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*हरे कृष्ण* *जप चर्चा* *दिनांक 06 -04 -2022* *राम कथा* हरे कृष्ण ! *ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया। चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे न मः॥* *श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले। स्वयं रूपः कदा मह्यं ददाति स्वपदान्तिकम्॥* *वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च। श्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथान्वितं तं सजीवम्॥* *साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं। श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिताश्रीविशाखान्वितांश्च।।* *हे कृष्ण करुणासिन्धु दीनबंधु जगत्पते। गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तुते:।।* *तप्तकाञ्चनगौरांगि राधे वृन्दावनेश्वरि। वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये॥* *वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ।।* *जय ! श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानन्द । श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द॥* *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥* हरे कृष्ण तो आप सभी भागवत कथा प्रेम रस अनुरागी, वैष्णवो, वैष्णवी श्रोताओं के श्री चरणों में सादर अभिनंदन है। भगवान श्री रामचंद्र और उनके पवित्र भक्तों के चरित्र श्रवण करने की जो आप वैष्णवों के हृदय में प्यास है उन्हीं को मैं प्रणाम करता हूं क्योंकि हम वैष्णवो का सच्चा धन है, वासुदेवकथारुचिः *शुश्रूषोः श्रद्दधानस्य वासुदेवकथारुचिः। स्यान्महत्सेवया विप्राः पुण्यतीर्थनिषेवणात्।।* ( श्रीमद्भागवतं १.२.१६) अनुवाद:- हे द्विजो, जो भक्त समस्त पापों से पूर्ण रूप से मुक्त है, उनकी सेवा करने से महान सेवा हो जाती है। ऐसी सेवा से वासुदेव की कथा सुनने के प्रति लगाव उत्पन्न होता है वासुदेव की कथा में रुचि हमें रसिक भक्तों के संग में सहज ही प्राप्त होती है। जैसा भागवत जी में कहा गया है। भगवान श्रीराम, मंगलमय लीला करके अपना स्वयं आचरण करके धर्म की स्थापना का पालन करते हुए हमें सिखा रहे हैं। अरण्यकांड में भगवान सुग्रीव से मिलते हैं पंपा सरोवर। कल महाराज जी हमें स्मरण करा रहे थे और आप सभी जानते हैं पूरी दुनिया श्रीराम, राम, राम, करती है और सारे ब्राह्मण, विप्र, साधु समाज, भी राम के दर्शन की आशा करते हैं और उनका संग सानिध्य चाहते हैं लेकिन वह राम बिना बुलाए बिना आमंत्रण निमंत्रण दिए शबरी के घर जाते हैं। वो कहते हैं ना, भक्ति में कोई कुल जाति यह विचार नहीं रहता, वैष्णव में प्रेम भक्ति ही देखा जाता है। अब सीता जी का तो हरण हो चुका है अरण्यकांड में और भगवान रामचंद्र ने और लक्ष्मण जी ने एक काम बढ़िया किया कि रावण की बहन की नाक काटी कल महाराज ने इसे भी संक्षेप में स्मरण कराया था "नासिक", उसके बाद पंचवटी तो पंचवटी होते हुए फिर शबरी से मिलते हुए राम लक्ष्मण आगे बढ़ गए हैं। *आगें चले बहुरि रघुराया। रिष्यमूक पर्बत निअराया॥* *तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा। आवत देखि अतुल बल सींवा॥1॥* भावार्थ- श्री रघुनाथजी फिर आगे चले। ऋष्यमूक पर्वत निकट आ गया। वहाँ (ऋष्यमूक पर्वत पर) मंत्रियों सहित सुग्रीव रहते थे। अतुलनीय बल की सीमा श्री रामचंद्रजी और लक्ष्मणजी को आते देखकर-॥1॥ देखिए एक सामान्य नीति है जब भी आप बड़ों से मिले तो आपको आगे चलकर उनको प्रणाम करना चाहिए जैसे हम महाराज से मिलते हैं या वरिष्ठ भक्तों से मिलते हैं या उनको देखते हैं तो, हमें उनकी ओर कदम बढ़ा के आगे चलना चाहिए और जब उनके समीप पहुंचते हैं तब उन्हें दंडवत करना चाहिए यह वैष्णव विधि है लेकिन यहां पर राम जी आगे चल रहे हैं और राम से बड़ा कौन है, कोई नहीं है स्वयं परम तत्व परम ब्रह्म है लेकिन आगे चले रघुराई, गोस्वामी ने लिखा है कि रघुवीर आगे चल रहे हैं क्यों ? क्योंकि सामने एक विप्र ब्राह्मण आ रहा है और किस का भेजा हुआ? आप सभी जानते हैं कि वह श्री हनुमान जी हैं और सुग्रीव ने उनको भेजा है। राम, लक्ष्मण , कभी-कभी यह सीता हरण के बाद क्रम व्यतिक्रम हो जाता है कि लक्ष्मण जी आगे चलते थे और रामजी पीछे चलते थे, कभी-कभी रामजी आगे चलते हैं और लक्ष्मण जी पीछे चलते हैं। चित्रकूट में यह नहीं हुआ पर लेकिन यहां सीता हरण के बाद अरण्यकांड में दंडकारण्यम वन में *दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥* *निसिचर निकर दले रघुनंदन। नामु सकल कलि कलुष निकंदन॥