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*जप चर्चा*
*परम् पूजनीय लोकनाथ स्वामी महाराज (गुरु महाराज) द्वारा*
*पंढरपुर धाम से*
*दिनांक 02.04.2022*
हरे कृष्ण!!!
*ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया । चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।।*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि।*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि।*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि।*
*श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥२९॥*
( श्रीरामरक्षास्रोतम्)
अर्थ:- मैं एकाग्र मनसे श्रीरामचंद्रजी के चरणों का स्मरण और वाणी से गुणगान करता हूं, वाणी द्धारा और पूरी श्रद्धाके साथ भगवान् रामचन्द्र के चरणोंको प्रणाम करता हुआ मैं उनके चरणोंकी शरण लेता हूँ।
जय श्री राम!!!
इस ज़ूम मंदिर के संचालक पद्ममाली प्रभु की इच्छा व योजना से आज से राम कथा प्रारंभ हो रही है। हरिबोल। आज का दिन वैसे विशेष दिन है। आज नए वर्ष का शुभारंभ हो रहा है, चैत्र मास प्रतिपदा का प्रारंभ हो रहा है। जहां मैं बैठा हूं, वहां से देख ही रहा हूं कि सूर्य नारायण उदित हो रहे हैं। जिस सूर्यवंश में श्रीराम प्रकट हुए, वह सूर्य भी अभी-अभी प्रकट हो रहे हैं।
हरि बोल! नया वर्ष है तो आप सभी को नये वर्ष की शुभकामनाएं । ग्रीटिंग द न्यू ईयर। हमारा नया वर्ष एक जनवरी से नहीं होता है, हम लोग पाश्चात्य देश की नकल करते हैं और हम लोग हैप्पी न्यू ईयर इत्यादि कहते हैं लेकिन सनातन धर्म के अनुयायियों का यदि कोई नया वर्ष है, तो वह नया वर्ष आज से इस चैत्र मास से प्रारंभ हो रहा है। उसी नए वर्ष के साथ एक नए ऋतु का भी जो सभी ऋतुओं में श्रेष्ठ है
*बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम् मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः ||*
(श्रीमद भगवद्गीता १०.३५ )
अनुवाद:-
मैं सामवेद के गीतों में बृहत्साम हूँ और छन्दों में गायत्री हूँ | समस्त महीनों में मैं मार्गशीर्ष (अगहन) तथा समस्त ऋतुओं में फूल खिलने वाली वसन्त ऋतु हूँ।
वसंत ऋतु भी आज से प्रारंभ हो रही है। हरि बोल।
श्री राम का जन्म दिवस तो आज नहीं है। नवमी के दिन श्रीराम प्रकट होंगे या प्रकट हुए थे। वैसे वह मंगलवार का दिन था, पता नहीं, इस वर्ष कौन सा वार नवमी के दिन होगा? यह सब इतिहास तो ही है। रामायण इतिहास है, जिसका अर्थ है कि यह सारी घटित घटनाएं हैं। एक राजा था फिर एक रानी थी। राजा श्रीराम थे और रानी सीता महारानी थी। सीता महारानी की जय!
ऐसी कहानी अति प्राचीन है। न तो राम काल्पनिक है, ना तो रामायण, काल्पनिक किया या मनोधर्म की बात है। ऐसी बात है ही नहीं। राम सत्य हैं।
राम नाम सत्य है। उसको तब याद करते हैं, जब कोई चल बसता है।
हमारे श्रीकृष्ण चैतन्य स्वामी महाराज भी कह रहे हैं- हां, तब तो याद आता ही है। राम नाम सत्य है। राम नाम सत्य है। इस राम के नाम को सदैव राम..राम..
