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CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Hindi Transcription
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*जप चर्चा*,
*गोविंद धाम, नोएडा*,
*12 सितंबर 2021*
हरी बोल। हमारे साथ 750 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरि हरि। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। गौरंग। पंढरपुर में गौरंग और प्रहलाद बैठे हैं। बाकी भक्त कहां गए? पीछे देखो। हरि हरि। सब को बुलाओ। हरि हरि। जपा टॉक का समय है। हरी नाम उत्सव की मना रहे हैं। आपने शुरुआत तो की है मैंने रिपोर्ट देखी थी। पंढरपुर इस्कॉन भक्त वृंद आप मंदिर गए थे। हरीबोल, धन्यवाद। उसी प्रकार आप सभी भक्त, हर एक भक्त,हर एक पुरुष, स्त्री और बच्चे को पार्टिसिपेट करना है या भाग लेना है। वर्ल्ड होली नेम फेस्टिवल की जय। विश्व हरि नाम महोत्सव की जय। जो भेंट श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु लेकर आए।
*गोलोकेर प्रेमधन, हरिनाम संकीर्तन,
रति ना जन्मिल केने ताय।*
*संसार-विषानले, दिवानिशि हिया ज्वले,
जुडाइते ना कैनु उपाय ।।*
अनुवाद:
गोलोकधाम का ‘प्रेमधन’ हरिनाम संकीर्तन के रूप में इस संसार में उतरा है, किन्तु फिर भी मुझमें इसके प्रति रति उत्पन्न क्यों नहीं हुई? मेरा हृदय दिन-रात संसाराग्नि में जलता है, और इससे मुक्त होने का कोई उपाय मुझे नहीं सूझता।
यह हरि नाम संकीर्तन हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। यह गोलोक वृंदावन का प्रेम धन है। परंपरा में इसका वितरण हो रहा है। अभी कईयों की दीक्षा हुई और भी लोगों की दीक्षा हुई। हरी नाम दीक्षा हुई तो हरी नाम धन प्राप्त हुआ। इस धन को सबके साथ बांटना है। हरि हरि। जैसे चीटियां, कुत्ते तो नहीं, लेकिन चीटियां, चींटी की कोई दाना पानी मिलता है शक्कर का कोई कण मिलता है। तो वह चखती भी होगी, उसकी जीवा भी होगी। भगवान ने कैसे-कैसे शरीर बनाए हैं। शायद आप भी एक समय चींटी थे। भूल जाते हैं, है कि नहीं? चीटी थोड़ा मधुर व्यंजन चख लेती है और खाना वही बंद कर देती है और इधर उधर दौड़ती और भागती है और सबको सूचना देती है कि आओ आओ आओ और फिर सब मिल कर टूट पड़ती है। उनकी दावत होती है। *महाप्रसादे गोविंदे* तो यह चींटी का स्वभाव है। अच्छा स्वभाव है। चीटी से भी हम सीख सकते हैं। चींटी को भी हम अपना गुरु बना सकते हैं। इस प्रकार हमें मधुर हरिनाम जो है उसको बांटना चाहिए और सब के पास पहुंचाना चाहिए। हरि हरि। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिनाम साथ में ले आए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु हरिनाम का स्वयं वितरण किए। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की मुख्य लीला में गौर भगवान है। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की मुख्य लीला तो कीर्तन लीला है। *सुंदर लाला सचीर दुलाला नाचत श्री हरि कीर्तन में* सुंदरलाल क्या करते थे? श्री हरि कीर्तन में नाचते थे, नृत्य करते थे। गाते और नाचते थे। *महाप्रभोः कीर्तन-नृत्यगीत वादित्रमाद्यन्-मनसो-रसेन।* मंगला आरती में अभी अभी हम गा रहे थे। महाप्रभु का कीर्तन, नृत्य, गीत, वाद्य इसका आस्वादन करते हैं। *वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम्* जैसे हम गुरुजनों के चरणों की वंदना करते हैं। जो स्वयं श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु ने कीर्तन और नृत्य करते हैं और रोमांचित होते हैं कीर्तन करते समय इसीलिए हम गुरुजनों के चरणों की वंदना करते है। जो भी कीर्तन करते उनके चरणों की वंदना करते हैं। *बोलेत जैसा चालेत* महाराष्ट्र में पंढरपुर में यह सब कहते रहते हैं। जैसे बोलते हैं वैसे चलते हैं। अंग्रेजी में वाक्स द टॉक। जैसा बोलता है वैसा करता है, करके दिखाता है। तो ऐसे भक्तों के चरणों की वंदना, ऐसे भक्तों के चरणों का हमें अनुसरण करना चाहिए। अब वह समय आ चुका है। विश्व हरि नाम उत्सव के समय में आप जो हमारे साथ जप करते हो। जप चर्चा कभी सुनते हो जैसे अभी सुन रहे हो। हमारी एक टीम बन चुकी है। जप क्लब तो नहीं कहेंगे। क्लब अच्छा शब्द नहीं है। हमारा एक समूह बन चुका है। बन रहा है और हम प्रतिदिन एकत्रित होते हैं। देश विदेश के भक्त एकत्रित हो जाते हैं। कई नगरों के, कई ग्रामों के, कई देशों के, कई वर्णों के, कई आश्रमों के, कोई ब्रह्मचारी है, कोई गृहस्थ हैं, यह सब भक्त एक साथ उपस्थित होते हैं।
गाय गोरा मधुर स्वरे । हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। गृहे थाको वने थाको , सदा हरि बले डाको , सुखे दुःखे भुल नाको । बदने हरिनाम कर रे ।। मायाजाले बद्ध हये , आछ मिछे काज ल’ये , एखनओ चेतन पे’ये । राधा – माधव नाम बल रे ।। जीवन हइल शेष , ना भजिले हृषीकेश , भक्तिविनोद- ( एइ ) उपदेश , एक बार नामरसे मात रे ।।
अनुवाद – अहो ! स्वयं भगवान श्रीगौरसुन्दर अत्यन्त ही सुमधुर स्वरसे ‘ हरे कृष्ण ‘ महामंत्रका कीर्तन कर रहे हैं । अतः हे भाइयो ! आप लोग भी घरमें रहें या वनमें अर्थात् गृहस्थाश्रममें रहें या त्यागी आश्रममें अथवा सुखमें रहें या दुःखमें सदैव भगवानका कीर्तन करें । आप लोग माया जालमें आबद्ध होनेके कारण व्यर्थ ही सांसारिक कामोंमें व्यस्त हैं । अब तो होशमें आओ तथा राधामाधवका नाम लो । अरे ! व्यर्थके कार्योंमें तुम्हारा तो सारा जीवन ही बीत गया , परन्तु तुमने कभी हृषीकेश ( कृष्ण ) का भजन नहीं किया । श्रीभक्ति विनोदठाकुर यही उपदेश प्रदान कर रहे हैं – अरे भाइयो ! एक बार तो नामरसमें निमग्न हो जाओ ।
ऐसे भक्ति विनोद ठाकुर ने कहा ही है। गृहस्थ है या ब्रह्मचारी है या वानप्रस्थ है या सन्यासी है। हम सभी के लिए एक ही धर्म है। *कलि काले नाम रूपे कृष्ण अवतार* कृष्ण प्रकट होते हैं कलयुग में नाम के रूप में प्रकट होते हैं।
*अवतरि’चैतन्य कैल धर्म – प्रचारण ।*
*कलि – काले धर्म – कृष्ण – नाम – सङ्कीर्तन ।।*
(चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 11.98)
अनुवाद:
इस कलियुग में श्री चैतन्य महाप्रभु कृष्णभावनामृत धर्म का प्रचार करने के लिए अवतरित हुए हैं । अतएव भगवान् कृष्ण के पवित्र नामों का कीर्तन वही इस युग का धर्म है।
हम सब का एक ही धर्म है। किसी भी वर्ण और आश्रम के हो सकते हैं लेकिन एक ही धर्म है। इस प्रकार हम श्रील प्रभुपाद के शब्दों में इसको हम आध्यात्मिक जगत का एक संगठित देश कह सकते हैं। जब हम जप के लिए एकत्रित हो जाते है। तो हम एक सचमुच में एक साथ संगठित होते हैं। कौन कहां से है, कौन से देश है, कोई थाईलैंड से, कोई नेपाल से, कोई बर्मा से, कोई बांग्लादेश से, कोई भारत से, कोई दक्षिण अफ्रीका से, कोई ऑस्ट्रेलिया से, रशिया से, यूक्रेन से मैं देख रहा हूं कि पूरे जगत के भक्त हैं। मॉरिशियस से भी भक्त जुड़े हुए हैं। जब एक साथ जप करते हैं तो यह एकता है। हम एकत्रित हैं। हां या ना? आप क्या कहोगे हम सब एकत्रित हैं? हम सब एक है। अलग-अलग होते हुए भी हम एक हैं। हर जीवात्मा वैसे एक एक है। ऐसे करके कई सारी जीव हैं। तो भी हम कहते हैं हम एक हैं। हम एक विचार के हैं। हम सबका एक ही विचार है और यह उच्च विचार हैं। हम सभी का एक लक्ष्य हैं। श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु और श्रीकृष्ण के चरणों की सेवा या प्राप्ति या भगवत धाम वापस लौटना हमारा लक्ष्य है।
*एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् ।
एको देवो देवकीपुत्र एव ।।*
*एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि।
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ।।*
(गीता महात्म्य ७)
अनुवाद:
आज के युग में लोग एक शास्त्र, एक ईश्र्वर, एक धर्म तथा एक वृति के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं। अतएव सारे विश्र्व के लिए केवल एक शास्त्र भगवद्गीता हो। सारे विश्र्व के लिए एक इश्वर हो-देवकीपुत्र श्रीकृष्ण । एक मन्त्र, एक प्रार्थना हो- उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे। केवल एक ही कार्य हो – भगवान् की सेवा।
हम सभी के लिए एक ही शास्त्र है। श्रीमद्भगवद्गीता की जय। आपका कोई अलग सा शास्त्र है क्या? नहीं है। सभी के लिए एक ही ग्रंथ है। *एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम्*। तो यहां पर हम जितने भी एकत्रित हुए हैं। 1000 – 1500 भक्त एकत्रित हुआ है। जप किया अब जपा टॉक को सुन रहे हैं। हम सभी के लिए एक शास्त्र है। पूरे संसार के लिए एक शास्त्र है।
*गीता सुगीताकर्तव्या किमन्यौ: शास्त्रविस्तरैः ।*
*या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सृता ॥*
(गीता महात्मय ४)
अनुवाद:
चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्कता नहीं रहती । केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए । केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथो का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है।
गीता महात्म्य में कहा गया है कि अन्य शास्त्रों की आवश्यकता ही क्या है। जब आपको गीता प्राप्त है। गीता और भागवत एक ही ग्रंथ है। एक दूसरे की पूर्ति करते हैं और ज्यादा मैं नहीं कहूंगा। हम सभी के देव आदि देव हम सभी के भगवान एक ही हैं। 2, 3, 4 अनेक भगवान नहीं है। जब हम एकत्रित होकर जप करते हैं केवल उन्हीं के भगवान एक हैं, ऐसी बात नहीं है। सारे संसार के लिए एक ही भगवान हैं। जिस प्रकार हम एक हैं। एक विचार के हैं। भगवत गीता के विचार हमारे विचार हैं और हम सभी के एक भगवान हैं। हम सभी के लिए एक मंत्र महा मंत्र है हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे। एक मंत्र है। सभी के लिए एक मंत्र है। जो हमको तारने वाला है। मन को मुक्त करने वाला है। इसी को मंत्र कहते हैं। मन और त्र मतलब त्रायते। बचाने वाला या मुक्त करने वाला मंत्र। किसको मुक्त करने वाला? मन को मुक्त करने वाला। मन ही बद्ध है।
*मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।*
*बन्धाय विषयासंगो मुक्त्यै निर्विषयं मनः ॥*
(अमृतबिन्दु उपनिषद्)
अर्थात् :
मन ही मानव के बंधन और मोक्ष का कारण है। इन्द्रियविषयासक्त मन बंधन का कारण है और विषयो से विरक्त मन मुक्ति का कारण है ।
तो हम बद्ध है। बंधे हुए हैं। पूरी माया ने हम को जकड़ लिया है या फिर हम मुक्त हैं। तो हमारे मन की स्थिति पर निर्भर करता है। हमारी मुक्तता या बद्धता। यह मन पर निर्भर रहती है। तो यह जो मंत्र है मन पर कार्रवाई करता है ।
*भिद्यते हृदयग्रन्थिश्छिद्यन्ते सर्वसंशयाः ।*
*क्षीयन्ते चास्य कर्माणि दृष्ट एवात्मनीश्वरे ॥*
( श्रीमद् भागवतम् 1.2.21 )
अनुवाद:
इस प्रकार हृदय की गाँठ भिद जाती है और सारे सशंय छिन्न – भिन्न हो जाते हैं । जब मनुष्य आत्मा को स्वामी के रूप में देखता है , तो सकाम कर्मों की श्रृंखला समाप्त हो जाती है ।
हमारे मन में जो ह्रदय ग्रंथि है श्छिद्यन्ती, क्षीयन्ती ग्रंथि गांठ को तोड़ देता है छोड़ देता है यह महामंत्र तो यह काम करता है मन में मंत्र तो हम सभी के लिए एक ही मंत्र पूरे संसार के लिए एक मंत्र तो इस प्रकार हम एक हैं सभी एक हैं सारे संसार के लोग हम एक है और क्या है ? “तस्य देवस्य सेवा” “कर्माप्येकं” कर्म भी एक ही है । हम सभी का कर्म एक है और वह कौन सा है ? “तस्य देवस्य सेवा” उस देव की आदि देव कृष्ण देव की सेवा ही हमारा कर्म है तो इस प्रकार हम वैसे एक है और इसी प्रकार से हम हम लोग एक हो सकते हैं या संसार में ही ऐक्य की भावना या विचार या दृष्टिकोण को फैलाया जा सकता है तो श्रील प्रभुपाद कृष्ण की ओर से और परंपरा के आचार्यों की ओर से यह सारे दृष्टिकोण दिए हमको संसार को ताकि संसार में कुछ एकता आ जाए या फिर विश्व बंधुत्व जिसको पैटरनिटी लोग कहते रहते हैं । ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ हम सचमुच वैसे भाई भाई है । इस बंधुत्व को हम अनुभव कर सकते हैं और ऐसा अनुभव करेंगे तो संसार में जो होने वाले झगड़े रगड़े हैं यह मिट जाएंगे या कम तो हो सकते हैं । कितने युद्ध चल रहे हैं, लड़ाई चल रहे हैं, कलह हो रहा है । क्योंकि लोगों के मन काम कर रहे हैं हम तो एक है हम तो भाई भाई हैं लेकिन इस संसार में हम या मित्र है । एक व्यक्ति दूसरा व्यक्ति या मेत्री का हमारा संबंध है लेकिन उसको भूल कर हम एक दूसरे को भूल कर हम एक दूसरे को शत्रु मान रहे हैं । शत्रु मानकर बैठे हैं हम । यह जो ऐक्य का एकता का संदेश है उपदेश से यह जो विचार है इसका प्रचार प्रसार होना अनिवार्य है और इस सब के मध्य में यह हरि नाम है या प्रभु प्रकट होते हैं हुए हैं हरि नाम के रूप में और यह समाधान है । यह सब बातें आपको औरों को सुनानी समझानी भी है जो जो जिन लोगों का समय आ चुका है यह जो आईडिया हम कह रहे हैं यह प्राप्त करने का कुछ जीवों का आज समय आ गया या कल किसी ने कल समय आया था कल उसको सुने और स्वीकार किए । किसी किसी के बारी आज है अपने सारे पूर्व कर्मों के अनुसार आज उनका समय है यह हरिनाम प्राप्त करने का यह विचार प्राप्त करने का गीता का विचार प्राप्त करने का समय तो ऐसी उनकी मांग या तो फिर उसको कोई देने वाला भी चाहिए ।
*ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान् जीव ।*
*गुरु – कृष्ण – प्रसादे पाय भक्ति – लता – बीज ॥*
( चैतन्य चरितामृत मध्यलीला 19.151 )
अनुवाद:
सारे जीव अपने – अपने कर्मों के अनुसार समूचे ब्रह्माण्ड में घूम रहे हैं । इनमें से कुछ उच्च ग्रह – मण्डलों को जाते हैं और कुछ निम्न ग्रह – मण्डलों को । ऐसे करोड़ों भटक र जीवों में से कोई एक अत्यन्त भाग्यशाली होता है , जिसे कृष्ण की कृपा से अधिकृत गुरु का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिलता है । कृष्ण तथा गुरु दोनों की कृपा से ऐसा व्यक्ति भक्ति रूपी लता के बीज को प्राप्त करता है ।
तो आज किसी की भाग्य का उदय होगा तो फिर किसी हरे कृष्ण भक्तो को उनके पास पहुंचना होगा ।
*यारे देख , तारे कह ‘ कृष्ण ‘ – उपदेश ।*
*आमार आज्ञाय गुरु हञा तार ‘ एइ देश ॥*
( चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 7.128 )
अनुवाद:
हर एक को उपदेश दो कि वह भगवद्गीता तथा श्रीमद्भागवत में दिये गये भगवान् श्रीकृष्ण के आदेशों का पालन करे । इस तरह गुरु बनो और इस देश के हर व्यक्ति का उद्धार करने का प्रयास करो ।
करने के लिए या मुझे कहे थे “यारे देख , तारे कह” क्या कहे मुझे श्रील प्रभुपाद ? पदयात्रा शुरू करने प्रारंभ में ! “यारे देख , तारे कह” हरे कृष्ण उपदेश तो हमने किया । श्रील प्रभुपाद के आदेश अनुसार और यथाशक्ति हमने पदयात्राएं की सारी संसार भर में । हरि हरि !! श्रील प्रभुपाद के जन्म शताब्दी समय तो 100 से ज्यादा देशों में पदयात्राएं संपन्न हुई तो पग पग पर पदयात्री इन सारी देशों में कीर्तन कर रहे थे और कीर्तन का दान दे रहे थे । श्रील प्रभुपाद के ग्रंथ भी दे रहे थे प्रसाद भी दे रहे थे तो यह कार्य जो वैसे शुरू किए श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु की जय ! और परंपरा में यह प्रचार प्रसार का कार्य चल रहा था और फिर श्रील प्रभुपाद ने इस इस्कॉन की स्थापना करके इस कार्य को ऐसा विश्वव्यापी अंतरराष्ट्रीय बना दिया या ताकि क्या हो जाए ? वैसे चैतन्य महाप्रभु की भविष्यवाणी …
*पृथ्वीते आछे यत नगर आदी ग्राम ।*
*सर्वत्र प्रचार होइबे मोर नाम ॥*
( चैतन्य भागवत् 4.126 )
अनुवाद:
इस पृथ्वी के प्रत्येक नगर तथा ग्राम में मेरे नाम का प्रचार होगा ।