* भावार्थ- प्रभु राम ने दंडक वन को सुहावना बनाया, परंतु नाम ने असंख्य मनुष्यों के मनों को पवित्र कर दिया। रघुनाथ ने राक्षसों के समूह को मारा, परंतु नाम तो कलियुग के सारे पापों की जड़ उखाड़नेवाला है। पृथ्वी को पावन करते हुए अपने चरणों से अपने श्री अंग से, सभी को दर्शन देते हुए सबको धन्य करते हुए राघवेंद्र सरकार जब लीला विहार करते थे तब ये क्रम यहां पर आगे पीछे हो जाता था व्यतिक्रम हो जाता था। यहां पर राम चूँकि सबसे बड़े हैं तो आगे क्यों चल रहे हैं ? भगवान कह रहे हैं कि सामने हनुमान है और वह क्या है ? मेरा भक्त है भगवान कहते हैं , कि मेरे भक्तों मुझसे भी बड़े हैं देखिए, अब इस लीला में संकेत मिल रहा है। *श्रदामृतकथायां मे शश्र्वन्मदनुकीर्तनम्। परिनिष्ठा च पूजायां स्तुतिभिः स्तवनं मम।।* *आदरः परिचर्चायां सर्वाङ्गैरभिवन्दनम।मद्भक्तापूजाभ्यधिका सर्वभूतेषु मन्मतिः।।* *मदर्थेअर्थष्वङ्गचेष्टा च वचसा मद्गुणोरणम्। मय्यर्पणं च मनसः सर्वकामविवर्जनम।।* *मदर्थेअर्थपरित्यागो भोगस्य च सुखस्य च इष्टं दत्तं हुतं जप्तं मदर्थ यद्व्रतं तपः।।* *एवं धर्मेर्मनुष्याणामुद्धवात्मनिवेदिनाम्मयि सञ्जायते भक्तिः कोअ्नथोअ्र्थोअ्स्यावशिष्यते।।* (श्रीमद्भागवतं ११.१९.२०-२४) अनुवाद:- मेरी लीलाओं की आनंदमयी कथाओं में दृढ़ विश्वास, मेरी महिमा का निरंतर कीर्तन, मेरी नियमित पूजा में गहन आसक्ति, सुंदर स्तुतियों से मेरी प्रशंसा करना, मेरी भक्ति का समादर, साष्टांग नमस्कार, मेरे भक्तों की उत्तम पूजा ,सारे जीवों में मेरे चेतना का ज्ञान, सामान्य शारीरिक कार्यों को मेरी भक्ति में अर्पण, मेरे गुणों का वर्णन करने के लिए वाणी का प्रयोग, मुझे अपना मन अर्पित करना, समस्त भौतिक इच्छाओं का बहिष्कार, मेरी भक्ति के लिए संपत्ति का परित्याग, भौतिक इन्द्रियतृप्ति तथा सुख का परित्याग तथा मुझे पाने के उद्देश्य से दान, यज्ञ, कीर्तन, व्रत, तपस्या इत्यादि वांछित कार्यों को संपन्न करना- यह सिद्धांत है, जिनसे मेरे शरणागत हुए लोग स्वत: मेरे प्रति प्रेम उत्पन्न करते हैं। तो फिर मेरे भक्तों के लिए कौन सा अन्य उद्देश्य या लक्ष्य शेष रह जाता है? भागवत जी का प्रसिद्ध श्लोक, उद्धव गीता में कृष्ण चंद्र कहते हैं कि मेरे भक्तों की पूजा अर्चना प्रणाम मुझसे भी बढ़कर होना चाहिए और सभी जीवो में मुझे देखना चाहिए और गुरु सुनुर्मति और वैष्णव में नर मती करता है या भेद करता है तो वह नरक में जाता है और रामायण में भी आया है शबरी को ही भगवान कहते हैं। *आराधनानां सवैषां विष्णोराराधनं परम। तस्मात्परतरं देवि तदीयानां समर्चनम्।।* ( पदम् पुराण) अनुवाद:- (शिव जी ने दुर्गा देवी से कहा:) हे देवी, यद्यपि वेदों में देवताओं की पूजा की संस्तुति की गई है, लेकिन भगवान विष्णु की पूजा सर्वोपरि है। किंतु भगवान विष्णु की सेवा से भी बढ़कर है उन वैष्णवों की सेवा, जो (वैष्णव) भगवान विष्णु के संबंध में हैं। जैसे प्रभुपाद के तात्पर्यो में आप ने पढ़ा या सुना होगा भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं मुझ से भी बढ़कर है उनके भक्त। हनुमान जी एक ब्राह्मण विप्र बन के आए हैं उनको प्रणाम कर रहे हैं श्रीराम और आगे बढ़ कर उनसे मिल रहे हैं, मानो कि मुझसे बड़े तो मेरे भक्त हैं और दूसरा हनुमान जी ब्राह्मण के रूप में हैं। यह किष्किंधा कांड की मंगलमय शुरुआत है हनुमान और राम का मिलन हो रहा है और हनुमान जी राम जी का सुग्रीव से मिलन कराएंगे। *तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा"( हुनुमान चालीसा)* अर्थ-आपने सुग्रीव को श्रीराम से मिलाकर उपकार किया जिसके कारण वे राजा बने। पूरे नार्थ इंडिया में और राम प्रेमी भक्तों में प्रसिद्ध हैं। हम इस्कॉन के भक्तों के लिए कभी-कभी कुछ नया हो सकता है लेकिन यह प्रसिद्ध है और एकदम सत्य है। देखिए यहां पर एक विचारक बात है कहां जा रहे हैं राम, क्योंकि शबरी ने कहा कि आगे चलिए तो आगे जाकर एक पर्वत आएगा "ऋषि मुख पर्वत" ऋष्यमूकपर्वत निअराया" राम जी आगे चल रहे हैं और साथ में लक्ष्मण जी भी । कहां हैं ऋषिमुख पर्वत वहां पर रहते थे श्री सुग्रीव और मंत्री, कौन मंत्री ? केवल हनुमान, एक राजा के साथ होता है सैन्य, राज्य तो यह सब कुछ रहा नहीं सुग्रीव जी के पास, एक ही वस्तु या व्यक्ति था, वो था श्री हनुमान जी , ऐसे अध्यात्म रामायण, पद्म रामायण में बताया है। त्रेता में राम आते हैं और करोड़ों बार आ चुके हैं। काल भेद के अनुसार रामायण की लीलाएं अनंत हैं। इस बात को शुकदेव जी ने भी भागवत में कहा , *ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधै: पृथक् । ब्रह्मसूत्रपदैश्र्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्र्चितै: ||* ( श्रीमद् भगवद्गीता १३.