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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-२८/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*जय राधा माधव, कुन्ज बिहारी जय राधा माधव, कुन्ज बिहारी गोपी जन बल्लभ गिरिवर धारी*
ध्यान से सुनो सुन रहे हो
जपा टॉक का समय है। आज के जपा टॉक सुनाने के समबन्ध में है।
चातुर्मास आ ही रहा है। आषाढ़ी एकादशी से चातुर्मास शुरू होगा। ४ महीने चातुर्मास होता है।
वर्षा ऋतू और शरद ऋतू ४ महीने। वर्षा ऋतू के २ और शरद ऋतू के २ ऐसे ४ महीने होते है। हमारी पंढरपुर का उच्च शिक्षा का संसथान है वेदांत प्रभुजी से आप कुछ बाते सुने हो आप मुझे भी आज आपसे अधिक बाते करना है। अगले २ दिन चातुर्मास में प्रभुपाद के ग्रंथो का अध्ययन करने की बाते कही जाएगी।
हरी हरी
श्रील प्रभुपाद के ग्रंथो की बाते मैराथन के समय होता है। जब हम बुक मैराथन की बात कर रहे थे तो उस वक्त यह दिसंबर महीने की बात है किसी ने वह विचार व्यक्त किया औरो ने भी समर्थन किया। हम तो बुक मैराथन करते रहते है अपने अपने छेत्र में सभी नेता योजना बनाते है हम भी अपने छेत्र में भक्तो के लिए , अनुयायियों, मित्रो के लिए यह योजना बना रहे है केवल मुझे यह कहना है रीडिंग श्रील प्रभुपाद बुक। चातुर्मास विशेष साधना करने का समय है। परिव्राजचार्य भी विशेष स्थान में रुक जाते है और वह साधना करते है अध्ययन करते है और अध्यापन भी करते है और लाभान्वित होते है। नारद मुनि ने भी कहा था कैसे उनके यहाँ भक्तिवेदांत आये थे और चातुर्मास में और उन्होंने भी कथा सुई , लीला सुनी उन भक्तिवेदांत से और छोटी मोटी सेवा भी की। नारद मुनि ने दोनों की सेवा की संतो की भक्तो की परिणाम क्या निकला दासी पुत्र बन गए नारद मुनि। वे मनन शील हुए उनके जीवन में ज्ञान और वैराग्य उतपन्न हुआ।
श्रवण भक्ति जब हम ग्रंथो का अध्ययन करते है तो नंबर १ है श्रवण। जो कोई श्रवण भक्ति करता है तो ज्ञान और वैराग्य उतपन्न होता है। वैराग्य भी अनिवार्य है। भाव बंधन से मुक्त होना , ह्रदय में कई प्रकार के गाठ है उनसे मुक्त होना है।
कुंती महारानी हमारे लिए कह रही है मुझे भक्ति दो। भागवत के श्रवण से , प्रभुपाद के ग्रंथो का पठन पाठन करेंगे आप। प्रतिदिन आप कोई न कोई कोर्स करोगे ऐसी व्यवस्था की जा रही है।
भगवान् का स्मरण दिलाने के लिए होता है पठन पाठन। यह होता रहेगा ४ मास।
सिस्टेमेटिक स्टडी भी होगी। सारा सिस्टम बन रहा है और आप सभी को उस सिस्टम का अंग बन रहा है ऐसा करने से आपकी भक्ति निष्ठा तक बन जाएगी और फिर प्रेम तक। श्रद्धा से प्रेम तक के जो सोपान है इस स्टडी से आप ऊपर चढ़ोगे निचे तो उतरने का प्रश्न ही नहीं है।
आया राम गया राम होता ही रहता है लेकिन स्टडी करने से हम एक एक सोपान हायर सीढ़ी से प्रेम का जो सोपान है वह तक पहुंचेंगे। और वह कैसे होगा – *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
यह तो करना ही है और नित्यं भागवत सेवया भी करना है।
भक्ति के ५ अंग है।
भागवत श्रवण और नाम संकीर्तन यह २ अंग विशेष है इसका अवलोकन होगा आने वाले चातुर्मास में। प्रभुपाद के ग्रंथो का अध्ययन आप करने वाले हो ऐसा निवेदन किया जा रहा है आशा है आप मन जाओगे।
प्रभुपाद भी अपने ग्रंथो को पढ़ा करते थे।
एक दिन एक भक्त ने कहा आप भी ग्रन्थ पढ़ रहे हो?
प्रभुपाद ने कहा कृष्ण ने डिक्टेशन किया और में लिखा यह गौर वाणी है हमको जरूर पढ़ने चाहिए। हरी हरी
आप कहोगे यह पढ़ने की उम्र भी नहीं है।
यह स्टडी जो है यह आजीवन जीवन के लिए अध्ययन है यह स्टडी कभी समाप्त नहीं होती। शरीर का अंत होता है तो भी यह अंत नहीं होती। आप बालक हो, वृद्धा वस्था में हो। हम किसकी स्टडी कर रहे है ? *कृष्णस्तु भगवान् स्वयं*
कृष्ण कहे है ३ बाते – वेदो को मैं जनता हु, वेद की रचना करने वाला भी मैं हु , मुझे जानने के लिए वेद है।
में आपको यह वेद दिए है और मुझे जानने के लिए यह शास्त्र का अध्ययन है।
आप लिखे पढ़े हो आपने दुर्देव से भगवान् की स्टडी नहीं की।
स्कूल में माया की शक्ति पढाई जाती है। संसार में जो भी स्टडी है वह माया है। इस स्टडी से पुनरपि जननं पुनरपि मरणम होता ही रहता है।
जो संसार से परे पंहुचा देती है वह स्टडी हमे करना है। शिक्षा गुरु , दीक्षागुरु के संपर्क में हम आ गए है। एक होती है विद्या , एक होती है अविद्या। जो वेद वाणी है वह है विद्या।
इसीलिए कहा गया है *तमसो माँ ज्योतिर गमया* अंधेरे से दूर जाओ बहार आओ।
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम:।।
हम अज्ञान में फसे हुए है। ज्ञान का अनजान डालने की आवश्यकता है। चातुर्मास में अध्ययन करना है। आपको अकेले नहीं है आपको करवाई जाएगी। विद्वान भक्त आपको पढ़ाएंगे। गुरु शिस्य ऐसा सम्बन्ध है। आपको कोई पढ़ायेगा।
आप अकेले पढोगे तो कोई शंका आएगा तो कौन समाधान करेगा। आपको कोई पढ़ायेगा तो आपका साक्षात्कार होगा। आपको कोई शंशय है तो आपका समाधान होगा।
श्रद्धा के साथ आपको यह स्टडी करना है अध्ययन करना है।
*आचार्य वान पुरुष वेद* – आचार्यवान जो व्यक्ति है वह जानेगा समझेगा।
श्रील प्रभुपाद आपके आचार्य है ,उनके शिष्यों के शिस्य हमें पढ़ाते है हम पढ़ते है। श्रील प्रभुपाद आचार्यवान है उनके ग्रन्थ को जब हम स्वीकार करेंगे तो हम समझेगे सीखेंगे और भगवान् को समझेंगे।
भगवान् को समझ लिया तो और कुछ सीखने समझने को की आवश्यकता नहीं है। *अथातो ब्रम्हा जिज्ञासा* तुम मनुष्य बने हो तुमको मनुष्य शरीर मिला है तो तुम ब्रम्ह को जानने के लिए उतकंठित जिज्ञासु बनो। बहुत कुछ कहा जा सकता है इस सम्बन्ध में। लेकिन आशा है इतना ही पर्याप्त है। आप अपना मन बना रहे हो मैं भी स्वयं स्टडी करने की योजना बना रहा हु। आप भी चातुर्मास में यह स्टडी करो।
आपको केवल त्यार रहना है आपको बस भोजन के लिए बैठना है भोजन बना के आपके थाली में परोसा जायेगा आपका काम आसान किया जा रहा है।
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*जप चर्चा*
*परम पूजनीय लोकनाथ स्वामी* *गुरु महाराज द्वारा*
*दिनांक 25 जून 2022*
हरे कृष्ण!!!
*सुंदर तें ध्यान उभे विटेवरी । कर कटावरी ठेवोनियां ॥१ ॥*
*तुळसी हार गळां कांसे पीताम्बर । आवडे निरंतर तेंचि रूप ॥२ ॥* *मकरकुंडलें तळपती श्रवणीं । कंठीं कौस्तुभमणि विराजित ॥३॥*
*तुका ह्मणे माझें हेंचि सर्व सुख । पाहीन श्रीमुख आवडींने ॥४ ॥*
एकादशी महोत्सव की जय!
संसार के कुछ देशों अथवा क्षेत्रों में या भारत के कुछ क्षेत्रों में कल एकादशी मनाई गई किंतु जहां मैं अब स्थित हूं अर्थात यहां पंढरपुर धाम में हम आज एकादशी उत्सव मना रहे हैं। पंढरपुर धाम की जय!
एकादशी महोत्सव की जय!
*माधव – तिथि , भक्ति जननी , यतने पालन करि । कृष्णवसति , वसति बलि ‘ , परम आदरे वरि ।।*
( एकादशी – कीर्तन , शुद्ध भक्त रेणु- वैष्णव गीत)
अर्थ:- माधव तिथि ( एकादशी ) भक्ति को भी जन्म देने वाली है तथा इसमें कृष्ण का निवास है , ऐसा जानकर परम आदरपूर्वक इसको वरणकर यत्नपूर्वक पालन करता हूँ ।
माधव तिथि, माधव की तिथि है। यह हरि वासर है। वासर मतलब दिन। रविवासर, सोमवासर, यह निश्चित ही पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग! विट्ठल! विट्ठल! विट्ठल! क्या कहा जाए, मैं उनके बगल में ही बैठा हूं या वे मेरे बगल में ही हैं।
आप देख रहे हो! ठीक है। वैसे मैं सोच रहा था कि जैसा हम बाहर देख रहे हैं या आप देख रहे हो कि मैं भगवान के निकटस्थ बैठा हूं या उपस्थित हूं लेकिन ऐसी वस्तु स्थिति हृदय प्रांगण में है ही, केवल मेरे ही नहीं अपितु हम सभी के हृदय प्रांगण में भगवान विराजमान हैं। याद रखिए वैसे यह मेरा आज का विषय तो नहीं है लेकिन मैं ऐसा याद भी कर रहा था। मैं आपको भी याद दिलाना चाहता हूं, भगवान हमारे साथ सदैव हैं।
*सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च | वेदैश्र्च सर्वैरहमेव वेद्यो वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम् ||*
( श्रीमद भगवद्गीता १५.१५)
अनुवाद:-
मैं प्रत्येक जीव के हृदय में आसीन हूँ और मुझ से ही स्मृति, ज्ञान तथा विस्मृति होती है | मैं ही वेदों के द्वारा जानने योग्य हूँ | निस्सन्देह मैं वेदान्त का संकलनकर्ता तथा समस्त वेदों का जानने वाला हूँ |
वे भगवान, जो आपके हृदय प्रांगण में विराजमान हैं। आप भी वहां उनके साथ ही हो। वे भगवान आप सबको और मुझे भी बुद्धि दे।
*तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् | ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ||*
( भगवद्गीता १०.१०)
अनुवाद:- जो प्रेमपूर्वक मेरी सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं |
ताकि हमारे जीवन की यात्रा अर्थात जर्नी ऑफ दिस लाइफ मंगलमय हो। यात्रा की बात का अभी उल्लेख हुआ है और आप पीछे पढ़ भी रहे हो कि पंढरपुर की दिंडी यात्रा। (पढ़ रहे हो? चिंतामणि, पढ़ रही है? क्या तुम्हें पढ़ना आता है? यह संस्कृत, मराठी या कहो हिंदी है।
वैसे कल भी आपको हरिकीर्तन प्रभु और कृष्ण भक्त प्रभु पंढरपुर आने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि यहां पंढरपुर धाम में किस प्रकार की तैयारियां हो रही है। (किसकी तैयारी? अगली एकादशी की।) आज एकादशी है फिर अगली एकादशी होगी- शयनी एकादशी। इस एकादशी के दिन भगवान ने मुझ पर कृपा की और इसी एकादशी के दिन मुझे जन्म भी दिया था। अगली एकादशी के दिन, मेरा जन्मदिन भी है। वैसे मैं यह कह ही रहा था कि हरि वासर है। एकादशी, हरि वासर है या माधव तिथि है। इसलिए निश्चित ही यह एकादशी तिथि पांडुरंग, विट्ठल तिथि है। पंढरपुर में हर एकादशी महोत्सव को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है और यहां पर असंख्य विट्ठल भक्त पहुंच जाते हैं। उन सभी एकादशियों में जो शयनी एकादशी है अर्थात अगले वाली एकादशी में सबसे अधिक संख्या में यात्री/ दर्शनार्थी या विठ्ठल भक्त पंढरपुर पहुंच जाते हैं। यह पंढरपुर में दर्शन करने या पहुंचने की एक विधि कहो या एक प्रकार कहो, वह दिंडी यात्रा है। दिंडी यात्रा, यह दंडी यात्रा नहीं है जो महात्मा गांधी ने गुजरात में दंडी यात्रा की थी। वह एक अलग बात है यह दिंडी यात्रा है, पदयात्रा है इसको दिंडी यात्रा भी कहते हैं। इसको पालकी भी कहते हैं। यहां पालकी में भगवान के विग्रह या भक्तों की चरण पादुका को ढोते हैं या बैलगाड़ी से उसको खींचते भी हैं।
इस साल अथवा इस वर्ष की दिंडी यात्रा प्रारंभ हो चुकी है और इस दिंडी यात्रा में पांच लाख यात्री भाग ले रहे हैं, यह 18 दिन की यात्रा होती है। ( चित्रों में आप देख सकते हो- यह इस्कॉन अरावड़े द्वारा यात्रा हो रही है और पंढरपुर आ रहे हैं) वैसे महाराष्ट्र के हर नगर, हर ग्राम से यह यात्राएं प्रारंभ होती है। दिंडी यात्रा में दो प्रमुख यात्राएं होती हैं एक- तुकाराम दिंडी कहलाती है जो देहू से प्रारंभ होती है। तुकाराम महाराज की जय! दूसरी यात्रा- आलंदी कहलाती है, आलंदी में ज्ञानेश्वर महाराज की समाधि है। वहां से एक दूसरी यात्रा प्रारंभ होती है। ( चित्र में – देहू के प्रवेश द्वार पर आप देख रहे हो दिंडी यात्रा) यह दिंडी यात्रा पिछले 700 वर्षों से चल रही है। (क्या कहा मैंने? पिछले 700 वर्षों से यह दिंडी यात्रा संपन्न हो रही है। यह बात भी उल्लेखनीय होगी कि हमारे इस्कॉन के भक्त भी इस यात्रा में प्रतिभाग लेते हैं। (जैसा कि आप यहां देख रहे हो ) हमारे जो अलग-अलग पदयात्राएं हैं, महाराष्ट्र पदयात्रा है। महाराष्ट्र पदयात्रा भी इस दिंडी में ही जुड़ गई है। देहू से प्रारंभ होने वाली और आलंदी से प्रारंभ होने वाली इन दोनों यात्राओं में इस्कॉन भक्त भी सम्मलित होकर दिंडी यात्रा कर रहे हैं। हरि! हरि! हमारे इस्कॉन यात्री सिक्योरिटी पर्सन्स को भी प्रेरित कर रहे हैं। यह ताजी खबरें हैं। आप देख सकते हो। लेटेस्ट खबरें, ब्रेकिंग द न्यूज़। हरि! हरि! हरि नाम का प्रचार *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* हो रहा है।
हरे कृष्ण भक्त इसका कीर्तन साथ में कर रहे हैं और बाकी जो अन्य यात्री है उनको वारकरी भी कहते हैं। वारकरी आपने सुना होगा, इनकी संख्या देखिए। कुछ तो यात्रा करने वाले हैं व अन्य कुछ यात्रा करने वालों का स्वागत या दर्शन करने के लिए रास्ते में लाखों लोग एकत्रित हो जाते हैं । देखिए! दिस इज द गुड सीन। आप गिन लीजिए जो मैंने कहा, कई मील लंबा यह जुलूस होता है। इसमें अधिकतर भक्त ही होते हैं। बाकी जो इसमें वारकरी होते हैं वे- *जय जय राम कृष्ण हरि!*
*जय जय राम कृष्ण हरि!*
*जय जय राम कृष्ण हरि!* करते हैं। यह उनका मंत्र है, रास्ते में तुकाराम के अभंग और महाराष्ट्र, अन्य स्थानों अथवा सारे संसार भर में जो विठ्ठल के भक्त हैं। वे ये अभंग गाते रहते हैं। हरि! हरि! देहू से कुछ दिन पहले हमारी यात्रा प्रारंभ हुई। हम रास्ते में हैं। तुकाराम महाराज भी ऐसे ही रास्ते में आया करते थे। वे 1 साल नहीं आ पाए, उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था। हमनें पूर्व में यह कथा सुनाई थी कि कैसे उन्होंने विट्ठल भगवान को पत्र भेजा। जब भगवान ने पत्र अर्थात समाचार सुना तो उसमें लिखा था कि मैं नहीं आ सकता, प्रभु ! क्या आप आ सकते हो? कुड यू प्लीज कम और फिर भगवान गए थे और फिर विट्ठल रुक्मणी गरुड़ को अपना वाहन बनाकर ( वैसे उनका वाहन गरुड़ ही है) भगवान देहु गए थे।
विठ्ठल तो आला आला..
