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3 May 2020
राम कथा तीसरा दिन
हरे कृष्ण!
आप सभी का स्वागत है। इस्कॉन पंढरपुर के भक्त भी इस कथा में सम्मिलित हैं। वैसे इस कथा का प्रसारण पंढरपुर धाम से ही हो रहा है। इसलिए स्वाभाविक है कि यहां के भक्त उपस्थित होंगे ही। आप सभी देश विदेश 'सर्वत्र प्रचार होइबे मोरा नाम' - जहां जहां भगवान के नामों का प्रचार हुआ है, वहाँ- वहाँ से आप इस कथा का श्रवण कर रहे हो, अच्छा है।(आज कितने प्रतिभागी हैं? .... किसी से पूछते हुए) आज 800 प्रतिभागी तो होंगे ही, धीरे धीरे बढ़ सकते हैं। आज 862 स्थानों से जैसे पंढरपुर एक स्थान हुआ, ऐसे 862 स्थानों से, शहरों से, नगरों से, मंदिरों से या अपने निवास स्थानों से, अपने-अपने देशों से भक्त इस सीता नवमी के उपलक्ष्य में संपन्न हो रही इस कथा का श्रवण कर रहे हैं। वैसे आज इस कथा का तृतीय दिवस है। कल एकादशी है, उसका नाम भी है- मोहिनी एकादशी। कथा का विषय वही है- राम कथा कहो या कृष्ण कथा कहो। एक ही बात है। कभी श्याम बनके, कभी राम बनके.. कभी साईं बाबा बनके..... ऐसा मूर्ख लोग गाते हैं। ऐसा नहीं होता। यह वही बात हो गई। वे सिद्धांत नहीं समझते। हरि! हरि!
वैसे कोई टॉपिक(विषय) परिवर्तन तो नहीं होगा, कृष्ण ही राम हैं। कुन्ती महारानी ने कहा- 'नटो नाट्यो धरयो यथा.... ' जैसे नाटक में कलाकार एक ही होता है लेकिन हर नाटक में उसकी अलग-अलग भूमिका होती है। वह अलग ही दिखता है, उसका नाम भी अलग होता है, उसकी वेशभूषा भी अलग होती है। होती है या नहीं? आपको कैसे पता? सिनेमा देखते रहे हो?( हँसते हुए) वैसे आजकल नाटक तो नहीं चल रहे हैं।इस सिनेमा ने प्राचीन और प्रसिद्ध नाट्य कला का स्थान ले लिया है। एक ही व्यक्ति अलग अलग नाटकों में अलग-अलग कलाकारी दिखाता है। वैसे ही कुंती महारानी कृष्ण से कह रही हैं-
"केशव धृत: राम शरीर, जय जगदीश हरे...
केशव धृत: नरहरि रूपा, जय जगदीश हरे....
केशव धृत:....
कितनी बार कहना होगा...
अद्वैतम,अच्युतम,अनादि-अनंत-
रूपम,
अद्वैत- दो या तीन नहीं हैं, एक ही है। अद्वैतम, अच्युतम, अनादि, अनंत रूपम अर्थात ये सारे रूप अनादि ही हैं। इसका कोई आदि नहीं है, एक समय नहीं थे, फिर अचानक उत्पन्न हुए या प्रकट हुए। यह रूप भी शाश्वत है।
केशव धृत: वामन रूप.. है। मीन शरीर भी है, मीन अर्थात भगवान मछली बनते हैं। भगवान कभी वराह बन जाते हैं। वे कल्कि रूप भी धारण करने वाले हैं, एक ही व्यक्ति की कथा है। गोविन्दम आदि पुरुषम.. की कथा है। रामादि मूर्तिषु कला नियमन तिष्टन ... नाना अवतार करो ऐसा ब्रह्मा ने कहा।
ब्रह्मा ने क्या कहा- रामादि-
राम 'और-और' अर्थात राम कई सारे। रामादि मूर्ति.... अर्थात अलग-अलग मूर्तियां वराह्मूर्ति नरसिंह मूर्ति, वामन मूर्ति, मूर्ति मूर्ति...भगवान रूप धारण करते हैं। 'सर्वकारण'- सभी रूपों के कारण कौन हैं? अकेले कृष्ण ही हैं, राम भी कृष्ण ही हैं। हरि! हरि!