मेरा नाम का प्रचार होगा । नगरों में, ग्रामों में तो श्रील प्रभुपाद गए 1965 में हरि नाम लेकर और उन्होंने वितरण शुरू किया और श्रील प्रभुपाद 14 बार सारे संसार का भ्रमण किए जेटएज परीव्राजक आचार्य बने और संसार के कोने कोने में श्रील प्रभुपाद भगवान के नाम यस गान का प्रचार प्रसार किया तो आप वैसा ही करो जैसा मैंने किया या मैंने प्रारंभ किए हुए इस कार्यो को आगे बढ़ाओ । ऐसा श्रील प्रभुपाद का आदेश भी है हम सभी के लिए तो विशेष रूप से यह जो वैसे 17 सितंबर को जो तारीख है इस तारीख को श्रील प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे । जलदूत जहाज में जा रहे थे तो वोट पहुंच गई । पहले बोस्टन में पहुंची । कामनवेल्थ पीरियड मुझे याद आ रहा है कि उस पोर्ट नाम था । कुछ घंटों के लिए प्रभुपाद बोस्टन में वैसे क्या पेंटा पांड्या श्रील प्रभुपाद को श्रील प्रभुपाद को बोस्टन दिखा रहे थे । फिर पुनः वोट में लौट आए और फिर बोस्टन से न्यूयॉर्क का सफर आगे बढ़ा । बोस्टन से न्यूयॉर्क ज्यादा दूर नहीं है तो फिर 17 सितंबर को श्रील प्रभुपाद न्यूयॉर्क पहुंचे । पहुंचते ही उन्होंने हरि नाम का प्रचार प्रसार प्रारंभ किया तो इसीलिए यह जो 17 सितंबर है इसका चयन जो हुआ है । प्रतिवर्ष पिछले 25 सालों से हम यह विश्व हरि नाम उत्सव मना रहे हैं और श्रील प्रभुपाद की गौरव गाथा भी बढ़ा रहे हैं और हरी नाम का महिमा हरि नाम की गुण गाथा का प्रचार प्रसार वैसे कीर्तन करके भी ।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥*
तो आप सबको आज हमने घोषणा सुनी नोएडा मंदिर में मंगल आरती के बाद तो आज दूसरा दिन है विश्व हरि नाम उत्सव का दूसरा दिन इस तरह 17 तारीख तक और फिर दूसरा एक पार्ट है 17 से 23 तारीख तक वैसे 23 तारीख तक यह उत्सव मनाए जाएंगे तो इसको नोएडा इसको पहले से ही शुरू कर चुका है और कल उन्होंने भाग्यवान जीव कैंपेन के कितने वीडियोस ? कल एक ही दिन में 500 वीडियोस बनाएं इसको नोएडा के भक्तों ने, कई युवकों ने कई उत्साही युवक रिकॉर्ड कर रहे थे जो विजिटर्स या मंदिर के सामने आने जाने वाले लोगों को पकड़ पकड़ के, कोयला भी तक संख्या वैसे 4500 वीडियो हो चुके हैं और उनका प्रयास चल रहा है कुछ विश्व विजेता बनने का । विजेता बनना चाहते हैं 25000 का टारगेट उन्होंने बनाया है तो यह एक बात है और भी कई सारे योजनाएं हैं माधुरी गौरी आपको सुना रही थी । क्या तुम हो ? पद्ममाली तुम हो ? और कौन-कौन है ? कृष्ण भक्त ज्ञात थोड़ा समझाओ क्या क्या कर सकते हैं हमारे यह जो टीम है । यह एक विशेष टीम है और भी कई सारे टीमें है मंदिर है देश है या नगर है ग्राम है उनमें में हमारे यह जो प्रतिदिन एकत्रित होके यह जो जप करते हैं जपा टॉक को सुनते हैं तो इस टीम को एक्टिव होना होगा मंदिर के साथ भी जुड़ सकते हैं या मंदिर वालों को याद दिला सकते हैं यह विश्व हरि नाम उत्सव आ गया । “श्रद्धावान जन हे, श्रद्धावान जन” पातियाछे नाम-हट्ट जीवेर कारण” “नदिया गोद्रुमे नित्यानंद महाजन” एसे भक्तिविनोद ठाकुर घोषणा कर रहे हैं उसकी इसमें । हे श्रद्धावान लोगों क्या करो ? नदिया गोद्रुम में आओ यह नित्यानंद प्रभु ने नाम हट्ट प्रारंभ किया है इसका फायदा उठाओ तो हमारी टीम भी ऐसी घोषणा कर रही है और वैसे आप टीम मेंबर हो तो आपकी भी स्कोर्स वगैरा उत्सव के अंत में देखे जाएंगे और आप में से कौन जीतेगा भाई जीतेगा ! तो आपको इसमें भाग लेना होगा या बड़ी प्रतियोगिता होगी, दिव्य प्रतियोगिता । ठीक है तो आप लोग भी कहो कुछ । माधुरी गोरी तुम कुछ अधिक कहना चाहती हो या कृष्ण भक्त हेतु या पद्ममाली तुम स्वयं या आप भी जो मुझे सुन रहे हो आप में से कोई कुछ कहना चाहते हैं और कुछ प्रेरणा के बच्चन या आपका कोई संकल्प है या आपने कैसे शुभारंभ हुआ । अपने विश्व हरि नाम उत्सव कल कैसे बनाया । आज क्या करने वाले हो । काम धंधे तो चलते रहते हैं थोड़ा थोड़ा दूसरा कुछ करो, कुछ दिव्य कार्य करो । यह दुनियादारी बहुत हो गई ।
हरि हरि !! जीव जागो जीव जागो ! गोराचांद बोले ! चैतन्य महाप्रभु बुला रहे हैं । ठीक है ।
॥ हरे कृष्ण ॥
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
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*जप चर्चा*
*गोविंद धाम से*
*11 सिंतबर 2021*
हरे कृष्ण!!!
आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 802 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। गौरांग!
गौर प्रेमानंदे, हरि हरि बोल!
वृन्दावन धाम की जय!
हम गोविंद धाम इस्कॉन नोएडा में आए तो हैं किन्तु हमारा हृदय वृन्दावन में खो गया हैं “आई लॉस्ट माई हार्ट इन वृन्दावन।”
हरि! हरि!
इस बार वृन्दावन की भेंट कुछ विशेष रही। वैसे भी हम बहुत समय के उपरान्त वृंदावन गए थे। हरि !हरि! वृंदावन ने हमारे चित की चोरी की व अपनी ओर अधिक आकृष्ट किया। वृंदावन या वृन्दावन बिहारी लाल की जय!
एक ही बात है। वृंदावन भगवान से अभिन्न है, वृन्दावन भगवान हैं और भगवान वृन्दावन हैं। भगवदधाम भी भगवान का एक स्वरूप है।
हम जब से इस्कॉन में सम्मिलित हुए हैं तब से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव मना ही रहे हैं, लेकिन…
एक बार पहले भी मैं जन्माष्टमी के दिन वृन्दावन में था। शायद यह दूसरी या तीसरी बार था, जिस दिन मैं जन्माष्टमी के दिन वृन्दावन रहा और श्रीकृष्ण जन्माष्टमी वृन्दावन में ही मनाई।श्री कृष्ण जहाँ अष्टमी के दिन जन्में थे, जहाँ लीला खेली थी। उस वृन्दावन धाम में ही श्रीकृष्ण बलराम मंदिर में श्रील प्रभुपाद ने भगवान को उनके विग्रह के रूप में प्रकट किया। हमनें वहीं पर कृष्ण बलराम, राधाश्याम सुन्दर की जन्माष्टमी मनाई। कृष्ण की ही जन्माष्टमी। वृन्दावन में वह दिन तथा उसका अनुभव अति विशेष रहा। कृष्ण की कथा करने का भी अवसर मिला और रात्रि को जब कृष्ण का महा महा अभिषेक हुआ
जैसे नंद यशोदा नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की।
जैसे नंद- यशोदा व सभी ब्रज वासियों ने मिलकर श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई थी। उस उत्सव का स्मरण करते हुए हमनें भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव मनाया और हमें वृन्दावन में श्रील प्रभुपाद की 125वीं व्यास पूजा मनाने का अवसर मिला। वृन्दावन के लिए प्रभुपाद कहा करते थे,” वृन्दावन इज माई होम,” वृन्दावन इज माई होम” उस होम में जाकर जहां प्रभुपाद राधा दामोदर मंदिर में रहे, श्रील प्रभुपाद मथुरा में भी रहे थे। यह वृन्दावन मथुरा भगवान का धाम है।
कृष्ण जिनका नाम हैं, गोकुल जिनका धाम हैं। उसी वृन्दावन को श्रील प्रभुपाद अपना घर मानते थे। वृंदावन इज माय होम। उस होम (घर) में ही हमनें श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा मनाई।
हम चैतन्य बैठक पर रुके,
जहां एक बार श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु बैठे थे। हम भी वहां बैठ गए और श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की वृंदावन की परिक्रमा को याद कर रहे थे। हम वहां थोड़े समय के लिए रुके और चैतन्य महाप्रभु का स्मरण कर रहे थे। चैतन्य बैठक एक बहुत प्रसिद्ध स्थान है, आप भी वहां गए ही होंगे। वहां जरूर रुकना चाहिए। वह बहुत विशेष स्थान है। वहां पर चैतन्य महाप्रभु और जगन्नाथ के विग्रह भी हैं। इस पंचकोसी परिक्रमा के अतिरिक्त (वैसे हमने आपको 1 दिन बताया था) हमनें गोवर्धन परिक्रमा भी की। यह विशेष परिक्रमा रही। पहली बार हमने वाहन में बैठकर गोवर्धन की परिक्रमा की। हरि! हरि! वहां की लीलाओं की रास्ते में कुछ चर्चा भी हो रही थी। उसको हम याद कर रहे थे। इतनी सारी बातें हैं कि शुद्र जीव कितना याद कर सकता है, क्या-क्या याद कर सकता है।हम उन लीलाओं के सिंधु में से कुछ बिंदु का आस्वादन कर रहे थे। हम राधा कुंड भी गए थे। राधा कुंड श्याम कुंड की जय!
वहां पर हमनें रघुनाथ दास गोस्वामी की समाधि का दर्शन किया। रघुनाथ दास गोस्वामी की जय!
रघुनाथ दास गोस्वामी राधा कुंड के तट पर लगभग 41 वर्ष रहे अर्थात उन्होंने राधा कुंड पर लगभग 41 वर्ष बिताए। वह भी परिक्रमा करते रहे जैसे कि सनातन गोस्वामी गोवर्धन की परिक्रमा किया करते थे। हरि! हरि! वहीं राधा कुंड के तट पर कृष्ण दास कविराज गोस्वामी रहते थे। राधा कुंड के तट पर ही कृष्ण दास कविराज गोस्वामी ने श्रीचैतन्य चरितामृत की रचना की। वे रघुनाथ दास गोस्वामी से चैतन्य महाप्रभु की लीला कथा का श्रवण करते थे। उनके पास अन्य भी कुछ कडचा ( नोट) इत्यादि थे। जिसके आधार व संदर्भो की मदद से उन्होंने चैतन्य चरितामृत की रचना राधा कुंड पर की। जय राधे! इस राधा कुंड पर प्रतिदिन अष्टकालीयलीला के अंतर्गत मध्यान्ह के समय राधा कृष्ण की लीलाएं संपन्न होती हैं। जल क्रीड़ा है या झूलन यात्रा है।
जय राधा माधव कुंज बिहारी अथवा वहां के कुंजों में विहार है। प्रतिदिन ध्यान के समय राधा कुंड की लीला का स्मरण किया। वैसे राधा कुंड सर्वोपरि है। वृंदावन के सभी स्थानों में राधाकुंड श्रेष्ठ स्थान है। जैसे कृष्ण के सभी भक्तों में राधा रानी श्रेष्ठ है। वैसे ही उनका कुंड भी सर्वश्रेष्ठ है। वह स्थान सबसे ऊंचा है, सर्वोपरि है। हमने गोवर्धन परिक्रमा का समापन वहीं पर किया व पुनः वृन्दावन लौटे। हरि! हरि! इन्हीं दिनों वृंदावन में 1 दिन दीक्षा समारोह भी संपन्न हुआ। जैसे आज नोएडा में भी यहां दीक्षा समारोह संपन्न होने वाला है और एक वृंदावन में भी हुआ था। एक दिन में मैं अपने शिष्यों से भी मिला। वृंदावन में रहने वाले भक्तों और शिष्यों की संख्या कुछ दिन-ब-दिन बढ़ रही है। 100 से अधिक शिष्य वृंदावन में रह रहे हैं। हरि! हरि ! उन को संबोधित करते हुए हमने सबको कहा कि जैसे और लोग रिटायर होने के बाद आराम करने के लिए आते हैं लेकिन हम गौड़ीय वैष्णव विशेष रुप से श्रीलप्रभुपाद के अनुयायी हैं, वह कभी रिटायर नहीं होते। वे इस भौतिक जगत से ऊब गए हैं और सब छोड़ वृंदावन पहुंच जाते हैं। छोड़ो दुनियादारी, छोड़ो दिल्ली या नागपुर, यह रूटीन कार्यकलाप। वृंदावन में जाओ, गो बैक टू होम। कुछ भक्त ऐसा कर रहे हैं, उसमें से मेरे शिष्य भी वहां पहुंचे हैं और मैं उनको कह रहा था कि एक्टिव रहो सक्रिय रहो और श्रील प्रभुपाद का वृन्दावन में जो मिशन, मंदिर अथवा प्रोजेक्ट है, उसमें सहायता करो। इस्कॉन की सेवा करो, इस्कॉन सेवी बनो। मैंने उस समय कहा भी था कि हमें इस्कॉन भोगी नहीं बनना चाहिए। इस्कॉन का फायदा नहीं उठाना चाहिए, इस्कॉन द्रोही मत बनो। जैसे कि लोग राष्ट्र द्रोही , इसके द्रोही, उसके द्रोही बनते हैं। इस्कॉन द्रोही मत बनो। इस्कॉन त्यागी भी मत बनो। अर्थात इस्कॉन को त्याग अथवा छोड़ दिया और इधर उधर भटक रहे हैं, मठ मंदिर जा रहे हैं और वहां जुड़ रहे हैं, यह मत करो। मूलभूत रूप से हमें इस्कॉन भोगी नहीं, इस्कॉन द्रोही नहीं, इस्कॉन त्यागी नहीं अपितु इस्कॉन सेवी बनना है।
मतलब इस्कॉन द्रोही, इस्कॉन त्यागी , इस्कॉन भोगी होना मतलब यह प्रभुपाद द्रोह हो जाता है अर्थात जैसे हमनें प्रभुपाद को त्याग दिया,यह आपके गुरु महाराज पर भी लागू होता है। गुरु द्रोही, गुरु भोगी, गुरु त्यागी… नहीं! अपितु गुरु सेवी बनो। गुरु सेवी, प्रभुपाद सेवी, इस्कॉन सेवी या सेवक बनो। निश्चित ही जो अभी आप मुझे सुन रहे हो , यह हम सभी के लिए है। आप जो वृंदावन में भी हो या वृंदावन में नहीं हो तो भी आपके लिए भी यह संदेश अथवा उपदेश भी है। हरि! हरि! इस वृंदावन की यात्रा में हमें कृष्ण बलराम और राधा श्याम सुंदर की मंगला आरती गाने का भी और आरती करने का भी अवसर मिला।
विग्रह आराधना अथवा कम से कम आरती तो उतारता हूं। मुझे भगवान की आरती उतारना अच्छा लगता है। वृंदावन के विग्रह बहुत बहुत विशेष हैं। अनुभव होता है, वहीं वृन्दावन के भगवान वहीं जन्मे, वही लीला खेलने वाले भगवान अर्च विग्रह के रूप में विद्यमान है। वें स्वयं भगवान हैं या वहां साक्षात भगवान की उपस्थिति का कुछ अनुभव होता है। वहीं पर लीलाएं हो रही हैं। वहीं पर रमणरेती है, जिस रेती में कृष्ण बलराम रमते हैं और राधा श्याम सुंदर और ललिता विशाखा भी है । कल ही मैनें भागवत की अंग्रेजी में कथा की और मैं कह रहा था कि ऑल्टर पर कृष्ण बलराम का विग्रह दर्शन करते समय वहां एक गाय हैं, एक बछड़ा भी है। दोनों गाय नहीं, दोनों बछड़े नहीं है। मैंने पहले भी देखा था लेकिन जब कल मैंने आरती भी उतारी अर्थात मंगला आरती मैंने देखा कि एक गाय के सींग थे अर्थात गाय थी। दूसरा बछड़ा था, उसके सींग नहीं थे। बछड़ों के सींग नहीं होते हैं। आकार तो लगभग एक जैसा ही लगता है, लेकिन एक के सींग है ,दूसरे के नहीं हैं। एक गाय हैं और एक बछड़ा है। भागवत में कृष्ण के वत्सपाल होने की चर्चा हो रही थी तब मैंने पूछा कि कृष्ण और बलराम वत्सपाल है? या गोपाल है?। कोई कह रहा था गोपाल है और कोई कह रहा था वत्सपाल है। हमने कहा कि लगता है यह दोनों ही हैं। ऑल्टर पर गाय भी है गोपाल हो गए और वत्स अर्थात बछड़ा भी है तो वत्सपाल हो गए। हमनें दोनों लीलाओं का वत्सपाल लीला, गोपाल लीला का दर्शन किया।
भगवान का जब श्रृंगार होता है तब
(मैंने कल कहा था और मैंने कई बार देखा भी है) कृष्ण बलराम के हाथ में रस्सी अथवा डोरी देते हैं अर्थात कृष्ण बलराम एक डोरी धारण किए हैं और पुजारी एक डोरी को गाय के गले में बांध देते हैं और दूसरी डोरी बछड़े के गले में बांध देते हैं। कृष्ण भगवान के हाथ में कहीं लंच पैक अथवा टिफिन भी होता है। कई बार उनके हाथ में फल भी होते हैं। ऐसे ही कृष्ण बलराम के हाथ में गाय बछड़े भी हैं और वे साथ साथ में टिफिन भी लिए हुए हैं। श्रृंगार दर्शन के समय अर्थात 7:15 पर जो दर्शन होता है । लगता है कि कृष्ण बलराम गोचारण लीला अथवा गोचारण प्रस्थान के लिए तैयार हैं। तब विचार आता है और दिल ललचाता है कि क्या हम भी जा सकते हैं। अन्य भी कई सारे ग्वाल बाल साथ में हैं ही, कृष्ण बलराम क्या हम आपके साथ जा सकते हैं? आप तो तैयार हो। जब वृन्दावन के कृष्ण बलराम का दर्शन करते हैं, तब ऐसा कुछ अनुभव भी करते हैं। ऐसे विचार आते हैं। वृंदावन के कृष्ण बलराम या अन्य विग्रह कुछ बहुत ही विशेष है उनकी आरती करने का भी अलग ही अनुभव होता है। कृष्ण श्रीमद भगवतगीता में कहते हैं-
*मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु। मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे ||*
(श्रीमद भगवतगीता 18.65)
अनुवाद:- सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे नमस्कार करो | इस प्रकार तुम निश्चित रूप से मेरे पास आओगे | मैं तुम्हें वचन देता हूँ, क्योंकि तुम मेरे परम प्रिय मित्र हो |
कृष्णा अल्टीमेटली इतना ही करने को कहते हैं। राधा श्यामसुंदर ललिता विशाखा गौर निताई के विग्रह का स्मरण करो, उनके भक्त बनो। उनकी आराधना करो। केवल आरती उतारने से आराधना नहीं होती और भी अन्य कई प्रकार की आराधना होती है। उनको भोग खिलाओ, यह भी आराधना है। उनका अभिषेक करो, उनका श्रृंगार करो। यह भी आराधना है, उनके लिए कीर्तन करो। जब आरती होती है अथवा विग्रह की आराधना होती है तब साथ में कीर्तन जरूर होना चाहिए। कीर्तन भजन के साथ आरती होनी चाहिए। आरती उतारी जा रही है तो यह भगवान की आराधना है भगवान का कीर्तन हो रहा है
*कृष्णवर्ण त्विषाकृष्णं साङ्गोपाङ्गास्त्रपार्षदम् । यज्ञैः सङ्कीर्तनप्रायैर्यजन्ति हि सुमेधसः ॥*
( श्रीमद भागवतम 11.5.32)
अनुवाद:- कलियुग में , बुद्धिमान व्यक्ति ईश्वर के उस अवतार की पूजा करने के लिए सामूहिक कीर्तन ( संकीर्तन ) करते हैं , जो निरन्तर कृष्ण के नाम का गायन करता है । यद्यपि उसका वर्ण श्यामल ( कृष्ण ) नहीं है किन्तु वह साक्षात् कृष्ण है । वह अपने संगियों , सेवकों , आयुधों तथा विश्वासपात्र साथियों की संगत में रहता है।
हम कीर्तन करते हैं, आराधना करते हैं।मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु भगवान ने कहा कि मेरी आराधना करो और मुझे नमस्कार करो। हम जब विग्रह को जब नमस्कार करते हैं, मां नमस्कुरु हुआ। कृष्ण के विग्रह केंद्र में, नाम भी केंद्र में, भागवत श्रवण भी केंद्र में, प्रसाद
भी केंद्र में होना चाहिए। प्रसाद के बिना क्या जीवन है। हरि! हरि!