तुकाराम महाराज ने ऐसा गीत भी गाया था।
*विठ्ठल तो आला आला माला भेंट न्याला*
देखो दयालु विट्ठल, मुझे मिलने के लिए आए हैं। यह हमारी दो दिंडियां जो एक देहू से चलने वाली दूसरी आलिंदी से चलने वाली, दोनों हरे कृष्ण दिंडियों को यहां पुणे में एक साथ राधा कुंज बिहारी मंदिर के ( वैसे पुणे में कई मंदिर हैं। ) प्रांगण में देख सकते हैं ( चित्र में इस्कॉन की दोनों यात्राएं आप एक साथ देख रहे हो।) रूप रघुनाथ स्वामी महाराज भी स्वयं इस पद यात्रा में हैं। शंख ध्वनि करके वह घोषित भी कर रहे हैं कि यह दिंडी यात्रा आगे बढ़ रही है आप आइए, ज्वाइन अस। वे अड्रेसिंग द असेंबल डवोटी। हरि हरि। यहां चित्र में भक्त स्वयं ही रथ खींच रहे हैं। भक्त इस प्रकार से आनंद लूट रहे हैं। केशव प्रभु इस एक यात्रा का नेतृत्व भी कर रहे हैं। इस यात्रा को चलाने का श्रेय केशव प्रभु को भी जाता है, केशव प्रभु बहुत प्रयास करते हैं। आपकी जानकारी के लिए यह हमारे इस्कॉन की दिंडी यात्रा पिछले 25 वर्षों से हो रही है। इस वर्ष पार्थ सारथी प्रभु भी देख रहे हैं। वह भी नेतृत्व करते रहते हैं। (एक यात्रा जो… अब नाम नहीं कहूंगा। ) एक यात्रा जो पिछले 25 सालों से चल रही है, उसकी सिल्वर जुबली हम इस साल मना रहे हैं और दूसरी यात्रा को 18 या 19 वर्ष हो रहे हैं। इस्कॉन का प्रतिभाग इतने वर्षों से हो रहा है। शुरुआत में कुछ संख्या कम हुआ करती थी इस्कॉन की !
पदयात्रा में दिन-ब-दिन हर साल पद यात्रियों की संख्या में वृद्धि हो रही है और भक्त जप एंड नृत्य कर रहे हैं और यह होता ही है। यहां रास्ते में हर पग पग पर और एवरी स्टेप पर नृत्य होता है, कीर्तन होता है, प्रसाद वितरण होता है, सब समय कथाएं व कीर्तन होते हैं। यह दिंडी का अवसर एक विशेष अवसर है।
जिसमें ग्रहस्थ भक्त भी, किसान भक्त और कई सारे कुछ जवान भी आप देख रहे थे, सब इस यात्रा में सम्मिलित होते हैं और आनंद लूटते हैं। इस यात्रा में तपस्या भी करनी होती है। घर छोड़ा तो फिर कंफर्ट जोन फिनिश्ड। कंफर्ट जोन से बाहर आकर मैदान में आते हैं। रास्ते में आते हैं। ऐसे ही रहना पड़ता है यह देख रहे हो। ना तो ए.सी है लेकिन मच्छरों से बचने के लिए कुछ ना कुछ अर्थात मॉस्किटो नेट तो है। कुछ तो सुविधा है, यहां भक्त कथा कर रहे हैं। यहां पर भक्तगण प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। इंजॉयनिगं प्रसादम। यह हमारे ब्रह्मचारी/ टेंपल भक्तों का मंडल है और भी दूसरे भक्त निश्चित प्रसाद ग्रहण करते हैं। रास्ते में कथा सुनते रहते हैं । भक्ति के पांच महासाधन है आपको याद है कि कौन से हैं? भक्ति के 64 अंग होते हैं। उसमें से 5 को रूप गोस्वामी कहते हैं कि ये महासाधन हैं साधु संग, भागवत श्रवण, नाम संकीर्तन, धाम वास और विग्रह आराधना। इस परिक्रमा अर्थात इस दिंडी में ( पदयात्रा में कह सकते हैं) भी इन पांचों के पांचों आइटम अथवा साधनों को करते हुए भक्त आगे बढ़ते रहते हैं।
दिंडी करना एक साधना है, दिंडी करना एक तपस्या भी है। एक बार हमारे राघवेंद्र प्रभु ने इंटरव्यू लिया था, उन्होंने एक दिंडी के यात्री से पूछा कि इस यात्रा में सुख सुविधा कैसी है। उस व्यक्ति ने अथवा उस भक्त ने कहा था- सुविधा तो नहीं है लेकिन सुख है। (आपने नोट किया था, कृपया इसे नोट कीजिए। मैं समय-समय पर कहते ही रहता हूं। आप इसे सीखो- समझो। फिर आप इसे कह सकते हो, बता सकते हो।) ऐसी यात्रा में कुछ असुविधा हो सकती है, सुविधा कम होती है लेकिन सुख अधिक होता है। आपको क्या चाहिए ? सुविधा को छोड़ो। सुविधा को गोली मारो, कभी ऐसी तपस्या भी किया करो। पदयात्रा या दिंडी यात्रा या ब्रज मंडल परिक्रमा या नवद्वीप मंडल परिक्रमा भी है, श्री क्षेत्र परिक्रमा, जगन्नाथ पुरी में है। ऐसी पदयात्राओं या फिर इस दिंडी यात्रा में आपका स्वागत है, आप कभी आया करो। यह जो दिंडी यात्रा है, इसमें वारकरी कीर्तन और नृत्य करते हुए चलते हैं। प्रभुपाद ने चैतन्य चरितामृत के तात्पर्य में इस दिंडी यात्रा या वारकरियों की यात्रा कीर्तन मंडली की तुलना गौड़ीय वैष्णवों की कीर्तन मंडली के साथ करते हुए काफी साम्य अर्थात समानता को दर्शाया है। प्रभुपाद ने वारकरियों या दिंडी यात्रा की कुछ प्रशंसा भी की है, वे भी कीर्तन ही करते रहते हैं। जो कि कलियुग का धर्म है अर्थात नाम संकीर्तन।
*हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नाम एव केवलम। कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।*
( बृहन्नारदीय पुराण)
अर्थ:-इस कलियुग में आध्यात्मिक उन्नति के लिए हरिनाम, हरिनाम और केवल हरिनाम के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है, अन्य कोई विकल्प नहीं है।
वे हरि का नाम लेते हैं। किसी देवी देवता का नाम नहीं लेते हरे कृष्ण बोलते हैं ! उनके पास हमारे जैसे अर्थात गौड़ीय वैष्णवों की तरह ही मृदंग और करताल होते हैं। यह जो वारकरियों की यात्रा या कीर्तन मंडली है, उनका मृदंग थोड़ा सा भिन्न होता है। उसको पकवास कहते हैं, वह लगभग मृदंग जैसा ही होता है एवं उनके पास करताल होती है। वारकरी भक्त भी बड़े सुंदर सुंदर, मधुर कीर्तन और नृत्य करते रहते हैं। यह दर्शनीय, श्रवणीय कीर्तन उत्सव दिंडी यात्रा महोत्सव होता है।
कभी-कभी 500 लोग करताल साथ में बजा रहे होते हैं या 1000 भक्त या वारकरी एक साथ करताल बजाते हैं। जब वह सुनते हैं तो लगता है कि एक ही व्यक्ति बजा रहा है, वे बड़े कुशल होते हैं। अपने कौशल्या का प्रदर्शन भी करते हैं। मृदंग वादन है या करताल का नाद् है। हरि! हरि! मेरे पिताश्री भी ऐसी दिंडियों में आया करते थे या मेरे गांव से जो लोग दिंडी में आते थे। हरि! हरि! 100 किलोमीटर चल वे कुछ ही दिनों में यहां पहुंच जाते थे। दशमी के दिन पंढरपुर में यह दिंडी पहुंच जाती है और अगले दिन एकादशी होती है। कौन सी एकादशी? शयनी एकादशी। यह भी तो समझने की बात है कि शयनी अथवा आषाढी एकादशी में इतनी बड़ी संख्या में क्यों आते हैं? नाम से ही पता चलता है, शयनी। इस चित्र में देखिए कुछ माताएं तो विट्ठल रुक्मिणी के विग्रह लेकर चल रही हैं, कुछ माताएं तुलसी को ढो रही हैं। वैसे 100 – 100 के ग्रुपस, नगर व ग्राम से आते हैं अर्थात दिंडी में जो पांच लाख की संख्या में भक्त आते हैं इसमें कई सारी टीमें होती हैं। ग्रुप्स होते हैं, मंडल होते हैं। हर मंडली में तुलसी होती है, उनकी पालकी होती है। वे भगवान के विग्रह को ढोते हैं या विग्रहों या संतों के चरण पादुकाओं को ढोते हैं। हरि! हरि! शयनी एकादशी मतलब इस दिन भगवान अब शयन करेंगे अर्थात भगवान सोएंगे, कितना समय सोएंगे। चार महीने। यही चातुर्मास है। आषाढ़, सावन, भाद्रपद, आश्विन कार्तिक। मैंने तो पांच कहें, वास्तव में 4 महीने होते हैं।
…. तत्पश्चात कार्तिक में एकादशी होगी, उसका नाम होगा उत्थान एकादशी। उत्थान मतलब उठना, शयन मतलब सोना। तब भगवान विश्राम करेंगे। उनके विश्राम करने से पहले चलो हम दर्शन कर लेते हैं। इस उद्देश्य से भी भगवान के विश्राम से पहले कई यात्री इतनी बड़ी संख्या में पंढरपुर पहुंच जाते हैं। शायद ऐसी दिंडी या पदयात्रा करते हुए नहीं आते होंगे लेकिन कई सारे तीर्थों में भक्त आ ही जाते हैं। जैसे श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु के समय भी जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा में सम्मिलित होने के लिए पूरे बंगाल, उड़ीसा के भक्त आया करते थे। हरि! हरि! द्वितीय को रथ यात्रा होगी। जगन्नाथ रथ यात्रा महोत्सव की जय! भगवान जब लौटेंगे तब उल्टा रथ होगा। रथ यात्रा होगी, गुंड़ीचा मंदिर जाएंगे। तत्पश्चात उल्टा रथ होगा। जगन्नाथ अपने मंदिर लौटेंगे, जगन्नाथपुरी में भी अषाढ़ी एकादशी महोत्सव है। चैतन्य महाप्रभु के समय में जगन्नाथ पुरी में बड़ी संख्या में भक्त आया करते थे। फिर चातुर्मास प्रारंभ होता है, कई सारे यात्री धाम वास करने के उद्देश्य से भी आ जाते हैं और धाम में ही रहते हैं। कई अपने अपने घर गांव नगर आदि ग्राम में लौटते भी है लेकिन कई सारे साधक धाम वास करते हैं। चार महीनों में कुछ विशेष या अधिक साधना भी करते हैं। अधिक जप तप करते हैं। पठन-पाठन अधिक करते हैं। हरि! हरि! यह चतुर्मास का समय साधना का समय भी है। यह चार महीने का समय विशेष साधना का समय होता है। इसका फायदा उठाते हैं। चातुर्मास की जो कालावधि भी है या ऐसी विधि भी है।
हम लोग आपके लिए भी, योजना बना रहे हैं। आने वाले चातुर्मास में या 4 महीनों में आप किस प्रकार प्रभुपाद के ग्रंथों का अध्ययन कर सकते हो। यह योजना हमारे वेदान्त चैतन्य प्रभु व कुछ अन्य भक्तों की मदद से बन रही है और इसकी घोषणा .. मैं सोचता हूँ कि कुछ संकेत तो आपको मिला है और भी बताया जाएगा। आप तैयार रहो “टू रीड, प्रभुपाद बुक्स” हम लोग बुक डिस्ट्रीब्यूशन मैराथन करते ही रहते हैं लेकिन इस चातुर्मास में ‘रीड माय बुक्स” अर्थात प्रभुपाद के ग्रंथों का मैराथन होगा। इस संबंध में और आपको बताया जाएगा। क्या आप तैयार है? ठीक है। कुछ रिस्पॉन्स है। आप तैयार हो रहे हो। हरि! हरि! यहां जब यात्री आ जाते हैं तो क्षण भर का ही दर्शन होता है। विट्ठल भगवान के दर्शन के लिए आते क्यों है? 18 दिन चलते हैं, रास्ते में इतनी सारी तपस्या को झेलते हैं। यहां आने पर कभी-कभी या कुछ कुछ यात्रियों को 18 घंटे लाइन में खड़ा होना पड़ता है। हरि! हरि! पंढरपुर के पास में आ गए यात्री तो..शरण में आ रहे हैं,. हमनें एक वीडियो बनाया है- डॉक्यूमेंट्री। आपको कभी दिखाने का प्रयास होगा। 18 दिन की यात्रा और दस- बीस घंटे लाइन में खड़े होने के उपरांत, हर यात्री को…
एक दिन में 20 लाख लोग दर्शन करना चाहते हैं । वन एट ए टाइम। यहां के दर्शन का यह विशिष्टय है। यहां एक समय एक ही व्यक्ति दर्शन करता है। इसलिए हर भक्त अथवा हर दर्शनार्थी को कुछ फ्रैक्शन ऑफ़ सेकंड कहिए। एक सेकंड में कईयों को दर्शन करा कर आगे भेजा जाता है। आउट… नेक्स्ट.. अगला… अगला… अगला… अगला. मैं जो कह रहा हूं यह भी स्लो हो गया। नेक्स्ट.. उससे भी अधिक तेजी से उनको आगे बढ़ाना होता है। क्षण भर का या आधे क्षण का दर्शन हुआ तो बस,तो उनकी यात्रा सफल। सारी यात्रा / सारी तपस्या/ सारे प्रयासों का फल क्या है? क्षण भर का दर्शन। उनकी यात्रा सफल, उनका जीवन सफल।
दर्शन करने के उपरांत उनके चेहरे देखोगे तो समाधान/ तृप्ति देखोगे। जब वे दर्शन करके बाहर आते हैं। हरि! हरि! हम भी जब छोटे थे। हमारे पिता या गांव के लोग भी दिंडी यात्रा में जाते तो हम उनकी प्रतीक्षा में रहा करते थे। वैसे हम बच्चों की रुचि तो कुछ प्रसाद लेकर आने में थी। फिर गांव के लोग यात्रा करके जब लौटेते हैं अर्थात जो विट्ठल का दर्शन करके आए हैं, उनका दर्शन करना, उनके चरणों का स्पर्श करना या उनको आलिंगन देना, भगवान को आलिंगन देने के बराबर की बात है। जो इस दिंडी यात्रा में गांव वाले या नगर वाले नहीं जा पाए, तो वे उन यात्रियों का दर्शन करते हैं। उनका चरण स्पर्श करते हैं, उनका अलिंगन करते हैं और उनसे कुछ प्रसाद भी प्राप्त करते हैं। जो नहीं गए उनको भी दर्शन का लाभ प्राप्त होता है और इस प्रकार यह कृष्ण भावनामृत या भगवद भावना या यह कृष्ण भावना विट्ठल पांडुरंग भावना सर्वत्र फैलती है। हरि! हरि!
प्रभुपाद ने मुझे पदयात्रा करने के लिए आदेश दिया। प्रभुपाद के आदेशानुसार महाराष्ट्र में यात्रा या भारतवर्ष में कई स्थानों पर दिंडी यात्रा टाइप पदयात्रा होती हैं लेकिन पंढरपुर में जो दिंडी यात्रा होती है। यह बड़ी अनोखी है, यह बड़ी अनुपम है। इसकी तुलना किसी भी यात्रा के साथ संभव नहीं है। श्रील प्रभुपाद ने यह पदयात्रा करने के लिए मेरा चयन किया अर्थात मुझे सिलेक्ट किया। हम देशभर में और विदेशों में यह पदयात्रा स्पिरिट को फैला रहे हैं। जब प्रभुपाद का जन्म शताब्दी महोत्सव उत्सव मनाया गया.. (जन्म शताब्दी समझ रहे हो? जन्म शताब्दी अर्थात सौवीं बर्थ एनिवर्सरी वर्ष १९९६ में मनाए ) इस्कॉन की एक पदयात्रा मिनिस्ट्री है जिसका मैं मिनिस्टर हूं। हम लोगों अर्थात पदयात्रियों ने सौ से अधिक देशों में पदयात्रा संपन्न की हुई है। क्या सुना आपने? कुछ तो थक गए, आप सो रहे हो। १०० से अधिक देश में पदयात्रा हुई। मैं भी कई सारे देशों में गया भी लेकिन वहां के स्थानीय निवासी या हरे कृष्ण भक्तों ने पदयात्रा की और प्रभुपाद को जन्म शताब्दी के उपलक्ष में यह हमारी श्रद्धांजलि रही। आज तक कई देशों में ऐसी पदयात्राएं चल ही रही है।
वर्तमान में भारत में भी, अधिक अधिक संख्या में पदयात्राओं की संख्या में वृद्धि हो रही है। वनडे पदयात्रा इत्यादि भी चल रही है और साथ ही साथ… किसी और दिन बताएंगे। आपको भारत में नगर आदि ग्राम योजना बन रही है। श्रील प्रभुपाद का 130 वां जन्म वर्ष हम मनाएंगे। जो कि चार-पांच वर्षो के उपरांत है। तब तक हरि नाम को और अधिक अधिक भारत के कोने कोने में इस पदयात्रा को पहुंचाने की योजना या कीर्तन अर्थातनगर आदि ग्राम योजना बन रही है। इस्कॉन इण्डिया के लीडर्स मिलकर ऐसी योजना बना रहे हैं। अगले 5 वर्षों में सभी बड़े नगरों में डिस्ट्रिक्स टाउन, तहसील व कई सारे ग्रामों में भी हरिनाम को पहुंचाने की योजना है और भी बताएंगे बड़ी विशेष योजना है। एक मिनट में नहीं कहा जा सकता। इसके लिए लंबा समय चाहिए, अधिक समय की आवश्यकता है समय भी बीत चुका है। मैं अपनी वाणी को… पदयात्रा को तो यहां विराम नहीं दे रहे हैं लेकिन यहां अपनी वाणी को विराम देंगे। देखिए, कैसे स्वागत होता है। पदयात्रा में कितने लोग जुड़ जाते हैं। सारा गांव ही इकट्ठा हो जाता है।
श्री श्री निताई गौर सुंदर की जय! श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु के दर्शन और साथ में *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* अर्थात इस कीर्तन को सुनने के लिए और कुछ प्रसाद प्राप्त करने के लिए और प्रभुपाद के ग्रंथ का वितरण भी होता है। हरि! हरि ओके आज एकादशी है तो अगले एकादशी आपको मिलेंगे। व्यक्तिगत फिजिकली। ऐसी आशा और प्रार्थना के साथ वाणी को विराम दे ही देते हैं।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। पांडुरंग! पांडुरंग! पांडुरंग! गौरांग! गौरांग गौरांग!