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने जगन्नाथपुरी में सार्वभौम भट्टाचार्य को दर्शन दिया। वो दर्शन कैसा था? षड्भुज दर्शन दिया।षड्भुजाएँ अर्थात 6 हाथ थे। उन्होंने उस दर्शन में षड्भुजाओं में से दो हाथों में धनुष और बाण धारण किया हुआ था। उनके हाथों का रंग कैसा था? जैसाकि कल आपने देखा। कल राधा पंढरीनाथ, सीताराम के रूप में प्रकट हुए और वे दो हाथों में मुरली धारण किए हुए थे। उनके इन हाथों का रंग भिन्न था- घनश्याम। उनके अन्य दो हाथों में दंड और कमंडलु था जिसका वर्ण पीत था अर्थात सोने के अंग के। हरि! हरि!
समय-समय पर 'संभवामि युगे युगे' श्रीराम त्रेता युग में प्रकट हुए। त्रेता युग भी होता है, सबको पता नहीं है, त्रेतायुग होता है(हँसते हुए)... त्रेता युग अर्थात दस लाख वर्ष पहले भगवान प्रकट हुए थे। उस समय मनुष्य, नगर, ग्राम थे... सब कुछ था, यह सभी को पता नहीं है। बहुत कम लोगों को पता है या कम लोग इसको स्वीकार करते हैं। इन सब बातों में बहुत कम लोगों को श्रद्धा है या बहुत कम लोगों को समझ में आता है। अधिकतर लोग तो कह रहे थे- 'रामायण क्या है? इतिहास है।' इतिहास में एक समय में ऐसी घटनाएं घटी हैं। इसी को कहते हैं इतिहास अर्थात जो घटनाएं घटी है, उसका वर्णन लेकिन आजकल के इतिहासकारों का इतिहास कहां से शुरू होता है? वे कहां से शुरु कर देते हैं? ढाई हजार वर्ष पूर्व, बुधदेव से शुरू कर देते हैं। तत्पश्चात अशोक राजा थे, ढाई हजार वर्ष पूर्व शुरुआत होती है, उससे पहले कुछ नहीं था।
हरि !हरि!
उससे पहले मनुष्य नहीं थे,
कौन थे बंदर थे, वानर थे। हम वानर की औलाद हैं- यह डार्विन थ्योरी ऑफ रेवोल्यूशन, पढ़े लिखे लोगों ने इसे पढ़ा होगा। यह थ्योरी है- डार्विन थ्योरी ऑफ रेवोल्यूशन।
यह सिद्ध भी नही हुई, यह थ्योरी है।अच्छा, सही कहा है डार्विन थ्योरी ऑफ रेवोल्यूशन। फिर 5000 वर्ष पूर्व जो युद्ध हुआ महाभारत का, वह कल्पना है, methology है। मराठी में क्या कहते है- दंतकथा है, उनका इतिहास समाप्त हो गया। वे दो तीन हजार वर्ष भूत काल तक पहुंच जाते हैं। इससे पहले के बारे में उनको कुछ पता नहीं है, फिर दस लाख तो बड़ी संख्या है। राम, लक्ष्मण ने दस लाख वर्ष पूर्व प्रकट होकर लीला संपन्न की थी। दस लाख वर्ष- इस बात को कौन स्वीकार करेगा, जानेगा और समझेगा? लेकिन प्रचार यही है कि यह काल्पनिक कथाएँ हैं। ऐसा तो हुआ ही नहीं। हरि हरि।
नौ दस लाख पूर्व अयोध्या थी। इसी रामायण के प्रारंभ में ही अयोध्या का बहुत सुंदर वर्णन है। यह संभव नहीं है कि ढाई तीन लाख पूर्व लोग गुफा में रहते थे नगरों में नहीं रहते थे गुफा में रहते थे और लड़ने के लिए पत्थर का प्रयोग करते थे जैसे कश्मीर में आजकल लोग पत्थर फेंकते ही रहते हैं। ज्यादा से ज्यादा कोई लाठी ले ली, कोई पेड़ की शाखा तोड़कर लड़ते थे। अधिकतर् इस पृथ्वी पर इस समय भी मनुष्यों की स्थिति बस ऐसा ही समझ है ... हरि! हरि!
