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जप चर्चा
7 अप्रेल, 2022
श्री राम कथा की शृंखला को आगे बढ़ाते हुए आगे चलते है, पिछले कई दिनों से यह रामकथा सत्र चल रहा है। श्री राम जन्मे अयोध्या में तो बालकाण्ड, फिर अयोध्या कांड फिर वहां से ऐसे श्री राम प्रस्थान कर चुके हैं वे दक्षिण की ओर आ रहे हैं। प्रयाग आये और फिर दक्षिण दिशा की और वे आगे बढ़े चित्रकूट दक्षिण दिशा की और आगे बढ़े चित्रकूट से राम गिरी पर्वत या रामटेक नागपुर के पास वह भी दक्षिण दिशा में वहां से फिर साउथ वेस्ट जाते हैं गोदावरी पंचवटी की और वहां से भी आगे दक्षिण की और किष्किंधा क्षेत्र आपकी जानकारी के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक के बॉर्डर पर है। किष्किंधा क्षेत्र का भी नाम है और किष्किंधा कांड भी है। यहां की लीला आप कल सुने और अब कह ही देता हूं वहां से आगे बढ़ने वाले हैं और दक्षिण में जाएंगे श्रीलंका तक और फिर लौटते समय पुष्पक विमान से आएँगे।
जाते हुए पदयात्रा करते हुए, वनवासी के जैसे चलते हुए गए लंका तक और वहां से दीपावली के दिन पुष्पक विमान से अयोध्या लौटेंगे। किष्किंधा क्षेत्र में जब श्री राम थे तो चातुर्मास का समय था और बाली का वध हुआ और वध करने वाले श्री राम की जय। सुग्रीव का तो काम बन गया उसके जीवन में जो बिगड़ी हुई बातें थी राम ने उनको सब ठीक-ठाक कर दिया लेकिन अब स्वयं राम के जीवन में जो बिगाड़ आया था उसमें अब सहायता करनी थी। राम ने मदद की सुप्रीम की अब सुग्रीव की बारी थी राम की मदद करने के लिए ताकि सीता को खोजा जाए, सीता को पुनः प्राप्त किया जाए। सुग्रीव ने 10 दिशाओं में सीता की खोज के लिए कई सारे दल या टीम भेजी। उसमें से एक टीम जिस टीम में स्वयं हनुमान जामवंत अंगद इत्यादि इत्यादि मंडली थी। उन्होंने बहुत समय के लिए खोज करते रहे, करते रहे लेकिन सीता का कुछ पता नहीं लगा तब खोजते खोजते कन्याकुमारी कहो या रामेश्वर कहो उस क्षेत्र में पहुंचे थे। सीता पता नहीं चल रहा था तो वे बड़े उदास थे निराश है और वह सोच रहे थे कि अब हम वापस जाकर यह नहीं बता सकते कि हमें सीता का पता नहीं लगा सके तो सुग्रीव हमारी जान ले लेंगे।
उन्होंने सोचा कि हम उपवास करते हैं या भूख हड़ताल करते हैं और यही मर जाते हैं। सीता तो मिल ही नहीं रही हैं। उस समय वे आपस में चर्चा भी कर रहे थे तो चर्चा यह भी हो रही थी कि कैकई के कारण दशरथ की जान गई, कैकई के कारण जटायु की जान गई, कैकई के कारण ही बालि का वधू हुआ और अब शायद हमारी बारी है। हम भी मरेंगे उस कैकई के कारण। इस प्रकार ये चर्चा हो रही थी। इसको सुनने वाले थे संपाती जो जटायु के भाई थे, उन्होंने क्या कहा? आप जटायु की बात कर रहे हैं? और सुनाइए और सुनाइए तो उनको और बातें सुनाई भ्राता की, उनके छोटे भाई थे जटायु। संपाती प्रसन्न हुए। उनको पता था या उनके पास दूर दृष्टि थी या दूर के दृश्य देखने की शक्ति या सामर्थ्य थी, पक्षी जो थे आकाश में उड़ान भरने