५) अनुवाद:-- विभिन्न वैदिक ग्रंथों में विभिन्न ऋषियों ने कार्यकलापों के क्षेत्र तथा उन कार्यकलापों के ज्ञाता के ज्ञान का वर्णन किया है | इसे विशेष रूप से वेदान्त सूत्र में कार्य-कारण के समस्त तर्क समेत प्रस्तुत किया गया है | बहुत लोगो ने रामायण को अपने-अपने भाव और भक्ति में गाया है। पद्म रामायण में जैसा कि वर्णन है कि राम जी जब छोटे थे तो महल में बंदर आते थे, बंदरों के साथ रामजी खेलते खेलते रोते थे। दशरथ जी कहते थे रघुनाथ रो क्यों रहे हो ? सुमंत जरा देखो तो राम क्यों रो रहे हैं, उसको बंदर चाहिए कोई भी बंदर उसके सामने नखरे करता है, बंदर के नखरे तो आपने देखे ही होंगे वृंदावन धाम में "वृंदावन के बंदर को मरम न जाने कोई फ्रूटी बिस्किट देकर चश्मा वापस होइ " उनकी अपनी लीलाएं चलती हैं, नखरे राम जी के भी थे ,बोले तुमको कौन सा बंदर चाहिए सुमंत जी पूछते हैं दशरथ जी खड़े हैं मुझे जो चाहिए वह है ही नहीं और उसके बाद रामजी रोना ही बंद नहीं करते हैं। सुमंत जी को दशरथ जी भेजते हैं और अंजनी नंदन अंजनी के बेटे जो हनुमान जी बाल स्वरूप में हैं उसको लेकर आते हैं और राम जी जब तक गुरुकुल में पढ़ने गए। मतलब जब उनका उपनयन संस्कार हुआ 5 वर्ष के थे और जब गुरुकुल भेजा गया और गुरुकुल में रहे। अल्प समय बहुत कम समय रहे और वापस आए तो फिर विश्वामित्र ले गए बालकांड में यह सब सुना बचपन में लीला फिर विश्वामित्र ले गए , तब हनुमान जी वापस चले गए और उसके बाद अब मिल रहे हैं। लेकिन वाल्मीकि जी ने जो मैं अभी बता रहा हूं बाल्मीकि जी ने तो बालकांड में बहुत कुछ वर्णन नहीं किया है। अब कितना करेंगे अनंत भगवान अनंत कथा हैं। समय और पात्र और स्थान के अनुसार लीला स्मृति के अनुसार वैष्णव विद्वान साधु लोग वर्णन करते हैं शेष शारदा भी आ जाएं तो फिर रामचरित्र का पूर्ण वर्णन तो नहीं करते हैं इसलिए इसको बड़े उदार दिल से समझना चाहिए। हनुमान जी से अब मिलन हो रहा है और सुग्रीव भेज रहे हैं और सुग्रीव कहां बैठे हैं ? ऋषि मुख पर्वत पर, किष्किंधा कांड पूरा, हनुमान सुग्रीव और राम यह तीन हीरो हैं और फिर शुरुआत की है यह है किष्किंधा कांड। किष्किंधा कांड का एंड क्या है संपाती के साथ चर्चा होकर सारे बंदर पार्टी के हैं सुग्रीव जी, जो राम जी की मित्रता के बाद सेवा में भेजी थी चारों दिशाओं में तो दक्षिण दिशा में हनुमान जी जामवंत अंगद, अच्छे-अच्छे हीरो इस टीम में थे, पता था यही वर्ल्ड कप लाएंगे, सभी इसी में थे और कृपा से यह संपाती से मिलते हैं और कहते हैं कि मैं देख रहा हूं कि सामने सीता है लंका में, फिर कहा कि कौन जाएगा सामने? अंगद ने कहा कि मैं जा सकता हूं लेकिन रिटर्न टिकट का पता नहीं है। *न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः | यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ||* (श्रीमद भगवद्गीता 15.6) अर्थ:--वह मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्र के द्वारा प्रकाशित होता है और न अग्नि या बिजली से । जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत् में फिर से लौट कर नहीं आते । फिर हनुमान जी को कहते हैं जो जाने वाला है वह तो चुपचाप बैठा है और जामवंत जी उसको स्मरण कराते हैं "पवन तनय बल पवन समाना" आप पवन के पुत्र हो और आप का बल पवन के समान है आप इसके पार जा सकते हो। हनुमान जी को वह शक्ति याद आ गई और फिर वह पर्वताकार, लेकर जोर से कूदे, यहां पर किष्किंधा कांड समाप्त होता है। बहुत कुछ है कि आपको पता चले लेकिन यहां पर हनुमान अकेले थे और सुग्रीव की दशा गृहस्थ भक्तों के लिए बिल्कुल प्रैक्टिकल है हम लोग भी सुग्रीव ही हैं। सुग्रीव को क्या मिला , किष्किंधा कांड में उसके पास कुछ नहीं था हनुमान की सेवाएं, लेकिन जब हनुमान जी ने भगवान राम से मिलाया तो उसको पुनः राज्य मिल गया था सब सुख मिल गया था पत्नी मिल गई सब कुछ और फिर वह राम को भूलकर जलसा पार्टी करने लगा। फिर हनुमान जी को राम भेजते हैं और सुग्रीव को याद दिलाते हैं और फिर वह राम सेवा में लगते हैं। हमारा भी ऐसे ही होता है कुछ नहीं होता है तो गुरु और भगवान याद आते हैं। गुरु और भगवान की कृपा से सब सुविधा हो जाए , उसको भी हम भूल जाते हैं और अपने भोगो में पड़ जाते हैं। भगवान कृपा करते हैं और गुरु को फिर