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हरे कृष्ण,
जप चर्चा,
1 जनवरी 2021,
पंढरपुर धाम.
जय राधामाधव कुंजबिहारी।
गोपीजनवल्लभ गिरिवरधारी।।
हरे कृष्ण, 780 स्थानों से भक्त जप के लिए जुड़ गए हैं। ओम नमो भगवते वासुदेवाय ओम नमो भगवते वासुदेवाय वैसे कहने को आज नया साल प्रारंभ हुआ। आज के 1 जनवरी 2021, 21वी सदी का यह 21 साल। यह कौन सी सदी चल रही है, 21 दिन और साल भी आ गया 21 वा, 2021 की। वैसे मैंने कहां है, नया साल आ गया। आपको कुछ नया लग रहा है? इसमें मुझे तो कुछ नहीं दिख रहा है नया। वही सब कुछ। हरि हरि, वही सूरज वही सूर्य लगभग कुछ आभास हो रहा है। भास नामाभास नामाभास। नाम का पूरा उदित होने से पहले नाम के प्रकट होने से पहले नाम आभास होता है। नाम का भास होता है। जैसे सूर्य आभार सूर्य के उदय होने से पहले उषाकाल आप कहते हो। सूर्य आभास होता है सूर्य के अस्तित्व का थोड़ा पता लगने लगता है तो वही हो रहा है। अभी सूर्य का आभास होने लगा है फिर सूर्योदय होगा। बिल्कुल वैसे ही सूर्य वही सूर्य है। हरि हरि, आप सबका स्वागत है। आज भी स्वागत है। 1 जनवरी को भी स्वागत है। ऐसी है कालगणना इसको टुकड़ों में बांटा है। वैसे इसका विभाजन तो नहीं होता लेकिन 24 घंटे, यह रात है यह दिन से काल होता है। फिर सप्ताह अवधी काल कहते हैं।
काल वही होता है जो 12 मास होते हैं वही काल है। वैसे भगवत गीता बलदेव विद्याभूषण गीता पर भाषण लिखे हैं। और श्रील प्रभुपाद ने भी जो भगवद्गीता भगवद्गीता यथारूप वह बलदेव विद्या भूषण के भाष्य के आधार पर ही भगवद गीता का तात्पर्य लिखे हैं। वैसे श्रील प्रभुपाद ने भगवद्गीता का जो भूमिका है उसी में लिखा है। भगवतगीता के विषय पाच हैंँ। आप भी लिख कर रखो। वृंदा सखी तैयार है अपनी नोटबुक के साथ। तो टॉपिक विषय पांच है। एक है ईश्वर, दूसरी है प्रकृति, तीसरा है जीव, चौथा है काल, और पांचवा है कर्म। गीता के यह पांच विषय हैं पांच विषय वस्तु। मैं इसे पुनः पुनः बोल रहा हूं ताकि आप याद रखें जीवन भर। ईश्वर है प्रकृति और जीव काल कर्म इसे आगे समझाया है या फिर सरल ही है। वैसे इसमें से चार जो विषय हैं या फिर कोई व्यक्ति भी कोई विषय भी है तो यहां शाश्वत है। केवल कर्म शाश्वत नहीं है। ईश्वर शाश्वत परमेश्वर है। और प्रकृति भी शाश्वत है। पुरुष शाश्वत है मतलब ईश्वर और प्रकृति भी शाश्वत है. प्राकृति को शक्ति भी कहते हैं।
पराशक्तिर विविधेव शुय्यते तो पुरुष शाश्वत है। तो पुरुषोत्तम भगवान पुरुषोत्तम की जो विविध शक्तियां भी शाश्वत है। तो यह भी आपको आसानी से समझ में आना होगा समझ स्वीकार करना होगा। यह पंचमहाभूत है पृथ्वी, वायु, आप, तेज, आकाश यह शाश्वत है। और भी कई शक्तियां हैं वह शाश्वत है। हरिहरि ऐसे संक्षिप्त में यह भी कहा जाता है कि, बस एक तो पुरषोत्तम है इस पर है और फिर उनकी शक्तियां है बस खत्म। इसके अलावा और कुछ नहीं है जिसको