*राम रमेति रमेति रामे राम मनोरमे। सहस्र-नामभिस तुल्यं राम-नाम वरणने।।*
अनुवाद-
'हे वराणनी, मैं राम, राम, राम के पवित्र नाम का जप करता हूं और इस तरह इस सुंदर ध्वनि का आनंद लेता हूं। रामचंद्र का यह पवित्र नाम भगवान विष्णु के एक हजार पवित्र नामों के बराबर है।'
शिव जी ने भी ऐसा मनोरमा (पार्वती) को कहा था। मैं राम राम राम राम ... राम करता हूं। मैं राम में रमता हूं। अहम रामे रमे। हे मनोरमे ! वे मनोरमा को संबोधन करते हैं। वे इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि वह सदैव राम में रमे रहते हैं।
राम राम राम कहते हुए या *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* एक बार श्रील प्रभुपाद से पूछा गया कि यह हरे राम जो आप कहते हो, क्या ये श्रीराम है? तब प्रभुपाद ने कहा- हां , हां। यह हरे राम, श्रीराम ही हैं, ऐसा श्रील प्रभुपाद कहते थे। ऐसी मान्यता है कि जो हरे राम में राम है , वो श्रीराम हैं तो कोई दिक्कत नहीं है लेकिन फिर हरे का अर्थ सीता हो जाएगा। सीता राम। हरे राम मतलब सीताराम। जय श्रीराम! जय श्रीराम! हो गया काम।
ब्रह्मा के एक दिन में जिसे हम कल्प कहते हैं, ब्रह्मा के एक दिन के जो वैवस्वत मनु हैं, जो कि सातवें मनु हैं। ब्रह्म के 28 वें चतुर्युग के त्रेता युग में श्रीराम अयोध्या धाम में हुए। अयोध्या धाम की जय! जिस अयोध्या को कोई जीत नहीं सकता इसलिए अ - योद्धा। जिसे युद्ध में कोई जीत नहीं सकता। जिस राजधानी को, इस स्थान को, ना तो वहां के राजा को... जीत नहीं सकता। इसलिए इसका नाम है अयोध्या! अयोध्या परम पावनी सरयू नदी के तट पर स्थित है। वहां केवल राम ही नहीं हैं। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न प्रकट हुए हैं, वे सभी विष्णु तत्व हैं। रामनवमी के दिन आपको बताएंगे कि यह रामनवमी का उत्सव नहीं है। यह भरत नवमी भी है, शत्रुघ्न नवमी भी है और लक्ष्मण नवमी भी है। इसको याद रखिएगा। यह सब भगवान हैं। अयोध्या में प्रकट होकर भगवान अब...
*भयं त्यागाता भद्रम वो हितार्थं युधि रावणम् | सा पुत्र पुत्रम् सा अमात्यं सा मित्र जनता बंधवं ||*
*हत्वा कृष्राम दुरधरम देवा शं भयवाहम् |दश वर्ण सहस्राणी दास वर्ण शतानी च || वात्स्यामी मानुषे लोके पालनं पृध्वीम इमाम* |
अर्थ:-
डर को दूर करो, आप पर सुरक्षा हो, उस क्रूर और दुष्ट दिमाग वाले रावण को नष्ट करने पर, जो देवताओं और ऋषियों के साथ-साथ अपने बेटों, पोते, दोस्तों, चचेरे भाइयों और रिश्तेदारों, मंत्रियों और बलों के लिए भी युद्ध में भयानक हो गया था। तेरा कल्याण, तब मैं ग्यारह हजार वर्षों तक इस पृथ्वी पर शासन करने वाले मानव संसार में निवास करूंगा।" इस प्रकार विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया।