भेजते हैं जैसे हनुमान जी को भेजा तो यह किष्किंधा कांड का सारांश, अब थोड़ा सा समय है हमारे पास थोड़ा प्रवेश करते हैं कुछ बातों में जो रहस्य है और उसमें जो रस है, रामलीला रस उसका हम आस्वादन करते हैं। यह ऋषि मुख पर्वत क्या है? देखिए शब्दों पर ध्यान दीजिए ऋषि या मतलब जो वेद के विषयों को जानता है, उसके मंत्रों को जानता है उसका आचरण करता है वह है ऋषि और फिर उसी की उपाधि लगती थी ब्रह्मर्षि, फिर महर्षि, और फिर देवताओं के समाज में देवर्षि , राज ऋषि, देखिए लेकिन जब ऋषियों की बात करते हैं हनुमान जी भी अपने आप में ऋषि हैं। जिस ऋषि की हम बात कर रहे हैं हनुमान जी अपने आप में ऋषि हैं सारा वेद जानते हैं सूर्यदेव से पढ़े हैं सूर्य के शिष्य हैं, हनुमान जी वेद मंत्र सब जानते हैं एक ऋषि सब जानता है और उसी के अनुसार अपना आचरण करता है धर्म के अनुसार वह ऋषि है। *प्रायेणाल्पायुष: सभ्य कलावस्मिन् युगे जना: । मन्दा: सुमन्दमतयो मन्दभाग्या ह्युपद्रताः।।* ( श्रीमद भागवतम १.१.१०) अनुवाद:- हे विद्वान, कलि के इस लौह युग में लोगों की आयु न्यून है। वे झगड़ालू, आलसी, पथभ्रष्ट, अभागे होते हैं तथा साथ ही साथ सदैव विचलित रहते हैं। वैसे तो आजकल जनता इतनी बुद्धि डाउन है कि दाढ़ी बढ़ा ले या गले में तीन-चार माला घुमाने , कुर्ता धोती देखकर भारत में, उसे ही ऋषि या साधु मानते हैं। यह लोग भी कहते हैं वत्स तेरा कल्याण होगा जो हम टीवी में देखते हैं ऋषि मुनि तो वह इसी को ही मानते हैं लेकिन ऋषि पेंट शर्ट में भी हो सकता है। संस्कार ऋषि के होने चाहिए उस कि अपनी गरिमा महिमा है लेकिन वस्तुतः गुणों की गरिमा है वेश कि नहीं तो वैष्णव वेश बनाकर वेष बनाना तो बहुत इजी है लेकिन वैष्णव गुणों से अपने आप को अपने जीवन को विभूषित करना यह तो बड़ी साधना करनी पड़ेगी। गुरु वैष्णव का अनुग्रह आशीर्वाद की आवश्यकता पड़ेगी असली वैष्णव गुण जैसे वैष्णवजन ते तेने कहिये फिर हमारे गोड़ीए प्रभुपाद के गुरु महाराज जी ने लिखा है ना, कि केवल वैष्णव तो फिर उसमें प्रतिष्ठा की आशा छोड़नी पड़ेगी और बहुत सारे भजनों में इस वस्तुतः को बताया गया है। तो ऋषि वेद को जानने वाला समस्त आचरण करने वाला और मुक्त मानव , माने चुप मौन रहकर जहां साधना करते थे वह ऋषि मुख पर्वत, अर्थात वह आए मतंग ऋषि की साधना तपस्या होती थी। मतंग ऋषि का नाम अरण्यकांड में आया है बहुत ही असंग रहे , ऐसे हैं मतंग, मतलब बड़े ही असंग, संसार के भौतिक विषयों में कोई आसक्ति नहीं थी और अंदर से प्रेम भक्ति रस में रंगे थे। बड़े ही असंग और बड़े रंग रस और अंदर से राम वेद कृष्ण भक्ति से भरे थे ऐसे थे मतंग, ऐसे ऋषि थे जो चुप रहकर साधना करते थे। देखिए हम भक्तों को साधना तो करनी है लेकिन यह गाढ़ी फिलॉसफी या यही साधना या दर्शन है प्रदर्शन नहीं भक्त लोग प्रदर्शन में लगे रहते हैं। पहले के भक्त अपनी भक्ति सेवा को छुपाते थे। कलयुग में भक्त लोग छपाते हैं, कुछ भी करा मैं आज यात्रा कर रहा हूं मैं इधर गया मैं उधर गया शो चल रहा है एक तरफ से कहते हैं ऐसा क्यों कर रहे हो ? दूसरों को प्रेरणा मिलेगी अरे तुम प्रेरणा को छोड़ो अपनी देखो कि कहां दलदल में फंसे हो, प्रतिष्ठा का यह ड्रामा दिख जाता है। ज्यादा दिन नहीं चलता, साधु लोग सब समझ जाते हैं लेकिन वह चुप रहते हैं क्या करें बद्धजीव हैं, जानते हैं हमारे कहने का भाव समझिए की वैष्णव है ऐसा दिखाने की अपेक्षा वैष्णव बनने का विनम्र प्रयास करें। वैष्णव है हम ऐसा दिखाने के बजाए हमें सच्चा वैष्णव बनने का प्रयास करना चाहिए और हमारे विषय में दूसरे साधु बोलेंगे कि हम क्या हैं। हम खुद नहीं, ऋषि का नाम आया है तो वैष्णव जब भी बोलता है तो भगवान के गुण गाता है, भक्तों के गुण गाता है, भगवान नाम गाता है अपना नाम अपना गुण कभी नहीं गाता और महाभारत में लिखा है स्वयं गुण गान का मतलब आत्महत्या के समान है। अगर कोई गाये, तो उसको पसंद नहीं होता, यह सब वैष्णव गुण आपको सब मिलेंगे चैतन्य चरितामृथम में , भागवत में, यह मतंग में गुण थे। मैं कहने का यह प्रयास कर रहा हूं और सुग्रीव वहां पर रह रहे थे। सुग्रीव किष्किंधा कांड के किष्किंधा नगरी का नाम है यह भी ध्यान दीजिए किष्किंधा केसरी वानर या वानर इनका अड्डा या राज्य था। राजधानी है किष्किंधा और जहां पर बाली का शासन था। सुग्रीव उसका छोटा भाई था उसको भगा दिया गया था। आपको यह भी पता होना चाहिए भक्तों को की सुग्रीव सूर्यांश है। वाल्मीकि जी लिखते हैं सूर्य के अंश से पैदा हुआ है और बाली इंद्र के अंश से पैदा