हम अस्तित्व कहते हैं। वस्तु वास्तविकता कहते हैं। बस भगवान है और भगवान की शक्तियां हैं और कुछ नहीं है,अस्तित्व में। प्रकृति शाश्वत है और प्रकृति शक्ति है तो वह भी शाश्वत हैं। और जैसे हमने कहा पुरुष है प्रकृति है और शक्तियां हैं तो बहिरंगा शक्ति है। अंतरंगा शक्ति है आध्यात्मिक जगत में अंतरंगा शक्ति हैं और बहिरंगा शक्ति है। आध्यात्मिक जगत में राधारानी है और इस प्राकृत जगत में दुर्गा देवी है। छायेव यस्य भुवनानि विभर्ती दुर्गा ऐसे ही राधारानी की छाया है या भगवान की छाया है यह सब प्रकृति है। आध्यात्मिक जगत एक प्रकृति है और यह भौतिक जगत एक प्रकृति हैं। और जीवात्मा प्रकृति है तो यह सब शाश्वत है। पुरुष शाश्वत है प्रकृति शाश्वत है तो जीव भी जीव तटस्थ शक्ति है तो जीव ही शाश्वत है। ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः
ऐसे भगवान ने कहा है जीव भी शाश्वत है। अब तक तो 3 हो गए। पुरुष शाश्वत है या ईश्वर शाश्वत है। प्रकृति शाश्वत है और जीव शाश्वत है। जीव भी एक प्रकृति है या तटस्थ शक्ति है और काल है। कर्म शाश्वत नहीं है। हरि हरि, काल शाश्वत है। वैैसे काल को समझना तो कठिन है। काल एक प्रकार से अचिंत्य ही है। इस काल को भगवान नेे कहा, कालोअस्मम अहम् कालः अस्मि ऐसे काल का परिचय दिया है। मैं काल हूं मैं काल हू कल मैं हूं और सारा संसार काल के अंतर्गत रहता है। या काल इस को प्रभावित करता है। मृत्यु सर्वस्य हरम् वैसे मृत्यु को भी काल कहा जाता है। वह काल बनकर आया। काल भगवान ने सभी जीवो के लिए नियम बनाया। क्या है नियम? जातस्य ही ध्रुवम मृत्यु लिख लो यह नियम है। जातस्य मतलब जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है। तो उसी के साथ यह काल खेलता है जन्म लिया है तो मृत्यु होगी। मृत्यु सर्वस्य हरम् जन्म लिया है तो मृत्यु होगी। गोविंदम आदि पुरुषम तमहम भजमि वैसे मैं गोविंद हूं मैं कृष्ण हूं। या संभवामि युगे युगे, रामादिमूर्तिषु कलानियमेन तिष्ठन नानावतारमकरोद् भुवनेषु किन्तु यह सब मैं हूं। राम आदि जो मूर्तियां है भगवान के रूप है। वह भगवान है। जो लोग ऐसे भगवान की ऐसे श्रीभगवान को मेरे बारंबार प्रणाम है। ऐसे भगवान को जो प्रणाम नहीं करते उनके शरण में नहीं जाते। तां नान यद्वम्, मृत्यु सर्वस्य हरम् भगवान आते हैं मृत्यु के रूप में। काल आता है। यमराज स्वयं ही नहीं आते हैं उनके दूत होते हैं उनको भेजते हैं।
उनको ले आना किन को ले आना। अजामिल प्रसंग में यह आदेश दिया यमराजने यमदूतो को। तां नान यद्वम् मृत्यु उनको ले आना किन को जो असत होते हैं। एक साधु होते हैं और दूसरे असत होते हैं। जो असत होते हैं उनको ले आना। हरि हरि तो यह अकालतो, यह काल गणना करते हैं यहां द्वंद्व उत्पन्ना किया है भगवान ने। यह द्वंद्व क्या है जन्म और मृत्यु। हजारों लाखों द्वंद्व से भरा पड़ा है यह संसार लेकिन इसमें से एक मुख्य द्वंद्व क्या