तत्पश्चात कथा कीर्तन करने का भी अवसर प्राप्त हुआ ही। भागवतम कक्षाएं हिंदी व अंग्रेजी में हुई। कृष्ण बलराम हॉल में हिंदी में कथाएं होती है।
टेंपल हॉल में अंग्रेजी में कथाएं होती हैं, वह सेवा करने का भी अवसर प्राप्त हुआ। इस समय श्रील प्रभुपाद की गुरु पूजा और कीर्तन, प्रभुपाद के विग्रह के साथ कृष्ण बलराम मंदिर बाहर से कीर्तन के साथ परिक्रमा होती है। मंदिर के अध्यक्ष पंचगौड़ प्रभु कहते हैं कि ऐसी गुरु पूजा वृंदावन में होती है। बड़े उत्साह के साथ, काफी बड़ी संख्या में भक्त उपस्थित रहते हैं। गुरु पूजा के उपरांत श्रील प्रभुपाद के विग्रह के साथ पूरे मंदिर की परिक्रमा होती है। ऐसी गुरु पूजा शायद ही कहीं पर होती होगी। ऐसा मंदिर के अध्यक्ष कह रहे थे। हरि! हरि! हम थोड़ा अधिक जप कर ही रहे थे, वैसे भी चातुर्मास तो चल ही रहा है। हम धाम वास के लिए भी गए थे, ताकि अधिक जप भी कर पाए। हमनें वृंदावन में
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।* का कीर्तन और जप भी थोड़ा अधिक बढ़ाया। बहुत सारी बातें है, एक बात और कहना चाहूंगा कि हम कुछ अध्ययन भी कर रहे थे। वृंदावन चंद्र महाराज के सानिध्य में हम दोनों कुछ पढ़ रहे थे, आचार्यों की भागवत पर टीका, गोपाल भट्ट गोस्वामी की कृष्ण कर्णामृत पर टीका, जो बड़ी ही रसभरी अथवा अमृत से भरी है। वही उनकी टीकाएँ हैं या श्रीधर स्वामी की टीकाओं के संबंध में कहा है
*अहं वेद्मि शुको वेत्ति व्यासो वेत्ति न वेत्ति वा । भक्त्या भागवतं ग्राह्यं न बुद्ध्या न च टीकया ॥*
( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 24.313)
अनुवाद ” [ शिवजी ने कहा : ] श्रीमद्भागवत को या तो मैं जानता हूँ या व्यासपुत्र गोस्वामी जानते हैं , तथा व्यासदेव जानते हैं अथवा नहीं जानते । इस निष्कलंक पुराण श्रीमद्भागवत को केवल भक्ति से सीखा जा सकता है – भौतिक बुद्धि , चिन्तन विधियों या काल्पनिक टीकाओं द्वारा नहीं । ”
व्यासदेव जानते हैं, शुकदेव जानते हैं पता नहीं राजा जानते हैं या नहीं जानते लेकिन पता नहीं श्रीधर स्वामी पाद जानते हैं या नहीं जिन्होंने भागवत पर टीका लिखी है। जिस टीका को चैतन्य महाप्रभु पसंद करते थे। श्रीधर स्वामी, चैतन्य महाप्रभु से भी पहले हुए, श्रीधर सक्लम वेति अर्थात श्रीधर स्वामी पाद सब कुछ जानते हैं। वे नरसिंह के भक्त थे। नरसिंह प्रसाद या कृपा से वह सब जानते थे, उन टीकाओं व कुछ भाष्यों को भी हम वृंदावन में पढ़ रहे थे। इतना कुछ पढ़ना सुनना और सीखना बाकी है किंतु और इतनी सारी व्यस्तता रहती है कि जो चाहते हैं उतना नहीं कर पाते । हरि !हरि !यह सब वृंदावन में कर ही रहे थे। वृंदावन मेरी जन्मभूमि है जहां पर मैंने श्रील प्रभुपाद से दीक्षा प्राप्त की इसलिए वृंदावन को मैं अपनी जन्मभूमि समझता हूं। अन्य व्यस्तताओं व जिम्मेदारियों के कारण इस जन्म भूमि को छोड़कर कर्म भूमि अर्थात जहां-जहां प्रचार के लिए जाना पड़ता है हरि! हरि !वृंदावन की यादें तो सताती रहेगी और वृंदावन को याद करते हुए अपना संबंध बनाए रखते हुए भी हम कर्मभूमि में कुछ कर्म करेंगे, कुछ सेवा करेंगे, प्रचार करेंगे। हरि! हरि! वृंदावन धाम की जय!
श्रीकृष्ण बलराम की जय!
श्रील प्रभुपाद की जय!
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल!
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जप चर्चा,
वृंदावन धाम से,
6 सितंबर 2021
आज जप चर्चा में 720 भक्त सम्मिलित हैं। आज हम 10 मिनट पहले चर्चा शुरू कर रहे हैं।पद्ममाली क्या आप यहा उपस्थित हो?
(पद्ममाली प्रभुजी ने उत्तर दिया- जी गुरु महाराज मैं उपस्थित हूँ। )
प पू लोकनाथ महराज जी ने कहा- मैं थोड़े समय के लिए कृष्ण कथा कहूंगा और फिर मंदिर के भक्त प्रभुपाद कथा शुरू रखेंगे।
पद्मामाली प्रभु जी ने कहां- सभी भक्तों को मेरा दंडवत प्रणाम हैं। कल मंदिर के भक्तों से हमने सुना हैं, लेकिन काफी भक्त कह नहीं पाएं, इस्कॉन पंढरपुर के भक्त और सहस्त्रनाम प्रभु और अनंतशेष प्रभु कल यात्रा कर रहे थे, तो वह आज बोलेंगे, अमरावती के भी कुछ भक्त हैं, इस्कान नागपुर और आरवड़े के भी कुछ भक्त,और आल इंडिया पदयात्रा से प्रभु और उनका मंडल हैं,जो भक्त कल बोल नहीं पाए उनसे अनुरोध हैं कि हैंड रेज़ करीए।जब गुरु महाराज अपना जपा टॉप संपन्न करेंगे तो या पुर्ण करेंगे तो उसके पश्चात हम आप सभी को बारी-बारी से अवसर देंगे और आप सभी बोल सकेंगे।अब गुरु महाराज पनी जपा टौक प्रारंभ करेंगे और उसके उपरांत आप श्रील प्रभुपाद का गुणगान कर सकते हो।
प पू लोकनाथ महाराज जी जपा टौक शुरू करते हैं।
मैं वृंदावन में हूं।
वृंदावन धाम कि जय…!
इसलिए भी यहां कि लीलाएं कथाओं का स्मरण कर रहा हूं और जो-जो याद कर रहा हूं, उसको आपसे साझा भी कर रहा हूं और इतना सारा मैं याद करता हूं इतना सारा तो मैं आपसे साझा नहीं कर सकता लेकिन उसका अंश प्रस्तुत करता रहता हूँ ,जो भी मैं कभी पढ़ता हूं,सुनता हूं, कुछ अनुभव करता हूं,तो मेरे पढ़ने का, श्रवण का और स्मरण का उद्देश्य ये भी होता हैं कि मैं इसको तुरंत किसी के साथ साझा करूं। यह मेरा चलता रहता हैं,जैसा मेरा मनोभाव रहता हैं कि मैं अधिक-अधिक पढूं, सुनूं और भगवान को याद करूं और जिन भक्तों को मैं मिलता हूं, जो यहां जपा सेशन में या फिर अन्य भी मंच होते हैं बोलने के,वहां मैं यह बातें प्रस्तुत करता हूं। मेरा पढ़ना, सुनना,याद करना वैसे खुद के लिए नहीं होता या मैं सुनता पढता या याद करता हूं, वह मैं आपके लिए भी, औरों के लिए भी औरों को याद रखते हुए मैं पढ़ता हूं या सुनता हूं और पढी,सुनी, चिंतन की हुई बातें विचार या लीला कथा मैं उसको बांटता हूं,मैं औरों के पास पहुचाता हूंँ। हरि हरि!
पुनः हम एक साल के कार्तिक मास कि याद कर रहे थे, यह कृष्ण के समय कि बात हैं, कृष्ण कि प्रगट लीला संपन्न हो रही हैं और कृष्ण ने अब पौगंड अवस्था को प्राप्त किया हैं।पौगंड लीला संपन्न कर रहे हैं,मतलब क्या समझना चाहिए? कृष्ण की उम्र अब कितनी हैं? 5 और 10 के बीच में है और वे 7 साल के ही हैं, क्योंकि मैं गोवर्धन लीला कि बात करने वाला हूंँ। पूरी लीला कथा तो नहीं किंतु जो घटना क्रम हैं, इस गोवर्धन लीला के संबंध में वह कहूंगा। तो कृष्ण सात साल के हैं। हम पढते हैं, सुनते हैं,जब कृष्ण उतने आयु के थे, यह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष कि बातें हैं। शुक्ल पक्ष प्रारंभ होने के एक दिन पूर्व अमावस्या थी,यहा इंद्र पूजा कि तैयारियां हो रही थी। प्रतिवर्ष नंद महाराज और उनके अनुयाई या वृंदावन का वैश्य समाज इंद्र पूजा करते थे (इनके नेता नंद महाराज थें)। हर वर्ष के भाती इंद्र पूजा कि तैयारी कर रहे थे,तो कृष्ण अब उम्र में बड़े हो रहे थे ।पहले भी तैयारी होती रही थी लेकिन कृष्ण तब केवल देखते थें,ज्यादा सोचते नहीं थे। इस साल कृष्ण ने प्रश्न उठाया क्या कर रहे हो?क्यो कर रहे हो?इसकी आवश्यकता हैं क्या? इत्यादि संवाद प्रारंभ होता हैं और कृष्ण ने प्रस्ताव दिया कि यह बंद करो! बस करो ये इंद्र पुजा! इसके बदले में आप गोवर्धन पूजा करो! यह संवाद भागवत में हैं। आप पढ़िएगा! अगले दिन वह अमावस्या का दिन था, जिस दिन यह संवाद हूआ और कृष्ण ने सभी को समझाया ,बुझाया और इंद्र पूजा के लिए जो सामग्री इकट्ठे कर थे,उसी सामग्री का गोवर्धन पूजा में उपयोग करो,ऐसा कृष्ण ने सुझाव दिया। फिर अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा आई। आप जानते हो प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया यह सब दोनों ही पक्षो में चलता रहता हैं चाहे कृष्ण पक्ष हो या शुक्ल पक्ष।शुक्ल पक्ष कार्तिक का पहला दिन हैं। प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा संपन्न हुई।
गोवर्धन पूजा महोत्सव कि जय…!