श्री राम इस धरातल पर कुल 11000 वर्षों तक अपनी लीलाओं का प्रदर्शन करेंगे। जब राम की लीला संपन्न हो रही थी, एक समय की बात है- नारायण नारायण, जय श्रीराम कहते, गाते हुए नारद जी वाल्मीकि के आश्रम में पहुंच जाते हैं और वाल्मीकि को राम की संक्षिप्त में कथा सुनाते हैं। रामायण के बालकांड का जो पहला सर्ग है, उसे मिलाकर रामायण में कुछ 500 सर्ग हैं। 24000 श्लोक हैं। सात अलग-अलग कांड हैं। भागवतं में स्कन्ध होते हैं, रामायण में कांड होते हैं। रामायण का जो पहला कांड है- बाल कांड, उसका जो पहला सर्ग है उसकी संक्षिप्त में कथा नारद मुनि सुनाते हैं, उसे संक्षिप्त रामायण भी कहते हैं। कथा सुनाकर नारद मुनि प्रस्थान करते हैं उसके उपरांत वाल्मीकि जी तमसा नदी के तट पर विचरण कर रहे थे। तब उन्होंने एक दृश्य देखा, उन्होंने एक क्रौंच नामक पक्षी का वध करते हुए एक शिकारी को देखा। उस दृश्य को देखकर बाल्मीकि जी बड़े व्याकुल और शोकाकुल हुए। वह शोक कर रहे थे, निकल गया उनके मुख से श्लोक। जो उन्होंने कहा, उनको बड़ा अचरज हुआ कि मैंने पहले तो कभी श्लोक नहीं कहा था। पहली बार, मैंने जो श्लोक कहा- यह कैसे संभव हुआ। तब उन्होंने तमसा नदी में स्नान किया। उनके साथ उनके शिष्य भरद्वाज भी साथ में थे। जब अपने आश्रम में लौटते हैं, तब वहां साक्षात ब्रह्मा जी अपने वाहन हंस पर विराजमान होकर वहां पधारते हैं। ब्रह्मा जी ने कहा कि मेरी प्रेरणा से ही तो तुमने वह श्लोक कहा और मैं अब चाहता हूं कि तुम बहुत सारे श्लोकों की रचना करो अर्थात तुम रामायण के रचयिता बनो।
*मत छंदत एव ते ब्राह्मण प्रवित्ते अयम सरस्वती | रामस्य चरितं कत्सनाम कुरु त्वम् इसत्तम |*
( वाल्मीकि रामायण बाल कांड 1-2-31)
अर्थ:-
"हे ब्राह्मण, आपकी वह वाणी मेरी इच्छा से ही निकली, इसलिए हे प्रख्यात ऋषि, आप राम की कथा को उसकी संपूर्णता में प्रस्तुत करेंगे ।
उन्होंने ऐसा आदेश भी दिया, कुरु अर्थात क्या करो। राम के चरित्र की रचना करो। राम का चरित्र कैसा होगा ? जब तुम राम का चरित्र लिखोगे
*यवत स्थितिंति गिरयं सरितां च महतले । तवत रामायण कथा लोकेशु प्रचार्यति ।।*
( वाल्मीकि रामायण बाल कांड 1-2-36)
अर्थ:-
"जब तक पहाड़ और नदियाँ पृथ्वी की सतह पर फलती-फूलती है, तब तक इस दुनिया में रामायण की कथा फलती-फूलती रहेगी।
जब तक पर्वत और सागर रहेंगे, तब तक इस संसार, ब्रह्मांड भर में राम की कथा का प्रचार होता रहेगा। ऐसा भी ब्रह्मा जी ने कहा। (उन्होंने कई सारी बातें कहीं लेकिन अभी संक्षिप्त में ही कहा जा सकता है क्योंकि यहां समय की पाबंदी है। ) तब वाल्मीकि मुनि अपने आश्रम में जो उत्तर भारत में गंगा के तट पर है... (हम लोग वहां गए हैं। मैं कई बार गया हूं,जहां से सीता अंतर्धान हुई थी।) वैसे उन दिनों में जब बाल्मीकि जी द्वारा रामायण की रचना हो रही थी, सीता उन्हीं के आश्रम में रहा करती थी। राम का वनवास तो एक ही बार हुआ लेकिन सीता जी का वनवास दो बार हुआ। जब द्वितीय बार सीता वनवास गई तब वे वाल्मीकि मुनि के आश्रम में रहती थी। उन्हें वहां पहुंचाया गया था, लक्ष्मण को ऐसा कार्य करना पड़ा, वे ऐसा करना नहीं चाहते थे। चूंकि वे राम के अनुज थे अथवा छोटे भाई थे, वे राम के आदेश को कैसे टाल सकते थे। इसलिए उन्होंने संकल्प भी किया था कि अगली बार जब मैं प्रकट होऊंगा, मैं छोटा भाई नहीं बनूंगा, मैं बड़ा भाई बनूंगा, मैं दादा बनूंगा। जय बलराम ! रामलीला के राम- लक्ष्मण, द्वापर युग के कृष्ण बलराम और कलयुग के गौर निताई एक ही हैं। बलराम बड़े भाई हुए, वाल्मीकि मुनि को उनके आश्रम में ब्रह्मा जी ने ऐसी शक्ति और प्रेरणा प्रदान की थी, उन्होंने रामायण की रचना की थी। यह रस भरा रस रसीला ग्रंथ है, इसमें कई सारे रस हैं इसलिए इसे महाकाव्य भी कहते हैं। इसमें कई सारे रस हैं- करुणा रस है, अद्भुत रस है, वीर रस, हास्य रस है। जितने अधिक काव्य या वांग्मय महान बनता है, रामायण महान भी है। वैसे सभी काव्यों में और ग्रंथों में अति प्राचीन अगर कोई ग्रंथ है तो वह रामायण ही है। जय श्रीराम! वैसे यह रामायण, राम ही है।
*कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥३४॥*
अर्थ:-
मैं कवितामयी डाली पर बैठकर, मधुर अक्षरोंवाले ‘राम-राम’ के मधुर नामको कूजते हुए वाल्मीकि रुपी कोयल की वंदना करता हूं ।
वाल्मीकि की तुलना कोकिल से की है जो कु कु कु करती है वसंत ऋतु है। उसका जो गान है, बड़ा मधुर है। अपनी ही रामायण कविता रूपी वृक्ष है, उसी की शाखा पर बैठकर इस कोकिल वाल्मीकि ने मधुरं मधुराक्षरम्... गाया। एक एक अक्षर रामायण का मधुर है और राम से भरपूर है। यह रामायण हमारे देश या भारतवर्ष की एक संपत्ति है। प्रभुपाद को इंग्लैंड में किसी ने कहा था कि हे स्वामी जी, आप हमारे देश में क्यों आए हो ? तब प्रभुपाद ने कहा था, (वह बात अलग है वैसे लेकिन... ) आप भी हमारे देश से आए थे और हमारे देश के जिसे आपने विशेष या मूल्यवान संपत्ति समझा, उसको आप लूट कर ले गए लेकिन हमारे देश की जो असली संपत्ति है, उसको आपने ना ही पहचाना और ना ही उसकी चोरी की अथवा लूटा। मैं उस संपत्ति को देने आया हूं। मैं आपको रामायण देने आया हूं, मैं महाभारत देने आया हूं, गीता, भागवत देने आया हूं। श्रील प्रभुपाद ने भी समझा कि यह रामायण महाभारत आदि ग्रंथ हमारे देश की संपत्ति है। वाल्मीकि मुनि ने जब इस ग्रंथ की रचना का कार्य पूरा किया, तब वह सोच रहे थे कि रचना तो मैंने की पर इस ग्रंथ रामायण का प्रचार प्रसार कौन करेगा? ऐसा वह सोच ही रहे थे तभी 'मे वी कम इन सर' क्या हम आ सकते हैं। द्वार पर दो सुकुमार लव और कुश थे। जो उन दिनों में वहां रहते थे। सीता ने लव और कुश को वाल्मीकि मुनि के आश्रम में ही जन्म दिया था। सीता के अलावा वाल्मीकि भी लव और कुश का लालन पालन कर रहे थे। जब उनको द्वार पर देखा तब वाल्मीकि के मन में विचार आया कि रामायण का प्रचार और प्रसार लव और कुश करेंगे। वैसे ही श्रील व्यास देवजी ने भागवत की रचना की थी, इन दोनों में एक समानता है। वहां पर भी वाल्मीकि के गुरु महाराज नारद मुनि है। श्रील व्यास देव के भी गुरु नारद मुनि ही हैं। नारद मुनि ने श्रील व्यास देव को भी भागवतं के संबंध में या भागवत का महात्म्य समझाया बुझाया। इसके उपरांत श्री व्यास देव ने भागवत की रचना की। वे भी यही सोच रहे थे कि भागवत का प्रचार कौन करेगा। मैं तो लेखक हूं, वक्ता कौन बनेगा? उन्होंने शुकदेव गोस्वामी को भागवत पढ़ाया, सिखाया, समझाया और शुकदेव गोस्वामी को तैयार किया। सर्वप्रथम भागवत की कथा करने वाले शुक मुनि ही हो गए। शुकदेव गोस्वामी की जय!
यहां रामायण की रचना करने वाले वाल्मीकि मुनि थे। वे जब सोच रहे थे इसको पढ़ाएगा कौन? इसका प्रसार कौन करेगा? लव और कुश आ गए, उन्होंने उनको ट्रेंड किया।
वे दोनों वीणा बजाते हुए फटाफट प्रक्षिशित हो गए। हरि! हरि! (सोते हुए नहीं अपितु जगते हुए..)