हुआ है और दोनों भाई हैं बाली बड़ा है और सुग्रीव छोटे लेकिन भाइयों में वेर हो गया, जमता नहीं था। यह प्राचीन काल से चला आ रहा है कोई नई बात नही है, देखा जाता है दुनिया में उसमें मिसअंडरस्टैंडिंग था। ऐसे भ्रम के कारण वेर हो गया। प्राय: ऐसा होता है दो संबंधों में जब झगड़ा होता है बैर होता है उसका मूल कारण कोई और व्यक्ति या वस्तु होती है। उसके कारण हो जाता है और इन लोगों को बढ़िया से ना समझने के कारण कान में कोई विश डाल देता है। मुंह से उगलते रहते हैं और झगड़ा हो जाता है यह सब देखा जाता है। दुनिया में तो एक मायावी राक्षस था एक स्टोरी सुन लेते हैं। उनके दो बेटे थे धुंध वीर छोटा और बड़ा माया वीर और धुंध वीर एक भैंस का रूप लेकर आया था बाली के पास लड़ने के लिए और बाली को इंद्रदेव ने एक माला दी थी जब उसके कंठ में होगी तो सामने वाले का आधा बल उसमें आ जाएगा और बाली वीर था। आपने सुना होगा रावण को बगल में दबा के छ महीने परिक्रमा की ,चारों समुंद्र का, चारों दिशाओं की संध्या करता था। रावण इतना बड़ा लेकिन उसको अंगद कहते भी हैं जब वह जाते हैं ,हां में जानता हूं आपको, मेरे पिता को आप मिले होंगे , आपको परिचय तभी हो गया होगा , बड़ा बलवान व्यक्ति है बाली ,अगर कोई वीर योद्धा को ललकारता है तो वीर का लक्षण है ,चुनौती दे ,तो झुकता नहीं और धुंध वीर जो भैंसा बन कर आया था उसको मार दिया और उसको गोल गोल घुमा कर जैसे कृष्ण ने वह गधा कौन था ताल वन में धेनु, उसको घुमा के जैसे फेंका , एक साथ ताल के वृक्ष किसी की इतनी कथा है कि यह देव लोक से उतरे थे और जैसे सर्प कुंडली लगा कर बैठता है वैसे कुंडली गोल गोल ,ऐसे ही यह सात वृक्ष थे और जब वह गिरा उसके ऊपर तो वृक्ष के सारे पत्ते गिर गए और उसका शरीर के सारे लोथड़े उड़ गए और वह जो हड़पिंजर होता है भैंसे का, जो बढ़ा वही सूख गया मार दिया इसने, क्योंकि बाली तो बाली था और यह जो ऋषि मुख पर्वत की तलेटी है। वह जो ऋषि मुख पर्वत जो कि मतंग ऋषि के साधन भजन , उनके शिष्यों की स्थली थी उन्होंने देखा कि कौन इतना अत्याचार , इतना भूकंप जैसा आ गया कि वृक्ष गिर गए ,पत्ते गिर गए और मतलब जैसे भारी भूकंप आ गया , तब संकेतों से पता चला कि यह बाली ने उस असुर को मार के पूरा पराक्रम किया। ऋषि मतंग ने कह दिया कि यदि बाली इस क्षेत्र में एक योजन में अपना चरण रखेगा तो उसका मस्तक भस्म हो जाएगा। मतलब कोई आ नहीं सकता। जैसे आप नंद गांव में नंदेश्वर पर्वत के विषय में जानते हैं कि कोई भी असुर अगर यहां आया तो वह वह पत्थर बन जाएगा इसीलिए तो नंद बाबा गोकुल से कन्हैया को वहां ले गए थे कि वहां पर सेफ है। क्योंकि वहां कोई भी कंस के व्यक्ति आ रहे थे। अघासुर अभी नहीं आया , लेकिन वह क्या नाम था तृणावर्त, छकड़े के रूप में , शकटासुर , पूतना, महाराज जी कल कह रहे थे भगवान राम ने भी ताड़का से श्रीगणेश किया था और हमारे ठाकुरजी ने भी पूतना से, लेडीस फर्स्ट फॉलो कर रहे हैं इसीलिए यहां पर भी दुश्मन की कमजोरी जानना चाहिए। सुग्रीम क्या किया अब कौन सी सेफ जगह है जहां की बाली नहीं आ सकता , वह स्थान था ऋषि मुख पर्वत क्योंकि भूल से गलती से बाली इस एरिया में एंट्री नहीं करेगा और यत किंचित किया तो इन ऋषियों की तपस्या स्थली और उन ऋषियों के ब्रह्म वाक्य, एक सच्चा ब्राह्मण वैष्णव जिसने तप किया है वह बोले तो प्रकृति के स्वामी परमेश्वर को भी करना पड़ता है और एक पतिव्रता नारी, इन दोनों के बहुत बोल बाले ,बहुत चर्चे हैं। अगर यह बोल दिया तो भगवान भी फेल नहीं कर सकते और आज दोनों ही मिलना मुश्किल है कलयुग में, इसीलिए बड़े बड़े राजा बड़े-बड़े वीर शस्त्र धारी ब्राह्मण के बच्चे को देखकर दंडवत करते थे। इनको तलवार चलाना पड़ेगा लेकिन यह तो जीभ चला देंगे तो वहीं पर भस्म हो जाएंगे और कलयुग में तो सब मंद हो गए हैं तो अच्छा है नहीं तो आजकल के ब्राह्मण चार रास्ते पर खड़े हो जाए, मर्सिडीज वाले को बोले कि गाड़ी हमें दे दे नहीं तो हम तुझे भस्म कर देंगे ,सारी दुनिया परेशान हो जाएगी वो ऋषि श्रृंगी ने बोल दिया *इति लङि्घमर्यादं तक्षकं सप्तमेअ्नि।दड्क्ष्यति स्म कुलाङ्गरं चोदितो मे ततद्रुहम्।।* ( श्रीमद्भागवतं १.८.३७) अनुवाद:- उस ब्राह्मण पुत्र ने राजा को इस प्रकार श्राप दिया, आज से सातवें दिन अपने वंश के इस सर्वाधिक नीच महाराज परीक्षित को तक्षक सर्प डस लेगा क्योंकि इसने मेरे पिता को अपमानित करके शिष्टाचार के नियमों को तोड़ा है। तो देखो परीक्षित को ब्राह्मणों के वचनों में लेकिन *जिह्वा दग्धा परान्नेन करौ दग्धौ प्रतिग्रहात्। मनो दग्धं परस्त्रीभि: कार्यसिद्धि: कथं भवेत्।।