तुकाराम महाराज की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल!
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा- १५/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*जय जय श्री चैतन्य जय नित्यानंद*
*जय जय श्री अद्वैत्य चंद्र गौर भक्त वृन्द*
जय जगन्नाथ
उड़ीसा के भक्त कह सकते है जय जगन्नाथ।
कुछ समय से सारी दुनिया ऑनलाइन चल रही थी कल के दिन हमारे भाग्य का उदय हुआ और जगन्नाथ हमें यहाँ ले आये।
पर्सनल फेस टू फेस दर्शन हुआ।
जगन्नाथ के प्राकट्य का दिन है उसी दिन स्नान यात्रा होती है कल हुयी।
हमको यहाँ पहुंचते पहुंचते देरी हुयी हम सोच रहे थे स्नान की यात्रा होगी या नहीं लेकिन जगन्नाथ ने स्नान देरी से करवाया और हमें स्नान का दर्शन दे ही दिया।
हरी हरी स्नान यात्रा हो ही रही थी स्नान यात्रा के मध्य में जगन्नाथ ने ही भेजे होंगे एक पांडा आये और उन्होंने जगन्नाथ के स्नान का जल दिया हमने पान किया आप दर्शन कर सकते हो एक अंग वस्त्र भी देकर गए जो जगन्नाथ पहने थे स्नान के वक्त।
इस वस्त्र का स्पर्श जगन्नाथ के स्पर्श के ही सामान है। पताका भी देकर गए। कल हमने सिखर पर कलश पर पताका देखा। तुलसी भी हम तक पहुंच गयी।
ऑनलाइन चल ही रहा था इसीलिए ऑनलाइन में हम प्रसाद नहीं बात सकते।
यह सब आप देख रहे हो कल जगन्नाथ का भट जगत पसरे हाथ। हम भी हाथ फैला रहे थे। वहा आनंद बाजार है। जगन्नाथ प्रसाद आनंद। एक पांडा है वह जगन्नाथ के प्रसाद बनाते है उनोने हमको प्रसाद दिया जी भर के हमने प्रसाद ग्रहण किया। फिर उन्होंने हमको कुवा दिखाया जिस कुवे से साल में एक बार जगन्नाथ का अभिषेक होता है। विमला देवी के सामने है यह कुवा। दिखाते दिखाते उन्होंने हमको जगन्नाथ का जहा नव कलेवर होता है पुराने विग्रह रखेह जाते है समाधिस्थ किये जाते है वह स्थान भी हमने देखा हरी हरी।
जब देखते है तो बहुत कुछ होता भी है यह देखना साधारण देखना नहीं होता।
दर्शनीय स्थल जब हम देखते है सुनते है तो कुछ याद आता है।
१९७७ में मै पहली बार आया था जगन्नाथ के दर्शन के लिए उस समय पांडा लोगो ने मुझे रोका था।
में पूछा क्यों रोक रहे हो तो उन्होंने कहा तुम पहले क्रिश्चन थे तुम्हे इस्कॉन वालो ने हिन्दू बनाया है उन्होंने सच मच हमको आउट करा दिया था।
लेकिन उसी समय जब पांडव ने रोका था हमको खींचा तानी चल रहा था तो हमारे साथ एक शिष्य थे प्रभुपाद के उनका जन्म न्यूयोर्क में हुआ था। वे भी हमारे साथ जा रहे थे उन्होंने देखा लड़ाई हो रही है हम क्यों बिच में पड़े चलो हम जगन्नाथ के दर्शन करते है।
और उन्होंने दर्शन भी किया।
और हम उन्हें वृक्षराज को खोज रहे थे।
वे आये दर्शन करके और हमें तुलसी लाये थे और हमने उनको गले लगाया। उन दिनों जगन्नाथ ने हमें आउट किया था लेकिन कल हमें के पांडा अंदर ले गए बढ़िया सा जगन्नाथ के समक्ष निकट दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
क्या कह सकते है हमारी जगन्नाथ यात्रा सफल हो गयी।
जीवन सफल हुआ। *जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गमी भाव तुमि* ऐसी प्रार्थना करते है भक्त। भक्त भगवान् को मिलाना चाहते है और जगन्नाथ भी भक्त को देखना चाहते है। पतित है हम सब और जगन्नाथ है पवन हम सभी को सुद्धा बनाने वाले है जगन्नाथ स्वामी की जय। जगन्नाथ स्वामी प्रेम की मूर्ति है। कैसा प्रेम ? भक्त प्रेम
हमारा प्रेम कृष्णा प्रेम। हम जगन्नाथ से प्रेम करते है और वे किनसे प्रेम करते है भक्तो से प्रेम करते है।
साधु मेरे ह्रदय में है और साधु के ह्रदय में मै हु। दुनिया में क्या है ? जीवात्मा है जिव है और वे भक्त है। दुर्देव से संसार में जिव पहुंचे है और वे भगवान को भूल गए है उनकी भोग वांछा है। भूले भटके जिव को प्रेम देने भगवान आते है धाम से।
*गोलोक नाम्नि निज-धाम्नि तले च तस्य*
*देवी-महेश-हरि-धामनु तेषु तेषु*
*ते ते प्रभाव निचया विहिताश्च येन*
*गोविंदं आदिपुरुषं तमहं भजामि*
गोलोक के निवासी जगन्नाथ पूरी के वासी बन जाते है। वैसे यह भी वृन्दावन ही है। यहाँ नीलाचल है और सुन्दाचाल भी है।
नीलाचल भी गोलोक ही है।
गोलोक में द्वारका मथुरा होता हिअ। जगन्नाथ मंदिर द्वारिका है और सुन्दराचल है वृन्दावन। हरी हरी।
जब रथ यात्रा होती है तो वृन्दावन के भक्त भगवान् को द्वारका से कुरुक्छेत्र से वृन्दावन ले जाते है। कल हमने नया रथ भी देखा। ३ रथ देखे मैंने। कल हुयी स्नान यात्रा और १४-१५ दिन में होगा रथ यात्रा। प्रति वर्ष नए रथ बनाये जाते है।
नीलाचल और सुंदराचल के बिच नदी बहती है और जगन्नाथ बलदेव सुभद्रा को बड़ी पार करवाते है। और रथ ने विराज करके गुंडिचा मंदिर पंहुचा देते है। यह जगन्नाथ पूरी धाम का प्रलय नहीं होता। यह गोलोक ही है वृन्दावन ही है। धाम एक ही है २ नहीं है। जगन्नाथ पूरी में श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु रहे। मै कुछ दिन पहले पानीहाटी में था। पानीहाटी में पूरा एक दिन महाप्रभु रहे यह कोई मामूली बात नहीं है। इसीलिए पानीहाटी धाम की जय। वह धाम महँ धाम हुआ। नित्यानंद प्रभु भी वह ३ महीने रहे। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ पूरी में १८ साल रहे।
१ वर्ष = ३६५
३६५*१८= ६५७०
इतने दिन श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु वह रहे।
मै कह ही रहा था की केवल भक्त ही भगवान् से प्रेम नहीं करते है भगवान भी प्रेम करते है। भक्त और भगवान् के बिच जो रपेम है प्रीति है उसका प्रदर्शन जगन्नाथ पूरी में होता ही रहता है यह प्रेम का धाम है।
यह मिलन का भी स्थान है जहा भगवान् और भक्त मिलते है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
गौड़ीय वैषणव के लिए जगन्नाथ और जगन्नाथ पूरी विशेष धाम है जहा रहने के लिए सच्ची माता ने निमाई को निवेदन किया तुम जाओ जगन्नाथ पूरी में रहो।
यहा जगन्नाथ स्वामी विरह से व्यतीत है। भक्त से बिछुड़ गए है विरह से व्यतीत है जगन्नाथ स्वामी। हरी हरी
यहाँ होता है मिलन भक्त और भगवान का। जगन्नाथ पूरी में मिलते है। ऐसा ही हुआ जब चैतन्य महाप्रभु यहाँ थे तो। चैतन्य महाप्रभु रथ के सामने जब जाते तो कहते आप दीपक हो।, आपका अंग कोमल है , आप मुक्ति दाता हो, दुस्टो का आप संहार करते हो। जगन्नाथ स्वामी की जय। वही कृष्ण प्रेम जगन्नाथ प्रकट किये है।
*जय गौर सेइ कृष्ण सेइ जगन्नाथ*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे* यह भी उन्ही की कृपा है।
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जप चर्चा,
*परम पूजनीय लोकनाथ स्वामी महाराज द्वारा*
*दिनांक 23 जून 2022*
हरे कृष्ण!!!
सुनो! हरे कृष्ण! आप भगवान के नाम को सुन ही तो रहे थे, उनका नाम कृष्ण हैं, उनका नाम राधा है, उनका नाम हरे है, उनका नाम राम है।सुन रहे हो? पहले उनके नाम को सुन रहे थे, अब उनके कुछ गुण या कथा को सुनिए। भगवान से संबंधित बातें होगी, दोनों को ही सुनना है, नाम को भी सुनना है। कीर्तनीय सदा हरि भी करना है या नित्यम् भागवत सेवया भी करना है। आप समझ रहे हो? जाह्नवी गंगा समझ रही है?
हरि! हरि! पुनः आपका स्वागत है, अभिनंदन भी है। जब हम आपको जप करते हुए देखते हैं तो हमें भी आनंद होता है। उसको व्यक्त करना..उसको अभिनंदन कहते हैं। जिसको आप मलेच्छ अर्थात अंग्रेजी भाषा में कांग्रेचुलेशन कहते हो। अभिनंदन! हरि! हरि!
सादा जीवन, उच्च विचार। सादा या सरल जीवन, उच्च विचार का जीवन। यही कृष्ण भावना का जीवन है या कृष्ण भावना की समझ भी कहिए। इस संबंध में दो दिन पहले कुछ कह चुका हूं लेकिन सोच रहा हूं कि उन्हीं बातों को थोड़ा और कहूं एवं और स्पष्ट करुं। यह भी कहा ही था कि भगवान के विचार ही उच्च विचार हैं और हमें उनके विचार का बनना है। सारे संसार के भगवान एक ही हैं। हमें एक ही भगवान के विचार के बनना है। तब हम सारे संसार भर के लोग एक विचार के हो जाएंगे, वह विचार उच्च भी होगा और एक जैसा होगा। इसी के साथ संसार में ऐक्य की स्थापना होगी। ऐक्य समझते हो? एकता (यूनिटी) जोकि अत्यंत अनिवार्य है। हरि! हरि! भगवान अनेक नहीं हैं। भगवान एक है, हम अनेक हैं।
*नित्यो नित्यानां चेतनश्चेतनानाम् एको बहूनां यो विदधाति कामान् तमात्मस्थं येऽनुपश्यन्ति धीराः तेषां शान्तिः शाश्वती नेतरेषाम् ॥*
(कठोपनिषद् २.२.१३)
अनुवाद:- परम भगवान् नित्य हैं और जीवात्मा गण भी नित्य हैं। परम भगवान् सचेतन हैं और सभी जीवात्माएं भी सचेतन हैं। परन्तु अन्तर यह है कि, एक परम भगवान् सभी जीवात्माओं के जीवन की आवश्यकताओं को पूर्ण करते हैं। जो भक्तगण उस आत्मतुष्ट परम भगवान् को निरन्तर देखते रहते हैं या निरन्तर स्मरण करते हैं, उन्हें ही शान्ति प्राप्त होती है, अन्यों को नहीं।
विठू माझा लेकुरवाळा
संगे गोपाळांचा मेळा
निवृत्ती हा खांद्यावरी
सोपानाचा हात धरी
पुढे चाले ज्ञानेश्वर
मागे मुक्ताई सुंदर
गोरा कुंभार मांडीवरी
चोखा जीवा बरोबरी
संत बंका कडेवरी
नामा करांगुळी धरी
जनी म्हणे गोपाळा
करी भक्तांचा सोहळा।।
मेरे बगल, पीछे- आगे, अंदर- बाहर सर्वत्र पांडुरंग! पांडुरंग! भगवान ही भगवान है। यतो यतो यामि ततो नृसिंहः। यह बात है, हम जहां भी जाते हैं, वहां नृसिंह भगवान हमारी रक्षा करें। ‘जगन्नाथ स्वामी नयन पथगामी भवतु मे।’
मैं जहां भी देखूं, जिस तरफ देखूं, वहां वहां आप, हे जगन्नाथ आप मुझे दर्शन दोगे। वहां वहां भगवान हैं, कृष्ण हैं, भगवान सर्वत्र हैं। ऐसे भगवान के विचार के हमें होना है। सारे संसार भर के लोगों को ऐसे विचार का होना चाहिए। हरि! हरि! तभी कुछ संसार में शांति की स्थापना या विश्वबंधुत्व की स्थापना होगी।विश्वबंधुत्व अर्थात ब्रदरहुड। शब्द तो हम सुनते ही रहते हैं, हम ब्रदर तो हैं, ऐसा नहीं कि कृत्रिम रूप से ऐसा संबंध स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। मैत्री का सम्बंध या विश्वबंधुत्व का सम्बंध या कहा जाए पारिवारिक सम्बंध *वसुधैव कुटुंबकम*। सारे संसार के लोग मेरे ही परिवार के हैं या एक ही परिवार के हैं। यह बातें वैसे सत्य हैं किंतु इस संसार में पहुंचकर हम भोग-वाञ्छा करने लगते हैं।
*कृष्णबहिर्मुख हइया भोग-वाञ्छा करे । निकटस्थ माया तारे जापटिया धरे ॥*
( प्रेम विवर्त)
अनुवाद:-
अनादि काल से कृष्ण-बहिर्मुख जीव नाना प्रकार से सांसारिक भोगों की | अभिलाषा करता आ रहा है। यह देखकर उसके समीप ही रहनेवाली माया झपटकर उसे पकड़ लेती है।
फिर माया हमें झपट लेती है। माया ने संसार को हर जीव को पछाड़ लिया है। इसलिए तो जीव बद्ध जीव कहलाता है और उनकी सोच भी नीच है। ‘लो थिंकिंग’ चलता है, जिसके कारण संसार परेशानी में है। उच्च विचार क्या है?’व्हाट इज हाई थिंकिंग।
*ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरमयाः। सर्व भद्राणी पश्यन्तु मा कशिद्दुःखभाग्भवेत। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः॥*
अनुवाद:- सभी संवेदनशील प्राणी शांति से रहें,कोई बीमारी से पीड़ित न हो,
सभी देखें कि क्या शुभ है, किसी को कष्ट न हो।ओम शांति, शांति, शांति।
यह उच्च विचार है। ऐसा सोचना भी… उसी को उच्च विचार कहते हैं। सर्वे सुखिनः अर्थात सभी सुखी हो। सभी सुखी हो। सर्वे संतु निरामय: अर्थात सभी निरोगी हो। भव रोग से भी मुक्त हो। यह तो संसार नहीं जानता है, जब हम रोग कहते हैं। कैंसर या यह रोग वह रोग। ऐसे ही कुछ रोग का हम स्मरण करते हैं और कहते हैं। व्याधि को समझते हैं लेकिन आधि को नहीं समझते। आदि मतलब मानसिक रोग। इसको भागवत में हृत रोग भी कहा है। हृत रोग मतलब हार्ट की डिसीज। हमारे भावना या विचारों में विकृति आ चुकी है। हम लोग भव रोगी बने हुए हैं। सर्वे संतु निरामय:।
सभी निरामय हो, निरोगी हो। सर्वानी भद्राणि पश्यंतु अर्थात सभी मंगलय का अनुभव करें।
*उत्तिषो उत्तिष्ठ गोविंदा उत्तिष्ठ गरुड़ध्वज। उत्तिष्ठ कमलाकाष्ट त्रैलोक्य: मंगलांगकुरु* ..
अर्थ:- जागो, हे गोविंदा जागो, जिसके ध्वज पर गरुड़ का ध्वज है। जागो, लक्ष्मी की प्रिय, तीनों लोकों के कल्याण के लिए आशीर्वाद।
ऐसी हम प्रार्थना भी करते हैं। उत्तिषो उत्तिष्ठ गोविंद त्यज निद्रां।
आप भगवान को प्रार्थना करके जगाते है। प्रभु! आप मंगलाय की स्थापना कीजिए, इस मंगलाय का हम सारा संसार अनुभव करें।
मङ्गलमय। हर एक का जीवन एक यात्रा है। सभी की यात्रा, सभी का सफर मंगलमय हो। जैसे जब रेल यात्रा प्रारंभ होती है, तब रेलवे स्टेशन दिल्ली या नागपुर आदि पर हम सुनते हैं कि आपकी यात्रा मंगलमय हो। ऐसे मङ्गलय की कामना करना.. सर्वे संतु निरामय: सर्वाणि भद्राणी पश्यन्तु.. मा कशिद्दुःखभाग्भवेत अर्थात कोई दुखी नहीं रहे। यह विचार उच्च विचार है। यह वसुधैव कुटुंबकम। पृथ्वी पर जितने लोग हैं, भूल गए हैं कि वे कहां से हैं? किस देश के हैं? या किस धर्म के हैं? काले हैं, गोरे हैं? स्त्री या पुरुष हैं? गरीब या धनवान है? जो भी है, हम एक हैं। हम एक परिवार के हैं। परिवार के क्योंकि भगवान हमारे परिवार के मुखिया हैं। इसलिए हम एक परिवार है।
*अयं निजः परो वेति की गणना लघु चेतसाम् | उदारचरितानां तू वसुधैव कुटुंबकम् |*
अर्थ:- यह मेरा है , यह : गलत सोच वाले लोगों के समान ही असंतुलित होते हैं;
यह नीच विचार का एक नमूना है।अयं निजः अर्थात ये लोग मेरे हैं किंतु ये लोग पराए हैं। ऐसा विचार गणना लघु चेतसाम्। लघु मतलब हल्का अथवा संकीर्ण अथवा नैरो माइंडेड, ऐसे विचार वाले लघु चेतसाम् है, चेतसाम् अर्थात चेतना या भावना कहो। लघु चेतना वाले अर्थात नीच विचार वाले लोग ही ऐसा सोचते हैं या द्वंद की बात करते हैं। अपना पराया की बात करते हैं अयं निजः परो वेति की गणना लघु चेतसाम्। किंतु उच्च विचार वाला व्यक्ति कैसे सोचता है? *उदारचरितानां तू वसुधैव कुटुंबकम्* अर्थात जिसका चरित्र उदार है या जिसकी विशाल दृष्टि या उच्च विचार है। उसका विचार क्या है? वसुधैव कुटुंबकम अर्थात इस पृथ्वी पर जितने भी लोग हैं, मेरे परिवार के हैं। हरि! हरि!
*परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः |
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ||*
( भगवतगीता 8.20)
अर्थ:- इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता |
ऐसा ही बैकुंठ/गोलोक/ वृंदावन/ द्वारका में जोकि भगवान का परमधाम है। जिसे हम उच्च विचार कह रहे हैं और जिसे शास्त्रों में भी कहा गया है। वे विचार भगवत धाम अथवा बैकुंठ के हैं या वैकुंठवासियों के ऐसे विचार हैं। यहां आकर हम लोग नीच विचार के बन जाते हैं, सम्भ्रमित होते हैं। द्वंद में पिसे जाते हैं, इसी से तो मुक्त होना है।
*यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः | समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ||*
(श्रीमद भगवद्गीता ४.२२)
अर्थ- जो स्वतः होने वाले लाभ से संतुष्ट रहता है, जो द्वन्द्व से मुक्त है और ईर्ष्या नहीं करता, जो सफलता तथा असफलता दोनों में स्थिर रहता है, वह कर्म करता हुआ भी कभी बँधता नहीं |
यह अपना- पराया, देशी- विदेशी, काला- गोरा.. स्त्री- पुरुष, यह जो द्वंद है; पूरा संसार इस द्वंद से भरा हुआ है। हमें द्वन्द्वातीतः बनना उच्च विचार का बनना है। (यह शास्त्र की भाषा भी तो समझ लो। पहले तो यह द्वंद क्या होता है, यह हमें समझ में नहीं आता है। यह द्वंद क्या है। हर शब्द, हर अक्षर को हमें धीरे-धीरे समझना होगा। तभी तो हम उच्च विचार के बन जाएंगे) द्वन्द्वातीतः द्वन्द्व से अतीत अथवा द्वन्द्व से परे। यह हिंदू मुसलमान द्वंद है। हरि! हरि! द्वन्द्वातीतो विमत्सरः, मत्सरः रहित। छह अलग-अलग शत्रुओं में एक शत्रु है- मात्सर्य। मात्सर्य से प्रभावित होकर हम दूसरों से नफरत करते हैं। हमारे मुस्लिम बंधु काफी प्रवीण है, कुशल हैं। जब ईर्ष्या द्वेष की बात है मात्सर्य की बात है, वे इस संसार में उस के क्षेत्र अर्थात उस मामलों में लीडर्स है। हरि! हरि!
किल दैम। इसलिए औरों की जान लेने के बात सोचते हैं लेकिन कृष्ण कहते हैं द्वन्द्वातीतो विमत्सरः।
औरों की जान लेने की बात सोचते हैं। लेकिन कृष्ण कहते हैं द्वन्द्वातीतो विमत्सरः अर्थात मात्सर्य रहित बनो।
मात्सर्य रहित बनना यह उच्च विचार है।
यदृच्छालाभसन्तुष्टो- यह भी उच्च विचार है, कृष्ण ने कहा है। यदृच्छाला मतलब भगवान की इच्छा से जो भी प्राकृतिक, नैसर्गिक रीति से प्राप्त होता है, उसी लाभ में संतुष्ट रहना। हरि! हरि!
क्योंकि इस संसार में समाधान ही नहीं है। यह जो कृष्ण भावना है। अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ व श्रील प्रभुपाद को माध्यम या निमित्त बनाकर संसार भर के लोगों को उच्च विचार के बनाने का प्रयास भगवान का ही है। ऐसा नहीं कि भारत के लोगों को ही उच्च विचार का होना चाहिए और अमेरिका, मिडिल ईस्ट के लोगों को नहीं, सभी को उच्च विचार का बनना है। यह जीव जब शुद्ध बनता है। चेतोदर्पण- मार्जनंम होता है, उसकी भगवत भावना, कृष्ण भावना जागृत होती है।
*उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यय दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति।।*
(कठोपनिषद १.३.१४)
अर्थ:- उठिए, जागिये और जो वर तुम्हें इस मानव शरीर में प्राप्त हुआ है, उसे समझने का प्रयास कीजिए। विद्वान लोग कहते हैं कि जिस प्रकार छुरे की धार तेज और कठिन है उसी प्रकार आध्यात्मिक साक्षात्कार का मार्ग चलने के लिए बहुत कठिन है।
यह तो शास्त्र की बातें हुई। उठो, उठो, हे जीव जागो, उत्तिष्ठत जाग्रत अर्थात जागो। जागो मतलब जीव के जो मूल विचार हैं, उनको जगाओ। जग जाओ। वेक अप टू द रियलिटी!
शुद्ध, मुक्त जीव उच्च विचार का बनता है। जैसे वैकुंठ में या वृंदावन/ भगवत धाम में प्राय: हर जीव उच्च विचार का होता है। एवरी लिविंग एंटिटी इन वैकुंठ/ गोलोक। वे उच्च विचार के होते हैं। कृष्णभावनाभावित होना ही उच्च विचार है। कृष्णभावनाभावित मतलब उच्च विचार होना है। उच्च विचार , ये कृष्ण भावना के विचार हैं। कृष्ण भावना, यह हमारे मूल विचार हैं। जिस विचार के साथ हम एक समय भगवान के साथ थे, उस विचार के हमें पुन: बनना है। तभी तो पुनः गोइंग बैक टू गोड हेड हो पाएंगे।
*आम्ही जातो आपुल्या गावा ।आमचा राम राम घ्यावा ॥१॥*
*तुमची आमची हे चि भेटी ।येथुनियां जन्मतुटी ॥२॥*
*आतां असों द्यावी दया । तुमच्या लागतसें पायां ॥३॥*
*येतां निजधामीं कोणी । विठ्ठल विठ्ठल बोला वाणी ॥४॥*
*रामकृष्ण मुखी बोला । तुका जातो वैकुंठाला ॥५॥*
हम वैकुंठ जा रहे हैं। वैकुंठ में तो वही जाएंगे, उन्हीं को एंट्रेंस मिलेगा। नो एडमिशन, नो ऐडमिशन विदाउट परमीशन जिसे कहते हैं।
एडमिट तभी किया जाएगा, जब हम उच्च विचार के होंगे या कृष्ण भावना भावित होंगें। हरि! हरि! उस दिन भी मैं कह ही रहा था
*मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्टवत् । आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः ॥*
( चाणक्य नीति)
अनुवाद:- जो कोई पराई स्त्री को अपनी माता की तरह, पराये धन को धूल के समान तथा सारे जीवों को अपने समान मानता है, वह पण्डित माना जाता है।
आत्मवृत्त सर्वभूतेषु- सभी जीव मानो मैं ही हूं या मेरे ही हैं। ओरिजिनल भगवान के हैं, तो मेरे भी हैं। उनके सुख-दुख में… उनके सुख से सुखी होना, उनके दुख से दुखी होना यह भी है।
सूत उवाच
*यं प्रव्रजन्तमनुपेतमपेतकृत्यं द्वैपायनो विरहकातर आजुहाव । पुत्रेति तन्मयतया तरवोऽभिनेदु स्तं सर्वभूतहृदयं मुनिमानतोऽस्मि ॥*
( श्री मद भागवतम १.२.२)
अर्थ- भागवत में शुकदेव गोस्वामी के संबंध में कहा। उस मुनि को हम नमस्कार करते हैं जो सभी के हृदय में स्थित हैं। सभी के हृदय की बात को जानने वाले हैं।
*मातृवत् परदारेषु परद्रव्येषु लोष्ट्रवत्। आत्मवत सर्वभूतेषु यः पश्यति स पण्डितः।*
कितना ऊंचा विचार है। मातृवत् परदारेषु- यदि एक बात संसार समझ पाएगा तो उसके अनुसार अपनी कार्यवाही करेगा। सभी स्त्रियां मातृवत् अर्थात माता के समान हैं। यही तो संसार में अथवा संसार के समक्ष बड़ी समस्या है। बद्ध जीव सभी स्त्रियों को अपने भोग का साधन ही समझता अथवा मानता है। नीच विचार के व्यक्ति के मन में ही ऐसे विचार आते हैं। मैं पुरुष हूं और वह स्त्री है। वह मेरे भोग के लिए है।मेड फॉर माय एंजॉयमेंट। यह जो विचार है, यह नीच विचार है। उच्च विचार क्या है? मातृवत परदारेषु। एक प्रचारक को इस विचारधारा का विश्व भर में प्रचार प्रसार करना चाहिए।
*यारे देख, तारे कह ‘कृष्ण’ उपदेश । आमार आज्ञाय गुरु हआ तार’ एड देश ॥*
( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला ७.१२८)
अनुवाद:- हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये वान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करें। इस तरह गुरु बनो और इस देश है हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो।
हम कृष्ण उपदेश करते हैं, ऐसा करने का आदेश भगवान का ही है। हम प्रभुपाद के ग्रंथों का वितरण करते हैं। एक बार जब श्रील प्रभुपाद से पूछा गया था कि आखिर आप चाहते क्या हो? आप अपना देश छोड़कर यहां विदेश अमेरिका में आए हो। आप दुनिया या हमसे चाहते क्या हो ?
उसके उत्तर में प्रभुपाद ने कहा था- द वे दे थिंक, द वे पीपल थिंक अर्थात लोग जिस प्रकार के विचार करते हैं, उसमें मैं परिवर्तन देखना चाहता हूं। दुनिया भर के लोग जैसा भी सोचते हैं जैसा विचार करते हैं, उसमें मैं परिवर्तन चाहता हूँ.. एवरी वन इज थिंकिंग थिंकिंग। हर व्यक्ति विचार करता है। संकल्प विकल्प, संकल्प विकल्प यह चलता ही रहता है और क्या करता है वह विचार करता है हर व्यक्ति विचार करता है। हर व्यक्ति का विचार होता है। मैं उसमें परिवर्तन देखना चाहता हूं। उन विचारों में क्रांति हो, विचारों की क्रांति हो। रेवोलुशन इन थिंकिंग कहो। सोच में क्रांति हो। प्रचार करना मतलब लोगों के जो सोचने का ढंग है या प्रकार है.. उसमें बदलाव लाना है। जैसे गोपियों के बारे में .. गोपियाँ क्या करती थी.. थिंक अबाउट कृष्ण ओनली.. केवल कृष्ण के बारे में सोचती थी। वे इतना ही जानती हैं और कुछ ज्यादा नहीं जानती, भगवान का स्मरण करती हैं।
*स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । सर्वे विधि-निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ॥*
( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला २२.११३)
अनुवाद- कृष्ण ही भगवान् विष्णु के उद्गम हैं। उनका सतत स्मरण करना चाहिए और किसी भी समय उन्हें भूलना नहीं चाहिए। शास्त्रों में उल्लिखित सारे नियम तथा निषेध इन्हीं दोनों नियमों के अधीन होने चाहिए।’
वे कृष्ण का स्मरण करती रहती हैं। बस सोचती रहती हैं। स्मरण करना, सोचना लगभग एक ही बात है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है कि
*पृथिवीते आछे यत नगरादि-ग्राम । सर्वत्र प्रचार हड़बे मोर नाम ॥*
(चैतन्य भागवत अन्त्य खंड ४.१२६)
अनुवाद:- पृथ्वी के पृष्ठभाग पर जितने भी नगर व गाँव हैं, उनमें मेरे पवित्र नाम का प्रचार होगा।
मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र हो। पृथ्वी पर जितने नगर हैं, जितने ग्राम हैं। नाम का प्रचार प्रसार होगा। लोग जब भगवान का नाम लेंगे
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
उसी के साथ वे उच्च विचार के बनेगें। वे कृष्ण के विचार के बनने वाले हैं, यही उपाय है, यही सुलझन है। सारे संसार की सभी उलझनों के लिए यह सुलझन है।
हरे कृष्ण महामन्त्र का जप।
हरि! हरि!
*इन्द्रं वर्धन्टो अपटुरः कृण्वन्तो विश्वं आर्यं अपघ्नंतो अरावणः* – (ऋग्वेद 9.63.5)
यह वेदवाणी है। कृण्वन्तो अर्थात करो, क्या करे और किसको करें। विश्व को आर्य करो अर्थात सारे विश्व को आर्य बना दो। यह विश्व अनार्य बन चुका है। अनसिविलाज्ड, कृण्वन्तो विश्वं आर्यं। वैसे यह बड़ा प्रसिद्ध वचन है, वेद वाणी है। हमारी वेद वाणी का उच्चारण केवल इंडिया लिमिटेड या हिन्दू लिमिटेड नहीं है, ना ही ऐसा हो सकता। भगवान क्यों सोचेगें भगवान निश्चित इस द्वंद से परे हैं।
भगवान सभी के लिए एक साथ सोचते हैं, भगवान सभी के कल्याण की बात कहते हैं। भगवान ईस्ट, वेस्ट, हिन्दू मुस्लिम… ऐसा सोच ही नहीं सकते। नॉट पॉसिबल, व्हाट काइंड ऑफ गॉड, कैसे भगवान हैं? वसुधैव कुटुंबकम। इससे पता चलता है, यह विशाल दृष्टि, उच्च विचार है। डोंट डिवाइड, उसके टुकड़े नहीं करने, विभाजन नहीं करना। इसलिए श्रील प्रभुपाद कहा करते थे- यूनाइटेड नेशन ऑफ द स्पिरिचुअल वर्ल्ड, अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ यूनाइटेड नेशन है। संसार भर के लोग भी यू. एन.ओ. अर्थात यूनाइटेड नेशन्स ऑफ ऑर्गनिज़ाशन्स की स्थापना की है, उसका हेड क्वार्टर न्यूयॉर्क में है। श्रील प्रभुपाद अपना अनुभव कहा करते थे- जब भी वे यू.एन.ओ. की बिल्डिंग के पास से गुजरते और कहते- देखो! अनोदर फ्लैग, अनोदर फ्लैग, एक और झंडा। प्रभुपाद कहते हैं- ये कैसा यूनाइटेड नेशन हैं, मोर फ्लैग मीन्स मोर डिसयूनिटी।
ऑफकोर्स यूनिटी इन डाइवर्सिटी इसका प्रचार हो सकता है लेकिन फिर कई देशों के भक्त एक साथ मंच पर एकत्रित… हमने कई बार प्रभुपाद के मुख से यह बात सुनी- दिस इज यूनाइटेड नेशन। देखो! यह भक्त कहां से है, ये कहां से हैं। ये कहां से है.. यह कहां से हैं। वी आल यूनाइटेड या मायापुर में इस्कॉन का हेड क्वार्टर है। मायापुर धाम की जय! वहां कई देशों के फेस्टिवल होते हैं जैसे गौर पूर्णिमा उत्सव या फिर कार्तिक में वृंदावन कार्तिक व्रत के लिए कई देशों के ५०-६०-७०-८० देशों के भक्त एक साथ रहते हैं। एक परिवार के रूप में रहते हैं। एक किचन, एक फैमिली का भी कंसेप्ट होता है। एक ही किचन होता है और एक ही साथ बैठकर भोजन प्रसाद ले रहे हैं। जप और नृत्य करते हैं, वे याद भी नहीं करते कि मैं इस देश का हूं, मैं उस देश का हूं। पहले ईसाई या मुस्लिम था, फॉरगेट। यहां देखो! रशिया और यूक्रेन के बीच में युद्ध हो रहा है।
रशिया के हरे कृष्ण भक्त और यूक्रेन के हरे कृष्ण भक्त एक दूसरे को *वाछां – कल्पतरुभ्यश्च कृपा – सिन्धुभ्य एव च। पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।* कर एक दूसरे को दंडवत प्रणाम कर रहे हैं, एक दूसरे को आलिंगन दे रहे हैं। यहां एक छत के नीचे काम कर रहे हैं। दुनिया लड़ रही है, झगड़ रही है। इस लड़ाई झगड़े में हरे कृष्ण भक्त नहीं फंसते। वे द्वन्दातीत होते हैं। यह उच्च विचार है। हरि! हरि! ओके! कोई प्रश्न, टीका टिप्पणी?हमारे पास कुछ मिनट है, चाहे तो इस समय का उपयोग कर सकते हैं। यदि कुछ प्रश्न टीका टिप्पणी नहीं है ..
हरे कृष्ण!!!