है जन्म मृत्यु। काल के प्रभाव से कर्म शाश्वत नहीं है जैसे हमने कहां मैंने इसलिए कहा कि वह सच है। हम कुछ कार्य करते हैं तो कार्य के साथ कुछ वासनाओं उत्पन्न होती हैं और उस वासना के बीज हम बोते हैं। वैसे हर कार्य के साथ और फिर पाप भी उसको कहा पाप केे बीज को हम बोते हैं। अगर पाप का कृत्य किया है तो पाप का बीज और पुण्य का कृत्य किया है पुण्य का बीज बोया है हमने। जिसको हम कहते हैं कर्म शाश्वत नहीं है और कर्मों के भी कई प्रकार हैं। और काल के अनुसार फिर यह बीज हम जो बोते हैं पाप के अनुसार या फिर पुण्य के अनुसार काल के प्रभाव से वहां अंकुरित होते हैं। इसको फिर हम प्रारब्ध कर्म या आप्रारब्ध कर्म ऐसे शब्दों में कहते हैं। वैसे भक्तिरसामृतसिंधु में भी इसको कहां है। हमारे नसीब सतअसत जन्म योनीषु कर्मणा दैव नेेत्रेन कर्मणा दैव नेेत्रेन सतअसत जन्म योनीषु हमारे कर्म के अनुसार कर्मणा दैव नेेत्रेन क्या होता है सत असत योनि में पुण्य कृत्य किया है पुण्य आत्मा हम हैं। सत सात्विक कृत्य हम किए हैं सत्त्व गुणी हम हैं।
तू ऊर्ध्वम गच्छन्ति सत्व सा गीता मेंंं भगवान ने यह सब बातें बताई हैं। किंतु हमने पापके बीज बोए हैं तो वे भी अंकु्रित होंगे। उसका फल भी हम चखेंगे अधु गच्छन्ति तामसा अधो गच्छन्ति हम नीचे जाएंगे। जघन्य गुणा वृत्तीसः मतलब हम पाप कर्म कार्य किया तो अधो गच्छन्ति। तो इस प्रकार काल के प्रभाव से कुछ बीज हमने जीवन में बोए वह या बोते ही रहते हैं। हर कृत्य कार्य कर्म अपना प्रभाव अपनी वासना पीछे छोड़ता है। जैसे बीज बोता है। हमारे भावों में हमारे विचारों में या फिर हमारे चेतना में, ढेर पाप के पापाच्या राशि पाप के ढेर के ढेर या पुण्य के ढेर के ढेर भी हो सकते हैं। और उसी के अनुसार हमारा सारा भविष्य बनता है। हो सकता है कि इस जीवन में बोए हुए जो बीज है वह अंकुरित अगले जन्म में भी हो सकते हैं, तो यह काल के प्रभाव से होता है। आयुर्हरति वै पुंसामुद्यन्नस्तं च यन्नसौ भागवत कहता है पुंसाम मतलब मनुष्य आयुर्हरति आयु को खोते हैं, गवाते हैं, बिताते हैं। उद्यन्नस्तं च यन्नसौ हर सूर्य के उदय फिर उस सूर्य के अस्त के साथ, आज 1जनवरी का सूर्योदय हो रहा है फिर अस्त होगा। इसी के साथ आयुर्हरति यह जो काल है हमारे आयु को हर लेता है। हरि हरि।तस्यर्ते किंतु इसको एक अपवाद भी है, हां सारा संसार, संसार के जीव आयुर्हरति उनकी आयु छीन ली जाती है। इसीलिए अंग्रेजी भाषा मे जब लोग पूछते हैं आपकी क्या आयु है तो पूछते हैं हाउ ओल्ड आर यू, आप कितने साल के पुराने हो। कितनी आयु आपने गवाई खोई। तो हर सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ आयु घटती रहती है आयु घटती रहती है। लेकिन इसको एक अपवाद है भागवत कहता है उत्तमश्लोकवार्तया अगर हम उत्तम श्लोक, भगवान का एक नाम है, क्यों उनको ऐसा नाम पड़ा? उनको उत्तम श्लोक क्यों कहते हैं। उत्तम श्लोकों से उनकी स्तुति होती है।