*तौ तु गान्धर्वतत्त्वज्ञौ स्थानमूर्च्छनकोविदौ |भ्रातरौ स्वरसम्पन्नौ गन्धर्वाविव रुपिणौ ||*
( वाल्मीकि रामायण)
अर्थ:
वे संगीत की कला से परिचित हैं और पिच के साथ कुशल हैं और अपनी आवाज को रोकते हैं और उन दोनों भाइयों की न केवल एक समृद्ध आवाज है, बल्कि वे आकाशीय गायकों की तरह भी दिखते हैं।
जैसे गंधर्व गायक होते हैं, वैसे ही लव और कुश गंधर्व जैसे गायक थे। गायन की कला में निपुण थे, भ्रातरौ स्वरसम्पन्नौ अर्थात स्वर, लय,बद्ध, छंद। रामायण तो छंद बद्ध ही हैं, गुरु महाराज वाल्मीकि मुनि से उन्होंने लयबद्ध गायन करना सीखा। अब लव और कुश रामायण की संगीतमय कथा करने लगे। जहां पर भी उनकी कथा की घोषणा होती कि आज यहां पर कथा होनी है। कथाकार लव और कुश यहां कथा करेंगे, तब वहां कई सारे ऋषि मुनि रामायण की कथा लव कुश के मुखारविंद से सुनने के लिए एकत्रित हो जाते। यह कथाकार कम उम्र के बाल व्यास थे, यह बालक ही थे। बालक लव और कुश की कथा.... वैसे जब बालक कथा करते हैं तो कथा को लोग और भी पसंद करते हैं, उसकी सराहना होती है। बालक होते हुए कथा कर रहा है, गायन कर रहा है। जिस कथा को वाल्मीकि जी ने लिखा था, उसी कथा को वे हुबहू प्रस्तुत कर रहे थे। वहां बड़ी संख्या में ऋषि मुनि एकत्रित हुआ करते थे। जब वे कथा को ध्यानपूर्वक सुनते, ध्यानपूर्वक... कानों से सुन कर उस कथा को हृदय तक पहुंचाते। (कुडन्ति कुडन्ति जायरे.. समझते हो? ) एक कान से अंदर कथा और दूसरे कान से कथा बाहर। वैसे एक कान से कथा को अंदर जाने ही नहीं देते क्योंकि ध्यान ही नही हैं। सोये है या ध्यान कहीं और पर है तो एक कान से भी प्रवेश नहीं करती। कथा जहां है, वहीं रह जाती है, श्रवण तो होता ही नहीं। कथा जब होती है उसको श्रवणोत्सव कहते हैं। कैसा उत्सव? श्रवण उत्सव, कानों के लिए उत्सव। जैसे जगन्नाथपुरी में आंखों के लिए नेत्रोत्सव होता है जब आंखें भगवान के सौंदर्य का पान करती है, तब आंखों के लिए उत्सव होता है। वैसे जिह्वा उत्सव हम जानते हैं, जब महाप्रसादे गोविंदे ... तब उत्सव ही उत्सव होता है। यदि उसमें सभी हैं ...खीर है, पनीर है तो फिर क्या कहना... लेकिन ऋषि मुनि वनों में.. यहां वहां कथा होती थी, उनका उत्सव हुआ करता था। होगा भी तो क्यों नहीं? उनका अनुभव ऐसा रहता था कि यह लव और कुश दिखने में भी राम जैसे दिखते थे (यहां लिखा है वैसे) बिंब-प्रतिबिंब, बिंब का प्रतिबिंब होता है। बिंब-प्रतिबिंब एक दूसरे से मिलते जुलते होते हैं। ये यह दोनों राम जैसे दिखते थे, अब तक किसी को राम के कनेक्शन का लव कुश के साथ का पता नहीं था। यही बात थी, जब लव कुश से कथा सुनते तब उनका अनुभव यह रहता कि राम की लीला को प्रत्यक्ष देख रहे हैं।
लव कुश राम की लीला को प्रत्यक्ष दिखाते, दर्शाते। उनके ऑडियो का बन जाता वीडियो कभी-कभी राधा गोविंद महाराज की कथा... कई ऐसा कमेंट करते हैं कि जब वे कथा सुनाते हैं, तब लगता है कि जिस कथा का वे वर्णन करते हैं, मानो वह कथा वहां संपन्न हो रही है। निश्चित ही ऐसा अनुभव ऋषि मुनियों का हुआ करता था जब वे लव कुश से राम की कथा सुनते थे। जब वे कथा सुन रहे थे, उनको रोमांच हो रहा था, आंखों से...