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-२२/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
हरे कृष्ण
आप सुन तो रहे थे भगवान् के नाम को उनका नाम है कृष्ण उनका नाम है राधा उनका नाम है राम।
नाम को सुन रहे थे आप। उनके कुछ गुण या कथा को सुनिए।
भगवान् से सम्बंधित बाते होगी दोनों को सुनना है नाम को सुनना है और नित्यं भागवत सेवया भी करना है।
पुनः आपका स्वागत है अभिनन्दन भी है। आपको जप करते हुए हम देखते है तो हमें आनंद होता है उसे व्यक्त करने को अभिनन्दन कहते है।
सदा जीवन उच्च विचार का जीवन यही है कृष्ण भावना का जीवन। या कृष्ण भावना की समज । इस सम्बन्ध में मै २ दिन पहले कह चूका हु मै सोच रहा हु और कुछ कहु। उच्च विचार भगवान् के विचार ही है और हमको उनके विचार के बनना है। सरे संसार में भगवान् एक ही है और एक ही विचार के बनना है। जब संसार के लोग एक विचार के होंगे तो वह विचार एक जैसा होगा और इसी के साथ ऐक्य की स्थापना होगी यह अत्यंत अनिवार्य है। भगवान अनेक यही हम एक है। कोई वेस्टर्न कॉन्टेरी में है लेकिन हम सभी भगवान् के है।
मेरे पीछे आगे सर्वत्र भगवान् ही है।
हम जहा भी जाते है वह नरसिम्हा भगवान् हमारी रक्षा करे। जगन्नाथ स्वामी नयन पथ गामी। मै जहा जहा देखु वहा वहा दर्शन दो। सरे संसार भर के लोगो को यह विचार का होना चाहिए। तभी कुछ संसार में शांति की स्थापना होगी। मैत्री का सम्बन्ध या पारिवारिक समबन्ध सारे संसार के लोग मेरे कुटुम्भ के है किन्तु संसार में पहुंच कर लोग भोग वांछा करते है और माया झपट लेती है संसार में माया ने सभी को झपट लिया है।
*सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया*
*सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत*
यह उच्च विचार है केवल ऐसा सोचना ही उच्च विचार है। सभी निरोगी हो यह सब संसार नहीं जानता। हमारे विचारो में विकृति आ चुकी है। सभी मांगल्या का अनुभव करे। भगवान् को प्रार्थना करके जगाते है आप मंगल करे सभी का सफर मंगलमय हो। ऐसे मांगल्या की कामना करना कोई दुखी न रहे यह विचार उच्च विचार है। वासुदेव कुटुम्बकम इस पृथ्वी पर जितने लोग है वे कहा से है ? किस धर्म के है स्त्री है पुरुष है यह सभी एक परिवार के है।
भगवान् हमारे परिवार के मुखिया है। नीच विचार का एक नमूना है वे लोग मेरे है ये लोग पराये है ऐसी गणना संकीर्ण है। लघु विचार वाले ही द्वन्द की बात करते है। किन्तु उच्च विचार वाला कैसा सोचता है जिसके उच्च विचार है जो भी पृथ्वी पर है वह मेरे परिवार के है। उच्च विचार जो मै कह रहा हु यह गोलोक के विचार है हम यह सब भूल जाते है। कृष्ण कहे है काला गोरा, स्त्री पुरुष , यह सब द्वन्द है। हर अक्षर को हमें धीरे धीरे समझना होगा तभी तो हम उच्च विचार के बन जायेंगे।
हिन्दू मुसलमान भी द्वन्द है। हरी हरी
६ शत्रु में से एक है मात्सर्य। लोग औरो की जान लेने की सोचते है। कृष्ण कहते है मत्सर रहित बनो। यादृच्छ मतलब भगवान् की इच्छा और उसी में संतोष रहना हरी हरी। संसार में समाधान ही नहीं है। श्रील प्रभुपाद को माध्यम बनाके निमित्त बनाके भगवान् संसार के लोग को उच्च विचार का बना रहे है। जिव जब सुद्धा बनता है तो उसकी भावना जागृत होती है। उठो उठो जिव जागो। जागो मतलब जिव के जो मूल विचार है उसको जगाओ। उच्च विचार सुद्धा मुक्त विचार का जिव बनता है। भगवत धाम में सभी जिव उच्च विचार का होता है।
जैसे हमने कहा कृष्ण भावना भवित होना ही उच्च विचार है। कृष्ण भावना यह हमारे मूल विचार है। एक समय हम जो विचार के थे वही वापस बनाना है। *आम्ही जातो आमच्या गावा आमचा राम राम घ्यावा*
वैकुण्ठ में उन्ही को प्रवेश मिलेगा जब हम उच्च विचार के होंगे कृष्ण भावना भवित के होंगे।
सभी जिव भगवान् के है। सुकदेव गोस्वामी ने कहा भागवत में जो सभी के बात को जानता है वह ऊँचे विचार के है। एक बात यदि संसार समज जायेगा सभी स्त्री माता है तो यह उच्च विचार है। इस विचार धारा को विश्व भर में करना है।
प्रभुपाद के ग्रंथो का हम वितरण करते है। एक बार प्रभुपाद से किसीने पूछा आप चाहते क्या हो हमसे दुनिया से ?
प्रभुपाद ने कहा – लोग जिस प्रकार के विचार करते है मै उसमे परिवर्तन करना चाहता हु।
हर व्यक्ति का विचार होता है उसमे परिवर्तन मै देखना चाहता हु।
सोच में क्रांति। प्रचार करना है मतलब लोगो के सोचने का जो ढंग है उसमे बदलाव लाना है। गोपिया कृष्ण का विचार करती है सोचती रहती है।
चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी है मेरे नाम का प्रचार सर्वत्र हो पृथ्वी में जितने नगर है ग्राम है सभी जगह हो।
लोग जब नाम लेंगे – *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
उसी के साथ वे कृष्ण के विचार के बनने वाले है यही सुलझन है सभी उलझन का।
यह वेद वाणी है। सारे विश्व को आर्य बना दो। वेद वाणी केवल इंडिया लिमिटेड नहीं है। भगवान् सभी का एक साथ सोचते है सभी के कल्याण की बात करते है भगवान्। उच्च विचार यही है इसके टुकड़े नहीं नहीं करना है। कई देशो के भक्त एक साथ एक मंच पर आते है।
कार्तिक में वृन्दवन में कई देशो के लोग एक साथ एक परिवार के रूप में रहते है। वहा सभी एक साथ प्रसाद लेते ही वे यद् भी नहीं करते मै पहले ईसाई था मुस्लिम था। उक्रैन और रशिया में युद्ध हो रहा है लेकिन डिवोटी सभी को प्रणाम कर रहे है। ये झगड़े नहीं करते यही उच्च विचार है।
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-२०/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*कर कटावरी ठेवोनिया*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*तुळसीहार गळा कासे पितांबर*
*आवडे निरंतर हेची ध्यान*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*
*मकर कुंडले तळपती श्रवणी*
*कंठी कौस्तुभ मणी विराजित*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*तुका म्हणे माझे हेची सर्व सुख*
*पाहीन श्रीमुख आवडीने*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
*सुंदर ते ध्यान उभे विटेवरी*
पंढरपुर धाम की जय।
पंढरपुर की और मै बढ़ रहा हु इसीलिए यह अभंग याद आया कहा भी मैंने । आप सुने या नहीं।
आप ही नहीं यहाँ कई सारे सुनने वाले बैठे है। हम लोग कहते रहते है फ़ूड फॉर थॉट।
सुविचार। जो सु विचार है। सु विचार है तो कु विचार भी है ही। कु विचार से हमें लेना देना नहीं है। हमारा लेना देना सु विचारो से है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
मुझे कहना तो है सिंपल लीविंग हायर थिंकिंग
हमारा मतलब तो संस्कृत भाषा से है जिस भाषा में उच्च विचार कहे है लिखे है। हरी हरी।
मै कहते रहता हु उच्च विचार मतलब भगवान् के विचार या भगवान् से सम्बंधित विचार। माया से सम्बंधित कु विचार।
भगवान् के विचार उच्च विचार है और मुझे यह भी कहना है यह विचार लोग जानते ही नहीं भगवान् कौन है ? कृष्ण के विचार भगवान को जानना और मानना।
हमको भगवान् का नाम ही पता नहीं है और काम भी पता नहीं है।
सूर्यनारायण की जय।
क्या कहे और क्या नहीं कहे।
वेदैश्च सर्वे अहम् मेद वेद्यो – वेद को जानना वाला भी मै हु। वेदज्ञ भगवान है। वेद के रचयिता भगवान है। वेद को जानना है। भगवान को जानना है। भगवान ने जो भी कहा है इस वेद में यह पूरा ज्ञान है भगवान् के समबन्ध में। जो कुछ जानना चाहते है हम वह सब वेद में है यह संस्कृत भाषा में है। संस्कृत सभी भाषा की जननी यह संस्कृत हमें शुद्ध बनती है हमारा चेतो दर्पण मार्जनम कराती है। वेद को सुन कर पढ़ कर अध्यन करके हम सुसंकृत हो जाते है। एक होता है धर्म दूसरी होती है संस्कृति। संस्कृत भाषा देव बोलते है यह आचार्यो की भाषा है।
भगवान् कई सारि भाषा बोल सकते है। वेद की भाषा को सुन कर हम सुशिक्षित भी होंगे और सुसंकृत भी होंगे। आज कल बेकार पढ़ाया जाता है पाठशाला में। लोग एडुकेटेड हो जाते है लेकिन उनको विद्वान नहीं कहा जा सकता। आज कल सैकड़ो डिग्री है। हायर एजुकेशन के लिए लोग विदेश जाते है। सच में हायर एजुकेशन होता है क्या ? हम तो कहेंगे यह लोअर एजुकेशन है लोग इससे नीच विचार के बन जाते है।
सुसंस्कृत नहीं बनाते लोग इससे। क्या खाना चाहिए क्या नहीं खाना चाहिए यह भी नहीं जानते। ऐसे लोग सुशिक्षित नहीं होते। आज कल लिखा तो होता है विद्यालय लेकिन विद्या क्या है ?
राज विद्या
राज गुह्यं
पवित्रम
उत्तम
क्या आप जानते हो उत्तम शब्द का मतलब ?
उत्तम मतलब रजो, तमो गुण से परे
*तमसो माँ ज्योतिर गमया*
ज्योति मतलब कृष्ण की और जाओ। कलियुग में दोष ही दोष है। विद्यालय जहा लिखा है वह क्या करना चाहिए अविद्या लिखना चाहिए। उनके आईडिया नहीं है विद्या किसको कहते है। आत्मा से संबधित है जो वह है विद्या।
तुम मनुष्य बने हो इसिलए क्या करो ब्रह्म जिज्ञासा करो।
चेतना के सम्बन्ध में जानो स्टडी करो और इसको समझो।
चेतना चेतनानं, नित्यो नित्यानं।
कई सारे नित्य है प्रमुख है भगवान्।
वे एक भगवान् और हम कई सरे है।
हम अंश है। वे सनातन है। जो आता है वह जाता भी है जिसका जन्म है उसका मृत्यु भी है। कलियुग में कई सरे धर्म है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
यह धर्म शासवत है।
कृष्ण का नाम चैतन्य को जागृत करता है। समजना चाहिए जगाने की बात कर रहे है। मै हु इसका सबूत क्या है ?
मै सोचता हु इसीलिए मै हु यदि मै नहीं सोचता तो मै नहीं होता। पशु में आत्मा नहीं है ऐसा सब कहते है इसीलिए काटो खाओ मारो।
बिल्ली दूध चोर है वह जाती है दूध के कटोरे के पास और आँख बंद कर के बैठती है और जब मालकिन जाती है तो बिल्ली दूध पीती है। यह सारि योनिओ में आत्मा है। वस्त्र अलग अलग पहने है एल्कीन वे भी आत्मा है।
सारे विचार वेद वाणी है। यह वाणी अपौरुषेय है। यह वाणी संसार के किसी पुरुष की वाणी नहीं है यह वाणी गोविन्द आदि पुरुष की है।
श्रील प्रभुपाद हमें समझते है यह वाणी अपौरुषेय है। यह वाणी शाश्वत है। सत्य ऐसा ही शाश्वत होता है। सत्यमेव जयते।
अर्जुन ने कहा जो भी कह रहे हो आप वह सत्य है मुझे मंजूर है स्वीकार है। सत्य की जीत होती है झूट की नही। मुझे यह भी कहना था की भगवान ही सृस्टि करते है ब्रह्मा भी कर लेते है कुछ मदत। प्रलय में शिव जी मदत करते है।
संसार की सृस्टि होती है फिर प्रलय भी होता है। भू मतलब होना। भूत्वा भूत्वा प्रलीयता। वेद की वाणी शाश्त्रो की वाणी यह सब सृष्टि के पहले से है होते है और बाद में भी बने रहते है। प्रलय तो भगवान् का हुआ।
सृस्टि से परे है यह वेद की वाणी। वेद सुनके समझे जाते है। पहले के लोग श्रुति धर्म के होते थे। सुन के समाज लेते थे। कलियुग आता है तो लिखने की आवश्यकता होती है। कलियुग के हम मंद लोग है ऐसे लोगो के लिए लिखने की प्रक्रिया होती है। लिखी हुयी बात शाश्वत होती है।
माया से कोई मुग्धा लोग है उन्हें गया ही नहीं होता वे कौन है। जो जिव माया में मुग्ध है उनके कल्याण के लिए वेदांत कृत्या है।
वाणी शाश्वत है। यह केवल हिन्दू की बात नहीं है यह ज्ञान हर जिव के लिए है हर जिव किनका है भगवान् का है। कलियुग में कई सरे धर्म है।
यह धर्म अपना पराया सिखाता है।
हिन्दू मुस्लिम लड़ते है।
हमारा धर्म कैसा है ? देवकी कुटुम्बकम।
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा -08-06 -2022*
(गुरु महाराज द्वारा )
*कृष्ण जिनका नाम है गोकुल जिनका धाम है ऐसे श्री भगवान को मेरा बारंबार प्रणाम है।*
गोकुल धाम की जय ! कृष्ण कन्हैया लाल की जय ! एक लीला कल या परसों में मैं पढ़ रहा था मुझे बहुत अच्छी लगी वह, जब मैंने उसको पढ़ा और फिर चिंतन भी किया, सोच ही रहा था कुछ मनन कर रहा था फिर उसी समय सोचा इतनी मधुर कथा लीला को शेयर करना चाहिए। तो आज वही अब मैं करने जा रहा हूं वैसे आप पढ़ ही रहे हो मेरे पीछे जो स्क्रीन है भगवान कृष्ण ने यहां मिट्टी खाई थी और यह दृश्य गोकुल के ब्रह्मांड घाट का है और नाम भी क्यों ब्रह्मांड घाट पड़ा। वैसे आप देख रहे हो यशोदा देख रही है कृष्ण के मुख में और यशोदा को दिखाई दिया पूरा ब्रह्मांड कृष्ण के मुख में तो इस प्रकार यह लीला स्थली संपन्न हुई। उस घाट का नाम बन गया ब्रह्मांड घाट, ब्रह्मांड घाट की जय ! ब्रह्मांड घाट को भी देख रहे हो। ब्रज मंडल परिक्रमा में जब हम जाते हैं तब कई बार और हर बार हर साल यहां पहुंचते ही हैं
*ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव। गुरु-कृष्ण-प्रसादे पाय भक्ति-लता-बीज*
(चैतन्य चरितामृत मध्य 19. 151)
अनुवाद- “सारे जीव अपने-अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं। इनमें से कुछ उच्च ग्रह-मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह-मण्डलों को। ऐसे करोड़ों भटक रहे जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है, जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है। कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है।
यहां शुकदेव गोस्वामी कथा सुनाने वाले हैं। यहां यमुना के तट पर संपन्न हुई इस लीला को शुकदेव गोस्वामी गंगा के तट पर राजा परीक्षित को सुनाएं और वही कथा हम पढ़ते सुनते हैं।
*एकदा क्रीडमानास्ते रामाद्या गोपदारकाः। कृष्णो मृदं भक्षितवानिति मात्रे न्यवेदयन् ॥* (श्रीमदभागवतम १०.८.३२)
अनुवाद -एक दिन जब कृष्ण अपने छोटे साथियों के साथ बलराम तथा अन्य गोप-पुत्रों सहित खेल रहे थे तो उनके सारे साथियों ने एकत्र होकर माता यशोदा से शिकायत की कि “कृष्ण ने मिट्टी खाई है।”
एक समय की बात है या एक दिन की बात है कृष्ण ने क्या किया मद भक्षण वहां की मिट्टी खाई, कृष्ण एकांत में गए और और देख रहे थे कि कोई मुझे देख तो नहीं रहा ना उन्होंने सोचा कि मैं अकेला हूं मुझे कोई देख नहीं रहा है तब उन्होंने मद भक्षण किया किंतु वहां पर सीसीटीवी कैमरा लगे होते हैं चोरों को पकड़ने के लिए तो वहां स्वयं बलराम ने और मित्रों ने भी देख लिया कृष्ण को मिट्टी भक्षण करते हुए। ऐसा तो नहीं करना चाहिए था ना , बलराम और मित्र दौड़े नंद भवन की ओर। यशोदा मैया देखो यू नो व्हाट ? कृष्ण ने मिट्टी खाई , यशोदा दौड़ पड़ी कहां है, मुझे ले चलो , दिस वे दैट वे बलराम और मित्र बड़े उत्साह के साथ यशोदा को वहां ले जाते हैं। अब यशोदा पीटेगी डाटेगी कृष्ण को, वह सब देखना चाहते हैं। अब यशोदा पहुंच गई और पूछा तुम ने मिट्टी खाई ? कृष्ण कुछ बोल नहीं रहे हैं, तुमने खाई है ना मिट्टी ? कृष्ण कुछ बोल नहीं रहे क्योंकि इस समय बची हुई मिट्टी को पहले खाना चाहते थे। बोलने से पहले वह बोलना प्रारंभ करते तो मुख में मिट्टी दिखने वाली थी इसीलिए बची हुई मिट्टी को समाप्त करने का प्रयास हो रहा था। तब कृष्ण कहते हैं
*नाहं भक्षितवानम्ब सर्वे मिथ्याभिशंसिनः । यदि सत्यगिरस्तर्हि समक्षं पश्य मे मुखम् ॥*
(श्रीमदभागवतम 10.8.35)
अनुवाद – श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “हे माता, मैंने मिट्टी कभी नहीं खाई। मेरी शिकायत करने वाले मेरे सारे मित्र झूठे हैं। यदि आप सोचती हैं कि वे सच बोल रहे हैं, तो आप मेरे मुँह के भीतर प्रत्यक्ष देख सकती हैं।
नहीं ! नहीं ! मैंने मिट्टी नहीं खाई, कौन कहता है ? यशोदा कहती है देखो तुम्हारा बड़ा भाई बलराम भी कहता है। ना अहम भक्षिता ना अहम भक्षिता, तुम उनकी बात को सच मानती हो ?