वाले और दूर से जमीन के दृश्य या वस्तु देखने वाले। संपाती ने देखा एक सौ योजन दूर मतलब 800 किलोमीटर दूर लंका के अशोक वन में सीता है। अब वहां जाना है तो आपस में चर्चा कर रहे थे वहां कैसे पहुंच सकते हैं। जल पर भी चला जा सकता है लेकिन किसी को उड़ान भरना होगा इस समुद्र को पार करना होगा कोई कहता है मैं 10 20 मील जा सकता हूं, किसी ने कहा कि 50 100 किलोमीटर या मील तो मैं जा सकता हूं, 100 योजन मतलब 800 मील मैं नहीं जा सकता, किसी ने कहा मैं आधे रास्ते तक तो जा सकता हूं लेकिन फिर मेरी वही जल समाधि होगी मैं गिर जाऊंगा समुंद्र में।
अंगद ने कहा मैं जा सकता हूं लेकिन लौटने का कोई भरोसा नहीं है। ऐसी चर्चाएं जब हो रही थी तो हनुमान तो चुपचाप बैठे थे कुछ कह नहीं रहे थे। जामवंत ने उनको स्मरण दिलाया उनकी शक्ति, सामर्थ्य का उन्होंने यह भी कहा कि तुम तो इतने शक्तिमान हो तुम तो मेरु पर्वत की कई बार हजारों बार परिक्रमा कर सकते हो, मेरु पर्वत की। वैसे हनुमान को स्मरण दिलाने की आवश्यकता थी वे तैयार हुए। जय हनुमान। अब वे आगे बढ़ते हैं महेंद्र पर्वत पर चढ़ते हैं ।दक्षिण भारत में एक प्रसिद्ध पर्वत है, महेंद्र पर्वत वहां पर भगवान और देवताओं से विशेष प्रार्थना करते हैं ताकि उनको यश मीले, लंका पहुंचने में और सीता के मिलन में। वहां से हनुमान ने जब उड़ान भरी है तैयारी कर रहे हैं अपने पैरों से पहाड़ के शिखर को दबाएँगे और फिर उड़ान भरेंगे आकाश में। ऐसा जब कर रहे थे या उन्होंने ऐसा किया तो पहाड़ में खलबली मच गई, कई पर्वत के शिखर गिर रहे थे, कई वृक्ष उखड़ कर हवा के गति से बड़ी स्पीड के साथ उनके पीछे जा रहे थे। हनुमान वहां से आगे बढ़ रहे थे, बढ़ चुके थे। आंधी तूफान का क्या कहना और जब वे समुद्र के ऊपर से जा रहे थे तो समुंद्र के अंदर खलबली मच रही है। हनुमान ने एक विशाल रूप धारण किया था। उनकी छाया समुद्र के जल में दिख रही थी 80 मील लंबे थे, हनुमान की ऊंचाई थी। हनुमान 240 मील चौड़े थे। जंबो जेट, उनका शरीर ही हवाई जहाज बन गया था। वे थोड़े ऊपर से स्पीड से जा रहे हैं तो गर्मी है वायु देवता उनके पिताश्री है तो वे हनुमान के लिए शीतलता प्रदान कर रहे हैं। उनकी हैप्पी जर्नी टू लंका और समुद्र को पार किया और वहां त्रिकूट पर्वत पर उतरे। वहां चित्रकूट था यह त्रिकूट है त्रिकूट पर्वत।
वहां बहुत ऊंचा पर्वत, वहीँ से उन्होंने लंका अवलोकन किया, काफी जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। उसका उपयोग होगा जब राम युद्ध के लिए पहुंचेंगे। वे अडवांस पार्टी का कार्य भी कर रहे हैं, जासूसी भी कर रहे हैं और कुछ सीक्रेटस का पता लगा रहे हैं। यहाँ पहाड़ से भी उन्होंने कुछ पता लगाया है। वहां प्रवेश करते समय प्रवेश द्वार पर उस लंका की अधिष्ठात्री देवी रखवाली कर रही है। हनुमान जब अंदर जाना चाह रहे थे तो उसने कहा हे वानर रुको, नो परमीशन, नो एडमिशन विथआउट परमीशन, वहां पर दोनों के मध्य वार्तालाप, संवाद और वाद-विवाद