यह काल का चक्र है। सतयुग, द्वापर युग, त्रेता युग, कलयुग और यह युग केवल एक बार ही नहीं आते। यह कथा बहुत गहरी और जरूरी भी है। श्रोताओं में ऐसी समझ और श्रद्धा होनी चाहिए कि सचमुच राम थे। यहां आए, वहां गए, महाराष्ट्र में पंचवटी में आए, नागपुर के पास गए, यह महाराष्ट्र में एक विशेष स्थान है। महाराष्ट्र मध्यप्रदेश में दंडक नाम का आरण्य था। वृंदा आरण्य, आरण्य मतलब वन है, वृंदारण्य,दंडकारण्य आदि। मध्य प्रदेश में राम दंडकारण्य में भी रहे। कई वर्ष पहले की बात है, मैं लॉस एंजिलिस में था, कई लोग मुझसे कह रहे थे कि हम लोग लॉस एंजिलिस शहर का वर्धा उत्सव मनाने जा रहे हैं। मैंने पूछा-' आपका यह लॉस एंजिलिस कितना पुराना है'। उन्होंने अंग्रेजी में कहा कि बहुत पुराना है।
मैंने कहा कितना पुराना है- कहिए तो सही, उन्होंने बताया 200 वर्ष पुराना है, प्रभुपाद इसे कूप मंडूक कहते हैं। मण्डूक अर्थात कुएं में रहने वाला मण्डूक। यदि उसको पूछा जाए -"तुम कहां से आए हो", वो कहेगा कि महासागर से आया हूँ, फिर पूछा जाए कि महासागर कितना बड़ा है, बहुत बड़ा है, इस कुँए से बड़ा है क्या, क्या इस कुँए से दुगना बड़ा है या चौगुना बड़ा है। वह पेट को फुला कर दिखा रहा था इतना बड़ा है?, क्या इतना बड़ा है? फुलाते फुलाते उसका पेट ही फट गया, ऐसी ही हमारी समझ है। संसार में वे हमारे ही भाई और बहने हैं, उनको लगता है कि 200 वर्ष पुराना शहर होना मतलब बहुत पुराना होना है। हम यहां इस कथा के अंतर्गत अयोध्या की बात कर रहे हैं, अयोध्या कितनी पुरानी है? अयोध्या दस लाख वर्ष पुरानी है। अयोध्या केवल 10 लाख वर्ष पुरानी है, यह कहने से भी धाम अपराध हो जाता है। समय शाश्वत है, ऐसा समय नहीं था, जब अयोध्या नहीं थी, अयोध्या है और रहेगी। यह जो समझ है यह समझ संसार के परे की समझ है, यह अलौकिक समझ है। यह दिव्य समझ या जानकारी या ज्ञान है। हम कथा श्रवण के लिए सही समझ के साथ बैठे हैं कि रामायण इतिहास है।
हरि! हरि!
श्री वाल्मीकि मुनि ने जो वर्णन लिखा है, यह उनका आँखों देखा नहीं है। उन्होंने इन लीलाओं को नहीं देखा था लेकिन उनको ब्रह्मा की कृपा से और नारद मुनि की कृपा से सारी लीलाएँ दिखाई गई। नारद मुनि ने भी संक्षिप्त रामायण या मूल रामायण कह कर इस लीला के बीज बोए थे, उन्होंने वाल्मीकि के हृदय प्रांगण में बीजारोपण किया ही था।
जय श्री राम! हरि! हरि!
ऐसी सारी लीलाएं आत्मा ही समझ सकती है, मन नहीं समझ सकता है। ना ही यह हमारी बुद्धि के समझ में आएगा। इसलिए इन लीलाओं को अचिन्त्य कहा गया है। यह लीलाएं हमारी चिंतन से परे हैं, हमारी कल्पना से परे हैं। इसलिए हमें इन लीलाओं को जैसी है, वैसे ही स्वीकार कर लेना चाहिए। इसको अवरोह पंथ कहा जाता है, आरोह और अवरोह। फिर वह अवरोहन होता है। एवं परंपरा प्राप्तं... जो घटना घटी और लीलायें संपन्न हुई। वहाँ ऊपर से उस समय से अब तक उन लीलाओं को समझा रहे हैं। पहले लव और कुश ने लीला की, तब से इस परंपरा में गाया समझाया जा रहा है हम विनयी है। हम यदि विनम्र हैं तो हम पात्र भी हैं, हम विनय हैं। विद्या विनय संपन्ने.. ब्राह्मणे.. ब्राह्मण विद्या और विनय से संपन्न होता है। जैसे जैसे वह अधिक अधिक विद्या को ग्रहण करता है, उसी के साथ वह अधिक अधिक नम्र भी होता है। विद्या ददाति विनयं... विद्या विनय देती है। यदि हम नम्र बनते जा रहे हैं तो हमें समझना चाहिए कुछ पल्ले पड़ रहा है। कुछ विद्या समझ में आ रही है, हम विद्वान हो रहे हैं, विद्वान जो होता है वह विनयी भी होता है। विद्या विनयी बनाती है, हम कथा का श्रवण कर रहे हैं या करना चाह रहे हैं। ऐसी आशा और प्रार्थना है कि हम इसी के साथ विनयी भी बन जाएंगे। जैसे जैसे हम अधिक विनयी बन जाएंगे तब हम इस कथा प्राप्ति के लिए अधिक पात्र भी हो जाएंगे। हरि! हरि!