यं ब्रह्मा वरुणेन्द्ररुद्रमरुत: स्तुन्वन्ति दिव्यै: स्तवै देवता भी स्तुति गान करते हैं दिव्य स्तवों से, उत्तमश्लोको से तो भगवान का एक नाम हो गया उत्तमश्लोकवार्तया। तो जो उत्तम श्लोक की वार्ता में तल्लीन है उसका यह काल कुछ बिगाड़ता नहीं। उस पर कोई प्रभाव नहींं डालता यह काल। और ऐसा व्यक्ति वैसे जो उत्तम श्लोकवार्तया या बोधयन्त: परस्परम् कथयन्तश्च मां नित्यं तुष्यन्ति च रमन्ति च बस एक दूसरे को बोध कर रहे हैं। ऐसे श्री कृष्ण भगवान उवाच भगवद्गीता में कहे है बोधयन्त: परस्परम् जैसे हम अभी कर रहे है, वही कार्य कर रहे हैं, बोधयन्त: परस्परम्। एक दूसरे को बोध कर रहे हैं या कृष्ण की कथा सुना रहे हैं। तुष्यन्ति च रमन्ति च इसमें संतुष्ट है इस हरि कथा में, हरि नाम में, भगवद भक्ति में, इसी मैं रममान है, या तल्लीन है। तत्-लीन-तल्लीन, तत् मतलब भगवान, तत्वम असी तो जो भगवान में लीन है, भगवान के साथ अपने संबंध को जिन्होंने पुनः स्थापित किया है तो उस व्यक्ति का ऐसे भक्तों का काल कोई बिगाड़ नहीं सकता। काल का प्रभाव उस पर नहीं है क्यों? हरि हरि। हमने जो किए थे कर्म पाप कर्म या पुण्य कर्म वह हम को भोगने नहीं पड़ेंगे। मतलब पुनः जन्म लेने की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर बीज है तो वह अंकुरित होंगे और पुनः वृक्ष बनेगा और पुष्प खिलेंगे और फल चखेगा।
लेकिन अगर जो बीज है पाप के हो या पुण्य के दोनों भी सही नहीं है। वैसे या जो पुण्य हम कहते हैं पुण्य मतलब अच्छाई या सच्चाई भौतिक दृष्टि से। या सात्विकता की बात है तो सत्व गुनी स्वर्ग जाते हैं और तमोगुणी नर्क जाते है। लेकिन वैष्णव तो नरक जाना चाहता ही नही और स्वर्ग जाने की योजना नहीं बनाता। पुनः आगये यह स्वर्ग और नरक यह द्वंद्व हुआ इसके पहले पहुंचना होता है वैष्णवो को और वह स्थान है वैकुंठ, वह स्थान है गोलोक, वह स्थान है साकेत राम का धाम। तो जब हम साधक उत्तमश्लोकवार्तया उत्तम श्लोक की वार्ता कथा बोधयन्त: परस्परम् करते हैं और उसी में रममान रहते हैं, तल्लीन रहते हैं प्रसन्न रहते हैं, संतुष्ट रहते है। ऐसी हमारी समझ है, हमको समझ में आ रहा है कि ऐसे ही कार्य हमको करना चाहिए। और फिर यह कार्य, यह कृत्य, यह कर्म, भौतिक नहीं है। यह पाप भी नहीं है, यह पुण्य भी नहीं। इसको गीता में फिर कृष्ण ने अकर्म कहा है कर्मेति कर्म, विकर्म, अकर्म ऐसे तीन कर्म के नाम भगवान एक स्थान एक श्लोक में कहे हैं। कर्म, विकर्म, अकर्म। कर्म मतलब पुण्य कर्म इस संदर्भ में और विकर्म मतलब पाप कर्म और अकर्म मतलब वह कर्म ही नहीं है इस संसार को कर्म ही नहीं है उसको अकर्म कहा है। और वहीं तो है भक्ति, भक्ति का कर्म है, भक्ति का कार्य है। तो हम जो भक्ति करते है
वासुदेवे भगवति भक्तियोग: प्रयोजित: ।
जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ॥ ७ ॥