भी होता है और फिर हनुमान उसको तमाचा मारते हैं। वो बेचारी बेहोश होकर गिर गई। और जब होश में आई तो उसे याद आया, भविष्य में कोई एक वानर आएगा और वह प्रवेश करेगा या प्रवेश करने वाला है बहुत बलवान होगा और ऐसा जब होगा तो धीरे-धीरे लंका का और फिर अंततोगत्वा रावण का विनाश का ही कारण बनने वाला हैं । उसे धीरे धीरे यह बातें याद आई और उसी के साथ उसने रास्ता दे दिया है। हनुमान जी अब लंका में है और खोज रहे हैं सीता को, कहाँ होगी सीता, कहाँ होगी सीता। वहां कई सारे महल हैं हनुमान जी एक महल से दूसरे महल से तीसरे महल तक जा रहे हैं । हनुमान को कुछ आईडिया था सीता के सौंदर्य की बात कहो, चरित्र की बात कहो उसके अनुसार वो खोज रहे थे। वे पहचानने की कोशिस कर रहे थे। वहां कई स्त्रियाँ दिख रही थी लेकिन वे शराब पी रही थी, अलग अलग पुरुषों को आलिंगन दे रही थी। ये देख कर हनुमान समझ रहे थे कि ऐसा व्यवहार तो सीता के लिए संभव ही नहीं है।
सीता और करें नशा पान, सीता और करे किसी पर पुरुष का आलिंगन। ये पतिव्रता नारी है और सौंदर्य कि बात तो उसमे से उन्हें कोई नहीं लगा कि सीता जैसे सौंदर्य वाली स्त्री वहां थी। खूब खोजने के उपरांत भी वहां नहीं मिली सीता या सीता का पता नहीं लगा तो निराश होकर वे वन की ओर जाते हैंउस। समय हनुमान अलग-अलग रुप भी धारण करते हैं कभी छोटा बिल्ली जैसा बन जाते हैं कभी इधर जाते हैं कभी उधर जाते हैं। अशोक वन में जाते हैं और यही पर सीता को मिलने वाले हैं इसके पहले वे उन्होंने अयोध्या में श्रीराम जय राम जय जय राम, श्री राम जय राम जय जय राम ये ध्वनि सुनी तो हनुमान ने कहा मैं अयोध्या में आ गया क्या? यहां पर राम की गौरव गाथा गाए जा रही है, गुण गाए जा रहे हैं। जहां से ध्वनि आ रही थी वहां प्रस्थान कर गए वह घर विभीषण का था। रावण के एक भाई राम भक्त थे। जैसे राम भक्त हनुमान वैसे विभीषण भी भक्ति में कुछ कम नहीं थे। वैसे हनुमान के साथ किसी की भी तुलना नहीं हो सकती। जब हम रामदास कहते हैं तो पहला नाम हमें हनुमान का ही याद आता हैं राम के तो कई दास हैं, कृष्ण के, भगवान के कई दास से लेकिन उन सभी दासों में दास नंबर वन, नंबर वन हनुमान जी है। नवधा भक्ति में हर भक्ति के विशेष आचार्य या भक्त है श्रवण भक्ति श्रवण करते हैं तो राजा परीक्षित, कीर्तन भक्ति सुखदेव गोस्वामी, स्मरण भक्ति प्रहलाद महाराज।
श्रवणं, कीर्तन, विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चन वन्दनं दास्य सख्यमात्मनिवेदनम् ।।
अनुवाद - श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वन्दन, दास्य, साख्य और आत्मनिवेदन ये भक्ति के नौ भेद है।