हमारा इस कथा प्राप्ति के लिए अधिकार बनेगा अर्थात हम इस कथा के लिए अधिकारी बनेंगे। पात्र समझते हो ना? जिसमें हम कुछ धारण करते हैं, एक पात्र होता है दूसरा छलनी होती है जिसमें जो भी रखो.. बह जाता है लेकिन पात्र धारण करता है। जैसे कभी-कभी आपकी जेब में कोई छिद्र हो जाता है, आप उसमें जो भी रखते हो.... अगली बार अरे, हे, मैंने रखा तो था लेकिन उस जेब ने पात्र का कार्य नहीं किया, उसमें छेद था, पाए भी और खोए भी। हरि! हरि!
आधा समय तो इसी भूमिका बनाने में ही में चला गया लेकिन आवश्यक भी है ताकि हम पात्र बने।
हरि! हरि! जय श्री राम!
राम जब युवक ही थे तब सिद्धाश्रम से विश्वामित्र मुनि आ गए , अयोध्या में उनका स्वागत हुआ। राजा दशरथ ने दरबार में पूछा," हम आपकी क्या सहायता कर सकते हैं? आप जो भी कहोगे उसकी पूर्ति होगी।" विश्वामित्र मुनि ने कहा-"हमें और कुछ नहीं चाहिए, हमें आपका युवक बालक राम चाहिए, उसको दे देना। अभी अभी आपने ही कहा था, आप जो भी मांगोगे" अंग्रेजी में कहते है "Your wish is my command"जब राजा दशरथ ने ऐसी मांग सुनी, उनका वात्सल्य भाव उमड़ आया, उन्होंने सोचा कि मेरे पुत्र की मांग कर रहे हैं। (साथ में लक्ष्मण भी जाने वाले थे) वे ले जाएंगे, राजा दशरथ ने पूछा "मेरे दोनों पुत्रों को कहां ले जाओगे?" विश्वामित्र मुनि-" वन में ले जाऊंगा"। राजा दशरथ- "वहां क्या होगा?"
विश्वामित्र मुनि- "वहां हम यज्ञ करते हैं। राम और लक्ष्मण रक्षा करेंगे, वहां कई सारे राक्षस हैं, उनका वध करेंगे।"
यह और अन्य बातें भी सुनकर राजा दशरथ तैयार नहीं हुए- "नहीं! नहीं!" जब उन्होंने मुनि की मांग सुनी कि अपने पुत्र दीजिए, तो वे बेहोश हो गए। जब कुछ समय उपरांत दशरथ राजा होश में आए और कहा-" विश्वामित्र मुनि जी-मेरा बालक तो अभी युवक ही है। " षोडश वर्षीया" इसकी उम्र बहुत कम है,उन षोडश अर्थात सोलह, उन मतलब कम अर्थात सोलह में एक कम, यह तो पंद्रह साल का ही बालक है। यह मेरा बालक राजीव पद्म लोचन है, अरविंद नेत्र वाला। मेरा बालक/ पुत्र पद्म नयन है। रामायण में ऐसा ही उल्लेख है। मेरा बालक सुंदर है- यह उनका कहने का भाव नहीं था। वे कहना चाह रहे थे कि जैसे सांयकाल होती है, रात्रि जब आरंभ होने जा रही होती है तब राजीव अर्थात जो कमल होते हैं, वह बंद होते हैं, सिकुड़ जाते हैं। राम और लक्ष्मण की वैसी ही स्थिति है। सांय काल होते ही इनकी आंखें बंद होने लगती हैं मतलब इनको नींद आ जाती है। आप कह रहे हो कि ये पूरी रात वन में रखवाली करेंगे। सांय काल के समय तो उन्हें नींद आ जाती है। राजीव लोचन है वो।
हरि! हरि!