भक्ति करते हैं तो हमको ज्ञान प्राप्त होता है या भक्ति से ज्ञान उत्पन्न होता हैं। वैसे भी भक्ति देवी के दो पुत्र है एक है ज्ञान और दुसरा है वैराग्य। जो भक्ति करता है उसे ज्ञान प्राप्त होता है या उसीको भगवान ने कहा है कि वह बुद्धि देते है।
तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ॥
जो मेरी सेवा में रत है तेषां सततयुक्तानां और कैसे रत है प्रीतिपूर्वक उनके सारे कृत्य प्रीतिपूर्वक प्रेमपूर्वक भगवान की सेवा कर रहे है, उनको मैं देता हूं बुद्धि देता हूं अहं ददामि बुद्धियोगं ऐसे व्यक्ति को में बुद्धि देता हूं। ताकि वे नरक और स्वर्ग से भी परे जो मेरा धाम है वहां पर पहुंच जाएंगे। यह भी एक बात है श्री कृष्ण ने कहा ही है कि जिन को ज्ञान प्राप्त हो जाएगा ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा यह जो ज्ञान है, हमने ज्ञान प्राप्त कर लिया, ज्ञान को सुन रहे हैं हम, गीता का अध्ययन, श्रवन, कीर्तन हो रहा है, भागवत पढ़ रहे है हम कुछ ज्ञानवान हो रहे हैं, ज्ञानी बन रहे हैं, यह ज्ञान क्या करेगा ज्ञानाग्णिः यह ज्ञान की जो अग्नि है, ज्ञान की जो ज्योति है ज्योति की जो अग्नि है ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात हमने जो कर्म किए थे और कर्म के जो बीज भी हमने बोए थे, वह अंकुरित, फलित फुलित होने के पहले ही भस्मसात हो जाएगा। और पाप के बीज, उसके ढेर के ढेर पड़े हैं हमारे चेतना में। तो जो पाप के बीज, पाप का कृत्य हमें नरक भेजने वाला था, हम ज्ञानवान हो गए हैं, हमने प्राप्त की ज्ञान की अग्नि उस बीज को वहीं पर जला देगा।
पाप का फल नहीं भोगना पड़ेगा नरक की यात्रा। या कृष्ण गीता में कहे हैं काम, क्रोध, लोभ यह तीन द्वार है नरक के द्वार तीन है। काम, क्रोध, लोभ यह तीन मुख्य गेट है नीचे नरक की ओर जाने के लिए। फिर ऊर्ध्वं गच्छन्ति सत्त्वस्था भी है तो पुण्य का फल भी हमको नहीं चाहिए होता है और पाप का फल तो चाहिए ही नहीं होता है। अकर्म करने से, भक्ति करने से, फिर ज्ञान प्राप्त करने से ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा उसकी राख होगी, भस्म होगा वह बीज। और फिर उस कर्म के होने वाले प्रभाव से, परिणाम से, हम बच जाते हैं। और फिर ना हमको न तो नर्क जाना पडता है न तो स्वर्ग जाने की आवश्यकता है। ऐसा व्यक्ति मामेति मुझे प्राप्त करता है भगवान कहते हैं। तो काल का प्रभाव सभी पर है, लेकिन कुछ लोगों के लिए जो कर्म और विकर्म करते हैं, जो पाप और पुण्य करते हैं उनके लिए मृत्यु निश्चित है। या मृत्यु: सर्वहरश्चाहम मृत्यु के रूप में भगवान आएंगे और सब कुछ छीन लेंगे लात मार के बाहर कर देंगे। लेकिन जो कृष्ण भक्त है
भुक्ति मुक्ति सिद्धि कामि सकले अशांत।
कृष्ण भक्त निष्काम अतएव शांत।