दास्यम की बात आती है तो हनुमान भक्त शिरोमणि है। हनुमान उनकी जो हनू है चिन है उसमें हम देखते हैं मुख और चिन, ठोड़ी भी कहते हैं, एक समय इंद्र ने अपने वज्र से हनुमान के ऊपर प्रहार किया उसी के कारण उनकी हनु टूट गई, कुछविकृति आई इसीलिए उनका मुख ऐसा दिखता है हम दर्शन करते हैं। ऐसे मुख वाले या हनु वाले हनुमान। हनुमान या मान ऐसी है जिनकी हनु इसलिए उनका नाम भी हनुमान राम भक्त हनुमान। विभीषण भी राम भक्त थे। राम का नाम भी लेते ही रहते थे। अपने महल की दीवार पर उन्होंने राम राम राम राम लिखा हुआ था। सुनने में आता है कि एक समय जब रावण विभीषण के यहां आए और जब उन्होंने देखा अपने भ्राता के, भाई के घर में सर्वत्र राम राम राम लिखा है तो क्रोधित हुए और उन्होंने कहा हे राम का नाम लिखा है तुमने विभीषण ने कहा यह वह राम नहीं है, वह राम नहीं है, यह जो रा है रा रा स्टैंड फॉर रावण म है उसका मतलब है मंदोदरी। यह श्री श्री रावण मंदोदरी का शार्ट फॉर्म राम है। रावण ने कहा बढ़िया बहुत अच्छा शाबाश गुड बाय या गुड ब्रदर और कहते हैं कि रावण ने पूरी लंका में राम-राम राम-राम राम-राम लिखवाया। वो सोच तो रहा था कि यह रावण और मंदोदरी का नाम है परन्तु राम तो राम है और कोई हो ही नहीं सकता।
हनुमान जी खोजते खोजते अशोक वाटिका में पहुंचे हैं जहां पर सीता को रावण ने बंदी बनाकर रखा था और सीता जिस वृक्ष के नीचे थीउसी वृक्ष के ऊपर हनुमान जी पहुंच गए और वही से अवलोकन करने लगे। सीता के हाव-भाव और उसकी दुर्बलता और आक्रोश और से पता चला सौंदर्य और यही सीता होनी चाहिए। फिर कई सारे दृश्य भी देखें जब राक्षस या रखवाली कर रही थी वह सीता को परेशान कर रही थी धमकाती है, डराती है, जाओ जाओ शरण में जाओ, रावण महाराज की शरण में जाओ, मरना है तुम्हें सीता को पिटती हैं, सीता के साथ क्या-क्या गाली गलौज होता है हनुमान जी सब देख रहे थे और थोड़ी देर में रावण का भी वहां पहुंचना। वो सारे प्रस्ताव सीता को दे चूका था, आज पुनः उसने कहा मेरा प्रस्ताव स्वीकार करो भूल जाओ उस राम को, देखो इस लंका के वैभव को और मैं हूं लंकेश, तुम मेरी बनो, मेरी रानी बनो वी विल इंजॉय, हम यहाँ उपभोग करेंगे। उस समय सीता का रावण को फटकारना और सीता रावण को बहुत खरी-खोटी सुनाती है, सीता कहती है मेरे से दूर रहो तो उस समय रावण ने कहा कि 2 और महीने, 2 महीने की अवधि देता हूं मैं तुम्हें अगर तुम नहीं मान जाओगी तो समाप्त, तुम जीवित नहीं रहोगी, समझी ऐसा कहकर रावण चला जाता है। यह सब देखकर और सुनकर हनुमान यह समझ गए थे कि यही तो है सीता, यही तो है सीता। हनुमान नीचे उतरे और सीता के साथ वार्तालाप प्रारंभ होता है। कई सारी बाते वे सीता को बताते हैं, वह कह तो रहे थे मैं राम दूत हूँ मैं राम का दूत हूं राम का संदेशा लाया हूं लेकिन इनका बड़ा रूप देख कर सीता सोचने लगाती हैं कि यह कोई राक्षस होना चाहिए। इस रूप में मेरे समक्ष आया है। हनुमान ने सीता को अंगूठी दी कि यह ले लो जो मुझे राम ने दी है। सीता ने देखा और कहा यस यस यह तो राम की अंगूठी है। सीता देखती है और समझती है और कई बातों से सीता मान जाती है कि यह हनुमान राम के भेजे हुए दूत ही है। हनुमान सीता जी से कहते हैं कि चलो चलते हैं,
सीता – कहां?
हनुमान - किस्किंधा जहां श्रीराम इस समय मौजूद है।
सीता- कैसे?