विश्वामित्र क्रोधित हुए, विश्वामित्र त्रिकालज्ञ हैं, वे जानते हैं कि राम कौन हैं ? यह पुरुषोत्तम हैं, यह मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। वे अपने पुरषोत्तम को मर्यादित रखेंगे। विश्वामित्र मुनि इस बात से अवगत हैं, वो जानते हैं यह पुरुषोत्तम भगवान है यह प्रकट होकर "परित्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृतम्" करेंगे। यह दुष्ट या राक्षस जो हमको परेशान करते हैं या यज्ञ में विघ्न डालते हैं, इनके विनाश की क्षमता केवल श्रीराम में ही हैं। इसी उद्देश्य अर्थात उन दुष्टों के संहार के लिए ही तो राम प्रकट हुए हैं।विश्वामित्र इस बात से अवगत हैं। राजा दशरथ को भगवान की अंतरंग शक्ति या योग माया से इन सब बातों, मतलब भगवान की भगवता का ज्ञान नहीं होता। "नहीं! नहीं! ये मेरे पुत्र हैं।जैसे औरों के पुत्र हैं वैसे ही यह मेरा पुत्र है।" और पुत्र के प्रति उनका वात्सल्य भी है, दोनों के दृष्टिकोण अलग अलग हैं। हरि! हरि!
विश्वामित्र राम के गौरव गाथा को प्रकाशित करना चाहते हैं! जब राम और लक्ष्मण सिद्धाश्रम जाएंगे, वहां जो कार्य करेंगे, वह गौरवान्वित होगा।" यह रामायण तभी तो लिखी जाएगी। वे राम को लक्ष्मण को भली-भांति जानते हैं। राधा गोविंद महाराज कथा सुनाते हुए कह रहे थे है तुमको दे दूं क्या उनका जो वात्सल्य है यह पता लगवाने नहीं देता भगवान की भगवत्ता को छुपाता है यह वात्सल्य... हरि! हरि !
फिर वशिष्ठ मुनि ने राजा दशरथ को समझाया,नहीं नहीं, भेज दो, भेज दो, यही उचित है। राम और लक्ष्मण सिद्धाश्रम जाते है, वहां ताड़का का वध होता है। वध का प्रारंभ किस से हुआ, शुभारंभ .... श्री गणेश ताड़का वध से हुआ। श्रीकृष्ण ने भी पूतना से प्रारंभ किया था वह भी राक्षसी थी। यहां भी .. दोनों एक व्यक्ति है... एक ही बात होनी चाहिए। फिर दूसरे राक्षस सुबाहु की हत्या हुई, मरीच की हत्या नहीं हुई नहीं की। उसको बाण पर बांधकर उड़ा कर लंका में गिरा दिया।
वैसे मारीच का वध करेंगे, बाद में वध करेंगे। जब रावण सीता के अपहरण के लिए जा रहा था, तब वह मारीच से बोला, चलो चलते हैं। मारीच ने पूछा- कहाँ, तब रावण ने उसे पहले सारी योजना बताई , सारा षड्यंत्र कहा कि तुम हिरण बन जाओ, सीता तुम्हें चाहेगी। तुम्हारी और उंगली करके कहेगी- ओह! कितना सुंदर हिरण है, मैं चाहती हूं फिर राम पकड़ने का प्रयास करेंगे। तब तुम क्या करना ? तुम भाग जाना, राम तुम्हारा पीछा करेंगे, तुम दूर दूर चले जाना और फिर अंततोगत्वा राम के बाण से तुम्हारी हत्या होगी। ऐसा सारा षड्यंत्र था। मारीच ने उस समय कहा- हे, क्या कह रहे हो। उस समय राम पंचवटी नासिक गोदावरी के तट पर थे। नहीं! नहीं! नहीं! राम के पास नहीं जाना चाहिए, हम राम को चुनौती नहीं दे सकते। मारीच ने कहा कि मैं राम के शौर्य और वीर्य को जानता हूं, मैंने अनुभव किया है। हरि! हरि! मारीच अपने अनुभव की बात कर रहा था। मारीच बोला- मरना है क्या! मैं पहले