*प्रेमाञ्जनच्छुरितभक्तिविलोचनेन सन्तः सदैव ह्रदयेषु विलोकयन्ति। यं श्यामसुंदरमचिन्तयगुणस्वरूप गोविन्दमादिपुरुषं तमहं भजामि।।*
( ब्रह्म- संहिता श्लोक ५.३८)
अर्थ:- जो स्वयं श्यामसुंदर श्रीकृष्ण हैं, जिनके अनेकानेक अचिन्त्य गुण हैं तथा जिनका शुद्ध भक्त प्रेम के अंजन से रंचित भक्ति के नेत्रों द्वारा अपने अन्तरहृदय में दर्शन करते हैं, उन आदिपुरुष भगवान् गोविंद का मैं भजन करता हूँ।
आंखों में आंसू हैं या कई स्तब्ध हो रहे हैं । संभावना है कि कुछ जमीन पर लोट रहे हैं। जब हम श्रीकृष्ण, श्रीराम, श्रीकृष्ण चैतन्य की कथा सुनते हैं अथवा ध्यानपूर्वक सुनते हैं, यही तो योग है। जीव या आत्मा का परमात्मा या भगवान के साथ मिलन ही कहो या दर्शन कहो या चरण स्पर्श कहो या यथासंभव आलिंगन देना कहो। कथा महोत्सव एक प्रकार से मिलनोत्सव है। जीवात्मा और जितने भी जीवात्मा सुन रहे हैं, उन सब का कथा के माध्यम से मिलन हो रहा है। कथा कौन है? कथा भगवान है। राम की कथा श्रीराम है। अभिन्नत्वा। राम और राम का नाम, राम और राम के गुण, राम और राम की लीला, राम और राम का धाम। यह राम ही हैं। छोड़नी घेला राम... कैसे राम हमको अयोध्या में छोड़कर चले गए? चैन पड़े मुझे ना राम बिना, ना नाही सियाराम...
यह जो भाव है कि राम नहीं है या यह राम वन में गए। हमें यही छोड़कर गए तो उसे उस अवस्था में राम की लीला तो सुनी जा सकती है। जैसे गोपियों ने गोपी गीत गाया, वे खोई हुई थी, कहां है कृष्ण? कहां है कृष्ण? कहां मिलेंगे कृष्ण? मिल नहीं रहे थे। तब वे यमुना के तट पर गई और वहां गोपी गीत का गान गोपियों ने प्रारंभ किया और भगवान की लीलाओं का स्मरण करने लगी। तब कृष्ण प्रकट हो गए। भगवान की लीला और भगवान में जो अभिन्नत्व है। वह अलग अलग नहीं है, राम की लीला भी राम हैं। जहां- जहां रामलीला का श्रवण कीर्तन होता है, वहां वहां राम उपस्थित हो जाते हैं, ऐसी प्रसिद्ध बात तो है ही
*नाहं तिष्ठामी वैकुण्ठे योगिनां हृदयेशु वा। मदभक्ताः यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामी नारद।।*
( पद्म पुराण)
अर्थ:-
"मैं वैकुण्ठ में नहीं हूँ और न ही योगियों के हृदय में हूँ। मैं वहीं रहता हूं जहां मेरे भक्त मेरी गतिविधियों का महिमामंडन करते हैं।" यह समझा जाना चाहिए कि भगवान के सर्वोच्च व्यक्तित्व अपने भक्तों की संगति नहीं छोड़ते हैं।
जहां मेरी कथा का श्रवण कीर्तन होता है, वहां मैं उपस्थित होता हूं।
सब ऋषि-मुनियों का अपना अनुभव है, वे रामायण व रामलीला का श्रवण कर रहे हैं। राम को लीला खेलते हुए वह सारा दृश्य देखते थे। वाह! वाह! क्या बात बढ़िया कथा "और सुनाते जाइए।" ऐसे उदगार हुआ करते थे। तब वे उस कथा के अंत में लव और कुश के पास जाकर उनको आलिंगन देते, उनके बालों को सूंघते, उनको अलग अलग भेंट दे देते। कोई बाल कथा कारों को कोई कमंडलु देता, कोई कोपीन देता, कोई फल देता या कोई जनेऊ दे देता। ऐसा वर्णन है यहां पर कथा वहां पर कथा करते करते लव और कुश अयोध्या पहुंच गए। अब अयोध्या में कथा होने लगी।
राम राम राम सीता राम राम राम श्री राम
*अयोध्या वासी राम राम राम, दशरथ नंदन राम। पतिता पवन जानकी जीवन सीता मोहन राम।।*