* -कुलार्णवतन्त्र,१५/७७ अर्थात्- दूसरे का अन्न खाने से जिसकी जीभ जल चुकी है,दूसरे से दान लेने से जिसके हाथ जल चुके हैं और दूसरे की स्त्री का चिंतन करने से जिसका मन जल चुका है, उसे सिद्धि कैसे मिल सकती है? दूसरों का अन्न खा खा कर जीभ जल गई और दूसरों का धन ले लेकर ब्राह्मणों के हाथ, उनके आशीर्वाद में ,कोई नहीं बचा लेकिन सच्चा तपस्वी होना तो वह बोल कर ही हो सकता है। वह हाथ दे तो भाग्य चेंज कर सकता है इसीलिए लोग आशा करते हैं कि वैष्णव उन पर हाथ रखे या दर्शन दे या कोई आशीर्वाद दे दे वो सफल हो जाता है अगर उसकी भक्ति है तो भक्ति की शक्ति होती है। प्राय: पहले लोग ब्राह्मणों से डरते थे। ऋषि ने बोल दिया तो बाली सावधान है कि यहां एंट्री नहीं करेगा अब और एक और बात सुनिए बहुत आनंद की सुग्रीव जी ने देखा कि दो राजकुमार आ रहे हैं और राम लक्ष्मण सूर्य की तरह चमक रहे थे वह कोई प्रकाश सा छा रहा है और प्रकृति में कोई आनंद का वातावरण अनुभव हो रहा है लेकिन डर का, जो वह होता है ना कि जला हुआ छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है सुग्रीव हमेशा टेंशन में घर में रहता था कि वह कहीं आ तो नहीं गया , वह तो नहीं आ सकता , किसी और को तो भेज सकता है। इसीलिए उन्होंने कहा कि हनुमान जी कृपा करके आप चेक करिए यह दोनों कोई मायावी या कोई रूप बदलकर या बाली के भेजे हुए तो नहीं है ना ?आप किस को चेक करें और राम लक्ष्मण दोनों आ रहे थे इसीलिए हनुमान जी बात मानकर उसका काम करने के लिए गए राम लक्ष्मण से मिलने, राम लक्ष्मण दोनों आ रहे थे इसीलिए हनुमान जी कोई रूप बदल के या फिर बाली के भेजे हुए तो नहीं है आप इसको चेक करिए और राम लक्ष्मण दोनों आ रहे थे। इसीलिए हनुमान जी सुग्रीव की बात मानकर उसका काम करने के लिए गए राम लक्ष्मण से मिलने, यह दोनों क्षत्रिय है , लेकिन है किस वेश में ?तपस्वी के वेश में लेकिन फिर भी क्षत्रिय के लक्षण शरीर से प्रकट हो रहे हैं। महापुरुष के 32 लक्षण और दूसरा धनुष और तीर साथ में, तो पता चलता है कि क्षत्रिय वेश दूर से दिख रहा है। सारा दूर से समझ में आ जाता है ना , अब देखिए हम इस बात से थोड़ा सा किष्किंधा कांड से ,बालकांड की स्मृति लेते हैं ,गोस्वामी जी ने लिखा है हम भक्तों की साधना में बहुत जरूरी है , इसीलिए इस बात को जानना हुआ, क्या ? की राम लक्ष्मण भगवान हैं मायावी नहीं, असुर नहीं है , साधु है , भला करने वाले हैं परोपकारी हैं करुणा के सागर हैं । सुग्रीव भगवान को नहीं समझ पा रहा राम लक्ष्मण को, भगवान को जानने के लिए, समझने के लिए किसको भेज रहे हैं हनुमान को और राम लक्ष्मण क्या हैं ?सीता को ढूंढ रहे हैं और रो रहे हैं तपस्वी हैं और आपने बाल कांड को, संतो से सुना होगा , उसमें शिव जी की कथा आती है। उसमें क्या वर्णन है की राम लक्ष्मण ढूंढ रहे हैं। कथा सुनकर आ रहे थे शिव जी और नंदीश्वर पर पार्वती जी बैठी थी, शिव जी ने दंडवत किया राम जी को, जिनकी कथा सुनकर आ रहे हैं , उनको दंडवत किया लेकिन पार्वती जी ने नहीं किया उन्होंने कहा कि आप जगदीश्वर हो, महादेव हो, पूरी दुनिया आपको प्रणाम करती है, कैलाश से मैं सबको देखती हूं और आप यह राजा जैसे लड़के को प्रणाम कर रहे हो और वह भी इतना पागल कि वह पक्षियों को पूछ रहा है पत्थरों को पूछ रहा है, इतना पागल दीवाना तो कलयुग में भी कोई नहीं होगा ,पत्थर को पूछे ,कम से कम और आप उनके सामने प्रणाम कर रहे हैं ?शिवजी ने कहा कि यह अपनी लीला कर रहे हैं कथा नहीं सुनी तुमने, मैं कथा में तो सो गई थी। जो कथा में सोता है वह कृष्ण को नहीं समझ सकता इसीलिए आप भक्तगण ध्यान दीजिए दो बातों का, कथा में निद्रा नहीं लेना और कथा समाप्त हो जाए फिर किसी की निंदा नहीं करना और हम दोनों करते हैं बढ़िया तरीके से इसीलिए वहीं के वहीं हैं। कथा में निद्रा और कथा के बाहर यह भक्त, जिसने यह किया वह किया निंदा और कुछ लोग तो जिंदा ही है निंदा करने के लिए , जब तक वह दो 5 लोगों की निंदा नहीं कर लेते तब तक प्रसाद नहीं पचता उन लोगों को, ऐसे लोगों को, भक्तों को दूर से प्रणाम। कथा में निद्रा नहीं लेना और कथा के बाद निंदा नहीं करना कृष्ण प्रगति में कोई रोक नहीं सकता आपको। अगर इसको सावधान होकर सुन लीजिए , लेकिन यह कथा में सो गई थी इसीलिए भगवान को नहीं समझ पा रही और देखिए एक है यहां पर सुग्रीव और दोनों के पास एक एक व्यक्ति एक के पास शंकर है और एक के पास हनुमान और हनुमान कौन है ? रुद्र अवतार, राम सेवा में हनुमान बन कर आए हैं। *शंकर सुवन केसरी नंदन तेज प्रताप महा जग वंदन। विद्यावान गुण अति चतुर राम काज करिबे को आतुर।