैं योगियों के ह्रदय में भी शायद नहीं मिल सकता लेकिन वहां मैं जरूर रहता हूँ जहां मेरी कथा भी और कीर्तन भी जहां होता है। परित्राणाय साधुनां विनाशाय च दुष्कृताम् । धर्मसंस्थानार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥ ८ ॥ BG. 4.8 हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे जहाँ नित्यम भागवत सेवया होता है। जहाँ क्या होता है? नित्यम भगवतम सेवया। नष्टप्रायेष्वभद्रेषु नित्यं भागवतसेवया । भगवत्युत्तमश्लोके भक्तिर्भवति नैष्ठिकी ॥ १८ ॥ ŚB 1.2.18 भगवतम का श्रवण और कीर्तनीय सदा हरी होता है वहां मैं रहता हूँ । तृणादपि सुनीचेन तरोरपि सहिष्णुना। अमानिना मानदेन कीर्तनीयः सदा हरिः ॥३॥ तभी वहां बैठकर कुसुम सरोवर जहां उद्धव जी कथा सुना रहे थे तो ये होने लगा कि एक-एक करके माताएं उठने लगी और क्या करने लगी? भगवान की लीला में उनका प्रवेश होने लगा, उनको समझ में आने लगा उनको साक्षात अनुभव होने लगा, मैं कृष्ण लीला में फिट होने लगी हूँ उनकी नित्य लीला में। इनका संबंध भगवान के साथ नित्य है, एक एक या दस दस या सौ सौ या हजार हजार रानियां उठ उठ कर उन उन लीलाओं में एकदम कभी लीलाएं देखने लगी थी श्रवण से, उनको दर्शन हुआ ऐसा ही होता है श्रवण से होता है दर्शन। श्रवण के बिना दर्शन नहीं होता। दर्शन श्रवण से होता है। वहां जब श्रवण हो रहा था उद्धव सुना रहे थे तो उन सब को दर्शन होने लगा फिर ऐसा एक समय आ गया वहाँ केवल ब्रजनाभ बच गए और सारी रानियों ने प्रवेश किया भगवान की नित्य लीलाओं में। और यह आईडिया है कि जब जब कथा होती है अभी हो रही है ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । ऐसे उच्च विचार आए थे कि सभी सुखी हो, पर दुखी दुखम | वैष्णव औरों को दुखी देखकर दुखी होते हैं | कुछ लोग तो औरों को सुखी देखकर दुखी होते हैं पर सूखे दुखी | ऐसे कीर्तन करते जाएंगे जप करते जाएंगे और भागवत की कथा का श्रवण करते जाएंगे तो हमारा भी लक्ष्य वही है जैसे उन रानियों ने अपने-अपने स्थान ग्रहण कर लिए, हम भी कृष्ण के नित्य दास हैं जीवेर स्वरूप हय कृष्णेर नित्य दास (चैतन्य चरितामृत)| [Cc. Madhya 20.108] कृष्ण के नित्य दास है नित्य दास हैं। माया के दास तो नित्य नहीं है, समझ लो माया के दास हम सदा के लिए नहीं है लेकिन कृष्ण के दास हम सदा के लिए हैं निरोधोऽस्यानुशयनमात्मन: सह शक्तिभि: । मुक्तिर्हित्वान्यथारूपं स्वरूपेण व्यवस्थिति: ॥ ६ ॥ ŚB 2.10.6 भागवतम में शुकदेव गोस्वामी कह रहे हैं उनको करना क्या है अन्यथा क्या-क्या करना है अन्यथा रूपम हम लोग जो कई सारे रूप धारण करते रहते हैं, 84 लाख प्रकार की योनि है, उतने प्रकार के रूप है और अब यह मनुष्य रूप धारण किए हैं प्रभु इसको त्यागना है और ऐसी स्थिति में या मनस्थिति या मानसिकता या भाव को प्राप्त करना है, यह बोलिए कि कृष्णा भावना भावित इतना बनना है कि हमको पुनः इस कारागार के यह ब्रह्मा का कारागार है यहां की कोई वर्दी पहनने की आवश्यकता नहीं है, वैसे यह जो शरीर है वह कारागार की वर्दी है समझ रहे हैं। कारागार में किसी को एडमिट कर दें पहले क्या करते हैं, उसको कारागार की वर्दी पहनाते हैं, नंबर भी देते हैं 420 है यह। यह शरीर कारागार की वर्दी है फिर भी हम इसके साथ सेल्फी खींचते हैं, कोई पसंद करेगा क्या? आपको कि सच में आप कारागार में हो और आप वहां छुपा लेते हैं अपना मुंह ढक लेते हैं अगर कोई फोटो खींचने का प्रयास करता है | यह बात हम समझते नहीं हैं इसीलिए इसकी सेल्फी खींच कर हम खुश होते हैं | हमें अपने स्वरूप में ठीक होना है और हमारा भी भगवान के साथ नित्य संबंध ही नहीं बल्कि लेनदेन हमारा व्यवहार या उनकी किसी लीला में हमारा भी भूमिका है और हमारी वह भूमिका कोई और नहीं निभा सकता इस प्रकार वहां रिक्त स्थान बन जाता है when we go back we will fill the blank and lila continues. कृष्ण