*न तु मां शक्यसे द्रष्टुमनेनैव स्वचक्षुषा | दिव्यं ददामि ते चक्षु: पश्य मे योगमैश्र्वरम् ||*
( श्रीमद भगवद्गीता 11.8)
अनुवाद- किन्तु तुम मुझे अपनी इन आँखों से नहीं देख सकते, अतः मैं तुम्हें दिव्य आँखें दे रहा हूँ, अब मेरे योग ऐश्र्वर्य को देखो ।
कृष्ण ने कहा तो तुम स्वयं ही देखो मेरे मुख में, तब पता चलेगा मेरे मित्र और बलराम भी झूठ बोल रहे हैं। ऐसा कहते हुए कृष्ण ने जब अपना मुंह खोल कर दिखाया और यशोदा ने मुख में देखा तो क्या देखा, मिट्टी को देखा और हां खाई हुई मिट्टी को देख लिया था। लेकिन तो भी यशोदा ने मिट्टी के ढेर के ढेर देखें , फिर सारी पृथ्वी को देखा, सारे ग्रह नक्षत्र दिखे, उसको कृष्ण के मुख में यहां । शुकदेव गोस्वामी काफी लंबी लिस्ट आकाश को देखा सभी दिशाओं को देख रही है , यशोदा द्वीप देख रही है सो मेनी आइलैंड। इन द माउथ ,कई सारे पर्वत देख रही है कई सारे समुंद्र देख रही है। सारे ब्रह्मांड का वह दर्शन कर रही है। दर्शन, क्या दर्शन? जब हम करते हैं हम कोई भी प्रेम से उसको निहारता है उसका आस्वादन करता है उसकी प्रशंसा करता है। किंतु ऐसा नहीं हो रहा था जब यशोदा ने देखा तो उसका दिमाग चकरा गया, समभ्रमित हुई यशोदा , यह क्या देख रही हूं मैं ! मेरे लाला के मुख में क्या यह कोई सपना तो नहीं है फिर सोचती है कि सपना कैसे हो सकता है। मैं सोई तो नहीं हूं, मैं तो यहां यमुना के तट पर हूं, यह स्वप्न तो नहीं हो सकता या यह कोई योग माया है या मेरी बुद्धि का यह भ्रम है, नहीं मैं देख तो रही हूं यह सत्य है, मैं सोई नहीं हूं, मैं स्वयं देख रही हूं यह झूठ तो नहीं हो सकता यह सपना नहीं है फिर उसको याद आता है।
*तस्मान्नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः । श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥*
( श्रीमदभागवतम 10.8.19 )
अनुवाद -अतएव हे नन्द महाराज, निष्कर्ष यह है कि आपका यह पुत्र नारायण के सदृश है। यह अपने दिव्य गुण, ऐश्वर्य, नाम, यश तथा प्रभाव से नारायण के ही समान है। आप इस बालक का बड़े ध्यान से और सावधानी से पालन करें।
नारायण इस बालक मैं होंगे, गुरु गर्गाचार्य बता कर गए थे। नारायण जैसे गुण इस बालक में होंगे या है तो क्या गर्गाचार्य की कही हुई बात सच निकल रही है मेरा बालक नारायण जैसा है या नारायण है। नहीं !नहीं ! यह तो मेरा बालक है , इट्स माय सन, यह भगवान के ऐश्वर्य का विराट रूप का, विश्वरूप का दर्शन या पूरे ब्रह्मांड का दर्शन, जो मुख में कर रही है। यह है भगवान का ऐश्वर्य या ऐश्वर्य का ज्ञान लेकिन यह ऐश्वर्या का ज्ञान वह समभ्रमित हो रही थी या उनका जो वात्सल्य है वात्सल्य अपने पुत्र के प्रति, कृष्ण के प्रति वात्सल्य, माय सन मेरा पुत्र है यह, भगवान नहीं हो सकता भगवान नहीं है ,आई डोंट केयर भगवान है या नहीं है, यह तो मेरा ही पुत्र है ऐसा सोचती हुई पुनः गोद में लिया और पुनः स्तनपान कराने लगी यशोदा और यह कथा जब शुकदेव गोस्वामी सुना रहे थे। राजा परीक्षित को कि कैसे यशोदा ने पुन:, अभी तो डांट रही थी फिर दर्शन भी कर रही थी मुख में, वह सब कुछ छोड़ छाड़ के उसको समाप्त किया। यशोदा ने कैसे बालक को अपनी गोद में लिटाया और स्तनपान करा रही है और जब यह बात राजा परीक्षित ने सुनी है तो वह
श्रीराजोवाच नन्दः *किमकरोद्ब्रह्मन्श्रेय एवं महोदयम् । यशोदा च महाभागा पपौ यस्याः स्तनं हरिः ॥*
(श्रीमदभागवतम 10.8.46)
अनुवाद -माता यशोदा के परम सौभाग्य को सुनकर परीक्षित महाराज ने शुकदेव गोस्वामी से पूछा : हे विद्वान ब्राह्मण, भगवान् द्वारा माता यशोदा का स्तन-पान किया गया। उन्होंने तथा नन्द महाराज ने भूतकाल में कौन-से पुण्यकर्म किये जिनसे उन्हें ऐसी प्रेममयी सिद्धि प्राप्त हुई? ।
यशोदा मैया की जय ! परीक्षित ऐसा ही कह रहे थे भाग्यवती यशोदा ! क्या भाग्य है यशोदा का, तपो स्वयं हरि ! यशोदा कृष्ण को अपने स्तन का पान कराती है। कैसा है सौभाग्य भगवान बने हैं अपत्य ,
अंबा मतलब मां को अंबा कह के संबोधित किया जाता है ऐसे षड ऐश्वर्य संपन्न भगवान यशोदा को अंबा कह कर पुकार रहे हैं, महान भगवान कितने छोटे शिशु बने हैं। वत्स बने हैं और वात्सल्य रस का वह भी आस्वादन कर रहे हैं। यशोदा का भी वात्सल्य का आदान-प्रदान होता है कृष्ण के मध्य में, राजा परीक्षित कह रहे हैं। यशोदा चा महाभागा, भाग्यवान यशोदा मैया जो उन्होंने देखा वह ब्रह्मांड का ही दर्शन था, स्वप्न नहीं था। असत्य, झूठ नहीं था वह कल्पना नहीं थी और तुम कह रहे हो मैंने मिट्टी खाई लेकिन मिट्टी तो मेरे बाहर भी मिट्टी है सर्वत्र और मेरे अंदर भी ,
*यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति |तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ||*
(श्रीमद भगवद्गीता 6.30)
अनुवाद- जो मुझे सर्वत्र देखता है और सब कुछ मुझमें देखता है उसके लिए न तो मैं कभी अदृश्य होता हूँ और न वह मेरे लिए अदृश्य होता है |
इस संसार में जो मुझको देखता है और मुझमे जो सारे संसार को देखता है। ऐसा व्यक्ति ज्ञानवान है विद्वान है। ऐसे ही भगवान शुद्ध कर रहे हैं
*नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने ।नमो राधिकायै त्वदीय-प्रियायै नमो अनंत लीलाय देवाय तुभ्यम्।।*
(दमोदराष्टकम 8)
हे दामोदर, आपके उदर को बाँधने वाली दैदीप्यमान रस्सी को प्रणाम! आपके उदर को प्रणाम जो सम्पूर्ण जगत् का धाम है! आपकी सर्वप्रिया श्रीमती राधारानी को प्रणाम! और अनन्त लीला करने वाले। हे भगवन्, आपको भी मेरा प्रणाम है।
और लीलाएं होने वाली हैं वह दामोदर लीला भी संपन्न होने वाली है और जब हम उस दामोदर लीला को संपन्न करते हैं तब दामोदर अष्टक गाते हैं। जब दामोदर अष्टक गाते हैं, कई सारी मधुर लीलाएं कृष्ण की और बाल लीला और भी मधुर मधुरतम कहीं जाती है। कृष्ण की बाल लीलाएं , भगवान तो बड़े हैं, महान हैं तो भी लीला मधुर तो है ही लेकिन बड़े महान भगवान जब छोटे हो जाते हैं। शिशु हो जाते हैं वैसे भगवान है विशंभर ! सारे विश्व का लालन-पालन करने वाले इसीलिए कृष्ण को विशंभर कहा जाता है। लेकिन यहां तो नंद बाबा और यशोदा पालक बने हैं। पालन करने वाले कृष्ण का लालन-पालन नंद बाबा यशोदा कर रहे हैं। कृष्ण स्वयं को ही इतना छोटा बना देते हैं, बालक बना देते हैं और फिर बाल सुलभ लीलाएं खेलते हैं जैसे मिट्टी खाना, छोटे बालक कहीं कहीं पर मिट्टी खाते रहते हैं, मतलब आप शहर में हो और यदि आपके बालक हैं वहां तो मिट्टी मिलती ही नहीं है वहां तो स्टील है या फिर फर्श है। ऐसा सोच रहा था यह जो लीला है मद भक्षण लीला, गांव वाले उसको समझ सकते हैं क्योंकि वह अनुभव किए हुए होते हैं। कृष्ण बाल सुलभ लीलाएं खेलते हैं।
मैंने मिट्टी नहीं खाई, यशोदा कहीं पकड़ती है माखन खाते हुए या माखन खाते हुए चोरी की कोई शिकायत सुनते हुए, सुनने के उपरांत जब यशोदा कृष्ण का गला पकड़ती है, कान पकड़ती है, तब कृष्ण कहते हैं मैं नहीं माखन खायो, नहीं नहीं मैंने माखन नहीं खायो, मैं नहीं माखन खायो कहते कहते फिर मैं नहीं माखन खायो, मैंने ही माखन खायो तो यहां पर भी मैंने मिट्टी नहीं खाई, मैंने मिट्टी नहीं खाई और यदि तुम कहती हो कि मैं ने ही मिट्टी खाई, तो देख लो अभी मैं दिखाता हूं मेरे मुंह में ,बच्चे कभी कभी झूठ बोल लेते हैं। उनको बोलना पड़ता है, डर जाते हैं कि अगर मैं सच कहूंगा तो मेरी पिटाई होगी। कृष्ण यह भी दिखा रहे हैं या झूठ बोल रहे हैं। संसार भर के बालक भी और बालिकाएं भी झूठ बोलती हैं, आपको याद होगा आपने भी झूठ बोला होगा, मां ने जब तुम को पकड़ा होगा गलती करते हुए, ऐसे कृष्ण बन जाते हैं, बाल लीला खेल रहे हैं, बाल सुलभ लीला बिल्कुल बालक जैसे ही उनका व्यवहार होता है। मां से डरे ही हैं और झूठ भी कुछ बोल रहे हैं या फिर वहां दामोदर अष्टक गाते गाते फिर अंतिम अष्टक जब हम गाते हैं। *नमस्तेऽस्तु दाम्ने स्फुरद्दीप्तिधाम्ने त्वदीयोदरायाथ विश्वस्य धाम्ने*
तुम्हारे उदर को नमस्कार , कैसा है उदर ? विश्वस्य धाम्ने , सारे विश्व का धाम है तुम्हारा उदर या मुख, सारा विश्व तुम्हारे अंदर है सब कुछ मेरे अंदर भी है, बाहर भी है, हरि हरि ! ऐसी है कृष्ण लीला की मधुर लीलाएं ऐसा है वात्सल्य या योग माया यह सब अलग-अलग परिस्थिति निर्माण करती है। उसका सेटिंग द सीन कहो , यहां हम देखते हैं अलग-अलग सेटिंग्स या अलग-अलग लीलाएं और कुछ लीलाएं कैसी, वात्सल्य में, डालने का वैसे हमें यही दर्शन होता है कि यशोदा का अपने प्यारे लाडले कन्हैया से इतना अधिक प्रेम है और कृष्ण की सारी महानता और इतना सारा यह वैभव ,
*मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् | हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ||*
(श्रीमद भगवद्गीता 9.10)
अनुवाद- हे कुन्तीपुत्र! यह भौतिक प्रकृति मेरी शक्तियों में से एक है और मेरी अध्यक्षता में कार्य करती है, जिससे सारे चर तथा अचर प्राणी उत्पन्न होते हैं | इसके शासन में यह जगत् बारम्बार सृजित और विनष्ट होता रहता है |
अनंत कोटि ब्रह्मांड नायक है सारी प्रकृति के अध्यक्ष हैं इस प्रकार का वैभव में , यशोदा नॉट इंटरेस्टेड हरि हरि ! और इसी के साथ यशोदा का वात्सल्य उमड़ आता है और प्रदर्शित होता है यशोदा मैया की जय ! कृष्ण कन्हैया लाल की जय !गोकुल धाम की जय ! आप सुनते रहो ,हरि नाम लेते रहो, भगवान की लीला का स्मरण करो, आज प्रातः काल में मैं दोनों ही कर रहा था मुझे पता नहीं चल रहा था कि मैं लीला का स्मरण कर रहा हूं या नाम का स्मरण कर रहा हूं या नाम स्मरण करते हुए लीला का स्मरण हो रहा था, लीला का स्मरण करते करते नाम का स्मरण हो रहा था। कृष्ण के नाम में और धाम में लीला में भेद नहीं है, लीला भी कृष्ण ही है और नाम भी कृष्ण ही है। जैसे ध्यान पूर्वक नाम जप करते हैं वैसे ही लीला का भी ध्यान पूर्वक ध्यान करना चाहिए या ध्यानपूर्वक श्रवण करना चाहिए और ध्यान भी वैसे करते रहना चाहिए, नाम जप करते समय जो रूप गुण लीला का स्मरण हुआ, उसको स्मरण करते रहना चाहिए उसको मनन कहते हैं
श्रीप्रहाद उवाच
*श्रवणं कीर्तनं विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥* २३॥
*इति पुंसार्पिता विष्णौ भक्तिश्चेन्नवलक्षणा । क्रियेत भगवत्यद्धा तन्मन्येऽधीतमुत्तमम् ॥* २४॥ श्रीमदभागवतम
अनुवाद – प्रह्लाद महाराज ने कहा : भगवान् विष्णु के दिव्य पवित्र नाम, रूप, साज-सामान तथा लीलाओं के विषय में सुनना तथा कीर्तन करना, उनका स्मरण करना, भगवान् के चरणकमलों की सेवा करना, षोडशोपचार विधि द्वारा भगवान् की सादर पूजा करना, भगवान् से प्रार्थना करना, उनका दास बनना, भगवान् को सर्वश्रेष्ठ मित्र के रूप में मानना तथा उन्हें अपना सर्वस्व न्योछावर करना (अर्थात् मनसा, वाचा, कर्मणा उनकी सेवा करना)- शुद्ध भक्ति की ये नौ विधियाँ स्वीकार की गई हैं। जिस किसी ने इन नौ विधियों द्वारा कृष्ण की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया है, उसे ही सर्वाधिक विद्वान व्यक्ति मानना चाहिए, क्योंकि उसने पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर लिया है।
स्मरण करते रहना श्रवण और कीर्तन जब कर रहे थे तब श्रवण कीर्तन हमको कुछ कुछ स्मरण दिलवाया, यह रिमाइंडर हुआ श्रवण कीर्तन के समय तो हुआ ही स्मरण, स्मरणीय बातें, स्मरण करने के उपरांत उस समय श्रवण कीर्तन के समय श्रवण करने के उपरांत उसको स्मरण करते ही रहो, उसको कहते हैं मनन, श्रवण कीर्तनम विष्णु स्मरणम को कंटिन्यू करना है, उसी को मनन करते रहना है और यह मनन भी अनिवार्य है और फिर हम और भी कुछ कर रहे हैं भूल गए श्रवण को नहीं छोड़ दिया, उन्हें मिलेंगे ऐसा नहीं करना होता है। श्रवण कीर्तन विष्णु स्मरणम का लाभ, स्मरण करते ही रहो ऐसे फिर शुद्ध भक्तों या भगवान भगवत धाम की इस मंतव्य,
*स्मर्तव्यः सततं विष्णुर्विस्मर्तव्यो न जातुचित् । सर्वे विधि-निषेधाः स्युरेतयोरेव किङ्कराः ॥*
(चैतन्य चरितामृत मध्य 22. 113)
अनुवाद – कृष्ण ही भगवान् विष्णु के उद्गम हैं। उनका सतत स्मरण करना चाहिए और किसी भी समय उन्हें भूलना नहीं चाहिए। शास्त्रों में उल्लिखित सारे नियम तथा निषेध इन्हीं दोनों नियमों के अधीन होने चाहिए।”
गोपियों की स्पेशलिटी है, गोपियां कहो या यशोदा कहो या ग्वाल बाल कहो या कृष्ण के मित्र कहो उन्होंने सुनी हुई याद की हुई या देखी हुई लीला या ऐसे होता ही है जब उनके साथ खेलने वाले ग्वाल बाल अपने-अपने घर लौटते हैं। फिर हर घर का जो बालक कृष्ण के साथ गाय चराने गया था लौटता है तो कहता है मैया डैडी डैडी कम हेयर , अपने माता पिता को बुलाते हैं भोजन के समय सारे दिन भर की जो घटनाएं हैं। वंडरफुल कृष्ण की लीलाएं, कथाएं हैं उनका जो आंखों देखा उसको भी सुनाएंगे और इस प्रकार यह आकाशवाणी कहो हर घर में रेडियो, लेकिन वक्ता कौन है, ग्वाल बाल हैं। जो सबको सुनाते हैं और इस प्रकार यह लीलाएं उनका विस्तार होता है फैलाई जाती हैं , फैलती है और ताजी रहती हैं। फिर इस प्रकार जो संस्मरण है और जो मनन है इसको भी करना है।
गौर प्रेमानंदे !