भी मरते-मरते बाल-बाल बच गया हूँ। उस समय रावण ने कहा कि "ठीक है, तुम वहां जाकर राम के हाथों मरना नहीं चाहते हो तो मैं ही तुम्हें इसी क्षण मार दूंगा। तब मारीच ने कहा- फिर ठीक है, चलो हम चलते हैं। मारीच ने सोचा कि मरना तो है ही, वहां जाऊंगा तो भी मरना है। नहीं जाऊंगा तो रावण के हाथों मरना पड़ेगा... राम के हाथों मर जाते हैं, चलो चलते हैं। सिद्धाश्रम में राम ने 'विनाशाय च दुष्कृताम' की लीलाएं खेली अथवा सम्पन्न की। वहां से मिथिला जनकपुर दूर नहीं था। विश्वामित्र मुनि ने राम और लक्ष्मण को लेकर मिथिला के लिए प्रस्थान किया। रास्ते में ही अहिल्या का उद्धार भी हुआ, राम ने शिला बनी हुई अहिल्या को अपने चरण से स्पर्श किया, वह शिला से पुनः अहिल्या बन गई, अहिल्या का उद्धार हुआ। जब वे जनकपुर पहुंच गए, तब जनकपुरी में उनका स्वागत सत्कार और सम्मान हुआ।
विश्वामित्र मुनि के साथ उनके शिष्य राम और लक्ष्मण भी आए हैं, उन दिनों में सीता स्वयंवर चल ही रहा था। सीता स्वयं ही वर का चयन करेगी। स्वयंवर अर्थात सीता स्वयं अपने पति का वरण करेगी और चयन उसका किया जाएगा या चुना जाएगा जो व्यक्ति धनुष को उठाएगा और उसकी प्रत्यंचा चढ़ाएगा और उसकी प्रत्यंचा की टंकार को सुनाएगा। कई सारे राजा अर्थात विश्व भर के राजा वहां पहुंच चुके थे। यह धनुष बहुत भारी वजनदार और शिवजी का धनुष था। राजा जनक के पूर्वजों से ही प्राप्त हुआ था। यह धनुष महल के दरबार में कब से था, यह विशेष शिवजी द्वारा दिया हुआ धनुष था। कोई भी राजा उस धनुष को टस से मस नहीं कर पाया था, उठाना तो दूर रहा, उसको कोई हिला भी नहीं सका था। यदि कोई उठा भी सकता है लेकिन प्रत्यंचा बांधना और भी कठिन कार्य होता है। बड़ी शक्ति और सामर्थ्य वाला ही ऐसा कार्य कर सकता है। सुनने में आया था कि रावण भी प्रयास करके गया था। सभी के सभी राजा या युवराज सीता को चाहते थे कि उनकी पत्नी हो तो... .. ऐसा सम्बन्ध.. सबका मन ललचा रहा था लेकिन वे सब असफल हो गए थे।
विश्वामित्र मुनि ने वहां पधारने पर राजा जनक से कहा कि क्या आप राम, लक्ष्मण को वह धुनष दिखा सकते हो ? आपका जो धनुष है संभावना है कि वे उठा सकते हैं, प्रत्यंचा चढ़ा सकते हैं।
तैयारी होने लगी, वह जहां रखा हुआ था, वहाँ से उठाकर राजमहल के दरबार में लाना था। रामायण में लिखा है कि 5000 लोग उस धनुष को मुश्किल से उठाकर दरबार में लाए हमनें यह भी सुना था कि इसी धनुष को जब सीता छोटी थी, उसी को घोड़ा बनाकर जैसा कि बच्चे लाठी को अपने दोनों पैरों के बीच रख उस पर बैठ कर घोड़ा बनाते हैं , सीता भी उस धनुष को घोड़ा बनाकर खेला करती थी। सीता तो सीता हैं, सीता कोई साधारण स्त्री नहीं हैं, वह राम की सीता हैं, राम की शक्ति हैं। ऐसा प्रदर्शन सीता ने पहले किया था, अब उसे उठाने के लिए 5000 लोग पसीने पसीने हो रहे थे। घोषणा हो चुकी थी कि आज तक कई राजा महाराजा आए और निराश होकर लौटे भी, लेकिन आज श्रीराम आए हैं । जय श्रीराम!