अब उस गोवर्धन पूजा का, गौरव गाथा का क्या कहना, मैं कहूंगा ही नहीं, समय नहीं हैं, लेकिन ब्रज की लीलाओं में यह एक प्रधान लीला हैं।गोवर्धन पूजा भी और फिर आगे गोवर्धन धारण भी और उसके संबंधित जो घटना प्रसंग घटते हैं, प्रतिपदा के दिन,गोवर्धन पूजा हुई अन्नकूट हुआ। सारे ब्रजवासी वहा गोवर्धन तलहटी के नीचे पहुंचे थें ,कृष्ण बलराम भी थें। “शैलोंस्मी” मैं गोवर्धन हूं ऐसे कृष्ण ने कहा, दर्शन दिया, गोवर्धन ने दर्शन दिया और गोवर्धन ने कहा “गोवर्धन उवाच” क्या कहा? “शैल:अस्मि” यह जो शीला हैं, ययहजो गोवर्धन पहाड़ है यह मै हूं गोवर्धन भगवान। आज अन्नकूट हैं। अन्नकूट-अन्न का पहाड़
कूट मतलब पहाड़।आपको इसको भी समझना चाहिए।अन्नकूट में कूट का क्या अर्थ हैं? कूट मतलब पहाड़।चित्रकूट मतलब पहाड़ पर।गोवर्धन के लिए बहुत से व्यंजन बनाए गए थे।सायं काल को या अपरान काल में गोवर्धन परिक्रमा भी हुई।पहली बार गोवर्धन परिक्रमा करने वाले कौन थे?सारे के सारे ब्रजवासी थे, जिन्होंने गोवर्धन की पूजा की और गोवर्धन की पूजा कर के गोवर्धन को प्रसन्न किया और गोवर्धन को ओर प्रसन्न करने हेतु या गोवर्धन से अपना संबंध स्थापित करने हेतु या गोवर्धन का स्मरण या गोवर्धन में होने वाली लीलाओं का स्मरण करने हेतु भी सारे ब्रजवासियों ने गोवर्धन की परिक्रमा की हैं। कृष्ण बलराम ने भी गोवर्धन की परिक्रमा की हैं और फिर सायंकाल को सारे बृजवासी अपने-अपने घर लोट गए।यह प्रतिपदा के दिन हुआ। समय हो भी गया?मैंने तो अभी अभी शुरुआत ही की थी।समय किसी के लिए भी नहीं रुकता। हरि हरि।मैं जितना आपको या जिस रफ्तार से आपको बताना चाहता था उस रफ्तार से मैं कह नहीं सकता। दूसरे दिन पुनः सारे बृजवासी मथुरा में विश्राम घाट पर पहुंचते हैं। विशेष रूप से भाई और बहन वहां पहुंच जाते हैं और वहां स्नान करते हैं।
यमुना मैया की जय।यही भैयादूज हैं, जो कि अलग-अलग नामों से भारत में जाना जाता हैं। भैया दूज क्यों कहते हैं? क्योंकि द्वितीय का दिन हैं। इस दिन यमुना के तट पर उत्सव मनाया गया। उत्सव के अंतर्गत उन्होंने बहुत कुछ किया और वही विश्राम घाट पर दो भाई बहन भी रहते हैं।यम और यमी। यम और यमी कौन हैं? यम मतलब यमराज और यमी मतलब यमराज की बहन यानी कि यमुना। यमुना यमराज की बहन हैं। वहां इन दोनों के विग्रह हैं यानी मंदिर हैं। जब हम ब्रज मंडल परिक्रमा में जाते हैं तब हम उनके दर्शन वहा कर सकते हैं। वैसे परिक्रमा का प्रारंभ ही विश्राम घाट से होता हैं। तब हम वहां यम और यमी के दर्शन कर सकते हैं। यह दोनों सूर्य के पुत्र और पुत्री हैं। यमराज सूर्य पुत्र हैं और यमुना सूर्य पुत्री हैं। तो यहां द्वितीया के दिन भाई और बहन स्नान करने के लिए आते हैं और वह इन दो भाई बहनों का भाई यानी यमराज और बहन यानी यमुना का दर्शन करते हैं।यमुना तो वहां हैं ही अपने जल रूप में।यह सब ब्रज में घटित हुआ और यह सब जब हो रहा था तो इंद्र के पास समाचार पहुंच गया कि इस साल तुम्हारी पूजा नहीं हुई और उसके बदले में वह जो कृष्ण हैं ना उसने यह प्रस्ताव रखा हैं कि तुम्हारी पूजा की बजाय गोवर्धन की पूजा हो और देखो वैसा ही हुआ इससे इंद्र क्रोधित हो गए और खूब वर्षा की।
भागवतम् में लिखा हैं कि इंद्र संवरतक नामक बादलों का प्रयोग करते हैं। यह संवरतक नामक बादल कौन हैं?जो बादल महाप्रलय के समय वर्षा करते हैं। यह बादल वहा इंद्र के द्वारा पहुंचाए गए और मूसलाधार वर्षा हुई। इसी के साथ सारा ब्रज जलमय हो गया और सब लोग इससे परेशान हो गए। गर्गाचार्य ने नंद महाराज को कहा था कि जब आप किसी कठिनाई में होते हैं तो तुरंत इस बालक के पास पहुंच जाया करें,यह तुम्हारी रक्षा करेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए सभी कृष्ण की शरण में गए। तो कृष्ण यह सब सुनकर उन सब को अपने साथ लेकर जाने लगे।पता नहीं कहां ले जा रहे थे।बस कहा कि चलो चलो और साथ लेजाते ले जाते कहां पहुंचे?गोवर्धन।
गोवर्धन के पास और यह कौन सा दिन हैं? तृतीया का दिन था। प्रथमा भी बीत गई, अमावस्या भी बीत गई, द्वितीय भी बीत गई और अब तृतीया का दिन हैं, तृतीया के दिन कृष्ण अब गोवर्धन को धारण करेंगे। भगवान ने गोवर्धन को धारण किया और गोवर्धन को धारण करना,भगवान के लिए बाएं हाथ का खेल था।कौन से हाथ का? दाहिने हाथ का नहीं।दोनों हाथों का भी नहीं ।बाएं हाथ का खेल।कहावत आपने सुनी होगी।अगर आपको उदाहरण देना हैं कि कृष्ण ने गोवर्धन कैसे उठाया, तो आप बाएं हाथ का खेल बोल सकते हो। कृष्ण ने गोवर्धन पहाड़ उठाया, मतलब क्या किया उन्होंने उन्होंने बाएं हाथ का खेल किया।तो वह तृतीया का दिन था और इसी के साथ कृष्ण ने सारे ब्रज वासियों की रक्षा की। सारा ब्रज वहां पहुंचा हैं। तृतीया से नवमी तक कौन कौन सी तिथि हुई?तृतीय, चतुर्थी, पंचमी, शष्टि, सप्तमी, अष्टमी,नवमी यानी कि 7 दिन और 7 रात्रि। ब्रज वासियों के लिए उनके जीवन में ऐसा समय कभी नहीं आया था। कृष्ण के इतने समीप,उनका संग, सानिध्य और दर्शन उन्हें प्राप्त हो रहा था।
श्रीमद भागवतम् 10.23.22
श्यामं हिरण्यपरिधिं वनमाल्यबर्ह धातुप्रवालनटवेषमनव्रतांसे । विन्यस्तहस्तमितरेण धुनानमब्जं कर्णोत्पलालककपोलमुखाब्जहासम् ।। २२ ।।
उनका रंग श्यामल था और वस्त्र सुनहले थे । वे मोरपंख , रंगीन खनिज , फूल की कलियों का गुच्छा तथा जंगल के फूलों और पत्तियों की वनमाला धारण किये हुए नाटक के नर्तक की भाँति वेश बनाये थे । वे अपना एक हाथ अपने मित्र के कंधे पर रखे थे और दूसरे से कमल का फूल घुमा रहे थे । उनके कानों में कुमुदिनियाँ सुशोभित थीं , उनके बाल गालों पर लटक रहे थे और उनका कमल सदृश मुख हँसी से युक्त था ।
भागवतम् में कृष्ण के सौंदर्य का वर्णन आता हैं, इस लीला का वर्णन आता हैं और बताया जाता हैं कि वह उनके जीवन का सबसे सुंदर,सबसे सुखमय समय था। सब लोग बहुत प्रसन्न थे।सातवें दिन वर्षा बंद हुई और इंद्र हार गए।इंद्र की हार हो गई।श्री कृष्ण ने इंद्र के गर्व को चूर चूर कर दिया और गोवर्धन को उसके स्थान पर रख दिया ।उससे पहले सभी ब्रज वासियों को कहा कि आप सब बाहर निकलो। दशमी आ गई और दशमी के दिन सारे ब्रज में चर्चा होने लगी कि आखिर यह बालक हैं कौन।एक बालक ने गोवर्धन पहाड़ को उठा लिया और 7 दिन और 7 रात्रि तक धारण किया रखा।
इसके संबंध में कई चर्चाएं कई प्रश्न उठ रहे थे और उसी समय नंद महाराज ने बताया, क्या बताया? जो गर्गाचार्य ने कृष्ण के नामकरण के वक्त बताया था। गर्ग मुनि ने बताया था कि यह बालक कौन हैं?
10.8.19
तस्मान्नन्दात्मजोऽयं ते नारायणसमो गुणैः । श्रिया कीर्त्यानुभावेन गोपायस्व समाहितः ॥१ ९
अतएव, हे नन्द महाराज , निष्कर्ष यह हैं कि आपका यह पुत्र नारायण के सदृश हैं। यह अपने दिव्य गुण , ऐश्वर्य , नाम , यश तथा प्रभाव से नारायण के ही समान है । आप इस बालक का बड़े ध्यान से और सावधानी से पालन करें ।
उन्होंने सीधा यह नहीं कहा कि यह नारायण हैं, बल्कि उन्होंने कहा कि यह नारायण के गुणों वाला बालक हैं। उन्होंने ऐसे संकेत दिए थे कि यह नारायण के गुणों वाला बालक हैं,यह सब गर्गाचार्य ने नंद महाराज को बताया था और आज जब नंद महाराज से सभी लोग पूछ रहे थे तो नंद महाराज को जवाब देना पड़ा इसलिए नंद महाराज ने रहस्य का उद्घाटन किया।यही अध्याय कृष्ण बुक में अद्भुत कृष्ण के नाम से प्रभुपाद जी ने लिखा हैं। अद्भुत कृष्ण नाम के अध्याय में यह चर्चा हैं कि कृष्ण कौन हैं या कृष्णा अद्भुत हैं। तो उस दिन दशमी थी और दशमी के बाद एकादशी हुई और एकादशी के दिन का पालन सभी ने काफी अच्छे से किया। वृंदावन में नंद महाराज ने भी एकादशी का पालन किया। फिर द्वादशी के दिन नंद महाराज प्रातकाल: में थोड़ा जल्दी ही ब्रह्म मुहूर्त में जमुना के तट पर स्नान करने के लिए गए, लेकिन स्नान करने की विधि के अंतर्गत एक निश्चित समय होता हैं, जब आपको स्नान करना चाहिए। वह थोड़ा जल्दी वहां पर पहुंचे थे और थोड़ा जल्दी स्नान कर रहे थे।वह समय से पहले ही वहां पहुंचकर स्नान कर रहे थे।नंदमहाराज यह आप का कसूर हैं।इस समय थोड़ी ना स्नान करना होता हैं।
आपने विधि के विपरीत इस स्नान के समय का चयन किया हैं। वरुण देवता के सेवक ने नंद महाराज को गिरफ्तार कर लिया और वहा ले गए जहां उनके स्वामी का निवास स्थान था। बृज वासियों ने देखा कि नंद महाराज अभी तो यहां स्नान कर रहे थे,लेकिन अभी कहां गए। अभी तो वह यहां थे कहा गए। सब लोगों उनहें खोज रहे थे और लोग भयभीत हो गए। नंद महाराज नहीं मिल रहे थे उस कारण लोग भयभीत हुए। इसलिए उस गांव का क्या नाम हुआ?भयगांव। और जहां नंद महाराज ने स्नान किया था उस घाट पर वज्रनाभ ने नंद घाट की स्थापना की और यह घाट आज भी वहां मौजूद हैं। तो सभी ब्रजवासी जब उन्हें खोज रहे हैं, तो कृष्ण बलराम उन्हें खोजते हुए यमुना में कूदे और सीधे वरुण लोक पहुंच गए।वहा वरुण देवता को मिले।उनको पता चला कि यह वरुण देव की करतूत हैं और वहां उन्हें नंद महाराज मिले। हरि हरि और वरुण देवता ने कृष्ण बलराम का खूब स्वागत सत्कार किया और कहा कि ठीक हैं, आपके पिताजी को आप ले जा सकते हैं। वह तो केवल कृष्ण बलराम का दर्शन चाहते थे और इसी उद्देश्य से उन्होंने नंद महाराज को कैद किया था।
अब हमको दर्शन मिला। धन्यवाद। यह नंद महाराज हैं आप इनहे ले जा सकते हैं। नंद महाराज को लेकर कृष्ण बलराम फिर वृंदावन लौट गए और यह वरुण लोक जाना और वहां पर उन लोगों का जिस प्रकार से स्वागत सत्कार हुआ, उसकी भी चर्चा अब होने लगी तो लोगों को और शक होने लगा और प्रश्न उठने लगे और शंकाय होने लगी कि आखिर यह बालक हैं कौन? इसका परिचय क्या हैं? इसका महात्मय क्या हैं? तब कृष्ण ने सोचा कि इसका कुछ मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए। लोग काफी संमभ्रमित हो रहे हैं। मुझे पहचान नहीं रहे हैं।
सारे ब्रज वासियों को कृष्ण बलराम अक्रूर घाट पर ले गए। यमुना के तट पर अक्रूर घाट हैं। इस अक्रूर घाट को ब्रह्मरद् भी कहते हैं और यहां इक प्रकार का टेलीस्कोप कह सकते हैं यहा से दूरदर्शन संभव होता हैं। वहां से वैकुंठ लोक और गोलोक भी देखा जा सकता हैं। वहां ऐसी व्यवस्था हैं। तब कृष्ण बलराम ने सभी ब्रज वासियों को कहा कि देखो ऊपर देखो। जब ऊपर देखा तो ऊपर भी गोलोक देखा। वहां भी कृष्ण बलराम दिखे और सारा वैभव दिखा और फिर कहा कि अब नीचे हमारी और देखो। तो वे फिर कृष्ण बलराम की तरफ देखने लगे। तो जो कृष्ण बलराम गोलोक पति हैं या गोलोकनायक हैं वही कृष्ण बलराम अब यहां पर भी हैं। अब जान गए। समझ गए।आप जानना चाहते थे ना कि कौन हैं यह बालक? लो देख लो। इस प्रकार कृष्ण बलराम ने सारे ब्रज वासियों की समस्या का समाधान किया।
जिस दिन उन्होंने गोलोक का दर्शन कराया वह पूर्णिमा का दिन था। कार्तिक पूर्णिमा का दिन। इस प्रकार अमावस्या से लेकर पूरे पक्ष यानी के शुक्ल पक्ष 15 दिन अमावस्या तक एक के बाद एक घटनाक्रम घटता रहा और इसके केंद्र में कृष्ण बलराम और गोवर्धन धारण लीला हैं। गिरिराज धरण की जय। इसमें गिरिराज भी हैं और गिरिराज को धारण करने वाले भी हैं। बोलो श्री राधे श्याम और कृष्ण बलराम। गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। हरे कृष्णा।
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*जप चर्चा*,
*वृंदावन धाम*,
*5 सितंबर 2021*
हरी बोल । गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल। हमारे साथ 648 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं। हरे कृष्ण। वृंदावन धाम की जय। समय कम है । कम क्या समय, हमारे पास समय ही है। हरि हरि । वृंदावन या कृष्ण की कथा का ही मैं सोच रहा था। जो मैं पढ़ रहा था कल या फिर चिंतन कर रहा था या फिर कुछ विचारों का मंथन हो रहा था। तो मैंने तय कर लिया कि आज वही बातें मैं आपके साथ शेयर करूं या सुनाऊं। यह सब कहते हुए समय निकल जाता है। कृष्ण कन्हैया लाल की जय। वृंदावन धाम की जय। मैं कुछ कहने जा रहा हूं, तो वह लिखने योग्य बातें हो सकती हैं और तकनीकी बातें भी कहूंगा । आप उसको लिख कर रख सकते हो, आपका फायदा होगा । मैं जो कुछ बातें कहूंगा, सब बातें तो आप कुछ बातें सुनकर याद रख सकते हो किंतु कुछ बातें आप लिख सकते हो और याद रख सकते हो । अगर भूल गए तो पुनः आप पढ़ सकते हो ।
एक तो वृंदावन में लीलाएं होती है। वृंदावन में ही क्यों ? कृष्ण की जितनी भी लीलाएं हैं, उनके तीन प्रकार बताएं है । एक है बाल्य लीला, दूसरी पोगंड लीला और तीसरी किशोर लीला या फिर किशोर से आगे यौवन लीला *नवयोवनम च* ऐसा भी कह सकते हो । किशोर और यौवन एक ही प्रकार है । कृष्ण की लीलाएं प्रारंभ होती है। मैं आपको बता ही देता हूं । थोड़ी तकनीकी जानकारी कहो । भागवत के दशम स्कंध में 90 अध्याय में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन है । श्रीकृष्ण का चरित्र है कहो । श्रीकृष्ण चरित्र 90 अध्याय में है । उसमें जो पहले 5 अध्याय हैं । उसमें कृष्ण के जन्म की लीलाएं या कथा है और वैसे इन लीला की स्थलियां भी अलग-अलग है । बाल्य लीला कहां होती हैं और पोगण्ड किसी दूसरे स्थान पर होती है । उसके साथ उसमें उम्र का भी प्रश्न होता ही है ।
भगवान की जैसे उम्र बढ़ जाती है। एक दिन आपको बताया था । कृष्ण गोकुल में रहते हैं । कितने वर्ष ? आपको याद है विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर आप बताएं कितने वर्ष रहे गोकुल में, कौन जानता है ? 3 वर्ष और 8 महीने रहे । कृष्ण वहां से शकटावर जाते है। बस गोकुल में भगवान की बाल्य लीला संपन्न होती है। कृष्ण आगे बढ़ते हैं । उम्र भी बढ़ रही है और आगे भी बढ़ रहे हैं। शकटावर जाते हैं और स्थांतरित हो जाते हैं। छटीकरा का यहां का, शकटावर यह सब आपको बताए थे । यहां पर भी रहते हैं 3 वर्ष और 8 महीने ।
बाल्य लीला अधिकतर गोकुल में संपन्न होती है किंतु कुछ बाल्य लीला शकटावर में भी होती है। बाल लीला पहले 5 वर्ष की आयु में जो होती है उसको बाल लीलाएं कहते हैं । 5 से 10 तक को पोगण्ड लीला कहा गया है। 10 या 16 वर्ष तक को किशोर लीला कहा है। फिर आगे यौवन लीला किशोर ही है। कृष्ण सदैव किशोर ही रहते हैं। फिर कृष्ण शकटावर से आगे बढ़ते हैं, नंदग्राम जाते हैं। पहले नंदगोकुल में थे । नंद महाराज का गोकुल नंद महाराज का ग्राम, नंद ग्राम और यहां शकटावर में भी पोगण्ड लीला भगवान की होती है।
श्रीशुक उवाच
ततश्च पौगण्डवयः श्रीतौ व्रजे बभूवतुस्तौ पशुपालसम्मतौ ।
गाश्चारयन्तौ सखिभिः समं पदै वृन्दावनं पुण्यमतीव चक्रतुः ॥
(श्रीमद् भागवत 10.15.1)