हनुमान- बैठो मेरे कंधे पर
सीता - मैं और तुम्हारे कंधे पर, मैं पर-पुरुष को स्पर्श भी नहीं करती और बढ़िया तो यह होगा कि तुम राम को ले आओ, राम को भेजो, उन्हें अपनी शक्ति, शौर्य, सामर्थ्य का प्रदर्शन करने दो और मुझे मुक्त करने दो, प्राप्त करने दो। मैं ऐसे पलायन नहीं करना चाहती तुम्हारे कंधे पर बैठकर और मैं तुम्हारे कंधे पर बैठ भी नहीं सकती। सीता ने भी हनुमान को अपनी अंगूठी दी कि जब भगवान राम तुम से पूछेंगे कि इसका कोई सबूत है कि तुम सचमुच सीता से मिले तो यह निशानी उन्हें दिखा देना और यह भी बता देना कि चित्रकूट में जो स्फटिक शिला के ऊपर जो लीला हुई इंद्र का पुत्र कौवा बन कर आया था और कैसे परेशान कर रहा था, इत्यादि इत्यादि और फिर राम ने आगे क्या किया यह सब घटनाएं सीता ने हनुमान को सुनाई और कहा कि उनको कहना कि यह दोबारा तुम दोहराओ। ऐसी कई बातें थी जो सीता को ही पता थी इस संसार में, ब्रह्मांड में और किसी को भी पता नहीं थी उस घटना से संबंधित जो बातें थी तो राम जब सुनेंगे तो उन्हें वह समझ जाएंगे कि तुम सीता को मिल कर आए हो। हनुमान लौटने के पहले कुछ आहार, नाश्ता पानी हो जाए तो वे वहां के बगीचे में फल खाने लगे। फल तो कुछ कम ही खाए। उस वन को उन्होंने पूरा तहस-नहस कर दिया, विनाश किया, सब उल्टा पुल्टा कर दिया, सब वृक्ष उखाड़ कर फेंक दिए और क्या-क्या सत्यानाश कर दिया। वह उद्धान जो पूरा मेंटेन था उसको तहस नहस कर दिया। इसका समाचार जब रावण के पास पहुंचा तो वह बोला ओह बंदर। उसने कई सारे सैनिक अस्सी हजार सैनिक भेजे। जान लो इस बंदर की या पकड़ लो उस बंदर को, इस मंकी बिजनेस को बंद करो, रोको इसे। हनुमान ने तो इन सारे अस्सी हजार सैनिकों को लिटाया या यमपुरी भेजा।
उसको पकड़ कर ले आओ या उसको जला दो, उसकी पूंछ में कुछ वस्त्र बांध दो और आग लगा दो वह भी जल जाएगा या अपमानित होगा। ऐसा जब किया तो हनुमान जी एक महल से दूसरे महल और फिर खिड़कियों में से अपनी पूछ को अंदर डालते और सब जगह आग लगने लग गई घर जलने लग गए और फिर नेक्स्ट और फिर नेक्स्ट और फिर अगले अगले ऐसे लंका के विभिन्न हिस्सों पर उन्होंने आग लगाई। इस प्रकार हनुमान ने वहां पर शक्ति का प्रदर्शन किया और कहा मैं राम का दास हूँ, यदि दास की इतनी शक्ति और सामर्थ्य है तो फिर मेरे स्वामी श्री राम शक्ति, सामर्थ्य की तो तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। यह तो अभी शक्ति के प्रदर्शन का थोड़ा सैंपल दिखाया है। कहते हैं कि जब हनुमान लंका में ही थे, समुद्र के तट पर आए और अपनी पूंछ को समुद्र के जल में बुझाया और फिर हनुमान ने जब पीछे मुड़कर देखा तो वहां इतना सारा धुआं था कि उनका मुख या चेहरा ही काला पड़ गया और इसीलिए वानरों की एक जाति का मुंह काला होता है उसका संबंध इस लीला से है।
हनुमान अब वहां पर वापस लौटे हैं जहां जामवंत, अंगद इत्यादि भक्त या खोजने वाला दल प्रतीक्षा कर रहे था। उनको समाचार दे दिया और कहा कि चलो किष्किंधा चलते है, अब तो हं वहां जा सकते हैं, हमारे पास भगवान श्री राम के लिए गुड न्यूज़ है। रास्ते में एक बगीचे में वे रुकते हैं वहां पर भी कुछ खानपान होता है और वही मंकी बिजनेस चलता है। खाते तो कम है खराबी अधिक करते हैं, उन्होंने वहां पर सुग्रीव के उद्यान में भी वही किया। वहां से अन्ततोगत्वा राम के पास पहुंचे हैं। राम प्रतीक्षा में ही थे और किसी दल ने कुछ पता नहीं लगा पाए थे। अब आशा थी कि सिर्फ हनुमान का जो दल है वह अगर खोज पाते हैं तो वह एक आशा की एक किरण है। हनुमान आए और समाचार दिये, अंगूठी भी दे दी और जो लीला कथा सीता ने सुनाई वह भी सुनाई। राम बहुत खुश थे, वे हनुमान से और उनकी कंपनी से बहुत खुश थे।