सारी जनता उपस्थित थी, सीता भी उपस्थित थी। उस दिन स्वयंवर के लिए वर आ चुका था, वर वहां पहुंच गए थे। सीता वधू हैं, वर श्री राम हैं। सभी उत्कंठित भी थे और सभी चाहते भी थे कि राम सफल हो जाएं। जनक राजा भी चाहते थे कि मेरी पुत्री को राम पति रूप में प्राप्त हो। वैसे राजा जनक यह भी सोच रहे थे कि जो भी धनुष उठाएगा उसी को मेरी पुत्री पत्नी के रूप में प्राप्त होगी। वैसे यह शर्त नहीं होती तो अच्छा होता, मैंने ऐसी शर्त नहीं रखी होती तो अच्छा होता। मैं चाहता हूं कि मेरी सीता को राम पति रूप में प्राप्त हो। लेकिन यदि राम धनुष उठा नहीं पाएंगे... न जाने क्यों ऐसा विचार कर रहे थे।
ऐसी शर्त क्यों रखी है यह नहीं होनी चाहिए थी। मैं सीधा ही राम के साथ इसका विवाह कर देता। चलो... आगे बढ़ो, राम ने विश्वामित्र मुनि के चरणों का दर्शन और मन ही मन में प्रार्थना और आशीर्वाद की कामना कर उस धनुष की प्रदक्षिणा की और धनुष को नमस्कार करते हुए उसको बाएं हाथ में उठाया, क्योंकि धनुष तो बाएं हाथ में ही होता है और बाण दाएं हाथ में होता है।
लेकिन अर्जुन तो दोनों हाथों से धनुष पकड़ता था। इसलिए अर्जुन का नाम सव्यसाची भी है, ऐसे विशेषज्ञ थे अर्जुन। साधारणतया तो दाएं हाथ से काम हो जाता है, लेकिन वे चालाक और कुशल धनुर्धारी थे या तो दाहिने हाथ से या बाएं हाथ से बाण चलाते थे।
राम ने बाएं हाथ से खेल किया।
उसको छुआ और कुछ ही समय में उसे उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास के साथ धनुष के टुकड़े कर दिए। उससे जो गर्जना/ ध्वनि हुई, वो इतने उच्च स्वर की थी, इतनी भयंकर थी, वहां जितने भी लोग थे सब जमीन पर गिर पड़े। केवल 5 लोग ही खड़े रहे- विश्वामित्र, राम, लक्ष्मण, सीता और जनक, बाकी लोग उस ध्वनि को सुनकर बेहोश हो गए।
हरि! हरि!
जब सभी होश में आए, सभी ने तालियां बजाई... (ताली बजाते हुए) अपना अनुमोदन, अपना हर्ष व्यक्त किया। सीता उस दिन या हर दिन वरमाला लेकर तैयार ही थी। आज तो जरूर मेरे होने वाले पति का चयन/ वरण होगा, मेरे होने वाले पति यही होंगे। उसने सारी माला आदि तैयार रखी हुई थी, सीता जब राम को पहनाने के लिए अपनी माला के साथ दौड़ ही रही थी। राम ने कहा- नहीं! नहीं! नहीं! मुझे मेरे पिताश्री की अनुमति और आशीर्वाद भी लेना होगा। तत्पश्चात राजा जनक ने अयोध्या में समाचार भेजा, मैसेंजर भेजें कि विवाह के लिए चयन तो हो चुका है आप भी आइए और अनुमोदन कीजिए और विवाह में उपस्थित रहिए। फिर अयोध्या से सारी बारात आ गई,
अयोध्या वासी राम राम........( कीर्तन करते हुए...........)
अयोध्या वासी 6 दिन के प्रवास के उपरांत जनकपुरी पहुंचे। लगभग सभी अयोध्या वासी आ गए। सारी माताएं, वशिष्ठ जी, भरत, शत्रुघ्न, महामंत्री, मंत्री गण और सब भी आ गए। दशरथ राजा ने कहा- मेरी स्वीकृति है, मुझे मंजूर है। सीता मेरे श्री राम जैसे पुत्र को प्राप्त हो जाए लेकिन मेरे तीन और भी पुत्र हैं। इनका भी विवाह हो, ये भी विवाह के योग्य हैं। वे सोचने लगे विचार-विमर्श होने लगा कि लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न का भी विवाह होना चाहिए। इनके लिए विवाह योग्य अर्धांगिनी/ पत्नियां कौन होंगी? जनक राजा की दो पुत्रियां थी- एक सीता और उर्मिला। यह तय हुआ कि लक्ष्मण का विवाह उर्मिला के साथ होगा। राजा जनक का नाम वैसे श्री ध्वज था। जनक तो उनका टाइटल हुआ।
उनके भाई कुशर्ध्वज और कुशर्ध्वज की दो पुत्रियां थी- मांडवी और श्रुतकीर्ति। मांडवी का भरत के साथ और श्रुतकीर्ति का शत्रुघ्न के साथ विवाह एक ही मंड़प में हुआ।
सीता राम की जय!
उर्मिला लक्ष्मण की जय!
मांडवी भरत की जय!
श्रुतकीर्ति शत्रुघ्न की जय!