अनुवाद:- शुकदेव गोस्वामी ने कहा : वृन्दावन में रहते हुए जब राम तथा कृष्ण ने पौगण्ड अवस्था ( ६-१० वर्ष ) प्राप्त कर ली तो ग्वालों ने उन्हें गौवें चराने के कार्य की अनुमति प्रदान कर दी । इस तरह अपने मित्रों के साथ इन दोनों बालकों ने वृन्दावन को अपने चरणकमलों के चिन्हों से अत्यन्त पावन बना दिया ।
यह बात भी आपको कुछ दिन पहले बताई थी। कृष्ण जब पोगण्ड अवस्था को प्राप्त कर लिए। तो कृष्ण गोपाल बन गए। पोगण्ड लीला शकटावर में प्रारंभ होती है। फिर कृष्ण आगे उम्र में और बढ़ते हैं और नंद ग्राम पहुंचते हैं और वहां किशोर अवस्था को प्राप्त करते है और वहां किशोर लीला संपन्न होती है। तो लीला के जो तीन प्रकार बता रहे हैं। तो बाल्य लीला गोकुल में और पोगण्ड लीला शकटावर में और किशोर लीला नंदग्राम में संपन्न होती है । किशोर लीला और आगे की लीलाएं नंदग्राम में, मथुरा में भी, द्वारका में भी वह सारी लीला संपन्न करते है। फिर कृष्ण कुछ 11 वर्ष के हुए। फिर मथुरा के लिए प्रस्थान करते हैं और बचे हुए जितने वर्ष हैं, कुल 125 वर्षों तक भगवान इस धरातल पर रहेंगे। मथुरा में रहेंगे 18 वर्ष और बचे हुए वर्ष और जो साल है भगवान द्वारिका में रहेंगे तो वहां पर किशोर या यौवन लीला कहो । मैं अध्ययाओ की बात कर रहा था। श्रीमद भागवत के दशम स्कंद के पहले जो 5 अध्याय हैं। उसमे भगवान की अजन्म लीला का वर्णन है । मथुरा में जन्म और गोकुल में पहुंचाए गए। वहां पर लीलाएं संपन्न हुई। इसको जन्म लीला कहिए। पहले 5 अध्याय में जन्म लीला है और आगे के 9 अध्यायों में बाल्य लीला है । श्रीमद्भागवत के 10वे स्कंद की बात चल रही है। आप पढ़ते हो यह जानकारी उपयोगी होगी। यह जानकारी भी विश्वनाथ चक्रवर्ती ठाकुर देते हैं । वैसे कठिन तो नहीं है। जो भी अवलोकन करेंगे अध्यायों का उनको पता लग सकता है । कौन सी लीला कहां संपन्न हुई और पता चलेगा की लीला कौन सी प्रकार की है । बाल्य लीला है या किशोर लीला है या फिर पोगण्ड लीला है तो 9 अध्याय बाल्य लीला है और फिर जो 10वे स्कंद के 15 वा अध्याय में पोगण्ड लीला प्रारंभ होती है । श्रीकृष्ण पोगण्ड आयु को प्राप्त हुए और गोपाष्टमी भी कार्तिक मास की थी। कृष्ण गोपाल बने और गौचारण लीला कहो । गोचारण लीला प्रारंभ होती है ।
अब तक श्री कृष्ण अधिकतर या गोकुल में रहे और जहां बाल लीला मतलब यहां वात्सल्य भाव का प्राधान्य रहता है पहले वात्सल्य भाव का प्राधान्य फिर पौगंड़ लीला में सख्य मित्रों के साथ मिलना जुलना खेलना फिर अभी बछड़े चराने जाना यह लीलाएं प्राप्त होती है तो वह भी क्रम है ही । वात्सल्य भाव, पहले वात्सल्य भाव का प्राधान्य है लीलाओं में और कृष्ण थोड़े बड़े हो जाते हैं उम्र में बड़े हो जाते हैं तो मित्रों से मिलते हैं और सख्य भाव और फिर उसमें बढ़ जाते हैं ज्यादा तो उम्र नहीं बढ़ी है लेकिन कुछ हो गए 7-8 साल और 10 साल की ओर आगे बढ़ रहे हैं तो फिर भगवान की माधुर्य लीला या माधुर्य भाव मतलब गोपियों के साथ और उसके बाद राधा के साथ तो कृष्ण के दो प्रकार के दोस्त हैं कहो या दोस्ती भी है उस माधुर्य में दोस्ती भी है और भी दोस्ती से ज्यादा और कुछ अधिक भी है तो दोस्त सखियां उनके मित्र हैं और उनकी सखियां और सखा तो पहले उन्होंने मित्रों के साथ बालकों के साथ उनका मिलना जुलना खेलना उसी समय को गोचरण लीला खेलते हैं और उम्र बढ़ती है तो फिर गोपियों के साथ गोपियों को छेड़ना इत्यादि ।
गोपियों के साथ और धीरे-धीरे रास क्रीडा इत्यादि भी प्रारंभ होती है तो मूल रूप से यह क्रम है या भाव के दृष्टि से सर्वप्रथम वात्सल्य भाव का प्राधान्य है और दूसरे क्रमांक में यह सख्य भाव प्राधान्य आदि लीलाएं और फिर माधुर्य लीला । राधा बल्लभ, गोपी बल्लभ कृष्ण बनते हैं तो नंदग्राम से लगभग नंद ग्राम से प्रारंभ होती है । ठीक है जहां तक यह अध्याय का क्रम की बात चल रही है तो 6 अध्याय में प्रारंभ से 15 अध्याय से शुरुआत तो 6 अध्याय में पौगंड़ लीला है और मुझे याद आ रहा है कि 21 अध्याय से जो वेणु गीत है, वेणु गीत वाला जो अध्याय है वहां से किशोर लीला प्रारंभ होती है और इसके 19 अध्याय है तो बाल्य लीला के 9 अध्याय, पौगंड़ लीला के 6 अध्याय उसके बाद किशोर लीला के माधुर्य लीला के 19 अध्याय है । यह किशोर लीला का प्रारंभ होता है । मुझे यहां पर रुकना भी होगा तो किशोर लीला का प्रारंभ होता है वेणु गीत से आपको बताया शायद वो 21 वा अध्याय होगा आप लीजिए और फिर यहां से अब कृष्ण, अक्रूर आने वाले हैं आ ही गए और मथुरा के लिए प्रस्थान । कृष्ण बलराम मथुरा के लिए प्रस्थान करेंगे तो रास्ते में अक्रूर घाट में अक्रूर की स्तुति है वह एक अध्याय है । अक्रूर की स्तुति वाला एक अध्याय है और अब कृष्ण ‘मथुरेसी गेला’ मथुरा गए । मथुरा में रहेंगे, मथुरा में प्रवेश और वहां 11 अध्याय में मथुरा लीला है और फिर ‘रणछोड़-‘रणछोड़’-‘रणछोड़’ जो जरासंध ने कहा ।
कृष्ण और बलराम वहां युद्ध होता रहा हर वर्ष । उस युद्ध को छोड़े और कृष्ण जा रहे थे तो रण छोड़ा और उसी के साथ उन्होंने मथुरा को भी छोड़ा और आगे बढ़े हैं द्वारका के लिए प्रस्थान किया है जहां उनका विशेष स्वागत हुआ है । रणछोड़राय की जय ! बहुत अच्छा हुआ आपने रण को छोड़ा ताकि आपको हम मिले । आपका बहुत स्वागत है श्री कृष्ण । बाकी जो बचे हुए जितने भी अध्याय हैं यह सब द्वारका लीला है तो मथुरा लीला तक उसको ‘पूर्वार्ध’ कहा है ‘पूर्व-अर्ध’। पहला आधा और दूसरा आधा । ‘उत्तरार्ध’ तो वृंदावन मथुरा की लीला इनको पूर्वार्ध कहा है और बची हुई लिपटे द्वारिका में 90 अध्यायों तक इसको उत्तरार्ध कहा है या मूल रूप से इस प्रकार यह श्रीमद्भागवत् के दसवें स्कंध के अध्यायों का बंटवारा है और यह 3 प्रकार की लीलाएं बाल लीला, पौगंड़ लीला, किशोर लीला यह भी उस क्रम से होती है और उसके साथ भाव भी जुड़े हैं और वे हैं । प्रारंभ होता है वात्सल्य भाव से और फिर सख्य भाव से या फिर सख्य रस पूर्ण जो लीलाएं हैं और फिर किशोर लीला फिर वृंदावन में परकिय भाव है और द्वारिका में स्वकिय भाव है । वैसे यह कुछ वृदावन की गोपियां ही श्री कृष्ण की रानियां बन जाती हैं जो गोपियां थी वृंदावन में वह बन जाते हैं रानियां । रुक्मिणी, सत्यभामा इत्यादि इत्यादि तो वृंदावन में भी शृंगार रस या माधुर्य रस है और द्वारिका में भी है । लेकिन इन दौ रसों में भेद है । वृंदावन में ‘परकिय भाव’ ।
जय जय उज्ज्वल-रस, सर्व-रस-सार ।
पारकिया-भावे जाह, ब्रजते प्रचार ॥ 10 ॥
( जय राधे, जय कृष्ण, जय वृंदावन )
अनुवाद:- समस्त रसों के सारस्वरूप माधुर्यरस की जय हो , परकीय भाव में जिसका प्रचार श्रीकृष्ण ने व्रज में किया ।
व्रज में परकिय भाव का प्रचार है और द्वारिका में स्वकिय भाव । ठीक है । गौर प्रेमानंदे ! तो याद रखिए कुछ आपने लिख भी लिया होगा हां ! इसको याद करिए इस पर विचार कीजिए, मनन कीजिए, चिंतन कीजिए तो यह विचार के लिए भोजन है कहो और फिर इसको औरों के साथ फिर शेयर करना है औरों को सुनाइए और इसी के साथ कृष्ण भावना या कृष्ण को फैलाईये । कृष्ण भावना का वितरण कीजिए मतलब कृष्ण को ही दीजिए औरों को इस कथा के रूप में । ठीक है तो अब हम सुनना चाहेंगे प्रभुपाद कथा या प्रभुपाद गौरव गाथा हमारे मंदिर के भक्तों के मुखारविंद से । ठीक है ।
॥ हरे कृष्ण ॥
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*जप चर्चा*
*वृन्दावन धाम से*
*दिनांक 04 सितंबर 2021*
हरे कृष्ण!!!
आज इस जपा कॉन्फ्रेंस में 777 स्थानों से भक्त सम्मिलित हैं।
आप सब का स्वागत है, हमारे साथ रशिया के भक्त जप कर रहे हैं। यूक्रेन से अर्जुन भी जप कर रहे हैं, इसी तरह से हमारे साथ थाईलैंड, नेपाल, बांग्लादेश, बर्मा और संसार के अन्य स्थानों से भी भक्त जप करते हैं, वे प्रसन्न हैं।
ओजस्विनी गोपी, यूक्रेन से नियमित रूप से हमारे साथ जप करती हैं। हरि! हरि!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।।
आइए, कुछ कृष्ण कथा करते हैं। आप सुनना चाहोगे? लीला कथा तो नहीं होगी लेकिन कृष्ण के संबंध में बातें अथवा चर्चा होगी, वह भी कृष्ण कथा ही है। वैसे इस संसार में दो प्रकार की कथाएं होती हैं- एक का नाम है ग्राम कथा अर्थात गांव, नगर की कथा जो आप अखबारों में पढ़ते होंगे (आप तो शायद अखबार नहीं पढ़ते, सुनते होंगे।) सारा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया, सारा इंटरनेट ग्राम कथा से भरा पड़ा है। यह हलकट कथाएं अर्थात हल्की व सस्ती कथाएं जो राजनीति, आंतकवादियों की कथाओं या अफगान में क्या हो रहा है, उसकी कथाओं अथवा समाचारों इत्यादि से भरी होती है। शास्त्रज्ञों जिनको हम प्रत्यक्षवादी कहते हैं। संसार के अधिकतर लोग प्रत्यक्षवादी होते हैं। जो भी सामने दिखता है अर्थात जो भी हो रहा है व घटनाएं घट रही हैं, प्रत्यक्ष वादी उसको देखते हैं व उसके विषय में बोलते रहते हैं। यह सब ग्राम कथाएं हुई, यह सारा संसार ग्राम कथा से भरा पड़ा है।
हरि! हरि!
संसार भर में एक तो ग्राम कथाएं चलती रहती हैं। जैसा कि बताया- संसार में दो प्रकार की कथाएं होती हैं एक है- ग्राम कथा व दूसरी कथा है – राम कथा अथवा कृष्ण कथा । पहली ग्राम कथा को हम माया की कथा भी कह सकते हैं और दूसरी कृष्ण की कथा कहलाती है। बस यह दो ही संसार में कथाएं होती हैं। एक माया है, एक कृष्ण है। माया के संबंध की कथा अर्थात माया के मायावी कार्यकलाप की कथा होती है और कृष्ण के कृष्णमयी कार्यकलाप होते हैं।
सावधान! इस ग्राम कथा से सावधान! ग्राम कथा से थोड़ा हटकर रहो, थोड़ा दूर रहो या ग्राम कथा करने वालों से भी थोड़ा दूर रहो।
*असत्सङ्ग-त्याग,-एड़ वैष्णव-आचार ।स्त्री-सङ्गी’-एक असाधु, ‘कृष्णाभक्त’ आर ॥*
( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला २२.८७)
अनुवाद:- वैष्णव को सामान्य लोगों की संगति से हमेशा बचना चाहिए। सामान्य लोग बुरी तरह से भौतिकता में, विशेषतया स्त्रियों में आसक्त रहते हैं। वैष्णवों को उन लोगों की भी संगति से बचना चाहिए, जो कृष्ण-भक्त नहीं हैं।”
असत्सङ्ग अर्थात मायावी सङ्ग या ग्राम कथा कहने वालों के सङ्ग से दूर रहो। ऐसा वैष्णव का आचरण होता है। ऐसा ही वैष्णव का परिचय भी होता है। *असत्सङ्ग-त्याग,-एड़ वैष्णव-आचार।*
तब हमें किसका संग करना चाहिए ?
ग्राम कथा से दूर रहे और कृष्ण कथा या राम कथा के निकट जाए।
*काहार निकटे गेले पाप दूरे जाय। एमन दयाल प्रभु केबा कोथा पाय ? ।।*
(श्रीवैष्णव – विज्ञप्ति)
अनुवाद – किसकी शरण में जानेपर पाप दूर हों अर्थात् केवलमात्र आप ही ऐसे दयालु हैं । आप जैसा दयालु किसे और कहाँ मिलेगा ?
वैष्णव के संबंध में हमारे वैष्णव आचार्य लिखते हैं, एक असत्सङ्ग होता है, दूसरा सत्संग होता है, संतों का संग, भक्तों का सङ्ग, वैष्णवों का सङ्ग, गुरुजनों का संग यह अनिवार्य व अति आवश्यक है।
*साधु-सङ्ग’, ‘साधु-सड्ग-सर्व-शास्त्रे कय। लव-मात्र साधु-सड़गे सर्व-सिद्धि हय ॥*
( श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.54)
अनुवाद:- सारे शास्त्रों का निर्णय है कि शुद्ध भक्त के साथ क्षण-भर की संगति से ही मनुष्य सारी सफलता प्राप्त कर सकता है।”
हमें साधु संग करना चाहिए साधुओं का सङ्ग या साध्वी का सङ्ग अर्थात अगर स्त्री साधु है तो साध्वी का सङ्ग करना चाहिए।प्रभुपाद कई बार कह भी चुके हैं कि उन्होंने अंतरराष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना इसलिए की है ताकि लोगों को संग मिले, लोगों को सत्संग मिले। इस उद्देश्य से श्रीलप्रभुपाद ने संघ की स्थापना की।
इन शब्दों को भी सीखो, समझो। सङ्ग, व संघ, संघ अर्थात संगठन, इस्कॉन एक संघ है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, इसको भी संघ कहते हैं, लोग संगठित हो जाते हैं।
इस संघ में जो सङ्ग प्राप्त होता है, वही साधु संग है।
*काहार निकटे गेले पापे दुरे जाए*। इस प्रकार संतों की संगति करेंगे या ऐसे संतों के अधिक पास जाएंगे तब उससे ‘पापे दुरे जाए ‘ अर्थात पाप दूर हो जाएंगे अर्थात हमसें पाप के विचार दूर होने लगते हैं। भक्तों का सङ्ग करने से वे हमें छोड़ते हैं। हरि! हरि!
वैसे भक्त ही हमको भगवान का संग देते हैं अथवा भगवान का परिचय देते हैं, भगवान में रुचि बढ़ाते हैं। संतो या भक्तों से जब हम सुनते हैं तब
*नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम ‘साध्य” कभु नय। श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।*
( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.107
अनुवाद:- कृष्ण के प्रति शुद्ध प्रेम जीवों के हृदयों में नित्य स्थापित रहता है। यह ऐसी वस्तु नहीं है, जिसे किसी अन्य स्रोत से प्राप्त किया जाए। जब श्रवण तथा कीर्तन से हृदय शुद्ध हो जाता है, तब यह प्रेम स्वाभाविक रूप से जाग्रत हो उठता है।”
हम जो जीव हैं और भगवान से जो हमारा प्रेम है, वह प्रेम अभी आच्छादित है, वह श्रवण करने से उदित अथवा प्रकट होगा। उसका प्रदर्शन होगा। श्रवण करने से जीव की भगवान के साथ कुछ लेनदेन अर्थात कुछ लविंग डीलिंग होती है।
*श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय*
जब हम कृष्ण के संबंध में सुनेंगे या कृष्ण का नाम सुनेंगे, तब श्रीकृष्ण के गुणों की चर्चा होगी, उनकी लीला कथा होगी, उनकी धाम कथा होगी। हम उनके परिकरों के चरित्रों को सुनेंगे। उनके परिकर चरित्रवान हैं। कृष्ण का चरित्र है, राम का चरित्र है। यह सब सुनते सुनते हम जीवों में भी जो गुण हैं, वे प्रकट अथवा उदित होंगे। हम कृष्ण से अधिक अधिक आकृष्ट होंगे। हम कृष्ण से आकृष्ट होंगे और इसी के साथ हम माया से दूर जाएंगे अथवा हटेंगे। हरि! हरि!
*नित्य-सिद्ध कृष्ण-प्रेम ‘साध्य” कभु नय।श्रवणादि-शद्ध-चित्ते करये उदय ।*
( श्रीचैतन्य चरितामृत मध्य लीला 22.107)
हमें कृष्ण प्रेम प्राप्त होगा। उसी के साथ हम काम से मुक्त होंगे। जैसा कि हमने कहा कि संसार में दो ही बातें हैं अथवा दो ही व्यक्तित्व हैं। एक कृष्ण है, दूसरी है माया ।उसी प्रकार इस संसार में एक है प्रेम, दूसरा है काम, प्रेम और काम, लव एंड लस्ट। तीसरी चीज नहीं है लेकिन यह प्रेम कृष्ण प्रेम है। माया का काम मायावी चीज है।
भुक्ति कामी, मुक्ति कामी, सिद्धि कामी सब काम हुए अर्थात भुक्ति की कामना, मुक्ति की कामना, सिद्धि की कामना कामवासना हुई। कृष्ण भक्त निष्काम होते हैं।
कृष्ण भक्त निष्काम अतएव शांत
अतः कृष्ण भक्त निष्काम होते हैं। अतएव वे शांत भी होते हैं। हरि! हरि! धीरे धीरे वह गुणातीत हो जाते हैं अर्थात गुणों से परे पहुंच जाते हैं। हरि! हरि!