हरि हरि बोल !
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-०६/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
जप करते रहो। हरी हरी
*कीर्तनीय सदा हरी*
स्वयं गौर भगवान् श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु की जय
आप भी कीर्तन करते रहो जप करते रहो।
हरे कृष्ण कीर्तन करने से १०० गुना अधिक लाभ होता है।
जप भी करो अपने लिए और कीर्तन करो औरो के लिए।
जब हम औरो के लिए करते है तो उसमे खुद का भी और सारे समाज का देश का संसार का कल्याण होता है।
शास्त्रों में कहा है सभी सुखी हो।
आप कैसे सुखी हो सकते हो?
*chant hare krishna and be happy*
चैटिंग के लाभ ही लाभ है। हरी हरी। इसीलिए कहा है एक ही उपाय है संसार के सभी समस्या के लिए १ उपाय।
सब ६ स्कन्द में कहा है हम जो कार्य करते है उसमे कुछ दोष रह सकते है जप कर रहे है तो उसमे भी कुछ उसका तंत्र होता है विधि होती है उसमे भी कुछ दोष हुआ देश कल में कुछ दोष हुआ गलत स्थान पर हमने जप कीर्तन किया यह और कुछ कार्य किया जब हम कीर्तन करते है तो हाथ में काम और मुख में नाम लेंगे साथ में।
विधि का अवलम्बन करते हुए भी हमें जप करना चाहिए कीर्तन करना चाहिए तो क्या होगा कुछ दोष हुआ होगा तो क्या होगा निर्दोष बनेगा।
यह संसार छिद्रो से दोषो से है यह संसार में दोष ही दोष है विचारो में दोष ही दोष है।
सुकदेव गोस्वामी कह रहे है कलियुग में दोष ही दोष होगा। ब्रेकिंग न्यूज़ सुनाने वालो सुनाने वाले जो सुनते है , कालीपुराण की होम डिलीवरी होती है यह पढ़ते ही आज कल का संसार यह दोष का संग्रह करके आपके घर पहुंचाया जाता है।
सुकदेव गोस्वामी कहे थे यह सब हमें अचरज नहीं होना चाहिए। हम कीर्तन करेंगे तो मुक्त होंगे यह संसार मुक्त हो सकता है इस कलियुग के कलह से यह कलह भी एक पहचान है इस कलियुग के। छोटे मोठे झगड़े होते रहते है।
उक्रैन एंड रसिया में वॉर हो रहा है। घर घर में वॉर है। उसी रसिए एंड उक्रैन के जो भक्त है जिनको हमने देखा कल वे एक दूसरे को प्रणाम करते है गले लगते है।
उक्रैन एंड रसिया देवोटी एक दूसरे को गले लगा रहे है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहे है -*चेतोदर्पणमार्जनं भव-महादावाग्नि-निर्वापणम्*
यह संसार दावानल है। इसका निवारण संभव है इस संसार की आग बुझाई जा सकती है किससे जहा आग लगी है उसी स्थान पर निवारण भी होगा।
*श्रेयःकैरवचन्द्रिकावितरणं विद्यावधू-जीवनम्*
उस जगत में यदि हम कीर्तन करेंगे तो वह पुष्प खिलेंगे हरियाली होगी।
श्रेय प्राप्त होगा कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा जीवन शैली में परिवर्तन होगा।
हरे कृष्ण महामंत्र क्या करता है ? भावो में क्रांति लाता है विचारो में क्रांति करता है। जो जो जप और कीर्तन कर रहे है वे कृष्ण भावनाभावित हो रहे है। विद्या अर्जन कर रहे है।
वे अखबार नहीं पढ़ते गीता भागवत पढ़ते है।
यही है क्रांति। हरी हरी। संसार में कई सरे दोष है पर्यावरण में दोष ही दोष। क्यों ? हमलोग सरे जंगल काट रहे है डेफोरेस्ट्रेशन हो रहा है वह इंडस्ट्री खोल रहे है। पशुपालन भी हो रहा है ताकि एक दिन भक्षण करेंगे। इस फारेस्ट से ही हमको वृक्षों से ऑक्सीजन मिलता है।
हम काटेंगे तो कहा से मिलेगा हमारा डैम घुट जायेगा। सरे इंडस्ट्री से धुआँ निकल रहा है। अस्पताल भर रहे है। जंगल कटे जाने से कई सरे दुष्परिणाम हो रहा है हम वो अखबार पढ़ते है मन में गंदे विचार आ जाते है और हम वैसे विचार के बन जाते है दोष बढ़ाते ही रहते है। श्रील प्रभुपाद लिखे है भागवत में विश्व भर के जो लोग है इसको लौ बनाना चाहिए – वृक्षों को तभी कटना चाहिए जब भक्ति वेदांत बुक के लिए उपयोग हो कागज। इस प्रकार का सुझाव है संसार भर के लोगो को।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
यह सलूशन है। अमेरिका सर्कार डेफोरेस्ट्रेशन की बात करता है। कई लोग नशा भी कर रहे है नशापान से उनके माइंडस में बिगड़ आ रहा है। २०% अमेरिका की आबादी मेन्टल हॉस्पिटल में एडमिट करने के योग्य बन रहे है।
सर्कार कुश कोशिश तो कराती है नशापान करने का चस्का लगा गई युवक और युवती को।
१९६० की बात है उस समय मिलियंस डॉलर खर्च कर रहे थे श्रील प्रभुपाद ने अमेरिका के युवक युवतिओं को हरिनाम पिलाया। फिर उन युवक और यवश ने ठुकरा दिया ड्रग्स। सर्कार को यश नहीं मिला श्रील प्रभुपाद को यश मिला। हरे कृष्ण महामंत्र के कारन उन्होंने ड्रग्स छोड़ा।
लोनली लोग अकेला पैन महसूस करते है फिर आत्महत्या उनके लिए उपाय है वे सोचते है ऐसा।
संसार में कितनी छोटी मोती समस्या है सभी समस्या का समाधान है हरेर नाम ाक्व केवलं।
मास भक्षण, जुगार, नशापान , अवैध संघ यह अकार्य है लोग कर रहे है। काली वह रहा है जहा यह ४ प्रकार के कार्य होते है।
काली को स्ताहन नहीं मिल रहा था ५००० वर्ष पहले। कोई देश नहीं बचा है यह कलियुग सभी जगह है। कैसे बच सकते है लोग इन दोषो से ? इसको छोड़ने की त्यागने की उपाय क्या है। मन दौड़ता है बर्गर की और , सिनेमा घर की और , ग्लैम्ब्लिंग की और यह आकर्षण है संसार के प्रलोभन है यह इसे त्यागने की छमता आ जाती है किससे आती है – *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
हमने भगवान् के नाम का उच्चारण किया यह नाम ही कृष्ण है वे हमें आकृष्ट करेंगे। माया खींच रही है। यदि हम जप कीर्तन नहीं कर रहे है तो माया ही माया आकृष्ट कर रही है। माया को लांघना कठिन है माया ही खींचती है आकृष्ट करती है जब हम जप करने लगते है तो कृष्ण हमें अपनी और खींचते है आपने स्वाद प्राप्त करते है। भगवान् मधुर है जप जीव इसका आस्वादन करता है तो कौन जीतेगा कृष्ण और भक्त जीतेगा।
जहा है अर्जुन जैसे भक्त जहा है कृष्ण वहा जय है। माया को लांघना माया को पराजित करना आसान हो जाता है। इसीलिए आप जप करते रहो कीर्तन करते रहो संसार को सुखी देखना चाहते हो तो उनको भी दो कृष्ण। *कलिकाले नाम रुपे कृष्ण अवतार*
हरे कृष्ण
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा-०३/०६/२०२२*
*परम पूज्य लोकनाथ स्वामी महाराज*
*श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद श्री अद्वैत्य गदाधर श्रीवासादि गौर भक्त वृंद*
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे*
*ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया*
*चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्रीगुरुवे नम:*
प्रभुपाद की जय।
जप करते समय आप और मै भी श्रील प्रभुपाद को देख रहे थे मैंने भी दर्शन किया।
श्रील प्रभुपाद का दर्शन करते करते जप कर रहे थे तो कुछ विचार आये मै वह आपके समक्ष रखना चाहता हु। हरी हरी
चिंतन तो भगवान् का तो चिंता किस बात की।
हमको चिंता है सरे संसार की।
हरी हरी
वैसे भगवान् भी चिंतित रहते है इसीलिए तो हम सुनते है श्री चैतन्य महाप्रभु , कृष्णा इस संसार में आते है। चिंता विवश कराती है फिर सम्भवामि इज युगे करते है।
भगवान भी चिंतिन होते है तो प्रभुपाद जैसे आचार्य क्यों नहीं होंगे।
भगवान् चिंतत होते है श्रील प्रभुपाद जाइए कोई विरला ही होते है। वे चिंतित होते थे और वृन्दावन को छोड़ के अमेरिका गए।
विदेश गए। पर दुखी दुखी
संसार के दुःख को देख के प्रभुपाद दुखी थे इसीलिए वे गए हमको भी भगवान के और श्रील प्रभुपाद के चरण चिन्हो का अनुसरण करके संसार में प्रवेश करना होगा। अपना मंदिरम परित्यज्य करना होगा गृहम परित्यजयाम या गृह आश्रम छोड़ के हमें भी मैदान में उतरना चाहिए वह कार्य करने के लिए जो भगवान् ने किया श्री कृष्णा चैतन्य महाप्रभु ने किया।
भगवान् आते है और और वे अन्तर्धान भी होते है –
*परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्* *धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे*
भगवान् प्रकट होते है। आचार्यो को अनुयायी इसे आगे बढ़ाते है। ऐसा कार्य हम सभी को करना है जो इस अंतरराष्ट्रीय श्री कृष्णभावनामृत से जुड़े हुए है। यह भगवान् का कार्य है। प्रभुपाद के कार्य को आगे बढ़ाना है।
कृष्ण प्रसाद है जो, लीला है , यात्रा है जो करते है करवाते है , प्रसाद खाते है खिलते है लोगो को ऐसा कार्य करने वाले उदार है। गोपीगीत कृष्ण कथा ही है इसको जब राजा प्रताप रूद्र जगन्नाथ पूरी में सुनाये श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु को तो वे प्रशन्न हुए और कहे मुझे तुम जो सुना रहे हो तुम उदार हो वदान्य हो।
मै तुमसे बड़ा प्रशन्न हु। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु आँखे बंद कर के लेते थे और राजा प्रताप रूद्र चरणों की सेवा कर रहे थे। उस सेवा से प्रशन्न थे ही लेकिन गोपी गीत से अधिक प्रशन्न हुए और कहे तुम उदार हो।
मै कृतज्ञ हु मै तुम्हारे लिए कुछ करना चाहता हु। श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कहा इस गोपी गीत के गायक मेरे आलिंगन को स्वीकार करो।
इस प्रकार श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने राजा प्रातओ रूद्र का आलिंगन करना नहीं चाहा आलिंगन किया और इसी प्रकार से पुरस्कृत किया। अपनी प्रशन्नता व्यक्त किये। जो भी कृष्ण भावना को औरो को देते है औरो के साथ शेयर करते है कई सरे रूप में तो उस व्यक्ति से भगवान् प्रशन्न होते है। हम जप करते है तो भगवान् प्रशन्न होते है लेकिन जप हम औरो को प्रेरित करते है तो भगवान् उस व्यक्ति से प्रशन्न होते है जिसने जप करने को कहा था। हमने गीता पढ़ी भागवत पढ़ी और हमने औरो को प्रेरित किया और वे पढ़ रहे है गीता भागवत तो भगवान अधिक प्रशन्न होते है। भक्ति रसामृत में ६४ गन है उसमे से एक है कृतज्ञता।
जब हम छोटी मोती कोई सेवा करते है तो भगवान् कृतज्ञ बन जाते है और सोचते है भगवान मुझे इसके लिए कुछ करना है। जो ग्रन्थ पढ़ रहा है उससे प्रशन्न होते है भगवान् और जो प्रेरित करते है उससे अधिक प्रशन्न होते है। शांति प्रिय होंगे लोग इससे और जो वॉर चल रहा है वह नहीं होगा प्रसाद ग्रहण होने से। प्रसाद ग्रहण करने का और कराने का जो फल है वह शांति है शांति शुत्र है। प्रसाद ग्रहण यह सोल्युशन है। वॉर को बन करना है तो यही उपाय है। प्रसाद जो खा रहे है और खिला रहे है उनसे भगवान् प्रशन्न होते है इसके घर में झगड़े भी काम होते है।
हरी हरी। कोई यात्रा में गया कोई मंदिर गया या और सब को साथ में लेकर गया उनसे भी भगवान् प्रशन्न होते है। रथ यात्रा में हम गए और मित्रो को भी जोड़ दिए , पंढरपुर यात्रा में हम गए , नवद्वीप मंडल यात्रा में गए महिमा समझाये , ऐसे निमित्त बनाने वाले से भी भगवान् प्रशन्न होते है।
ऐसे कार्य हमको करना है भगवान् की प्रशन्नता करने वालो से। जन्म की सार्थकता किसमे है परोपकार में है। मनुष्य शरीर परोपकार के लिए है। हरी हरी।
हम सबको जो इस परिवार के सदस्य है यह गुरु और गौरांग का परिवार है अंतर राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ है इसकी हमें चिंता होनी चाहिए चिंतन होना चाहिए।
हरी हरी
संसार के सभी जिव हमारे भाई है बहने है। सभी है। हमें इस संसार के वासुदेवं कुटुम्भ है जो इसका विचार करना है। कुवे में रहने वाला मेंढक जैसा मत सोचो हम छोटे नहीं है हम कृष्ण के घर के है गौरांग गौरांग, पांडुरंग के घर के है हम।
एक दूसरे को स्मरण दिलाना है हम कौन है , किस परिवार के है, जीवन का क्या उद्देश्य है। संसार में जब हम प्रवेश किये तो यहाँ की माया ने जपत लिया है। इस माया के चंगुल में फसे हुए जिव पीड़ित है , परेशान है। कुछ मार्ग हमको दिखाया है हम उसे स्वीकार कर रहे है। हरी हरी।
अधिक से अधिक लोगो को हमें लाना है आपकी क्या आइडियाज है मैंने जो कहा इस समबन्ध में। आपका कोई साक्षात्कार है आप हमें और सभी को बता सकते हो। कुछ विशेष सेवा की पद्धति जिसमे आपको सफलता मिल रही है तो आप इसे हमारे साथ शेयर कर सकते हो।
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*हरे कृष्ण*
*जप चर्चा -01-06 -2022*
(गुरु महाराज द्वारा )
जय गौरंगा ! जय भक्तों ! हे जापको सुनो ! *हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे”* गौरंगा ! जपा टॉक से पहले मेरा स्मरण करो, यह तपस्या तो नहीं है यह तपस्या भी है। हम बद्रिकाश्रम में थे कुछ दिन पहले या हमने आपको बद्रिकाश्रम ने पहुंचाया था याद है। मैं तो भूल नहीं रहा हूं इसीलिए मुझे और हमने यह भी कहा था कि तपोभूमि है भारत भूमि तपोभूमि है। भारत भूमि के केंद्र में है बद्रिकाश्रम और उस भारत भूमि के बद्रिकाश्रम के केंद्र में है बद्रीनारायण भगवान, की जय ! यह तपोभूमि या तपस्या के विचार आ रहे हैं। बहुत सारे विचार आ रहे हैं तपस्या एक बहुत बड़ा विषय है।
एक बहुत बड़ा टॉपिक है या कहो धर्म ही है। तप एक धर्म ही है, जप तप एक बहुत बड़ा धर्म का विधि विधान है अंग है। तो यह तपस्या का धर्म भी बद्रीनारायण बद्रीनाथ सिखाते हैं पता नहीं आपने नोट किया है या नहीं नर नारायण वहां तपस्या करते हैं। बद्रिकाश्रम में तो यह शिक्षा ग्रहण करनी है भगवान से ही या फिर इस संबंध में कहना होगा की नारद मुनि नारायण लोक में या वैकुंठ लोक में विचरण करते ही रहते हैं। आप जानते हो वह बहुत बड़े परिवज्रकाचार्य है। जब जब वे जाया करते थे बैकुंठ, वह देखा करते थे कि भगवान आराम कर रहे हैं अनंत शैया पर और लक्ष्मी जी उनके चरणों की सेवा कर रही है। जब भी जाते हैं ऐसा ही दृश्य देखते भगवान आराम कर रहे हैं। ही इज इंजॉय भगवान भोक्ता हैं लग्जरियस लाइफ और सब उनकी सेवा में है स्पेशली लक्ष्मी महारानी सेवा कर रही हैं।
ऐसा ही दृश्य उनको दिखता, एक विजिट में नारद मुनि ने कहा प्रभु जी मैं यहां से आप को भेंट देकर आपका दर्शन करके जब पुनः ब्रह्मांड में जाता हूं और वहां मैं प्रचार करता हूं और कोई मुझे पूछते हैं, अभी आप वैकुंठ से लौटे हो तो भगवान क्या कर रहे थे ? मैं कहूंगा की दर्शन तो वही है आप आराम कर रहे हो, आप रमण कर रहे हो और आप सेवा ले रहे हो और लक्ष्मी जी आपकी सेवा में है तो यही उत्तर मुझे देना पड़ता है। यह बात सुनकर स्पेशली जो ग्रहस्थ हैं उनको आइडिया आ सकता है कि कृष्ण भगवान ऐसे करते हैं चलो हम भी वैसे ही करते हैं। आराम का या भोग विलास का जीवन चलो हम भी जीते हैं। नारद मुनि ने भगवान को कहा कि प्रभु कुछ ऐसा करके दिखाओ कि वह दर्शन, वह लीला मैं देखूंगा, उसका अनुभव करूंगा तब फिर मैं उसका प्रचार भी कर सकता हूं और वह प्रचार सुन के ग्रहस्थ संसार भर के लोग प्रेरित हो सकते हैं, लाभान्वित हो सकते हैं और फिर नकल करनी ही है
भगवान की, तो भगवान के उस जीवन की (तपस्या के जीवन की) नकल कर सकते हैं। मैं तो थोड़ा विस्तार से कह रहा हूं कि मेरे पास , फिर भगवान ने वैसे ही किया। भगवान वैकुंठ को त्याग कर और लक्ष्मी को वहीं छोड़कर इस ब्रह्मांड में बद्रिकाश्रम आए और वहां उन्होंने तपस्या की, तपस्या कर ही रहे हैं। इस प्रकार इस भारत भूमि को वह तपोभूमि बनाते हैं या तप का आदर्श सभी के समक्ष रखे हैं। फिर यह लेसन कहो या सबक कहो जो हमको सीखना है बद्रिकाश्रम से और यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है तपस्या ! तपस्या का जीवन हरि हरि! वैसे ब्रह्मा का भी जन्म हुआ और उनको पता नहीं चल रहा था कि मुझे किसने जन्म दिया मुझे अब करना क्या है ?ऐसे जब ब्रह्मा जिज्ञासु हुए *अथातो ब्रम्ह जिज्ञासा* उन्होंने सर्वप्रथम जो बात सुनी वैसे तो भगवान ने हीं सुनाई , ब्रह्मांड में संसार में और कोई था ही नहीं ब्रह्मा तो पहले जीव थे कोई सुनाने वाला या कोई कुछ करने वाला और कोई था ही नहीं। जो भी बात सुनाई भगवान ने ही सुनाई और वह बात थी या वह शब्द थे वैसे तो वह अक्षर ही थे दो अक्षर थे त प त प त प तो ब्रह्मा को आईडिया आया मुझे तपस्या करने के लिए कहा जा रहा है, हरि हरि ! फिर उन्होंने तपस्या की, ब्रह्मा ने तपस्या की और ब्रह्मा हमारे आचार्य भी हैं और उन्होंने आदर्श रखा सभी जीवों के समक्ष, ब्रह्मा ने तपस्या की। भगवान ऋषभदेव के रूप में प्रकट हुए तो अपने पुत्रों को उपदेश दिया बच्चों, बालको, पुत्रों क्या करो ?