*अयोध्या वासी राम राम राम, दशरथ नंदन राम । पतित पवन जानकी जीवन, सीता मोहना राम।।*
*राम राम राम बोलो, राम राम राम जय राम राम राम बोलो, राम राम राम ।।*
जब वे कथा गान करते थे, लोग एकत्रित हो जाते थे। अब अयोध्या के लोग एकत्रित होने लगे, जब वे बैठकर कथा करते थे तब लोग आकर बैठ जाते । लव और कुश जब खड़े होते तब वे भी खड़े हो जाते। लव कुश कथा करते हुए आगे बढ़ते, कथा के बिना तो रहते ही नहीं, लोग उनके पीछे पीछे जाते, अयोध्या में शोभायात्रा अथवा जुलूस हो रहा है। इस कथा का समाचार राम को मिला, ऐसे ऐसे दो सु-कुमार बालक अयोध्या में कई दिनों से कथा कर रहे हैं। राम ने कहा मैं भी सुनना चाहता हूं, लव और कुश को दरबार में लाया गया। राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, कौशल्या, कैकई, सुमित्रा भी और कई सारे मंत्री, महामंत्री दरबार खचाखच भरा हुआ था। लव और कुश को माइक्रोफोन दे दिया, कृपया कथा सुनाइए। लव और कुश ने जब राम की कथा प्रारंभ की, तब सारे श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। (यह भाव था) मोहित हुए, आकर्षित हुए चित आकर्षक कथा प्रारंभ हो ही रही थी। यहां वर्णन आया है कि शुरुआत में तो राम अपने सिंहासन पर बैठे थे। उन्होंने इस बात को नोटिस किया कि मैं तो श्रोता हूं और मेरा आसन वक्ताओं के आसन से ऊंचा ?यह उचित नहीं है, यह सदाचार नहीं है। तब राम बड़े सावधानी से आसन से उठ जाते हैं। ताकि कोई चहल-पहल नहीं हो , किसी का ध्यान आकृष्ट ना हो। सभी का ध्यान कथा पर केंद्रित बना रहे। इस उद्देश्य से राम बड़ी सावधानी से अपने आसन से नीचे उतरते हैं व ऐसे स्थान पर बैठते हैं, जहां लव और कुश का स्थान ऊंचा हो। वहां बैठकर श्रीराम अपनी कथा सुनते हैं सुनते गए... सुनते गए, सुनते गए...राम की कथा नौ दिवस तक चलती ही रहती है
भागवत कथा तो सात दिवसीय होती है। रामायण की कथा, अधिकतर कथा कार 9 दिनों तक करते हैं। लव कुश सुनाते गए। हम थके नहीं हैं।
*वयं तु न वितृप्याम उत्तमश्लोकविक्रमे।यच्छृण्वतां रसज्ञानां स्वादु स्वादु पदे पदे।।*
( श्रीमद्भागवतं १.२.१९)
अर्थ:-
हम उन भगवान् की दिव्य लीलाओं को
सुनते थकते नहीं, जिनका यशोगान स्त्रोतों तथा स्तुतियों से किया जाता है। उनके साथ दिव्य सम्बंध के लिए जिन्होंने अभिरुचि विकसित कर ली है, वे प्रतिक्षण उनकी लीलाओं के श्रवण का आस्वादन करते हैं।
सुनाते रहिए.. सुनाते रहिए
राम ,लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न उनकी कथा
भी है। रामायण में तो राम की भी कथा का वर्णन है भरत की भी कथा है, शत्रुघ्न की कथा है और दशरथ की भी कथा है, सीता की कथा है। वहां जो उपस्थित थे, वही लोग अपनी-अपनी कथा सुन रहे थे। सभी कथा सुन रहे हैं, ऐसे मधुर हैं श्रीराम। उतनी ही मधुर उनकी कथा भी है। जय श्री राम! रामनवमी महोत्सव की जय! सीता राम लक्ष्मण हनुमान की जय! गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
( वैसे शोलापुर में प्रतिवर्ष विशेष कार्यक्रम होते रहते हैं। महाराष्ट्र में यहां गुडी पडवा एक विशेष पर्व है। उसे सोलापुर इस्कॉन के भक्त बहुत बढ़िया से धूमधाम के साथ मनाते हैं। वहां पर भी उत्सव व राम कथा का आयोजन हो रहा है। आप सभी सादर आमंत्रित हो।
हरे कृष्ण!!!