कल मैं श्रील प्रभुपाद को सुन रहा था। जब तक हममें राजसिकता है तब तक सतोगुण में कभी तमोगुण, कभी रजोगुण का मिश्रण होता रहता है। हम तमोगुण में शोक करते रहते हैं। तमोगुण हमें शोकाकुल बनाता है। जब सतोगुण के साथ रजोगुण मिल जाता है, तब हम कुछ आशा आकांक्षा बनाए रखते हैं। रजोगुण के कारण हमारी इच्छाएं, कामवासनाएं अधिक तीव्र हो जाती हैं। भगवत् गीता के तृतीय अध्याय के अंत में कृष्ण कहते ही हैं
श्री भगवानुवाच
*काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः |महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ||*
( श्रीमद् भगवत् गीता 3.37)
अनुवाद:- श्रीभगवान् ने कहा – हे अर्जुन! इसका कारण रजोगुण के सम्पर्क से उत्पन्न काम है, जो बाद में क्रोध का रूप धारण करता है और जो इस संसार का सर्वभक्षी पापी शत्रु है |
रजोगुण से काम और क्रोध उत्पन्न होता है। जब तक हमारे अंदर काम की प्रबलता है तब तक हम तमोगुण में शोक करते रहते हैं।
*ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काङ्क्षति | समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ||*
( श्रीमद् भगवत गीता 18.54)
अनुवाद:- इस प्रकार जो दिव्य पद पर स्थित है, वह तुरन्त परब्रह्म का अनुभव करता है और पूर्णतया प्रसन्न हो जाता है | वह न तो कभी शोक करता है, न किसी वस्तु की कामना करता है | वह प्रत्येक जीव पर समभाव रखता है | उस अवस्था में वह मेरी शुद्ध भक्ति को प्राप्त करता है |
भविष्य में वे कुछ प्राप्त करना चाहते हैं। मैंने इतना प्राप्त किया है औऱ इतना प्राप्त करूंगा। यह रजोगुण का खेल है। हमें यह समझना भी चाहिए कि तमोगुण क्या करता है अथवा हमारे साथ कैसे डील करता है। तमोगुणी क्या करते हैं? उनके क्या विचार होते हैं? अथवा उनके किस प्रकार के कार्यकलाप होते हैं। तमोगुण हमसे शोक कराता है। रजोगुण हम में प्रतियोगिता का भाव लाता है। जैसे उससे मैं अधिक कमाऊंगा। हरि! हरि! जब हम गुणातीत पहुंचेंगे, तब हमारे कार्य कलाप रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण से परे होंगे। सतोगुण में न शोचति न काङ्क्षति थोड़ा कम् होता है। व्यक्ति धीरे धीरे शांत होने लगता है। सतोगुण में शांति है।
‘स्वामी जी’, ‘शांति नहीं है” शांति नहीं है।’ ऐसा हमें सुनने को मिलता ही है। आप भी भक्त हो, साधु हो, संत हो या बनने का प्रयास हो रहा है। शायद आपको भी कभी-कभी थोड़ा शांत देखकर लोग आपसे कभी-कभी पूछते होंगे, हमारे जीवन में शांति नहीं है। इसका अर्थ है कि आप तमोगुणी हो इसीलिए शांत नहीं हो, आप रजोगुणी हो इसीलिए आप शांत नहीं हो। थोड़े सतोगुणी बन जाओ।
भागवतम् में वर्णन है कि
*त्वं नः सन्दर्शितो धात्रा दुस्तरं निस्तितीर्षताम् । कलिं सत्त्वहरं पुंसां कर्णधार इवार्णवम् ॥*
( श्रीमद् भागवतम् १.१.२२)
अनुवाद:- हम मानते हैं कि दैवी इच्छा ने हमें आपसे मिलाया है , जिससे मनुष्यों के सत्त्व का नाश करने वाले उस कलि रूप दुर्लंघ्य सागर को तरने की इच्छा रखने वाले हम सब आपको नौका के कप्तान के रूप में ग्रहण कर सकें ।
कलिं सत्त्वहरं पुंसां – पुंसां मतलब मनुष्यों का। यह कलयुग क्या बिगड़ता है सत्त्वहरं, यह कलयुग हमारे अंदर जो सात्विकता अथवा अच्छाई अथवा सदाचार है अर्थात सात्विकता है, सात्विक आहार या सात्विक विचार भी है इनको हर लेता है, चुरा लेता है यह कलिकाल इनको चुरा लेता है। हमें शांत होना है, तो सात्विक होना होगा किन्तु इस सतोगुण में कुछ मिश्रण होता ही रहता है। कभी रजोगुण का, कभी तमोगुण का। भगवत गीता में कृष्ण कहते हैं इन तीनों गुणों की आपस में कुछ प्रतियोगिता चलती रहती है। मराठी में कहते हैं अपना वर्चस्व अथवा अपना आधिपत्य जमाने का प्रयास हर गुण का होता है।
कभी कभी तमोगुण अन्य दो गुणों का दमन करता है। तब व्यक्ति के सारे विचार, कार्यकलाप तमोगुणी होते रहते हैं तो रजो गुण व सतोगुण का पराजय होता है। वे होते तो हैं लेकिन वे कुछ नहीं कर पाते। इसी प्रकार जब रजोगुण टेकओवर करता है अर्थात वह सर्वोपरि होता है और वह इन तीनों के ऊपर पहुंच जाता है। तब व्यक्ति राजसिक कृत्य करता है। सतोगुण में व्यक्ति सात्विकता को मेंटेन कर पाता है अर्थात जब वह रजोगुण, तमोगुण का दमन करता है तब व्यक्ति सात्विक कहलाता है।
जो ब्राह्मण होते हैं, वे सात्विक होते हैं। क्षत्रिय राजसिक होते हैं लेकिन उनमें थोड़ी सात्विकता भी होती है।
चारों वर्णों का विभाजन हो चुका है।
*चातुवर्ण्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः | तस्य कर्तारमपि मां विद्ध्यकर्तारमव्ययम् ||*
( श्रीमद् भगवत गीता 4.13)
अनुवाद:- प्रकृति के तीनों गुणों और उनसे संबंध कर्म के अनुसार मेरे द्वारा मानव समाज के चार विभाग रचे गये | यद्यपि मैं इस व्यवस्था का सृष्टा हूँ, किन्तु तुम यह जान लो कि मैं इतने पर भी अव्यय अकर्ता हूँ ।
चातुवर्ण्यं मया सृष्टं भगवान् कहते हैं कि चातुवर्ण्यं की सृष्टि मैंने की हुई है। इसको भी समझना चाहिए। कृष्ण ने की हुई है इतना तो समझ गए लेकिन कैसे अर्थात उन्होंने किस प्रकार चातुवर्ण्यं का विभाजन किया हुआ है? गुणकर्मविभागशः अर्थात उन्होंने व्यक्ति के गुण और कर्मों के अनुसार विभाजन बताया है। चातुवर्ण्यं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र यह वर्ण है और ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास आश्रम है। इस प्रकार भगवान ने वर्णाश्रम पद्धति बनाई हैं जिसे कभी-कभी वर्णाश्रम धर्म भी कहते हैं। गुणकर्मविभागशः अर्थात व्यक्ति के जन्म के अनुसार नहीं अपितु गुणकर्मविभागशः अर्थात रजोगुण, तमोगुण, सतोगुण अर्थात उसमें कौन से गुण की प्रधानता है। यदि उसमें सतोगुण की प्रधानता है तो वह ब्राह्मण है।
*कलौ शूद्रसम्भवः।*
( सकन्ध पुराण)
अनुवाद:- कलियुग में जन्मजात सभी शूद्र हैं।
पुनः भागवतम् में कहा है- कलौ शूद्रसम्भवः। कलौ मतलब कलयुग में, शूद्रसम्भवः- संभवा मतलब होना। कलयुग में कौन होंगे? कलयुग में अधिकतर शूद्र होंगे। अधिकतर संसार की आबादी शूद्रों की है। वैसे शूद्रों से भी अधिक निम्न जाति के लोग हैं जिनको यवन अथवा म्लेच्छ कहते हैं।
*किरात हूणान्ध्र – पुलिन्द पुल्कशा आभीर – शुम्भा यवनाः खसादयः । येऽन्ये च पापा यदपाश्रयाश्रयाः शुध्यन्ति तस्मै प्रभविष्णवे नमः ॥*
( श्रीमद् भगवतगीता 2.4.18)
अनुवाद:- किरात , हूण , आन्ध्र , पुलिन्द , पुल्कश , आभीर , शुम्भ , यवन , खस आदि जातियों के सदस्य तथा अन्य लोग , जो पाप कर्मों में लिप्त रहते हुए परम शक्तिशाली भगवान् के भक्तों की शरण ग्रहण करके शुद्ध हो सकते हैं , मैं उन भगवान् को सादर नमस्कार करता हूँ।
श्रीमद्भागवत में और भी सूची दी हुई है। वे लोग शूद्र भी नहीं है। शूद्र तो बहुत बड़ी पदवी हो गई। शूद्र भी वर्णाश्रम पद्धति के अंतर्गत है, शूद्र होना कोई खराब चीज नहीं है। शूद्र भी भगवान की सेवा करता है। यह शूद्र जो दूसरे वर्ण वासी हैं, उनकी सहायता करता है। शूद्र ब्राह्मणों की , क्षत्रियों, वैश्यों की मदद करता है। वह टीम का हिस्सा है, शूद्र उस वर्णाश्रम धर्म के अंतर्गत हैं, शूद्र भी ठीक हैं। जिस प्रकार पैर होते हैं, पैरों का कुछ उपयोग होता है। वह हमारे शरीर का अंग है, ऐसा नहीं है कि पैरों में कुछ चोट आई या कुछ हुआ तो हम उसका ख्याल नहीं रखते। हम उसको ठीक करते हैं या नहीं या उसको ख्याल करते हैं कि नहीं कि यह तो पैर है, मुझे इसकी परवाह नहीं? पैर में कुछ हुआ जैसे कांटा चुभ गया या चोट लग गई.. यह तो पैर है, कोई चिंता नहीं। नहीं। हम ऐसा नही करते, वैसे तुलना तो की हुई है। शूद्रों की तुलना पैर के साथ की हुई है, वैश्यों की तुलना पेट के साथ, क्षत्रियों की तुलना भुजाओं के साथ और ब्राह्मणों की तुलना सिर के साथ। लेकिन केवल सतोगुण ही बनना भी जीवन का लक्ष्य नहीं है। तमोगुणी तो नहीं ही रहना चाहिए, रजोगुण भी नहीं रहना चाहिए। अंततोगत्वा सतोगुण से भी ऊंचा उठना है और परे पहुंचना है क्योंकि माया त्रिगुणमयी है।
*दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||*
(श्रीमद् भगवतगीता 7.14)
अनुवाद:- प्रकृति के तीन गुणों वाली इस मेरी दैवी शक्ति को पार कर पाना कठिन है | किन्तु जो मेरे शरणागत हो जाते हैं, वे सरलता से इसे पार कर जाते हैं।
माया गुणमयी है। माया तमोगुणी है,रजोगुणी है, सतोगुणी है। सतगुण भी माया का एक भाग अथवा अंग अथवा गुण हैं। हमें इन तीन गुणों से परे पहुंचना है। ओम शांति शांति शांति
हम यह तीन बार क्यों कहते हैं? तमोगुण से मुक्ति, रजोगुण से मुक्ति, सतोगुण से भी मुक्ति, इसलिए हम ओम शांति शांति शांति कहते हैं। ऐसा व्यक्ति जिस गुण को प्राप्त करता है, वह शुद्ध सत्व को प्राप्त करता है। एक शुद्ध सत्व गुण भी है। एक सतोगुण, एक रजोगुण, एक तमोगुण है और इन तीन गुणों से परे एक और गुण है। वह गुणातीत है। शास्त्रों में उसका नाम शुद्ध सत्व दिया गया है। दूसरा तो सत्व है, वह शुद्ध नहीं है। वह अशुद्ध हो सकता है। वह तमोगुण, रजोगुण के मिश्रण से हो सकता है। लेकिन शुद्ध सत्व मतलब उसमें सतोगुण का भी गंध नहीं है, तमोगुण, रजोगुण तो है ही नहीं लेकिन शुद्ध सत्व में सतोगुण का भी गंध नहीं है। वही गुणातीत है, वही कृष्ण भावना की अवस्था है अर्थात कृष्ण भावना भावित होना। कृष्ण भगवत गीता में कहते हैं-
*दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया |मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ||*
(श्रीमद् भगवतगीता 7.14)
पहले तो कहा- दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया अर्थात जो माया है, एक तो त्रिगुणमयी माया है और इसका उल्लंघन करना कठिन है अर्थात इसका जो अधिपत्य अथवा नियंत्रण है, इससे बचना बहुत कठिन है। कृष्ण आगे कहते हैं मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते।
लेकिन जो मेरी शरण में आता है, ऐसा व्यक्ति माया से तर सकता है।
*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।*
नामाश्रय मतलब नाम का आश्रय लेना मतलब कृष्ण का ही आश्रय लेना जिससे हम माया से बच सकते हैं।
यदि हमनें कृष्ण का सङ्ग किया, नाम का उच्चारण किया तो फिर हमें माया छू नहीं सकती और हम माया से बच सकते हैं। यह सारा नाम कीर्तन प्रधान विधि अथवा उपाय है। उसी के साथ जुड़े हुए हैं।
नित्यम भागवत सेव्या।
*सदा सेव्या सदा सेव्या श्रीमद्भागवती कथा । यस्याः श्रवण मात्रेण हरिश्चित्तं समाश्रयेत ।।*
( श्रीमद्भागवत महात्म्य 3.25 )
अनुवाद – भागवत की कथा का सदा सर्वदा सेवन करना चाहिए , श्रवण करना चाहिए इसके श्रवण मात्र से भगवान श्रीहरि हृदय में आकर विराजमान हो जाते हैं ।
भक्तिरसामृत सिंधु में भक्ति के पांच प्रधान साधन दिए गए हैं। हम उसका अवलंबन करने से मायातीत अर्थात माया से परे पहुंच सकते हैं।
उनमें पहला है- श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण, विग्रह आराधन।
साधु सङ्ग नाम कीर्तन
(मैं क्रम से नहीं कह रहा हूं लेकिन ज़्यादा फर्क तो नहीं पड़ता है।)
चौथा है मथुरा वास या धाम वास
और पांचवा- विग्रह आराधना।
(आपने नोट किया? नोट नहीं किया या याद नहीं करोगे तो आप करोगे भी नहीं।
क्या करना है? यही पता नहीं चला तो क्या करोगे? इसीलिए याद रखना होगा, लिखना होगा या अन्यों से पूछना होगा की हम भूल गए हैं। भक्तिरसामृत सिंधु पुनः पढ़ना होगा किंतु जब हमारे पास श्रवण का अवसर है, तब हमें कम से कम उसको ध्यानपूर्वक सुनना और पढ़ना चाहिए। बाद में उसका मनन भी करना चाहिए। )
अतः इस प्रकार पांच महासाधन हैं। ये वे महासाधन हैं जिससे हम माया से तर सकते हैं, माया से बच सकते हैं। वे महा साधन हैं- साधु संग कहो, यहां से भी शुरुआत हो सकती है। साधु का सङ्ग होता है तत्पश्चात नाम कीर्तन, भागवत श्रवण, विग्रह आराधना और धाम वास होता है। मंदिर में जो रहने वाले जो हमारे भक्त हैं, वे तो भाग्यवान हैं। भगवान के साथ ही रहते हैं अथवा भगवत धाम में रहते हैं। हमारा नोएडा मंदिर जिसे गोविंद धाम भी कहते हैं। अलग-अलग मंदिरों के अलग-अलग नाम भी देते हैं। प्रभुपाद ने लॉस एंजेलिस के मंदिर को न्यू द्वारिका नाम दिया । सैन फ्रांसिस्को के मंदिर को न्यू जगन्नाथ पुरी दिया। इसी प्रकार अलग अलग मंदिरों को न्यू मायापुर, न्यू गोकुलधाम, न्यू वृंदावन नाम दिए। ऐसे धामों में विश्व भर से हमारे फुल टाइम भक्त रहते हैं किंतु जो मंदिर में नहीं रहते , वे अपने घर का मंदिर बना सकते हैं। घर का मंदिर बनाओ। ऐसे घर में रहो तब आपका धाम वास हो रहा है। आप धाम में रह रहे हो। यहां विग्रह है, ठाकुर है, तब ठाकुर बाड़ी हो गई। तत्पश्चात उन को केंद्र में रखते हुए आपकी सारी लाइफस्टाइल अथवा दिनचर्या होनी चाहिए। भगवान को जगाना भी है –
उठी उठी गोपाला…..
जैसे कि यशोदा जगाती है वैसे आप भी अपने लाला को या जो भी आपके इष्टदेव हैं -गौर निताई हो सकते हैं, जगन्नाथ हो सकते हैं। उनको उठाओ। कोई उदयपुर से दर्शन करवा भी रहा है- राधा-कृष्ण भी हैं, गौर निताई भी हैं लेकिन दुर्गा का ग्रह कोई विशेष धाम तो नहीं हुआ। वैसे हम दैवी धाम में तो रहते ही हैं। सारे ब्रह्मांड को ही दैवी धाम कहा है लेकिन हमें इस धाम से परे जाना है।
इस संसार के जो देवता हैं उनका मंदिर बनाया तो कोई धाम तो नहीं हुआ। हरि! हरि! धाम तो इस संसार से परे है।
*परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः | यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति ||*
(श्रीमद् भगवतगीता 8.20)
अनुवाद: इसके अतिरिक्त एक अन्य अव्यय प्रकृति है, जो शाश्र्वत है और इस व्यक्त तथा अव्यक्त पदार्थ से परे है | यह परा (श्रेष्ठ) और कभी न नाश होने वाली है | जब इस संसार का सब कुछ लय हो जाता है, तब भी उसका नाश नहीं होता।
जहां कृष्ण रहते हैं, जहां राम रहते हैं, वह धाम बन जाता है और वहां के धामी होते है। धाम के होते हैं धामी। हरि! हरि! जिनकी हम आराधना करेंगे, हम उनके धाम जाएंगे । ऐसा कृष्ण ने कहा है, आप इसको भी समझ जाओ।
*यान्ति देवव्रता देवान्पितॄन्यान्ति पितृव्रताः| भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम् ||*
(श्रीमद् भगवत गीता 9.25)
अनुवाद:- जो देवताओं की पूजा करते हैं, वे देवताओं के बीच जन्म लेंगे, जो पितरों को पूजते हैं, वे पितरों के पास जाते हैं, जो भूत-प्रेतों की उपासना करते हैं, वे उन्हीं के बीच जन्म लेते हैं और जो मेरी पूजा करते हैं वे मेरे साथ निवास करते हैं |
देवी देवता की पूजा करनी है तो करते रहो। कौन रोकता है आपको लेकिन यह समझ जाओ कि आप इस संसार से माया के चंगुल से मुक्त होने वाले नहीं हो। देवी देवता के पुजारी देव लोक जाएंगे मतलब स्वर्ग जाएंगे। बस वहीं तक पहुंच है।
*पितॄन्यान्ति पितृव्रताः*
जो पितरों की पूजा करते हैं, वह पितृ लोक जाएंगे, वे भी इसी लोक में ही हैं अर्थात वे भी ऐसी ब्रह्मांड में ही हैं और भूतानि यान्ति भूतेज्या अर्थात भूतों की पूजा करने वाले मंत्र यंत्र तंत्र करने वाले भी तो कुछ कम नहीं है, वे वहां उपासना करेंगे। यह भी समझाया है कि देवी देवता की पूजा सत्व गुण में होती है और पितरों की पूजा रजोगुण ही करते हैं। भूत पिशाच की आराधना तमोगुणी करते हैं। लेकिन जो गुणातीत होते हैं वह इन तीन गुणों से परे होते हैं। यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्। जो मेरी आराधना करते हैं,वह मेरे धाम आएँगे
यह भगवत गीता का वचन है। श्री भगवान उवाच चल रहा है। कृष्ण समझा रहे हैं कि जो मेरी आराधना करते हैं, वह मेरे धाम आएंगे। जो अन्य देवता की करते हैं वे उनके धाम जाएंगे, ब्रह्मलोक जाओ, गणेश लोक जाओ, इस लोक में जाओ या उस लोक में जाओ। आप पर है, क्या यह स्पष्ट है? मैं सोचता हूं कि अब मुझे यहीं पर विराम देना होगा।
हरे कृष्ण!!!