* चालीसा में देखिए सती और सुग्रीव हम लोगों में से भी कुछ सती और सुग्रीव हैं हमने पहले ही उपमा दी है , हमारी तुलना कीजिए अब इनके पास शंकर हैं और उनके पास हनुमान अब देखिए शंकर राम जी को समझ रहे हैं हनुमान भी समझ रहे हैं लेकिन सुग्रीव नहीं समझ रहे सती भी नहीं समझ रही लेकिन फिर भी सती और सुग्रीव में एक अंतर है, की सती स्वयं परीक्षा लेने गई और इसने हनुमान जी को भेजा ,सती, शंकर जी इसलिए नहीं लाए देखिए हमारा भी यही प्रॉब्लम है सती वाला ,क्या ? कि खुद भगवान को जानते नहीं और जो भगवान को जानते हैं भगवान को मानते हैं ऐसे वैष्णव गुरु को हम मानते नहीं , ऐसे में हमारा उद्धार हो सकता है क्या ? एक तो हम भगवान को मिले नहीं ,देखे नहीं ,जानते नहीं और जो भगवान को जानता है, भगवान को मानता है, भगवान के धाम से आया है, श्रील प्रभुपाद और वह बता रहे हैं भगवान के विषय में हमारे उद्धार के लिए वरना हम तो मानते ही नहीं , लोग क्या करेंगे? मरेंगे और क्या होगा, फिर कौन बचा सकता है इन लोगों को और कुछ लोग अपनी बुद्धि को ही श्रेष्ठ मानते हैं। जैसे कि एक दृष्टांत है की एक गुरुकुल में ,एक बाप अपने बच्चे को, छोड़ने आया, बहुत सारे बच्चे पढ़ रहे थे और आचार्य पढ़ा रहे थे , बाप कहता है देखो मेरा बेटा है सो ब्रिलियंट बहुत बुद्धिमान है। 16 गुण संपन्न है 16 आना है , सब में होशियार है आपको बस थोड़ा ही बोलना पड़ेगा इसको सब समझ जाएगा, एक नंबर की शक्ति है याद करने की इसको, गुरुजी ने कहा बस करिए, अब रख दीजिए, बस हो गया अब हम पढ़ाएंगे व्यक्ति बोला नहीं, आप देखिए तो, आप सीरियसली हमारी बात को सुनिए, वह हमारा बेटा है बढ़िया से, आप देखना,1 साल के बाद वह वापस, गुरुकुल में मिलने आते हैं। 1 साल में आकर बाप उसी होशियारी में, गुरूजी मेरा बेटा बताओ कैसा ? गुरुजी, ने कहा आपने जैसा कहा था ,16 गुण संपन्न 16 आना संपन्न वास्तव में आपने सत्य कहा था बिल्कुल ऐसा ही है। लेकिन बस 2 गुण कम है। 98 तो है मेरे बेटे में, कम हो ही नहीं सकते फिर भी कौन से गुण कम है मुझे बताओ, उसने कहा देखो, एक तो एक नंबर का गधा मूर्ख है और दूसरा हमारी सुनता नहीं, बस यह दो दुर्गुण है। बाकी सब गुण ही गुण हैं। अब बचा क्या बताओ, एक तो मूर्ख बुद्धि है इसको और दूसरा हमारा कुछ भी मानता नहीं ,बस यह दो बातों को छोड़कर खाने में होशियार ,सोने में होशियार ,बाकी तो सब बढ़िया सा करता है ,अब समझ में आ रहा है वह कौन है ,वह हम ही हैं। एक तो है नहीं उतना कुछ और दूसरा जो गुरु जन वैष्णव् लोग कहते हैं हम मानते नहीं, ऐसा उद्धार हो सकता है क्या ? इसीलिए देखो सती का क्या हाल है लेकिन यहां सुग्रीव जी ने एक सौभाग्य कर दिया कि हनुमान को भेज दिया, अच्छा एक प्रश्न है भक्तों को डायरेक्ट हनुमान जी बाहर से बंदर स्वरूप नहीं गए विप्र रूप लेकर गए, ब्राह्मण का रूप लेकर गए, हनुमान जी का भी एक स्टाइल है , उस विभीषण से मिलेंगे सुंदरकांड में , उत्तरकांड आप पढ़ेंगे तो भरत जी को मैसेज देने के लिए रामजी भेजेंगे ,एक विप्र बनके, हनुमान जी तो हैं ही ब्राह्मण के संस्कार वही बनेंगे और क्या ब्रह्म जानाति , तो इसमें कोई क्या दिक्कत है ,लेकिन ब्राह्मण रूप क्यों लिया ? इसका भाई यह कारण भी है वाल्मीकि जी लिखते हैं कि भिक्षु रुप धरि, भिक्षु का रूप धर के हनुमान जी गए हनुमान जी ने सोचा की बटु ब्रह्मचारी का रूप धर के जाऊंगा तो सबको सामने अगर क्षत्रिय होगा तो , तपस्वी सही में होगा तो, या कोई असुर या कोई मायावी भी होगा तो, कम से कम ब्राह्मण ब्रह्मचारी को देखकर व्यक्ति रिस्पेक्ट करता है। क्योंकि वह निरपेक्ष होता है ब्राह्मण जो उसमें भी ब्रह्मचारी जो पड़ रहा है छोटा बच्चा है तो उनको देखकर किसी को भी दया आती है या आनंद मिलता है और कुछ उटपटांग बच्चा पूछ भी ले तो तो बुरा भी नहीं लगता, और बड़ा व्यक्ति कोई अविवेक कर दे तो कोई व्यक्ति क्या पूछ रहा है , ब्राह्मण है ब्रह्मचारी है वास्तव में ब्रह्मचारी थे और विप्र रूप लिया है , तो मैं कोई भी प्रश्न करूंगा इनकी परीक्षा ले लूंगा या कोई और भी बात, तो चिंता की कोई बात नहीं है अगर वह कुछ इधर उधर होंगे तो विरोध नहीं करेंगे ,क्योंकि ब्राह्मण बच्चे को देखकर सुख ही मिलता है दया ही आती है, कुछ देते ही हैं ,कुछ हेल्प करने को ही मन प्राय: सबका करता है। और दूसरा अगर भगवान है या कोई ज्ञानी