भी प्रतीक्षा में है और पता नहीं हम कितना चाहते होंगे उनको प्राप्त करने के लिए, लेकिन हम से अधिक कृष्ण चाहते है उनको हम प्राप्त हो, ऐसा स्नेह संबंध है भगवान का सभी जीवो के साथ। और इसीलिए भगवान आते भी हैं समय-समय पर | Golokam ca parityajya lokanam trana-karanat - Markandeya Purana यह चैतन्य महाप्रभु के संबंध में कहा है संसार में लोगो को राहत पहुंचाने के लिए स्वयं भगवान आते हैं, आते हैं तो भगवान यहां रह ही जाते हैं यह विग्रह है, भगवान के विग्रह है | श्री नाथ जी की जय उनकी लीला कथा चल रही है| यह विग्रह स्वयं भगवान है । आज भी हमारे साथ भगवान है, वे कई रूपों में है, एक रूप उनका विग्रह के रूप में है और भी रूप हैं कलि-काले नाम-रूपे कृष्ण-अवतार नाम होते हया सर्व-जगत-निस्तारं CC Ādi 17.22 यह तो बड़ा ही दयालु अवतार है यह नाम प्रभु हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे भागवत के रूप में भगवान उपस्थित हैं। आप जा रहे हो?- उद्धव ने कहा। उनको पता चला कि भगवान अपने धाम लौटने की तैयारी कर रहे थे, उन्होंने कहा me too मैं भी जाऊंगा। No no you stay here. नहीं नहीं नहीं मैं यहां नहीं रह सकता | फिर भगवान ने कहा ठीक है ठीक है बाबा मैं भी रहता हूँ | किस रूप में? भागवत के रूप में मैं रहता हूँ । फिर उद्धव कहे ठीक है ठीक है मैं भी रहता हूँ भागवत भी भगवान है स्वयं भगवान। कृष्णे स्वधामोपगते धर्मज्ञानादिभि: सह । कलौ नष्टदशामेष पुराणार्कोऽधुनोदित: ॥ ४३ ॥ ŚB 1.3.43 कलियुग है जब लोगों की दृष्टि नष्ट होती हैं, पुराण मतलब भागवत महापुराण, अर्ध मतलब सूर्य जब सूर्य उदित होता है और उनके उदय के साथ सर्वत्र प्रकाश छा जाता है, फैलता है, उसी प्रकार और सभी दिखने लगता है जब सूर्योदय होता है वैसे ही जब भागवत से प्रकाश प्राप्त होता है तब जीवो को भी दिखने लगता है | दृष्टि तो नष्ट हो चुकी है तो भागवत के श्रवण से उन्हें दिखने लगता है जैसे भगवान की रानीयों को दिखा तो कई सारे रूपों में भगवान आज भी है | प्रसाद के रूप में भगवान आज भी हैं। और यह सारे रूप उपलब्ध कराए जा रहे हैं इस्कॉन में। कृष्ण भावनामृत संघ में श्रील प्रभुपाद की जय और प्रभुपाद का यह हरे कृष्णा आंदोलन कृष्ण को प्रस्तुत कर रहा है | Here is Krishna. राधेरासबिहारी मंदिर, जुहू मुंबई मे प्रभुपाद व्यास आसन पर बैठ कर कहा here is krishna. विग्रह के रूप मे, कथा के रूप मे, हरिनाम के रूप मे, धाम के रूप मे, मायापुर वृन्दावन उत्सव शुरू किये प्रभुपाद ने, धाम की यात्रा के रूप मे, प्रसाद के रूप मे, प्रसाद भगवान है, प्रसाद अन्न परब्रह्म है, भगवान के भक्त के रूप मे | ārādhanānāṁ sarveṣāṁ viṣṇor ārādhanaṁ param tasmāt parataraṁ devi tadīyānāṁ samarcanam [Padma Purana, Laghu-bhāgavatāmṛta 2.4] CC Madhya 11.31 शिव जी पार्वती से कहा हे देवी आराधना करनी है तो किसकी करो | विष्णु की आराधना करो | तदीय जो भगवान के है, तुलसी महारानी की जय, गौमाता की जय, यमुना मैया की जय, आचार्य की जय, इन सब तदीय की आराधना मेरी आराधना से भी श्रेष्ठ है ऐसा भगवान ने कहा | यदि हम कहे भगवान हम आपका भक्त हूँ तो भगवान उतना प्रसन्न नही होते, स्वीकार नही करते हम कहते है कि भगवान हम आपके भक्त के भी भक्त है, तो भगवान जल्दी स्वीकार करते है | ईश्वरे तदधीनेषु बालिशेषु द्विषत्सु च । प्रेममैत्रीकृपोपेक्षा य: करोति स मध्यम: ॥ ४६ ॥ ŚB 11.2.46 हमें भगवान से प्रेम करना है, भक्तो से मैत्री पूर्ण व्यवहार आदान प्रदान करना है, श्रद्धालु पर दया करनी है और जो आसुरी प्रवित्ती के लोगो से दुरी बनाके रखनी है | चार प्रकार के लोगो से चार प्रकार का व्यवहार करना है, हम जैसे साधको के लिए बताया गया है | विष्णु य विष्णु के भक्तो के प्रति अपराध करने वालो की उपेक्षा करनी है|

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