*नायं देहो देहभाजां नृलोके। कष्टान्कामानहते विड्भुजां ये।। तपो दिव्यं पुत्रका येन सत्त्वं। शुद्धयेद्यस्माद्ब्रह्मसौख्यं त्वनन्तम् ॥* (श्रीमदभागवतम ५.५.१)
अनुवाद – भगवान् ऋषभदेव ने अपने पुत्रों से कहा-हे पुत्रो, इस संसार के समस्त देहधारियों में जिसे मनुष्य देह प्राप्त हुई है उसे इन्द्रियतृप्ति के लिए ही दिन-रात कठिन श्रम नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा तो मल खाने वाले कूकर-सूकर भी कर लेते हैं। मनुष्य को चाहिए कि भक्ति का दिव्य पद प्राप्त करने के लिए वह अपने को तपस्या में लगाये। ऐसा करने से उसका हृदय शुद्ध हो जाता है और जब वह इस पद को प्राप्त कर लेता है, तो उसे शाश्वत जीवन का आनन्द मिलता है, जो भौतिक आनंद से परे है और अनवरत चलने वाला है।
तपस्या करो, उस लीला में तो सौ ही पुत्र थे, सबसे बड़े थे भरत लेकिन फिर यह उपदेश भगवान का उपदेश हमारे लिए भी है क्योंकि हम भी भगवान के ही पुत्र हैं हरि हरि ! धर्म के या फिर चार प्रकार के धर्म हैं या चार प्रकार के धर्म ही कहो या धर्म का आधार कहो या धर्म के स्तंभ कहो तो वह है, एक है दया और दूसरा है तपस्या और तीसरा है पवित्रता और चौथा है सत्य, यह चार धर्म के आधार स्तंभ है। धर्म स्थापना, मैं आता हूं धर्म की स्थापना करता हूं मतलब मैं क्या करता हूं ? यह जो धर्म के आधार हैं यह जो स्तंभ है इनको मैं मजबूत बनाता हूं इनकी रक्षा करता हूं हरि हरि ! यह तपस्या एक आधार स्तंभ है। इसकी रक्षा करेंगे, तपस्या का अपने जीवन में पालन करेंगे। तो फिर इसका फायदा है। *धर्मो रक्षति; रक्षिता:*
यह तो संस्कृत हो गया यह पूरा वाक्य हो गया धर्मा रक्षति आप संस्कृत सीखना चाहते हो 1 दिन संस्कृत का प्रेजेंटेशन हुआ था।
अतः धर्मो रक्षति, धर्म रक्षा करता है, कब धर्म रक्षा करता है ? रक्षिता, उस धर्म की हम रक्षा करेंगे तो वह धर्म हमारी रक्षा करेगा। तपस्या का पालन कहो कि हम तपस्या करेंगे तो वह तपस्या ही हमारी रक्षा करेगी, तपस्या धर्म है हरि हरि ! अर्थात हम सबको तपस्वी बनना है। ऐसा सोचते हैं कि तपस्वी तो साधुओं को होना चाहिए यह उपदेश तो साधुओं के लिए है या फिर साधुओं या फिर सन्यासियों के लिए ठीक है ब्रह्मचारीयों के लिए ठीक है, नॉट फॉर गृहस्थ, उनके लिए यह तपस्या नहीं है या फिर तपस्या का उपदेश नहीं है क्योंकि अर्जुन उस प्रकार के साधु थे क्या जिस प्रकार के आप समझते हो कि साधु को होना चाहिए। साधु होना मतलब सन्यासी साधू होता है या ब्रह्मचारी साधु होता है तो ऐसे गृहस्थ भी साधु होते हैं या गृहस्थों को भी साधु होना है हरि हरि ! गीता में भी कृष्ण तपस्या का उपदेश सुनाते हैं आई थिंक फोर्टीन चैप्टर , तपस्या करो और फिर भगवान शारीरिक तपस्या वाचिक तपस्या मानसिक तपस्या को समझाया बुझाया है उसकी परिभाषा सुनाई है। फिर तपस्या के भी, जो मैंने कहा अभी या कृष्ण ने कहा तपस्या के तीन प्रकार या फिर तपस्या तीन स्तर पर हो होती है शारीरिक वाचिक मानसिक यह सब समझ गए, तो हमको तपस्वी बनना है। तपस्वी बनेंगे तपस्या करेंगे ऐसा करेंगे तो ही
*यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत् । यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम् ॥* (श्रीमद्भगवद्गीता 9.27)
अनुवाद : हे अर्जुन! तू जो कर्म करता है, जो खाता है, जो हवन करता है, जो दान देता है और जो तप करता है, वह सब मेरे अर्पण कर॥
कृष्ण गीता में कहते है जो भी तपस्या करते हो, मेरे लिए तपस्या करो या मेरी प्राप्ति के लिए तपस्या करो।
*वासुदेवे भगवति भक्तियोगः प्रयोजितः। जनयत्याशु वैराग्यं ज्ञानं च यदहैतुकम् ॥* (श्रीमदभागवतम १.२.७)
अनुवाद -भगवान् श्रीकृष्ण की भक्ति करने से मनुष्य तुरन्त ही अहैतुक ज्ञान तथा संसार से वैराग्य प्राप्त कर लेता है।
ऐसी की हुई तपस्या तपो दिव्यम , दिव्य तपस्या होगी नहीं तो वैसे संसार में कौन तपस्या नहीं करता सभी तपस्या करते हैं धन कमाने के लिए। धन अर्जन के लिए क्या कम तपस्या करनी पड़ती है क्या या बहुत कुछ जुटाने के लिए उपभोग के साधन जुटाने के लिए बहुत सारी सुविधा इनकन्वीनियंस हरि हरि ! तो तपस्या कौन नहीं करता तपस्या होनी चाहिए क्योंकि जब दिव्य तपस्या होगी उस तपस्या से शुद्धीकरण होगा उसको हम चेतो दर्पण मार्जनं कहते हैं। तपस्या करने से ही शुद्धीकरण होगा और अनंत सुख हमारी प्रतीक्षा कर रहा है जो जीव सुखी बनना चाहता है क्योंकि उसको पता नहीं चलता है कि संसार में हम कैसे सुखी हों सकते हैं हरि हरि !
*शमो दमस्तपः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च | ज्ञानं विज्ञानमास्तिक्यं ब्रह्मकर्म स्वभावजम् ||*
(श्रीमद्भगवद्गीता १८.४२)
अनुवाद – शान्तिप्रियता, आत्मसंयम, तपस्या, पवित्रता, सहिष्णुता, सत्यनिष्ठा, ज्ञान,विज्ञान तथा धार्मिकता – ये सारे स्वाभाविक गुण हैं, जिनके द्वारा ब्राह्मण कर्मकरते हैं |
ऐसा कहा ब्राह्मणों के लिए , तो फिर हमें ब्राह्मण बनना चाहिए वैष्णव बनना चाहिए शुद्र नहीं रहना चाहिए। यह ब्राह्मणों के स्वभाव हैं। ब्राह्मण क्या करते हैं ? वह अपने दम: तप: क्षमा शौचं के लिए प्रसिद्ध होते हैं। सुन रहे हो माइंड कंट्रोल सेंस कंट्रोल मन् निग्रह, इंद्रिय निग्रह, तपस्या यह ब्राह्मणों का स्वभाव या गुणधर्म या लक्ष्य है। ऐसे लक्षणों से साधु सुशोभित हैं। यह साधुओं के संतो के भक्तों के और फिर गृहस्थ भक्त भी हो सकते हैं।
*तितिक्षवः कारुणिकाः सुहृदः सर्वदेहिनाम् ।अजातशत्रवः शान्ताः साधवः साधुभूषणाः ॥* (श्रीमदभागवतम ३.२५.२१)
अनुवाद – साधु के लक्षण हैं कि वह सहनशील, दयालु तथा समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव रखता है। उसका कोई शत्रु नहीं होता, वह शान्त रहता है, वह शास्त्रों का पालन करता है और उसके सारे गुण अलौकिक होते हैं।
*चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलवद्दृढम् | तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ||*
(श्रीमद्भगवद्गीता ६.३४)
अनुवाद- हे कृष्ण! चूँकि मन चंचल (अस्थिर), उच्छृंखल, हठीला तथा अत्यन्त बलवान है, अतः मुझे इसे वश में करना वायु को वश में करने से भी अधिक कठिन लगता है |
यह तपस्या के बारे में सोचो आप हरि हरि !आप लोग वैसे तपस्वी बन रहे हो लेकिन गेट मोर कंडेंस्ड और अधिक तपस्या करो और तपस्या को बढ़ाओ।
*अकामः सर्वकामो वा मोक्षकाम उदारधीः । तीव्रेण भक्तियोगेन यजेत पुरुषं परम् ॥* २.३.१० ॥
अनुवाद- जिस व्यक्ति की बुद्धि व्यापक है, वह चाहे सकाम हो या निष्काम अथवा मुक्ति का इच्छुक हो, उसे चाहिए कि सभी प्रकार से परमपूर्ण भगवान् की पूजा करे।
उसकी तीव्रता को बढ़ा सकते हो हरि हरि ! इसी को कहते हैं तपस्या का जीवन सिंपल लिविंग सादा जीवन है या सरल जीवन है सिंपल लिविंग हाई थिंकिंग, भोगी मत बनो योगी बनो , तपस्वी बनो ऐसा ही संदेश है , भोग से होते हैं रोग, कितनी बार सुनने के उपरांत भी यू मेंटेन अटैचमेंट
*यतो यतो निश्र्चलति मनश्र्चञ्चलमस्थिरम् | ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत् ||* (श्रीमद्भगवद्गीता ६.२६)
अनुवाद – मन अपनी चंचलता तथा अस्थिरता के कारण जहाँ कहीं भी विचरण करता हो,मनुष्य को चाहिए कि उसे वहाँ से खींचे और अपने वश में लाए |
हम लोग अपनी आसक्ति बनाए रखते हैं पुरानी आदतों से, पुराने विचार, पुराने हमारे संग ,एसोसिएशन से मुक्त हो हरि हरि!
*असत्सङ्ग-त्याग,-एइ वैष्णव-आचार। ‘स्त्री-सङ्गी’—एक असाधु,’कृष्णाभक्त’ आर ॥*
( चैतन्य चरितामृत मध्य 87)
अनुवाद- वैष्णव को सामान्य लोगों की संगति से हमेशा बचना चाहिए। सामान्य लोग बुरी तरह से भौतिकता में, विशेषतया स्त्रियों में आसक्त रहते हैं। वैष्णवों को उन लोगों की भी संगति से बचना चाहिए, जो कृष्ण-भक्त नहीं हैं।
यह हमारा देश यह तपोभूमि है इसको भोग भूमि बनाया जा रहा है। पाश्चात्य जगत उनकी नकल करते करते हम भी भोगी और रोगी हो रहे हैं। भोग बढ़ाने से सुख नहीं होता हरी हरी ! और इतने भोग वासना बढ़ाई जा रही है और इसको इतना बढ़ावा दिया जाता है हरि हरि या संसार में जो माहौल है यह भोग की जो सामग्री है उसकी संख्या बढ़ ही रही है, बढ़ाते जा रहा है यह संसार पहले तो छोटी मोटी कुछ दुकानें हुआ करती थी। सुपर बाजार फिर हाई पर बाजार, मॉल्स इतने सारे प्रोडक्ट इतना सारा उत्पादन फैक्ट्री एंड इंडस्ट्रीज डे एंड नाइट करवा कर प्रोडक्शन करवा कर फिर उसका ट्रांसपोर्टेशन उसका प्रमोशन उसका डिस्प्ले में जो बिजी है , एक लेटेस्ट सर्वे हुआ उसका निष्कर्ष यही था कि भोग के साधनों की संख्या हंड्रेड टाइम्स मोर, 100 साल पहले की तुलना में कैसे आसानी से हंड्रेड टाइम्स मोर एंजॉयमेंट के साधन का हमने साइंस टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्री इसकी मदद से हमने एक उत्पादन किया हुआ है। क्या हम लोग हंड्रेड टाइम्स मोर हैप्पी हुए हैं ? तो नहीं !
ऐसा सर्वे किया जा रहा था पता लगवाने के लिए अधिक दुकानें अधिक शब्द स्पर्श रूप रस गंध यह जो इंद्रियों के विषय हैं और इसी का तो प्रोडक्शन डिस्ट्रीब्यूशन और सेल्स होते हैं सुनने के शब्द या देखने की चीज है तो बार बार देखो जो कहा जाता है , यह सूंघने की चीज है कॉस्मेटिक, इस सर्वे का निष्कर्ष यह था कि जब साधन कम ही थे दुकानें कम ही थी प्रोडक्शन कम ही था उस समय अधिक लोग सुखी थे। प्रोडक्शन बढ़ गया हमने अपने घर को भी सजाया हरि हरि !
गिरिराज महाराज मेरे गुरु भ्राता उन्होंने मुझे एक समय कहा था कि मेरे पिता मेरे लिए एक अन्य घर खरीद रहे हैं तो मैंने पूछा किस लिए ? क्योंकि जब उनके पिता वह संसार भर से शॉपिंग करके ले आएंगे जोकि शिकागो में थे तो कहां रखेंगे उसको ? क्योंकि जो ले के आएंगे सामान और अन्य को भी दिखाएंगे , इसीलिए वह एक अन्य घर खरीद रहे हैं, वैसे तो यह दोनों ही वृद्ध हैं किंतु फिर भी ले कर के आ रहे हैं। इसी प्रकार से और भी सर्वे हुआ और उस सर्वे का निष्कर्ष ही था यह था वेस्टर्न स्टैंडर्ड जिसको कहते हैं एंजॉयमेंट के लिए या भोग के जो स्टैंडर्ड हैं उसके लिए सामग्री है उपभोग, उस भोगी देश में और यह तपोभूमि, उस भोग भूमि में जो सामग्री है जो उत्पादन है एंजॉयमेंट के अमेरिकन स्टैंडर्ड के मुताबिक सारा संसार आना चाहेगा। उस सर्वे में यह कहा था कि हम लोगों को 5 पृथ्वीयो की आवश्यकता होगी एक काफी नहीं है।
इस पृथ्वी पर जो भी रिसोर्सेस अवेलेबल है रॉ मैटेरियल जिससे कि प्रोडक्ट बनता है तो हम को पांच पृथ्वीयो की आवश्यकता है। कहां से लाएंगे पृथ्वी तो एक ही है और यह संभव ही नहीं है या फिर जैसे अन्य वैज्ञानिक सोच रहे हैं हम मंगल पर जाएंगे हम चंद्रमाँ पर जाएंगे एक ग्रह सफिशिएंट नहीं है। ऐसी बात नहीं है इस प्लेनेट का हमने ऐसा हाल कर दिया, इस पृथ्वी का ग्लोबल वार्निंग कराके, अपनी धरती माता जिसकी गोद में हम रहते हैं उसी को हमने उसका बुखार का तापमान बढ़ा दिया। कैसे रहेंगे उस धरती माता की गोद में हम चैन से सुख से या आराम से ,माता के स्वास्थ्य को ही हमने बिगाड़ दिया। मदर अर्थ बीमार हो गई हमारी करतूतों से, हमारे भोग विलास के प्रयासों से, इस पृथ्वी का हाल ऐसा हमने कर दिया इसीलिए भी साइंटिस्ट ने सोचा वन अनदर प्लैनेट और कोई ग्रह नक्षत्र ढूंढो हरि हरि !
आप सब तपस्वी बनो ऐसा ही आदेश उपदेश और विधि विधान है। शास्त्र का स्पेशली तपस्या की बात कर रहे हैं। आपके क्या विचार हैं आपके और कुछ विचार हैं समझ है इसके विरोध में या आपके कोई आईडियाज हैं इन फेवर और अगेंस्ट आप कह सकते हो। थोड़ा समय हम बिता सकते हैं *हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
निताई गौर प्रेमानन्दे !
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