श्रीराम हनुमान को पुरस्कार देना चाहते थे। क्या देंगे पुरस्कार? वे तो सोच रहे हैं और कहते हैं कि हे हनुमान यदि इस समय मैं अयोध्या में होता तो तुम्हें बहुत बड़ा पुरस्कार देता, लेकिन मैं तो अब वनवासी हूं, मेरे पास तो तुम्हें देने के लिए कुछ भी नहीं है। मैं एक बात कर सकता हूं, वह क्या है। मैं तुम्हें गले लगा सकता हूं अगर तुम्हें कोई परेशानी नहीं हो तो और फिर राम आगे बढ़े हैं और हनुमान को अपने बाहुपाश में धारण किए हैं। आपने वह चित्र देखा होगा। दस लाख वर्ष पुराना फोटोग्राफ आज भी हम देख सकते हैं। यह सुंदरकांड है, सुंदरकांड की लीलाएं हैं। इसमें सीता की खोज का कार्य और हनुमान को खोज के कार्य में जो सफलता मिली, और उनका किष्किंधा लौटकर राम को खुशखबरी देना यह सभी सुन्दरकाण्ड के अंतर्गत है। सुंदरकांड वैसे रामलीला या हनुमान लीला ही है। हनुमान के शक्ति का, भक्ति का, युक्ति का, धैर्य का, शौर्य का, सौंदर्य का प्रदर्शन है सुंदरकांड में और इसी में हनुमान की गौरव गाथा है। इसमें कई बातें हैं हम कह भी नहीं पाए हैं। महेंद्र पर्वत से लंका की ओर जा रहे थे तो रास्ते में कई सारे विघ्न आ रहे थे। मैनाक पर्वत भी आया विश्राम करो, विश्राम करो विश्राम करो, विश्राम नहीं जब तक मेरा कार्य पूरा नहीं होता मैं रिलैक्स नहीं करूंगा। हनुमान पूर्ण रूप से फोकस थे। मैनाक पर्वत ने कहा हनुमान विश्राम करो विश्राम करो। इस प्रकार का भी अनर्थ ही होता है हम आलसी बनते हैं सेवा करते समय। हनुमान इससे बचे हैं उन्होंने मैनाक पर्वत का स्पर्श किया और आगे बढ़े।
आगे सुरसा आई और हनुमान बलवान तो है ही पर युक्तिवान और बुद्धिमान भी हैं। देवता परीक्षा लेना चाहते थे तो उन्होंने सुरसा को भेजा। आप जानते हो पढ़ा और सुना होंगा। मेरे समक्ष जो भी आता है मैं उसे खाती हूं, तो हनुमान अपने साइज को बढ़ा देते हैं तो फिर सुरसा अपने मुख का साइज दोगुना कर देती है। उससे दुगना हनुमान बढ़ जाते हैं उससे दुगनी सिरसा बन जाती है और एक समय हनुमान इतने छोटे बन जाते हैं उसके मुख में प्रवेश करते हैं और बाहर आ जाते हैं कि तुमने खाया, मैं तो तुम्हारे मुंह से प्रवेश किया और बाहर आ गया। ऐसे ही युक्ति पूर्वक सुरसा से भी जान बचाई और अपनी युक्ति बुद्धि का प्रदर्शन किया है। देवता भी हनुमान से प्रसन्न थे। आगे सिहिंका आती है, वह राक्षसी थी हनुमान जब जा रहे थे तो उनकी छाया को पकड़कर हनुमान को कंट्रोल कर रही थी, रोक रही थी, नीचे खींच रही थी तो हनुमान ने उसके मुख में प्रवेश करके उसका भी सत्यानाश किया। सिहिंका अपनी सिद्धि कि शक्ति का प्रयोग कर रही थी तो हनुमान ने अपनी भक्ति की शक्ति से उस को परास्त किया है। इस प्रकार से विघ्नों से, अनर्थों से हनुमान बचे हैं। ऐसे ही हनुमान की गौरवगाथा सुंदरकांड में कही हुई, गाई हुई है। सुंदरकांड की जय ।
राम भक्त हनुमान की जय। सीता, राम, लक्षमण हनुमान जी की जय।
निताई गौर प्रेमानंदे हरी हरी बोल।