किंतु जो कृष्ण भक्त है उनके लिए स्वयं भगवान आएंगे। औरों के लिए मृत्यु को भेजेंगे कहेंगे इसको ले आओ, उसको ले आओ, यमदूत ले जाएंगे जिसकी मृत्यु होगी उसे। लेकिन जो कृष्ण भक्त है, साधना करते करते उनको जब अन्ते नारायण स्मृतिः अंत मे नारायण की स्मृति हो रही है,
इतना तो करना स्वामी जब प्राण तन से निकले। गोविंद नाम लेकर तब प्राण तन से निकले।
ऐसा जिनका का प्रयास और उस प्रयास में जब वह सफल होंगे तो यह मृत्यु नहीं आएगी। वैसे शरीर की तो तथाकथित मृत्यु होगी। लेकिन हां उस महात्मा की जो आत्मा है, साधक साधना से सिद्ध हुए उसकी आत्मा को भगवान अपने साथ लेकर जाएंगे। किसी को नरक भेजेंगे, किसी को स्वर्ग भेजेंगे उसके कर्म के अनुसार। किंतु जिसके कर्म ऐसे रहेंगे यह कर्म ही है नवधा भक्ति।
श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् ।
अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥
यह नवधा भक्ति कर्म है, कृत्य है लेकिन यह भक्ति का कृत्य है कार्य है। जो ऐसा कार्य करेंगे वह नर्क और स्वर्ग के परे भगवद्धाम है वहां पहुचेंगे पहुचाये जाएंगे। हरि हरि। तो इस प्रकार इस काल और कर्म को भी हमें समझना चाहिए। विषय पांच है गीता के ईश्वर, प्रकृति, जीव, काल और कर्म यह गीता में समझाया है। इसी को फिर भागवत में आगे उदाहरण के साथ, ऐतिहासिक घटनाओं के साथ उसे समझाया है। ठीक है तो साल तो नया आ गया है लेकिन हमको कुछ नया नहीं करना है। हमको क्या करना है? भक्ति करनी है और इन दिनों में गीता का वितरण। और बोधयन्तः परस्परम् आपको करना है। हम भी करते हैं, आपको कुछ सुनाते हैं, आप श्रवण करते हो, श्रवण के बाद क्या करना चाहिए? श्रवण के बाद क्या होता है? जो बातें सुनते हैं उसको कीर्तन करना चाहिए श्रवणं किर्तनं। अब आपकी बारी आपने श्रवण किया अब कीर्तन करो। यह जो सत्य है इसको फैलाव संसार भर में गीता का प्रचार, प्रसार करो, गीता का वितरण करो।
ताकि संसार इस संसार के द्वंद्व से "राउंड एंड राउंड अप एंड डाउन" जो चल रहा है संसार का ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव कछ्छ हबुदुबु भाई भक्ति विनोद ठाकुर कहते हैं। रोलर कोस्टर की तरह इस संसार में अप डाउन, कभी नर्क में तो कभी स्वर्ग में, कभी इस इस योनि में कभी उस योनि में 8400000 योनिया तो है। अब बहुत हो गया और चखना है? एक तो कोविड था अभी उसका बच्चा और एक उत्पन्न हो गया कोई। तो वह भी बिजी रखेगा और वह भी जान लेगा कहीं यो की। तो इस तरह यह नियमित व्यवसाय चल रहा है। नए साल में भी तो ऐसे परिणाम और फल से हमको बचना है। इस नए साल में तो उत्तमश्लोकवार्तया उत्तम श्लोक की वार्ता कथा जो गीता है भागवत है इसका श्रवण कीर्तन करना है । और साथ में
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।
और उसके बाद प्रसाद लीजिए और आपका जीवन सफल हो जाएगा। औरों को भी प्रेरित करो। सोशल मीडिया को कैसा मीडिया बनाओ स्प्रिचुअल मीडिया। हाय हेलो छोडो हरे कृष्ण बोलो फोन पर भी इंटरनेट पर भी। ओके समय काफी बीत चुका है।
हरे कृष्ण।