यह सारे विवाह एक साथ एक ही मंड़प में हुए, ये जन्मे भी एक ही साथ एक ही दिन थे। राम लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और उनका विवाह भी एक ही दिन हुआ और पता नहीं क्या-क्या एक ही साथ हुआ, उसके पश्चात मैरिज पार्टी अयोध्या वापस लौटी। और फिर और और लीलाएं.... राजा बनाना तो था राम को लेकिन वो कैकई के कारण नहीं हो पाया । राम बने वनवासी, सीता हठ लेकर बैठी गई- नहीं! नहीं! मैं भी आऊंगी, मेरा धर्म है आपके साथ रहना और आपकी सेवा करना, फिर लक्ष्मण भी तैयार हो गए। तब यह तीनों राम, लक्ष्मण, सीता 14 वर्ष के लिए वन में गए। उसमें से 12 साल तो चित्रकूट में रहे, वहाँ कई सारी लीलाएं संपन्न हुई। वहां से पहले नागपुर के पास रामटेक आ गए। अगस्तय मुनि ने उन्हें दंडकारण्य में रहने को कहा था। रामटेक ( टेक अर्थात प्रतिज्ञा) में ही भगवान ने प्रतिज्ञा ली थी कि इस पृथ्वी को असुरों और राक्षसों से मुक्त कर दूंगा।
राम ने यह प्रतिज्ञा जिस स्थान पर ली थी उस स्थान का नाम रामटेक हुआ। वहीं पर उन्होंने देखा था कि कई ऋषि मुनियों की हत्या कर हड्डियों के ढेर पड़े हुए थे। उन्होंने पंचवटी के लिए प्रस्थान किया, वहां 5 वट थे और आज भी गोदावरी के तट पर हैं, वहाँ आप जाकर देख सकते हो। वहां कई सारी लीलाएं हुई हैं जैसे अरण्यकांड की लीला। वहां पर रावण ने आकर सीता का अपहरण किया । राम सीते! सीते!.... पुकारने लगे, केवल सीता ने तो कुछ नहीं बोला। वृक्ष ही बोल रहे थे, प्रतिध्वनि सुन रहे थे। श्री राम सीता को पुकार रहे थे तो सारा वन ही कह रहा था सीते..... राम और लक्ष्मण सीता की खोज में ऐसे जो विप्रलम्भ अवस्था होती है. बिरह.. में मन की स्थिति और मन के भाव की प्रकाट्य लीला हो रही है। फिर राम की अरण्यकांड में, किष्किंधा कांड में हनुमान से मुलाकात होती है। सुग्रीव उनकी मदद करने के लिए सीता को खोजने के लिए निकलते हैं।
हरि! हरि!
तत्पश्चात किष्किंधा कांड, फिर सुंदरकांड... हनुमान वहां जाते हैं... हनुमान सफल होते हैं। सीता की खोज करके लौटते हैं। आपके लिए अच्छा समाचार हैं,.. सीता जीवित है और कहाँ है यह समाचार हनुमान लेकर आते हैं, उसी समय राम, हनुमान को गले लगाते हैं। जय श्रीराम! जय श्रीराम! कहती हुए वानर सेना और भालू सेना ने प्रस्थान किया। लंका पहुंचने के लिए रास्ते में राम नाम कहते हुए और राम नाम लिखते हुए पत्थरों से पुल भी बनाया और क्रॉस भी किया और फिर युद्ध भी हुआ और दशहरे के दिन राम का विजय हुई।
राम विजय दशमी महोत्सव की जय !
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।
प्रेम नाम शीले.....
सीता हरण मन:
शुकदेव गोस्वामी जी ने श्रीमद्भागवत में सीता के गुणों का इन शब्दों में वर्णन किया है। शुकदेव गोस्वामी ने रामायण कथा दो अध्यायों में सुनाई है कि सीता देवी अत्यंत विनीत, आज्ञाकारी, लज्जालु तथा शची थी तथा अपने पति के भाव को समझने वाली थी। इस प्रकार अपने चरित्र एवं प्रेम तथा सेवा से भगवान के मन को पूरी तरह मोह सकी। सीता मोहन राम जैसे राधा मोहन वैसे सीता मोहन। युद्ध के अंत में श्री राम अशोक वाटिका पहुंच जाते हैं और सीता को वहां देखते हैं। अन्तोगत्वा दोनों एक दूसरे को देख कर और उस मिलन में उन्होंने आह्लाद का अनुभव किया। राम सीता कुछ समय के विरह के उपरांत संभोगाआनंद कहिए मिले और एक दूसरे को गले लगाया और उसी के साथ फिर पुष्पक विमान में विराजमान होकर सीता, राम, लक्ष्मण, सुग्रीव विभीषण,हनुमान औरों को साथ लेकर श्री राम अयोध्या लौटे।
वहाँ उनका स्वागत हुआ, भरत उनकी प्रतीक्षा कर ही रहे थे। वे राम की पादुका लेकर आ गए और राम को दे दी, तब वहां राम का राज्याभिषेक हुआ, राम बन गए राजा राम। राजा हो तो राम जैसा और रानी हो तो सीता जैसी। सीता राम लक्ष्मण हनुमान जी की जय!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!