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जप चर्चा
वृंदावन धाम
2 सितंबर 2021
हरे कृष्ण !
778 स्थानों से भक्त जप कर रहे हैं ।
गौर प्रेमानंदे हरि हरि बोल !
श्रील प्रभुपाद की जय !
ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
नमः ॐ विष्णु पादय , कृष्ण पृष्ठाय भूतले ,
श्रीमते भक्ति वेदांत स्वामिन इति नामिने
नमस्ते सरस्वते देवे गौर वाणी प्रचारिणे ,
निर्विशेष शून्य – वादी पाश्चात्य देश तारिणे ॥
श्री कृष्ण चैतन्य प्रभु नित्यानंद ।
श्री अद्वैत गदाधर श्रीवास आदि गौर भक्त वृंद ॥
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
वृंदावन धाम की जय !
श्रील प्रभुपाद की जय !
तो वैष्णव तिथि के अनुसार हम श्रील प्रभुपाद का आविर्भाव जन्म उत्सव परशो बनाए जो नंदों उत्सव भी था आप जानते हो या कई बार हम कहे होंगे या पढ़े होंगे । नंदों उत्सव के दिन श्रील प्रभुपाद जन्मे । कल भी उत्सव मनाया गया । भारत के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी उन्होंने या उसको उससे भी कह सकते हैं जो भी हो तो वैष्णव तिथि के अनुसार श्रील प्रभुपाद नंदों उत्सव के दिन जन्मे थे और यह जो ख्रिष्टाब्द है इंग्लिश कैलेंडर के अनुसार 1 सितंबर , जो कल था । 1 सितंबर को श्रील प्रभुपाद जन्मे तो कल भी उत्सव मनाया गया । वैसे आपको पूर्व सूचना मिली ही थी या मैंने भी शायद यह घोषणा की थी । कोलकाता में पहुंच गई ममता बनर्जी, वेस्ट बेंगल की मुख्यमंत्री कहां पर पहुंची ? तालीगंज, कटहल तल्ला, कटहल की पेड जहां श्रील प्रभुपाद जन्मे थे तो उस स्थान का उद्घाटन कहो या क्योंकि अभी अभी नया स्थान ही लिया है और इस्कॉन ने वहां मेमोरियल का निर्माण हो रहा है तो जन्मोत्सव भी 125 वा जन्म उत्सव और फिर उस स्थान का भी उद्घाटन को हो जहां श्रील प्रभुपाद जन्मे थे तो वह हुआ पहले कोलकाता में मुख्यमंत्री के कर कमलों द्वारा और फिर उसके बाद बारी आई प्रधानमंत्री की ओर, आपने उनको सुना देखा कल ? ( कुछ भक्त हां कर रहे हैं ) कुछ तो मुंडी हिला रहे हैं, कुछ हाथ दिखा रहे हैं । आपका हाथ प्रभुपाद के साथ । ठीक है बहुत हाथ उठ रहे हैं ! तो फिर आपको अलग से कुछ आपको बताने की आवश्यकता नहीं है । उन्होंने एक ₹125 रुपए का चांदी का सिक्का , एक स्मरणीय रुपए, स्मारक सिक्का का भी उसको भी प्रकाशन किया, दर्शाया सबको और उसी के साथ वैसे भारत में श्रील प्रभुपाद का सम्मान किया है । वैसे दो व्यक्ति भारत रत्न रहे तो श्रील प्रभुपाद भारत के रत्न रहे तो श्रील प्रभुपाद को भारत रत्न पदवी देनी चाहिए जो रत्न नहीं है जो कोयला ही है उनको भारत रत्न की पदवी दिया यह भारत देता रहता है । लेकिन श्रील प्रभुपाद सचमुच सही मायने में भारत रत्न रहे । भारत को समझे वे’ भारत । हरि हरि !! तो वह स्मारक सिक्का के प्रकाशन के उपरांत प्रधानमंत्री या श्रील प्रभुपाद को गौरवान्वित करते हुए कई सारी बातें कहे । भारत के प्रधानमंत्री जैसे या श्रील प्रभुपाद जैसे महात्मा वह दूसरी बात है । महात्मा गांधी तो, वे तो राजनीतिज्ञ में महात्मा ऐसा कहते हैं और महात्मा तो, यह अंग्रेज उनको महात्मा कहते थे या अंग्रेजों ने उनको ऐसी पदवी दी । राजनेताओं के मध्य में वे थे महात्मा किंतु श्रील प्रभुपाद महात्मा यह मोदी जी तो नहीं कह रहे थे मैं कह रहा हूं । श्रील प्रभुपाद एक संत थे या सही मायने में …
महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः ।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम् ॥
( भगवद् गीता 9.13 )
अनुवाद:- हे पार्थ! मोहमुक्त महात्माजन दैवी प्रकृति के संरक्षण में रहते हैं । वे पूर्णतः भक्ति में निमग्न रहते हैं क्योंकि वे मुझे आदि तथा अविनाशी भगवान् के रूप में जानते हैं l
कृष्ण के अनुसार वह व्यक्ति महात्मा है जिन्होंने देवी प्रकृति का, राधा रानी का आश्रय लिया हुआ है तो श्रील प्रभुपाद आचार्य रहे महात्मा रहे तो ऐसे महात्मा का यह गौरव का था प्रधानमंत्री गा रहे थे और जो कुछ कह रहे थे लग रहा था कि वे प्रभुपाद को भली-भांति जानती भी थे । झलक रहा था कि उन्होंने प्रभुपाद लीलामृत पढा हुआ है, सुना हुआ है । पता नहीं आप में से कितने उतना जानते हो श्रील प्रभुपाद को जितना मोदी जी जान चुके हैं या श्रील प्रभुपाद के सारे बलिदान प्रभुपाद विदेश जाते समय दो दो दिल के दौरे और प्रभुपाद वहां पहुंचे तो प्रभुपाद के ना तो रहने की व्यवस्था थी ना तो उनके पास धन था यह सब कह रहे थे नरेंद्र मोदी जी और साथ में गीता भागवत लेके गए और हमारे संस्कृति का विचार हमारे धर्म का प्रचार सर्वत्र किए । कई बार वे ‘हरे कृष्ण-हरे कृष्ण’ कह रहे थे । हरि ! या श्रील प्रभुपाद स्वतंत्रता सेनानी भी रहे ऐसा वैसे श्रील प्रभुपाद एक समय महात्मा गांधी के अनुयाई जरूर बन रहे थे । श्रील प्रभुपाद खादी वस्त्र पहनना शुरू किए थे । सुभाष चंद्र बोस के कई मीटिंग्स में श्रील प्रभुपाद सम्मिलित हुआ करते थे । इस प्रकार बन रहे थे श्री प्रभुपाद वैसे स्वतंत्रता सेनानी । वही बातें उन्होंने कही । हरि हरि !! श्रील प्रभुपाद ..
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ॥
अनुवाद:- सब सुखी हों, सब स्वस्थ हों , सब का कल्याण हों , सब शुभ को पहचान सके , कोई प्राणी दुःखी ना हो ।
भी कहे । इस संसार के सुख के लिए संसार को सुखी बनाने के लिए प्रभुपाद ने यह सारे कार्य किए । श्रील प्रभुपाद का आंदोलन इस्कॉन-इस्कॉन वह कहते रहे और इस्कॉन की काफी सराहना किए । इस्कॉन की कार्यों की इस्कॉन की फूड फॉर लाइफ की और इस्कॉन के अनुयायियों को विश्व भर अनुयायियों को संबोधित कर रहे थे क्योंकि उस फंक्शन में केवल भारतीय आप लोग ही नहीं थे और आप लोग उनमें से केवल भारतीय नहीं हो इस वक्त और देशों के भक्त भी जैसे अब उपस्थित है तो कल भी जब नरेंद्र मोदी संबोधित कर रहे थे तो विश्व के कई देशों के भक्त भी भक्तों को वे देख रहे थे स्क्रीन में और उनका भी स्वागत सराहना कर रहे थे और उनको मोदी जी अंबासेटर कह रहे थे, आप राजदूत हो ।
भारत की जो मूल्य है प्राचीन भारत की मूल्य उस पर आप आचरण कर रहे हो उसका आप प्रचार कर रहे हो । वह समझ चुके हैं कि हम लोग भक्ति योगी है तो भक्ति योग का महीना भी भगवद् गीता के द्वादश 12 वीं अध्याय से कई सारे या भक्ति योग की महिमा यह भी वे कहेके गए जब भारत गुलाम रहा पहले मुसलमानों की गुलामी और फिर अंग्रेज आ गए और अत्याचार हुए यह हुआ वह हुआ काफी संघर्ष रहे और काफी विनाश करने को उनका प्रयास रहा भारत का विनाश और भारतीय तत्वका मूल्यों का ऐसा बता रहे थे किंतु भारत को ज्यादा कुछ वो बिगाड़ नहीं पाए ऐसा कह रहे थे और इसका कारण यह रहा कि इस देश की जो भक्ति है भगवान की भक्ति योग, भक्ति जोगियों ने भागवद् धर्म के मता अबीलंबीयो ने वे तोड़ चिपके रहे डेट के रहे अपने मूल्यों के साथ इसके लिए भारत प्रसिद्ध है भारत । भारत का जो खासियत है, भारत विश्व गुरु है या भारत “वसुधैव कुटुम्बकम्” यह सारे पृथ्वी पर कितने लोग हैं वह हमारे परिवार के हैं हम एक हैं यह जो विचार है यहां तक की हिंदी चीनी भाई भाई है यह जो विचार है और भगवान में आस्था और गीता भागवद् में श्रद्धा और उस पर अमल भारतीय करते रहे ऐसे यह जो अतिक्रमण , रिलीजियस और अत्याचार यह गुलामी को हो यह सब भारत पर 1000 वर्षों तक बनी रहे ।
1000 साल से लेकर 2000 तक रामानुजाचार्य जब थे तो उसी समय प्रारंभ हुआ यह मुसलमानों ने भारतीय आक्रमण अत्याचार और न जाने क्या क्या उन्होंने किया और यह चलता रहा श्रील प्रभुपाद के समय तक तो रामानुजाचार्य से उस समय से प्रारंभ हुआ और श्रील प्रभुपाद लगभग 1000 वर्षों के उपरांत रामानुज के बाद श्रील प्रभुपाद रहे तो भारत की वैसे खासियत है । एवर चेंजिंग एंड नेवर चेंजिंग मैंने पहले भी कहा है इस पर जाने भारत कभी चेंज नहीं हो सकता तो चेंज करने की प्रयास तो किया विदेशियों ने या अंग्रेजों ने, पहले मुसलमानों ने किंतु या तो मोदी जी बता रहे थे कि उन बातों ने भारत पर ज्यादा या कुछ तो बिगाड़ दीया ही किंतु भारतीय चिपके रहे भारत के मंदिरों के साथ ।
भक्ति योग का नाम ले रहे थे भक्ति योग के साथ और फिर उसी भक्ति की जो उपासना मराठी में कहते हैं । यह हरे हरे कृष्ण आंदोलन कर रहा है और इसी भक्ति योग का वही बता तो रहे थे वे या भारत सरकार योग आसन वगैरा का भी प्रचार कर रहा है वे अच्छा है स्वागत करते हैं किंतु योग तो पूरा नहीं है । होना तो चाहिए था अष्टांग योग जिसका परिणाम स्वरूप या फलीभूत तो समाधि है या समाधि तक पहुंच होनी चाहिए । ठीक है हरे कृष्ण ! मैं आपसे भी सुनना चाहता हूं प्रभुपाद या मोदी जी तो बहुत कुछ कहे और मैंने नहीं सोचा था कि इतना समय बिताएंगे मुझे लगा कि कुछ कुछ ही मिनटों में कुछ प्रकाशन किया कुछ उद्घाटन हुआ उस सिक्का का और फिर दो शब्द बोलेंगे लेकिन वो तो 200 का 2000 शब्द बोलते रहे तो और जो भी कहा वैसे सत्य ही कह रहे थे और श्रील प्रभुपाद और श्रील प्रभुपाद का आंदोलन । प्रभुपाद और इस्कॉन दोनों की गौरव गाथा वे गा रहे थे तो हम इस्कॉन की ओर से उनके आभारी हैं और उनके कहे वचनों से हम इस्कॉन के सभी सदस्यों श्रील प्रभुपादनुगा जो है हम प्रोत्साहित हुए हैं ।
प्रेरित हुए हैं, सशक्त हुए हैं तो धन्यवाद-धन्यवाद-धन्यवाद मोदी जी । हरि हरि !! तो श्रील प्रभुपाद वैसे सभी भारतीयों को प्रोत्साहित करते रहे इस हरे कृष्णा आंदोलन को ज्वाइन करने के लिए अपने जीवन में । लेकिन ज्यादा कुछ प्रतिक्रियाएं नहीं मिला उन दिनों में प्रभुपाद के जमाने में लेकिन प्रभुपाद की ओर से हम निवेदन कर ही रहे हैं भारतीयों को या कृपा करके आगे आइए इस आंदोलन का अंग बनीए । एक बहुत बड़ी अच्छी बात कही मोदी जी ने कल जो प्रभुपाद भी कहा करते थे मैं सोच रहा हूं कि मोदी जी ने पकड़ लिया उस बात को, पकड लिया प्रभुपाद के बात को या वैसा उनके विचार आए । वह कह रहे थे कि अकेले प्रभुपाद जैसे हम जानते हैं इतना सारा किया भारतीय संस्कृति का कहो । इतना सारा प्रचार किया विश्व भर में तो अगर हम सब मिलके यह प्रचार करेंगे भारतीयता का कहो, कृष्ण भावनामृत में जो भारतीयता है इसमें काफी मेल है ‘भारत’ तो वो कह रहे थे और परोक्ष रूप से आप हम सबको प्रेरित कर रहे थे कि आप भी ज्वाइन करो इस प्रयास को । प्रयास में भी योगदान अनिवार्य है तो ठीक है ।
॥ हरे कृष्ण ॥
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*जप चर्चा*
*वृंदावन धाम से*
*01 सितंबर 2021*
हरे कृष्ण
664 स्थानों से भक्त आज जप में सम्मिलित हैं हरि बोल! श्रील प्रभुपाद की जय! आपका स्वागत है। यंहा कम से कम जो उपस्थित हैं उनका तो स्वागत हो ही रहा है, जो हमारे रेगुलर अटेंड करने वाले हैं उनका स्वागत करेंगे या पुनः जो ज्वाइन करना शुरू करेंगे या ढीले पड़ गए हैं या थक गए, जन्माष्टमी महोत्सव या श्रील प्रभुपाद व्यास महोत्सव की कई सारी गतिविधियों के कार्यक्रम में, या हो सकता है जिन्होंने फिजिकली या पर्सनली अटेंड नहीं किया हरि हरि! प्रल्हाद महाराज तो हैं। आप सभी का स्वागत है जप करते रहो। राधा रानी को आप देख सकते हो दर्शन कर सकते हो वृंदावन की राधा रानी की जय! राधा रानी की जय! राधा रानी के हार की , उस माला की भी जय, जो राधा रानी ने पहना हुआ था। उसी हार का हमें संग (स्पर्श) प्राप्त हो रहा है हरि हरि ! कृपा है राधा रानी की, और ऐसी कृपा आप सब पर बनी रहे। राधा की, श्रील प्रभुपाद की हरि हरि! श्रील प्रभुपाद के घर पर या उनके पिता श्री गौर मोहन डे घर पर कई सारे साधु लेकर पहुंच जाते और उनका स्वागत किया करते, उन्हें कई सारे भोजन खिलाते और फिर अंत में कहते कि मेरे पुत्र को आशीर्वाद दो। अभय शरण को आशीर्वाद दो ताकि यह राधा रानी का भक्त बने। अंततोगत्वा श्रील प्रभुपाद राधा रानी के भक्त बन ही गए। श्रील प्रभुपाद “वृंदावन इज माय होम” कहा करते थे। वृंदावन इज आल्सो राधा रानी होम, राधा श्याम सुंदर का भी होम है। उसी होम को प्रभुपाद ने अपना घर बनाया अपना होम बनाया। जय श्री राधे! कल हमने और आप सभी ने भी जरूर मनाया होगा श्रील प्रभुपाद का 125 वां जन्म तिथि महोत्सव, हमने भी मनाया है। वृंदावन में शायद आपने देखा या सुना भी होगा, कई सारे सीनियर डिवोटीस श्रील प्रभुपाद के उपस्थित थे। इंद्रद्युम्न स्वामी महाराज, दीनबंधु प्रभु, दैवी शक्ति माताजी, महा देवी माताजी, दधि भक्त प्रभु, आप जानते होंगे शायद, नेपाल में उनकी दीक्षा श्रील प्रभुपाद द्वारा हुई। श्रील प्रभुपाद ने उनको पुजारी बनाया। निरंजन प्रभु, ऑन एंड ऑन लिस्ट, राधारमण महाराज, जैसे यह सभी भक्त श्रील प्रभुपाद के शिष्य इन्होंने अपनी अपनी श्रद्धांजलि श्रील प्रभुपाद के चरणों में अर्पित की हरि हरि ! कई सारी स्मृतियां उनकी याद दिलाई। श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा पर उनका प्रवचन भी सुनाया, जो प्रवचन श्रील प्रभुपाद ने लंदन में दिया था और वह दिन भी श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा का ही दिन था। उस दिन का प्रवचन भी हमने सुना, अर्थात व्यास पूजा इज नॉट ए मैन वरशिप, किसी व्यक्ति की पूजा या प्रतिष्ठा हो रही है ऐसी बात नहीं है। यह मनुष्य पूजा नहीं है यह व्यास पूजा है। गुरु राधा मति एक विशेष मति होती है। श्रील प्रभुपाद ने उन्हीं को एड्रेस किया होंगा। कुछ लोग गुरु को नरमति मतलब साधारण व्यक्ति कहते हैं, जस्ट ऑर्डिनरी ह्यूमन बीइंग और भी कई सारे जैसे अन्य मनुष्य हैं तो गुरु इज वन मोर, गुरु भी उनमें से ही एक मनुष्य है। ऐसी मति, ऐसा विचार यह कु विचार है। शास्त्रों में कहा है ‘मति सा गति’ के सिद्धांत के अनुसार, यदि ऐसी मति है गुरु साधारण व्यक्ति है ऐसा कोई समझता है या मानता है ऐसी मति है तो उसकी कैसी गति है ? वह नरकीय है, नर्क में पहुंचाने वाले विचार हैं। इसके विषय में श्रील प्रभुपाद लिख रहे थे यह मैन वरशिप नहीं है ऐसा शास्त्र कहते हैं।
*यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ ।तस्यैते कथिता ह्यार्था: प्रकाशन्ते महात्मनः ॥* (श्वेताश्वतर उपनिषद् ६.२३)
अनुवाद – जिन महात्माओं के हृदय में श्रीभगवान् में और श्रीभगवान् की तरह गुरु में भी उतनी ही दिव्य श्रद्धा होती है , उनमें वैदिक ज्ञान का सम्पूर्ण तात्पर्य स्वतः प्रकाशित हो जाता है ।
मैं भी जब श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा था तब मैंने भी कहा था *यस्य देवे पराभक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ* जैसे हम देव की, भगवान की, कृष्ण की आराधना करते हैं यथा देवें तथा गुरौ जैसे भगवान की आराधना होती है वैसे गुरु की, आचार्यों की, आराधना होनी चाहिए। अचार्योपासना यह भी कहा था मैंने, कल की बात है। गीता में भगवान ने अचार्योपासना कहा है। तो केवल भगवान की उपासना ही नहीं भगवान के भक्तों की उपासना, गुरुजनों की, आचार्यों की उपासना अनिवार्य है, उसकी विधि है क्योंकि भगवान ने कहा है। एनीवे कल मैंने भी कहा था कि जो लोग कहते हैं कि वह भगवान के भक्त हैं। भगवान ने कहा नहीं नहीं आप तो मेरे भक्त नहीं हो, लेकिन फिर कोई व्यक्ति कहता है प्रभु मै आपके भक्तों का भक्त हूं , फिर भगवान कहेंगे हां ! हां ! फिर तुम मेरे भक्त हो। फिर हमने यह भी ऑब्जर्वेशन शेयर किया कि कल और परसों के दिन जब हम श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे थे, तब अत्यंत भीड़ थी। अन्य व्यक्ति मथुरा और वृंदावन के सभी क्लेम कर रहे थे कि हम कृष्ण भक्त हैं यदि ऐसी बात है स्वागत है लेकिन फिर कल जब श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा मनाई जा रही थी तब लोग थोड़े कुछ कम थे, लेकिन जो थे भगवान उनको स्वीकार कर रहे थे हां ! हां ! फिर तुम मेरे भक्त हो कल आए थे मेरी जन्माष्टमी में मेरा उत्सव तुमने मनाया लेकिन जब मेरे सेनापति भक्त मेरे आचार्य, श्रील प्रभुपाद की जय! श्रील प्रभुपाद कि जब आराधना और व्यास पूजा हो रही है तब तुम नहीं हो। परसों के लोग तो….., लेकिन जो कल उपस्थित थे श्रील प्रभुपाद व्यास पूजा में, श्रीभगवान ने कहा हां ! हां ! यह लोग मेरे भक्त हैं क्योंकि यह लोग मेरे भक्तों के भक्त हैं। समझ में आ रहा है ? कुछ पल्ले पड़ रहा है ? यह सिद्धांत है यह हमारा मनो धर्म नहीं है यह भागवत धर्म का सिद्धांत हम कह रहे हैं। यह वेद वाणी है, हरि हरि ! कल हमने मलेशियन डिवोटीस को एड्रेस किया, वह सुनना चाहते थे श्रील प्रभुपाद की कुछ बातें या यादें , वह कीर्तन भी सुनना चाहते थे। तब हमने एक प्रोग्राम मलेशियन डिवोटीस के लिए भी किया। उस समय हम याद कर रहे थे और उनको भी याद दिलाया, श्रील प्रभुपाद ने मलेशिया की विजिट को जब किया था 1971 के मई महीने में, मतलब हो गई 50 ईयर एनिवर्सरी और अब चल रहा है 2021 हमने उनको यह भी स्मरण दिलाया कि मेरी जो श्रील प्रभुपाद के साथ फर्स्ट एवर मीटिंग हुई उसका स्मरण कहो या दर्शन कहो, श्रील प्रभुपाद की वाणी को हमने सुना क्रॉस मैदान हरे कृष्णा फेस्टिवल मुंबई, अप्रैल महीने में, यह मेरे लिए भी 50 ईयर एनिवर्सरी है। कौन सी? 50th एनिवर्सरी मैंने जो सर्वप्रथम श्रील प्रभुपाद का दर्शन किया उसकी यह 50th एनिवर्सरी है अर्थात यह हो गया दो एनिवर्सरी, एक प्रभुपाद की मलेशिया की एनिवर्सरी, 50th एनिवर्सरी और मेरी, मैंने प्रभुपाद के साथ, जो दर्शन किया या श्रवण किया और हरे कृष्ण फेस्टिवल ज्वाइन किया और हरे कृष्ण भक्तों के संपर्क में मैं प्रथम बार आया, तो उसकी भी 50th एनिवर्सरी है, और भी बहुत कुछ हुआ, जो विग्रह हरे कृष्ण फेस्टिवल या उत्सव में कहो, राधा कृष्ण के विग्रह जिनका मैंने दर्शन किया श्रील प्रभुपाद वही लेकर ऑस्ट्रेलिया जा रहे थे और जिन विग्रह का मैंने दर्शन किया था इस फेस्टिवल में, मंच पर उन् विग्रह को लेकर श्रील प्रभुपाद ट्रैवलिंग कर रहे थे। इन विग्रह को लेकर श्रील प्रभुपाद मलेशिया भी गए और वहां पर संभावना है कि उस विग्रह ने मलेशियन लोगों को दर्शन दिए होंगे और वहां जाने का एक उद्देश्य भी था कि श्रील प्रभुपाद के कुछ ब्रह्मचारी नए शिष्य जो नए इनीशिएटिड थे जो मलेशिया जाकर प्रचार कर रहे थे, उन्हें कोई लैंड डोनेट करना चाह रहा था, इन भक्तों ने प्रभुपाद को संपर्क करके लैंड डोनेट करने की बात बताई। श्रील प्रभुपाद स्वयं वहां जाकर लैंड को स्वीकार करना चाहते थे। यह सब, वन मोर टेंपल, क्योंकि और भी कई सारी बातें है । श्रील प्रभुपाद का जन्म हुआ 125 वर्ष पूर्व अर्थात कल ही जन्मे और वह दिन था नंदोत्सव का और श्रील प्रभुपाद का जन्म हुआ कोलकाता के टॉलीगंज में, फिर अब एक दूसरे कार्यक्रम का भी मुझे स्मरण हो रहा है जो मैंने अटेंड किया। मलेशिया प्रोग्राम का तो पूरा मैंने नहीं सुनाया। इतने में कोलकाता में जो प्रोग्राम हुआ था और मैंने वहां के भक्तों को (कोलकाता के भक्तों) को एड्रेस किया। वे उस स्थान पर एकत्रित हुए थे जिस स्थान पर टॉलीगंज कटहल तला है, उस स्थान का नाम हम कम से कम 50 सालों से सुन रहे थे कि श्रील प्रभुपाद का जन्म कटहल तला टालीगंज में एक कटहल के वृक्ष के नीचे एक मकान में जन्म हुआ था। उस स्थान को इस्कॉन ने एक्वायर किया हुआ है और पिछले कुछ महीनों में पहली बार यह घटना घटी है। उस स्थान पर श्रील प्रभुपाद की व्यास पूजा संपन्न हुई। 125 वर्ष पूर्व श्रील प्रभुपाद जिस स्थान पर जन्मे थे अर्थात जन्मभूमि, वहां पर फंक्शन हो रहा था और हमने उस कटहल के वृक्ष को भी देखा, उन्होंने हमें दिखाया और उस कटहल के वृक्ष के नीचे ही श्रील प्रभुपाद के विग्रह की स्थापना टेंपरेरिली की हुई थी। वहीं फंक्शन हो रहा था जहां श्रील प्रभुपाद जन्मे थे। वह है श्रील प्रभुपाद की जन्मभूमि, श्रील प्रभुपाद की कर्मभूमि कई हैं, जहां-जहां इस्कॉन है अराउंड द वर्ल्ड , वह सब कर्म भूमियां हैं। कर्म भूमि अनेक हो सकती हैं, किंतु जन्मभूमि एक ही होती है। अनेक कर्मभूमि अराउंड द वर्ल्ड, प्रभुपाद की व्यास पूजा मनाई जा रही थी और उन सब के मध्य में एक व्यास पूजा जन्म भूमि पर मनाई जा रही थी जहां प्रभुपाद का जन्म हुआ था। पहली बार उस स्थान पर कटहल तला में यह मनाई गई। प्रभुपाद की व्यास पूजा और उस स्थान का उद्घाटन वैसे आज होने वाला है या आज उस स्थान का लोकार्पण होगा, वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी वहां पर पहुंचने वाली है और उनके कर कमलों से उस स्थान का लोकार्पण होगा हरि बोल ! बिग न्यूज़ ! और वैसे यह 125 वी साल की व्यास पूजा हम लोगों ने मनाई , किंतु इस वर्ष यह1 दिन का मामला नहीं है एक दिन यह उत्सव नहीं मनाया जाएगा यह पूरे साल भर के लिए 125th बर्थडे सेलिब्रेशन या बर्थ ईयर सेलिब्रेशन, यह पूरे साल के लिए उत्सव मनाया जायेगा और उस उत्सव के उद्घाटन में हमारे प्रधानमंत्री श्रीमान मोदी जी आज इसका इनॉग्रेशन करने वाले हैं अतः आप उपस्थित रहिए। मतलब कंफर्म कीजिए आज 4:30 बजे गवर्नमेंट ने 1 सिल्वर कॉइन श्रील प्रभुपाद सम्मान में लांच किया जायेगा। 1996 में एक स्टेप भी लांच किया था इंडिया गवर्नमेंट ने और इस साल 1 सिल्वर कॉइन चाँदी का सिक्का, उसको भी प्रधानमंत्री रिलीज करेंगे और डिक्लेअर करेंगे कि यह प्रभुपाद की 125 व्यास पूजा के उपलक्ष में है, जो पूरे साल मनाया जाएगा। मैंने सोचा आप थोड़ा पता लगाइए, आप अटेंड करो, हमारे यहां कृष्णभक्त हैं या पदमाली, आप जब अनाउंसमेंट होगी तब क्लियर करो कंफर्म करो , कैसे ज्वाइन करना है ? लॉगइन डीटेल्स वगैरह सभी को दे सकते हो। हरि हरि ! हाँ तो मलेशिया की बातें चल रही थी, श्रील प्रभुपाद 50 वर्ष पूर्व मई महीने में मलेशिया गए और वहां कुआलालंपुर के टाउन हॉल में एक बड़ी भीड़ बिग गेदरिंग को संबोधित किया। श्रील प्रभुपाद यह भी कह रहे थे , इस सारे संसार को यहां लोग यूनाइट हो सकते हैं अंडर द बैनर ऑफ कृष्ण कॉन्शियस, चैतन्य महाप्रभु की जय ! चैतन्य महाप्रभु के बैनर या छत्रछाया में हम सब इकट्ठे हो सकते हैं। यूनिटी संभव है, ऐसा प्रभुपाद ने कहा था यू एन ओ भी है। यूनाइटेड नेशंस ऑफ़ ऑर्गेनाइजेशंन का हेड क्वार्टर न्यूयॉर्क में है। वहां श्रील प्रभुपाद उसके हेड क्वार्टर के सामने से अक्सर गुजरते और देखते झंडों की संख्या बढ़ रही है। वन मोर झंडे और झंडे यह कैसा यूनाइटेड नेशंस है। दिस इज डिसयूनाइटेड नेशंस, फ्लैग आर इंक्रीजिंग, एक समय इंडिया, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, बर्मा यह सारे देश, यह सभी एक ही देश थे। वैसे एक समय तो इस पृथ्वी पर एक ही देश था, सारी पृथ्वी पर उसका नाम भारत हुआ करता था। हमारे परीक्षित महाराज सम्राट थे या जब युधिष्ठिर महाराज सम्राट थे तब उनको शास्त्रों में संबोधित किया है पृथ्वी पति, यह पृथ्वी के पति हैं। सारी पृथ्वी पर उनका सम्राट मतलब राजाओं के राजा, किंग ऑफ द किंग, हस्तिनापुर उसकी राजधानी और सारे संसार में एक देश, लेकिन कलि ने जिस काल के चलते कलह चलते रहते हैं रगड़े झगड़े चलते रहते हैं, उसी के साथ इस संसार के टुकड़े हो रहे हैं। वर्ल्ड इज ब्रोकन इनटू विद सो मेनी कंट्रीज, प्रभुपाद कहा करते थे कैसा है तुम्हारा यूनाइटेड नेशंस ? दिस इज़ द यूनाइटेड नेशंस, वन फ्लैग ओन्ली और फिर किसी पब्लिक फंक्शन में श्रील प्रभुपाद ने कई बार कहा मुंबई में, हमने भी सुना, जब उसी मंच पर प्रभुपाद के शिष्य भक्त कई देशों से साथ में उपस्थित हुआ करते थे। तब प्रभुपाद कहा करते थे कि देखो ही इज़ फ़्रॉम अमेरिका, कनाडा से, ऑस्ट्रेलिया से, इंडिया से, यह जापान से है, वीआर यूनाइटेड लेकिन हम सब एक हैं। आध्यात्मिक जगत का यह देश है या आध्यात्मिक जगत का यह दर्शन है कि हम सब एक हैं या इकट्ठे हैं। यहां अमेरिका और रशिया में भी फाइटिंग चलती रहती है। एक समय अमेरिका सुपर पावर तो कभी रशिया, वह लड़ रहे थे। लेकिन जब रसिया का रशियन कृष्ण भक्त बनता है या अमेरिकन कृष्ण भक्त बनता है तब वह यह लड़ाई झगड़ा भूल जाता है, गले लगाते हैं। वाञ्छा कल्पतरुभश्च कहते हैं, एक दूसरे को प्रणाम करते हैं, एक दूसरे के साथ कार्य करते हैं एंड डेट यूनिटी इज़ रियल यूनिटी यह उसका प्रदर्शन है, उसका डेमोंस्ट्रेशन है। उसके बाद श्रील प्रभुपाद ने कृष्ण भावनामृत संघ की स्थापना करके, जो इस संसार के लोग, संसार के राजनेता जो हासिल नहीं कर पाए, श्रील प्रभुपाद यूनाइटेड द वर्ल्ड, प्रभुपाद ने संसार के लोगों को या जब हमारा मायापुर वृंदावन फेस्टिवल होता है तब कई देशों के लोग आ जाते हैं भक्त बने हैं और हम एक ही परिवार के सदस्य के रूप में वहां रहते हैं। वहां स्नेह होता है। यह बात श्रील प्रभुपाद मलेशिया में समझा रहे थे। कृष्ण भावना में या भगवत भावना में ही यह संभव है अदर वाइज (डिस यूनाइटेड नेशन) यह बात आप सीखो समझो, आप फॉलोवर्स बन रहे हो या श्रील प्रभुपाद ने जो एक घर बनाया, इस्कॉन वह घर है। जिसमें सारा संसार रह सकता है।
*सर्वोपाधि- विनिर्मुक्तं तत्परत्वेन निर्मलम्। हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिरुच्यते।।*
( चैतन्य चरितामृत मध्य 19.170)
अनुवाद: – भक्ति का अर्थ है समस्त इंद्रियों के स्वामी, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् की सेवा में अपनी सारी इंद्रियों को लगाना। जब आत्मा भगवान् कि सेवा करता है तो उसके दो गौण प्रभाव होते हैं। मनुष्य सारी भौतिक उपाधियों से मुक्त हो जाता है और भगवान् कि सेवा में लगे रहने मात्र से उसकी इंद्रियां शुद्ध हो जाती हैं।
यह संसार और संसार के लोग कई सारी उपाधियों से भरे पड़े हैं। मैं यह देश का या फलाने देश का, केवल यही नहीं और भी कई सारी उपाधियां हैं। मैं यह शरीर हूं यह भी उपाधि, फिर मैं स्त्री हूं ,या मैं पुरुष हूं, यह भी उपाधि है, मैं काला हूं मैं गोरा हूं। इसी तरह की उपाधियां या डेजिग्नेशंस यही है ‘अहम और मम” ममता का यह जगत , अहंकार और ममता से भरा हुआ जगत , इससे मुक्त करने के लिए ही श्रील प्रभुपाद , श्रीकृष्ण चैतन्य महाप्रभु की ओर से, इस हरे कृष्ण आंदोलन की स्थापना उन्होंने की। जिससे सारा संसार लाभान्वित हो रहा है। ठीक है ओके हरि हरि ! मैं अब यहीं विराम करता हूं।
श्रील प्रभुपाद की जय!
गौर प्रेमानंदे !
हरि हरि बोल !
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk English Transcription
CHANT JAPA WITH LOKANATH SWAMI Japa Talk Russian Translation
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