है तो ब्राह्मण को देखकर तो रिस्पेक्ट करता है ना, भला आप किसी कास्ट के क्यों ना हो लेकिन कोई वेद अगर आप ही जानते हो तो प्रणाम करेगा यह है ही नमो: ब्राह्मण देवाय, अच्छा तो बड़ी लंबी कथा है समय नहीं है हमारे पास, राम क्या बोले हनुमान क्या बोले, कौन परिचय कौन हो , फिर यह अपना परिचय देते हैं। इनको पूछते हैं कि आप कौन हो तो यह कहते हैं हम दशरथ के पुत्र राम लक्ष्मण तब वह समझ गए कि यह तो हमारे इष्ट आराध्य हैं। हनुमान जी साष्टांग दंडवत प्रणाम करते हैं। राम और हनुमान का मधुर मिलन होता है। बड़ा प्रेम भक्त और भगवान का आनंद देने वाला यह घटना है। आप लोग किष्किंधा कांड सुन रहे हैं सभी वैष्णव से मैं विनती करता हूं कि भगवान राम की रामनवमी आ रही है। आप आधा पौना घंटा यह अलग-अलग वैष्णव से , गुरु महाराज से हम सुन रहे हैं लेकिन यह तो केवल भाइयों, बातें हैं ओवरव्यू चल रहा है। आप सब भक्तों को समय निकाल कर खुद भी पूरा यह सब चिंतन रामायण का चिंतन मनन करना चाहिए। ताकि रोम रोम में राम रस हमें प्राप्त हो क्योंकि समय इतना ही है ,कोई कैसे इतना बताएगा ,लेकिन आपके पास ग्रंथ है रामायण है तो और गहराई से इसे समझ सकते हैं। इन बातों को और देखिए ,हनुमान जी गुरु का काम कर रहे हैं , वही ले जाएंगे अब सुग्रीव के पास, जीवन में जब हनुमान आते हैं तभी तभी राम आते हैं। जब जीवन में गुरु आते हैं तभी गोविंद आते हैं और गुरु का काम है कि उनके दोषों को शुद्ध करके भगवान से हमें मिलाएं, हनुमान जी ने यही किया ,सुग्रीव के गुण बताएं, बात बताइए और मिलवा दिया और सुग्रीव एक काम में बड़े होशियार थे ,किसमें ?भागने में, लेकिन सुग्रीव भागे हैं ,अभागे नहीं हैं। क्योंकि उनके पास हनुमान हैं जिसके पास वैष्णव संग है ,वह सबसे सौभाग्यशाली हैं,वही भगवान को खींच कर ले कर आएगा, उसके पास हनुमान हैं उसके पास राम आने वाले हैं राम आ जाएंगे तो फिर क्या बाकी रह जाएगा बताओ, कुछ भी नहीं रहेगा। सुग्रीव के चरित्र से आप लोग अच्छे तरीके से परिचित हैं लेकिन हनुमान जी ने एक बड़ी बुद्धि लगाई बोले सरकार एक प्रार्थना है , बोले क्या? आप हमारी पीठ पर बैठ जाइए बाल्मीकि जी ने भी संकेत किया था कि हनुमान जी ने कहा कि अब नहीं चलने दूंगा अब आप दोनों को पीठ पर चढ़ा लूंगा, क्यों, वहां पर देखो आपने कई पोस्टर देखे होंगे कि हनुमान जी ऐसे जा रहे हैं और दोनों कंधे पर बैठे हैं। बाल्मीकि जी ने गोस्वामी तुलसी गीत लिखा है ठीक है कॉमन है क्योंकि आगे गोद में भी बैठा सकते हैं ले जा सकते हैं हनुमान जी बड़े वीर हैं, हनुमान जी बुद्धिमान हैं उन्होंने कहा कि गोद में उठा लूंगा उससे अच्छा है कि पीठ पर बैठा लू , कारण है , क्योंकि मां या कोई अपने बेटे को गोद में उठाती है तो जिम्मेदारी किसकी रहती है उठाने वाले की लेकिन अगर पीठ पर कोई बैठता है तो जिम्मेवारी किसकी होती है बैठने वाले की कि वह संभाल कर बैठे नहीं तो गिर जाएगा अगर हम किसी को आगे से पकड़े तो हमारी जिम्मेदारी है लग ना जाए, गिर ना जाए ,लेकिन जो ऊपर चढ़ाया है पीठ पर तो किसकी जिम्मेदारी है बैठने वालों की, भगवान को बिठाया तो हनुमान को बुद्धिमान कहते हैं। अब देखो प्रभु की फ्लाइट टेक ऑफ करेगा, आपका काम है पकड़े रहना, अब इधर उधर का देखें तो हनुमान जी ऐसे कह रहे हैं मतलब मुझे पकड़कर रखना भगवान हमें पकड़ कर रखेंगे, फिर चिंता नहीं होगी और सारी तकलीफ कहां है ,जानते हैं ना, भेजें में, भेजा तो भेजा लेकिन भेजा नहीं भेजा, हम लोगों को जो भेजा दिया है, ब्रेन उसी में तो गड़बड़ है। बुद्धि में तो क्या करें, लक्ष्मण जी राम जी आपको कोई डर है ना, मैं उड़ रहा हूं आप एक काम करिए कि मेरे सर को पकड़ लीजिए। हनुमान जी मैं सोचा कि गुरु लक्ष्मण अनंत से और राम का हाथ सर पर आ जाए सारा बुद्धि ब्रेनवाश क्लीन हो जाऊंगा। मतलब पकड़ कर रखेंगे मुझे उनके माथे पर सर है तो मुझे क्या डर है। हनुमान जी इस तरह लक्ष्मण और राम को लेके जा रहे हैं। बस यही छवि आज के दिन में भक्त लोग जीवन में रखिए और प्रेरणा लीजिए कि हमारे सर पर भी गुरु का हाथ , वैष्णवो का हाथ, उनका साथ हो और भगवान का हाथ, भगवान का साथ, अपने हाथों में मिल जाएगा तो इस तरह हनुमान जी सुग्रीव से मिलाते हैं ,मित्रता कराते हैं और फिर बड़ी लंबी बातें हैं , किष्किंधा कांड की और अंत में सुग्रीव सभी को सेवा में लगाते हैं। आप लोगों ने मुझे किष्किंधा कांड की लीलाओं का स्मरण करने का अवसर दिया उसके लिए धन्यवाद। हरे कृष्ण

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